6 एक नाव जिसमें . . . [1] एक लड़के के माता पिता सेन्ट माइकिल द आर्कऐन्जिल [2] के बहुत बड़े भक्त थे। उनका कोई साल ऐसा नहीं जाता था जब वे उसकी ...
एक लड़के के माता पिता सेन्ट माइकिल द आर्कऐन्जिल[2] के बहुत बड़े भक्त थे। उनका कोई साल ऐसा नहीं जाता था जब वे उसकी दावत[3] का दिन नहीं मनाते थे।
कुछ दिनों बाद उस लड़के के पिता मर गये। पर उसकी माँ के पास जितना भी कम पैसा था उसी से वह सेन्ट माइकिल का दिन हर साल मनाती रही।
और फिर एक साल ऐसा भी आया जब उसके पास एक पैनी भी नहीं थी और न ही उसके पास कुछ बेचने के लिये ही था जिसको बेच कर सेन्ट माइकिल की दावत का दिन मनाने के लिये वह कुछ पैसा इकठ्ठा कर लेती सो वह अपने बच्चे को बेचने के लिये राजा के पास ले गयी।
“मैजेस्टी, क्या आप मेरा यह छोटा सा बच्चा खरीदेंगे? मैं इसके लिये आपसे केवल 12 क्राउन[4] माँग रही हूँ और या फिर जो कुछ आप देना चाहें। यह मैं सेन्ट माइकिल का दिन मनाने के लिये माँग रही हूँ।”
राजा ने उसको 100 सोने के सिक्के दिये और उसके बेटे को अपने पास रख लिया।
उस स्त्री के जाने के बाद वह सोचने लगा — “इस बेचारी स्त्री को देखो इसने सेन्ट माइकिल का त्यौहार मनाने के लिये अपने बेटे को बेच दिया और एक मैं राजा हूँ और फिर भी मैं उसका त्यौहार नहीं मनाता।”
सो उसने एक चैपल[5] बनवाया, सेन्ट माइकिल की एक मूर्ति खरीदी और फिर उसका दिन धूमधाम से मनाया। पर जब त्यौहार खत्म हो गया तो उसने उसकी मूर्ति को एक कपड़े से ढक दिया और उसके बारे में फिर कभी सोचा भी नहीं।
उस छोटे लड़के का नाम पैपी[6] था। वह राजा के महल में ही रह कर पलता रहा और राजा की बेटी के साथ खेल खेल कर बड़ा होता रहा।
राजा की बेटी भी उतनी ही बड़ी थी जितना बड़ा पैपी था। वे दोनों हमेशा साथ साथ रहते और साथ साथ खेलते। जब वे बड़े हो गये तो उनकी दोस्ती प्यार में बदल गयी।
राजा की काउन्सिल ने इसे देखा तो राजा को बताया — “मैजेस्टी, यह सब क्या हो रहा है? आप अपनी बेटी की शादी उस गरीब लड़के से तो करने से रहे।”
राजा बोला — “तब मैं क्या करूँ? क्या मैं उसे कहीं भेज दूँ?”
काउन्सिल के लोगों ने कहा — “अगर आप हमारी सलाह मानें तो उसको अपनी सबसे पुरानी नाव में व्यापार करने के लिये भेज दें और उसके कैप्टेन को यह हुकुम दे दें कि वह उस नाव को खुले समुद्र में पहुँच कर डुबो दे। इससे वह भी वहीं कहीं डूब जायेगा और आपकी परेशानी भी हमेशा के लिये खत्म हो जायेगी।”
राजा को यह विचार अच्छा लगा सो उसने पैपी को बुलाया और उससे कहा — “सुनो बेटा, अब तुम बड़े हो गये हो। तुम मेरी एक नाव ले लो और उसको ले कर व्यापार करने चले जाओ। तीन दिन में तुम अपनी नाव में जो कुछ रखना चाहो वह रख लो।”
पैपी रात भर यही सोचता रहा कि वह नाव में क्या सामान ले कर जाये। वह सारी रात सोचने पर भी कुछ निश्चय नहीं कर पाया। दूसरी रात भी वह यही सोचता रहा पर दूसरी रात भी वह कुछ नहीं सोच पाया। तीसरी रात भी वह यही सोचता रहा पर जब उसको कुछ समझ में नहीं आया तो वह सेन्ट माइकिल के पास गया।
सेन्ट माइकिल उसके सामने प्रगट हुए और बोले — “तुम इतने हताश न हो पैपी। राजा से बोलो कि वह तुम्हारी नाव नमक से भर दे।”
सो सुबह होते ही वह खुशी खुशी राजा के पास गया तो राजा ने पूछा — “पैपी तुमने कुछ सोचा कि तुम अपनी नाव पर क्या ले जाना चाहते हो?”
