1- शर्मिंदा अलका मैम रुकिये, थोड़ा सुनिये... मैम प्लीज पीछे से मोहन साहब दौड़ते चले आ रहे थे ! अलका जी पीछे मुड़कर एक बार देख चुकी थीं, फ़िर...
1- शर्मिंदा
अलका मैम रुकिये, थोड़ा सुनिये... मैम प्लीज
पीछे से मोहन साहब दौड़ते चले आ रहे थे ! अलका जी पीछे मुड़कर एक बार देख चुकी थीं, फ़िर भी तेज़ कदमों से उस आदमी से पीछा छुड़ाना चाहती थीं, जो उन्हीं की ओर बढ़ रहा था !
शोपिंग प्लाज़ा से बाहर आते ही वह गाड़ी में बैठने को हुई, वैसे ही मोहन साहब उनकी गाड़ी का दरवाज़ा पकड़कर खड़े हो गये और उनके हाथ में अलका जी की लिखी किताब थी !
मैम ओटोग्राफ प्लीज !
अलका जी बड़े अचम्भे में थीं, क्यूंकि ये वही प्रकाशक था जिसने 1 साल पहले अलका जी की नारी प्रधान पुस्तक को बेकार- रद्दी कहकर छापने से मना कर दिया था और आज वही उनके ओटोग्राफ के लिये उनका पीछा कर रहा था !
अचम्भे में उन्होंने उस किताब पर अपने हस्ताक्षर किये और मोहन साहब के साथ एक फोटो भी खिचा ली !
मोहन साहब ने बड़ी शर्मिन्द्गी से माफ़ी मा और कहा - मैं बहुत ही शर्मिंदा हूं अलका जी, काश बिना पढ़े मैं इस उपन्यास को बेकार ना कहता तो आज मेरा भी नाम उंचा हो गया होता ! एक हफ़्ते पहले ही मुझे पता लगा कि आपको सर्वश्रेष्ठ लेखिका का सम्मान मिला तब मैंने इस उपन्यास को खरीदा और पढा, तब मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ ! ये तस्वीर में सभी को दिखाऊंगा कि मैं मिला था देश की सर्वश्रेष्ठ लेखिका से !
' जैसी आपकी मरज़ी आदरणीय ' कहकर अलका जी अपनी गाड़ी में बैठकर अपने गन्तव्य की ओर चलदीं !
2- कांच
रुकमणि जी आज बड़े गुस्से में थीं, अभय बाबूजी की तो हिम्मत ही नहीं हो रही थी पास जाने की ! ये गुस्सा भी तो उन्हीं का दिलाया था, बात बात पर अपनी रुक्कू को चिढ़ाना उन्हें जो भाता था फ़िर क्या चिढ़ गयी उनकी रुक्कू और पडोसियों तक को घर पर बर्तन फेंकने की खबर मिल गयी, गुस्से में रुकमणि जी हमेशा घर के बर्तन का ही सहारा लेती थीं, वही फेंकती थी ! अभय बाबूजी के घर के ज्यादातर बर्तन टेडे-मेडे थे !
"रुक्कू देखो वो गिलास नहीं फेका अभी तक तुमने, बेचारा इंतजार कर रहा है " अभय बाबूजी का बोलना हुआ और वह गिलास ज़मीन पर, फ़िर नजर आया फ्रिज़ पर रखा फोटोफ्रेम जिसे 1 दिन पहले ही अभय बाबूजी लेकर आये थे, साथ ही 4-5 और भी लाये कि उनकी रुक्कू पसंद कर ले कौन सा उसे चाहिये पर किस्मत से एक ही फ्रिज़ पर रखा था फोटो से सज़ा !
रुकमणि जी ने उठाया और जमीन पर कुछ ही सेकेन्ड में एक कांच छोटे छोटे टुकडों में तब्दील !
अपनी शादी की फोटो ज़मीन पर देख वह खुश तो नहीं हुई लेकिन गुस्सा जरुर कम हो गया !
दूसरा वह उठा पाती इससे पहले ही अभय बाबूजी ने उनको दिया कि लो तोड़ दो मेरी जान, सारे तोड़ दो ! दुकान वाले को बोल देंगे रास्ते में गिरकर टूट गये !
रुकमणि जी की आंखों में आंसू थे, जो कांच के टूट जाने से नहीं बल्कि ज़मीन पर पड़ी उस फोटो से थे, जिसको अभय बाबूजी कांच के टुकड़ों के बीच से उठा रहे थे !
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3- अपाहिज
शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ न होना ही सिर्फ अपाहिज नहीं होता, संपूर्ण होने के बाद जब स्वाभिमान खत्म हो जाता है, तब असल में अपाहिज होता है इंसान !
