विज्ञान-कथा // यू.आई.डी. // ज़ीशान हैदर ज़ैदी // विज्ञान कथा / जनवरी-मार्च 2018

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दे श के जाने माने साइंटिस्ट प्रोफेसर घनश्याम की कार जब उसकी बहन के दरवाज़े पर रुकी तो उस समय रात के दो बज रहे थे। प्रोफेसर घनश्याम इस समय दू...

clip_image002 दे श के जाने माने साइंटिस्ट प्रोफेसर घनश्याम की कार जब उसकी बहन के दरवाज़े पर रुकी तो उस समय रात के दो बज रहे थे। प्रोफेसर घनश्याम इस समय दूसरे शहर में रहने वाली अपनी बहन से मिलने आया था और इसके लिये पूरी रात उसने खुद ही कार ड्राइव की थी। उसने काल बेल पर उंगली रखी। इससे पहले कि वह दूसरी बार बेल पर उंगली रखता, अप्रत्याशित रूप से दरवाज़ा जल्दी खुल गया। वरना रात को दो बजे कौन इतनी जल्दी बिस्तर से उठना गंवारा करता है। दरवाज़ा खोलने वाली उसकी बहन ही थी जिसकी उम्र अब ढलने लगी थी। वह प्रोफेसर घनश्याम से दस साल बड़ी थी और घनश्याम की उम्र भी पचपन के लगभग थी।

प्रोफेसर ने देखा कि उसकी आँखें लाल हैं मानो वह रोती रही हो, और ऐसा बिल्कुल नहीं मालूम हो रहा था कि वह सोते से उठकर आयी है।

‘‘विमला तुम शिकायत कर रही थीं कि मैं तुमसे मिलने नहीं आता। देखो आज मैं सारे काम छोड़कर चला आया’’ प्रोफेसर घनश्याम गर्मजोशी के साथ बोला।

‘‘अन्दर आओ घनश्याम’’ विमला सपाट आवाज़ में बोली और वापस जाने के लिये घूम गयी।

घनश्याम को एक बार फिर अचरज हुआ लेकिन वह बिना कुछ बोले अपनी बड़ी बहन विमला का अनुसरण करने लगा। जब दोनों ड्राइंग रूम में पहुंचे तो विमला का अधेड़ पति भी मौजूद था और उसके चेहरे पर भी परेशानी की सिलवटें साफ ज़ाहिर हो रही थीं।

‘‘आओ घनश्याम बड़े दिनों के बाद आये’’ उसने घनश्याम का स्वागत किया लेकिन उस स्वागत में गर्मजोशी तो बिल्कुल नहीं थी।

‘‘लगता है मैं गलत वक्त पर आया हूं। दो बजे रात को मुझे नहीं आना चाहिए था।’’ घनश्याम जो काफी देर से महसूस कर रहा था इस बार उसे ज़बान पर ले आया। वह हमेशा का स्पष्टवादी था क्योंकि वह एक वैज्ञानिक था।

‘‘घनश्याम, तुम गलत समझ रहे हो। सच्ची बात ये है कि हम लोग बहुत परेशान हैं।’’ विमला बुझे हुए स्वर में बोली।

‘‘अरे! तो मैं कोई गैर हूं? आप अपनी परेशानी मुझे बताईए न। हो सकता है मैं कुछ मदद कर सकूं।’’ ‘‘इसमें कोई किसी की मदद नहीं कर सकता। प्रकृति के आगे किसका बस चला है।’’

‘‘लेकिन आप लोग अपनी परेशानी बताईए तो सही।’’

‘‘मैं बताता हूं।’’ इस बार विमला का पति यानि प्रो घनश्याम का जीजा बोला, ‘‘हम लोग अभी थोड़ी ही देर पहले अस्पताल से आये हैं’’ कहकर वह एक क्षण के लिये चुप हो गया। अब घनश्याम भी बेचैन हो उठा था। उसे मालूम था कि विमला के एक ही इकलौता लड़का है जिसकी अभी पिछले साल ही शादी हुई है। तो क्या लड़का या बहू ...?

‘‘हमारी बहू ने दरअसल एक लड़के को जन्म दिया है’’ उसकी तन्द्रा को उसके जीजा ने भंग कर दिया।

‘‘ओह! लेकिन ये तो खुशी की बात है। इसमें

परेशानी....’’