पैपी बोला — “जी मैजेस्टी, आप मेरी नाव नमक से भरवा दें।”
राजा की काउन्सिल के लोग यह सुन कर मुस्कुरा दिये। उन्होंने सोचा यह तो बिल्कुल ठीक है। नमक के बोझ से तो वह नाव अपने आप ही डूब जायेगी। राजा ने पैपी की नाव में नमक भरवा दिया और पैपी उस नमक से भरी नाव को ले कर चल दिया।
उस बड़ी नाव में एक छोटी नाव भी थी। उसको देख कर पैपी ने नाव के कैप्टेन से पूछा — “यह क्या है?”
कैप्टेन बोला — “यह मेरी नाव है।”
जैसे ही वे लोग खुले समुद्र में पहुँचे कैप्टेन ने वह छोटी नाव समुद्र में उतारी और उसमें बैठ कर बोला — “गुड नाइट पैपी।” और पैपी को बड़ी नाव के ऊपर अकेला छोड़ कर वह वहाँ से चल दिया।
कुछ ही देर में पैपी की नाव में छेद हो गया और उसकी नाव में पानी भरने लगा और उसको लगा कि उसकी नाव तो उस भयानक समुद्र में अब किसी भी समय डूब सकती थी।
पैपी के मुँह से निकला — “ओ माँ, ओ लौर्ड, ओ सेन्ट माइकिल, मेहरबानी करके मेरी सहायता करो।”
पल भर में ही एक ठोस सोने का जहाज वहाँ प्रगट हो गया और उसके किनारे पर सेन्ट माइकिल खड़े थे। उन्होंने पैपी की तरफ एक रस्सा फेंका जिसे पैपी ने तुरन्त पकड़ लिया और अपनी नाव को सेन्ट माइकिल की नाव से बाँध लिया।
सेन्ट माइकिल की नाव समुद्र पर जल्दी जल्दी चल दी जैसे आसमान पर बिजली दौड़ती है और एक अनजाने से बन्दरगाह पर जा कर रुक गयी।
किनारे पर से आवाजें आयी — “क्या तुम शान्ति के लिये आये हो या फिर लड़ने के लिये आये हो?”
पैपी बोला — “हम शान्ति के लिये आये हैं।”
ऐसा कहने पर वहाँ के लोगों ने उसको अपनी नाव अपने बन्दरगाह पर लगाने की इजाज़त दे दी और वह वहाँ उतर गया।
शाम को उस देश के राजा ने पैपी और उसके साथी को खाने के लिये बुलाया। उसको यह पता नहीं था कि पैपी का साथी सेन्ट माइकिल थे।
सेन्ट माइकिल ने पैपी से कहा — “ध्यान रखना कि इन लोगों को यह पता नहीं है कि नमक क्या होता है।” सो पैपी जब वहाँ के राजा के घर खाना खाने गया तो एक थैला नमक उसके लिये ले गया।
वे लोग शाही मेज पर खाना खाने बैठे और खाना खाना शुरू किया पर उस खाने में कोई स्वाद नहीं था। पैपी ने राजा से पूछा — “मैजेस्टी, आपका खाना ऐसा क्यों है?”
