शुद्ध भाषा के समर्थ शिल्पी डॉ. रमेशचन्द्र महरोत्रा // डॉ.चन्द्रकुमार जैन

SHARE:

प्रख्यात भाषा विज्ञानी डॉ.भोलानाथ तिवारी के अनुसार ‘मानक भाषा’ किसी भाषा के उस रूप को कहते हैं  जो उस भाषा के पूरे क्षेत्र में शुद्ध माना जा...

प्रख्यात भाषा विज्ञानी डॉ.भोलानाथ तिवारी के अनुसार ‘मानक भाषा’ किसी भाषा के उस रूप को कहते हैं  जो उस भाषा के पूरे क्षेत्र में शुद्ध माना जाता है तथा जिसे उस प्रदेश का शिक्षित और शिष्ट समाज अपनी भाषा का आदर्श रूप मानता है और प्रायः सभी औपचारिक परिस्थितियों में, लेखन में, प्रशासन और शिक्षा, के माध्यम के रुप में यथासाध्य उसी का प्रयोग करने का प्रयत्न करता है।

उनके विचार में मानकता में निम्नांकित बातें आती हैं—

(1) मानकता का आधार कोई व्याकरणिक या भाषावैज्ञानिक तथ्य अथवा नियम नहीं होते। इसका आधार मूलतः सामाजिक स्वीकृति है। समाज विशेष के लोग भाषा के जिस रूप को अपनी मानक भाषा मान लें, उनके लिए वही मानक हो जाती है।,

(2) इस तरह भाषा की मानकता का प्रश्न तत्त्वतः भाषाविज्ञान का न होकर समाज-भाषाविज्ञान का है। भाषाविज्ञान भाषा की संरचना का अध्ययन करता है, और संरचना मानक भाषा की भी होती है और अमानक भाषा की भी। उसका इससे कोई संबंध नहीं कि समाज किसे शुद्ध मानता है और किसे नहीं। इस तरह मानक भाषा की संकल्पना को संरचनात्मक न कहकर सामाजिक कहना उपयुक्त होगा। ,

(3) जब हम समाज विशेष से किसी भाषा-रूप के मानक माने जाने की बात करते हैं, तो समाज से आशय होता है सुशिक्षित और शिष्ट लोगों का वह समाज जो पूरे भाषा-भाषी क्षेत्र में प्रभावशाली एवं महत्त्वपूर्ण माना जाता है। वस्तुतः उस भाषा-रूप की प्रतिष्ठा उसके उन महत्त्वपूर्ण प्रयोक्ताओं पर ही आधारित होती है। दूसरे शब्दों में उस भाषा के बोलनेवालों में यही वर्ग एक प्रकार से मानक वर्ग होता है।,

(4) समाज द्वारा मान्य होने के कारण भाषा के अन्य प्रकारों की तुलना में मानक भाषा की प्रतिष्ठा होती है। इस तरह मानक भाषा सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक है।,

(5) सामान्यत- मानक भाषा मूलतः किसी देश की राजधानी या अन्य दृष्टियों से किसी महत्त्वपूर्ण केन्द्र की बोली होती है, जिसे राजनीतिक अथवा धार्मिक अथवा सामाजिक कारणों से प्रतिष्ठा और स्वीकृति प्राप्त हो जाती है। ,

(6) बोली का प्रयोग अपने क्षेत्र तक सीमित रहता है, किंतु मानक भाषा का क्षेत्र अपने मूल क्षेत्र के भी बाहर अन्य बोली-क्षेत्रों में होता है।,

(7) यदि किसी भाषा का मानक रूप है तो साहित्य में, शिक्षा के माध्यम के रूप में, अंतःक्षेत्रीय प्रयोग में तथा सभी औपरचारिक परिस्थितियों में उस मानक रूप का ही प्रयोग होता है, अमानक रूप या बोली आदि का नहीं।,

(8) किसी भाषा के बोलने वाले अन्य भाषा-भाषियों के साथ प्रायः उस भाषा के मानक रूप का ही प्रयोग करते हैं, किसी बोली का अथवा अमानक रूप का नहीं।

