देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–9 : 6 जियूफ़ा // सुषमा गुप्ता

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6 जियूफ़ा [1] जियूफ़ा इटली की लोक कथाओं का एक बहुत ही मशहूर हीरो है। जियूफ़ा की यहाँ छह कहानियाँ दी जाती हैं। ये सब कहानियाँ इटली के सिसिली टाप...

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6 जियूफ़ा[1]

जियूफ़ा इटली की लोक कथाओं का एक बहुत ही मशहूर हीरो है। जियूफ़ा की यहाँ छह कहानियाँ दी जाती हैं। ये सब कहानियाँ इटली के सिसिली टापू पर कही सुनी जाती है। जियूफ़ा एक बहुत ही आलसी, बेवकूफ और शरारातों से भरपूर लड़का था। ये सब कहानियाँ उसी की हैं।

1 जियूफ़ा और प्लास्टर की मूर्ति[2]

एक बार एक माँ थी जिसके एक ही बेटा था जो बहुत ही आलसी, बेवकूफ और शरारतों से भरपूर था। उसका नाम था जियूफ़ा। उसकी माँ बहुत गरीब थी पर उसके पास एक बहुत अच्छा कपड़ा था।

एक दिन उसने वह कपड़ा जियूफ़ा को दे कर उससे कहा — “जियूफ़ा, जा इस कपड़े को ले जा और जा कर बाजार में बेच आ। और देख इसे किसी ज़्यादा बोलने वाले को मत बेचना बल्कि किसी ऐसे आदमी को बेचना जो बहुत कम बोलने वाला हो।”

जियूफ़ा उस कपड़े को ले कर चला गया और सारे शहर में चिल्लाता हुआ चक्कर काटता रहा — “कपड़ा ले लो, कपड़ा ले लो कपड़ा।”

एक स्त्री ने उसे रोका और कहा — “यह कपड़ा मुझे दिखाना तो।”

कपड़ा देख कर उसने जियूफ़ा से पूछा — “कितने का दिया है?”

जियूफ़ा बोला — “तुम बहुत बात करती हौ। मेरी माँ इस कपड़े को किसी बहुत बोलने वाले को बेचना नहीं चाहती।” और उसके हाथ से कपड़ा छीन कर वह आगे चल दिया।

उसके बाद उसको एक किसान मिला। उसने भी उससे यही पूछा — “कितने का दिया है यह कपड़ा?”

जियूफ़ा बोला — “10 क्राउन[3]।”

“ओह नहीं। यह कीमत तो इस कपड़े के लिये बहुत ज़्यादा है।”

“तुम तो बहुत बोलते हो। तुमको यह कपड़ा नहीं मिलेगा।”

इस तरह कई लोग उसके पास कपड़ा खरीदने आये पर जितने भी लोग आये उसने उन सबको बहुत बात करने वाला कहा और उनमें से किसी को भी कपड़ा बेचने से मना कर दिया।

इधर उधर घूमते हुए वह एक घर के आँगन में घुस गया। उस आँगन में एक प्लास्टर की मूर्ति खड़ी हुई थी। जियूफ़ा ने उससे पूछा — “क्या तुम यह कपड़ा खरीदोगी?”

उसने कुछ देर तक उसके जवाब का इन्तजार किया पर जब उसको उससे कोई जवाब नहीं मिला तो उसने उससे फिर पूछा — “क्या तुम यह कपड़ा खरीदोगी?”

जब उसको फिर कोई जवाब नहीं मिला तो वह बोला — “आखिर मुझे कोई तो कम शब्द बोलने वाला मिला। अब मैं यह कपड़ा इसको बेच सकता हूँ।” कह कर उसने वह कपड़ा उस मूर्ति को ओढ़ा दिया।

फिर बोला — “इसकी कीमत 10 क्राउन है। क्या तुमको यह कीमत मंजूर है? मैं अपने पैसे लेने के लिये कल वापस आऊँगा।” कह कर वह वहाँ से चला गया।

जब वह घर पहुँचा तो उसने माँ को बताया कि वह वह कपड़ा बेच आया तो माँ ने पूछा — “पैसे कहाँ हैं?”

“पैसे लेने के लिये मैं उसके पास कल दोबारा जाऊँगा।”

“पर क्या वह आदमी विश्वास के लायक है?”