राजा बोला — “क्यों इस खाने में क्या बात है? हम लोग तो रोज ऐसा ही खाना खाते हैं।”
इस पर पैपी ने अपने साथ लाया थैला खोला और थोड़ा थोड़ा नमक हर एक के खाने के ऊपर छिड़क दिया और फिर उनको वह खाना खाने के लिये कहा। उन्होंने पहले वह खाना चखा फिर उन्होंने उसके कुछ और कौर खाये तो पैपी ने उनसे पूछा कि उनको वह खाना कैसा लगा।
राजा बोला — “यह खाना तो बहुत स्वादिष्ट है। क्या तुम्हारे पास यह चीज़ काफी है?”
पैपी बोला — “मेरी तो सारी नाव इसी से भरी है।”
राजा ने पूछा — “तुमको इसकी कितनी कीमत चाहिये?”
पैपी बोला — “इसी के बोझ के बराबर सोना।”
राजा बोला — “तो मैं तुम्हारी पूरी नाव ही खरीद लेता हूँ।”
“ठीक है।”
खाना खाने के बाद पैपी ने अपनी नाव से नमक उतरवाया और उसको तुलवाया। तराजू के एक पलड़े में नमक रखा और दूसरे में सोना। इस तरह पैपी ने अपना सारा नमक उतने ही बोझ के सोने के बदले में उस राजा को बेच दिया। फिर उसने अपनी नाव का छेद बन्द किया और वापस अपने देश चल पड़ा।
पैपी के जाने के बाद राजकुमारी अपने दिन छज्जे पर बैठ कर गुजारती थी। वह अपनी दूरबीन लिये बैठी रहती और दूर समुद्र की तरफ देखती रहती कि उसका पैपी कब वापस आयेगा।
जब उसने देखा कि पैपी की नाव वापस आ रही थी तो वह खुशी से अपने पिता के पास दौड़ी गयी — “पिता जी पिता जी, पैपी वापस आ गया। पिता जी, पैपी वापस आ गया।”
राजा दुखी मन से पैपी को लेने गया। जैसे ही पैपी ने जमीन पर पैर रखा राजा को उसने झुक कर सलाम किया और सारा सोना निकाल कर राजा को दे दिया।
राजा की काउन्सिल के लोग तो यह सब देख कर बहुत ही गुस्सा हो गये क्योंकि उनका तो सारा प्लान ही बेकार हो गया। पैपी तो केवल ज़िन्दा ही नहीं लौटा था बल्कि वह तो उतने नमक के बदले उतना ही सोना ले आया था।
उन्होंने राजा से कहा — “यह तो उससे भी ज़्यादा है जो हमने सोचा था।”
राजा बोला — “अब मैं इस बारे में क्या कर सकता हूं?”
काउन्सिल ने कहा — “इसको एक बार और भेज दीजिये राजा साहब।”
कुछ दिन बाद राजा ने पैपी को एक दूसरी नाव सामान ले कर भेजने का प्लान बनाया सो उसने पैपी को फिर बुलाया और उससे कहा — “अब की बार तुम किसी दूसरे सामान के साथ जाने का प्लान बनाओ क्योंकि तुमको फिर से व्यापार करने जाना है। तुमने पिछली बार बहुत अच्छा व्यापार किया था।”
कुछ सोचने के बाद पैपी ने फिर से सेन्ट माइकिल को याद किया तो इस बार उन्होंने उसको सलाह दी कि वह अपनी नाव बिल्लियों से भर ले।
