इशारा // सिंधी कहानी // शौकत हुसैन शोरो // अनुवाद - डॉ. संध्या चंदर कुंदनानी

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‘दुनिया जीने के काबिल नहीं या मैं दुनिया के काबिल नहीं?’ कमाल के दिमाग में प्रश्न उठा और वह उलझकर खड़ा रहा। वह लुंडा बाजार से बाहर निकलकर लाई...


‘दुनिया जीने के काबिल नहीं या मैं दुनिया के काबिल नहीं?’ कमाल के दिमाग में प्रश्न उठा और वह उलझकर खड़ा रहा। वह लुंडा बाजार से बाहर निकलकर लाईट हाऊस सिनेमा के समीप आकर खड़ा हुआ था। बंदर रोड के ट्रैफिक के सैलाब को लाईट हाऊस के आगे सिगक्ल की लाल बत्ती ने कुछ देर के लिए बांध बनकर रोका था, तब तक पाकिस्तान चौक से आती ट्रैफिक का नंबर आया और फिर उसके बाद हरी बत्ती के इशारे पर यह सैलाब धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था।

कमाल का हाथ खुद ब खुद जेब की ओर चला गया और उसके हाथ ने अंदर जेब में पड़े खत को बाहर से महसूस किया। उसका पूरा ध्यान अपने पिता की ओर चला गया। कद का छोटा, मोटा और हाथ में हमेशा डंडा। वह बाहर तो स्कूल में हेड मास्टर था, लेकिन घर में भी हेड मास्टर था। हर वक्त पत्नी और बच्चों को डांटता, कभी कभी क्रोध में आकर बच्चों को डंडे से पीटता। कमाल पिता के इस स्वभाव को समझ न सका था कि वह ऐसा क्यों था! उसे पिता से कभी भी अपनत्व का अहसास नहीं हुआ! लेकिन उसे अपने पिता से कभी नफरत भी महसूस नहीं हुई, केवल डर लगता था। अब उसे लगा कि उसके और उसके पिता के बीच केवल डर का रिश्ता था। फिर जैसे जैसे वह बड़ा होता गया और उसका पिता बूढ़ा होने लगा तो यह डर परायेपन में बदलता गया। कमाल ने घर छोड़ा, उसे काफी वक्त हो गया था। अब वह कभी कभी घर जाता था तो पिता से एक दो शब्द से ज्यादा बात नहीं करता था। पिता अंदर के कमरे में बैठा रहता तो कमाल बाहर बरामदे में जाकर बैठता। पिता बाहर बैठा रहता तो कमाल अंदर जाकर बैठता या उल्टा घर से बाहर निकल जाता। वह समझ नहीं पा रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा था! पिता की मौजूदगी में उसे एक अजीब घुटन महसूस होती थी। उसने यह भी देखा था कि पिता को भी कोई प्यार नहीं था कि बेटे के साथ बैठकर कुछ बातें कर ले। कुछ देर साथ में बैठना भी पड़ता था तो दोनों चुप होते। घर में दूसरी थी उसकी माँ जो हर वक्त पिता के रवैये और घर में कुछ न कुछ नहीं होने की शिकायत करती रहती थी। कमाल चुपचाप माँ की बातें सुनता रहता था। उसने कभी भी माँ की शिकायतों को गंभीरता से नहीं सुना था। लेकिन काफी वक्त के बाद उसे एहसास हुआ कि माँ से उसका व्यवहार बिल्कुल वैसा ही था, जैसा अपने पिता के साथ था। उसे अपनी माँ पर तरस आया, जिसे उसके पति ने तो नजरअंदाज कर ही दिया था, लेकिन पुत्रों ने भी ध्यान नहीं दिया और पूरी उम्र उस गरीब औरत ने कितना भोगा था!

