15 शैतान ने तीन बहिनों से शादी कैसे की [1] एक बार की बात है कि एक शैतान को शादी करने की बड़ी इच्छा हुई। सो उसने नरक छोड़ा, एक बहुत ही सुन्दर न...
15 शैतान ने तीन बहिनों से शादी कैसे की[1]
एक बार की बात है कि एक शैतान को शादी करने की बड़ी इच्छा हुई। सो उसने नरक छोड़ा, एक बहुत ही सुन्दर नौजवान का रूप रखा और एक बहुत ही बड़ा और सुन्दर मकान बनाया।
जब वह मकान पूरा बन गया तो उसमें उसने सब तरह का सबसे ज़्यादा फैशनेबिल जरूरत का सामान रखवाया और सब तरह की सजावट करवायी।
उसके बाद वह एक परिवार में गया और अपना परिचय दिया। उस परिवार में तीन बेटियाँ थीं। उसने उनमें से सबसे बड़ी वाली लड़की को पटाया और उसको खुश किया। वह उससे शादी करने को राजी हो गयी।
लड़की के माता पिता यह देख कर बहुत खुश थे कि उनकी बेटी की शादी कितने अच्छे घर में हो रही थी। जल्दी ही दोनों की शादी हो गयी। शादी के बाद शैतान लड़की को अपने घर ले गया।
घर ले जा कर उसने अपनी पत्नी को बहुत बढ़िया फूलों का एक छोटा सा गुलदस्ता दिया जो उसने उसके सीने पर लगा दिया। फिर वह उसको अपने घर के सारे कमरे दिखाने ले गया।
आखीर में वह एक बन्द दरवाजे के पास आया और उससे बोला — “यह सारा मकान तुम्हारा है तुम इसमें कुछ भी कर सकती हो पर किसी भी हालत में तुम इस दरवाजे को मत खोलना।”
पत्नी ने उसका कहा मानते हुए उस समय तो हाँ में सिर हिला दिया पर वह तो उस पल का ही इन्तजार करती रही जब उसको वह बन्द दरवाजा खोल कर देखना था।
अगली सुबह शैतान ने उससे कहा कि वह शिकार को जा रहा है। सो जब वह शैतान घर से बाहर चला गया तो तुरन्त ही वह लड़की उस बन्द दरवाजे की तरफ दौड़ी और उसे खोल दिया।
वहाँ तो उसने बहुत ही भयानक आग जलती देखी जो उसकी तरफ बढ़ी और उससे उसके सीने पर लगे वे फूल मुरझा गये जो उसके पति ने उसको दिये थे।
जब उसका पति घर आया तो उसने उससे पूछा कि उसने वह दरवाजा खोला तो नहीं तो उसने बिना किसी हिचक के जवाब दिया “नहीं”। पर जब शैतान ने अपने दिये फूलों की तरफ देखा तो उसको पता चल गया कि वह झूठ बोल रही है।
वह बोला — “अब मैं तुम्हारी उत्सुकता का और ज़्यादा इम्तिहान नहीं लूँगा। आओ मेरे साथ आओ मैं तुमको खुद दिखाता हूँ कि इस दरवाजे के पीछे क्या है।”
कह कर वह उसको दरवाजे तक ले गया, वह दरवाजा खोला और उसको इतने ज़ोर का धक्का दिया कि वह नरक में जा पड़ी। उसके बाद उसने वह दरवाजा बन्द कर लिया।
कुछ महीने बीतने के बाद उसने उसी परिवार की दूसरी लड़की को अपने साथ शादी करने के लिये पटाया और उसका दिल जीत लिया। उसके साथ भी ठीक वही हुआ जो उसकी बड़ी बहिन के साथ हुआ था।
अन्त में वह उसी परिवार की तीसरी लड़की के पास गया। यह लड़की होशियार थी। उसने सोचा “यकीनन इसने मेरी दोनों बहिनों को मार डाला है पर यह मेरे लिये अच्छा जोड़ा है। सो अब की बार मैं इसके साथ जाती हूँ और देखती हूँ कि मैं उन दोनों से ज़्यादा खुशकिस्मत हूँ या नहीं।”
और इस प्लान के साथ उसने उससे शादी के लिये हाँ कर दी। उसको भी घर ले जाने के बाद उसने उसे एक बहुत सुन्दर फूलों का छोटा सा गुलदस्ता दिया और उसको उसके सीने पर लगा दिया।