हिन्दी के ऐसे मानक स्वरूप के शुद्ध प्रयोग का प्रश्न भी प्रायः मुंह बाए खड़ा रहता है। इस सन्दर्भ में अनेक भाषाविदों, हिन्दी सेवकों व साहित्यकारों ने समय-समय पर अपने चिंतन और विवेक का नवनीत हिन्दी समाज को दिया है। इस श्रृंखला की एक मज़बूत कड़ी में लब्ध प्रतिशत भाषा विज्ञानी डॉ.रमेशचन्द्र महरोत्रा की प्रकाशित पुस्तकें इस प्रकार हैं -भाषैषणा, हिन्‍दी ध्वनिकी एवं ध्वनिमी, अशुद्ध हिन्‍दी: विशेषकर छत्तीसगढ़ के संदर्भ में (मन्नू लाल यदु सहलेखक), हिन्‍दी में हिन्‍दी का नवीनतम बीज व्याकरण (चित्तरंजन कर सहलेखक), मानक हिन्‍दी का शुद्धिपरक व्याकरण, हिन्‍दी का शुद्ध प्रयोग, मानक हिन्‍दी के शुद्ध प्रयोग,मानक हिन्‍दी के शुद्ध प्रयोग, मानक हिन्‍दी के शुद्ध प्रयोग-3,मानक हिन्‍दी के शुद्ध प्रयोग-4 (खंड1, खंड 2), मानक हिन्‍दी के शुद्ध प्रयोग-5 (खंड1, खंड 2), भाषिकी के दस लेख (हीरालाल शुक्ला सहसंपादक), भाषाविज्ञान का सामान्य ज्ञान (मन्नू लाल यदु सहसंपादक), छत्तीसगढ़ी-संदर्भ-निदर्शनी (भागवत प्रसाद साहू सहसंपादक), छत्तीसगढ़ी-शब्दकोश (प्रेमनारायण दुबे सहसंपादक), रविशंकर विश्वविद्यालय भाषाविज्ञान-शोधसार 1968-85 (भागवत प्रसाद साहू सहसंपादक), कोशविज्ञान: सिद्धांत और प्रयोग  (हरदेव बाहरी के साथ संपादक), छत्तीसगढ़ी-मुहावरा-कोश (भागवत प्रसाद साहू आदि सहसंपादक), छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी: भाषायी कार्य (संपादक),  मानक हिन्‍दी लेखन-नियमावली (पुस्तिका),(पुनर्नव) अपनी हिन्‍दी सुदृढ़ कीजिए, जनशाला दर्शन, साक्षरता भवन, अँ के प्रयोग के लिये अपील: औचित्य और सूची, तमिल भाषा का इतिहास (अनुवादक), टेढ़ी बात (चित्तरंजन कर संपादक), आड़ी-टेढ़ी बात (चित्तरंजन कर संपादक), टेढ़ी-बात पर खूबसूरत नज़रें (संपादक), लवशाला (रमेश नैयर संपादक), लवशाला का मूल्यांकन (संपादक), अच्छा बनने की चाह, खंड-1, सच, बड़ा सच और संपूर्ण सच, अच्छा बनने की चाह, खंड-2, सुख, समृद्धि की राहें, सुख की राहें (रमेश नैयर संपादक), सफलता के रहस्य (रमेश नैयर संपादक), छत्तीसगढ़ी: परिचय और प्रतिमान, छत्तीसगढ़ी को शासकीय मान्यता, एक दिल हज़ार अफसाने (संपादन)(रमेश नैयर संकलन एवं रूपांतर), छत्तीसगढ़ी-हिन्दी-शब्दकोश (संपादन-सहयोग)(पालेश्वर प्रसाद शर्मा संपादक), छत्तीसगढ़ी मुहावरे और लोकोक्तियाँ, मानक हिन्‍दी का (व्यवहारपरक) व्याकरण, छत्तीसगढ़ी लेखन का मानकीकरण, मानक छत्तीसगढ़ी का सुलभ व्याकरण (सुधीर शर्मा सहलेखन), मानक हिन्‍दी के शुद्ध प्रयोग।

