14 लम्बी पूँछ वाला चूहा [1] एक बार एक राजा था जिसके एक बहुत ही सुन्दर बेटी थी। जब वह शादी के लायक हुई तो बहुत सारे राजा और राजकुमारों ने उसस...
14 लम्बी पूँछ वाला चूहा[1]
एक बार एक राजा था जिसके एक बहुत ही सुन्दर बेटी थी। जब वह शादी के लायक हुई तो बहुत सारे राजा और राजकुमारों ने उससे शादी करने की इच्छा प्रगट की।
पर उसके पिता ने उसको किसी को भी देने से मना कर दिया क्योंकि हर रात वह एक आवाज सुन कर जाग जाता था — “तुम अपनी बेटी की शादी किसी से मत करना, तुम अपनी बेटी की शादी किसी से मत करना।” और वह अपनी बेटी की शादी करने से रुक जाता।
वह बेचारी लड़की रोज शीशे में अपने आपको देखती और पूछती — “मैं शादी क्यों नहीं कर सकती मैं तो इतनी सुन्दर हूँ।” वह यह सवाल रोज पूछती पर उसको अपने इस सवाल का कोई जवाब नहीं मिलता और वह इस बारे में सोचती ही रह जाती।
एक दिन जब वे सब शाम का खाना खा रहे थे तो उसने अपने पिता से कहा — “पिता जी मैं शादी क्यों नहीं कर सकती मैं इतनी सुन्दर तो हूँ। इसलिये अब आप मेरी बात सुनिये, मैं आपको दो दिन का समय देती हूँ। अगर आप दो दिन के अन्दर अन्दर किसी ऐसे आदमी को नहीं ढूँढ पाते जिससे आप मेरी शादी कर सकें तो मैं अपनी जान दे दूँगी।”
राजा बोला — “बेटी, ऐसा नहीं कहते। पर अगर तुम ऐसा कह रही हो तो तुम एक काम करो कि तुम अपने सबसे अच्छे कपड़े पहनो और खिड़की पर खड़ी हो जाओ। फिर जो भी सबसे पहला आदमी या जानवर सड़क से गुजरेगा वही तुम्हारा पति होगा। बस।”
सो अगले दिन उस लड़की ने अपने सबसे अच्छे कपड़े पहने और जा कर खिड़की पर खड़ी हो गयी।
अब ज़रा सोचो कि सबसे पहले सड़क पर से कौन गुजरा? एक छोटा सा चूहा जिसकी एक मील लम्बी पूँछ थी और जिसकी बू ऊपर आसमान तक पहुँच रही थी।
चूहा रुका और ऊपर खिड़की में खड़ी राजकुमारी की तरफ देखा पर जैसे ही राजकुमारी ने चूहे की तरफ देखा तो वह तो चिल्ला कर भागी — “पिता जी पिता जी। यह आपने मेरे साथ क्या किया? यह पहला जाने वाला तो एक जानवर निकला और वह भी एक चूहा। मुझे पूरा यकीन है कि आप मेरी शादी किसी चूहे से नहीं करना चाहते।”
उसका पिता कमरे में हाथ बाँधे खड़ा था। वह बोला — “मैं यही चाहता हूँ मेरी बेटी। जो मैंने कहा है वही होगा। तुमको सड़क पर पहला आदमी या जानवर जो कोई भी गुजरेगा उसी से शादी करनी पड़ेगी। फिर चाहे वह कोई भी हो।”
तुरन्त ही उसने सब राजाओं, राजकुमारों और दरबारियों को अपनी बेटी की शादी की शानदार दावत का न्यौता भेज दिया। सारे मेहमान बड़ी शानो शौकत से दावत में आये और आ कर अपनी अपनी जगहों पर बैठ गये पर दुलहे का अभी तक कोई पता नहीं था।
तभी दरवाजे पर कुछ खुरचने की सी आवाज सुनायी पड़ी। वहाँ और कौन हो सकता था सिवाय उस चूहे के जिसकी लम्बी पूँछ दूर दूर तक महक रही थी। एक दासी ने उसके लिये दरवाजा खोला और उससे पूछा — “तुमको क्या चाहिये?”
