15 आजा मेरे थैले में कूद जा [1] इस बात को बहुत साल हो गये जब निओलो [2] के बंजर पहाड़ों में एक पिता अपने 12 बेटों के साथ रहता था। एक बार वहाँ...
15 आजा मेरे थैले में कूद जा[1]
इस बात को बहुत साल हो गये जब निओलो[2] के बंजर पहाड़ों में एक पिता अपने 12 बेटों के साथ रहता था।
एक बार वहाँ अकाल पड़ा तो पिता ने बेटों से कहा — “बच्चों, मैं अब तुम्हें रोटी नहीं खिला सकता। तुम लोग अब बाहर जाओ जहाँ मुझे पूरा विश्वास है कि तुम बजाय घर के वहाँ ज़्यादा खुश रहोगे।”
यह सुन कर उसके 11 बड़े बेटे तो घर छोड़ कर जाने के लिये तैयार हो गये पर उसका बारहवाँ बेटा जो सबसे छोटा था और लँगड़ा था रोने लगा। वह बोला — “मुझ जैसा अपंग आदमी बाहर की दुनियाँ में निकल कर क्या कमायेगा पिता जी।”
पिता बोला — “बेटा, रो नहीं। तुम भी अपने भाइयों के साथ जाओ और जो ये लोग कमायेंगे उसी में से ये तुमको भी देंगे।”
सो उसके बारहों बेटों ने आपस में एक दूसरे से वायदा किया कि वे एक साथ रहेंगे और वे वहाँ से चले गये।
वे सारा दिन चलते रहे। फिर दूसरे दिन भी चलते रहे। पर छोटा वाला हमेशा ही अपने लँगड़ेपन की वजह से उनसे सबसे पीछे रह जाता था।
तीसरे दिन सबसे बड़े भाई ने कहा — “हमारा यह सबसे छोटा भाई फ्रान्सिस[3] हमेशा ही पीछे रह जाता है। यह अब हमारे लिये एक परेशानी है।
हम लोग आगे आगे चल कर इसको यहीं पीछे सड़क पर छोड़ देते हैं। यह इसके लिये भी अच्छा रहेगा क्योंकि हो सकता है कि कभी कहीं से इसको कोई दयालु मिल जाये और इस पर दया करके इसको अपने साथ ले जाये।”
यह सोच कर वे सब अपने छोटे भाई का इन्तजार किये बिना ही आगे चल दिये। वे बोनीफ़ेसियो[4] पहुँचने तक रास्ते में जो भी मिला उसी से भीख माँगते चले गये।
बोनीफ़ेसियो पहुँच कर उनको एक नाव बन्दरगाह पर लगी हुई दिखायी दे गयी। नाव देख कर सबसे बड़ा भाई बोला — “क्या हो अगर हम इस नाव पर चढ़ जायें और सारडीनिया[5] चले जायें। हो सकता है कि वहाँ हमारे शहर से कम ज़ोर का अकाल हो।”
सो वे सब भाई उस नाव में चढ़े और उन्होंने नाव खे दी। जब वे खाड़ी के बीच में पहुँचे तो वहाँ एक भयानक तूफान आ गया। उस तूफान में नाव के टुकड़े टुकड़े हो गये और ग्यारहों भाई समुद्र में डूब गये।
इस बीच छोटा अपंग फ्रान्सिस चलते चलते बहुत थक गया। और जब उसने अपने भाइयों को अपने आस पास नहीं देखा तो वह चिल्लाने लगा, रोने लगा और पागल सा हो गया।
लेकिन वह क्या करता वह वहीं सड़क के किनारे ही बैठ गया। वह चलते चलते थक गया था सो बैठते ही सो गया।
उस जगह की परी वहीं एक पेड़ पर बैठी थी। वह सब कुछ देख रही थी। जैसे ही फ्रान्सिस सो गया वह पेड़ से नीचे उतरी। उसने कुछ खास तरह के पत्ते इकठ्ठे किये, उनकी पुल्टिस बनायी और फ्रान्सिस की लँगड़ी टाँग पर लगा दिया। उसकी टाँग तुरन्त ही ठीक हो गयी।
फिर उसने एक गरीब बुढ़िया का रूप रख लिया और एक आग जलाने वाली लकड़ी के गठ्ठर पर बैठ गयी। वहाँ बैठ कर वह उसके जागने का इन्तजार करने लगी।
कुछ देर बाद फा्रन्सिस जागा तो लँगड़ाते हुए उठा पर उसने देखा कि वह तो अब लँगड़ा नहीं था वह तो अब और दूसरों की तरह से ठीक से चल सकता था। तभी उसकी निगाह लकड़ी के गठ्ठर पर बैठी एक बुढ़िया पर पड़ी।
उसने उससे पूछा — “मैम, क्या आपने यहाँ आस पास में किसी डाक्टर को देखा?”