‘‘परेशानी ये है कि वह लड़का अत्यन्त कुरूप है’’ इस बार विमला बोल उठी।

‘‘ओह। लेकिन ये तो कोई ऐसी बात नहीं। जन्म के समय तो सारे बच्चे एक ही जैसे दिखते हैं। हो सकता है बड़ा होकर वह अच्छा दिखे। और फिर वह लड़का है, कोई लड़की नहीं जिसकी सुंदरता की आप चिंता करें।’’

’’आप मेरी बात नहीं समझ रहे हो। बेहतर होगा आप खुद उस बच्चे को देख लो’’ न जाने जीजा के स्वर में क्या था कि घनश्याम फौरन उसके साथ हास्पिटल जाने को

तैयार हो गया।

----- वाकई उस बच्चे को देखकर घनश्याम चौंक गया

था। पूरी पृथ्वी पर शायद ही कहीं और ऐसी शक्ल व

सूरत के बच्चे का जन्म हुआ हो। नाक हरे रंग की किसी छोटे से पेड़ की तरह

दिख रही थी, जिसकी कई शाखाएं हों।

खूबसूरती में गुलाब के फूल की मिसाल दी जाती है। लेकिन अगर किसी बच्चे के कान गुलाब जैसी सूरत में हों तो वो बदसूरत ही कहलायेगा। और आँखों की जगह दो लहरदार चमकीली

लकीरें दिख रही थीं। बच्चे का रंग सुर्ख था। यह सुर्खी प्रोफेसर घनश्याम ने आज तक किसी बच्चे या बड़े में नहीं देखी थी।

‘‘अविश्वसनीय!’’ प्रोफेसर के मुंह से अनायास निकला।

‘‘अब इस बच्चे को कुरूप नहीं तो और क्या कहा जाये’’ बच्चे के दादा के वाक्य में पूरी तरह विवशता झलक रही थी।

‘‘ये बच्चा कुरूप नहीं है ये तो अनोखा है। यूनीक। ऐसा बच्चा पूरी पृथ्वी पर कहीं नहीं।’’

‘‘मामा। आप क्या यहाँ हमारा मज़ाक उड़ाने के लिये आये हैं?’’ उस बच्चे का बाप बोल उठा जो अभी अभी बाहर से कुछ दवाएं लेकर आया था।’’

‘‘नहीं भांजे। मुझे तुम्हारे दुःख का पूरा एहसास है। लेकिन मेरी आदत हर चीज़ को साइंटिस्ट की नज़र से देखने की है। मैं प्रकृति की हर अच्छी बुरी चीज़ को

एक ही कोण से देखता हूं कि उसमें खास क्या है।’’ बच्चे की बगल में लेटी हुई उसकी माँ अभी तक मौन थी। शायद उस पर एनेस्थीसिया का असर अभी भी

था। वह बच्चा सीज़ेरियन हुआ था।

‘‘लोग कहते हैं कि ईश्वर की बनाई दुनिया परफेक्ट है। तो फिर उसमें इस तरह की गलतियाँ कैसे हो सकती हैं? वास्तव में ईश्वर नाम की कोई चीज़ नहीं है और न ही ये दुनिया कहीं से परफेक्ट है’’ प्रोफेसर घनश्याम कह रहा था।

‘‘ये भी मुमकिन है कि इस तरह की गलतियाँ

भी परफेक्टनेस का एक हिस्सा हों।’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘बहुत समय पहले एक व्यक्ति ने सोचा कि ईश्वर ने दुनिया कितनी त्रुटिपूर्ण बनायी है। भारी भरकम तरबूज़ ज़मीन पर कमज़ोर लताओं के साथ बाँध दिये और छोटी छोटी खजूरें बहुत ऊंचे पेड़ों पर लटका दीं। लेकिन अगले ही पल जब कुछ खजूरें टूटकर उसके सर पर पड़ीं तो उसे ईश्वर की ‘त्राटि’ नज़र आ गयी। कई बार हम समझ नहीं पाते कि परफेक्टनेस का मतलब क्या है।’’

‘‘लेकिन इस बच्चे के जन्म में क्या परफेक्टनेस हो सकती है?’’

