देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–10 : 4 छोटा चना // सुषमा गुप्ता

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4 छोटा चना [1] एक बार की बात है कि इटली में एक पति पत्नी रहते थे। उनके कोई बच्चा नहीं था। पति बढ़ई का काम करता था और पत्नी उसका घर सँभालती थी...

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4 छोटा चना[1]

एक बार की बात है कि इटली में एक पति पत्नी रहते थे। उनके कोई बच्चा नहीं था। पति बढ़ई का काम करता था और पत्नी उसका घर सँभालती थी। वह जब घर आ जाता था तो उसे कोई काम नहीं होता था सिवाय अपनी पत्नी को डाँटने के क्योंकि उसके कोई बच्चा नहीं था।

वह स्त्री भी बच्चा न होने की वजह से बहुत दुखी रहती थी और अक्सर रोती रहती थी। वह बहुत दान देती थी। चर्च में बहुत सारे त्यौहार मनाती थी पर फिर भी उसके कोई बच्चा नहीं था।

एक दिन एक स्त्री उसके दरवाजे पर भीख माँगने आयी तो बढ़ई की पत्नी ने उससे कहा — “मैं तुम्हें कुछ नहीं दूँगी क्योंकि मैंने बहुत सारा दान दिया है, चर्च में बहुत दिनों तक बहुत सारी पूजा की हैं और वहाँ के त्यौहार मनाये हैं और फिर भी मेरे कोई बेटा नहीं है।”

“तुम मुझे दान दो तुम्हारे बच्चे हो जायेंगे।”

“अगर ऐसा है तो मैं तुम्हें उतना दूँगी जितना तुम चाहोगी।”

“तुम मुझे एक पूरी डबल रोटी दो और फिर मैं तुमको कुछ दूँगी जिससे तुम्हारे बच्चे होंगे।”

“अगर ऐसा है तो मैं तुमको दो डबल रोटियाँ दूँगी।”

“नहीं नहीं। इस समय तो मुझे केवल एक ही डबल रोटी चाहिये। तुम मुझे दूसरी डबल रोटी तब दे देना जब तुम्हारे बच्चे हो जायें।”

सो बढ़ई की पत्नी ने उसको एक डबल रोटी दे दी। वह स्त्री बोली — “ठीक है अब मैं अपने घर जाती हूँ। मुझे अपने बच्चों को भी खाना खिलाना है वे भूखे होंगे। उसके बाद मैं तुम्हारे लिये वह चीज़ ले कर आती हूँ जिससे तुम्हारे बच्चे होंगे।”

“ठीक है।”

कह कर वह स्त्री घर चली गयी। उसने अपने बच्चों को खाना खिलाया। एक थैला उठा कर उसमें कुछ सफेद चना[2] भरा और बढ़ई की पत्नी के घर चल दी।

वहाँ जा कर उसने बढ़ई की पत्नी से कहा — “लो यह चनों का थैला है। इनको तुम अपने आटा मलने वाले बरतन में रख दो। अगले दिन इनमें से इतने ही बच्चे निकल आयेंगे।”

बढ़ई की पत्नी ने उस थैले में झाँक कर देखा तो उसमे तो चने के सौ दाने थे। उसने आश्चर्य से पूछा — “पर चने के सौ दाने बच्चों में कैसे बदल सकते हैं?”

“यह तुम कल देखना।”

बढ़ई की पत्नी ने सोचा “मैं इस सबके बारे में अपने पति को कुछ नहीं बताऊँगी क्योंकि अगर किसी वजह से इन दानों में से बच्चे नहीं निकले तो वह तो मुझे बहुत डाँटेगा।”

पर उसने उन चनों को अपने आटा मलने वाले बरतन में रख दिया और बेचैनी से सुबह का इन्तजार करने लगी।

रोज की तरह से बढ़ई घर वापस लौटा तो उसने अपनी पत्नी को खूब डाँटा। पर उस रात वह कुछ नहीं बोली और यह कहती हुई सोने चली गयी “कल देखना।”

अगली सुबह तो उसके वे चनों के 100 दाने उसके 100 बेटे बन चुके थे।

एक चिल्लाया — “पिता जी, मुझे कुछ पीने को चाहिये।”

दूसरा चिल्लाया — “पिता जी, मुझे कुछ खाने को चाहिये।”

एक दूसरा बोला — “पिता जी, मुझे गोद में उठा लो।”