जब पैपी ने राजा को बताया कि वह अपनी नाव में बिल्लियाँ ले कर जायेगा तो राजा ने अपने सारे राज्य में यह मुनादी पिटवा दी कि राज्य की सारी बिल्लियाँ राजा के पास लायी जायें राजा सारी बिल्लियों को खरीदना चाहता है।
राजा का हुकुम। राजा के पास बहुत सारी बिल्लियाँ जमा हो गयीं और पैपी उन सब बिल्लियों को अपनी नाव में लाद कर उनके व्यापार के लिये चल दिया।
जब नाव समुद्र में काफी आगे निकल गयी तो उसकी नाव के कैप्टेन ने फिर से उससे कहा “गुड नाइट” और अपनी छोटी वाली नाव में बैठ कर उसको बड़ी नाव में अकेला छोड़ कर वहाँ से चला गया।
पैपी एक बार फिर भौंचक्का सा देखता रह गया। कुछ देर में उसकी नाव में फिर से छेद हो गया और उसकी नाव डूबने लगी। पैपी ने फिर से सेन्ट माइकिल को याद किया।
पल भर में ही उनकी सोने की नाव फिर से समुद्र की सतह पर प्रगट हुई और उन्होंने एक रस्सी पैपी की तरफ फेंकी। पैपी ने तुरन्त ही उस रस्सी को पकड़ लिया और पहले की तरह से उससे अपनी नाव बाँध ली।
उसकी नाव फिर से बिजली की तेज़ी से बहती हुई एक अनजान बन्दरगाह पर जा कर रुक गयी।
वहाँ भी उन्होंने पैपी से पूछा कि वह शान्ति के लिये आया है या लड़ाई के लिये। पैपी ने कहा “शान्ति के लिये।” तो वहाँ के लोगों ने भी उसको वहाँ उतरने की इजाज़त दे दी और उसका स्वागत किया।
उस टापू पर भी वहाँ के राजा ने पैपी और उसके साथी को अपने यहाँ खाना खाने के लिये बुलाया। पैपी जब वहाँ खाने की मेज पर बैठा तो यह देख कर उसको बड़ा आश्चर्य हुआ कि हर आदमी की प्लेट के साथ साथ एक एक झाड़ू रखी हुई थी।
पैपी ने पूछा — “मैजेस्टी, यह झाड़ू किसलिये?”
राजा बोला — यह तुमको अभी एक मिनट में पता चल जायेगा।”
थोड़ी देर में खाना आया तो खाने के साथ आये बहुत सारे चूहे। वे मेज पर रखी प्लेटों पर कूद पड़े। हर आदमी अपने पास रखी झाड़ू से उनको पीट पीट कर भगाने की कोशिश कर रहा था। पर उनको भगाने का यह तरीका कोई ज़्यादा कारगर नहीं हो पा रहा था। सभी मजबूर थे।
सेन्ट माइकिल ने पैपी से कहा — “तुम अपने साथ जो थैला ले कर आये हो वह खोलो।”
पैपी ने अपने साथ लाया एक थैला खोला तो उसमें से चार बिल्लियाँ निकल पड़ीं। वे सब उन चूहों पर कूद पड़ीं और उन सब को बहुत जल्दी ही खा गयीं।
राजा तो यह देख कर बहुत खुश हो गया और खुशी से चिल्लाया — “अरे यह तो क्या ही आश्चर्यजनक छोटा सा जानवर है। क्या तुम्हारे पास ये जानवर बहुत सारे हैं?”
लड़के ने जवाब दिया — “हमारी पूरी नाव इन्हीं जानवरों से भरी है।”
राजा ने फिर पूछा — “क्या तुमको इनके लिये बहुत सारी दौलत चाहिये?”