चूहा बोला — “तुम मेरे लिये राजा से जा कर कहो कि जो चूहा राजकुमारी से शादी करना चाहता है वह आया है।”
दासी ने यह रसोइये से कहा और रसोइये ने जा कर यह बात राजा से कही कि जो चूहा राजकुमारी से शादी करना चाहता है वह आया है।
राजा बोला — “उनको इज़्ज़त के साथ अन्दर ले आओ।”
चूहा तेज़ी से फर्श पर दौड़ता हुआ अन्दर घुस आया और राजकुमारी की कुरसी के हत्थे पर आ कर बैठ गया। राजकुमारी ने अपने बराबर में एक चूहे को बैठा देख कर शरम और नफरत से अपना मुँह दूसरी तरफ फेर लिया।
पर चूहे ने ऐसा दिखाया कि जैसे उसने कुछ देखा ही न हो। जितना राजकुमारी उससे दूर खिसकती थी चूहा उसके उतना ही पास खिसकता जाता था।
तब राजा ने वहाँ बैठे सब लोगों को अपनी कहानी सुनायी तो वहाँ बैठे सारे लोग राजा ने जो कुछ किया था उससे राजी हो गये। वे सब मुस्कुराये और बोले — “हाँ ठीक है। चूहा ही राजकुमारी का पति होना चाहिये।” और यह कह कर सब हँस पड़े और हँसते हँसते चूहे की तरफ देखने लगे।
यह देख कर वह चूहा राजा को एक तरफ ले जा कर बोला — “मैजेस्टी, सुनिये। या तो आप इन लोगों से यह कह दीजिये कि ये लोग मेरा मजाक न उड़ायें नहीं तो इसका नतीजा इनको भुगतना पड़ेगा।” चूहे ने यह सब इतने गुस्से से कहा कि राजा को उसकी बात माननी ही पड़ी।
उसके बाद राजा अपनी कुरसी पर आ कर बैठ गया और सब लोगों से कहा कि वे सब हँसना बन्द करें और उसके होने वाले दामाद[2] की ठीक से इज़्ज़त करें।
खाना आया तो चूहा तो बहुत छोटा था और वह एक हत्थे वाली कुरसी पर बैठा था इसलिये वह मेज पर रखे खाने तक नहीं पहुँच सकता था। इसलिये उसके नीचे एक ऊँची सी गद्दी रखी गयी पर राजा ने देखा कि वह भी उसके लिये खाने तक पहुँचने के लिये काफी नहीं थी सो वह उठा और मेज के बीच में जा कर बैठ गया।
वहाँ से वह सब लोगों की तरफ देख कर बोला — “कोई ऐतराज?”
इससे पहले कि कोई और बोले राजा बोले — “नहीं नहीं। किसी को कोई ऐतराज नहीं है।”
पर घर आये हुए मेहमानों में एक स्त्री ऐसी थी जो चूहे को अपनी प्लेट में से खाते और अपनी बू वाली लम्बी पूँछ को अपने पास बैठे आदमी की प्लेट के ऊपर से ले जाते देख कर चुप नहीं रह सकी।
जब चूहे ने उस स्त्री की प्लेट में से खाना खत्म कर लिया तो वह दूसरे मेहमानों की तरफ चला तो वह बोली — “उफ कितना गन्दा। किसने इतनी गन्दी चीज़ देखी होगी। मुझे तो अपनी ऑखों पर विश्वास ही नही हो रहा कि मैं इतनी गन्दी चीज़ एक राजा की खाने की मेज पर देख रही हूँ।”
यह सुन कर चूहे की मूँछें हिलीं, उसने अपनी ऑखें उस स्त्री की ऑखों से मिलायीं और अपनी पूँछ मेज पर फटकारते हुए ऊपर नीचे कूदने लगा।
उसके इस कूदने में जिस किसी चीज़ को भी उसकी पूँछ ने छुआ वही चीज़ वहाँ से गायब हो गयी – सूप के कटोरे, फलों के कटोरे, प्लेट, चम्मच, छुरी, काँटे और फिर एक एक करके मेहमान और उसके बाद मेज और महल।
बस वहाँ रह गया तो केवल एक उजड़ा हुआ मैदान और उसमें अकेली खड़ी राजकुमारी। वह चूहा खुद भी वहाँ से गायब हो चुका था।
वहाँ इतने बड़े मैदान में अपने को अकेली देख कर राजकुमारी बोली — “अफसोस ओ मेरे चूहे, तुमसे मेरी नफरत अब तुमको पाने की इच्छा में बदल गयी है।”
उसने इन शब्दों को एक बार फिर बोला और वहाँ से फिर पैदल ही चल दी। वह कहाँ जा रही थी और कहाँ जायेगी इसका उसे कुछ पता ही नहीं था।
चलते चलते उसको एक साधु मिला तो उसने राजकुमारी से पूछा — “बेटी, तुम यहाँ इस उजाड़ जगह में क्या कर रही हो? भगवान तुम्हारी सहायता करे अगर तुमको यहाँ कोई शेर या जादूगरनी मिल जाये तो?”