“माँ वह तो बस ऐसी ही स्त्री है जैसी स्त्री तुम्हारे दिमाग में थी कि तुम उसको अपना कपड़ा बेचो। क्या तुम विश्वास करोगी कि उसने मुझसे एक शब्द भी नहीं बोला?”

अगली सुबह वह वहीं अपने पैसे लेने के लिये पहुँच गया। उसने देखा कि वह मूर्ति तो वहाँ ठीक ठाक खड़ी हुई है पर उसके ऊपर वह कपड़ा जो वह उसको ओढ़ा कर आया था वह गायब है।

जियूफ़ा बोला — “लाओ मेरे पैसे लाओ।” पर वह तो मूर्ति थी वह तो बोलने वाली थी नहीं। जितनी ज़्यादा देर तक वह उसके जवाब का इन्तजार करता रहा उसका गुस्सा उतना ही बढ़ता रहा।

वह बोला — “तुमने मेरा कपड़ा लिया, लिया कि नहीं? और अब तुम मुझे उसके पैसे देने से मना कर रही हो? मना कर रही हो कि नहीं? मैं तुम्हें अभी बताता हूँ।”

उसने वहीं पड़ा एक डंडा उठाया और उससे उस मूर्ति के टुकड़े टुकड़े कर दिये। पर यह क्या? उस मूर्ति के अन्दर तो उसको सोने के सिक्कों से भरा एक बरतन मिला। उसने उस बरतन के सिक्के अपने थैले में खाली कर लिये और घर चला गया।

आ कर वह अपनी माँ से बोला — “माँ वह तो मुझे मेरा पैसा देना ही नहीं चाहती थी। जब मैंने उसको डंडे से मारा तब कहीं जा कर उसने मुझे यह सब दिया।”

कह कर उसने माँ के सामने अपना सोने के सिक्कों से भरा थैला खाली कर दिया।

उसकी माँ एक बहुत ही तेज़ स्त्री थी बोली — “इस सबको यहाँ रख दे और देखना किसी को बताना नहीं।”

2 जियूफ़ा, चाँद, डाकू और सिपाही[4]

एक सुबह जियूफ़ा बाहर से कुछ पत्ते तोड़ने गया। उसके घर वापस आने से पहले ही रात हो गयी। जैसे जैसे वह चलता जा रहा था चाँद बादलों के पीछे उससे आँखमिचौली खेलता जा रहा था।

जियूफ़ा एक पत्थर पर बैठ गया और उसे छिपते और निकलते देखने लगा। जब वह छिप जाता तो वह कहता “निकल निकल।” और जब वह निकल आता तो वह कहता “छिप जा छिप जा।” इस तरह वह बार बार यही कहता रहा “निकल निकल” और “छिप जा छिप जा”।

उसी समय दो चोर वहीं पास में चोरी किये हुए एक बछड़े का बँटवारा कर रहे थे। “निकल निकल” और “छिप जा छिप जा” सुन कर वे डर गये और वहाँ से यह सोच कर भाग गये कि लगता है कि आज उनके पीछे सिपाही पड़ गये हैं। वे इतने डर गये थे कि उस बछड़े का माँस भी वे वहीं छोड़ गये।

जियूफ़ा ने जब उनके भागने की आवाज सुनी तो वह उधर की तरफ यह देखने के लिये गया कि वहाँ क्या हो रहा था। वहाँ जा कर उसे और तो कुछ दिखायी नहीं दिया एक बछड़ा कटा हुआ दिखायी दिया सो उसने अपना चाकू निकाला और उसको और छोटे छोटे टुकड़ों में काटना शुरू किया।

उसके छोटे छोटे टुकड़े काट कर उसने अपने थैले में डाले और घर चल दिया। घर पहुँच कर और अपनी माँ से बोला — “माँ दरवाजा खोलो।”

माँ बोली — “कहाँ रह गया था तू? यह भी कोई आने का समय है।”

“माँ मैं माँस ले कर आ रहा था कि मुझे रात हो गयी। कल तुम इसको जरूर बेच देना ताकि मुझे कुछ पैसे मिल जायें।”

“कल तू शहर चले जाना मैं तेरा यह माँस बेच दूँगी।”

अगली शाम जब जियूफ़ा घर वापस लौटा तो उसने अपनी माँ से पूछा “क्या तुमने मेरा लाया माँस बेच दिया?”