इस सबको देख कर बढई ने एक डंडी उठायी, उस बरतन की तरफ दौड़ा गया जिसमें वे सब बच्चे थे और उन सबको मार दिया। यह तो तुमको मालूम ही है कि वे सब कितने छोटे थे – केवल चने जितने बड़े।

पर किस्मत से उनमें से एक बच्चा बाहर कूद गया और जा कर उनके सोने वाले कमरे में एक घड़े के हैन्डिल पर जा कर छिप गया।

जब बढ़ई अपनी दूकान पर चला गया उसकी पत्नी बोली — “यह भी क्या गधा है। अब तक तो वह मेरे बच्चे न होने पर नाराज था और आज जब बच्चे हुए तो उसने उन सबको मार दिया।”

यह सुन कर उस बच्चे ने जो बच कर भाग गया था अपनी माँ से पूछा — “माँ, क्या पिता जी गये?”

“हाँ गये।” पर यह आवाज सुन कर तो वह खुद भी चौंक गयी कि यह आवाज कहाँ से आयी क्योंकि उसके पति ने तो उसके सब बच्चों को मार डाला था।

उसने आश्चर्य से पूछा — “अरे तुम कैसे बच गये। कहाँ हो तुम?”

“ओह चुप माँ चुप, मैं यहाँ घड़े के हैन्डिल पर बैठा हूँ। बस तुम मुझे यह बता दो कि पिता जी गये क्या?”

माँ बोली — “हाँ गये। अब तुम बाहर निकल आओ।”

सो वह बच्चा बाहर निकल आया। उसको देखते ही माँ के मुँह से निकला — “अरे तुम कितने सुन्दर हो। मै तुम्हें क्या कह कर पुकारूँ?”

बच्चा बोला — “चिचीनो[3]।”

माँ बोली — “बहुत अच्छे चिचीनो। तुम्हें पता है चिचीनो कि अब तुम्हारे पिता के खाने का समय हो गया है सो अब तुम अपने पिता को उनकी दूकान पर खाना दे आओ।”

“ठीक है। तो तुम मेरे सिर पर खाने की टोकरी रख दो मैं उनको उनकी दूकान पर खाना दे आता हूँ।”

जब खाने का समय हुआ तो बढ़ई की पत्नी ने उसके सिर पर खाने की टोकरी रख दी और उसको अपने पति की दूकान पर उसका खाना ले कर भेज दिया।

जब चिचीनो दूकान के पास पहुँचा तो उसने अपने पिता को ज़ोर ज़ोर से बुलाना शुरू कर दिया — “पिता जी, आइये और मुझसे मिलिये। मैं आपका खाना ले कर आ रहा हूँ।”

उसको देख कर बढ़ई ने सोचा “क्या मैंने सबको मार नहीं दिया था या फिर उनमें से कोई बच गया?”

सो वह चिचीनो के पास गया और उससे पूछा — “अरे मेरे अच्छे बेटे, तुम मेरी मार से कैसे बच गये?”

“मैं उस बरतन में से बाहर गिर गया था पिता जी और फिर वहाँ से सोने वाले कमरे में चला गया। वहाँ मैं घड़े के हैन्डिल के ऊपर जा कर छिप कर बैठ गया इसी लिये मैं बच गया।”

“बहुत अच्छे चिचीनो। अब तुम ऐसा करो कि तुम देश की जनता में जाओ और वहाँ जा कर पता करो कि किसी के पास ऐसी कोई टूटी चीज़ है क्या जो वह मरम्मत करवाना चाह रहा हो।”

“ठीक है।”

कह कर बढ़ई ने चिचीनो को अपनी जेब में रख लिया और घर की तरफ चल दिया।

जब वह घर जा रहा था तो वह रास्ते भर उससे बात करता रहा। उसके आस पास किसी को न देख कर लोगों ने समझा कि वह पागल हो गया है क्योंकि उनको तो यह पता ही नहीं था कि उसकी जेब में उसका बेटा बैठा था।

जब वह घर जा रहा था तो उसको बहुत सारे लोग मिले। उसने उनसे पूछा — “क्या आपके पास कुछ मरम्मत कराने के लिये है?”

“हाँ है तो। हमारे पास हमारे बैलों की कुछ चीजें. हैं मरम्मत कराने के लिये पर वे चीज़ें हम तुमको नहीं देंगे क्योंकि तुम तो हमको कुछ पागल से लगते हो।”

बढ़ई बोला — “तुम्हारा यह कहने का क्या मतलब है कि मैं तुम्हें कुछ पागल सा लगता हूँ? मैं तुम सबसे बहुत होशियार हूँ। तुम मुझसे यह क्यों कहते हो कि मैं पागल सा लगता हूँ?”