कमाल ने खत जेब से निकाला और खड़े खड़े फिर से पढ़ा। वह उस खत को पहले भी तीन बार पढ़ चुका था। पिता ने लिखा था : ‘‘लोग औलाद को जन्म देते हैं तो उनको पढ़ा लिखाकर, अपने पैरों पर खड़ा करके, उम्मीद करते हैं कि वह उन्हें मुश्किल वक्त में सहारा देगी। हमने तुम्हारे लिए क्या नहीं किया है? गरीब होते हुए भी तुम्हें पाल पोसकर इतना बड़ा किया, लेकिन हमें पता नहीं था कि तुम इतने नालायक साबित होगे, जो अपनी बूढ़ी माँ और बाप, अपनी छोटी बहनों और भाईयों की देखभाल नहीं करोगे। क्या तुम्हें थोड़ा भी एहसास नहीं है कि हम किस हाल में हैं? हमें छोड़, हमने तुम्हारे लिए कुछ नहीं किया, हम अब मरने तक पहुंच गए हैं। हमारे बाद इन मासूम लड़कियों का क्या सहारा है? तुम तो बचपन से ही लापरवाह हो। न ही माँ बाप का ख्याल और न ही बहनों की चिंता। यहां तुम्हारी पागल माँ तेरे विवाह की तैयारियां कर रही है। लड़की वाले अब जल्दी कर रहे हैं। मेरे पास तो पैसा नहीं है, जो विवाह का खर्च उठा पाऊं। यह सब अब तुम्हें करना है। अब तो सुस्ती और बुजदिली छोड़। जिंदगी में कुछ संजीदा बन, कुछ एहसास कर, कुछ कर। इससे ज्यादा मैं तुम्हें और क्या कहूं...’’

कमाल ने खत समेटकर जेब में डाला। उसने रोड क्रास करना चाहा, लेकिन ट्रैफिक का तेज बहाव देखकर रुका, जक तब रेड स्गिनल हो। उसे विचार आया कि वह पूरी उम्र इंतजार में रहा कि कहीं से कोई ग्रीन सिगनल मिलेगा, कोई इशारा होगा और वह भी दुनिया के साथ आगे बढ़ेगा। अपनी समस्याओं को दलदल से, अपने कॉम्प्लेक्स के घेरों से बाहर निकालेगा।

‘इतनी जिंदगी बीत गई, लेकिन मुझे कहीं से भी कोई ग्रीन सिगनल नहीं मिला आगे बढ़ने के लिए। ग्रीन सिगनल हमेशा औरों के लिए होता है। बाकी लोग आगे बढ़ जाते हैं और जब मेरी बारी आती है तो रेड सिगनल रोशन हो जाता है। वक्त कितना आगे बढ़ गया है और मैं पीछे धकेलता जा रहा हूं। वर्तमान वक्त में बेमेल पंक्ति Misfit.’

कमाल को कराची की जिस ऑफिस में नौकरी मिली थी, उसमें अभी तक तालमेल नहीं बिठा पाया था। कराची के लोग बातें करने, काम करने और चलने में तेज। एक जगह से दूसरी जगह ऐसा तेज जाएंगे, जैसे कोई इमरजंसी हो और लौटते वक्त भी उतनी ही तेजी से आते, फिर चाहे उन्हें अपनी टेबल पर बैठने के बाद कोई काम न हो। कमाल का ऑफीसर मिस्टर निज़ामी बाहर से ऐसे तेज तेज आता था, जो सांस भी कुर्सी पर बैठकर ही लेता था। यह मिस्टर निज़ामी कमाल को सुस्त कहकर बुलाता था :

‘‘कराची जैसे तेज शहर में ऐसे थके कदमों से चलोगे तो पीछे रह जाओगे, और बाकी सभी लोग तुमसे आगे निकल जाएंगे...’’

लेकिन कमाल अपने घर से जिस प्रकार थके कदमों से बाहर निकला था, वे कराची में भी वैसे ही रहे।

‘क्यों? मैं औरों के समान नहीं हो सकता!’’ उसने खुद से पूछा।

‘मैं औरों के समान तेज तर्रार और चालाक नहीं हूं... चलने में सुस्त... बात करना आता नहीं...’

‘‘तुम लोगों के साथ रहे हो या जंगली जानवरों के साथ?’’