विशेषकर,राधकृष्ण प्रकाशन द्वारा चार भागों में प्रकाशित डॉ.महरोत्रा की कृति 'मानक हिन्दी के शुद्ध प्रयोग,' प्रकाश स्तम्भ के सदृश है। इस आलेख में उनके अवदान को रेखांकित करने के ध्येय से मुख्य रूप से इस ग्रन्थ श्रृंखला की सारगर्भ चर्चा की जा रही है। प्रथम भाग में पुस्तक के आरभ में ही स्पष्ट कर दिया गया है - इस नए ढंग के व्यवहार-कोश में पाठकों को अपनी हिंदी निखारने के लिए हज़ारों शब्दों के बारे में बहुपक्षीय भाषा-सामग्री मिलेगी। इस में वर्तनी की व्यवस्था मिलेगी, उच्चारण के संकेत-बिंदु मिलेंगे-व्युत्पत्ति पर टिप्पणियाँ मिलेंगी, व्याकरण के तथ्य मिलेंगे-सूक्ष्म अर्थभेद मिलेंगे, पर्याय और विपर्याय मिलेंगे-संस्कृत का आशीर्वाद मिलेगा, उर्दू और अँगरेज़ी का स्वाद मिलेगा-प्रयोग के उदाहरण मिलेंगे, शुद्ध-अशुद्ध का निर्णय मिलेगा।

पुस्तक की शैली ललित निबंधात्मक है इस में कथ्य को समझाने और गुत्थियों को सुलझाने के दौरान कठिन और शुष्क अंशों को सरल और रसयुक्त बनाने के लिहाज़ से मुहावरों, लोकोक्तियों लोकप्रिय गानों की लाइनों, कहानी-क़िस्सों, चुटकुलों और व्यंग्य का भी सहारा लिया गया है। नमूने देखिए-स्त्रीलिंग ‘दाद’ (प्रशंसा) सबको अच्छी लगती है पर पुल्लिंग ‘दाद’(चर्मरोग) केवल चर्मरोग के डॉक्टरों को अच्छा लगता है। मैल, मैला, मलिन’ सब ‘मल’ के भाई-बंधु हैं।...(‘साइकिल’ को) ‘साईकील’ लिखनेवाले महानुभाव तो किसी हिंदी-प्रेमी के निश्चित रूप से प्राण ले लेंगे-दुबले को दो असाढ़ !.. अरबी का ‘नसीब’ भी ‘हिस्सा’ और ‘भाग्य’ दोनों हैं। उदाहरण-आप के नसीब में खुशियाँ ही खुशियाँ हैं। (जब कि मेरे नसीब में मेरी पत्नी हैं।) प्रकाशक का अभिमत है कि  यह पुस्तक हिन्दी के हर वर्ग और स्तर के पाठक के लिए उपयोगी है। इसकी उपयोगिता को चंद मिसालों से समझना सचमुच रुचिकर होगा। आइये देखें -

