अच्छा साहेब यों तो नये साहेब से कोई खुश नहीं था. उनके आने से सबका काम बढ़ गया था. लेकिन महिला टंकक बाड़ा नये साहेब से सबसे अधिक नाखुश थी; क्यो...
अच्छा साहेब
यों तो नये साहेब से कोई खुश नहीं था. उनके आने से सबका काम बढ़ गया था. लेकिन महिला टंकक बाड़ा नये साहेब से सबसे अधिक नाखुश थी; क्योंकि टंकण का काम ज्यादा बढ़ गया था.
नये साहेब के बारे में कार्यालय में चर्चा होती रहती थी. अन्य कर्मचारी मुंह दबा कर बोलते थे. लेकिन बाड़ा खुलकर उनकी शिकायत किया करती थी.
आठ-दस दिन बाद ही साहेब को मालूम हुआ कि उनके कार्यालय में एक महिला टंकक भी है. दूसरे दिन ही साहेब ने यात्रा का कार्यक्रम बना लिया. यात्रा पर जाने से पहले साहेब बाड़ा को बुला कर बोले, ''स्टेनो बाबू छुट्टी में हैं, कैम्प में कुछ टाइप करना होगा, मशीन लेकर तुम भी साथ चलो.''
यात्रा से वापस आने के बाद बाड़ा काफी खुश थी. दूसरे दिन ही कार्यालय के काम के लिये एक दूसरा टंकक बहाल कर लिया गया. बाड़ा के जिम्मे मात्र यात्रा के दौरान टंकण करना रह गया.
अब कार्यालय के अन्य कर्मचारियों से बाड़ा कहने लगी, ''नये साहेब बहुत अच्छे आदमी हैं.'' उसे यात्रा में जाने पर यात्रा भत्ता तो मिलता ही था, वहां साहेब उसे कोई-न-कोई कीमती उपहार भी दिया करते थे. और कार्यालय में उसे काम करने से छुटकारा मिल गया था वह अलग.
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अश्लील दृश्य
एक फिल्म निर्माता को फिल्म में अश्लील दृश्य नहीं देना था. लेकिन कम से कम नृत्य का दृश्य नहीं होने से फिल्म में मजा नहीं आ रहा था. नृत्य के दृश्य से दर्शकों को बांधा जा सकता था, जो फिल्म की सफलता के लिये आवश्यक माना जा रहा था. किंतु समस्या यह थी कि नृत्य को भी लोग अश्लील मान रहे थे. बेचारा निर्माता बहुत परेशान था.
परेशानी में पड़े निर्माता को देख कर उसका लेखक मित्र बोला, ''फिल्म में महाविद्यालय की चर्चा है. आप ऐसा करें कि छात्रों के सांस्कृतिक कार्यक्रम के बहाने कृष्णलीला पर आधारित एक नाटिका दिखा दें. कृष्णलीला में कृष्ण के इर्द-गिर्द राधा और उनकी सहेलियों को छूट कर नचवाया जा सकता है.''
''बहुत अच्छा विचार है,'' निर्माता ने कहा, ''कृष्णलीला एक धार्मिक प्रावधान है.''
''बिलकुल !'' लेखक मित्र ने जवाब दिया, ''कृष्णलीला का दृश्य देखने के लिये धार्मिक लोगों की भीड़ लगेगी ही, राधा-कृष्ण की प्रेमलीला देखने के लिये अन्य लोगों की भीड़ भी उमड़ पड़ेगी.''
लेखक की राय सुन कर निर्माता की परेशानी खत्म हो गयी.
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दहेज का खर्च
शादी के एक साल के अंदर ही नागेन्द्र को सरकारी नौकरी मिल गयी. पड़ोसी महेश को भी सरकारी नौकरी मिली और उसकी शादी हो गयी. शादी में महेश को काफी दहेज मिला.
महेश को मिले दहेज से नागेन्द्र की मां जल-भून गयी. काले-कलूटे महेश को इतना दहेज मिला, जबकि उसका बेटा नागेन्द्र तो बहुत सुंदर और गोरा है. उसे ऐसा लगने लगा कि वह बेटा की शादी में ठगा गयी है. नागेन्द्र के पिता बैंक मैं मैनेजर थे और घर से किराये से भी अच्छी कमाई होती थी.