“हाँ, वह माँस मैंने मक्खियों को उधार पर बेच दिया।”

“और वे तुम्हें पैसे कब देंगीं?”

“जब भी उनके पास पैसा होगा।”

जियूफा एक हफ्ते तक उन मक्खियों के पैसे लाने का इन्तजार करता रहा पर जब वे एक हफ्ते तक भी पैसे ले कर नहीं आयीं तो वह जज के पास गया और बोला — “योर औनर। मुझे न्याय चाहिये। मैंने माँस मक्खियों को उधार पर बेचा और उन्होंने अभी तक मुझे पैसे नहीं दिये हैं।”

जज बोला — “उनकी बस यही एक सजा है कि जब भी तुम कहीं कोई मक्खी देखो तो मैं तुमको यह अधिकार देता हूँ कि तुम उसको मार दो।”

उसी पल एक मक्खी जज की नाक पर आ बैठी तो जियूफ़ा ने अपना घूँसा उठाया और उससे जज की नाक पर बैठी मक्खी को मार दिया। बेचारा जज।

3 जियूफ़ा और लाल टोपी[5]

जियूफ़ा को काम करना नहीं भाता था। वह तो बस खाना खाता और बाहर सड़कों पर घूमने निकल जाता। उसकी माँ हमेशा उससे कहती — “जियूफ़ा, बेटे ज़िन्दगी में आगे बढ़ने का यह कोई तरीका नहीं है। क्या तू थोड़ी सी कोशिश भी नहीं कर सकता कि तू कुछ काम का काम कर ले जिससे चार पैसे आयें? बस तू सारे दिन खाता रहता है, पीता रहता है और चारों तरफ घूमता रहता है।”

यह सुन कर जियूफ़ा कैसैरो स्ट्रीट[6] पर चल दिया ताकि अपने लिये वह कुछ चीजें. खरीद सके। वह कई दुकानों पर गया और वहाँ से उसने बहुत सारा सामान खरीद लिया।

clip_image002उसने उन सभी दूकानदारों से वह सब सामान उधार लिया और उनसे कहा कि वह उस सब सामान का पैसा एक दिन जल्दी ही आ कर चुका देगा। आखीर में उसने एक लाल रंग की टोपी खरीदी।

उसने जो सामान अपने लिये खरीदा था जब वह सब पहन लिया तो वह अपने आपको देख कर बोला — “अब मैं कितना अच्छा लग रहा हूँ। अब मेरी माँ मुझे देख कर ऐसा वैसा नहीं कहेगी।”

पर अपने बिलों की याद करके उसने मरने का नाटक करने का निश्चय किया।. वह जा कर बिस्तर पर लेट गया और हाथ पैर पटक पटक कर चिल्लाने लगा “मैं मर रहा हूँ, मैं मर रहा हूँ, मैं मर गया।”

उसकी माँ बेचारी परेशान सी आयी और रोते रोते उससे पूछा — “बेटा, तुझे क्या हो गया? तुझे क्या परेशानी है?”

उसके रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी भी उसको तसल्ली देखने के लिये आ गये। खबर फैली तो वे दुकानदार भी वहाँ उसको देखने आये जिनसे उसने माल उधार पर लिया था।

वे बोले — “बेचारा जियूफ़ा। इसको तो मुझे एक पैन्ट के बदले में छह बकरे देने हैं। पर अब मैं अपनी किताब से उसका यह उधार काट दूँगा। भगवान उसकी आत्मा को शान्ति दे।”

इस तरह से सारे दुकानदार वहाँ आये और उसके उधार काट काट कर चले गये। पर जिस दुकानदार ने उसको लाल टोपी बेची थी उसने अपना उधार नहीं काटा।

उसने कहा कि “मेरा उधार इसके ऊपर अभी भी बाकी है।” वह दुकानदार भी जियूफ़ा को देखने गया। जियूफ़ा के सिर पर वह लाल टोपी अभी भी थी।

