देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–9 : 8 सोलोमन की सलाह // सुषमा गुप्ता

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8 सोलोमन की सलाह [1] एक बार एक दुकानदार की जनरल स्टोर की दुकान थी। एक दिन वह सुबह को जल्दी ही अपनी दुकान खोलने चला गया तो उसको अपनी दुकान के...

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8 सोलोमन की सलाह[1]

एक बार एक दुकानदार की जनरल स्टोर की दुकान थी। एक दिन वह सुबह को जल्दी ही अपनी दुकान खोलने चला गया तो उसको अपनी दुकान के दरवाजे पर क्या पड़ा मिला – एक मरा हुआ आदमी।

उसको देख कर तो वह इतना डर गया कि पकड़े जाने के डर से वह वहाँ से भाग निकला और अपने घर में अपनी पत्नी और अपने तीन बच्चों को छोड़ कर कहीं और चला गया।

जब वह एक दूसरे शहर पहुँचा तो वहाँ वह काम ढूँढने लगा पर वहाँ उसको कोई काम ही नहीं मिला।

आखिर उसने एक भले आदमी के बारे में सुना जिसको एक नौकर की जरूरत थी। कुछ अच्छा काम न पाने पर उसने सोचा कि चलो उसी भले आदमी के पास ही चलते हैं और उसी से पूछते हैं अगर वही कोई काम दे दे तो।

वह उस भले आदमी के पास गया। उस भले आदमी का नाम था सोलोमन। सोलोमन एक धर्मदूत[2] था और बहुत सारे लोग उससे सलाह लेने के लिये जाते थे। वह सोलोमन से मिला और उसने उस दूकानदार को अपने यहाँ नौकर रख लिया। उसके पास वह 20 साल तक काम करता रहा।

20 साल के बाद उसको घर की याद आने लगी क्योंकि जबसे उसने अपना घर छोड़ा था इतने सालों में उसने अपने घर के बारे में कुछ भी नहीं सुना था।

वह सोलोमन के पास गया और बोला — “मालिक, मैं अपने घर जा कर अपने लोगों को देखना चाहता हूँ। आप मेरा हिसाब कर दीजिये तो फिर मैं घर जाना चाहता हूँ।”

हालाँकि वह 20 साल से सोलोमन के यहाँ काम कर रहा था पर अभी तक उसने उससे एक पैनी भी नहीं ली थी। उसके मालिक ने उसकी तन्ख्वाह का हिसाब लगाया तो उसके 300 क्राउन[3] बनते थे। उसने वे पैसे उस दुकानदार को दे दिये और वह दुकानदार अपने घर चल दिया।

जब वह जा रहा था और सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था तो उसके मालिक ने उसको पुकारा तो वह लौटा। मालिक ने उससे कहा — “हर आदमी मेरी सलाह के लिये मेरे पास आता है और तुम मेरे पास इतने साल रह कर भी मुझसे बिना मेरी सलाह लिये चले जा रहे हो। कुछ भी नहीं माँग रहे।”

नौकर ने पूछा — “मालिक आप अपनी एक सलाह के कितने पैसे लेते हैं?”

सोलोमन बोला — “100 क्राउन।”

नौकर को इन दामों में एक सलाह बहुत महँगी लगी। पर उसने इस पर फिर सोचा और फिर सीढ़ी चढ़ कर ऊपर आया। उसने मालिक को 100 क्राउन दिये और बोला — “ठीक है। तो मुझे एक सलाह दे दीजिये।”

सोलोमन बोला — “नये रास्ते के लिये अपने पुराने रास्ते को कभी मत छोड़ो।”

नौकर बोला — “क्या? बस यही? क्या इसी बात के लिये मैंने आपको 100 क्राउन दिये?”

सोलोमन बोला — “नहीं। यह 100 क्राउन इस सलाह की कीमत नहीं थी बल्कि ये तो इसलिये थे ताकि तुम इस सलाह को याद रखो कभी भूलो नहीं।”

नौकर सीढ़ियों पर से फिर नीचे वापस चल दिया कि उसने दोबारा कुछ सोचा और यह कहने के लिये वापस आया — “जब तक मैं यहाँ हूँ तब तक आप मुझे दूसरी सलाह भी दे दें।”

सोलोमन बोला — “उसके लिये 100 क्राउन और लगेंगे।” नौकर ने उसको 100 क्राउन और दे दिये।

सोलोमन बोला — “दूसरी सलाह। दूसरों के कामों में कभी दखल मत दो।”

