देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–9 : 11 ननों की कौनवैन्ट और साधुओं की मोनैस्टरी // सुषमा गुप्ता

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11 ननों की कौनवैन्ट और साधुओं की मोनैस्टरी [1] एक बार एक दरजी था जिसकी एक बहुत ही सुन्दर बेटी थी जिसका नाम था जीनी [2] । वह सुन्दर होने के स...

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11 ननों की कौनवैन्ट और साधुओं की मोनैस्टरी[1]

एक बार एक दरजी था जिसकी एक बहुत ही सुन्दर बेटी थी जिसका नाम था जीनी[2]। वह सुन्दर होने के साथ पढ़ी लिखी भी थी। वहीं उसके घर के पास में एक नौजवान भी रहता था जिसका नाम था जौनी[3]

जौनी जीनी की सुन्दरता से इतना प्रभावित था कि वह हमेशा उसके पीछे पीछे घूमता रहता था और जीनी के पास उससे बचने का कोई रास्ता नहीं था।

जब वह जौनी की इन हरकतों से तंग आ गयी तो एक दिन उसने अपनी सहेलियों से कहा — “क्या हम लोगों को कोई कौनवैन्ट[4] नहीं ढूँढ लेना चाहिये जहाँ हम लोग सुरक्षित रह सकें?”

उसकी सहेलियाँ बोलीं — “हाँ, शायद हम लोगों को ऐसा ही करना चाहिये।”

जीनी की ये सहेलियाँ राजाओं की, नाइट्स[5] की और कुलीन लोगों की बेटियाँ थीं। इन सबने जा कर अपने अपने पिताओं से कहा — “पिता जी, हम लोग एक कौनवैन्ट बनाने जा रहे हैं।”

पिता बोले — “क्या तुम लोग केवल अपने लिये एक कौनवैन्ट बनाओगी?”

पर इन लड़कियों के इरादे पक्के थे सो उन्होंने शहर से दूर एक जगह देखी, अपने साथ काफी खाना पीना लिया और ये सारी 12 लड़कियाँ वहाँ कौनवैन्ट में जा कर रहने लगीं। जीनी को उन्होंने अपना ऐबैस[6] बना लिया।

अब जौनी जो जीनी को बहुत प्यार करता था उसने अपने दोस्तों से कहा — “मैंने जीनी को बहुत दिनों से नहीं देखा। कहाँ हो सकती है वह?”

वे बोले — “यह तुम हमसे पूछ रहे हो? यह तो हमसे ज़्यादा तुमको मालूम होना चाहिये।”

जौनी बोला — “मुझे नहीं मालूम कहाँ है वह। अब क्योंकि मेरी प्रेमिका खो गयी है तो मैं तो साधु[7] बन जाऊँगा। क्यों न हम एक मोनैस्टरी बना लें? क्या विचार है?”

सबने हाँ कर दी सो उन्होंने भी एक मोनैस्टरी बना ली। उनकी यह मोनैस्टरी लड़कियों के कौनवैन्ट के पास ही थी। वे सब जल्दी ही उस मौनेस्टरी में चले गये।

एक रात ननों की कौनवैन्ट में खाने का सामान खत्म हो गया। ऐबैस जीनी खाने के सामान की देखभाल करती थी। उसने खिड़की से बाहर झाँका तो उसे दूर एक रोशनी चमकती दिखायी दी सो वह कुछ खाना पीना पाने की आशा में उधर की तरफ ही चल दी।

वह रोशनी एक घर से आ रही थी। वहाँ पहुँच कर उसने उस घर का दरवाजा खटखटाया तो किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। जब वहाँ उसे कोई जवाब नहीं मिला तो उसने दरवाजा देखा तो वह खुला था सो वह उस घर के अन्दर घुस गयी। पर उसको यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि घर के अन्दर तो कोई भी नहीं था।

पर वहाँ 12 आदमियों के लिये एक खाने की मेज लगी थी – 12 प्लेटें, 12 गिलास, 12 चम्मचें, 12 काँटे, 12 नैपकिन और 12 बड़े कटोरे मैकेरोनी[8] से भरे।

जीनी ने मैकेरोनी के वे 12 बड़े कटोरे अपनी टोकरी में रखे और अपने कौनवैन्ट की तरफ चल दी। कौनवैन्ट पहुँच कर उसने वे 12 कटोरे अपनी खाने की मेज पर रखे और खाने की घंटी बजा दी। सब लड़कियाँ आ गयीं और जीनी ने सबको एक एक कटोरा मैकेरोनी दे दी।