अंतर्राष्ट्रीय’ और ‘अंतरराष्ट्रीय’ - दोनों स्पेलिंग सही है, पर बिलकुल अलग-अलग शब्दों के रूप में। इन का अर्थ-भेद पकड़ने के लिए ‘अंतर्’ और ‘अंतर’ का अंतर स्पष्ट करना जरूरी है। ‘अंतर्’, का अर्थ है ‘अंदर का’ या ‘के मध्य’ या ‘बीच में’। इस का प्रयोग ‘अंतर्द्वद्वं’, ‘अंतर्भूमि’, और ‘अंतर्लीन’–जैसे शब्दों में देखा जा सकता है। यह अंतःकरण’ और ‘अंतः पुर’-जैसे शब्दों में ‘अतः’ के रुप में प्रयुक्त होता है। ‘अंतर्राष्ट्रीय’ और ‘अंतर्देशीय’ शब्दों में ‘अंतर्’, व्यवहृत होने के कारण इन का अर्थ है ‘राष्ट्र के अंदर का’ ‘देश के अंदर का’। डाक-तार-विभाग द्वारा प्रसारित ‘अंतर्देशीय पत्र कार्ड’ केवल ‘देश के भीतर’ चलते हैं । उन पर अँगरेजी में छपे ‘इनलैंड लेटर कार्ड’ की सार्थकता ध्यातव्य है। उपर्युक्त शब्दों से व्यतिरेक या विरोध दिखानेवाले शब्द हैं ‘अंतरराष्ट्रीय’ और ‘अंतरदेशीय’, जिन में ‘अंतर्’, नहीं, ‘अंतर’ प्रयुक्त हुआ है। ‘अंतर’ का अर्थ है ‘दूरी’ या ‘बाहर का’ या ‘से भिन्न’। ‘अंतर’ का रुप बदल कर ‘अंतः’ कभी नहीं होता। जब एक राष्ट्र, या देश का दूसरे राष्ट्र या देश से संबंध व्यक्त करना हो, तब ‘अंतरराष्ट्रीय’ या ‘अंतरदेशीय’ विशेषण का प्रयोग होगा।

अभिज्ञ’ और ‘अनमिज्ञ’ - ‘भिज्ञ’ कोई शब्द नहीं है। कुछ लोग समझ बैठे हैं कि ‘अज्ञानी’ के ‘अ’-के समान ‘अभिज्ञ’ का भी ‘अ’-नकारात्मकता के लिए है और बचा हुआ ‘भिज्ञ’ सकारात्मक अर्थ ‘जानकार’ के लिए है। इसी प्रकार, वे समझते हैं कि ‘अनजान’ के ‘अन-’ के समान ‘अनभिज्ञ’ का भी ‘अन,’ नकारात्मकता के लिए है और बचा हुआ ‘भिज्ञ’ फिर ‘जानकार’ के लिए है। वस्तुतः ‘जानकार’ के लिए शब्द ‘अभिज्ञ है, जिस के खंड ‘अभि’ और ‘ज्ञ’ हैं। ‘अभि’ माने ‘ज्ञानी, जानने वाला, परिचित’। ‘अभि’ के मूल में ‘भा’ धातु है, जिस का अर्थ ‘दीप्ति है, और ‘ज्ञ’ के मूल में ‘ज्ञा’ धातु है, जिस का अर्थ है ‘जानना, परिचित होना, सीखना’।

अब ‘अनभिज्ञ’ शब्द से सही-सही ‘अभिज्ञ’ होने के लिए आगे बढ़ा जाए। ‘अनभिज्ञ’ की रचना ‘अभिज्ञ’ के पूर्व ‘न’ जोड़ने से हुई। यह ‘न’ पलट कर ‘अन्’ हो गया, जिस से शब्द का रूप ‘अन्+अभिज्ञ’ अर्थात् ‘अनभिज्ञ’ हो गया है। ‘ज्ञ’ को जोड़ कर बनाए गए उपर्युक्त तथा कुछ अन्य शब्दों के अर्थों का रस-पान कीजिए-अज्ञ (ज्ञानरहित, अचेतन, जड़, नासमझ, मूर्ख); अनभिज्ञ (अनजान, अनभ्यस्त, अनाड़ी, अपरचित, नावाक़िफ, बुद्धिहीन, मूर्ख) अभिज्ञ (जानकार, जानने वाला, अनुभवशील, कुशल); अल्पज्ञ (कम ज्ञान रखनेवाला, नासमझ) तत्तवज्ञ (आजकल ‘तत्वज्ञ’ भी) (तत्व जाननेवाला, दार्शनिक, ब्रह्मज्ञानी); मर्मज्ञ (रहस्य जानने वाला तत्वज्ञ’) रसज्ञ (कुशल, निपुण, काव्य-मर्मज्ञ); विज्ञ (कुशल, चतुर, प्रतिभावान्, प्रवीण, बुद्धिमान्) शास्त्रज्ञ (शास्त्रवेत्ता); सर्वज्ञ (सर्वज्ञाता, सब-कुछ जाननेवाला परम ज्ञानी)। उपर्युक्त सभी शब्द विशेषण हैं, पर ‘सर्वज्ञ’ संज्ञा के रूप में भी आगामी अर्थों का वाचक है-ईश्वर, जिनदेव, तीर्थंकर, देवता, बुद्ध शिव।