“डाक्टर, तुम्हें डाक्टर क्यों चाहिये?”
“मैं उसको धन्यवाद देना चाहता हूँ। क्योंकि जब मैं सो रहा था तो जरूर ही यहाँ कोई बड़ा डाक्टर आया होगा जिसने मेरी लँगड़ी टाँग ठीक कर दी।”
यह सुन कर वह बुढ़िया बोली — “वह मैं थी जिसने तुम्हारी टाँग ठीक की। क्योंकि मैं ऐसे बहुत सारे पत्तों के बारे में जानती हूँ जिनसे लँगड़ी टाँग भी ठीक की जा सकती है।”
यह सुन कर फ्रान्सिस बहुत खुश हो गया और उसने बुढ़िया के गले में अपनी बाँहें डाल दीं और उसके दोनों गाल चूम लिये।
“मैं आपको किस तरह से धन्यवाद दूँ मैम? मैं आपका यह लकड़ी का गठ्ठर ले चलता हूँ।”
कह कर वह उस लकड़ी के गठ्ठर को उठाने के लिये नीचे झुका पर जब वह ऊपर उठा तो उसने देखा कि वहाँ पर तो कोई बुढ़िया नहीं थी बल्कि वहाँ तो एक बहुत ही सुन्दर लड़की खड़ी थी। उसने हीरे जवाहरात पहने हुए थे और उसके सफेद बाल उसके कन्धे पर से कमर तक आ रहे थे।
उसने गहरे नीले रंग की सुनहरे तारों से कढ़ाई की गयी पोशाक पहन रखी थी। उसके जूतों पर टखने की जगहों पर दो चमकीले कीमती पत्थर लगे हुए थे। फ्रान्सिस तो कुछ बोल ही नहीं सका और उस परी के पैरों पर पड़ गया।
परी बोली — “उठो फ्रान्सिस उठो। मुझे मालूम है कि तुम मुझे धन्यवाद देना चाहते हो। मैं तुम्हारी सहायता करूँगी। तुम कोई सी दो इच्छाएं मुझे बताओ मैं उनको तुरन्त ही पूरा क़र दूँगी। ध्यान रखना कि मैं क्रेनो झील की परियों की रानी[6] हूँ।
लड़के ने कुछ सोचा फिर बोला — “मुझे एक ऐसा थैला चाहिये जिसको जब भी मैं जिसके लिये भी कहूँ कि तू उसे खींच ले तो वह उसे खींच ले।”
“तुमको ऐसा थैला मिल जायेगा। अब तुम अपनी दूसरी इच्छा बताओ।”
लड़का बोला — “मुझे एक ऐसी डंडी चाहिये जो वही करे जो मैं उससे करने के लिये कहूँ।”
“तुमको ऐसी डंडी भी मिल जायेगी।” कह कर वह परी गायब हो गयी और फ्रान्सिस के पैरों के पास एक थैला और एक डंडी पड़े हुए थे।
खुश होते हुए फ्रान्सिस ने उन दोनों चीज़ों को जाँचना चाहा। उसको इस समय भूख लगी थी सो वह बोला “एक भुना हुआ तीतर[7] मेरे थैले में”। उसके यह कहते के साथ ही एक पूरा भुना हुआ तीतर उसके थैले में आ पड़ा।
“रोटी भी।” और एक डबल रोटी आ कर थैले में गिर पड़ी। और “एक बोतल शराब भी।” और एक बोतल शराब भी उसके थैले में आ गयी। इस तरह फ्रान्सिस ने बहुत दिनों बाद पेट भर कर स्वादिष्ट खाना खाया।
अगले दिन वह मरियाना[8] आ गया जहाँ कोरसिका[9] और कौन्टीनैन्ट के बहुत मशहूर जुआ खेलने वाले मिलने के लिये आये हुए थे।
अब फ्रान्सिस के पास तो कोई पैसा था नहीं सो उसने कहा “100 हजार क्राउन मेरे थैले में आ जाओ।” और उसका थैला 100 हजार क्राउन के सिक्कों से भर गया।
यह खबर तो सारे मरियाना में जंगली आग की तरह फैल गयी कि मरियाना में सैन्टो फ्रान्सैस्को[10] से एक बहुत ही अमीर राजकुमार आया है। उसके पास एक ऐसा थैला है जो पैसों से कभी खाली नहीं होता। उस समय शैतान खास करके मरियाना की तरफ था।
उसने एक बहुत सुन्दर नौजवान का रूप रखा हुआ था और वह ताश के खेल में सबको हरा रहा था और जब वे हार जाते थे और उनका पैसा खत्म हो जाता था तो वह उनकी आत्मा खरीद लेता था।
