कहानी । परीलोक में शार्क । अजय गोयल

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गहरे काले बादलों ने सूरज को जैसे अपने रंग में रंग लिया था। दिन में भी अंधेरा उतर आया। गुस्सा खाकर मौसम सांय-सांय कर रहा था। आसमान से बिजली ग...

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गहरे काले बादलों ने सूरज को जैसे अपने रंग में रंग लिया था। दिन में भी अंधेरा उतर आया। गुस्सा खाकर मौसम सांय-सांय कर रहा था। आसमान से बिजली गरजने पर पृथ्वी बच्चे की तरह काँप जाती। बारिश शुरू हो चुकी थी।

ऐसे समय परी भागी-भागी अपने घर की छत पर पहुँची, भरसक अपनी तेज आवाज में बूढ़े पीपल की तरफ देखकर बोली '' चिंकी । लक्की । मौसम चिढ़ गया है। बारिश तेज हो गयी है। बच्चे भीग जायेंगे। बुखार आ जायेगा। तुम सब घर आ जाओ। ''

उसका आशय चिंकी चिड़िया और लक्की कबूतर से था, जो दिन में उसके बंगले के लान में आकर बर्तन में रखा पानी पीते और रात में रूस्तम मुर्गे के साथ उससे बतियाते ।

मण्डी परिसर में 15-20 पेड़ों का एक झुरमुट लम्बे चौड़े सीमेन्ट के जंगल में प्रकृति का एक छोटा सा पालना लगता। जिसकी गोद में न जानें कितने पक्षियों का बसेरा था। तेज हवाओं में बूढ़े पीपल के साथ अन्य पेड़ कोई उड़ान भरने की तैयारी में लग रहे थे।

वर्षा में परी भीग गयी। मम्मी को छत से उसे पकड़कर नीचे लाना पड़ा। लौटते समय उसने डगमगाते दो तीन पक्षियों को पीपल पर उतरते देखा तो पाँच छः साल की परी बोली, ''मम्मी । देखो लक्की आ गया। अब बच्चे भीगने से बच जायेंगे। '' आश्वस्त वह छत से उतर आयी।

उसे लगा, उसकी मुहिम सफल हो गयी। अब लक्की और चिंकी बच्चों को अपने अपने पंखों में छिपा लेंगे।

सुबह डाउन लोड़ किए एक गाने पर नाचती परी एकाएक रूक गयी। सोचती हुई, बोली, '' मैं भी रोजाना लक्की और रूस्तम से उनका मोबाइल नम्बर लेना क्यों भूल जाती हूँ ? नम्बर होता, तो फोन पर यह सब कह देती।''

परी की मासूमियत पर मम्मी हंसने लगी थी।

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अचानक परी को कुछ भूला याद आ गया, '' मम्मी। बारिश में क्या दिल नहीं होता ?'' पूछा उसने।

मम्मी को उलझन हुई, । बारिश । दिल । वे समझ नहीं पायी।

-''बारिश को पता नहीं होता क्या ? भीग जाने के बाद बच्चों को बुखार हो जाता है ? दोपहर को न आकर रात को आ जाती बारिश, ''परी ने कहा। बारिश तेज हो गयी थी।

खिड़कियों में लगे कांच भी आलाप के बाद बारिश की द्रुत ताल के साथ गीत गाने लगे थे।

-'' मम्मी मैं बारिश के साथ खेलने बाहर जाऊँ। मुझे बुला रही है, '' परी बोली ''

-'' भीगने पर बुखार तुम्हें भी हो सकता है। ''

गुस्सा खाते मौसम को परी ने खिड़की से देखा था। मोबाइल फोन पर गाने सुनते हुए नाचती परी रूक गयी । उसने सोचा, कि आवाज देकर चिंकी और लक्की और उनके साथियों को बुला लिया जाये। सब कुछ छोड़ वह छत पर जाने के लिए भागी । वापिस लौटी तो वह तरबतर थी । परी के भीगे कपड़े आया ने बदले। इसके बाद वह सो गयी। जगी तो उसकी आंखें कुछ खोज रही थीं।

-'' मेरा गुलाब का फूल कहां है ? मम्मी ।'' परी ने रसोई में जाकर व्यस्त मम्मी से पूछा।

-''फूल......? '' उन्हें कुछ समझ नहीं आया।

-'' मेरे पास लक्की अपने बच्चों के साथ आया था। थैंक्यू कहने। साथ में अपनी चोंच में दबाकर एक गुलाब भी लाया था।'' परी ने कहा। लक्की और चिंकी नाम भी उसने रखे थे। मम्मी समझ गयी, वह अपने सपने की बातें कर रही थी। परी को देखकर कभी कभी मम्मी के मन में गये वक्त की आहट होती। जहां उन्हें किसी खिलौने की तरफ आवाज दे रही दादी मिलती।

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उस गर्मी में न जाने कैसे एक चिड़िया ने दादी के कमरे में अपना संसार बसा लिया था। तिनका-तिनका लेकर फुर्र-फुर्र आती। चीं ची करती निकल जाती। उन दिनों पूजा पाठ करते समय भी दादी को उसकी चिन्ता रहने लगी। कहीं उनके कमरे में लगा पंखा न चल रहा हो। शाम को चिड़िया के आने के बाद वे कमरे का दरवाजा बन्द करती। मुँह-अंधेरे दरवाजा खोल देती।