यह घर जहाँ से जीनी ने मैकेरोनी के कटोरे लिये थे वे उन 12 लड़कों की मोनैस्टरी थी। जब वे लड़के घर लौटे तो उन्होंने देखा कि उनकी खाने की मेज पर से तो मैकेरोनी के कटोरे गायब थे।

तो उनका फादर सुपीरियर[9] जौनी बोला — “यह कौन मैना है जो हमारा शाम का खाना ले गयी है। कल को किसी को इस मेज का पहरा देना पड़ेगा।”

सो अगली रात जौनी ने एक लड़के को यह देखने के लिये मौनेस्टरी में छोड़ दिया कि वह यह देखे कि हमारा खाना कौन चुरा कर ले गया।

जौनी ने उससे कहा कि जब तुम चोर को देखो तो बस सीटी बजा देना। जैसे ही हम तुम्हारी सीटी की आवाज सुनेंगे हम सब दौड़े आ जायेंगे। और हाँ देखना सो नहीं जाना।

पर वह साधु तो बहुत जल्दी ही गहरी नींद सो गया। जीनी उस दिन फिर आयी और फिर उसने मेज पर 12 कटोरे मैकेरोनी रखी देखी। उसने फिर चारों तरफ देखा तो उसको सोता हुआ एक साधु दिखायी दिया।

उससे उसको कोई खतरा महसूस नहीं हुआ सो उसने बारहों कटोरे उठा कर अपनी टोकरी में रख लिये। फिर उसने एक बरतन लिया और उसमें से तेल निकाल कर उस सोते हुए साधु के मुँह पर मल दिया और वहाँ से चली आयी।

वह कौनवैन्ट पहुँची और वहाँ के दरवाजे की घंटी बजायी। दरवाजा खुला, वह अन्दर गयी और सबने मिल कर भर पेट खाना खाया।

जब फादर सुपीरियर ने उस साधु का काला चेहरा देखा तो बोला — “तुम तो बड़े अच्छे चौकीदार निकले।”

अगली रात एक और साधु को पहरे पर तैनात किया गया पर वह भी सो गया और जब वह जागा तो उनके मैकेरोनी के भी सब कटोरे जा चुके थे और उस पहरेदार का मुँह भी काला था।

यह सब 11 रात तक चलता रहा। हर रात एक नया साधु पहरे पर तैनात किया जाता, हर रात वह सो जाता, हर रात उनके मैकेरोनी के कटोरे गायब हो जाते और हर सुबह उस साधु का मुँह काला मिलता।

12वीं रात को फादर सुपीरियर जौनी ने खुद पहरा देने का निश्चय किया। जौनी ने सोने का बहाना किया और एक तरफ को बैठ गया ताकि वह सब देख सके।

उस दिन भी जीनी आयी और 12 मैकेरोनी के कटोरे अपनी टोकरी में भर कर ले जाने लगी तो वह उस पहरेदार का मुँह काला करने के लिये भी आयी।

जैसे ही उसने तेल ले कर उसका मुँह काला करना चाहा कि जौनी उठ खड़ा हुआ और बोला — “रुको, आज तुम यह सब यहाँ से नहीं ले जा सकतीं। मैं तुमको हाथ भी नहीं लगाऊँगा अगर तुम मुझे वे 11 नन ला कर दे दो तो।”

जीनी बोली — “ठीक है पर एक शर्त पर। तुम उनका बाल भी बाँका नहीं करोगे।”

“पक्का वायदा।”

ऐबैस जीनी अपने मैकेरोनी के कटोरे ले कर कौनवैन्ट लौट गयी। वहाँ सबने खाना खाया। फिर वह बोली — “मेरी बहिनों सुनो। आज हमको साधुओं की मोनैस्टरी जाना पड़ेगा।”

सबने एक साथ पूछा — “वहाँ वे हमारा क्या करेंगे?”

जीनी ने उनको विश्वास दिलाया — “उन्होंने मुझसे वायदा किया है कि वे हमको कोई नुकसान नहीं पहुँचायेंगे इसलिये तुम लोग डरो नहीं।”

सो खाना खा कर वे सब मौनेस्टरी चल दीं और वहाँ जा कर कहा — “हमको यहाँ एक कमरा चाहिये जहाँ हम रह सकें।”

फादर सुपीरियर ने उनको एक कमरा दिखा दिया जहाँ 12 पलंग पड़े हुए थे। वे सब वहाँ सोने चली गयीं।

जब दूसरे साधु लौटे तो उन सबका खाना जा चुका था। वे बोले — “अरे यह क्या? फादर भी हमारा खाना नहीं बचा सके?”

फादर सुपीरियर ने कहा — “चुप रहो। हमने उस चोर मैना को पकड़ लिया है जो तुम सबका मुँह काला करके चली गयी थी।”

“क्या तुम ठीक कह रहे हो?”