निशा भी अपाहिज हो चुकी थी, ऐसे लोगों के बीच थी जहां उसका स्वाभिमान दो कौड़ी का नहीं बचा था ! हज़ार बातें सुनने के बाद भी निशा घर नहीं छोड़ पा रही थी, क्यूंकि खुद के पैरों पर कुल्हाड़ी उसने खुद मारी थी नौकरी छोड़कर ! परिवार के लिए, उनकी जरूरतों का ख्याल रखने के लिए नौकरी छोड़ी थी निशा ने, लेकिन उसे नहीं पता था कि उसके त्याग का मोल नहीं है !
उसके सपनों का त्याग उसे जीने नहीं देना चाहता था, कोई कदर करने वाला नहीं था इसलिये निशा ने एक रोज़ अपने टूटे स्वाभिमान के साथ खुद को खत्म कर लिया ! किसी को भनक तक नहीं लगी, कितने बजे क्या हादसा हो गया ! दिन गुजरने लगे....
जब नौकरानी की जरुरत हुई घर में तब अहसास हुआ कि कितने काम की थी वो निशा, जो टूटे कांच की तरह चुभती रही सभी को !
अब लोग उसकी तस्वीर के आगे आंसू बहाकर दुख जता रहे थे और वह मुस्कुरा रही थी, अपाहिज ना होने के अहसास ने उसका स्वाभिमान लौटा दिया था, मरकर !
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4- नयी राह
नैना आज बहुत गुस्से में थी , हाथ में लिया आधा गिलास पानी भी उसके गले से नीचे नहीं उतर रहा था और हर बार की तरह वजह थे वह घटिया लोग जो अपने आप को नैना का दोस्त समझते थे ! लेकिन नैना ने उन्हें ना कभी दोस्त माना और ना कभी उन्हें अहसास होने दिया कि वह भरम में हैं !
नैना खुले विचारों की और सभी को अच्छा समझती ही थी और सच के रास्ते पर आगे बढना चाहती थी लेकिन लोगों की दकियानूसी सोच से कभी कभी वह बहुत आहत हो जाती थी, उस दिन भी यही हुआ था !
जब उसके एक दोस्त ने उसे निचा दिखाने की कोशिश की थी ! मुंह तोड़ जवाब दिया उसने लेकिन फ़िर खुद से महसूस किया, सोचा कि कब तक वह लोगों की बातों को सुनेगी, कब तक उसे फर्क पड़ता रहेगा उनकी घटिया सोच का !
उसने बेफिकर होकर आगे बढ़ने का सोचा और पांचों उंगलियों को मिलाकर एक हौसले की मुठ्ठी बांधी ! फलस्वरूप खून की छोटी छोटी बूंदे जमीन पर बिखर चुकी थीं ! दुख- दर्द नहीं था अब, सुकून की गहरी सांस ली और उसी मंज़िल की एक नयी राह पर नयी सोच के साथ निकल पड़ी !
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5- सतरंगी चुनरी
हम दोनों एक ही कालेज में थे, विषय अलग अलग थे ! हुआ यूं कि शुरुआत में मुझे एक लंबे बाल वाली लड़की जिसके बाल कमर तक मोटे घने लंबे थे और हमेशा सतरंगी चुनरी ओढे अक्सर लाइब्रैरी जाते दिखती थी, सामने से उसे मैंने नहीं देखा था कभी ! में हमेशा अपने दोस्तों से कहता कि ये बेचारी लड़की इसके पास चुनरी ही नहीं है कोई दूसरी !
एक दिन में अनाथ आश्रम के बच्चों के लिये कपड़े लेने गया तो सुर्ख लाल रंग की चुनरी दिखी तो मैंने ले ली कि उस लड़की को दे दूंगा !
अगले ही दिन वो मुझे फ़िर दिखी मैं भाग कर पहुंचा उसके पास, वो सादगी से लबालब, सुंदर लड़की थी जिसे कोई लड़का मना नहीं कर सकता था ! और वो मुझे आंखे फाड़ फाड़ कर देख रही थी !
जरा देर में बोली शायर साहब आप, ऐसे अचानक... उससे जादा में अचम्भे में था कि ये मुझे जानती है ! बोली- कालेज के एक समारोह में उसने मेरी शायरी गज़ल सुनी थी ! मैने उसे बताया उस चुनरी के बारे मैं तो वह बहुत हंसी, आज भी मुझे उसकी हंसी याद है वो निश्छल हंसी ! बोली सतरंगी चुनरी देखने में एक लग सकती हैं लेकिन ऐसी मेरे पास ढेरों हैं कुछ में सीधी लाइन है, कुछ मैं तिरछी, कुछ में खड़ी !