दुकानदार को एक बहुत ही बढ़िया विचार आया। जब कब्र खोदने वाले जियूफ़ा के शरीर को दफनाने के लिये चर्च ले गये तो वह भी उनके पीछे पीछे चल दिया। वहाँ जा कर वह चर्च में छिप गया और रात होने का इन्तजार करने लगा।

clip_image004धीरे धीरे अँधेरा होने लगा। उसी समय कुछ डाकू अपनी लूट का एक थैला बाँटने के लिये वहाँ आये। जियूफ़ा अभी भी अपने ताबूत में बिना हिले डुले लेटा था और वह दुकानदार अभी भी चर्च में दरवाजे के पीछे छिपा हुआ था।

डाकुओं ने अपने थैले में से पैसे निकाले। वे सभी सोने चाँदी के सिक्के थे। उन्होंने उन सिक्कों के उतने ही ढेर बनाने शुरू किये जितने वे थे। ढेर बनाते बनाते एक सिक्का बच गया तो वे सोचने लगे कि वह सिक्का वे किस ढेर में रखें।

आपस में मेलजोल बनाये रखने के लिये उनमें से एक डाकू बोला — “ऐसा करते हैं कि यहाँ एक यह मरा हुआ आदमी पड़ा है। हम उसको अपना निशाना बना कर यह सिक्का उसके ताबूत में फेंकते हैं। जिस किसी का भी सिक्का उस आदमी के ताबूत में चला जायेगा यह सिक्का उसी का होगा।”

“यह तो बिल्कुल ठीक है।” और सब इस बात पर राजी हो गये। सिक्का फेंकने के लिये वे सब एक जगह इकठ्ठे हो गये।

यह सुन कर जियूफ़ा अपने ताबूत में उठ कर खड़ा हो गया और चिल्लाया — “ओ मरी हुई आत्माओं उठो, तुम सब उठो।”

एक मरे हुए आदमी को खड़ा देख कर वे डाकू डर कर वहाँ से भाग गये। जियूफ़ा ने जब देखा कि वह वहाँ अकेला रह गया तो वह उन सोने चाँदी के सिक्कों के ढेरों की तरफ दौड़ा।

पर उसी समय वह टोपी वाला दुकानदार भी उन ढेरों की तरफ दौड़ा। दोनों ने उस पैसे को बराबर बराबर बाँट लिया पर एक सिक्का फिर भी बच गया।

जियूफ़ा बोला “इसको मैं लेता हूँ यह मेरा है।”

दुकानदार बोला “नहीं यह सिक्का मेरा है इसको मैं लूँगा।”

जियूफ़ा बोला “नहीं यह मेरा है।”

दुकानदार बोला “इसको छूना भी मत यह मेरा है।”

तभी जियूफ़ा ने एक मोमबत्ती बुझाने वाला कपड़ा उठाया और उसको लाल टोपी की तरफ हिलाया और चिल्ला कर बोला — “वह सिक्का यहीं रख दो। मैं उसको ले रहा हूँ।”

उधर डाकू लोग भी चर्च में से भाग कर कहीं और नहीं गये थे वे चर्च के बाहर ही हाथ मलते हुए इधर से उधर चक्कर काट रहे थे। शोर सुन कर उन्होंने चर्च में से सुनने की कोशिश की कि वह मरा हुआ आदमी अब क्या करेगा।

उनको अपना इतना सारा पैसा चर्च में छोड़ कर बाहर आने का बहुत दुख था पर अब वे क्या कर सकते थे। उनके कान चर्च के दरवाजे पर ही लगे थे। दोनों के झगड़े की आवाजें सुन कर वे सोच रहे थे कि न जाने कितनी मरी हुई आत्माएं यहाँ की कबों में से उठ गयी होंगी सो वे तुरन्त ही वहाँ से भाग गये।

जियूफ़ा और टोपी वाला दूकानदार दोनों सिक्कों से भरा एक एक थैला ले कर अपने घर वापस लौटे। जियूफ़ा के पास उस दूकानदार से एक सिक्का ज़्यादा था।

4 जियूफ़ा और वाइनस्किन[7]

जब जियूफ़ा की माँ ने देखा कि उसकी कोई भी तरकीब जियूफ़ा को ठीक नही कर पा रही थी तो उसने उसको एक सराय में नौकरी दिलवा दी। अब वह उस सराय के मालिक की सहायता किया करता था।

एक दिन सराय के मालिक ने उससे कहा — “जियूफ़ा ज़रा समुद्र तक चले जाओ ओैर यह वाइनस्किन[8] धो कर ले आओ। और देखो इसको ठीक से धोना वरना मैं तुमको बहुत पीटूँगा।”

जियूफ़ा वाइनस्किन ले कर समुद्र की तरफ चला गया और वहाँ उसको समुद के पानी में सारी सुबह धोता रहा, धोता रहा, धोता रहा। फिर उसने सोचा “मुझे यह कैसे पता चले कि यह वाइनस्किन ठीक से धुल गया कि नहीं। मैं किससे पूछूँ?”