“ऐसा हम इसलिये कहते हैं कि तुम्हारे पास कोई है तो नहीं पर फिर भी तुम बात किये जा रहे हो।”

“मेरे पास मेरा बेटा है। मैं उसी से बात कर रहा था।”

“तुम्हारा बेटा? पर वह है कहाँ?”

“वह मेरी जेब में है।”

“अरे वाह। यह तो बेटे को रखने की बड़ी अच्छी जगह है।”

“हाँ वह तो है। मैं तुमको अभी दिखाता हूँ।”

कह कर उसने अपनी जेब से चिचीनो को निकाला जो इतना छोटा था कि वह अपने पिता की एक उँगली पर खड़ा हुआ था।

“ओह कितना प्यारा बच्चा है तुम इसको हमें बेच दो।

“क्या? तुम क्या सोचते हो कि मैं अपना वह बेटा तुमको बेचूँगा जो मेरे लिये इतना कीमती है? नहीं नहीं कभी नहीं।”

“ठीक है मत बेचो।”

तब वह क्या करेगा? उसने चिचीनो को उसके बैल के एक सींग पर बिठा दिया और उससे कहा — “तुम यहाँ थोड़ी देर बैठो मैं जरा घर से इसके बैलों के सामान की मरम्मत का सामान ले कर आता हूँ।”

“हाँ हाँ आप डरिये नहीं। मैं यहाँ इस बैल के सींग पर ही बैठा रहूँगा।”

बढ़ई चिचीनो को बैल के सींग पर बिठा कर उनके बैलों के सामान की मरम्मत करने का सामान लेने घर चला गया।

इस बीच दो चोर वहाँ से गुजरे तो उन्होंने रास्ते में दो बैलों को देखा तो उनमें से एक चोर बोला — “तुम उन दो बैलों को वहाँ खड़े देख रहे हो न। चलो उनको चुरा लेते हैं।”

यह सोच कर जैसे ही वे उनके पास गये तो चिचीनो चिल्ला पड़ा — “पिता जी देखिये, यहाँ तो चोर हैं। वे आपके बैल चुरा रहे हैं।”

यह सुन कर एक चोर बोला — “अरे यह आवाज कहाँ से आयी?”

यह देखने के लिये कि यह कौन बोला वे उन बैलों के और पास गये तो उनको और पास आता देख कर चिचीनो ने और ज़ोर से चिल्लाना शुरू कर दिया — “पिता जी अपने बैल देखिये, चोर आपके बैलों को चुराने आ रहे हैं।”

पर फिर भी उनकी समझ में नहीं आया कि वह आवाज कहाँ से आ रही थी।

तभी बढ़ई वहाँ आ गया तो चोरों ने उससे पूछा — “ओ भले आदमी यह आवाज कहाँ से आ रही थी?”

“यह मेरे बेटे की आवाज है।”

“पर तुम्हारा बेटा तो हमको कहीं दिखायी नहीं दे रहा। वह है कहाँ?”

“अरे तुमको दिखायी नहीं दे रहा वह? वह बैठा है एक बैल के सींग के ऊपर।”

जब उसने उनको अपना बेटा दिखाया तो वे भी बोले — “तुम हमको अपना बेटा बेच दो। हम इसके लिये तुमको जितना तुम चाहोगे उतना पैसा देंगे।”

बढ़ई बोला — “यह तुम क्या कह रहे हो? मैं तो तुम्हें इसे बेच भी दूँ पर तुम नहीं जानते कि अगर मैंने इसे तुम्हें बेच दिया तो मेरी पत्नी कितनी नाराज होगी।”

“मैं बताऊँ कि तुम अपनी पत्नी से क्या कहना। तुम कहना कि वह रास्ते में मर गया।”

उन चोरों ने उसको इतना ज़्यादा लालच दिया कि उसने उनसे दो थैले भर कर पैसे ले कर चिचीनो को उन्हें बेच दिया। उनमें से एक चोर ने चिचीनो को अपनी जेब में रखा और वे आगे चल दिये।

चिचीनो और चोर

जब वे चोर चिचीनो को ले कर जा रहे थे तो वे राजा के अस्तबल के सामने से गुजरे। उनमें से एक बोला — “चलो ज़रा देखते हैं कि राजा के अस्तबल में क्या है और हम वहाँ से एक घोड़े का जोड़ा चुरा सकते हैं या नहीं।”