नागेन्द्र की मां ने कुछ सोचा. जोड़-घटाव करने पर हिसाब आया कि यदि पोस्टमार्टम वाले डाक्टर को दस हजार, थानेदार को बीस हजार और अखबार वालों तथा अन्य पर बीस हजार खर्च किया जाये तो मामला पचास हजार में सलट जायेगा.
दूसरे दिन सुबह-सुबह पुलिस की जीप देख कर मुहल्ले वालों को पता चला कि मैनेजर साहेब की बहू किचन में खाना बना रही थी, गैस रिसने से आग लग गयी और - - - - जो बात कही गयी, वही साबित भी हो गयी.
अगले साल की प्रतीक्षा किये बिना घर में दूसरी बहू आ गयी, वह भी काफी दहेज लेकर. शहर के सबसे बड़े होटल में प्रीतिभोज के दिन सबों ने कहा, ''मैनेजर साहेब ने दिल खोल कर खर्च किया है.'' विदाई पाकर रिश्तेदार भी काफी खुश थे.
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पारसमणि का चमत्कार
नदी किनारे कुछ दिनों से एक साधु रहने लगे थे. गांव वाले उन्हें आचार्यजी कहते थे. गांव वालों को किसी तरह पता चला कि उनके पास एक पारसमणि है. पारसमणि उनके पास बेकार पड़ा था. यदि वह गांव वालों को मिल जाये तो वे प्रति दिन टनों लोहा का सोना बना लें. लेकिन उनकी कुटिया में जाकर पारसमणि मांगे कौन ? किसी को हिम्मत नहीं हो रही थी.
गांव के चार नवयुवकों ने हिम्मत की. वे आचार्य जी से मिलने आये. अभी वे कुटिया से कुछ दूर ही थे कि उन्हें दो आदमी अंदर जाते दिखे. आचार्य जी से एकांत में मिलना था, इसलिये नवयुवकों की टोली एक पेड़ के पास रुक गयी.
एक नवयुवक को जिज्ञासा हुई कि कुटिया में जाने वाले दोनों व्यक्ति कौन हैं. चुपके से कुटिया के पीछे जाकर उनकी बातें सुनने लगा. आचार्यजी कह रहे थे, ''कल तो इतना ही आया था, ले जाओ ! खबर मिली है कि पचहत्तर किलो सोना समुद्री मार्ग से चल चुका है, आज रात तक यहां पहुंच जायेगा.'' आचार्यजी ने आगे कहा, ''कल रात हमारा एक आदमी हांगकांग जाते समय पकड़ा गया है. मैंने आदेश दे दिया है कि कुछ उगलने से पहले उसे खत्म कर दिया जाये.''
अंदर की बातें सुन कर कुटिया के पीछे खड़े युवक के पैर कांपने लगे. वह दबे पांव वहां से खिसक गया. उसे भी अपनी जान की चिंता हो गयी. बैठे-बैठे दूर-दूर तक आदेश देने वाले आचार्यजी को यदि पता चल जाये कि कोई कुटिया के पीछे खड़ा उनकी बातें सुन रहा है तो उसकी खैर नहीं है. भय से उसके हृदय की गति बढ़ गयी और पैर कांपने लगें. कुटिया में सुनी बातें उसने भयवश किसी से नहीं बतायी.
उसने मित्रों को मनगढ़ंत बातें सुना दी, ''आजार्यजी की कुटिया में पारसमणि के चमत्कार से प्रकाश फैल रहा है. लेकिन उस प्रकाश में दो खतरनाक नाग भी मौजूद हैं, जो जोर-जोर से फुफकार रहे हैं. उस खतरनाक नाग के सामने जाने वाले की मौत निश्चित है.''
नागों की फुफकार की बात सुन कर गांव के सभी लोग ? डर गये. फिर किसी ने आचार्य जी की कुटिया की ओर जाने की हिम्मत नहीं की.
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सहयोगी
पत्नी का पत्र नहीं आने वे वह चिंतित था -कहीं वह नाराज तो नहीं हो गयी है ! नहीं, ऐसा नहीं हो सकता. पिछले पत्रों में नाराज़गी दूर करने के लिये वह बहुत कुछ समझा चुका है.
यात्रा से वह आज ही वापस आया है. तीन दिन पहले यात्रा में जाने से पहले वह स्वयं डाकघर गया था. कोई डाक नहीं थी. आज भी कोई पत्र नहीं मिलने से वह बहुत निराश हो गया. टहलते-टहलते वह लेट कर सोचने लगा कि महीने भर से उसे हर दिन पत्र के लिये निराश होना पड़ रहा है.