एक दिन मम्मी ने स्टूल पर चढकर चिड़िया के अंड़े अलमारी के ऊपर रखे देखे थे। तिनकों से बना संसार जांचा । चिड़िया को वे बचपन से फुर्र-फुर्र कहती। उस समय चीं ची कर चिड़िया उनकी इस हरकत की दादी से शिकायत कर रही थी।

-''उतर आ बिटिया स्टूल से। फुर्र-फुर्र से तूने उसके अंडे देखने की इजाजत ली क्या,'' दादी ने पूछा।

दादी के शब्द आज भी उनके कानों में गूंजते हैं। '' कोई कैसे इजाजत ले ?'' पूछा था। '' देखो। समझो।'' दादी ने कहा था।

वे देखती, अपने खाने की थाली में कुछ चावल कटोरी में रख देती दादी। फुर्र-फुर्र एक एक दाने को चुग लेती।

फिर एक दिन उन्हें दादी ने सोते हुए जगाया था। उन्होंने देखा, दो चिड़ियां के बच्चे चीं चीं कर दादी का अभिवादन कर रहे थे।

दादी ने कहा, '' अब विदाई का वक्त है। ''

उन्हें परी में दादी की परछाई दिखाई देती।

परी सपनों में कबूतर और चिड़ियों से बाते करती। उनके साथ उड़कर पेड़ों की डालों पर जा बैठती। तिनकों के बने महलों की सैर करती। बादलों से हाथ मिलाती। और.... सुबह मम्मी से अपना सैर सपाटा साझा करती। सपनों में धमाल सबसे ज्यादा रूस्तम मुर्गा मचाता। मोहन माली का मुर्गा रूस्तम खेत खलिहान की बातों के साथ मुर्गो की लड़ाई के दांव पेचों की बातें करता।

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मम्मी उसके किस्से पर निहाल हो जाती। प्यार से कहती, '' तुम्हारी बचपन की गाड़ी में सवार होकर एक बार फिर अपने बचपन की गलियों की सैर कर रहे हैं।

-''पहले लक्की आया फिर चिंकी मेरे पास आयी तुम्हें थैंक्यूं कहने, वह जल्दी में थी। उसके बच्चे को बारिश में भीग जाने से बुखार आ गया था। कह रही थी, परी से बाद में बात करूंगी। डाक्टर के पास जाना है, '' मम्मी ने उसे समझाया।

-'' मैंने मालूम कर लिया है, मौसम को आज गुस्सा क्यों आया ?'' परी ने कहा।

-''तुमने किससे पूछा। ''

-'' लक्की से। उसने बताया कि रूस्तम को उसकी सास ने आज फिर पीटा था। ''

-'' उसके बाद.........., ''मम्मी ने पूछा।

-'' रूस्तम को रोता देख मौसम को गुस्सा आ गया। रूस्तम और मौसम की पक्की दोस्ती है ना,'' परी बोली।

-'' दोस्त को रोता देख दूसरे दोस्त को गुस्सा आयेगा, '' मम्मी ने कहा।

-'' लक्की कह रहा था मुझसे। मैं सास की शिकायत पापा से करूँ। पापा बड़े अफसर हैं। गलत काम करने वालों को छोड़ते नहीं हैं। सब उन्हें शार्क कहते हैं,'' परी ने कहा।

यह सुनकर मम्मी मुस्करा पड़ी थीं।

-'' लेकिन पापा को फुर्सरत कहाँ है। मेरे साथ तक नहीं खेलते,'' शिकायती स्वर में परी बोली। शायद मम्मी ने यह सुना नहीं था। वे अपने काम में व्यस्त हो गयी थीं।

मण्डी के अफसर आवास परिसर में परी का परीलोक बसता। पक्षियों की चहचहाट उसे आकर्षित करती। अपनी मम्मी से उसने एक दिन पूछा, '' ये

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पक्षी मेरे साथ कब खेलना शुरू करेंगे।'' वह चाहती, वे सब अपने घोंसले से निकलकर आएँ। उससे बतियाएँ । साथ खेलें। यह इच्छा उसके सो जाने के बाद पूरी होती। सपने सोते कहाँ हैं। जागे सपनों में पक्षी-बूढ़े पीपल के साथ पेड़ों के झुरमुट से निकाल-निकल कर उसके कमरे में आ धमकते। बंगले का आंगन तक भर देते।

कल रात चिंकी बोली थी, '' कितनी गर्मी है,। इस बार कोयल नहीं आयी। बिना कुहू कुहू, सुने कितना सूना लगता है।''

-'' मेरा बेटा पिछले सप्ताह गर्मी मे बीमार हो गया था, '' लक्की ने कहा। गर्मी पर मोहन माली से दिन में परी ने कहा, '' अंकल। मैं गर्मी खाएं बीमार पक्षियों को अपने रेफ्रीजरेटर में रख दूँगी। तब उनकी गर्मी छूमन्तर हो जायेगी''। इस उत्तर में मोहन माली काफी देर तक हँसता रहा। जबकि परी कोयल के न आने से परेशान थी।

'' क्यों नहीं आयी कोयल, इस बार अंकल ।'' परी ने फिर पूछा

-''कोयल के आने की कौन परवाह करता है ? कंक्रीट का अजगर बहुत जहरीला होता है। यह अजगर आस पास के खेत-खलियान पेड़ सब निकल चुका है। कोयल को कहाँ आसरा मिले। कहाँ सकून मिले। मैंने सुना है, यह पेड़ों का झुरमुट भी कटने जा रहा है। यहाँ वाहनों के लिए पार्किंग बनेगी। '' मोहन ने गमलों में पानी डालते हुए कहा था।

पिछले साल हल्की-हल्की बारिश में कोयल की गूंजती स्वर लहरी सुनकर पापा बोले थे, '' जन्नत। '' उस समय परी ने उनके कंधों को झूला बनाया हुआ था,। दोनों बंगले के लाँन में थे।

उस रात लक्की से परी बोली, '' मेरे पंख आजायें तो मैं कोयल को बुला लाऊँ। ''

-''फिर तुम मम्मी को रोटी बनाने के लिए लोई कैसे बनाओगी ?