इस अमीर परदेसी के बारे में सुन कर जो वहाँ के लोगों में सैन्टो फ्रान्सैस्को के नाम से मशहूर हो गया था वह शैतान इसके पास भी आया और बोला — “ओ भले राजकुमार, मुझे अपनी बहादुरी के लिये माफ करना पर जुआ खेलने वाले की हैसियत से तुम इतने मशहूर हो चुके हो कि मैं तुम्हारे साथ जुआ खेलने से अपने आपको रोक नहीं सका।”
फ्रान्सिस बोला — “तुम मुझे शरमिन्दा कर रहे हो। सच तो यह है कि मैं तो ताश का कोई खेल खेलना जानता ही नहीं। मैंने तो कभी ताश के पत्ते भी अपने हाथ में नहीं पकड़े। फिर भी मुझे तुम्हारे साथ ताश खेल कर बड़ी खुशी होगी।
मैं केवल तुमसे खेल सीखने के लिये खेलूँगा। और मुझे यकीन है कि तुम जैसे गुरू के साथ खेल सीख कर मैं खेल में मास्टर हो जाऊँगा।”
शैतान को लगा कि उसका उस राजकुमार से मिलना सफल हो गया सो जब वह वहाँ से चला तो वह उसको विदा कहने के लिये नीचे झुका तो जानबूझ कर उसने अपनी टाँग आगे बढ़ा कर अपना आधा खुर[11] उस राजकुमार को दिखा दिया।
“ओह मेरे भगवान।” फ्रान्सिस ने अपने आपसे कहा — “तो यह तो शैतान खुद था जिसने मेरे पास आ कर मुझे इज़्ज़त दी। अच्छा है, अब वह अपने बराबर वाले से मिलेगा।”
जब वह अकेला रह गया तो उसने थैले से बढ़िया खाना लाने के लिये कहा।
अगले दिन वह कसीनो[12] पहुँचा तोे देखा कि एक जगह पर बहुत सारे लोग बैठे हुए हैं। फ्रान्सिस उनके बीच से उनको धक्का देता हुआ उस भीड़ के अन्दर घुस गया। वहाँ जा कर उसने क्या देखा कि एक नौजवान नीचे पड़ा हुआ है और उसकी छाती से खून बह रहा है।
एक आदमी बोला — “यह आदमी जुआरी था। इसने बेचारे ने जुए में अपना सारा पैसा खो दिया और फिर एक मिनट पहले ही इसने अपने सीने में छुरा भौंक लिया।”
वहाँ बैठे सारे जुआरियों के चेहरे उतरे हुए थे पर फ्रान्सिस ने देखा कि उन सब दुखी लोगों के बीच में एक आदमी मुस्कुरा रहा था। वह आदमी वह शैतान था जो फ्रान्सिस से मिलने आया था।
शैतान बोला — “जल्दी करो। इस बदकिस्मत आदमी को यहाँ से बाहर निकालो और खेल चालू रखो।”
कुछ लोग उस आदमी के शरीर को वहाँ से उठा कर बाहर ले गये और दूसरे लोगों ने खेलने के लिये फिर से ताश के पत्ते उठा लिये।
फ्रान्सिस जिसको ताश के पत्ते हाथ में पकड़ने तक नहीं आते थे उस दिन अपना सब कुछ हार गया। दूसरे दिन उसको खेल का कुछ पता चला पर फिर भी वह पहले दिन से ज़्यादा हार गया। पर तीसरे दिन वह खेल का मास्टर हो गया पर उस दिन तो वह इतना ज़्यादा हारा कि लोगों को लगा कि आज तो वह बरबाद ही हो गया।
पर कोई भी नुकसान उसके लिये ज़्यादा नहीं था और वह नुकसान उसको परेशान भी नहीं कर रहा था क्योंकि उसके पास तो उसका थैला था जिसमें से वह चाहे जितना पैसा निकाल सकता था।
पिछले तीन दिनों में वह इतना हार चुका था कि शैतान ने सोचा कि जरूर ही वह दुनियाँ का सबसे अमीर आदमी होगा तभी तो वह इतना हार चुका था और उसके माथे पर शिकन तक नहीं थी।
पर वह भी इस बात पर तुला हुआ था कि वह उसको कंगाल बना कर ही छोड़ेगा।
वह फ्रान्सिस को एक तरफ ले गया और उससे बोला — “ओे भले राजकुमार, मंै तुमको बता नहीं सकता कि मैं तुम्हारी इस बदकिस्मती पर कितना दुखी हूँ पर फिर भी मेरे पास तुम्हारे लिये एक खुशखबरी है। तुम मेरी बात को ध्यान से सुनोगे तो जितना तुमने खोया है उसमें से कम से कम आधा तो तुम वापस ले ही लोगे।”
फ्रान्सिस ने पूछा — “कैसे?”