“हाँ ठीक है।”

फिर उन्होंने चिचीनो से कहा — “देखो तुम हमको धोखा मत देना।”

“डरो नहीं, मैं तुम्हें धोखा नहीं दूँगा।”

सो वे दोनों राजा के अस्तबल में जा पहुँचे और वहाँ से उन्होंने तीन घोड़े चुरा लिये। उनको वे अपने घर ले गये ओर उनको अपने अस्तबल में बाँध दिया।

clip_image004बाद में उन्होंने चिचीनो से कहा — “देखो हम लोग बहुत थक गये हैं। तुम हमारा एक काम कर दो कि तुम नीचे जाओ और घोड़ों को ओट्स[4] खिला दो।”

सो चिचीनो उन घोड़ों को ओट्स खिलाने के लिये नीचे चला गया। वहाँ जा कर वह एक घोड़े के सिर के ऊपर लगे चमड़े के साज पर सो गया। इस बीच में एक घोड़ा उसको खा गया।

जब चिचीनो घोड़ों को ओट्स खिला कर वापस नहीं लौटा तो चोरों ने सोचा कि वह शायद अस्तबल में ही सो गया होगा सो वे उसको वहाँ देखने गये।

वहाँ जा कर उन्होंने उसको पुकारा — “चिचीनो तुम कहाँ हो?”

चिचीनो घोड़े के पेट के अन्दर से ही बोला — “मैं काले घोड़े के अन्दर हूँ।” यह सुन कर चोरों ने काले घोड़े को मार दिया पर चिचीनो तो उनको वहाँ पर कहीं भी नहीं मिला

उन्होंने उसको फिर पुकारा — “चिचीनो तुम कहाँ हो?”

अब की बार चिचीनो बोला — “मैं कत्थई घोड़े के अन्दर हूँ।” यह सुन कर चोरों ने कत्थई घोड़े को भी मार दिया पर चिचीनो उनको वहाँ पर भी कहीं नहीं मिला।

वहाँ जा कर उन्होंने उसको फिर पुकारा — “चिचीनो तुम कहाँ हो?” पर इस बार चिचीनो चुप ही रहा बोला नहीं।

चोर बहुत दुखी हो गये। वे बोले — “कितने दुख की बात है कि वह बच्चा हमारे कितने काम का था और वह अब हमें नहीं मिल रहा।” तब उन्होंने अपने दोनों मारे गये घोड़ों को अस्तबल से खींच कर बाहर निकाल लिया।

तभी वहाँ से एक बहुत ही भूखा भेड़िया जा रहा था। उसने उन दोनों घोड़ों को वहाँ पड़ा देखा तो उसने सोचा कि आज तो उसकी अच्छी दावत रहेगी।

सो उसने वहाँ उन घोड़ों का माँस खूब पेट भर कर खाया। इसी खाने के साथ साथ चिचीनो भी उसके पेट में चला गया। उसके बाद वह भेड़िया वहाँ से चला गया। दोबारा भूख लगने पर उसने सोचा कि अब की बार वह बकरा खायेगा।

जब चिचीनो ने भेड़िये को बोलते सुना तो वह ज़ोर से चिल्लाया — “ओ बकरियों के रखवालों, देखो यह भेड़िया तुम्हारी बकरियाँ खाने आ रहा है।”

भेड़िये ने जब यह सुना तो उसको लगा कि हो सकता है कि शायद कुछ हवा उसके पेट के अन्दर चली गयी है यह वही बोल रही है।

उसने खुद को एक पत्थर से टकराया ताकि उससे उसकी हवा निकल जाये। इससे उसकी हवा और चिचीनो दोनों ही बाहर आ गये। चिचीनो एक पत्थर के नीचे छिप गया ताकि भेड़िया उसे देख न ले।

चिचीनो और डाकू

उसी समय तीन डाकू पैसों का एक थैला ले कर उधर से जा रहे थे तो वे वहीं अपने पैसों का बँटवारा करने के लिये वहाँ रुक गये।

उनमें से एक बोला — “अब देखो मैं एक एक करके गिनता हूँ और तुम सब लोग चुप रहना। अगर कोई बोला तो मैं उसकी जान ले लूँगा।”