वह क्रिस्टाईन थी, जिसने उससे पूछा था। काली होने की हद तक सांवली, मिस्टर निज़ामी की स्टेनो। कमाल डिस्पेच क्लर्क था, इसलिए दोनों का एक दूसरे से संबंध था। लेकिन कमाल ने कोशिश की कि उसका संबंध कम पड़े। क्रिस्टाईन का संबंध कुछ ज्यादा ही था।

‘‘तुम्हारे लिए तो मैं जंगल से पकड़ा गया एक जानवर ही हूं, आप जैसे शहरी लोगों के लिए मन बहलाने का एक साधन।’’

‘‘ओ नो... तुम तो गुस्सा भी बहुत जल्दी हो जाते हो। मेरा मतलब यह नहीं था। तुम दुनिया से कुछ सीख। Complexes और Taboos से बाहर निकल, नहीं तो यह दुनिया तुम्हें कुचलकर पीछे छोड़ देगी।’’ और क्रिस्टाईन खुद ही आगे बढ़कर उसके पास आई थी। कमाल ने तो अपनी ओर से पूरी कोशिश की थी कि क्रिस्टाईन से दूरी बनाए रखे। अगर वह सुंदर नहीं थी तो भी आकर्षक जरूर थी। सेहतमंद और ठीक ठाक। शादीशुदा थी और एक बच्चे की माँ भी थी। लेकिन दिखने में अभी भी लड़की ही लगती थी। शुरू शुरू में कमाल उससे बातें करते वक्त डरता था। पहले क्रिस्टाईन ही उसके साथ फ्री हुई थी और उसे खींचकर अपने समीप लाई थी।

‘‘तुम हर बात में सुस्त हो, सिवाय एक बात के...’’

‘‘शुक्र है, किसी बात में तो तेज हूं! कौन-सी बात है वह?’’

‘‘तुम आते तेज हो।’’

क्रिस्टाईन ने ठहाका लगाया। कमाल भी उसके साथ हंसा, लेकिन जल्दी ही गंभीर हो गया। वह परेशान हो गया।

‘‘अब क्या सोच रहे हो?’’

‘‘कुछ नहीं।’’

‘‘वैसे तो मैं तुम्हें पहचानती हूं। सोचने के अलावा तुम्हें और आता ही क्या है! खैर, बताओ क्या बात है?’’

‘‘यही तेज आने पर सोच रहा था।’’

‘‘यू स्टुपिड! यह भी कोई सोचने की बात है। मैंने तो मजाक में कहा था। यह तो नैचुरल है तुम्हारे जैसे व्यक्ति के लिए। जब कोई ज्यादा ही Exbited होता है न, तो जल्दी आ जाता है। तुम खुद ही ठीक हो जाओगे। इस पर ज्यादा सोच विचार करोगे तो गड़बड़ हो जाएगी। लेकिन मुझे तुम्हारा जल्दी आना भी अच्छा लगता है। तुम कुछ मत सोच इस बारे में।’’

क्रिस्टाईन ने उसे जोर से गले लगाकर एक लंबी किस की थी।

बंदर रोड पर तेज ट्रैफिक के साथ उसकी नजरें भी दौड़ती गईं। इतनी बड़ी दुनिया में एक क्रिस्टाईन ही थी जिससे उसे अपनत्व मिला था, जो उसके वजूद की अंधेरी गुफा में घुस आई थी और वहां जाले साफ किए थे। उसे इन्सान बनाया तो क्रिस्टाईन ने।

‘‘तुमने मुझे जंगली जानवर से पालतू जानवर बना दिया है।’’

‘‘बेवकूफ हो तुम, पालतू जानवरों के गले में तो पट्टा होता है।’’

‘‘वह पट्टा तुम हो।’’

‘‘न ही तुम पालतू जानवर हो और न ही मैं तुम्हारे गले में बंधा पट्टा। उल्टी बातें मत सोचा कर। आदमी हमेशा अच्छी बातें सोचे। तुम व्यक्ति हो, और लोगों की तरह आम आदमी... आईंदा कभी भी उल्टी बात मत सोचना।’’