-''जल्दी आने पर पापा को अपने हाथों से खाना कैसे खिलाओगी ?''

-''तुम्हारे प्यारे-प्यारे परिधानों का क्या होगा ?''

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चिंकी ने एक सांस में इतना कुछ उससे कह दिया था।

रूस्तम बोला, '' दीदी के पंख निकल आये तो दुनिया नाचने लगेगी।''

यह बात दिन में माली मोहन अंकल ने भी परी से बोली थी।

इस पर परी ने जाने क्यों नाराज हो गयी। उसने रूस्तम को झिड़क दिया। बोली, ''चुप रूस्तम । मैं तुमसे नहीं बोलूँगी। ''

इतना कहना था कि रूस्तम सहम गया। माफी मांगने लगा। उसकी गर्दन लटक गयी। उसके बचाव में लक्की और चिंकी आये।

-''ठीक है। इस बार माफ कर देती हूँ।'' गुस्से में थी परी। यह कहकर अपने कमरे में चली गयी।

शाम के समय परी मोहन व रूस्तम का इंतजार करती। उनके पीछे कुक्डू कू, कुक्डू कू करते अन्य मुर्गे भी अपने सेनापति के साथ आ जाते। उस समय परी के मन में सवालों के बादल घुमड़ते । जिनकी फुआरे उसके अर्न्तमन को भिगो देती।

-'' ये पक्षी ड्रेस क्यों नहीं पहनते। '' एक दिन परी ने पूछा। वह पीले रंग के फूलों वाले परिधान में थी।

उस समय गुड़हल के पास खड़ा रूस्तम पुलिस इंस्पेक्टर की तरह बंगले का मुआयना कर रहा था। बार-बार कुक्डू कू, कुक्डू कू बोलता। उसे मालूम था, कि परी के हाथ में उसके लिए मूंगफली के दाने हैं।

-'' पक्षियों के कपड़े। वे चांदनी ओढ़़कर सो जाते हैं। धूप पहनकर आसमान की सैर करते हैं।'' हंसते हुए मोहन ने उत्तर दिया।

परी भी खिलखिलाने लगी।'' धूप पहन कर सैर करते हैं। चांदनी ओढ़कर सोते हैं पक्षी।'' उसने गुनगुनाये थे वाक्य। तभी कुछ उसे याद आ गया था।

परी ने पूछा ''अंकल रूस्तम को उसकी सास क्यों पीटती है ?''

-''पीटेगी नहीं तो क्या करेगी, बिटिया ?'' आंख में आंख डालकर मोहन बोला। सवाल परी के चेहरे से झांकने लगे थे।

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-''कोई कहे मैं तुम्हें गिफ्ट दूँगा, फिर वह तुम्हें उपहार न दो । तो ? ''

-''गुस्सा आयेगा।''

-''बस''

-''क्या गिफ्ट देना था।'' पूछा परी ने।

-'' चाँद। रूस्तम ने अपनी मुर्गी से वायदा किया था, कि वह उसके जन्म दिन पर चाँद लाकर देगा।

-'' नहीं लाया ?''

-''ले आता तो आकाश में चांद का बसेरा रहता क्या ?''

परी ने सोचते हुए कहा ''ठीक कहते हो। पर एक गमले में आप क्या एक चाँद नहीं उगा सकते। ''

यह सुनकर सन्न था मोहन। कुछ देर सोचकर बोला, '' बिटिया तुमने हमारा गरूर तोड़ दिया। आज तुम्हारे इस कहन से एक जुमला दास्ताँ बन गया। सचमुच तुम्हारे पास आसमान है। ''

परी यह सब समझ नहीं सकी थी।

उस दिन जब मूंगफली के दानों को खिलाने के लिए, रूस्तम के आगे परी ने मुट्ठी खोली। तब उसने पूछ लिया '' तुम चांद क्यों नहीं लाते हो ? ''

कुक्डू कू, कुक्डू कू कहकर अपनी चोंच में मूंगफली का दाना पकड़, रूस्तम तेजी से दौड़ गया।

-'' तेरी सास तुझे फिर मारेगी।'' खींझकर परी बोली थी। मम्मी सब कुछ देख, सुन रही थी। परी दौड़कर मम्मी से लिपट गयी। बोली, ''इस रूस्तम को अक्ल कब आयेगी। ''

-''कुछ को देर से आती है अक्ल।'' मम्मी परी की उलझन कम करना चाहती थी। मोहन माली मम्मी के सामने था।

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-''कहाँ तक पढ़े हो ? समझदार लगते हो।'' मम्मी ने पूछा।

-''जी इंजीनियरिंग कालिज में दाखिला मिला था, पर वापस घर आना पड़ा।'' उसका उत्तर था।