नौकर ने अपने मन में सोचा — “अगर मैं केवल 100 क्राउन ले कर घर जाता हूँ तो यह तो खाली हाथ जाने के बराबर होगा। पर मैं खाली हाथ भी जा सकता हूँ क्योंकि तब मुझे कम से कम सोलोमन से कुछ काम की सलाह तो मिलेगी।”

सो उसने सोलोमन को अपने बचे हुए 100 क्राउन भी दे दिये और उससे कहा कि “मालिक, एक सलाह और।”

सोलोमन बोला — “तीसरी सलाह। अपने गुस्से को कल तक के लिये ताक पर रख दो।”

नौकर फिर चल दिया पर उसके मालिक ने उसे फिर पुकारा और एक केक दी और कहा — “तुमने अपने सारे पैसे तो मुझसे सलाह खरीदने में खर्च कर दिये अब तुम घर क्या खाली हाथ जाओगे?

लो यह केक लेते जाओ। पर इस केक को तब तक मत काटना जब तक तुम अपने सारे परिवार के साथ खाने की मेज पर न बैठे हो।” केक ले कर नौकर चला गया।

वह अपने रास्ते चला जा रहा था कि रास्ते में उस कुछ यात्री सफर करते मिल गये। उन्होंने उस नौकर से पूछा — “क्या तुम हमारे साथ सफर करना पसन्द करोगे? हम लोग भी उसी तरफ जा रहे हैं। तुम भी हमारे साथ ही चल सकते हो।”

नौकर ने सोचा — “मैंने अपने मालिक को 100 क्राउन दिये थे इस सलाह के लिये कि “नये रास्ते के लिये अपने पुराने रास्ते को मत छोड़ो।” मुझे उनकी बात माननी चहिये। यही सोच कर वह उनके साथ नहीं गया और अपने रास्ते चला गया।

जब वह अपने रास्ते जा रहा था तो कुछ ही देर बाद उसने बन्दूक की गोलियों की आवाज सुनी, चिल्लाहट सुनी और कराह की आवाजें सुनीं। लगता था कि उन यात्रियों पर डाकुओं ने हमला कर दिया था और उन्होंने उस समूह के हर यात्री को मार दिया था।

सो उन 100 क्राउन की जय हो जो मेरे मालिक को गये और जिन्होंने मेरी जान बचायी।”

अपने मालिक की तारीफ करते करते वह फिर अपने सफर पर चल दिया। चलते चलते अँधेरा होने लगा। उस समय वह खेतों के रास्ते में एक अकेली जगह से गुजर रहा था।

वहाँ उसको शरण लेने के लिये कोई जगह ही नहीं मिल रही थी। अन्त में उसको एक अकेला घर दिखायी दे गया। वह वहाँ गया और जा कर उस घर का दरवाजा खटखटाया।

एक आदमी ने दरवाजा खोला तो वहाँ उसने एक रात ठहरने की जगह माँगी। घर के लोगों ने उसको ठहरने की जगह दे दी और अन्दर बुला लिया।

घर के मालिक ने खाना तैयार किया और वे सब खाना खाने बैठे। जब उन्होंने खाना खा लिया तो घर के मालिक ने एक दरवाजा खोला जो उनके घर के तहखाने में खुलता था। उस तहखाने के दरवाजे से एक अन्धी स्त्री बाहर निकली।

घर के मालिक ने उसके लिये एक खोपड़ी के कटोरे में सूप परसा और सरकंडे[4] का एक टुकड़ा दिया जिसको वह सूप को पीने के लिये चम्मच की जगह इस्तेमाल कर सकती थी।

उस अन्धी स्त्री ने जब खाना खा लिया तो वह आदमी उसको वापस तहखाने में छोड़ आया और उस तहखाने का दरवाजा बन्द कर दिया।

फिर घर के मालिक ने उस नौकर से कहा — “जो कुछ तुमने अभी देखा उसके बारे में तुम्हें क्या कहना है?”

नौकर को अपने मालिक की दूसरी सलाह याद आयी – “दूसरों के कामों में दखल मत दो।” तो उसने फौरन ही उसको जवाब दिया — “मैं तो यह सोचता हूँ कि तुम्हारे पास ही इस बात का जवाब होना चाहिये। मैं इस बारे में क्या कह सकता हूँ।”

घर का मालिक बोला — “यह मेरी पत्नी है। जब मैं घर से बाहर चला जाता था तब यह किसी दूसरे आदमी को घर में बुलाती थी। एक बार मैं घर जल्दी वापस आ गया तो मैंने उस आदमी को अपने घर में देख लिया। बस मैंने उसको मार दिया और इसकी आँखें निकाल लीं।

यह कटोरा जिसमें यह खाना खाती है यह उसी आदमी की खोपड़ी है। और यह चम्मच उस सरकंडे की है जिससे मैंने इसकी आँखें निकाली थीं। अब तुम बताओ कि तुम क्या सोचते हो? मैंने ठीक किया या गलत?”