‘अंकुश’ और ‘नियंत्रण’ - ‘अंक का अर्थ (अन्य जाने-पहचाने विविध अर्थों के साथ) ‘हुक-जैसा टेढ़ा-मेढ़ा उपकरण‘ है तथा ‘अंकुश’ का अर्थ ‘हाथी को हाँकने के लिए महावत द्वारा प्रयुक्त छोटे भाले की तरह का दोमुँहा अँकुड़ा’ है इसी कारण ‘अंकुशधारी’ का अर्थ ‘हाथीवान’ है। (‘अंक’ और ‘अंकुश’ में ‘अंक्’ धातु है जिसका अर्थ है ‘टेढ़ा-मेढ़ा चलना’।)

आलंकारिक अर्थ में ‘अंकुश’ से किसी भी स्वच्छंदता और स्वेच्छाचारिता पर लगाए जाने वाले प्रतिबंध या रोक का भाव प्रकट होता है। उदाहरण-‘कुमार्ग पर चलनेवाले बच्चों की ग़लत गतिविधियों पर ‘अंकुश’ लगाना ज़रूरी होता है।’’निरंकुश व्यक्ति मनमानी करता है। एक ओर, अत्याचारी शासक को ‘निरंकुश’ कहा जाता है; दूसरी ओर, कवियों को भी ‘निरंकुश’ कहा जा चुका है- ‘निरकुंश: कवय:, अर्थात् कवियों पर कोई बंधन नहीं होता, वे नियंत्रण से मुक्त होते हैं।’’

‘नियंत्रण’ में ‘यंत्र्’ (निग्रह करना) है और उस का अर्थ ‘नियमों में बाँध कर रखने या वश में रखने की स्थिति’ है। इस में भी ‘स्वच्छंद न रहने और वर्जित गतिविधियों पर बंधन लगाए रखने का भाव’ रहता है। उदाहरण- ‘‘सरकार गेहूँ के भाव पर ‘नियंत्रण’ रखे और आप अपने भोजन की मात्रा पर ‘नियंत्रण’ रखें।’’

विश्वविद्यालयों में एक पद-परीक्षा-नियंत्रक का होता है, जो प्राय: परीक्षाओं पर ‘नियंत्रण’ नहीं रख पाता है !‘नियंत्रण’ से ‘अंकुश’ कुछ तगड़ा पड़ता है (क्योंकि मूलत: वह एक हथियार है)। ‘‘आप अपने पान-तंबाकू के खर्च पर ‘नियंत्रण’ रखें’’ का मतलब है कि आप अपनी इस लत पर थोड़ा-बहुत खर्च कर सकते हैं, लेकिन ‘‘आप अपने पान-तंबाकू के ख़र्च पर ‘अंकुश रखें’’ का मतलब यह निकलेगा कि आप को इस लत पर किए जाने वाले ख़र्च की पूरी छुट्टी करनी पड़ेगी।

‘अपेक्षा’ और ‘उपेक्षा’ -‘ईक्ष्’ माने ‘ताकना’। इस से युक्त शब्द ‘प्रतीक्षा’ हम दरवाज़े को ताकते रहते हैं। ‘प्रतीक्षालय’ में मुसाफ़िर लोग अपनी गाड़ी की राह ताकते रहते हैं। इसी प्रकार, ‘प्रेक्षा’ बराबर ‘ध्यानपूर्वक देखना’ होता है (तमाशे को), और ‘प्रेक्षागृह’ बराबर ‘थियेटर’ होता है।