राजकुमारी बोली — “मेहरबानी करके ऐसी बातें मत कीजिये। मुझे तो केवल अपना चूहा चाहिये। पहले मैं उससे नफरत करती थी पर अब मुझे वह चाहिये।”
साधु बोला — “बेटी, मुझे नहीं मालूम कि मैं तुमसे क्या कहूँ पर तुम चलती रहो जब तक तुमको मुझसे कोई ज़्यादा बूढ़ा साधु न मिल जाये। शायद वह तुमको कोई सलाह दे पाये।”
सो राजकुमारी चलती रही और चलती रही और बस यही कहती रही — “अफसोस ओ मेरे चूहे, तुमसे मेरी नफरत अब तुमको पाने की इच्छा में बदल गयी है।”
चलते चलते उसको एक और साधु मिला। उसने उस साधु से भी वही कहा तो वह साधु बोला — “तुम जमीन में एक गड्ढा खोदो और उसमें बैठ जाओ तब देखो कि क्या होता है।”
अब राजकुमारी के पास गड्ढा खोदने के लिये तो वहाँ कुछ था नहीं सो उस बेचारी ने अपने बालों में से एक बालों में लगाने वाली पिन निकाली और उसी से गड्ढा खोदने लगी और तब तक खोदती रही जब तक कि वह गड्ढा इतना बड़ा नहीं हो गया कि वह उसमें खुद बैठ सकती।
जब गड्ढा खुद गया तो वह उसमें बैठ गयी। बैठते ही वह एक अँधेरी और बहुत बड़ी गुफा में निकल आयी। “अब पता नहीं यह गुफा मुझे कहाँ ले जायेगी।” कहते हुए वह उस गुफा में चल दी।
गुफा में बहुत सारे जाले लगे हुए थे जो उसके पैरों में लिपटे जा रहे थे। वह जितना ज़्यादा उनको हटाती थी उतना ही ज़्यादा वे उसके पैरों में लिपटते जाते थे।
उस गुफा में एक दिन चलने के बाद उसको पानी की आवाज सुनायी दी। आगे चल कर उसको एक तालाब दिखायी दिया जिसमें बहुत सारी मछलियाँ थीं।
उसने अपना एक पैर उस तालाब में रखा पर वह उसमें बहुत आगे तक नहीं जा सकी क्योंकि वह तालाब बहुत गहरा था। वह अब पीछे गड्ढे के लिये भी नहीं जा सकती थी क्योंकि वह गड्ढा तो उसके गुफा में आते ही बन्द हो गया था।
उसने फिर दोहराया — “अफसोस ओ मेरे चूहे, तुमसे मेरी नफरत अब तुमको पाने की इच्छा में बदल गयी है।”
इस पर उस तालाब का पानी ऊपर उठना शुरू हो गया। वहाँ से बच निकलने की कोई जगह नहीं थी सो वह उस तालाब में कूद पड़ी। जब वह पानी में थी तो उसने देखा कि वह पानी में नहीं थी बल्कि वह तो एक बड़े से महल में खड़ी थी।
उस महल का पहला कमरा क्रिस्टल[3] का बना था। दूसरा कमरा मखमल का था। और तीसरा कमरा पूरा सितारों[4] का बना था। इस तरह वह उस महल के कमरों में घूमती रही। सब कमरों में कीमती कालीन बिछे हुए थे और सब कमरों में चमकीले लैम्प जल रहे थे।
जितनी देर वह उस महल में घूमती रही वह दोहराती ही रही — “अफसोस ओ मेरे चूहे, तुमसे मेरी नफरत अब तुमको पाने की इच्छा में बदल गयी है।”
फिर वह एक ऐसी जगह आ गयी जहाँ एक बहुत बढ़िया खाने की मेज लगी हुई थी। वह कई दिनों की भूखी थी सो वह उस मेज पर बैठ गयी और पेट भर खाना खाया।
फिर वह एक सोने वाले कमरे में चली गयी। वह जैसे ही पलंग पर लेटी उसको तुरन्त ही नींद आ गयी और वह गहरी नींद सो गयी।