नौकर बोला — “अगर तुमको यह ठीक लगता है तो इसका मतलब है कि यह ठीक ही होगा।”

घर का मालिक बोला — “बहुत अच्छे। कोई भी जो यह कहता है कि मैंने गलत किया मैं उसको मार देता हूँ।”

नौकर ने चैन की साँस ली और सोचा — “मेरे मालिक की जय हो और उस दूसरे 100 क्राउन की भी जय हो जिसने आज मेरी दूसरी बार जान बचायी।”

अगली सुबह नौकर आगे चला और शाम को अपने घर पहुँच गया। उसने अपनी सड़क ढूँढी अपना घर ढूँढा। खिड़कियों में रोशनी हो रही थी और एक खिड़की में उसको अपनी पत्नी खड़ी दिखायी दी पर उसके साथ एक बहुत ही सुन्दर नौजवान भी खड़ा था। उसकी पत्नी ने उस नौजवान के चेहरे पर प्यार से थपथपाया।

यह देख कर वह बहुत गुस्सा हो गया। उसने तुरन्त ही अपनी बन्दूक निकाल ली और निशाना साध लिया। पर तभी उसको अपने मालिक की तीसरी सलाह याद आयी “अपने गुस्से को कल पर टाल दो।”

यह सलाह याद आते ही उसने अपने गुस्से को कल पर टाल दिया और अपनी बन्दूक चलाने की बजाय नीची कर ली। फिर वह अपने घर के सामने वाले घर में रहने वाली पड़ोसन के पास गया और उससे पूछा — “इस सामने वाले घर में कौन रहता है?”

वह बोली — “वह तो एक स्त्री का घर है जो अपने आप में ही खुश रहती है। आज ही उसका बेटा सेमीनारी[5] से लौट कर आया है और आज ही उसने अपनी पहली मास[6] कही है। अब वह उस पर बिल्कुल नाराज नहीं हो सकती।”

यह सुन कर उस आदमी ने सोचा “उस आखिरी 100 क्राउन की भी जय हो जिसने आज मेरी ज़िन्दगी तीसरी बार बचायी है वरना मैं तो अपनी पत्नी को ही मार बैठता।”

वह अपने घर दौड़ा गया तो उसकी पत्नी ने दरवाजा खोला। पत्नी तो उसको देख कर बहुत खुश हो गयी पर उसके बेटों ने उसको नहीं पहचाना। क्योंकि वह जब उनको छोड़ कर गया था तब वे बहुत छोटे छोटे थे और अब उस बात को 20 साल भी तो हो गये थे।

सबने एक दूसरे को गले लगाया और फिर सब लोग खाना खाने बैठे। तब सोलोमन की सलाह के अनुसार आदमी ने उसका दिया हुआ वह केक काटा जिसको उसने सबके सामने काटने के लिये कहा था।

उस केक के अन्दर वे 300 क्राउन थे जो सोलोमन ने उससे ले कर उसको सलाह देने के बदले में रख लिये थे ताकि वह उसकी सलाह को याद रखे।

नौकर तो सोलोमन की तारीफ करते करते नहीं थक रहा था।

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[1] Solomon’s Advice (Story No 192) – a folktale from Italy from its Campidano area.

Adapted from the book “Italian Folktales”, by Italo Calvino. Translated by George Martin in 1980.

[2] Translated for the word “Prophet”

[3] Crown – the then currency of European countries and some other countries as well.

[4] Translated for the word “Reed”. See its picture above.

[5] Seminary – the theological school where Christian pastors are educated and trained in theology for Ministry in Churches.

[6] Mass – Mass is one of the names by which the sacrament of the Eucharist is commonly called in the Catholic Church. The term Mass often colloquially refers to the entire church service in general.

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः  - रैवन की लोक कथाएँ,  इथियोपिया इटली की  ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

(क्रमशः अगले अंकों में जारी….)

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रचनाकार: देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–9 : 8 सोलोमन की सलाह // सुषमा गुप्ता
देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–9 : 8 सोलोमन की सलाह // सुषमा गुप्ता
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