कहकर कुछ देर चुप रहा। बोला,'' सर पर बाप का साया न हो तो पढ़ाई कहाँ परवान चढ़ती है। बम्पर फसल हुई थी उस बरस। जिसकी आंच में सब कुछ स्वाहा हो गया। बम्पर हो या सूखा पड़े, किसान का तो मरना है। बम्पर फसल मिट्टी के मोल तुल गयी। हाथ खाली रह गये। कर्ज का पत्थर उनके गले से लटका था। जो बीज व खाद के लिए लिया गया था। बस दीवाना बना दिया, इन सब बातों ने उन्हें मेरी पढ़ाई कहाँ पूरी होती।

उस रात रूस्तम झूले पर था वातावरण भी थोड़ा झुका झुका था। सामने परी चिंकी व लक्की थे।

रूस्तम बोला, '' छुरी खरबूजे पर। खरबूजा छुरी पर। आखिर में बाबा बस यही गाते रहते। जैसे माला जप रहे हो। बस इसी रामधुन में उन्होंने दुनिया से बनवा ले लिया एक दिन । ''

परी की आँखें भर आयी थी। सांत्वना में चिंकी और लक्की उसकी गोद में आ बैठे थे।

परी पापा से रूस्तम की पिटाई के सम्बन्ध में बात नहीं कर सकी थी। पापा व्यस्त थे। एक रात मोबाईल फोन से सास से बात कराने के लिए परी ने रूस्तम से कहा। सास ने फोन पर साफ कह दिया कि जब तक वह चॉद लाकर नहीं देगा

तब तक वह उसे ऐसे ही पीटती रहेगी। यह सुनकर रूस्तम रोने लगा।

चिंकी होशियार थी,। बात उसने बदली। पूछा, ''रूस्तम। तुम्हारा यह नाम कैसे पड़ा ?''

यह पूछे जाने पर वह रोना भूल, खिल उठा।

बोला ''यह एक खिताब है जो मेरे पिता को मिला था। रूस्तम।''

-''इसका मतलब ?''

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-''जो अपनी जिन्दगी में कोई दंगल ना हारा हो, उस मुर्गे को इस खिताब से नवाजा जाता है ।'' यह कहते हुए उसका शरीर खुशी से फूल गया। गर्दन तन गयी थी। अपनी दमदार आवाज में उसने कुक्डू कू-कुक्डू कू की बांग लगायी।

-''तुम्हारा रूस्तम नामभर है। तुम्हारे पास खिताब नहीं है। कुछ चिढ़कर लक्की बोला।

-''तुम्हारी इच्छा इस खिताब के लिए नहीं होतीं।'' परी ने पूछा।

रूस्तम सहम गया। बोला, '' मैने मोहन अंकल से मुझे लड़ाका पट्ठा बनाने के लिए कहा था।''

रूस्तम अटक-अटक कर बोला था। जैसे चोर रंगे हाथ पकड़ा गया हो। लक्की और चिंकी हंस पड़े थे।

शाम को अक्सर परी अपनी मम्मी के साथ बंगले के लान में घूमती। उस समय माली मोहन लान की देखभाल कर रहा होता। रूस्तम भी मूंगफली के दानों के लालच में डटा रहता। तभी मोहन ने रूस्तम खिताब के सम्बन्ध में बताया था। खिताबी जंग एक विदेशी नस्ल के वजनदार मुर्गे के साथ हुई थी। जो पाँच पानी तक चली। वह विदेशी नस्ल का पट्ठा भी तेज तर्रार लड़ाका था। पहले ही वार में उसने अपने कांटों से रूस्तम के बाप का सर खोल दिया। लेकिन हिम्मत वाला था हमारा पट्ठा। अपने पंजो के कांटों से उस विदेशी पट्ठे की आंखे फोड़ दी। और जंग जीत ली थी। गांव में महीने में एक बार लगने वाली पेंठ में मुर्गे की लड़ाई होती है। दूर दराज से लोग अपने मुर्गे लेकर आते। बाबू जी को यही शौक था। वे अपने पट्ठे को बादाम खिलाते। बच्चों की तरह पालते। अब कहाँ होती है पहले की तरह मुर्गी की भिड़न्त। पहले यह कई दिनों तक चलती थी। नवाब लोग बकायदा ऐलान कराते थे। इसके लिए लखनऊ घराने का बड़ा नाम था। कभी कभी तो पान लगाकर पेशकरने के मुद्दे पर जंग हो जाती। नवाबी शान के साथ इसकी शान भी रूख्सत हो गयी।

अब शाम को परी अक्सर मुर्गों की लड़ाई के किस्सों में उलझ जाती। मोहन के पास भी लड़ाईयों का खजाना था। वह अपने बाबूजी के मुंह से सुनी

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लड़ाइयाँ रस में भिगोकर सुनता ।

मम्मी ने एक दिन पूछ लिया, ''मोहऩ। तुम गांव क्यों छोड़ आये ?

मोहन की आंखें गीली हो गयी थीं। बोला, '' अपनी थोड़ी धरती थी। दो भैसें थीं,। कुछ मुर्गे थे। बस घिसट रही थी जिन्दगी, खटारा बेलगाड़ी की तरह। घूम रहा था, पहिया। लेकिन किसी हल्लन की तरह बुरा वक्त आ धमका। रेशा रेशा तितर बितर हो गया जिन्दगी का। मुझे क्या पता था, कि दो रोटी भी मेरी किसी को नश्तर की तरह चुभ रही थी।''

तभी मम्मी के लिए फोन था। मोबाइल पर बातें करते हुए वे बंगले के अंदर चली गयी। उस शाम परी मुर्गों की लड़ाई के किस्से में नहीं उलझी। मोहन उसे अपनी श्यामा और भारती भैसों के बारे में बताता रहा। जिसको याद कर मोहन की आंखें बरसने लगी थीं।

-''किसी को कोई सजा मिली ?''परी ने पूछा था। अपने हाथों से उसने मोहन के आंसू उसने पूछे थे।

-'' अपनी जान बच गयी, यह कम है, क्या ?