अब तुम सोच सकते हो कि सभी चुप हो कर बैठ गये क्योंकि कोई मरना नहीं चाहता था।

अब उसने गिनना शुरू किया — “एक, दो, तीन, चार और पाँच।”

तभी चिचीनो बोला — “एक, दो, तीन, चार और पाँच।”

यानी उसने उस डाकू के शब्द दोहरा दिये।

गिनने वाला डाकू बोला — “तो तुम लोग चुप नहीं रहोगे। बस अब मैं तुम्हें मारने वाला हूँ।” और यह कह कर उसने एक आदमी को मार दिया।

“मैं अब देखता हूँ कि अब तुम चुप रहते हो कि नहीं। अगर अब भी तुम बोले तो मैं तुम्हारी भी जान ले लूँगा।”

कह कर उसने फिर से गिनना शुरू कर दिया — “एक, दो, तीन, चार और पाँच।”

चिचीनो ने फिर से डाकू के शब्द दोहरा दिये — “एक, दो, तीन, चार और पाँच।”

“ध्यान रखना अगर मुझे तुमसे फिर से कहना पड़ा कि चुप रहो तो मैं तुम्हें जान से मार दूँगा।”

“तुम क्या सोचते हो कि क्या मैं बोलना चाहूँगा? मैं मरना नहीं चाहता।”

उसने फिर से गिनना शुरू कर दिया — “एक, दो, तीन, चार और पाँच।”

चिचीनो ने फिर से डाकू के शब्द दोहरा दिये — “एक, दो, तीन, चार और पाँच।”

डाकू बोला — “तुम चुप नहीं रहोगे। अब मैं तुम्हें मारता हूँ।” और उसने दूसरे आदमी को भी मार दिया।

वह फिर बोला — “अब तो मैं अकेला हूँ अब मैं अपने आप गिन सकता हूँ। अब मेरे बीच में कोई नहीं बोलेगा।”

सो उसने फिर से गिनना शुरू किया — “एक, दो, तीन, चार और पाँच।”

और चिचीनो ने फिर से डाकू के शब्द दोहरा दिये — “एक, दो, तीन, चार और पाँच।”

डाकू बोला — “लगता है कि यहाँ कोई छिपा हुआ है। मुझे यहाँ से भाग जाना चाहिये नहीं तो वह मुझे मार देगा।”

यह सोचते ही डर के मारे उसने अपना पैसे का थैला तो वहीं छोड़ा और वहाँ से भाग लिया।

जब चिचीनो ने यह पक्का कर लिया कि अब वहाँ कोई नहीं है तो वह पत्थर के नीचे से निकला, पैसे का थैला अपने सिर पर रखा और अपने घर की तरफ चल दिया।

जब उसकी माँ ने उसे आते हुए सुना तो वह उसको बाहर तक लेने के लिये आयी। उसके सिर से पैसे का थैला उतारा और बोली — “ज़रा ध्यान से चिचीनो। देखना तू कहीं इस बारिश के पानी में न डूब जाना।”

कह कर माँ घर के अन्दर चली गयी पर वह चिचीनो को देखने के लिये मुड़ी कि वह उसके पीछे आ रहा है या नहीं तो वह तो उसे कहीं दिखायी ही नहीं दिया।

उसने अपने पति को बताया कि चिचीनो ने क्या किया था। फिर उन दोनों ने उसको इधर उधर बहुत खोजा तब कहीं जा कर वह उनको बारिश के पानी के एक छोटे से गड्ढे में डूबा हुआ मिला।

उसने उसको गड्ढे में से बाहर निकाला और घर में अन्दर ले कर आयी।

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[1] Little Chickpea (Story No 77) – a folktale from Italy.

Aadapted from the book: “Italian Popular Tales”. By Thomas Frederick Crane. London, 1885.

Available free at :

https://books.google.ca/books?id=RALaAAAAMAAJ&pg=PR1&redir_esc=y#v=onepage&q&f=false

[This story reminds us the story of “Tom Thumb” It is the Tuscan version of the “Tom Thumb”]

[2] Translated for the word “Chickpeas” – it is called “Chanaa” or “Chholaa” or “Kaabulee Chanaa” too in North India

[3] Cecino – name of the remaining child

[4] Oats is kind of grain – see its picture above.

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः  - रैवन की लोक कथाएँ,  इथियोपिया इटली की  ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

(क्रमशः अगले अंकों में जारी….)

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–10 : 4 छोटा चना // सुषमा गुप्ता
देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–10 : 4 छोटा चना // सुषमा गुप्ता
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