लड़का बोला — “बस इनके तौल के बराबर सोना।”
राजा खुशी से बोला — “बहुत अच्छे।” और राजा ने पैपी की नाव की सारी बिल्ल्यिाँ खरीद लीं। उसने पैपी को सारी बिल्लियाँ तौल कर उनके बराबर सोना दे दिया।
बिल्लियाँ बेच कर और उनके बोझ के बराबर सोना कमा कर वे फिर बिजली की सी तेज़ी से अपने देश वापस आ गये।
राजकुमारी तो पैपी का इन्तजार ही कर रही थी। पैपी को देखते ही फिर उसने भाग कर अपने पिता को बताया कि पैपी अपनी यात्रा से वापस आ गया है।
पैपी को फिर से ज़िन्दा वापस आया देख कर और फिर से नाव भर कर सोना लाया देख कर राजा फिर से दुखी हो गया।
उसकी काउन्सिल के लोग भी कुछ और न सोच सके सिवाय इसके कि राजा को उसको तीसरी बार व्यापार पर भेजने की सलाह दी।
उन्होंने राजा को विश्वास दिलाया कि वे दो बार तो फेल हो गये थे पर अब की बार ऐसा नहीं होगा। उसको एक हफ्ता आराम करने दो फिर उसको तीसरी बार व्यापार के लिये भेज देना।
सो एक हफ्ते के बाद राजा ने उसे फिर व्यापार पर जाने के लिये कहा और सोचने के लिये कहा कि वह अब की बार क्या सामान ले कर जायेगा।
इस बार सेन्ट माइकिल ने पैपी को सलाह दी कि वह राजा से अपनी नाव बीन्स से भरवा ले। पैपी ने ऐसा ही किया। राजा ने भी उसके कहे अनुसार उसकी नाव बीन्स से भर दी पर जब नाव बीन्स से भर गयी तो वह डूबने लगी।
पहले की तरह से सेन्ट माइकिल की सोने की नाव फिर से प्रगट हुई और पैपी को एक और अनजाने बन्दरगाह पर ले गयी।
वहाँ भी जब पैपी से पूछा गया कि वह लड़ाई के लिये आया है या शान्ति के लिये तो उसने जवाब दिया “शान्ति के लिये” सो उसको उस बन्दरगाह पर भी अपनी नाव लगाने की इजाज़त मिल गयी और वहाँ भी उसका स्वागत हुआ।
इस जगह पर एक रानी राज करती थी। इसने भी दोनों को खाना खाने के लिये बुलाया। खाना खाने के बाद रानी ने एक ताश की गड्डी निकाली और बोली — “आओ, हम लोग ताश की एक बाजी[7] खेलते हैं।”
उन्होंने लैन्सकैनैट[8] का खेल खेलना शुरू किया। रानी इस खेल की चैम्पियन थी। उसने जितने भी लोगों के साथ यह खेल खेला था उन सबको उसने हरा दिया था और फिर उनको जेल में डाल दिया था। यही वह इनके साथ भी करना चाहती थी लेकिन सेन्ट माइकिल को तो वह हरा नहीं सकती थी।
जब खेल शुरू हुआ तो रानी को जल्दी ही पता चल गया कि वह अपने इन मेहमानों को नहीं हरा सकती बल्कि अगर वह उनके साथ खेलती रही तो वह तो उनसे खुद ही हार जायेगी और अपना सब कुछ गँवा बैठेगी।
यह सोच कर वह बोली — “मैं तुमसे लड़ना चाहती हूँ।”
पैपी बोला — “हम तो शान्ति के लिये आये थे लड़ने के लिये नहीं। पर अगर तुम लड़ना ही चाहती हो तो लड़ाई ही सही।”
उन लोगों ने लड़ाई का समय निश्चित किया और रानी ने अपने सारे सिपाही इकठ्ठे कर लिये। पैपी और सेन्ट माइकिल के पास तो कुछ था ही नहीं क्योंकि वे तो शान्ति के लिये गये थे और फिर व्यापार के लिये गये थे। सो लड़ाई के मैदान में केवल वे दोनों ही रानी के सारे सिपाहियों के साथ लड़ रहे थे।
यह देख कर सेन्ट माइकिल ने एक बहुत ही ताकतवर हवा का तूफान पैदा किया जिससे बहुत ही घना धूल का बादल छा गया। वह बादल इतना घना था कि किसी को कुछ दिखायी नहीं दे रहा था। इसी हालत में सेन्ट माइकिल रानी की तरफ बढ़े और अपनी तलवार से उसका सिर काट लिया।
जब वह धूल का बादल छँटा तो लोगों ने देखा कि रानी का तो सिर कट चुका है तो सारे लोग खुशी से चिल्ला उठे क्योंकि वहाँ का कोई भी आदमी रानी को पसन्द नहीं करता था।
वहाँ के लोगों ने सेन्ट माइकिल से कहा — “हम आपको अपना राजा चुनते हैं। हमारा राजा अमर रहे।”