-''मेरे पापा बड़े अफसर हैं, मैं कहूँगी उनसे। लोग उन्हें शार्क कहते हैं। चोरों के लिए वे आफत है। मैं अभी फोन पर बात करूँगी। ''आवेग व आवेश में उसकी आवाज भी भीग गयी। उस समय पास खड़ा रूस्तम दोनों की बातें समझने की कोशिश करता हुआ लग रहा था।

मोहन को मूंगफली के दाने देकर पापा से बातें करने अंदर चली गयी। परी परेशान हो गयी थी, बार-बार फोन करने पर भी फोन नहीं उठा रहे थे पापा।

-''परी। पापा इस समय.....।'' मम्मी उसे कुछ बताना चाहती थी।

जबकि वह कुछ नहीं सुनना चाहती थी। बोली,'' मम्मी। पापा मुझसे क्या एक मिनट बात नहीं कर सकते ।'' उसका मन गर्म दूध की तरह उफन रहा था।

आहत हुई वह। परी को कुछ समझ नहीं आया कि वह क्या करे। सजा कैसे दिलायें ? उसके दिमाग में इस सवाल का जवाब नहीं आया। रोने लगी।

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मम्मी से लिपट गयी। मन में कुछ रखने की स्थिति में नहीं थी। कुछ संभलकर बोली, '' मोहन अंकल के पास दो भैंस थीं। श्यामा और भारती। श्यामा को चोरो ने जहर दे दिया। दूसरी भारती को अंकल ने पाला था। वो खेलती थी मोहन अंकल के साथ। प्यार से अपना थूथन उनकी पीठ पर रगड़ने के बाद दूध देती। अपना नाम पुकारे जाने पर रम्भाती थी। उसे चोर ले गये। उन चोरों को कैसे सजा मिलेगी ? पापा दिलवा सकते हैं ? ''

-'' पापा इस समय एक आपरेशन में व्यस्त हैं,। देर से आयेंगे। तुम खाना खा लो।'' मम्मी ने समझाते हुए कहा।

परी सुबकने लगी।

-''समझने की कोशिश करो, मुझे भी जाना था।''

-''कहाँ ?

-''रक्षा बन्धन पर तुम्हारे मामा को राखी बांधने। ''

-''अब नहीं जा रही ।'' परी ने पूछा।

चुप रही मम्मी। परेशान थी। सांत्वना में वह उनके पास जा बैठी। लिपट गयी उनसे। कुछ देर बाद परी ने याद करते हुए कहा, '' मम्मी। पिछली बार आपने वायदा किया था, कि मेरे लिये अस्पताल से एक भाई लाकर दोगी।''

मम्मी ने इसका कोई जवाब नहीं दिया।

कुछ देर बाद परी बोली, '' हम एक भाई डाउनलोड़ नहीं कर सकते ? ''

यह सुनकर सारी चिन्ताओं को भूल मम्मी खिलखिलाकर हंस पडी थीं। मम्मी को हंसता देख परी भी हंसने लगी।

कुछ देर बाद परी बोली, '' इस बार मैं रूस्तम को रखी बाधूंगी। मुझे वह दीदी कहता है। '' उत्साह में वह उछलकर खड़ी हो गयी थी।

-'' तुम राखी बांधना। मैं वीड़ियोग्राफी करूंगी। परी को चूमकर मम्मी ने कहा।

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-''बाधूंगी कहाँ ? उसके हाथ तो है नहीं। पंख हैं। गर्दन में । हँ।'' परी ने चहकते हुए कहा।

-''मैं रूस्तम को राखी बाधूंगी।'' यह गाते हुए परी नाचने लगी।

मम्मी सारे दबावों और स्थिति से बेखबर अपने लोक में विचरण करते हुए परी को देख रही थी।

उस रात रूस्तम थोड़ा निराश था। थका हुआ लगा रहा था। बहुत देर तक चुप रहा।

-'' रूस्तम। भारती का क्या हुआ ?'' परी उससे दो-तीन बार पूछ चुकी थी।

-''मोहन अंकल कहते हैं, जिन्दा लाख की तो मरी भैंस सवा लाख की। जानवर के नाखून तक बिक जाते हैं। जब आदमी आदमी का सगा नहीं तब उसके लिए पशु पक्षी की औकात क्या है ? तुम्हारे पापा ने बड़ा काम किया है । एक बड़े चोर को पकड़ा है। वह किसी मंत्री का सगा सम्बन्धी है। मोहन अंकल कह रहे थे, जैसे शार्क की गिरफ्त में एक बार आकर कोई नहीं बच सकता वैसे ही तुम्हारे पापा से भी कोई नहीं बच सकता ''। रूस्तम ने कहा।

यह सुनकर परी खुश हो गयी। चिंकी व लक्की भी चहकने लगे।

-'' तू मुझे दीदी कहता है। मैं इस बार तुझे राखी बाधूंगी। टीका करूंगी। तुझे मिठाई खिलाऊंगी, '' परी ने कहा।

परी की बात सुनकर रूस्तम कुक्डू कू-कुक्डू कू कहता हुआ नाचने लगा।

-''सुनो रूस्तम '' परी ने पूछा।

-''क्या दीदी ?