मैंने उससे माफ़ी मांगी, और निवेदन किया कि वो ले ले उसे, नयी दोस्ती की नयी शुरूआत की खातिर !
वो बोली - नयी दोस्ती आप हमसे दोस्ती करेंगे शायर साहब ?
मैंने भी स्टाइल मार कर कह दिया अगर ये चुनरी ले ली तब ही ! हम दोनों ही कुछ देर हंसते रहे ! धीरे-धीरे हम रोज़ मिलने लगे, और जब मेरी नौकरी लगी तो मैंने उसके घर रिश्ता भिजवाया और उसके घरवाले मान गये कि तरू अगर इस रिश्ते को हां करदे तो शादी पक्की ! और तरू को इन सबके बारे में कोई खबर नहीं !
तरू ने मुझे उदास मन से बताया था कि अशोक लड़के वाले आ रहे हैं देखने ! लेकिन मैं चुप रहा बोल दिया अच्छा शादी की उमर है शादी करो!
जब उसने मुझे अपने परिवार के साथ देखा, तो उसकी आंखें वही खुली कि खुली ! अपना घर दिखाने जब वो मुझे लेकर गयी तो उसकी आंख मैं आंसू थे!
फ़िर... हमारी शादी हो गयी और हम एक हो गये !
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6- रोज़ की लड़ाई
कल में होस्टल में नहीं थी तो बहुत मस्ती की तुमने, आज दिनभर रूम में रहोगी और पढाई करोगी समझी !
चिंकी- नहीं तो किसने बोला मैने मस्ती की?
गुंजन= तुम्हारी दोस्त ने !
मेस में जाने के लिये मैगी सीढियों से ऊपर जाने को हुई और चिंकी नीचे आने को बस फ़िर क्या था, रोज़ की तरह आज भी...
क्यूं वे साली, तूने गुंजन दीदी से क्या बोला?
क्यूं क्या हुआ चिंकी, तेरी बहिन ने आज भी तेरी झंड कर दी क्या सबके सामने !
चिंकी- बहुत हंसी आ रही है ना तुझे मैगी ! ले मरज़ा कमीनी... धम्म...
मैगी- मार क्यूं रही है वे
चिंकी- तू इसी लायक है तुझे मेरी खुशी बर्दाश्त नहीं होती ना, ये और ले... धम्म...
मैगी- बहुत हुआ ये ले तू भी... चटाक...
मेने तुझे पीठ पर मारा और तूने गाल पर...
और फ़िर चटाक, ढीसूम, धम्म की आवाज़ों के बीच चिल्लाने की आवाज़ तूने बोला क्यूं दीदी से और लड़ाई की जगह हर बार की तरह वही... बीच लोबी !
मैगी- मुझे क्या पता था कि तेरी बहिन टीवी देखने पे तेरी मां बहिन कर देगी, छोड़ फ़िर बताउंगी... धन्यवाद उसने पुछा की कल रात क्या किया? मेने बोला मस्ती! उसने पुछा कौन कौन था साथ- मेने बोल दिया मैं, चिंकी, अंजू ! बस इतनी सी बात हुई थी !
चिंकी= मेरा नाम लेना जरुरी था ये ले चटाक...
मैगी- गाल पे मारी तू... तेरी तो चटाक...
लड़ाई - मारामारी शुरू और चारों तरफ़ के कमरे से लड़कियां अपने अपने कमरों से निकली और देख कर चली गयी कि इनका तो रोज़ का है ये !
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7 - मैगी - भवानी
सिर्फ हाय हेलो तक ही जान पहचान हुई थी,15-20 दिन बाद 2 दिन लगातार अन्नू, भावना से नहीं मिली थी तो उनका रूम दूसरी लड़कियों से पूछकर अन्नू उनके पास पहुंची, पता नहीं क्या था कुछ रिश्ता सा बन गया था, रोज़ चाय की टेबल पर साथ बैठने का !
उनको दो दिन से नहीं मिली थी तो चाय, बेस्वाद पहले से ही थी चाय वो होस्टल की, अब वो गले से नीचे नहीं उतर रही थी, अन्नू उनको भावना दी बुलाती थी वो खुद कुछ नहीं बोलती थी पर हमेशा अन्नू की बातों को सुनती - हंसती रहती थी ! सांवले से रंग और दोहरे बदन की, कमर तक लंबे बालों वाली वो लड़की पता नहीं था कि अन्नू की बेस्ट दी बनेगी आगे चलकर !