फादर सुपीरियर जौनी बोला — “हाँ और उसके साथ 11 और भी हैं। और अब वे सब हमारे लिये मैकेरोनी पकायेंगी।”

यह कह कर वह गया और ननों के कमरे का दरवाजा खटखटाया और कहा — “उठो और हमारे लिये मैकेरोनी पकाओ।”

ऐबैस जीनी ने कहा — “मेरी नन बिना संगीत के खाना नहीं बना सकतीं।”

साधु बोले — “ठीक है हम उनके लिये संगीत बजायेंगे।”

clip_image004उस समय हालाँकि सारे साधु भूखे थे फिर भी उन्होंने बिगुल बजाने शुरू किये। किसी ने वायलिन[10] बजाया, किसी ने ड्रम बजाया

पर उस समय में बजाय रात का खाना बनाने के सब ननों ने अपने अपने गद्दे नीचे खिड़की से बाहर फेंक दिये और चादरें खिड़की से बाँध कर नीचे गद्दों पर कूद गयीं। घर का दरवाजा बाहर से बन्द किया और अपने कौनवैन्ट भाग गयीं।

इस बीच वे भूखे साधु घर के अन्दर बिगुल, वायलिन, ड्रम आदि बजाते रहे। कुछ देर बाद वे बोले — “अरे इतनी देर हो गयी मैकेरोनी का क्या हुआ? क्या वह अभी तक नहीं पकी?”

उन्होंने जा कर ननों के कमरे का दरवाजा खटखटाया तो उनको वहाँ से कोई जवाब नहीं मिला। उन्होंने दरवाजा तोड़ दिया। उन्होंने देखा कि कमरा तो खाली था। न उसमें गद्दे थे, न चादरें थीं और न एक भी नन।

सब साधु एक साथ बोले — “उन्होंने हमारे साथ चाल खेली हमें उनकी इस चाल का जवाब देना पड़ेगा।”

अगले दिन उन्होंने एक बक्सा[11] बनवाया और उसमें उन्होंने अपने फादर सुपीरियर जौनी को बन्द कर दिया। वे सब उस बक्से को ले कर ननों के कौनवैन्ट गये और रात होने तक बाहर छिपे रहे।

रात होने पर एक साधु उस बक्से को कौनवैन्ट के दरवाजे तक घसीटता हुआ ले गया। वहाँ का दरवाजा खटखटाया और बोला — “क्या आप हमारे इस बक्से को रात भर के लिये रख लेंगी?”

उन्होंने हाँ कर दी तो वह साधु उस बक्से को कौनवैन्ट के अन्दर छोड़ आया।

पर ऐबैस को कुछ दाल में काला लगा तो उसने सोचा कि बस अब यह खेल खत्म। खाने की मेज पर उसने अपनी सहेलियों से कहा — “बहिनों, पता नहीं यहाँ कब क्या हो जाये पर डरो नहीं।”

तभी जौनी बक्से में से निकला और ऊपर पहुँच कर खाने के कमरे का दरवाजा खटखटाया।

ननों ने पूछा — “कौन है?”

जौनी बोला — “दरवाजा खोलो।”

एक नन ने दरवाजा खोला और फादर सुपीरियर अन्दर आये।

नन ने कहा — “गुड ईवनिंग फादर। आप बैठें और इसे अपना ही घर समझें।”

फादर सुपीरियर जौनी बैठ गया और उसने उनके साथ खाना खाया। खाते समय वह उनसे इधर उधर की बातें भी करता रहा। जब खाना खत्म हो गया तो उसने अपनी जेब से एक बोतल निकाली और उन सब ननों को देते हुए कहा — “आप लोग यह पियें।”

उन सब ननों ने उस बोतल में से एक एक घूँट पी पर ऐबैस ने अपना गिलास पास में ही फेंक दिया इसलिये सारी नन तो सो गयीं पर ऐबैस जीनी ने सोने का केवल बहाना ही किया।

जौनी ने जब देखा कि सब नन सो गयीं तो उसने उन सारी ननों के कमर में रस्सियों बाँध दीं ताकि वह उन सबको खिड़की के रास्ते नीचे उतार सके। फिर वह खिड़की के पास गया और अपने साथी साधुओं को बुलाया।

पर जीनी उसके पीछे पीछे पहुँच गयी और जैसे ही वह साधुओं को बुलाने के लिये खिड़की पर झुका उसने उसके पैर पकड़ कर उसको खिड़की के बाहर फेंक दिया। बेचारा जौनी सिर के बल जमीन पर गिर पड़ा।