‘‘कई बार प्रकृति अपनी परफेक्टनेस में लूप होल पैदा कर देती है ताकि उसके द्वारा हम कुदरत के छुपे हुए राज़ों तक पहुंच सकें। अगर इंसान के जिस्म में बीमारियाँ न होतीं तो शायद आज हम मानव शरीर के बारे में कुछ भी न जान पाते। अब मैं इस बच्चे का डीएन.ए. सैम्पिल ले जाऊँगा और पता लगाने की कोशिश करूंगा कि ये ऐसा क्यों है’’ कहते हुए प्रोफेसर घनश्याम ने बच्चे का डीएनए सैम्पिल लेने की तैयारी शुरू कर दी।

----- अभी प्रोफेसर घनश्याम ने अपने शहर पहुंचने का आधा रास्ता ही तय किया था कि तेज़ आँधी तूफान ने उसे घेर लिया। बादल इतने घने थे कि हेड लाइट जलानी पड़ी थी। लेकिन मूसलाधार बारिश में उसे आगे का रास्ता मुश्किल से ही दिखाई दे रहा था। बिजलियाँ भी कड़क रही थीं। प्रोफेसर घनश्याम जल्दी से जल्दी अपनी लैब पहुंच जाना चाहता था ताकि उस अद्वितीय बच्चे का डीएनए टेस्ट कर सके। लेकिन घनघोर गरज के साथ होने वाली बारिश उसकी कार की स्पीड को रोक रही थी। अचानक तेज़ चमक में प्रोफेसर की आँखें बन्द हो गईं। लगातार कड़कने वाली बिजली उसकी कार के ऊपर ही गिरी थी। फिर उस भयंकर चमक ने प्रोफेसर के ज़हन को अँधकार के शून्य में डुबो दिया।

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जब प्रोफेसर का ज़हन फिर से कुछ सोचने के क़ाबिल हुआ तो उसे महसूस हुआ कि उसका जिस्म हल्का हो गया है और वह हवा में उड़ रहा है और जब उसने आँखें खोलीं तो उसे लगा कि वह प्रकाश के एक घेरे में कैद शून्य में तेज़ी के साथ कहीं चला जा रहा है।

‘‘तो क्या मैं मर चुका हूं?’’ उसके मन में पहला विचार यही आया। उसने अपने हाथ पैरों को हिलाना चाहा लेकिन उसे महसूस हुआ कि प्रकाश के उस घेरे ने उसे बुरी तरह जकड़ रखा है और वह अपनी मर्ज़ी से उंगली

भी नहीं हिला सकता है।

‘‘ठीक है। अभी देख लेते हैं कि मरने के बाद इंसान का क्या अंजाम होता है।’’ प्रोफेसर घनश्याम का वैज्ञानिक दिमाग इस हालत में भी अपने ही नज़रिये से सोच रहा था।

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ऐसा मालूम होता था जैसे आकृति प्रकाश से बन रही हो। जिस तरह दीपक की लौ होती है उसी तरह वह आकृति हवा में लहरा रही थी। लेकिन उस आकृति के नीचे कोई दीपक नहीं था। वह लौ निर्वात में बिना किसी स्रोत के स्वयं बन रही थी।

फिर उस जगह पर एक और उसी तरह की आकृति का प्रवेश हुआ। दूसरी आकृति पहली के सामने इस तरह लहराई मानो वह पहली का सम्मान कर रही हो। और साथ ही हवा में एक आवाज़ भी गूंजी जो शायद उसी आगंतुक आकृति की आवाज़ थी।

‘‘हब्बल यूनिवर्स के सम्राट के जय हो’’ दूसरी आकृति की अपनी एक अलग ही भाषा थी जिसका मतलब पृथ्वी की भाषा में शायद यही था।

‘‘क्या खबर है?’’ पहली आकृति ने भी उसी भाषा में पूछा।

‘‘हमने उस बच्चे का जेनेटिक कोड प्राप्त कर लिया है और जो व्यक्ति उस कोड पर रिसर्च करने जा रहा था, उसे भी हम ले आये हैं।’’ जैसे ही उस आकृति की बात खत्म हुई, प्रकाश के घेरे में कैद प्रोफेसर घनश्याम का वहाँ पर तेज़ी के साथ प्रवेश हुआ।