सेन्ट माइकिल बोले — “मैं तो इस धरती पर किसी दूसरे हिस्से का राजा हूँ इसलिये मैं तुम्हारा राजा नहीं बन सकता। तुम लोग आपस में ही किसी को अपना राजा चुन लो।”
उन्होंने रानी का सिर रखने के लिये लोहे का एक पिंजरा बनाया और उस सिर को उस पिंजरे में रख कर एक सड़क के कोने पर टाँग दिया।
पैपी और सेन्ट माइकिल ने रानी के जेल में बन्द सब कैदियों को आजाद किया। वे सब लोग भूखे थे। उनमें सबमें से बहुत बदबू आ रही थी। वहीं जमीन पर कई लोग मरे हुए भी पड़े हुए थे।
पैपी ने उनके ऊपर एक मुठ्ठी भर बीन्स फेंकीं तो सारे लोग उन बीन्स पर टूट पड़े और उनको जानवरों की तरह से खा गये।
बाद में पैपी और सेन्ट माइकिल ने उनको बीन्स का सूप पीने को दिया और उनको उनके घर भेज दिया। उस जगह बीन्स को कोई जानता नहीं था सो पैपी ने अपनी बीन्स उन लोगों को सोने के बराबर तौल कर बेच दीं।
फिर वहाँ से कुछ सिपाही ले कर वह अपने देश वापस आ गया और तोप छोड़ कर राजा को अपने आने की सूचना दी। इस बार सेन्ट माइकिल की सोने की नाव भी राजा के बन्दरगाह तक आयी थी सो राजा ने सेन्ट माइकिल का भी स्वागत किया।
शाम को जब सब खाना खाने बैठे तो सेन्ट माइकिल ने राजा से कहा — “मैजेस्टी, आपके पास एक मूर्ति है जिसकी आपने केवल एक ही दिन पूजा की और फिर आपने उसको मकड़ी के जाले लगने के लिये छोड़ दिया। आपने ऐसा क्यों किया? शायद आपके पास उसकी पूजा करने के लिये पैसे नहीं थे।”
राजा बोला — “ओह हाँ, शायद वह सेन्ट माइकिल द आर्कऐन्जिल की मूर्ति थी। मैं तो उसको बिल्कुल भूल ही गया था।”
सेन्ट माइकिल बोले — “चलिये चल कर अब उस मूर्ति को देखते हैं।” वे लोग चैपल गये तो वहाँ तो उस मूर्ति पर फंगस लगी पड़ी थी।
अजनबी बोला — “मैं ही सेन्ट माइकिल द आर्कऐन्जिल हूँ और मैं आपसे पूछता हूँ कि मैजेस्टी, आपने इतना गलत काम क्यों किया?”
यह सुन कर राजा तो उनके सामने घुटनों के बल बैठ गया और बोला — “आप मुझे माफ कर दें सेन्ट माइकिल और आप मुझे बतायें कि मैं आपकी सेवा कैसे कर सकता हूँ। आज के बाद मैं आपका दिन बहुत धूमधाम से मनाऊँगा।”
सेन्ट बोले — “तुम अपनी बेटी की शादी इस पैपी से कर दो क्योंकि ये दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करते हैं।”
और राजा ने सेन्ट माइकिल की बात मान कर अपनी बेटी की शादी पैपी से कर दी और राजा के मरने के बाद पैपी वहाँ का राजा हो गया।
7 मुर्गीखाने
[1] A Boat Loaded With… (Story No 173) – a folktale from Italy from its Terra d’Otranto.
Adapted from the book : “Italian Folktales”, by Italo Calvino. Translated by George Martin in 1980.
[2] Saint Michael, the Archangel
[3] Feast of Saint Michael
[4] Crown was the currency in use at that time in Europe.
[5] A chapel is a religious place of fellowship, prayer and worship that is attached to a larger, often nonreligious institution or that is considered an extension of a primary religious institution.
[6] Peppi – name of the boy whose mother sold him to the King.
[7] Translated for the word “Deal”
[8] Lansquenet is a gambling game of chance
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः - रैवन की लोक कथाएँ, इथियोपिया व इटली की ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.
(क्रमशः अगले अंकों में जारी….)
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