-''तुम अपने पापा को कहां मिले ?

-''मेरे पापा मुझे भूसे के ढेर में से उठा लाये थे ''। नाचते हुए वह बोला।

-''मैं अपने पापा को पत्ते पर बैठी मिली थी,'' चिंकी बोली ।

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सब चहक रहे थे ।

-'' परी की नींद टूटी। बाहर से रूस्तम की कुक्डू कू-कुक्डू कू की बुलन्द आवाज आ रही थी।

-''वह अभी तो मेरे साथ कमरे में था। ये बंगले के लान में कैसे पहुंच गया ?'' पास सो रही मम्मी को जगाते हुए, परी बोली।

-''आज स्कूल नहीं जाना है। रविवार है। पापा देर से आये हैं। सो जाओ।'' मम्मी ने सोते हुए हमें जवाब दिया।

सुबह से बंगले पर कारों का जमघट था। परी ने देखा, पापा सुबह से शाम तक बैठकों में व्यस्त थे।

शाम को कुछ बड़े अफसर आने थे। मोहन से उनके लिये चिकन का प्रबन्ध करने के लिये कहा गया।

उस रात रूस्तम बेचैन था। चिंकी और लक्की के साथ अन्य पक्षी भी परेशान थे। पेड़ों के झुरमुट को काटे जाने की आहट से सारे पक्षी परी के आँगन में इकट्ठा थे। परी झूले पर थी। उसकी गोद में रूस्तम था। समस्या थी, पेड़ों को कैसे बचाया जाए ? पहली बार सूरज आँगन में आकर दीवार पर बैठ गया था। परी जब स्कूल से लौटती तब सूरज को पेड़ों के साथ आंख मिचोली खेलते देखती थी।

-''मैं अब किसके साथ आंख मिचोली खेलूंगा ?'' सूरज ने सभा आरम्भ की।

-''मेरे बच्चे तो अभी उड़ना भी नहीं जानते। '' चिंकी कहकर रोने लगी थी।

मोहन अंकल दफ्तर में पार्किंग के लिए पेड़ों के झुरमुट को काटने का आदेश देख कर आये थे।

रूस्तम बोला,'' मोहन अंकल कह रहे थे, कि पेड़ों को काटने की जरूरत नहीं है। आज कल ऐसी मशीन आती है, जो पेड़ों को एक जगह से निकालकर उन्हें दूसरी जगह सही सलामत रोप देती है। पार्किंग के किनारे-किनारे पेड़ लगाए जा सकते हैं।

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आखिर कोई पेड़ हवा, पानी और मिट्टी की मेहनत का फल होता है। पेड़ पृथ्वी के हाथ हैं।

-''जीवन की जड़ है, पेड़। चिंकी बोली।

-''चोंरो को पकड़ने से संसार सुन्दर नहीं बनता।'' लक्की ने कहा था।

पेड़ों को परी बचा सकती है। सभी की राय थी।

-दिलों में सूरज उगे तभी मन में उजाले के फल लगते हैं।'' कहकर रूस्तम ने कुक्डू कू की लम्बी बांग देकर सभा सम्पन्न होने की घोषणा की।

सुबह कुक्डू कू-कुक्डू कू की बांग से परी की नींद खुली। आंगन में पापा अखबार पढ़ रहे थे।

- '' पापा। मुझे जगाने आता है, यह रूस्तम। इसकी सास इसको बहुत मारती है। आप उसे बुलाकर समझा दो, '' परी ने पापा से कहा।

मन्त्री से उलझे पापा विषय की गम्भीरता पर शायद ध्यान नहीं दे सके। बोले, '' उसकी सास को बुला लो। समझा देंगे। ''

अखबार पढ़ते पापा के पास परी खड़ी रही। कुछ क्षणों बाद उनका ध्यान गया। अखबार समेट कर बोले,'' हमारी बिटिया परेशान क्यों है ? ''

-''पापा । पेड़ों का क्या होगा ? ''पूछा उसने।

पापा ने कोई उत्तर नहीं दिया।

-'' सूरज पेड़ों के साथ कैसे खेलेगा ? जब मैं स्कूल से आती हूं, तो रोजाना सूरज को पेड़ों के साथ आंख मिचोली खेलते देखती हूँ।'' परी ने गम्भीरता के साथ कहा।

एक लम्बी हँसी के साथ उन्होंने परी को गोद में उठा लिया था।

अगले दिन शाम को रूस्तम मोहन के साथ अकेले ही बंगले पर था।

-''सेनापति की सेना कहाँ है ? परी ने मोहन से पूछा।

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-'' बिटिया। मुर्गे अपनी उमर नहीं जीते । वो काम पर गये है। पता लगाने की भारती को चुराने वाले कौन थे। आपके पापा ने भेजा है, '' मोहन का समझदारी भरा उत्तर था।

फूल सी खिल गयी थी सुनकर परी।

अगले दिन रक्षा बन्धन था।

सुबह रूस्तम अपना घोष सुनाने नहीं आया था। परी को उलझन हुई। उसने सोचा, '' अब इसकी सास का इन्तजाम करना ही पड़ेगा। ''