रात को पता नहीं कब उसने कुछ आवाज सुनी जो उसे लगा कि वह आवाज किसी चूहे की पूँछ के इधर उधर होने से हुई थी। उसने अपनी ऑख खोली पर वहाँ घुप अँधेरा होने की वजह से उसे कुछ दिखायी तो नहीं दिया पर चूहे के कमरे में इधर उधर घूमने की आवाज अभी भी आ रही थी।
फिर उसको लगा कि कोई चूहा उसके पलंग पर चढ़ा और उसकी ओढ़ने वाली चादर के अन्दर आ गया। वह उसका चेहरा सहलाने लगा था। उसके मुँह से चूहे की छोटी छोटी चीं चीं की आवाज निकल रही थी।
राजकुमारी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह कुछ बोले। बस वह चुपचाप काँपती सी बिस्तर पर एक कोने में सुकड़ी पड़ी रही।
अगली सुबह जब वह उठी तो वह उस महल में फिर से घूमी पर वहाँ तो कोई नहीं था। उस रात को भी खाने की मेज पहली रात की तरह ही लगी हुई थी सो उसने खाना खाया और सो गयी।
एक बार फिर उसने कमरे में चूहे के भागने की आवाज सुनी। वह चूहा अब की बार उसके चेहरे के ऊपर आ गया पर उसकी बोलने की हिम्मत उस दिन भी नहीं हुई और उस दिन भी वह वैसे ही चुपचाप पड़ी रही।
तीसरी रात को जब उसने चूहे के घूमने की आवाज सुनी तब उसने हिम्मत करके गाया — “अफसोस ओ मेरे चूहे, तुमसे मेरी नफरत अब तुमको पाने की इच्छा में बदल गयी है।”
तभी एक आवाज ने कहा — “लैम्प जलाओ।”
राजकुमारी ने एक मोमबत्ती जलायी तो उसने देखा कि वहाँ कोई चूहा वूहा नहीं था वहाँ तो एक सुन्दर राजकुमार खड़ा था।
वह बोला — “मैं ही हूँ वह बू वाला बड़ी पूँछ वाला चूहा। मेरे ऊपर पड़े जादू से मुझको आजाद कराने के लिये मुझे एक ऐसी लड़की से मिलना जरूरी था जो मुझे प्यार करे और वह सब कुछ सहे जो तुमने सहा।”
राजकुमारी उस राजकुमार को देख कर तो बहुत खुश हो गयी। दोनों फिर वह गुफा छोड़ कर बाहर आ गये और दोनों ने शादी कर ली।
Names of Jesus’ 12 Apostles –
1. Simon Peter (brother of Andrew) - He was active in bringing people to Jesus – Bible writer
2. James (son of Zebedee and other brother of John) also called James the Greater
3. John of Zebedee and brother of James) – Bible writer
4. Andrew (brother of Simon Peter) – He was active in bringing people to Jesus
5. Philip od Bethsaida
6. Thomas (Didymus)
7. Bartholomew (Nathaniel) – He was one of the disciples to whom Jesus appeared at the Sea of Tiberias after his Resurrection. He was witness of the Ascension
8. Matthew (Levi) of the Capernaum
9. James (son of Alphaeus), also called “James the Lesser” Bible writer
10. Simon the Zealot (the Canaanite)
11. Thaddaeus-Judas (Lebbaeus) – brother of James the Lesser and brother of Matthew (Levi) of the Capernaum
12. Judas Iscariot who also betrayed him
The New Testament says the end of only two Apostles – Judas who betrayed Jesus and then killed himself; and James the son of Zebedee who was executed by Herod.