वह उठ कर टहलने लगा. उसकी शादी के आज अस्सी दिन हुए हैं. शादी के बीस दिन बाद उसकी पत्नी मैके चली गयी थी. वहीं बी0 ए0 फाइनल में पढ़ रही है. जाने से दो दिन पूर्व बातचीत के दौरान पत्नी ने कहा था, ''आपको नौकरीशुदा लड़की की जरूरत थी तो मुझसे शादी नहीं करनी चाहिये थी.'' उसने सोचा था कि बी0 ए0 के दो साल में एक ही साल बाकी है. उसके बाद पत्नी को बी0 एड0 करवा देगा तो किसी विद्यालय में शिक्षिका की नौकरी अवश्य मिल जायेगी.
शादी के बाद पत्नी के मैके चले जाने से वह परिवार में रह कर भी अकेला-अकेला महसूस कर रहा था. वह सोच रहा था कि शादी हुई है साथ रहने के लिये या मैके में रहने के लिये. लेकिन दूसरे ही क्षण उसके दिमाग में बात आयी कि पढ़ाई और नौकरी के लिये ऐसा करना आवश्यक है. साथ रखने के मोहवश पत्नी की पढ़ाई बाधित हो जायेगी और सोचे गये भविष्य का सारा ताल-मेल ही बिगड़ जायेगा.
नहीं चाहते हुए भी सोचने का उसका क्रम नहीं टूट रहा था. पत्नी के नौकरी नहीं करने से इतने बड़े परिवार के समक्ष भूखमरी की नौबत आ जायेगी. बहनों की शादी में लिये गये कर्ज से अभी वह मुक्त नहीं हो पाया है और आगे भी खर्च ही खर्च दिखायी दे रहा है. आर्थिक तंगी के कारण भाई-बहनों को नगरपालिका के पाठशालाओं में भेज कर गाली-गलौज और मास्टरसाहेबों की आरामतलबी की ट्रेनिंग ही दिलवा पाया है. परिवार के लोगों को ऐसा भोजन मिलता है, जिससे कामचलाऊं ढंग से पेट भर जाये. उस भोजन को पौष्टिक तो कहा ही नहीं जा सकता. संतुलित और पौष्टिक आहार की बातें उसके लिये पूरी तरह किताबी हैं. शरीर ढंकने के लिये पूरी तरह कपड़ा नहीं जुटा पाता है. उसने सोचा कि अगली पीढ़ी को ऐसी अभिशप्त जिन्दगी की परछाईं से भी दूर रखेगा. उसे पांच सौ मिलता है और पत्नी भी नियुक्त होकर पांच सौ कमाने लगे तो आने वाली संतान का भविष्य कुछ ठीक हो जायेगा.
उसने तय कर लिया कि उसकी पत्नी मैके में रह कर बी0 ए0 की पढ़ाई पूरी करेगी. तभी वह सहयोगी साबित हो सकेगी. मगर वह पत्र क्यों नहीं भेज रही है ! - - समझा ! रुपये नहीं भेजने से वह नाराज हो गयी है. पहले हर दो दिनों पर पत्र आता था. अभी एक माह से कोई पत्र नहीं आया है.
वह बैठे-बैठे पत्र के बारे में सोच ही रहा था कि डाकिया आ गया. वह दौड़ कर पत्र लिया. पत्र पत्नी का नहीं, मित्र का था, बकाया रुपये के लिये तकादा भेजा था.
मित्र के पत्र के बारे में वह आगे नहीं सोच पाया. उसके दिमाग में पत्नी और उसके अप्राप्त पत्र की बात घूम रही थी. उसने सोचा कि उसकी गरीबी के कारण पत्नी ने उसके साथ रहने का विचार तो नहीं बदल दिया ! नहीं, वह ऐसा नहीं कर सकती. साथ-साथ जिंदगी बिताने के लिये सात फेरे ली है. - - - लेकिन अगले ही क्षण उसके दिमाग में एक बात उभर कर सामने आ गयी. आज के आर्थिक युग में शादी के फेरे का कितना महत्व बच पाया है. -- - फेरा लेना या कसमें खाना कितना प्रासंगिक रह गया है ?-- - आगे सोचना उसे संभव नहीं लग रहा था. वह उठ कर फिर टहलने लगा.
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अंकुश्री
प्रेस कॉलोनी, सिदरौल,
नामकुम, रांची (झारखण्ड)-834 010
E-mail : ankushreehindiwriter@gmail.com
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