शैतान ने इधर उधर देखा और उसके कान में फुसफुसाया — “तुम अपनी आत्मा मुझे बेच दो।”
फ्रान्सिस बोला — “आह, सो मेरे लिये तुम्हारी यह सलाह है ओ शैतान? चलो तो मेरे थैले में कूद जाओ।”
यह सुन कर शैतान ने वहाँ से भागने की कोशिश की पर वह उस थैले से तो बच नहीं सकता था। वह सिर के बल उस थैले में गिर पड़ा।
फ्रान्सिस ने थैला बन्द किया और अपनी डंडी से बोला — “अब इसकी अच्छी तरह से पिटायी करो।” बस उसकी डंडी ने शैतान की ज़ोर ज़ोर से पिटायी करनी शुरू कर दी।
शैतान का शरीर मरोड़ खाने लगा, वह चिल्लाने लगा, फ्रान्सिस को गालियाँ देने लगा — “मुझे इस थैले में से निकालो। इस डंडी को रोको। तुम तो मुझे मार ही डालोगे।”
“क्या सचमुच में? तुम यहीं मरोगे। बस वही तुम्हारे लिये सबसे बड़ा नुकसान होगा?” और वह डंडी उसको पीटती रही।
तीन घंटे की पिटायी के बाद फ्रान्सिस बोला — “आज के लिये तुम्हारे लिये बस इतना ही काफी है।”
शैतान ने बड़ी कमजोर आवाज में पूछा — “मुझे यहाँ से आजाद करने की तुम क्या कीमत लोगे?”
“तुम ध्यान से मेरी बात सुनो। अगर तुम अपनी आजादी चाहते हो तो तुम उन सब आत्माओं को छोड़ दो जिन्होंने तुम्हारी वजह से आत्महत्या की है।”
“ठीक है सौदा पक्का रहा।”
“तब बाहर आ जाओ। पर साथ में यह भी याद रखना कि अगर तुमने कुछ भी गड़बड़ी की तो मैं तुमको किसी भी समय जब भी मैं चाहूँ फिर से पकड़ सकता हूँ।”
शैतान तो अपने वायदे से वापस जाने की हिम्मत ही नहीं कर सकता था। वह तुरन्त ही जमीन के नीचे जा कर गायब हो गया और तुरन्त ही कुछ लोगों को ले कर बाहर आ गया। उन सबके चेहरे पीले पड़े हुए थे और उनकी आँखें बीमार जैसी लग रही थीं।
फ्रान्सिस उन लोगों से बोला — “दोस्तों, तुम लोगों ने अपने आपको जुआ खेल कर बरबाद कर लिया था और फिर तुम्हारे पास अपने आपको मारने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रह गया था।
मैं तुम लोगों को इस बार तो वापस ले आया पर अगली बार शायद मैं ऐसा न कर सकूँ इसलिये तुम लोग मुझसे वायदा करो कि तुम लोग अब से जुआ नहीं खेलोगे।”
सब लोग एक आवाज में बोले — हाँ हाँ हम वायदा करते हैं कि हम आज से जुआ नहीं खेलेंगे।”
“बढ़िया। लो तुम सब लोग एक एक हजार क्राउन लो और शान्ति से अपने अपने घर जाओ और ईमानदारी से अपनी रोटी कमाओ खाओ।”
वे नौजवान खुश हो कर वहाँ से चले गये। कुछ के परिवार उनकी मौत पर रो रहे थे, कुछ लोग अपने माता पिता के बुरे कामों की वजह से उनकी मौत पर दुखी थे।
यह देख कर फ्रान्सिस को अपने बूढ़े पिता की याद आ गयी सो वह भी अपने गाँव चल दिया। रास्ते में उसको एक लड़का मिला जो बड़ी नाउम्मीदी में अपने हाथ मल रहा था।
फ्रान्सिस ने उससे पूछा — “क्या बात है नौजवान कैसे हो? क्या तुम ये दुखी चेहरे ही बेचते हो? एक दर्जन ऐसे चेहरे कितने के दोगे?”