कमाल ने सोचा, ‘‘लेकिन जिस व्यक्ति का व्यक्तित्व ही उलट हो, वह उल्टी बातें नहीं सोचेगा तो और क्या सोचेगा। मैं कितनी ही कोशिश करने के बाद भी खुद का दुनिया से तालमेल नहीं बिठा पाया हूं। हर जगह, हर किसी से, हर बात में Misfit...’ उसकी नजरें आसपास और रोड के दूसरी ओर के दुकानों, चीजों, लोगों और गाड़ियों की ओर से घूमती सिगक्ल पर आकर ठहर गईं। जैसे कि उसे इंतजार हो कि उसे कब इशारा मिलेगा वहां से चलने का। इस इशारे के इंतजार में पूरी जिंदगी गुजर गई और उसने जिंदगी में कुछ न किया। न खुद के लिए, न औरों के लिए।

लोग यह देखते हैं कि उसने औरों के लिए क्या किया है!

‘मैंने तो किसी के लिए कुछ भी नहीं किया है। न अपने घर वालों के लिए, न ही क्रिस्टाईन के लिए...’

यह क्रिस्टाईन ही थी, जिसने उसके लिए सब कुछ किया, लेकिन क्रिस्टाईन के लिए कुछ भी नहीं कर पाया था। यह बात कांटा बनकर उसके दिल में चुभ रही थी। उसे लगा कि वह नीचे गिर गया है। बहुत ज्यादा नीचे, जहां से निकलने का कोेई उपाय नहीं था।

‘‘तुम शुरू से ही इतने कठोर हो या अब हुए हो?’’

क्रिस्टाईन ने पूछा था उससे, और उसने सोचा था कि क्या वह अंदर भी इतना ही कठोर है, जितना बाहर से लगता है! अगर सच में ही वह इतना कठोर है, जैसा उसने खुद को कभी नहीं समझा था, तो उस कठोरता के क्या कारण थे?’

‘‘मैंने तो हमेशा ऐसा ही समझा है कि मैं हद से ज्यादा भावुक हूं। मामूली बात भी मुझ पर बहुत बड़ा असर करती है और दिल में चुभ जाती है।’’

‘‘हां, तुम भावुक तो हो, लेकिन केवल खुद के लिए, अपनी जाति की हद तक। किसी और को क्या तकलीफ है, क्या समस्या है, उसका एहसास तुम्हें कहां होता है! जहां तक औरों की भावुकता का संबंध है तब तुम्हारी भावुकता कहां गायब हो जाती है?’’

कमाल को लगा : लाईट हाऊस के सामने से गुजरती सारी ट्रैफिक उसके ऊपर चढ़ती आ रही है। उसकी छाती के अंदर कोई चीज कुचल रही थी। कमाल ने छाती पर हाथ रखा और लंबी सांस लेने की कोशिश की। अचानक रेड सिगनल के कारण पूरी ट्रैफिक रुक गई। सिगनल की लाल बत्ती कमाल की आंखों में नाचने लगी। उसे डर लगा कि कहीं चक्कर खाकर फुटपाथ पर गिर न पड़े। उसने छाती को जोर से दबाया और पल भर के लिए आँखें बंद कर दीं।

उसने खुद से कहा : तुम वह व्यक्ति हो जिसने कभी भी किसी के लिए कुछ नहीं किया। कुछ करना तो दूर, तुमने कभी किसी के लिए सोचा भी नहीं। कोई ऐसा व्यक्ति है जो तुमसे खुश हो! तुमने हमेशा औरों से उम्मीदें कीं कि वे तुम्हारा ख्याल रखें, तुम्हारे लिए कुछ करें... तुम्हारे जीने का कारण बनें, लेकिन तुमने उनके लिए क्या किया है? लानत है तुम पर-तुम्हारे जीने पर...