फिर वह उसको अपने घर के सारे कमरे दिखाने ले गया और एक बन्द दरवाजे को दिखाते हुए उससे उसको हर हाल में खोलने से मना कर दिया।
वह लड़की अपनी बहिनों की तरह उतनी उत्सुक तो नहीं थी पर फिर भी अगले दिन जब उसका पति घर से बाहर चला गया तो उसने वह बन्द दरवाजा खोला। पर इत्तफाक से उसने अपने सीने पर लगे फूल पहले से ही पानी में रख दिये थे।
सो उसने भी वह दरवाजा खोलने पर वह भयानक आग देखी और देखीं उसमें अपनी दोनों बहिनें।
उसके मुँह से निकला — “उफ़ मैं कितनी लाचार हूँ। मैं तो सोचती थी कि मैंने एक सामान्य आदमी से शादी की है पर यह तो शैतान है। अब मैं इसके चंगुल से बाहर कैसे निकलूँ।”
फिर उसने अपनी दोनों बहिनों को बड़ी सावधानी से उस नरक में से बाहर खींचा और उन्हें छिपा दिया। उसके बाद उसने वह फूलों का गुलदस्ता फिर से अपने सीने पर लगा लिया।
जब शैतान घर आया तो उसने अपने दिये हुए उन फूलों की तरफ देखा जो उसने उसके सीने पर लगाये थे। वे फूल उसको बिल्कुल ताजा लगे सो उसने उस लड़की से कोई सवाल नहीं पूछा। उसको विश्वास हो गया कि उसने अपना वायदा निभाया था। पहली बार उसने उसको सचमुच में प्यार किया।
कुछ दिनों बाद उस लड़की ने अपने पति से कहा कि क्या वह तीन आलमारियाँ रास्ते में बिना कहीं उनको नीचे रखे और बिना आराम किये उसके पिता के घर ले जायेगा।
शैतान ने कहा “हाँ हाँ क्यों नहीं।”
“पर ध्यान रहे कि तुम अपना वायदा याद रखना क्योंकि मैं तुमको यहाँ से देखती रहूँगी।”
शैतान ने उससे वायदा किया कि वह वैसा ही करेगा जैसा उसने उससे करने के लिये कहा है।
सो अगले दिन उसने अपनी एक बहिन को एक आलमारी में बन्द किया और उसको अपने पति के कन्धों पर लाद दिया। वह शैतान ताकतवर तो बहुत था पर साथ में सुस्त भी था। इसके अलावा उसको काम करने की आदत भी नहीं थी।
वह उस आलमारी को ले कर चला तो उस भारी आलमारी को उठाते उठाते थक गया। इससे पहले कि वह अपनी उस सड़क से बाहर निकलता जहाँ उसका मकान था वह कुछ देर आराम करना चाहता था कि उसकी पत्नी चिल्लायी — “इसको नीचे नहीं रखना। मैं तुम्हें देख रही हूँ।”
शैतान अनमनेपन से उस आलमारी को ले कर चलता रहा जब तक कि वह अपनी सड़क के कोने पर नहीं आ गया। वहाँ आ कर उसने सोचा कि यहाँ तो वह मुझको नहीं देख पायेगी सो मैं यहाँ इसको नीचे रख कर थोड़ा आराम कर लेता हूँ।
वह बस उस आलमारी को नीचे रखने ही वाला था कि उसकी पत्नी की बहिन जो उस आलमारी के अन्दर थी बोली — “इसको नीचे मत रखना मैं तुम्हें देख रही हूँ।”
गालियाँ देते हुए वह उस आलमारी को दूसरी सड़क तक ले गया और किसी दूसरे के घर के दरवाजे पर उसको फिर से रखने ही वाला था कि उसने फिर से उसकी बहिन की आवाज सुनी “इसको नीचे मत रखना मैं अभी भी तुम्हें देख रही हूँ।”
उसने सोचा मेरी पत्नी की ऑखें कैसी हैं कि वह सीधे तो सीधे कोने के दूसरी तरफ भी देख लेती हैं। और शायद वे दीवार के आरपार भी देख लें अगर वे शीशे की बनी हों।
इस तरह सोचते सोचते पसीने से लथपथ बहुत थका हुआ वह अपनी सास के घर आ पहुँचा। वहाँ उसने वह आलमारी उसको दी और तुरन्त ही घर वापस लौट गया ताकि घर जा कर वह बढ़िया नाश्ता कर सके।
अगले दिन भी वही हुआ। वह दूसरी आलमारी ले कर अपनी सास के घर गया और उसको उसको दे कर तुरन्त ही वापस आ गया।