यही ‘ईक्ष् उपर्युक्त शीर्षक के दोनों शब्दों -‘अपेक्षा’ और ‘उपेक्षा-में विद्यमान है। ‘अपेक्षा’ का मतलब ‘प्रत्याशा’ है। (मुझे आप ये यह ‘अपेक्षा’ नहीं थी।) ‘अपेक्षित’ वह है, जिस की आशा की गई हो, जो इच्छित हो, जिस की आवश्यकता हो। (उसे ‘आपेक्षित’ सफलता मिल गई।) ‘अपेक्षी’ अपेक्षा करनेवाला होता है, जिसे ‘उत्तरापेक्षी’ में याद कीजिए। ‘निरपेक्ष’ को किसी से किसी बात की अपेक्षा नहीं होती, वह आत्मनिर्भर और तटस्थ होता है। ‘अपेक्षा’ का दूसरा अर्थ ‘तुलना में’ तभी निकलता है, जब इस के पूर्व ‘की’ या ‘-री’ या ‘-नी’ लगा हो। (उस की अपेक्षा, मेरी अपेक्षा, अपनी अपेक्षा।) इसे‘अपेक्षया’ और ‘अपेक्षाकृत’ (अरबी में ‘निस्बतन’ और ‘बनिस्बत’) के साथ रखिए, जो (किसी की) तुलना में’ अर्थ के वाचक हैं।‘उपेक्षा करना’ ‘अपेक्षा करना’ का उलटा है। वह ‘अनदेखा करना, नज़र-अंदाज़ करना’ है। जब कोई हमारी ‘अपेक्षा’ पूरी नहीं करता, तब हम उस की ‘उपेक्षा’ करने लग सकते हैं। इस प्रकार ‘उपेक्षा’ बराबर ‘उदासीनता, अवहेलना, घृणा’ आदि है। उपर्युक्त विवरण के अनुसार ‘अपेक्षा’ संज्ञा और अव्यय दोनों है, जब कि उपेक्षा केवल संज्ञा है। ‘अपेक्षित’ चाहा हुआ होता है, ‘उपेक्षित’ अनचाहा। ‘अनपेक्षित’ को ‘उपेक्षित’ नहीं कर सकते। उस के होने की चाह नहीं की गई होती है, पर वह हो जाता है; वह अप्रत्याशित होता है।

‘अंक’ और ‘खंड’ -‘यदि आप विद्यार्थी रहे हैं, तो ज़रूर जानते होंगे कि ‘अंक क्या है, ‘पूर्णांक क्या है, और ‘प्राप्तांक क्या है।‘अंक’ में ‘अंक्’ धातु है, जिस का अर्थ चिन्हित करना है ‘अंक’ बराबर ‘चिन्ह’ है, ‘संख्यासूचक चिन्ह’ है, ‘संख्या’है। वह ‘नाटक के एकाधिक खंडों में से एक खंड’ है (यहाँ एक ही खंडवाले एकांकी’ को याद कीजिए)। ‘अंक’ बराबर किसी पत्र-पत्रिका की अवधिसापेक्ष क्रमांकित प्रति’ है।

‘अंक’ के रचना-संसार में एक ओर ‘अंकुर (अँखुआ, कल्ला), अंकुश गज-बाँक, नियंत्रण), अंकेक्षण (अँगरेज़ी में ऑडिट’) देखिए और दूसरी ओर कंलक (काला चिन्ह आदि), निरंक (अँगरेज़ी में ‘निल’), पर्यंक (पलँग)’ देखिए।यदि आप विद्यार्थी रहे हैं, तो यह भी जानते होंगे कि ‘नामांकन’ क्या है और ‘मूल्यांकन’ क्या है ?अंकन आगे बढ़ कर ‘आँकना’ बना और ‘अंक’ ने ‘आँक’ बनते हुए ‘आँकड़ा’ के लिए रास्ता बनाया। ‘खंड’ अपने एक अर्थ ‘ग्रंथ का विभाग’ के कारण ‘अंक’ के एक अर्थ (नाटक का खंड) के काफ़ी पास पहुँच जाता है, अन्यथा यह उस से बहुत दूर की चीज़ ‘मकान की मंजिल’ भी है।‘खंड’ धातु ‘खंड्’ का अर्थ ‘तोड़ना’ है, इसलिए ‘खंड’ बराबर ‘टुकड़ा, भाग’ है।जब किसी चीज़ के ‘खंड’ न हों, तो वह ‘अखंड’ है- निरंतर चलनेवाला’। आप किसी बात का ‘खंडन’ करते समय उसे ‘खंडित’ कर देते हैं (अर्थात् उस के टुकड़े कर डालते हैं)।