लड़का बोला — “मैं हँस नहीं सकता। मैं क्या करूँ।”
“क्यों क्या बात है।”
लड़का बोला — “मेरे पिता एक लकड़हारे का काम करते हैं और वह अकेले ही परिवार का पालन पोषण करते हैं। आज सुबह वह एक चेस्टनट के पेड़ से गिर पड़े। इससे उनकी एक बाँह टूट गयी है।
मैं डाक्टर को बुलाने के लिये शहर दौड़ा गया पर क्योंकि हम गरीब हैं। मैं उसको पैसे नहीं दे सकता था सो उसने आने से मना कर दिया।”
“क्या इसी वजह से तुम दुखी हो रहे हो। शान्त हो जाओ। चलो मेरे साथ चलो मैं देखता हूँ।”
“क्या आप डाक्टर है?”
“नहीं मैं तो डाक्टर नहीं हूँ पर मैं उस डाक्टर को बुला सकता हूँ जिसने तुमको आने से मना कर दिया। क्या नाम है उस डाक्टर का?”
“डाक्टर पैनक्रेज़ियो[13]।”
“ठीक है। डाक्टर पैनक्रेज़ियो, आओ मेरे थैले में कूद जाओ।” उसी समय वह डाक्टर उसके थैले में अपने सब औजारों के साथ आ गया।
फिर फ्रान्सिस बोला — “ओ डंडी अपनी पूरी ताकत के साथ इसको पीटो।” बस उस डंडी ने उस डाक्टर को अपनी पूरी ताकत के साथ पीटना शुरू कर दिया।
कुछ देर बाद फ्रान्सिस ने उस डाक्टर से पूछा — “क्या तुम इस लड़के के पिता का इलाज बिना कोई पैसा लिये करोगे?”
“जो भी आप कहें।”
“तो ठीक है थैले से बाहर आ जाओ।” बाहर आते ही डाक्टर उस लकड़हारे के घर की तरफ भाग गया।
फ्रान्सिस फिर अपने रास्ते चल दिया और कुछ ही दिनों में अपने गाँव आ पहुँचा। वहाँ तो अब पहले से भी ज़्यादा लोग भूखे मर रहे थे।
वह अपने थैले से बार बार कहता रहा — “भुना हुआ मुर्गा और शराब की बोतल थैले में कूद जा।”
फ्रान्सिस ने उस थैले से गाँव के सब लोगों को खूब खाना खिलाया और सब लोगों ने बहुत दिन बाद बिना पैसे के इतना स्वादिष्ट खाना खाया।
वह यह सब उन लोगों के लिये तब तक करता रहा जब तक वहाँ अकाल चला। जब वहाँ की दशा कुछ सुधर गयी तब उसने वह सब बन्द कर दिया क्योंकि इससे लोगों का आलसीपन बढ़ता था।
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पर क्या तुम सोचते हो कि वह खुश था? नहीं। वह अपने 11 भाइयों की कोई खबर न मिलने पर बहुत दुखी था। वह बहुत दिनों से उनको भूला हुआ था क्योंकि वे उसको उस अपंग हालत में अकेला छोड़ कर भाग गये थे।
फिर उसने उनको बुलाने की कोशिश की — “भाई जौन आ मेरे थैले में कूद जा।”
उसके यह कहते ही उसके थैले में कुछ हिला। फ्रान्सिस ने उसको खोला तो उसमें उसको हड्डियों का एक ढेर मिला।
फिर वह बोला — “भाई पौल आ मेरे थैले में कूद जा।” फिर एक और हड्डियों का ढेर थैले में आ पड़ा।
इस तरह उसने अपने ग्यारहों भाइयों के नाम ले ले कर उनको अपने थैले में बुलाया पर हर बार एक हड्डियों का ढेर उस थैले में आ कर गिर जाता। अब उसको कोई शक नहीं था कि उसके सारे भाई एक साथ ही मर गये थे।
यह देख कर फ्रान्सिस बहुत दुखी था। उसका पिता भी उसको अकेला छोड़ कर मर गया था। अब बूढ़े होने की उसकी बारी थी।