समुद्र के किनारे पर कोई भी नहीं था पर समुद्र में एक नाव जा रही थी जो अभी अभी किनारा छोड़ कर गयी थी। जियूफ़ा ने अपना रूमाल निकाला और उसे बहुत ज़ोर ज़ोर से हिला कर चिल्लाना शुरू किया — “ओ पानी में जाने वालो, वापस आओ।”

नाव के कप्तान ने कहा — “यह लड़का हमको किनारे पर आने के लिये इशारा कर रहा है। हम लोगों को वापस चलना चाहिये। हमको नहीं मालूम कि वह हमसे क्या कहना चाहता है। क्या पता हम लोग वहाँ कुछ छोड़ आये हों।”

सो उन्होंने अपनी बड़ी नाव में से एक छोटी पतवार से खेने वाली नाव निकाली और किनारे की तरफ चल दिये। वहाँ तो जियूफ़ा खड़ा था।

कप्तान ने उससे पूछा — “क्या बात है? तुम हमें क्यों बुला रहे थे?”

जियूफ़ा बोला — “योर औनर, मेहरबानी करके आप जरा मुझे यह बताइये कि यह वाइनस्किन ठीक से धुल गयी या नहीं?”

यह सुन कर कप्तान तो गुस्से के मारे पागल सा हो गया। उसने पास में पड़ी एक डंडी उठायी और जियूफ़ा को उससे इतनी ज़ोर से पीटा कि वह ज़िन्दगी भर याद रखता।

जियूफ़ा रोता हुआ चिल्लाया — “पर फिर मैं क्या कहता?”

कप्तान बोला — “तुम कहो कि “भगवान इनकी नाव जल्दी जल्दी चलाओ” ताकि हम तुम्हारे साथ अपना बरबाद किया हुआ समय फिर से पा सकें।”

जियूफ़ा ने वह वाइनस्किन का थैला अपनी पीठ पर डाला जो अभी भी कप्तान की मार के दर्द से दुख रही थी और खेतों में से होता हुआ ज़ोर ज़ोर से यह कहता हुआ भागता चला गया “भगवान उनको जल्दी पहुँचा दो, भगवान उनको जल्दी पहुँचा दो।”

जब वह भागा जा रहा था तो उसको एक शिकारी मिला जो दो खरगोशों के ऊपर निशाना लगा रहा था। पर जियूफ़ा तो यह कहता भागा जा रहा था कि “भगवान उनको जल्दी पहुँचा दो, भगवान उनको जल्दी पहुँचा दो।”

यह सुन कर खरगोश और जल्दी जल्दी भागने लगे।

शिकारी अपनी बन्दूक का हैन्डिल जियूफ़ा के सिर पर मारता हुआ बोला — “ओ छोटे आदमी, मैं तो उनको अपने पास बुला रहा था और तुम उनको भगा रहे हो।”

जियूफ़ा फिर रोते हुए बोला — “तो फिर मैं और क्या कहता?”

शिकारी बोला — “तुमको कहना था कि “भगवान उनको मार दो, भगवान उनको मार दो।”

उस वाइनस्किन को कन्धे पर लादे लादे जियूफ़ा फिर यह कहता हुआ भागता चला गया “भगवान उनको मार दो। भगवान उनको मार दो।”

अब आगे जा कर उसको दो आदमी मिले जो आपस में बहस कर रहे थे और लड़ने के लिये तैयार थे। और जियूफ़ा तो यह कहता हुआ भागा जा रहा था कि “भगवान उनको मार दो। भगवान उनको मार दो”

यह सुन कर वे दोनों अपना लड़ना तो भूल गये और दोनों जियूफ़ा के ऊपर टूट पड़े। वे बोले — “ओ बेवकूफ। तुम हमारी आग में तेल छिड़क रहे हो?” और यह कह कर उन्होंने भी जियूफ़ा को बहुत मारा।

जियूफ़ा सुबकते हुए बोला — “पर फिर मैं क्या कहता?”