अनुरोध और प्रार्थना - यों तो ‘अनुरोध’ का अर्थ ‘रुकावट’ भी है (‘रुध्’ माने ‘रोकना’; ‘अवरोध’ और ‘गतिरोध’ को याद कीजिए), पर उस रोज़मर्रा का अर्थ ‘किसी बात के लिए विनयपूर्वक किया जानेवाला आग्रह’ है।‘आग्रह’ (‘ग्रह’माने ‘ग्रहण करना’) का अर्थ पुनःपुनः निवेदन’ में बात को नम्रतापूर्वक कहना होता है, लेकिन उसे ज़रूरत से ज़्यादा पुनरुक्तियाँ देना-पीछे ही पड़ जाना-उसे ’हठ’ में बदल देता है। ‘हठ’ को आप ‘आप ‘आग्रह’ से बढ़ कर ‘दुराग्रह’ कहना पसंद करेंगे।कोशों में ‘विनय’ बराबर ‘विनम्रता’ है। ‘विनयपूर्वक अर्थात् विनीत भाव से कहना’ बराबर ‘विनती’ है। ‘विनती’ बराबर ‘प्रार्थना’ है। ‘प्रार्थना’बराबर ‘अनुरोध’ है। ‘अनुरोध’ बराबर ‘निवेदन’ है, ‘आग्रह’ है, ‘आग्रहपूर्वक प्रार्थना’ है। यानी से शब्द और अर्थ एक-दूसरे पर खूब चढ़े हुए हैं। काफ़ी घाल-मेल है। लेकिन प्रयोग में विनती’ और ‘प्रार्थना’ में वक्ता के मन में विशेष आदरभाव जुड़ा होता है। हम भगवान से ‘अनुरोध’ और ‘आग्रह’ नहीं, ‘विनती’ और ‘प्रार्थना’ करते हैं। किसी से ‘अनुरोध’ करते समय हमारा छोटा बन जाना आवश्यक नहीं है पर ‘प्रार्थना’ करते समय हमें बहुत छोटा बनना पड़ता है। स्मरण रहे किआवेदन पत्र में हमें ‘अनुरोधकर्ता’ नहीं, ‘प्रार्थी’ लिखना पड़ता है।

इस तरह डॉ.महरोत्रा हमें मानक शब्दों के प्रामाणिक प्रयोग की अमूल्य धरोहर सौंप गए हैं।

chandrakumarjain@gmail.com

-----------------------------------------------------

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: शुद्ध भाषा के समर्थ शिल्पी डॉ. रमेशचन्द्र महरोत्रा // डॉ.चन्द्रकुमार जैन
शुद्ध भाषा के समर्थ शिल्पी डॉ. रमेशचन्द्र महरोत्रा // डॉ.चन्द्रकुमार जैन
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxAdqwtZyil3NQNY414Jsd2Qv9Ovza5OUBdiBZjNmoti8OOd43bNHPQHdoYcesBxchQC2GSm2Qf9Yfo0kAaXCjk5eC7aaMBem4mti_4mDUXP4RuiWV9kw9Nd5ZuOHGIoHW2zIK/?imgmax=200
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxAdqwtZyil3NQNY414Jsd2Qv9Ovza5OUBdiBZjNmoti8OOd43bNHPQHdoYcesBxchQC2GSm2Qf9Yfo0kAaXCjk5eC7aaMBem4mti_4mDUXP4RuiWV9kw9Nd5ZuOHGIoHW2zIK/s72-c/?imgmax=200
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/11/shuddh-bhasha-ke-shilpi-rameshchandra.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/11/shuddh-bhasha-ke-shilpi-rameshchandra.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content