‘‘लेकिन मैंने सिर्फ जेनेटिक कोड लाने को कहा था, इस व्यक्ति को लाने की कोई ज़रूरत नहीं थी। खैर इसे बाद में देखूंगा हो सकता है जाँच में इसकी ज़रूरत पड़े। पहले तो ये मालूम होना ज़रूरी है कि सिल्टर ग्रह का जेनेटिक कोड पृथ्वी पर बने शरीर में कैसे पहुंच गया। हब्बल यूनिवर्स में ऐसी गड़बड़ पहली बार हुई है। क्या हमारे सृजनकर्ताओं का दिमागी संतुलन बिगड़ गया है?

‘‘सम्राट। हमारे सृजनकर्ताओं का कहना है कि उनसे कोई गलती नहीं हुई है। यहाँ तक कि जब इस बच्चे के बाप का स्पर्म माँ के अंडे को भेद रहा था उस समय भी सृजनकर्ताओं ने चेक किया था कि स्पर्म व अंडे दोनों के जेनेटिक कोड पृथ्वी के अनुसार ही हैं। फिर शुरूआती तीन हफ्तों की स्टेज यानि प्री एम्ब्रायनिक स्टेज तक बच्चे के बनने की प्रोसेस की पूरी निगरानी की गयी। और फिर उसके बाद बच्चे की पैदाईश तक पूरी निगरानी होती रही लेकिन उसके जन्म से पहले तक किसी गड़बड़ का पता नहीं चला।’’

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’ सम्राट बड़बड़ाया। उसके जिस्म को इंगित करने वाली लौ इस समय शांत थी। जिसका मतलब था कि वह किसी गहरी सोच में

डूबा हुआ है।

‘‘एक काम करो तुम।’’

‘‘जी हुक्म कीजिए सम्राट।’’

‘‘हब्बल यूनिवर्स में हम जब भी कोई नया स्पर्म या नया अण्डा बनाते हैं तो उसको एक नंबर देते हैं। यूनीक आईडी नंबर। यही यूआईडी नंबर डिटेक्ट करता है कि किसी स्पर्म या अण्डे को यूनिवर्स के किस ग्रह पर भेजना है और इसी यूआईडी नंबर के द्वारा हमारे सृजनकर्ता सृजन की समस्त प्रक्रिया पर नज़र भी रखते हैं। मुझे पूरा यकीन है कि इसी यूआईडी नंबर में कुछ गड़बड़ हुई है या किसी ने गड़बड़ की है।’’

‘‘लेकिन यूआईडी नंबर जिस ‘वर्ल्ड-लॉजिक-कर्व’ सिस्टम में स्टोर होता है उससे ज़्यादा सुरक्षित कोई स्पेसटाइम नहीं है। नामुमकिन है कि यूआईडी नंबर में कुछ गड़बड़ हुई हो या किसी ने गड़बड़ कर दी हो।’

‘‘फिर भी हर चीज़ की जाँच करनी ज़रूरी है। चाहे वह चीज़ कितनी ही सुरक्षित क्यों न हो। तुम मेरे साथ अभी ‘वर्ल्ड-लॉजिक-कर्व’ सिस्टम की तरफ चलो और हब्बल यूनिवर्स के इस प्राणी को भी ले चलो। जाँच में इसकी ज़रूरत पड़ेगी । उस खास यूआईडी नंबर में स्टोर इन्फार्मेशन को इसके जेनेटिक कोड के साथ मैच कराना पड़ेगा क्योंकि ये उस बच्चे के बाप का क्लोज़ रिलेटिव है।’’ उसी समय प्रोफेसर को महसूस हुआ कि वो दो लहराती हुई ज्वालाएं अपनी जगह छोड़कर किसी अनजान दिशा में चल पड़ी है और साथ में उसका जिस्म भी फिज़ा में तैर रहा था। इसका तो उसे यकीन हो ही चुका था कि वह मर कर दूसरी दुनिया में पहुंच चुका है।

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थोड़ी ही देर बाद प्रोफेसर ने अपने को एक अलग अनोखी दुनिया में पाया। ऐसी अनोखी दुनिया उसने सपने में भी कभी नहीं देखी थी। उसके आसपास हर तरफ रंग बिरंगी तरह तरह की धारियाँ लहरा रही थीं। उन धारियों का न तो कोई शुरूआती सिरा दिख रहा