ट्रैफिक के शोर पर उसने आँखें खोलीं और सिगनल की बत्ती की ओर देखा। हरी रोशनी उसकी आँखों में ठंडक बनकर आई। उसने खुद से पूछा, ‘मुझे कभी जिंदगी में ग्रीन सिगनल मिलेगा? पूरी जिंदगी उम्मीद रही, लेकिन मेरे सामने सभी रास्ते बंद रहे हैं, सब दरवाजे बंद रहे हैं, जब कोई रास्ता न मिले, कोई दरवाजा खुला न हो तो व्यक्ति कहां जाए?’ तभी उसे क्रिस्टाईन की कही बात याद आई : ‘‘मेरे घर का दरवाजा तुम्हारे लिए हमेशा खुला रहेगा,’’ लेकिन वह दरवाजा भी बंद हो गया था उसके लिए।

‘‘मेरा पति दो वर्षों से अमेरिका में है। अभी तक उसके आने का कोई प्रोग्राम नहीं है। पीछे मैं बच्चे की माँ बन जाऊंगी तो लोग क्या कहेंगे? मेरा पति क्या कहेगा? तुम यह समझते क्यों नहीं!’’

‘‘तुम तलाक लो, मैं तुमसे ही शादी करने के लिए तैयार हूं।’’

‘‘ओह कमाल! यह बात इतनी आसान नहीं है। तलाक लेने के पीछे कोई कारण होना चाहिए। मैं अलग होना चाहती हूं, मैं किसी और व्यक्ति से प्यार करती हूं और उसके बच्चे की मां बनने वाली हूं... यह कोई कारण नहीं है। दूसरी बात तो तलाक इतनी जल्दी मिलेगा भी नहीं। तब तक तो बच्चा भी हो जाएगा। नहीं, मुझमें इतनी हिम्मत नहीं जो मैं दोस्तों और रिश्तेदारों का सामना कर सकूं।’’

‘‘फिर तुम क्या चाहती हो? ऐबॉर्शन!’’

‘‘और कोई चारा नहीं है।’’

‘‘हां और कोई चारा नहीं था,’’ कमाल के मुंह से निकल गया। बाजू से गुजरते व्यक्ति ने उसकी ओर देखा और चला गया।

लेकिन यह सब उसे अच्छा नहीं लगा था। बेबसी इतनी थी जो वह कुछ कर भी नहीं सकता था। न क्रिस्टाईन के लिए और न ही अपने होने वाले बच्चे के लिए। क्रिस्टाईन छुट्टी लेकर चली गई। अब केवल फोन पर ही हालचाल पता लग सकता था। एक दिन क्रिस्टाईन ने उसे बताया कि जो औरतें ऐबॉर्शन करवाने में माहिर हैं और बिना तकलीफ के जल्दी ही पूरा काम कर देती हैं, वे ज्यादा पैसे लेती हैं। क्रिस्टाईन के पास इतने पैसे नहीं थे, इसलिए उसे ऐसी दायी की तलाश थी, जिसे वह एफोर्ड कर सकती थी।

‘‘इसमें कोई खतरा तो नहीं?’’

‘‘हां, रिस्क तो है। एक दिन से ज्यादा भी लग सकते हैं और जब तक कुछ हो, तब तक रोज रोज नर्क की तकलीफ से गुजरना पड़ता है।’’

‘‘फिर यह काम किसी अच्छी जगह से क्यों करवाया जाए। जहां तक पैसों का सवाल है तो कहीं से उधार ले लेंगे। फिर जब तुम्हारे पास हों दे देना!’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई जरूरत नहीं है। मेरे पास कुछ पैसे हैं।’’

छुट्टियां खत्म होने के बाद क्रिस्टाईन जब ऑफिस में आई तो वह उसे देखने से कतरा रही थी। कमाल को लगा कि वह कोशिश करके उससे दूर भाग रही थी। कमाल ने बहुत सोचा, लेकिन उसे क्रिस्टाईन के इस रवैये का कोई कारण समझ में नहीं आया।

‘‘क्या बात है, क्रिस्टाईन! तुम नाराज हो?’’