अब उसकी बस एक ही आखिरी इच्छा थी कि वह क्रेनो झील की परियों की रानी को एक बार फिर से देख ले जिसने उसको इतना अमीर बनाया था।
सो वह उसी जगह चल दिया जहाँ वह उसको पहली बार मिला था। वह वहाँ इन्तजार करता रहा करता रहा पर वह परी नहीं आयी।
वह बड़ी प्रार्थना भरी आवाज में बोला — “कहाँ हो तुम ओ परियों की रानी। मेहरबानी करके तुम एक बार मेरे सामने और आओ। मैं तुमको फिर से देखे बिना तो मर भी नहीं सकता।”
रात होने लगी थी और परी के आने का उसको कोई संकेत भी दिखायी नही दे रहा था बल्कि उसने देखा कि परी की जगह तो उसके सामने से उसकी मौत चली आ रही थी।
उसके एक हाथ में काला झंडा था और दूसरे हाथ में उसका हल जैसा पेड़ काटने वाला एक औजार था।
वह फ्रान्सिस के पास आयी और बोली — “ओ बूढ़े, क्या तुम अपनी ज़िन्दगी से थक नहीं गये हो? क्या तुम पहाड़ों पर काफी नहीं चढ़ लिये हो? क्या तुमने दुनियाँ के सारे काम काफी नहीं कर लिये हैं और क्या तुम अब मेरे साथ आने के लिये तैयार नहीं हो?”
बूढ़े फ्रान्सिस ने कहा — “ओ मौत। भगवान तुमको बनाये रखे। तुम ठीक कहती हो। मैने दुनियाँ में बहुत कुछ देख लिया बल्कि हर चीज़ देख ली है। मैं सब चीज़ों से सन्तुष्ट हो गया हूँ पर तुम्हारे साथ आने से पहले मैं किसी को विदा कहना चाहता हूँ। मेहरबानी करके मुझे एक दिन की मोहलत और दो।”
“अगर तुम किसी नास्तिक की तरह से मरना नहीं चाहते तो तुम अपनी प्रार्थना कर लो और फिर जल्दी से मेरे पीछे पीछे आ जाओ।”
“मेहरबानी करके सुबह जब तक मुर्गा बोलता है मुझे तब तक की मोहलत दे दो।”
“नहीं।”
“अच्छा तो एक घंटा और, बस।”
“एक मिनट भी ज़्यादा नहीं।”
फ्रान्सिस बोला — “क्योंकि तुम इतनी बेरहम हो तो आओ मेरे थैले में कूद जाओ।”
मौत डर के मारे काँप गयी। उसकी सारी हड्डियाँ चरचरा उठीं और वह फ्रान्सिस के थैले में जा कर गिर पड़ी।
उसी समय वह क्रेनो झील की परियों की रानी वहाँ प्रगट हो गयी। वह अभी भी उतनी ही शानदार लग रही थी जितनी वह तब लग रही थी जब वह उसको पहली बार मिली थी।
फ्रान्सिस बोला — “मैं तुम्हारा बहुत कृतज्ञ हूँ ओ परियों की रानी।”
फिर वह मौत से बोला — “मेरा काम हो गया अब तुम मेरे थैले में से बाहर निकल जाओ और मुझे ले चलो।”
परी बोली — “फ्रान्सिस तुमने कभी भी अपनी उन ताकतों का गलत इस्तेमाल नहीं किया जो मैंने तुमको दी थीं। तुमने हमेशा ही अपने थैले और डंडी का बहुत अच्छा इस्तेमाल किया। अगर तुम मुझे अपनी कोई इच्छा बताओ तो इस समय मैं तुम्हारी वह इच्छा भी पूरी करूँगी।”
फ्रान्सिस बोला — “नहीं, अब मेरी कोई इच्छा नहीं है।”
“क्या तुम सरदार बनना चाहते हो?”
“नहीं।”
“क्या तुम राजा बनना चाहते हो?”
“नहीं, मुझे कुछ नहीं चाहिये।”
परी ने फिर पूछा — “अब क्योंकि तुम बूढ़े हो गये हो क्या तुम को तन्दुरुस्ती और जवानी चाहिये?”