था न ही कोई अंतिम छोर। जब फिज़ा में लहराती वे धारियां प्रोफेसर के और क़रीब आयीं तो प्रोफेसर ने उनमें कुछ और खास बात देखी। दरअसल फिज़ा में लहराती वे धारियां अनगिनत नंबरों का पैटर्न थीं जो एक दूसरे से जुड़े हुए अंतहीन चेन बना रहे थे। और यही चेन दूर से देखने पर रंग बिरंगी धारियों जैसी दिख रही थी। प्रोफेसर के साथ तैरती हुई दोनों लहराती हुई ज्वालाएं एक धारी के पास पहुंचीं और उसके चारों तरफ इस तरह मंडराने लगीं जैसे उसका अध्ययन कर रही हों। उस धारी की चमक बाकियों से बढ़ गयी थी। फिर लहराती हुई ज्वाला यानि हब्बल यूनिवर्स के सम्राट ने उस धारी पर कोई कार्रवाई की जिसके नतीजे में वह धारी अपनी जगह छोड़कर प्रोफेसर के गिर्द मँडराने लगी।

‘‘मेरा शक सही निकला। गड़बड़ यूआईडी नंबर में ही हुई है। उस बच्चे का यूआईडी नंबर बदला हुआ है। और इस व्यक्ति के शरीर व पृथ्वी के किसी प्राणी के शरीर की इन्फार्मेशन से मैच नहीं कर रहा है।’’

‘‘ओह! लेकिन ये अपराध किया किसने?’’

‘‘वह जो भी है, इस यूआईडी नंबर में गड़बड़ करते समय अपने व्यक्तित्व का सुबूत छोड़ गया है। क्योंकि उसे हमारे ‘वर्ल्ड-लॉजिक-कर्व’ सिस्टम की पूरी जानकारी नहीं थी। वह हमारे सृजनकर्ताओं में से एक है। और अब हम उसे ऐसी सज़ा देंगे जो लोगों के लिये एक सबक होगी।’’

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सम्राट के सामने उस सृजनकर्ता का लौ रूपी शरीर इस तरह लहरा रहा था मानो डर के कारण पूरे जिस्म में कंपकंपी तारी है।

‘‘स...सम्राट। मैं बेकुसूर हूं। मैंने कोई जुर्म नहीं किया है’’ वह कंपकंपी भरी आवाज़ में कह रहा था।

‘‘बेवकूफ सृजनकर्ता। तुम्हें ‘वर्ल्ड-लॉजिक-कर्व’ सिस्टम के बारे में कुछ नहीं पता। वह न केवल हब्बल यूनिवर्स के समस्त प्राणियों का रिकार्ड रखता है बल्कि अपने अन्दर होने वाली तमाम गतिविधियों का भी रिकार्ड रखता है। लेकिन उस रिकार्ड को केवल हम ही देख सकते हैं। उस रिकार्ड से साफ ज़ाहिर है कि तुमने उस बच्चे के यूआईडी नंबर में बदलाव किया था। अब तुम ये बताओ कि ऐसा तुमने क्यों किया?’’

‘‘म..मुझे माफ कर दीजिए सम्राट। ये सब मैंने गैम्बल यूनिवर्स के सम्राट के कहने पर किया था। क्योंकि उसने मुझे अपना वज़ीर बनाने का वादा किया है।’’

‘‘अच्छा वो मेरा प्रतिद्वंदी। जब मैंने हब्बल यूनिवर्स को एक बिग बैंग द्वारा जन्म दिया था उसी समय उसने गैम्बल यूनिवर्स को बिग क्रंच द्वारा जन्म दिया था। वह हमेशा मुझे नुकसान पहुंचाने की सोचता रहता है। लेकिन एक बच्चे के यूआईडी नंबर में बदलाव करके वह क्या नुकसान पहुंचायेगा।’’

