हास्य-व्यंग्य // यहां वहां की // रिकॉर्ड बनाने के महत्वाकांक्षी // दिनेश बैस // प्राची - दिसंबर 2017 : लघुकथा विशेषांक

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यहां वहां की रिकॉर्ड बनाने के महत्वाकांक्षी दिनेश बैस ए क रात में, एक शहर में तीन जगह चोरी हो गईं। रेटिंग तनिक कमजोर मानी जानी चाहिये थी। जो...

यहां वहां की

रिकॉर्ड बनाने के महत्वाकांक्षी

दिनेश बैस

क रात में, एक शहर में तीन जगह चोरी हो गईं। रेटिंग तनिक कमजोर मानी जानी चाहिये थी। जो शहर इतना बड़ा हो, जिसमें इतने सारे थाने हों। थानों की हैसियत के हिसाब से उनके हिस्से में चौकियां आ रही हों। इतने सारे एक सौ नम्बर घूम रहे हों, उनसे अधिक चीते हैल्मिट को सिर के बजाये, हैंडिल को पहना कर मुस्कुरा रहे हों. इतनी सारी पुलिस हो, उसमें एक रात में मात्र तीन चोरियां हों, अफसोस होता है। कम से कम एक थाने के भाग्य में एक चोरी तो आनी चाहिये। मात्र तीन चोरी एक रात में।..

 

लेकिन लोगों ने दूसरी तरह से सोचा। सामान्यतः आम आदमी संतोषी होता है। राशन की दुकान पर राशन न मिले, वह संतोष कर लेता है... हरि इच्छा बलवान... वोटर लिस्ट से नाम गायब हो जाये, वह बुरा नहीं मानता है... चलो, अच्छा हुआ। नाम आ जाता तो किसी न किसी नाशुक्रे को वोट देना ही पड़ता। अब इस झंझट से बचे। लोग वोट मांगने आयेंगे तो सीधा सा बहाना है... क्या करें भैया। हम वोटर ही नहीं रहे। तुम बनवा दो तो हम तो अभी चल कर वोट दे आयें... केवल तीन चोरियों पर भी लोग संतोष कर लेते... हमारे शहर की किस्मत में इतनी ही होंगी। लोग नहीं सोचते। लेकिन, विशेष रूप से हम अखबार वालों ने सुचवा दिया। लिख-लिख कर कि शहर में अपराध बढ़ रहे हैं। शहर की आपराधिक स्थिति बिगड़ चुकी है... अमां क्या सुधर रहा है जो केवल आपराधिक स्थिति बिगड़ने के लिये हाय तौबा मचा रखी है। यह भी तो सोचो कि अपराध नहीं होंगे तो तुम्हारी नौकरी रहेगी क्या। इन्हीं की कमाई खा रहे हो। वर्ना अखबार तो सरकारी और खूबसूरती का राज बताने वाले विज्ञापनों से भी कमा लेंगे।

मान भी लें कि शहर की आपराधिक स्थिति बिगड़ रही है लेकिन ध्यान में रखने वाली बात यह होनी चाहिये कि हर चोरी आपराध नहीं होती है। आपराधिक कारणों से नहीं होती है। कुछ अन्य कारणों से भी चोरी हो जाती हैं। की जाती हैं... जज साहब ने आश्चर्य से पूछा... तुमने एक ही शो रूम के ताले बार-बार क्यों चटकाये?

‘क्या करता आली जनाब, पत्नी जी को साड़ी और ड्रेस मटैरियल पसंद ही नहीं आ रहे थे। उन्हें बदलने बार-बार जाना पड़ रहा था.’

हालांकि दिल देह को त्याग दे तो अंतिम संस्कार की स्थिति में पहुँच जाता है आदमी। मगर फिर भी दिल की चोरी हो जाना अपने यहां बहुत लोकप्रिय काम रहा है। प्राचीनकाल से ही यह परम्परा हमारे यहां चली आ रही है। संस्कृति तथा संस्कारों का शील-हरण होने से बचाने के लिये हलकान रहने वाले लोग, लाख दिलों की चोरी के मामले खाप पंचायतों में निबटाने के लिये दृढ़प्रतिज्ञ रहते हों मगर ‘दिल है कि मानता नहीं।’ कहीं न कहीं से आवाज आती ही रहती है कि ‘एक परदेसी मेरा दिल ले गया।’ वैसे, यह भी कहा जाता है कि ‘चल दरिया में डूब जायें’ वाले लोगों के दिल ही चोरी होते हैं। दिमाग वाले लोग दिल चुराने या दिल दे देने जैसी बेवकफूी नहीं करते हैं। वे अच्छे बच्चों की तरह शादी कर लेते हैं। हलांकि दिलवाले लोगों की धारणा है कि यह आत्महत्या करने जैसा ही होता है। जबकि आत्महत्या करना एक प्रकार से अपराध होता है। पुलिस के साथ धोखाधड़ी करना होता है। जिसमें अपराधी पुलिस को सहयोग नहीं करता है... पुलिस आत्महत्या करने वाले का कुछ नहीं उखाड़ पाती है। हाथ मलती रह जाती है. वर्ग विशेष आत्महत्या को किसी के अधिकारों का हनन भी मानता है। उसकी दलील होती है कि समाज में हमारे होते हुये किसी को क्या अधिकार है कि वह खुद अपनी हत्या कर ले। हत्या करने का अधिकार तो हत्यारों के पास होता है। इस दावे को खारिज करते हुये कुछ विशेष श्रेणी की स्त्रियों का मानना है कि दुनिया से जाने के लिये हत्या या आत्महत्या जैसे साधन हिंसक उपाय हैं। यह काम अहिंसक रूप से भी किये जा सकते हैं। आदमी विवाह कर ले तो धीरे-धीरे स्वयं निबट लेगा।