“अब मैंने तुमको देख लिया है तो अब मैं शान्ति से मरने के लिये तैयार हूँ।”
“अच्छा विदा फ्रान्सिस। पर मरने से पहले यह थैला और यह डंडी जला दो।” और यह कह कर परी गायब हो गयी।
फ्रान्सिस ने एक बड़ी सी आग जलायी। कुछ देर के लिये अपने शरीर को गरम किया और अपना थैला और डंडी उस आग में फेंक दी ताकि उनका कोई गलत इस्तेमाल न कर सके।
अब तक मौत एक झाड़ी के पीछे छिपी हुई खड़ी थी। सुबह हो गयी थी। मुर्गा चिल्लाया — “कुँकड़ू कू।” पर फ्रान्सिस उसकी आवाज नहीं सुन सका क्योंकि मौत ने उसको बहरा कर दिया था।
मौत बोली — “देखो मुर्गा बोल रहा है।”
कह कर उसने अपने औजार से उसको मारा और उसके मरे हुए शरीर को अपने साथ ले कर वहाँ से चली गयी।
देश विदेश की लोक कथाओं की सीरीज़ में प्रकाशित पुस्तकें —
36 पुस्तकें www.Scribd.com/Sushma_gupta_1 पर उपलब्ध हैं।
Write to :- E-Mail : hindifolktales@gmail.com
1 नाइजीरिया की लोक कथाएं–1
2 नाइजीरिया की लोक कथाएं–2
3 इथियोपिया की लोक कथाएं–1
4 रैवन की लोक कथाएं–1
नीचे लिखी हुई पुस्तकें ई–मीडियम पर सोसायटी औफ फौकलोर, लन्दन, यू के, के पुस्तकालय में उपलब्ध हैं।
Write to :- E-Mail : thefolkloresociety@gmail.com
1 ज़ंज़ीबार की लोक कथाएं — 10 लोक कथाएं — सामान्य छापा, मोटा छापा दोनों में उपलब्ध
2 इथियोपिया की लोक कथाएं–1 — 45 लोक कथाएं — सामान्य छापा, मोटा छापा दोनों में उपलब्ध
नीचे लिखी हुई पुस्तकें हार्ड कापी में बाजार में उपलब्ध हैं।
To obtain them write to :- E-Mail drsapnag@yahoo.com
1 रैवन की लोक कथाएं–1 — इन्द्रा पब्लिशिंग हाउस
2 इथियोपिया की लोक कथाएं–1 — प्रभात प्रकाशन
3 इथियोपिया की लोक कथाएं–2 — प्रभात प्रकाशन
नीचे लिखी पुस्तकें रचनाकार डाट आर्ग पर मुफ्त उपलब्ध हैं जो टैक्स्ट टू स्पीच टैकनोलोजी के द्वारा दृष्टिबाधित लोगों द्वारा भी पढ़ी जा सकती हैं।
1 इथियोपिया की लोक कथाएं–1
http://www.rachanakar.org/2017/08/1-27.html
2 इथियोपिया की लोक कथाएं–2
http://www.rachanakar.org/2017/08/2-1.html
3 रैवन की लोक कथाएं–1
http://www.rachanakar.org/2017/09/1-1.html
4 रैवन की लोक कथाएं–2
http://www.rachanakar.org/2017/09/2-1.html
5 रैवन की लोक कथाएं–3
http://www.rachanakar.org/2017/09/3-1-1.html
6 इटली की लोक कथाएं–1
http://www.rachanakar.org/2017/09/1-1_30.html
7 इटली की लोक कथाएं–2
http://www.rachanakar.org/2017/10/2-1.html
http://www.rachanakar.org/2017/10/3-1.html
9 इटली की लोक कथाएं–4
http://www.rachanakar.org/2017/10/4-1.html
http://www.rachanakar.org/2017/10/5-1-italy-lokkatha-5-seb-wali-ladki.html
11 इटली की लोक कथाएं–6
http://www.rachanakar.org/2017/11/6-1-italy-ki-lokkatha-billiyan.html
12 इटली की लोक कथाएं–7
नीचे लिखी पुस्तकें जुगरनौट डाट इन पर उपलब्ध हैं
1 सोने की लीद करने वाला घोड़ा और अन्य अफ्रीकी लोक कथाएं
https://www.juggernaut.in/books/8f02d00bf78a4a1dac9663c2a9449940
2 असन्तुष्ट लड़की और अन्य अमेरिकी लोक कथाएं
https://www.juggernaut.in/books/2b858afc522c4016809e1e7f2f4ecb81
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Updated on Sep 27, 2017
लेखिका के बारे में