वे बोले — “तुमको कहना चाहिये था कि “हे भगवान, इनको अलग कर दो। हे भगवान, इनको अलग कर दो।”

“ठीक है। अब से मैं यही कहूँगा।” यह सुन कर जियूफ़ा यह कहता हुआ वहाँ से चल दिया “हे भगवान, इनको अलग कर दो। हे भगवान, इनको अलग कर दो।”

अब आगे जा कर जियूफ़ा को भला कौन मिला? एक शादीशुदा जोड़ा जो चर्च में से तभी तभी अपनी शादी करा कर बाहर निकल रहा था। जब उन्होंने यह सुना कि “हे भगवान, इनको अलग कर दो। हे भगवान, इनको अलग कर दो।” तो दुलहे को तो बहुत गुस्सा आ गया।

उसने अपनी कमर से पेटी निकाली और जियूफ़ा को उससे ज़ोर ज़ोर से मारना शुरू किया — “ओ बदशकुनी आदमी, तुम एक पति पत्नी को अलग करने का सोच ही कैसे सकते हो?”

जब जियूफ़ा से और मार नहीं सही गयी तो वह बेहोश हो कर वहीं जमीन पर गिर गया। जब उन्होंने उसको उठाया तो उसने अपनी आँखें खोलीं तो उन्होंने उससे पूछा — “तुम एक नये शादीशुदा जोड़े से जब ऐसा कह रहे थे तब तुम क्या सोच रहे थे?”

“पर तब मुझे क्या कहना चाहिये था?”

“तुमको कहना चाहिये था कि “हे भगवान इनको हमेशा हँसने दो। हे भगवान इनको हमेशा हँसने दो।”

जियूफ़ा ने अपनी वाइनस्किन फिर से उठायी और उस जोड़े की लाइनें दोहराते हुए अपने रास्ते चल दिया “हे भगवान इनको हमेशा हँसने दो। हे भगवान इनको हमेशा हँसने दो।”

अभी वह यह सब कहता ही जा रहा था कि वह एक ऐसे घर के सामने पहुँचा जहाँ एक मरा हुआ आदमी ताबूत में लेटा हुआ था। उसके ताबूत के चारों तरफ मोमबत्तियाँ जली हुई थीं और उसके रिश्तेदार बेचारे रो रहे थे।

जब उन्होंने जियूफ़ा को यह कहते हुए सुना “हे भगवान इनको हमेशा हँसने दो। हे भगवान इनको हमेशा हँसने दो।” तो वहाँ बैठे हुए आदमियों में से एक आदमी वहाँ से उठ कर आया और जियूफ़ा को और बहुत मारा।

अब जियूफ़ा को लगा कि इस सबसे तो अच्छा है कि वह अपना मुँह बन्द ही रखे और वह सीधा सराय की तरफ भागा। सराय पहुँचते पहुँचते उसको रात हो गयी थी। सराय का मालिक उस पर बहुत नाराज था।

सराय के मालिक ने जियूफ़ा को सुबह सुबह वाइनस्किन धोने के लिये भेजा था और वह वह थैला अब धो कर ला रहा था। उसको बहुत ही गुस्सा आया तो उसने भी जियूफ़ा की अब अपने हिस्से की पिटायी की कि वह रात से पहले क्यों नहीं आया।

क्या वाइनस्किन को साफ करने में इतनी देर लगती थी? अगले दिन उसने जियूफ़ा को नौकरी से निकाल दिया।

5 मेरे कपड़ों पेट भर कर खाओ[9]

जियूफ़ा क्योंकि बहुत बेवकूफ था इसलिये न तो कोई उसको अपने घर बुलाता था और न ही कोई उसको अपने पास बिठाता था।

एक बार वह एक खेत पर गया कि शायद वहाँ कोई उसको कुछ काम दे दे। पर लोगों ने देखा कि यह तो बड़ा गन्दा सा आदमी है सो उन्होंने उस पर अपने कुत्ते छोड़ दिये। उस कुत्ते ने उसके सारे कपड़े फाड़ दिये।