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1 नाइजीरिया की लोक कथाएं–1
2 नाइजीरिया की लोक कथाएं–2
3 इथियोपिया की लोक कथाएं–1
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1 ज़ंज़ीबार की लोक कथाएं — 10 लोक कथाएं — सामान्य छापा, मोटा छापा दोनों में उपलब्ध
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2 इथियोपिया की लोक कथाएं–1 — प्रभात प्रकाशन
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Updated on Sep 27, 2017
लेखिका के बारे में
सुषमा गुप्ता का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में सन् 1943 में हुआ था। इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र और अर्थ शास्त्र में ऐम ए किया और फिर मेरठ विश्वविद्यालय से बी ऐड किया। 1976 में ये नाइजीरिया चली गयीं। वहाँ इन्होंने यूनिवर्सिटी औफ़ इबादान से लाइबे्ररी साइन्स में ऐम ऐल ऐस किया और एक थियोलोजीकल कौलिज में 10 वर्षों तक लाइब्रेरियन का कार्य किया।
वहाँ से फिर ये इथियोपिया चली गयीं और वहाँ एडिस अबाबा यूनिवर्सिटी के इन्स्टीट्यूट औफ़ इथियोपियन स्टडीज़ की लाइब्रेरी में 3 साल कार्य किया। तत्पश्चात इनको दक्षिणी अफ्रीका के एक देश. लिसोठो के विश्वविद्यालय में इन्स्टीट्यूट औफ़ सदर्न अफ्रीकन स्टडीज़ में 1 साल कार्य करने का अवसर मिला। वहाँ से 1993 में ये यू ऐस ए आ गयीं जहाँ इन्होंने फिर से मास्टर औफ़ लाइब्रेरी एंड इनफौर्मेशन साइन्स किया। फिर 4 साल ओटोमोटिव इन्डस्ट्री एक्शन ग्रुप के पुस्तकालय में कार्य किया।
1998 में इन्होंने सेवा निवृत्ति ले ली और अपनी एक वेब साइट बनायी – www.sushmajee.com। तब से ये उसी वेब साइट पर काम कर रहीं हैं। उस वेब साइट में हिन्दू धर्म के साथ साथ बच्चों के लिये भी काफी सामग्री है।
भिन्न भिन्न देशों में रहने से इनको अपने कार्यकाल में वहाँ की बहुत सारी लोक कथाओं को जानने का अवसर मिला – कुछ पढ़ने से, कुछ लोगों से सुनने से और कुछ ऐसे साधनों से जो केवल इन्हीं को उपलब्ध थे। उन सबको देख कर इनको ऐसा लगा कि ये लोक कथाएं हिन्दी जानने वाले बच्चों और हिन्दी में रिसर्च करने वालों को तो कभी उपलब्ध ही नहीं हो पायेंगी – हिन्दी की तो बात ही अलग है अंग्रेजी में भी नहीं मिल पायेंगीं।
इसलिये इन्होंने न्यूनतम हिन्दी पढ़ने वालों को ध्यान में रखते हुए उन लोक कथाओं को हिन्दी में लिखना पा्ररम्भ किया। इन लोक कथाओं में अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी अमेरिका के देशों की लोक कथाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों की भी कुछ लोक कथाएं सम्मिलित कर ली गयी हैं।
अभी तक 1200 से अधिक लोक कथाएं हिन्दी में लिखी जा चुकी है। इनको “देश विदेश की लोक कथाएं” क्रम में प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है। आशा है कि इस प्रकाशन के माध्यम से हम इन लोक कथाओं को जन जन तक पहुँचा सकेंगे।
विंडसर, कैनेडा
मई 2016
[1] The Mouse With the Long Tail (Story No 182) – a folktale from Italy from its Province of Caltanissetta.
Adapted from the book : “Italian Folktales”, by Italo Calvino. Translated by George Martin in 1980.
[2] Son-in-law – daughter’s husband
[3] Crystal
[4] Translated for the word “Sequins” – shining disk with a hole in its center to decorate clothes. See their picture above.
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः - रैवन की लोक कथाएँ, इथियोपिया व इटली की ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.
(समाप्त.)
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