आ काश में तारों का ऐसा विहंगम दृश्य पहले कभी नहीं देखा था। काले निस्सीम आकाश में चमकते तारे और नीचे अथाह, अनंत जल राशि। हम जहाज के डैक पर ...
आ काश में तारों का ऐसा विहंगम दृश्य पहले कभी नहीं देखा था। काले निस्सीम आकाश में चमकते तारे और नीचे अथाह, अनंत जल राशि। हम जहाज के डैक पर खड़े थे। समुद्री नमकीन हवा हमारे बालों और चेहरे को स्पर्श कर रही
थी। यह एक अनोखा अनुभव था। आज शाम ही हमारा जहाज पोर्टब्लेयर से ग्रेट निकोबार के लिए रवाना हुआ था। हमारे नौ सदस्यीय दल में हम तीन प्रोफेसर और छः शोधार्थी छात्र शामिल थे। मैं, कनिका, मेरे सीनियर प्रोफेसर डॉ. विश्वनाथ (पर्यावरण विज्ञानी) और प्रोनिशांत (कीट विज्ञानी)। छात्र अलग-अलग राज्यों से थे और अधिकांश की यह पहली समुद्री यात्रा थी। मैं स्वयं भी जहाज से पहली बार यात्रा कर रही थी।
शीतकालीन अवकाश में हमारा शोध कार्य के लिए भ्रमण पर जाना तय था। अंडमान की समृद्ध जैव विविधता के बारे में बहुत सुना था। छात्रों का मत था कि नई प्रजातियों की खोज के लिए अंडमान से बेहतर कोई स्थान नहीं हो सकता। नई दिल्ली से कल हम हवाई जहाज द्वारा अंडमान पहुँच गए थे। डिप्टी कमिश्नर अंडमान से हमने निकोबार यात्रा और शोध- कार्य के लिए अनुमति ले ली। सूर्योदय होते-होते हमारा जहाज ग्रेट निकोबार के तट पर पहुँच चुका था। तट के किनारे उगे मैंग्रोव वृक्षों और ऊँचें-ऊँचें नारियल के वृक्षों ने हमारा स्वागत किया। होटल पहुँच कर हमने सामान रखा और जलपान करके हम अपने गंतव्य की ओर बढ़े। डॉ. विश्वनाथ के नेतृत्व में हमारी टीम बायोस्फीयर रिजर्व क्षेत्र का भ्रमण करके रवाना हुई। चौड़ी पत्ती वाले ऊष्ण कटिबंधीय वर्षा वन। विशालकाय सदाबहार वृक्ष। ऐसे वृक्ष पहले कभी नहीं देखे थे। ”अद्भुत!“ छात्रों का दल चिल्लाया। ”मैडम लग रहा है जैसे हम स्वर्ग में आ गए हैं।“ लम्बी पूँछ वाला मेकाक बंदर हमें जंगल में प्रविष्ट होते ही दिखाई दे गया था। सघन वृक्षों की कैनोपी आपस में मिली हुई थी और सूर्य रश्मियों को अवरूद्ध कर रहीं थीं। हाल ही में हुई वर्षा के कारण मिट्टी नम थी। लम्बी घास में हम सावधानी से कदम रखते हुए चल रहे थे। मैं और डॉ. विश्वनाथ यहाँ की वनस्पति का बारीकी से अवलोकन कर रहे थे और चित्र ले रहे थे। छात्र नोट्स लिख रहे थे और नमूने एकत्रित कर रहे थे। हम सघन वन क्षेत्र में आगे बढ़ते जा रहे थे, रोमांचित और सम्मोहित से।
काष्ठीय लताएं फूलों से लदी थी और रंग-बिरंगी ढेर सारी तितलियाँ हमने यहाँ देखीं। मैं एक विशेष पौधे को ढूढ़ रही थी कि निशांत ने मुझे रोक दिया, ”कनिका रुको, आगे दलदल है।“ ”देखो, मुझे मिल गया निशांत, ग्राउंड ऑर्किड! देखो कितना सुंदर है। यह इसी जंगल में मिलता है।“ ”सचमुच बहुत सुंदर!