उसके बाद उसकी माँ ने उसके लिये फिर एक बहुत ही अच्छा कोट, एक पैन्ट और एक मखमल की जैकेट खरीदी। इन अच्छे कपड़ों को पहन कर अब वह फिर से खेत पर लौटा तो इस बार उन्होंने उसको बुलाया, उसका ठीक से स्वागत किया और उसको खाना खाने के लिये अपने साथ अपनी मेज पर बिठाया।

जब उन्होंने उसकी प्लेट में खाना परस दिया तो वह उसमें से उसको एक हाथ से उठा कर खाने लगा और दूसरे हाथ से खाना अपनी जेबों में और टोप में यह कहते हुए भरने लगा “ओ मेरे अच्छे कपड़ों पेट भर कर खाओ क्योंकि इन लोगों ने तुम्हें बुलाया है न कि मुझे।”

6 जियूफ़ा अपने बाद दरवाजा खींच देना[10]

एक बार जियूफ़ा अपनी माँ के साथ खेतों पर गया तो माँ पहले घर में से बाहर निकली और जियूफ़ा से बोली — “जियूफ़ा अपने बाद दरवाजा खींच देना।”

सो जब जियूफ़ा घर के बाहर आ गया तो उसने अपने घर के दरवाजे को खींचना शुरू किया और वह उसे तब तक खींचता रहा जब तक कि वह दीवार में से टूट कर बाहर नहीं आ गया।

जब दरवाजा बाहर आ गया तो उसने उसको अपनी कमर पर लादा और अपनी माँ के पीछे पीछे चल दिया। कुछ दूर चलने के बाद उसने अपनी माँ से कहा — “माँ यह तो बहुत भारी है। इसको ले कर चलने में मुझे भारी लग रहा है।”

माँ घूम कर पीछे मुड़ कर बोली — “अरे तुझे क्या भारी लग रहा है?” और तब उसने देखा कि उसका बेटा तो दरवाजा अपनी कमर पर लादे चला आ रहा है।

इस बोझ के साथ वे दोनों ही धीरे धीरे चल रहे थे। रात होने वाली थी और वे अभी भी अपने घर से बहुत दूर थे। रास्ते में कहीं डाकू न मिल जायें इसलिये माँ और बेटा दोनों एक पेड़ पर चढ़ गये। जियूफ़ा अभी भी अपनी कमर पर घर का दरवाजा लिये हुए था।

जब आधी रात हुई तो वहीं उसी पेड़ के नीचे कुछ डाकू अपनी लूट का पैसा बाँटने के लिये आये। जियूफ़ा और उसकी माँ दोनों अपनी साँस रोके वहीं बैठे रहे।

कुछ मिनट बाद ही जियूफ़ा फुसफुसाया — “माँ मुझे छोटा काम करना है।”

“क्या?”

“हाँ मुझे वह करना ही है।”

“थोड़ा इन्तजार कर।”

“माँ मैं बिल्कुल इन्तजार नहीं कर सकता।”

“हाँ हाँ, तू इन्तजार कर सकता है।”

“नहीं माँ नहीं।”

“तो फिर कर ले।”

और जियूफ़ा ने कर लिया। जब डाकुओं ने ऊपर से पानी गिरने की आवाज सुनी तो बोले — “अरे यह क्या? क्या बारिश हो रही है?”

कुछ मिनट बाद जियूफ़ा फिर फुसफुसाया — “माँ मुझे तो कुछ और भी करना है।”

“थोड़ा इन्तजार कर।”

“माँ मैं बिल्कुल इन्तजार नहीं कर सकता माँ।”

“हाँ हाँ, तू इन्तजार कर सकता है।”

“नहीं माँ नहीं।”

“तो फिर कर ले।” और जियूफ़ा ने वह भी कर लिया।

जब डाकुओं ने अपने ऊपर कुछ गिरता हुआ महसूस किया तो वे बोले — “ओह यह क्या है? क्या यह स्वर्ग से गिरा मन्ना[11] है या फिर ऊपर चिड़ियें बैठी हैं?”