फिर जीनी ने अपनी सहेलियों को जगाया और कहा — “उठो जल्दी करो, हमें यहाँ से बहुत जल्दी बाहर निकलना है। हम अपने अपने पिताओं को लिखेंगे कि वे हमें यहाँ से बुलवा लें। हम लोग अब नन बन कर थक चुके हैं।”

उसके बाद वे सब नन अपने अपने घर चली गयीं। उधर साधुओं ने भी मोनैस्टरी छोड़ दी और वे भी अपने अपने घर चले गये।

पर जौनी ने जीनी से प्यार करना नहीं छोड़ा। अपने सिर पर पट्टियाँ बाँधे वह जीनी के पिता के पास गया और उससे कहा कि वह उसकी बेटी से शादी करना चाहता है। काफी ना नुकुर के बाद जीनी जौनी से शादी करने के लिये राजी हो गयी।

शादी से पहले उसने अपने साइज़ की चीनी की एक गुड़िया बनवायी और शादी की रात उसने अपने पति से कहा — “यह मोमबत्ती बुझा दो क्योंकि कौनवैन्ट मे रहते रहते अब मुझे अ‍ँधेरे में सोने की आदत हो गयी है।” जौनी ने मोमबत्ती बुझा दी।

जब अ‍ँधेरा हो गया तो वह अपने सोने के कमरे में गयी और उसने अपने बिस्तर में तो वह चीनी की गुड़िया लिटा दी और वह खुद पलंग के नीचे लेट गयी। वहाँ से वह उस चीनी की गुड़िया को एक रस्सी से कठपुतली की तरह से हिला सकती थी।

रात हुई तो जौनी उस कमरे में सोने के लिये आया। उसके एक हाथ में तलवार थी।

आते ही बोला — “जीनी। क्या तुमको याद है कि तुमने मेरे साथ क्या क्या किया था? क्या तुम्हें याद है कि तुमने रात को मेरा खाना चुराया?”

चीनी की गुड़िया ने हाँ में सिर हिलाया।

“क्या तुमको यह भी याद है कि तुमने मुझे खिड़की के बाहर फेंका और मेरी खोपड़ी तोड़ दी?”

चीनी की गुड़िया ने फिर अपना सिर हाँ में हिला दिया।

“और तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुम उसको मान भी रही हो?” कह कर उसने अपनी तलवार निकाली और उस चीनी गुड़िया की छाती में भोंक दी।

फिर वह बोला — “जीनी, मैंने तुम्हें मार दिया। अब मैं तुम्हारा खून पियूँगा।” कह कर वह अपनी तलवार चाटने लगा।

तलवार चाटते हुए वह बोला — “जीनी तुम जब तक ज़िन्दा थीं तब भी तुम मीठी थीं और अब जब तुम मर गयी हो तब भी तुम मीठी हो।”

यह कह कर वह तलवार उसने अपने दिल की तरफ की और बोला — “पर कुछ भी है मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता इसलिये तुमको मार कर अब मैं खुद को भी मार रहा हूँ।”

पर तभी जीनी नीचे से चिल्लायी — “रुको जौनी, तुम अपने आपको मत मारो। मैं ज़िन्दा हूँ।”

और जीनी पलंग के नीचे से बाहर निकल कर जौनी से लिपट गयी। उस दिन के बाद से वे कभी नहीं लड़े और प्रेम से ही रहते रहे।

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[1] The Convent of Nuns and the Monastery of Monks (Story No 195) – a folktale from Italy from its Nurra area.

Adapted from the book : “Italian Folktales” by Italo Calvino. Translated by George Martin in 1980.

[2] Jeannie – name of the daughter of the tailor

[3] Johnny – the name of the young man living opposite to Jeannie’s house

[4] Convent is a community of people devoted to religious life under a superior – normally of females. Wherever they live that building is also called Convent.

[5] A Knight is a person granted an honorary title of knighthood by a monarch or other political leader for service to the Monarch or country, especially in a military capacity.

[6] Abbess is the woman who is the superior in a convent of nuns.

[7] Translated for the word “Monk”

[8] Macaroni – a very famous and common dish of Italy – see its picture above.

[9] Father Superior is the Head in Monastery, as Abbess in Convent

[10] Violin – a string musical instrument. See its picture above.

[11] Translated for the word “Cask”

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः  - रैवन की लोक कथाएँ,  इथियोपिया इटली की  ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

(क्रमशः अगले अंकों में जारी….)

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रचनाकार: देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–9 : 11 ननों की कौनवैन्ट और साधुओं की मोनैस्टरी // सुषमा गुप्ता
देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–9 : 11 ननों की कौनवैन्ट और साधुओं की मोनैस्टरी // सुषमा गुप्ता
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