“ यहाँ ऑर्किड्स की अनेक जातियाँ थीं। कुछ अनोखी चिड़ियाएं यहाँ हमने पहली बार देखीं। आगे जंगल घना था। जंगल के आंतरिक भागों में आदिवासियों का निवास था। अधिकारियों ने हमें निर्देश दिये थे कि हम अधिक अंदर न जाएं किन्तु यश जो कि कीट विज्ञान में शोध कर रहा था उसको नई कीट प्रजातियों को ढूढ़ने की धुन सवार था। वह बहुत आगे बढ़ गया था जहाँ कुछ खुला क्षेत्र था और अजीब तरह की चट्टानें दिखाई दे रहीं थीं। मैंने देखा वो नीली-सुनहरी आभा वाली चट्टान सपाट थी और एक बड़े क्षेत्र को घेरे थी। चारों ओर सघन वृक्ष थे। उसकी ऊँचाई करीब तीन फीट रही होगी। ”सर, बड़ी अजीब सी लग रही है यह चट्टान। कहीं कोई गुफा तो नहीं इसके भीतर? कोई आदिम जाति रहती हो“ मैंने शंका व्यक्त की। ”हाँ, देखने में बड़ी आकर्षक सी है। इसके बारे में सुना भी नहीं कभी“ विश्वनाथ बोले। मैंने चट्टान में पिछले भाग से सैकड़ों की संख्या में नीले सुनहरी आभा वाले भृंग निकलते देखे जो कि उस विशाल वृक्ष की तरफ जा रहे थे जहाँ से यश कीट एकत्रित कर रहा था। ”यश, बचोऽऽ“ मैं पूरी ताकत से चिल्लाई। यश ने मुड़कर देखा और चीख मार कर गिर गया। किसी तरह हम यश को खुले भाग में लाए और उसके जूते उतारे। वन में सुरक्षा की दृष्टि से हमने घुटनों तक ऊँचे बूट्स पहने थे। यश के जूते मं 0.5 सेमी. का छिद्र था जो उस कीट ने किया था। कीट अभी भी जूते के भीतरी भाग पर चिपका हुआ था। यश की टांग से विषाक्त रक्त निकाल कर, उसका प्राथमिक उपचार किया। जब उसको होश आया तो हमारी जान में जान आयी। उस कीट को छात्रों ने अलग से एक धातु की डिबिया में रखा। अगले दिन यश ने होटल पर ही आराम किया। तीन दिन में अपने शोध संबन्धी कार्य पूर्ण कर हम पोर्ट ब्लेयर रवाना हुए।
यश भी अब कुछ स्वस्थ हो गया था।
दो दिन पोर्ट ब्लेयर के आस-पास घूमकर हम वापस दिल्ली आ गए। वहाँ से एकत्रित वनस्पति नमूनों और कीटों पर अब हमें प्रयोगशाला में शोध करना था। हम सब के आकर्षण का विषय था वह कीट जिसने यश को काटा था। यश ने जब प्रो. निशांत के निर्देशन में उस कीट के प्रोटीन्स पर परीक्षण किये तो रोंगटे खड़े कर देने वाले परिणाम सामने आए। उसके प्रोटीन इस धरती के कीटों जैसे नहीं थे न ही उसका रक्त साधारण कीटों की तरह हीमोलिम्फ था। क्या वह रहस्यमय कीट परग्रही था? क्या वे अति उत्साह में भरकर इतना आगे चले गए थे जहाँ पर्यटक जाते हैं? सघन वृक्षों में छुपी वह जगह क्या अभी तक अनछुई थी? या नई बनाई गई थी? हमारे मन
में ढेरों सवाल थे। कुछ दिनों बाद जब निशांत मिले तो उन्होंने बताया कि कीट के उदर में शक्तिशाली एंजाइम्स थे जो प्लास्टिक जैसे पदार्थों को गलाने में सक्षम थे। इनकी उत्पत्ति का क्या रहस्य है यह तो दोबारा वहाँ जाने पर ही पता लग पाएगा पर इस कीट की विष रहित जाति विकसित कर ली जाए तो इस धरती से प्लास्टिक की समस्या का अंत हो जाए। निशांत और यश इस खोज पर बड़े प्रसन्न थे। हमारा भ्रमण सार्थक हो गया था।
--
COMMENTS