अन्नू उनके रूम में गयी, वो लेटी हुई थीं 2 दिन से बुखार आ रहा था उनको शाम को ! दरवाज़ा खुला हुआ था तो अन्नू कमरे के बाहर से ही दरवाज़े पर दस्तक दी ! उन्होंने अन्नू को देखा और हंसते हुए कमरे में आने की इजाज़त दी ! अन्नू ने बोला कि आप मिले नहीं 2 दिन चाय पर तो सोचा मिल लूं आप ठीक तो हैं ना ?
हां 2 दिन से बुखार आ रहा है !
अन्नू - दवाई ली कोई आपने ?
नहीं !
अन्नू- मेरे पास है लाऊं !
भावना - तुम फार्मा की हो ना तो होगी तुम्हारे पास ले आऊं थोड़ा ठीक हो जाऊं फ़िर साथ में चाय पियेंगे !
अन्नू उनके सिर पर हाथ रखा, और अपने कमरे से लाकर उनको दवाई दी ! 2-3 दिन में वो ठीक हो गयी और दोस्ती की गाड़ी चल निकली ! रोज़ दोनों चाय पर मिलते थे शाम में, वो सिर्फ बाते सुनती थी और खूब हस्ती थी ! वो अन्नू के बारे में सब कुछ जान गयी थी !
वो हमेशा कहती थी कि मुझे बहुत अच्छा लगता है तुम्हें सुनना ! तुम्हारी बाते मुझे खुश कर देती हैं, और वो अन्नू के घुंघराले बालों की वजह से उसे बुलाती थी मैगी ! अन्नू को सारे होस्टल फ्रेंड मैगी ही बुलाने लगे थे ! उन्होंने बताया था कि उनके दोस्त उन्हें भवानी बुलाते थे !
वो सुबह 8 बजे अपने कालेज के लिये निकलती थी, उनका कमरा पहली मंज़िल पर था और अन्नू का उनके कमरे से नीचे लेकर आती सीढियों के बिल्कुल सामने तो रोज़ वो अन्नू के कमरे के सामने से ही निकलती थी ! इसलिये अन्नू रोज़ 8 बजे के पहले ही अपने रूम का दरवाज़ा खोल देती थी, भावना सीढियों से उतरकर सीधे कमरे में आती थी, आईने मे अपना चेहरा देखती और बोलती केसी लग रही हुं मैं ? अच्छी तो लग रही हुं ना, अगर नहीं लगूं तो भी मैगी बोल दिया करो कि लग रही हूं ओके !
रोज़ सुब्ह वो 2 मिनट की मुलाकात अन्नू को दिनभर ताज़गी से भर देती थी ! 7 महीने बाद भावना की नौकरी लखनऊ लग गयी और उनके जाने का हुआ ! अन्नू बहुत रोयी, बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था उसे, जैसे सारी खुशियां ही खत्म और भावना चली गयी, लेकिन अन्नू रोज़ सुबह दरवाज़ा अब भी खोल ही देती थी कि भावना का एहसास उसे होता रहे !
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संक्षिप्त परिचय-
जयति जैन "नूतन" की जन्मतिथि-१ जनवरी १९९२ तथा जन्म स्थान- रानीपुर (जिला - झांसी-उ.प्र.) हैl शिक्षा- डी.फार्मा,बी.फार्मा और एम.फार्मा है,इसलिए फार्मासिस्ट का कार्यक्षेत्र है l साथ ही लेखन में भी सक्रिय हैं l उत्तर प्रदेश के रानीपुर(झांसी) में ही वर्तमान निवास है l लेख,कविता,दोहे एवं कहानी लिखती हैं तो ब्लॉग पर भी बात रखती हैं l सामाज़िक मुद्दों पर दैनिक-साप्ताहिक समाचार पत्रों और पत्रिकाओं - के साथ ही ई-वेबसाइट पर भी अनगिनत रचनाएं प्रकाशित हुई हैं ! अपनी बेबाकी व स्वतंत्र लेखन को ही आप उपलब्धि मानती हैं l लेखन का उद्देश्य-समाज में सकारात्मक बदलाव लाना हैl अब तक ३०० से ज्यादा रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में !
. साहित्यिक क्षेत्र में आपका योगदान - सामाज़िक लेखन, लेखन का उद्देश्य-समाज में सकारात्मक बदलाव लाना हैl अब तक ३०० से ज्यादा रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में !
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जयति जैन "नूतन"
युवा लेखिका, सामाजिक चिन्तक
रानीपुर, जिला - झांसी उ. प्र.
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