तीसरे दिन उस लड़की को खुद को एक आलमारी में बैठ कर जाना था। सो उसने अपनी एक मूर्ति बनायी और उसको अपने कपड़े पहना दिये।
उसको उसने उस शैतान के मकान के छज्जे पर खड़ा कर दिया और खुद आलमारी में जा कर बैठ गयी। एक दासी ने उस आलमारी को शैतान के कन्धे पर रख दिया।
उसको उठाते हुए वह बुड़बुड़ाया — “उफ़ यह आलमारी तो उन दोनों आलमारियों से कहीं ज़्यादा भारी है। और आज जब वह छज्जे पर बैठी हुई है तो आज तो मेरे आराम करने का कोई मौका भी नहीं है।”
सो बड़ी मुश्किल से उस भारी आलमारी को उठा कर वह अपनी सास के घर बिना रुके चला। वहाँ उसने वह आलमारी भी अपनी सास को दी और जल्दी से अपने घर नाश्ते के लिये वापस दौड़ पड़ा। आज तो वह भारी आलमारी ले जाते ले जाते उसकी कमर ही टूट गयी थी।
पर आज जब वह घर पहुँचा तो रोज की तरह से उसकी पत्नी आज उसको लेने बाहर नहीं आयी। यहाँ तक कि उसका नाश्ता भी तैयार नहीं था सो उसने उसे आवाज लगायी — “मारगरीटा[2] तुम कहाँ हो?” पर उसकी इस पुकार का भी उसको कोई जवाब नहीं मिला।
वह अपने मकान में चारों तरफ भागता फिरा। एक बार उसकी नजर एक कमरे की खिड़की के बाहर पड़ी तो उसने देखा कि उसके छज्जे पर मारगरीटा खड़ी है।
वह बोला — “मारगरीटा, क्या तुम सो गयी हो? नीचे आओ। मैं कुत्ते की तरह थक गया हूँ और भेड़िये की तरह भूखा हूँ।”
फिर भी उसको कोई जवाब नहीं मिला तो वह गुस्से से ज़ोर से चिल्लाया — “अगर तुम नीचे नहीं आयीं तो मैं ऊपर आ कर तुमको नीचे ले कर आता हूँ।” पर मारगरीटा तो हिली भी नहीं।
गुस्से में भर कर वह ऊपर गया और उसके कान पर एक ज़ोर का घूँसा मारा कि उसका तो सिर ही उड़ गया। उसने देखा कि उसका सिर तो एक मूर्ति का सिर था और उसका नीचे का शरीर तो केवल चिथड़ों का बना हुआ था।
यह देख कर तो उसका गुस्सा बहुत ही बढ़ गया। वह अपने सारे घर में चीज़ों को तोड़ता फोड़ता फिरा पर उससे क्या फायदा था। इससे उसकी पत्नी तो मिलने वाली नहीं थी। उसको अपनी पत्नी के गहनों का केवल खाली बक्सा ही मिला।
वह बोला — “सो वह मेरे दिये गहने भी चुरा कर ले गयी।”
वह तुरन्त ही उसके माता पिता को इस बात की खबर करने दौड़ा। पर जब वह उसके घर के पास आया तो उसने देखा कि ऊपर छज्जे पर तो तीनों बहिनें यानी उसकी तीनों पत्नियाँ खड़ी हैं और उस पर हँस रही हैं।
उन तीनों पत्नियों को एक साथ वहाँ खड़ा देख कर तो वह शैतान इतना डर गया कि वह वहीं से उलटे पैरों भाग खड़ा हुआ और फिर अपने घर आ कर ही दम लिया।
उसके बाद से उसने फिर कभी शादी के बारे में सोचा भी नहीं।
[1] How the Satan married Three Sisters (Story No 16)– a folktale from Italy.
Adapted from the book: “Italian Popular Tales”. By Thomas Frederick Crane. London, 1885.
Available free on the Web Site :
https://books.google.ca/books?id=RALaAAAAMAAJ&pg=PR1&redir_esc=y#v=onepage&q&f=false
[2] Margerita – name of the third and the youngest sister
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः - रैवन की लोक कथाएँ, इथियोपिया व इटली की ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.
(क्रमशः अगले अंकों में जारी….)
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