‘‘खुद से पूछ!’’

‘‘खुद से बहुत पूछा है, लेकिन कोई कारण समझ में नहीं आ रहा।’’

‘‘ऐसे बच्चे तो नहीं हो।’’

‘‘सच... अब बताओ भी? मुझसे कोई गल्ती तो नहीं हो गई है?

‘‘तुम्हें कभी अपने फर्ज और जिम्मेदारी का अहसास हुआ है?’’

‘‘मैं समझा नहीं!’’

‘‘हां, तुम क्यों समझोगे! तुम्हें जरूरत ही क्या है...’’

‘‘लेकिन तुम साफ साफ क्यों नहीं बताती?’’

‘‘मेरा कोई अधिकार नहीं है तुम पर? मैंने इतनी तकलीफ सहन की, ऐबॉर्शन करवाया। तुमने क्या किया मेरे लिए?’’

‘‘मैंने तो तुम्हें कहा था कि किसी अच्छी जगह से करवाओ। पैसों का बंदोबस्त मैं खुद ही कर लूंगा।’’

‘‘जी नहीं। तुमने कहा था कि कहीं से उधार ले लूंगा और जब मेरे पास हो जाएं तो वापस करूं । उधार मैं नहीं ले सकती थी क्या कहीं से?’’

‘‘मैंने सोचा के अगर मैं कहूंगा कि तुम्हारे ऐबॉर्शन के पैसे मैं दूंगा तो तुम्हें खराब लगेगा। मुझे पता है कि तुम खुद्दार हो, इसलिए डर लगा कि तुम गुस्से में न आ जाओ...’’

‘‘असल में तुझे अपनी खुद्दारी का अहसास था कि कहीं मैं इन्कार न कर दूं। तुम्हें केवल अपना अहसास होता है, औरों का तो तुम्हें जरा भी अहसास नहीं होता है। मैंने तो तुम्हारे जैसा कठोर इन्सान नहीं देखा है। मुझे नफरत है ऐसे लोगों से...’’

कमाल को लगा कि वहां खड़े खड़े उसे काफी वक्त हो गया है। उसे विचार आया कि वक्त काफी आगे निकल चुका है और उसके करने के लिए अब कुछ भी नहीं था। वह किसी के लिए कुछ करने के लायक नहीं था। अब उसके जीने का कोई कारण नहीं रह गया था। केवल जीने की खातिर जीना, औरों से संबंध तोड़कर और कठोर बनकर जीना बेकार था। उसने जेब में रखे खत को हाथों से छुआ और कहा, ‘मेरा होना औरों की तकलीफ का कारण है। मैं हूं तो औरों की मुझमें झूठी उम्मीदें हैं। मैंने अपने घर वालों के लिए कुछ नहीं किया। लेकिन जिन्हें पता नहीं उन्होंने हमेशा मेरे हाथों धक्के खाए हैं और बाद में जाना है कि मेरा वजूद एक फ्रॉड है। धोखा है। क्या यह ऐसे ही चलता रहेगा? कब तक! कब तक!...’’

उसकी नजरें ट्रैफिक सिगनल की ओर गईं। लाल बत्ती बंद हो गई और पीली बत्ती रोशन हो गई। कमाल के दिमाग में बिजली कौंध गई। उसे लगा कि पीली बत्ती ने उसे इशारा दिया था तैयार रहने का। वह खुश हो गया। ‘मुझे इशारा मिल गया... इशारा मिल गया...’ उसके दिमाग में एक पंक्ति रिकार्ड पर फंसी सुई की तरह बजने लगी। हरी बत्ती जलने से ट्रैफिक चालू हो गई और इसके साथ ही कमाल का पैर भी आगे रोड की ओर बढ़ गए।

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रचनाकार: इशारा // सिंधी कहानी // शौकत हुसैन शोरो // अनुवाद - डॉ. संध्या चंदर कुंदनानी
इशारा // सिंधी कहानी // शौकत हुसैन शोरो // अनुवाद - डॉ. संध्या चंदर कुंदनानी
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