बहरहाल, दिल चोरी करके या दिल लगा कर भाग जाने वालों की रपट लिखने में पुलिस भी आनाकानी करती है। इसे टाइम खोटा करने वाला काम मानती है। वह समझा देती है कि घर जा कर प्रीतिभोज की तैयारी करो। मैरिज सर्टीफिकेट के साथ आते ही होंगे। और हां, प्रतिभोज का एक ठौ निमंत्र्ण पत्र इस ओर भी भिजवा देना। हम भी आशीर्वाद देने आ जायेंगे।

जो भी हो, आजकल रिकार्ड बनाने का फैशन भी चल रहा है। सत्तर साल में पहली बार ऐसा कौतुक देखने में आ रहा है कि अगले केवल रिकार्ड बनाने के लिये काम कर रहे हैं। रिकार्ड से नीचे बात ही नहीं करते हैं। और कोई रिकार्ड नहीं बना पाये तो कुछ खिचड़ी बनाने का ही रिकार्ड बना लिया गया। कहा गया कि खिचड़ी राष्ट्रीय व्यंजन है। रातों रात खिचड़ी को राष्ट्रीय व्यंजन होने का सम्मान प्राप्त हो गया। पता नहीं, देश बीमार हो गया है या देश चलाने वालों का हाजमा धोखा दे रहा है, जो खिचड़ी खिलाई जा रही है। हम तो खिचड़ी को तभी मुंह लगाते रहे हैं जब खटिया पकड़ ली हो। डॉक्टर ने कह दिया हो कि केवल दवा और दुआओं से काम नहीं चलेगा। खुद भी

सुधरना पड़ेगा। बहुत खा लिया पेट बिगाड़ू चाऊमीन। अब खिचड़ी से दिल लगाओ।

सयाने कहते हैं कि भारत का तो कोई एक राष्ट्रीय व्यंजन हो ही नहीं सकता है। यहां तो देवता तक थाली में छप्पन प्रकार के व्यंजन से नीचे कम्प्ररोमाइज ही नहीं करते हैं। जैसे घर न हो, होटल हो। जहां कोई और काम ही न हो बनाने खिलाने के अतिरिक्त।

तो क्या किसी सूबे के दिल्ली आ जाने से सारी बातें बदल जाती हैं। दिल्ली का तो अपना कोई व्यंजन ही नहीं है। पूरा भारत वहां समाया है। खाने पचाने में माहिर सब वहां खा रहे हैं। धूल, धुआं, घूस सब पचाये जा रहे हैं वे।

लेकिन आज गुजरात दिल्ली में है तो खिचड़ी सिर बोल रही है। कल बिहार दिल्ली आ जायेगा तो चोखा-बाटी, सतुआ का रिकार्ड बनाने बैठ जायेंगे। ऐसे में खिचड़ी गुजरात में ही कहीं ठिठकी रहेगी। फिर बिहार ही क्यों, हरियाणा पंजाब पड़ोसी हैं। उन्होंने सबको धकेल दिया तो छोले-भटूरे राज करेंगे। वहां दक्षिण के राज इडली डोसा के लिये मचल रहे होंगे। बंगाल क्यों पीछे रहे। वह मांछ-भात की थाली रिकार्ड के लिये सजाये बैठा होगा। अपना पूर्वी उत्तर प्रदेश बेचारा गुड़ चबैने पर ही संतोष कर लेगा। हालांकि सब के वश की बात नहीं होती गुड़-चबैना चबाना। गन्ना छीलू दांत तथा लक्कड़-पत्थर हजम आंत ही गुड़-चबैना को चुनौती देने की हिम्मत रखते हैं।

ऐसे राष्ट्रीय परिदृश्य में कौन जाने, कि चोरी का रिकार्ड बनाने भी निकल पड़े हों रिकार्ड बनाने के महत्वाकांक्षी। हालांकि ‘गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड’ वाले भी कम नकचढ़े नहीं होते हैं। अच्छों-अच्छों को नहीं सेंटते हैं। पड़ोसी देश के घाड़ू परमाणु बम बनाने की तकनीकी उड़ा लाते हैं। गिनीज वाले उन्हें मुंह लगाने लायक भी नहीं समझते हैं।

फिर भी, कहते हैं कि ‘हारिये न हिम्मत, बिसारिये न राम को’। भाषा में साम्प्रदायिक सौहार्द्र बनाये रखने के लिये यह भी कहा जाता है कि ‘हिम्मते मदरं, मददे खुदा’। इन्हीं प्रेरक मंत्रों का स्मरण करते हुये आज किसी क्षेत्र में, एक रात में तीन चोरियां हुई हों। इनसे लोग आहत नहीं हुये, प्रोत्साहन मिला तो कल तीस, तीन सौ या तीन हजार चोरी का स्कोर भी हो सकता है। आखिर कहां तक इस रिकार्ड को दर्ज करने से भागते रहेंगे गिनीज वाले।

सम्पर्क : 3-गुरुद्वारा, नगरा, झांसी-284003

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रचनाकार: हास्य-व्यंग्य // यहां वहां की // रिकॉर्ड बनाने के महत्वाकांक्षी // दिनेश बैस // प्राची - दिसंबर 2017 : लघुकथा विशेषांक
हास्य-व्यंग्य // यहां वहां की // रिकॉर्ड बनाने के महत्वाकांक्षी // दिनेश बैस // प्राची - दिसंबर 2017 : लघुकथा विशेषांक
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