क्योंकि जियूफ़ा अभी भी घर का दरवाजा अपनी कमर पर लादे था वह फिर फुसफुसाया — “माँ यह बहुत भारी है।”

“बेटा कुछ देर के लिये इसे और पकड़ कर रख।”

“पर यह बहुत भारी है माँ।”

“बेटा कुछ देर और।”

“पर माँ मैं इसको और पकड़ कर नहीं रख सकता।” और उसने वह दरवाजा नीचे डाकुओं के ऊपर गिरा दिया।

यह देखे बिना ही कि उनके सिर पर क्या गिरा डाकू लोग वहाँ से हवा की तेज़ी से भाग गये।

माँ और बेटा दोनों पेड़ से नीचे उतर आये। वहाँ उन्होंने देखा कि सिक्कों से भरा एक थैला पड़ा है जिसको वे डाकू आपस में बाँट रहे थे। वे माँ और बेटा दोनों उस थैले को उठा कर घर ले गये।

घर पहुँच कर माँ ने बेटे से कहा — “इस थैले के बारे में किसी को भी नहीं बताना नहीं तो राजा के सिपाही तुझे और मुझे दोनों को पकड़ कर जेल में बन्द कर देंगे।”

clip_image008उसके बाद माँ बाजार से कुछ किशमिश और सूखी अंजीर[12] खरीद लायी और घर की छत पर चढ़ गयी। जब जियूफ़ा बाहर गया तो उसने जियूफ़ा के ऊपर वे किशमिश और अंजीरें फेंकनी शुरू कर दीं।

अपने आपको उनकी मार से बचाते हुए जियूफ़ा चिल्लाया “माँ। यह क्या कर रही हो?”

माँ छत से ही बोली — “तुझे क्या चाहिये।”

“माँ किशमिश और सूखी अंजीरें गिर रही हैं।”

“यह तो मुझे भी साफ दिखायी दे रहा है कि आज किशमिश और सूखी अंजीरें गिर रही हैं।”

“तो फिर मैं और क्या कहूँ?” यह कह कर जियूफ़ा चला गया।

जब जियूफ़ा चला गया तो उसकी माँ ने थैले में से सोना निकाला और उसकी जगह उसमें जंग लगी कीलें भर दीं। एक हफ्ते बाद जियूज़ा ने थैला देखा तो उसमें तो सोने के सिक्कों की बजाय उसको कीलें दिखायी दीं।

तो उसने अपनी माँ पर चिल्लाना शुरू किया — “मेरा पैसा मुझे वापस दो नहीं तो मैं जज के पास जाऊँगा।”

“कौन सा पैसा?” कह कर उसने उसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया सो जियूफ़ा जज के पास चला गया

वहाँ जा कर उसने उससे कहा — “योर औनर, मेरे पास एक थैला भर कर सोना था जिसे मेरी माँ ने निकाल लिया और उस थैले को जंग लगी कीलों से भर दिया।”

“सोना? कब किसने तुम्हारे पास सोना सुना?”

“हाँ जनाब, मेरे पास सोना था जिस दिन किशमिश और सूखी अंजीरों की बारिश हुई थी।” यह सुन कर जज ने उसे पागल समझा और उसको पागलखाने भेज दिया।

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[1] Giufa (Story No 190) - a folktale from Italy from its Sicily Island.

Aapted from the book : “Italian Folktales”, by Italo Calvino. Translated by George Martin in 1980.

[2] Giufa and the Plaster Statue.

[3] Crown was the then currency of Italy.

[4] Giufa, the Moon, the Robbers and the Cops.

[5] Giufa and the Red Beret. See the pictue of Beret above.

[6] Cassaro Street

[7] Giufa and the Wineskin

[8] Wineskin is a bag, usually of goatskin, for carrying wine and having a spiqot from which one drinks the wine.

[9] Eat Your Fill, My Fine Clothes.

[10] Giufa, Pull the Door After You.

[11] Manna – Manna was the famous Divine food which, according to Bible and Quran, God miraculously gave to Israelites during their journey in the desert – Exodus 16.

[12] Dry grapes and dry figs – see their picture above. In this picture, dark brown and maroon color pieces are of raisins and grapes. Yellow color pieces are of dry aapricots. White pieces are of dry banana.

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः  - रैवन की लोक कथाएँ,  इथियोपिया इटली की  ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

(क्रमशः अगले अंकों में जारी….)

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मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–9 : 6 जियूफ़ा // सुषमा गुप्ता
देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–9 : 6 जियूफ़ा // सुषमा गुप्ता
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