सुषमा गुप्ता का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में सन् 1943 में हुआ था। इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र और अर्थ शास्त्र में ऐम ए किया और फिर मेरठ विश्वविद्यालय से बी ऐड किया। 1976 में ये नाइजीरिया चली गयीं। वहाँ इन्होंने यूनिवर्सिटी औफ़ इबादान से लाइबे्ररी साइन्स में ऐम ऐल ऐस किया और एक थियोलोजीकल कौलिज में 10 वर्षों तक लाइब्रेरियन का कार्य किया।
वहाँ से फिर ये इथियोपिया चली गयीं और वहाँ एडिस अबाबा यूनिवर्सिटी के इन्स्टीट्यूट औफ़ इथियोपियन स्टडीज़ की लाइब्रेरी में 3 साल कार्य किया। तत्पश्चात इनको दक्षिणी अफ्रीका के एक देश. लिसोठो के विश्वविद्यालय में इन्स्टीट्यूट औफ़ सदर्न अफ्रीकन स्टडीज़ में 1 साल कार्य करने का अवसर मिला। वहाँ से 1993 में ये यू ऐस ए आ गयीं जहाँ इन्होंने फिर से मास्टर औफ़ लाइब्रेरी एंड इनफौर्मेशन साइन्स किया। फिर 4 साल ओटोमोटिव इन्डस्ट्री एक्शन ग्रुप के पुस्तकालय में कार्य किया।
1998 में इन्होंने सेवा निवृत्ति ले ली और अपनी एक वेब साइट बनायी – www.sushmajee.com। तब से ये उसी वेब साइट पर काम कर रहीं हैं। उस वेब साइट में हिन्दू धर्म के साथ साथ बच्चों के लिये भी काफी सामग्री है।
भिन्न भ्िान्न देशों में रहने से इनको अपने कार्यकाल में वहाँ की बहुत सारी लोक कथाओं को जानने का अवसर मिला – कुछ पढ़ने से, कुछ लोगों से सुनने से और कुछ ऐसे साधनों से जो केवल इन्हीं को उपलब्ध थे। उन सबको देख कर इनको ऐसा लगा कि ये लोक कथाएं हिन्दी जानने वाले बच्चों और हिन्दी में रिसर्च करने वालों को तो कभी उपलब्ध ही नहीं हो पायेंगी – हिन्दी की तो बात ही अलग है अंग्रेजी में भी नहीं मिल पायेंगीं।
इसलिये इन्होंने न्यूनतम हिन्दी पढ़ने वालों को ध्यान में रखते हुए उन लोक कथाओं को हिन्दी में लिखना पा्ररम्भ किया। इन लोक कथाओं में अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी अमेरिका के देशों की लोक कथाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों की भी कुछ लोक कथाएं सम्मिलित कर ली गयी हैं।
अभी तक 1200 से अधिक लोक कथाएं हिन्दी में लिखी जा चुकी है। इनको “देश विदेश की लोक कथाएं” क्रम में प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है। आशा है कि इस प्रकाशन के माध्यम से हम इन लोक कथाओं को जन जन तक पहुँचा सकेंगे।
विंडसर, कैनेडा
मई 2016
[1] Jump into My Sack (Story No 200) – a folktale from Italy from its Corsica area.
Adapted from the book : “Italian Folktales”, by Italo Calvino. Translated by George Martin in 1980.
[2] Niolo – name of a place in Italy
[3] Francis – name of the 12th and the youngest brother
[4] Bonifacio – name of a plce in Italy
[5] Sardinia – name of a place in Italy
[6] Queen of the Fairies of Lake Creno
[7] Translated for the word “Partridge”. See its picture above.
[8] Mariana – name of a place in Italy
[9] Corsica – name of a place in Italy
[10] Santo Francesco – name of a place and the name of Francisco too, Francis got famous in Mariana town
[11] Translated for the word “Cloven Hoof”. It seems that is the mark of a Satan in Italy.
[12] Casino where people go for gambling
[13] Pancrazio – name of the Doctor
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः - रैवन की लोक कथाएँ, इथियोपिया व इटली की ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.
(समाप्त)
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