परी ने सुर्ख लाल फूलों वाली फ्रॉक पहनी हुई थी । मम्मी की तरह उसने भी एक थाली में रोली, चावल, व एक राखी सजा ली। वह हर आहट में चौंकती। लान की तरफ झांकती। उसने मोहन को फोन किया। उसका फोन बन्द था।

मम्मी से परी ने अपनी उलझन कही। मम्मी ने उसे दिलासा दी। दस बजे मामा जी सपरिवार पधारे। अनमने मन से परी ने अपने ममेरे भाई जीतू को रखी बांधी।

पापा आज घर पर ही थे। सबने उम्दा चिकन खाया था। दोनों परिवार जिन्दगी के उत्सव में व्यस्त थे। बस, परी बेचैन थी। बार-बार लान को झांकती। उदास कदमों से वापस आ जाती। शाम होने से पहले मामा जी लौट गये। उस शाम मोहन माली नहीं आया था। रात में चिंकी और लक्की थे, रूस्तम भी था। लेकिन उसकी गर्दन लटकी थी। आंखें बन्द थीं। बहुत पूछने के बाद भी उसने एक बार भी आंखें नहीं खोली। न ही वह बोला।

अगले दिन मोहन माली आया। परी उसका इंतजार कर रही थी। आते ही पूछा '' रूस्तम कहाँ है। आपका फोन क्यों बन्द था ।''

चुपचाप था मोहन। अपना काम करता रहा।

-''अंकल । रूस्तम कहाँ है ? '' इस बार परी की आवाज भीग गयी थी।

-'' बिटिया। उसे भी काम पर भेज दिया गया है। चोरों का पता लगाने।'' मोहन ने सर झुकाये काम करते हुए जवाब दिया।

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गुस्से में परी बंगले के अन्दर आ गयी । उस शाम उसने ना रोटी के लिए लोई बनायी। न पापा के जल्दी आने पर उन्हें खाना खिलाया। न स्वंय खाया।

-''हमारी बिटिया आज चहक नहीं रही।'' पापा उसे गोद में उठाकर खाने की मेज तक ले आए।

सुबकने लगी परी। पापा हैरान परेशान। पूछा '' क्या हुआ ?''

-''आपने रूस्तम को भी काम पर भेज दिया '' परी ने गुस्से में कहा। तभी मंत्री जी का फोन टनटनाया। जिसमें उनसे मिलने का आदेश नत्थी था । पापा को जाना पड़ा।

अगली सुबह देर से उठी। मम्मी पापा दोनों परेशान थे। सोच रहे थे, कि कहाँ और किस उलझन में भटक गयी है हमारी बिटिया ।

-'' क्या हुआ, '' पापा बोले। '' उन्होंने परी को गोद में उठा लिया

मम्मी ने उसके बाल सहलाये। बोली, '' तुम खाना नहीं खाओगी, तो मम्मी, पापा दोनों भूख हड़ताल कर देंगे।''

परी की आंखों में झांक कर उसकी उलझन समझना चाहते थे पापा।

-'' बहुत बीमार हो गया है रूस्तम। उसकी गर्दन लटक गयी है। आंखें बन्द हैं। हिलता भी नहीं है। कुक्डू कू-कुक्डू कू नहीं करता। चिंकी और लक्की उसका इलाज कराने के लिए कह रहे थे। आप बड़े अफसर है। उसका इलाज नहीं करा सकते क्या ? '' परी एक सांस में कह गयी थी। साथ में उसकी आंखें डबडबा गयी थी।

पापा चुप थे। स्थिति समझने की कोशिश कर रहे थे।

परी गुस्से में थी। खीझकर बोली,'' पापा। लक्की कहता है, केवल चोरों को पकड़ लेने से संसार सुन्दर नहीं बनता। आप पेड़ों को भी बचाना नहीं चाहते। आपने रूस्तम को भी काम पर भेज दिया। मैं उसे राखी बांधना चाहती थी। '' पापा से इतना कुछ कह रोती हुई वह कमरे में चली गयी।

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पहली बार पापा को परीलोक के सम्बन्ध में मम्मी से पता चला। लेकिन उन्हें समझ नहीं आया कि सपनों में आने वाले बीमार रूस्तम का इलाज कैसे किया जा सकता है ? और-- कौन करेगा। बस, उन्होंने इतना कहा,'' अपनी बेटी के परीलोक में चिंकी है। लक्की है। रूस्तम है। उसके मम्मी पापा क्यों नहीं हैं ? मैं इस बात से परेशान हूं। मेरी यह विफलता है। ''

मम्मी जितना परी के सपनों में बीमार रूस्तम को लेकर परेशान थी उतना वे पीछे पड़े मंत्री तक से नहीं थी।

मंत्री जी ने किसी पुराने विवाद को लेकर पापा के विरूद्ध विभागीय जांच बैठा दी । उन्होंने खुले तौर पर पापा को काला पानी भेजने की धमकी दे डाली थी।

परी के रूठने से घर बीमार लगता। तपता हुआ ।

दोपहर में मम्मी ने पाप को कुछ देर के लिए आफिस से बुला लिया था। चौकीदार, आया और मोहन भी इस मंत्रणा में सम्मिलित थे। पहली बार मोहन पापा के सामने था। दीन-दीन वह एक बड़े आफिसर के सामने किसी पत्ते की तरह स्थिर नहीं खड़ा हो पा रहा था।

पापा सब कुछ चुपचाप सुनते रहे। आफिस वापस जाते वक्त बोले, '' ट्री ट्रांस- प्लानटेशन मशीन की पेड़ों के लिए व्यवस्था करूँगा मैं।''