‘‘सम्राट, व..वह कह रहा था कि शुरूआत के छोटे बदलाव बाद में बहुत बड़ी घटनाओं को जन्म दे देते हैं। हो सकता है कि हब्बल यूनिवर्स पूरे का पूरा नष्ट हो जाये। और उसके बाद जो स्पेस-टाइम फ्री होगा उसमें वह अपने गैम्बल यूनिवर्स का विस्तार कर लेगा।’’

‘‘उसका कहना कुछ हद तक सही है। मैं देख रहा हूं कि तुम्हारी इस करतूत के नतीजे में हब्बल यूनिवर्स में एक ब्लैक होल पैदा हो गया है जो अपने आसपास के मैटर को तेज़ी के साथ अपने अन्दर खींच रहा है। लेकिन मेरे पास इस समस्या का एक हल है।’’ ‘‘वह क्या?’’ सम्राट उसके वज़ीर ने पूछा।

‘‘हल ये है कि इस मुजरिम को उस ब्लैक होल में डाल दिया जाये। फिर वह ब्लैक होल हब्बल यूनिवर्स के लिये निष्प्रभावी हो जायेगा।’’ सुनते ही उस सृजनकर्ता के लौ रूपी शरीर की थरथराहट और बढ़ गयी। क्योंकि उसे मालूम था कि किसी ब्लैक होल से बाहर निकलना असंभव होता है।

‘‘म..मुझे माफ कर दीजिए सम्राट। आइंदा ऐसी गलती कभी नहीं होगी।’’

‘‘सॉरी। हब्बल यूनिवर्स को बचाने के लिये तुम्हें ब्लैक होल में फेंकना ज़रूरी है। मैं तुम्हारे साथ कोई ज़ुल्म नहीं कर रहा हूं बल्कि तुमने खुद अपने साथ ज़ुल्म किया है। जाओ।’’

वहाँ मौजूद प्रोफेसर ने देखा कि एक तेज़ चीख के साथ उस सृजनकर्ता का लौ रूपी जिस्म तेज़ी के साथ एक दिशा को रवाना हो गया था। जो शायद ब्लैक होल की ही दिशा थी।

‘‘अब इस व्यक्ति का क्या किया जाये?’’ वज़ीर ने सम्राट से पूछा।

‘‘इसे वापस पृथ्वी पर इसकी जगह पर पहुंचा दो। और उस बच्चे को नष्ट कर दो वरना पूरा सिस्टम गड़बड़ा जायेगा।’’

‘‘लेकिन इसे यहाँ की बातें तो याद रहेंगी।’’

‘‘उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इन बातों को ये एक सपने से ज़्यादा अहमियत नहीं देगा।’’

एक बार फिर प्रोफेसर का जिस्म फिज़ा में तैरने लगा था। पृथ्वी पर वापस लौटने के लिये।

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‘‘भाई साहब। अगर आपको कार में ही सोना था तो किनारे लगाकर सोते। बीच सड़क पर क्यों खर्राटें मार रहे हैं। पूरा जाम लगा दिया है।’’ प्रोफेसर ने देखा एक सज्जन गुस्से में भरे हुए कार की साइड खिड़की से हाथ डालकर उसे झिंझोड़ रहे थे।

‘‘ओह आई एम सॉरी। न जाने कैसे मुझे नींद आ गयी। शायद लाँग ड्राइविंग का असर है’’ कहते हुए उसने कार स्टार्ट की किनारे लगाने के लिये। लेकिन उसे अपना दिमाग़ पूरी तरह धुंधलाया हुआ लग रहा था और उस धुंध में दो लहराती हुई ज्वालाएं चमक रही थीं। और एक तेज़ चीख। इससे पहले कि वह कुछ देर पहले देखे गये सपने के बारे में दिमाग पर और ज़ोर डालता, मोबाइल कॉल ने उसकी तन्द्रा भंग कर दी। वह काल प्रोफेसर के जीजा की थी जिसमें उसने अपने पोते की मौत की खबर दी थी। प्रोफेसर एक ठंडी साँस लेकर सीट से टिक गया।

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
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रचनाकार: विज्ञान-कथा // यू.आई.डी. // ज़ीशान हैदर ज़ैदी // विज्ञान कथा / जनवरी-मार्च 2018
विज्ञान-कथा // यू.आई.डी. // ज़ीशान हैदर ज़ैदी // विज्ञान कथा / जनवरी-मार्च 2018
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रचनाकार
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