-'' शाम को आते हैं, '' कहकर मोहन भी चला गया।

-''परी बिटिया ़। परी बिटिया।. '' शाम होते ही मोहन ने बंगले पर टेर लगायी।

मम्मी के साथ परी बाहर आयी।

-''बिटिया मेरे पास रूस्तम का फोन आया था। कह रहा था, दीदी चाहती थी कि वह रूस्तम का खिताब जीते। बस अब खिताब जीतकर वापस लौटूंगा। वह तुम्हारी सारी बात मानता है। तुम्हें दीदी कहता है। कह रहा था कि जीतने के बाद ही टीका कराऊँगा। राखी बंधवाऊँगा। वह फिसल गया था। जिसकी वजह से

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उसकी गर्दन में चोट लगी। उसकी टांग में खरोंच आ गयी, '' मोहन बिना सांस लिये बोल रहा था।

-'' कब होगा दंगल, '' परी ने पूछा। एक बार फिर जिन्दगी उसके चेहरे पर झिल मिलाने लगी थी।

-''जल्द ही। पहले उसको मजबूत पट्ठा बनना है। तुम्हारी मूंगफली के दानों से उससे बहुत ताकत आ गयी थी।'' कल्पनाओं के घोड़े किसी राकेट की तरह मोहन उड़ रहा था।

-'' मेरी बात कराओ उससे मोबाईल पर।'' परी ने कहा।

आया, चौकीदार, मम्मी और मोहन सब स्तम्भ।

अचानक मोहन को कुछ सूझा। बोला '' मैंने कहा था उससे। दीदी को तू ही बता दें। वह बोला कि उनसे बात जीतने के बाद करूँगा। और एक खबर -- उसकी सास ने कहा है। यदि रूस्तम खिताब जीत लेगा तो वह उसे माँफ कर देगी। आखिर यह खिताब चॉद जैसा ऊँचा है, '' किसी सागर की हिलोर की तरह मोहन उमड रहा था।

मम्मी, चौकीदार और आया ने हाँ में हाँ मिलायी।

हिलोर में भीगकर परी शान्त हो गयी। शाम को परी ने लोई बनायी। पापा को अपने हाथों से खाना खिलाया। पापा ने उसे आश्वस्त किया कि पेड़ों को दूसरी जगह रोपने की मशीन आने तक पार्किंग नहीं बनेगी। इसके बाद परी उनकी गोद में सो गयी। जबकि वे फोन पर व्यस्त रहे थे।

अगले दिन रात को सीढियों से सुबह के आँगन में उतरने के साथ परी उठ गयी। उसके चेहरे पर उजास था। पापा अखबार पढ़ रहे थे।

-'' मुझे रूस्तम जगाने आया था। मोहन अंकल की गोद में था। अब ठीक लग रहा था। उसकी गर्दन में चोट है ना।'' परी ने उत्साह में बताया।

-''अच्छा ।'' परी को चहकता देख उनका बोझ उतर गया ।

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-''पापा। हम काला पानी कब जा रहे हैं ? आप कल रात फोन पर बात कर रहे थे '' परी ने पूछा।

मम्मी, पापा और परी लान में आ गये थे।

-''शायद नहीं। जाना भी पड़ा तो तुम चलोगी काला पानी।''हंसते हुए

मम्मी ने पूछा।

- ' 'कैसा होता है ?

-'' बहुत बड़ा। वहां चारों तरफ खेत हैं। बहुत सारे पक्षियों का बसेरा है। वहां बड़ा सा कालिज है। तुम्हारे साथ खेलने के लिए पापा के पास वक्त होगा। तुम्हारे सपनों में बादलों से हाथ मिलाना है। घोंसलों की सैर करनी है, '' मम्मी ने कहा।

-'' और कोयल.........? '' परी ने पूछा।

-'' क्यों नहीं। वहां से पीपल को चिट्ठी लिख देंगें। चिंकी और लक्की भी आ जायेंगे। वहां सोचेंगे कि संसार कैसे सुन्दर बने ? पापा ने कहा।

परी कुछ सोचने लगी। तभी गेट से रम्भाने की आवाज आयी । चौकीदार और मोहन एक भैंस के साथ थे।

चौकीदार ने बताया,'' जोधा भैंस है। अव्वल है सर।''

भरी पूरी एक भैंस बार-बार रम्भा रही थी। मोहन के पास शब्द नहीं थे।

- '' रूस्तम ने भारती का पता बताया था । रात में जाकर इसे बरामद कर लिया।'' चौकीदार परी से बोला।

'' भारती है क्या ?'' परी ने मोहन से पूछा।

-'' हाँ बिटिया। ये बच गयी । चोरों के चंगुल से छूट गयी '' मोहन ने कहा।

-''मैं इसे मिठाई खिलाऊँ ? '' कहते हुए परी घर के अन्दर आ गयी। सब हंस पड़े थे।

-20-

सब सन्तुष्ट थे। निदान सफल रहा।

-'' भैंस की कीमत ? '' पापा ने मम्मी से पूछा।

स्वीकृति में वे मुस्करा दी।

परी घर से भारती के स्वागत में मिठाई ले आयी थी।

अजय गोयल

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फ्री गंज रोड हापुड़

 

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रचनाकार: कहानी । परीलोक में शार्क । अजय गोयल
कहानी । परीलोक में शार्क । अजय गोयल
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