इश्क का नगमा जुनूं के साज़ पर गाते हैं हम अपने गम की आंच से पत्थर को पिघलाते हैं हम जिंदगी को हमसे बढ़कर कौन कर सकता है प्यार और अगर मरने पर ...
इश्क का नगमा जुनूं के साज़ पर गाते हैं हम
अपने गम की आंच से पत्थर को पिघलाते हैं हम
जिंदगी को हमसे बढ़कर कौन कर सकता है प्यार
और अगर मरने पर आ जायें तो मर जाते हैं हम
दफ्न होकर खाक में भी दफ्न रह सकते नहीं
लाल - ओ - गुल बन के दीवारों पर छा जाते हैं हम
प्रेम तो ऐसी दवा है जिसकी कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती। यह हमेशा हर मौके पर कारगर होती है। प्रेम की दवा को अपना साथी बनाना बहुत सरल है। इसके लिए व्यक्ति को बस अपने अंतर्मन से इस बात को स्वीकार करना है कि मुझे पूरी सृष्टि से प्रेम है। मुझे हंसते-रोते इंसानों से, फूल-पत्तों से, गुनगुनी सुबह से, सुरमयी शाम से और चिड़ियों के कोलाहल से, नदियों के राग से प्रेम है। प्रेम एक ऐसी दवा है, जो जिसके पास जितनी अधिक होती है, उसे यह उतनी अधिक स्वस्थ, सुंदर और हंसमुख बनाती है। कई बार व्यक्ति जब दवा का सेवन करता है, तो उसे कई खाद्य पदार्थों व वस्तुओं से परहेज करना पड़ता है, लेकिन प्रेम की दवा में ऐसा बिल्कुल नहीं है।
एक दवा ऐसी है, जिसे व्यक्ति को बाजार से नहीं खरीदना पड़ता। वह दवा प्रत्येक व्यक्ति के पास है और उसके सहारे वह हर बड़ी से बड़ी बीमारी व समस्या को दूर कर सकता है। वह दवा प्रेम है। प्रेम इंसान के अंदर की एक ऐसी भावना है, जो उस समय बढ़ती है, जब व्यक्ति किसी से गहराई से जुड़ता है। जब व्यक्ति सकारात्मक भावों के साथ इनसे प्रेम करता है, तो जिंदगी बेहद खूबसूरत हो जाती है। 'द बॉयोलॉजी ऑफ लव' पुस्तक के लेखक डॉ जेनव कहते हैं, 'मनुष्य एक संवेदनशील जीव है, इसलिए प्रेम जैसी भावना की कमी उसके विकास और जीने की क्षमता को कमजोर कर सकती है। मनोवैज्ञानिक प्रेम को मनुष्य के अंतर्मन में मौजूद सबसे मजबूत और सकारात्मक संवेदना के रूप में देखते हैं और मानते हैं। इससे शरीर में गहरे बदलाव आते हैं। जिस तरह दवा रसायनों के मिश्रण से बनती है, उसी तरह प्रेम की दवा में भी रसायनों का ही हाथ है।
अमेरिका के वैज्ञानिक रॉबर्ट फ्रेयर के अनुसार प्रेम मानव शरीर में उपस्थित न्यूरो-केमिकल के कारण होता है। यह न्यूरो-केमिकल व्यक्ति को प्रेम की गहनता तक ले जाता है और व्यक्ति को उन खुशियों तक पहुंचाता है, जिन्हें वह पाना चाहता है। अक्सर व्यक्ति को बीमारी, तनाव व डिप्रेशन के समय परिवार के साथ समय बिताने, प्रकृति को निहारने, प्रेरणादायक पुस्तक पढ़ने और मधुर संगीत सुनने की सलाह दी जाती है। इसके पीछे मनोवैज्ञानिक तर्क यही है कि ये सब प्रेम के रूप हैं और व्यक्ति के लिए दवा का काम करते हैं।
प्रेम का हमारे जीवन में उतना ही महत्व है जितना कि खाने के लिए अनाज, पीने के लिए जल और जीने के लिए सांस लेना। प्रेम का महत्व तभी समझ में आता है जब अपना कोई खास हमसे दूर चला जाता है। और यदि बात न हो पाये तो बिल्कुल समझ में आता है कि प्रेम आखिर है क्या चीज। प्रेम के बारे में बहुत सारे साहित्य भी लिखे गये हैं। आये दिन कहीं न कहीं विचार गोष्ठियां भी होती हैं। इसलिए मैं ज्यादा इस पर कुछ कहना नहीं चाहता हूं। इतना जरुर अपने पूर्वजों की बात दोहराना चाहता हूं कि यदि किसी को जीतना हो तो युद्ध नहीं प्यार करो. सिर्फ अलौकिक प्यार। कहते हैं न सच्चा हो तो मीलों की दूरियां यूं ही खत्म हो जाती हैं।
हृदय में प्रेम का प्रकाश फैलते ही मनोविकार वैसे ही दूर हो जाते हैं जैसे दीपक के जल उठने से कक्ष का तिमिर नष्ट हो जाता है। प्रेम का स्वाद, रस और अनुभव मिलते ही मनुष्य का हृदय अलौकिक सौंदर्य से भर उठता है, उसकी आत्मा तृप्त हो जाती है, तब उसे न कोई वासनाएँ रहती हैं और न कामनाएँ। ऐसे निर्मुक्त हृदय में विकारों के रहने की सम्भावना नहीं रहती। मनुष्य निर्विकार एवं निष्कंठ होकर आनन्द से भर उठता है।
प्रेम में मनुष्य का जीवन बदल देने की शक्ति होती है। प्रेम के प्रसाद से मनुष्य की निर्बलता और दरिद्रता, शक्तिमत्ता और सम्पन्नता में बदल जाती है। अशांति और असंतोष तो प्रेमी-हृदय के पास फटकने तक नहीं पाते। प्रेम मनुष्य जीवन का सर्वश्रेष्ठ वरदान माना गया है। जिसने प्रेम पा लिया अर्थात् जिसके हृदय में प्रेम का जागरण हो गया, उसे समझो संसार की सारी सम्पदाएँ प्राप्त हो गईं। प्रेम पा जाने के बाद कुछ पाना शेष नहीं रह जाता। प्रेम की प्राप्ति ईश्वर की प्राप्ति मानी गई है, क्योंकि मनीषियों और महात्माओं ने प्रेम को परमेश्वर और परमेश्वर को प्रेम रूप ही माना है। हृदय में प्रेम-भावना की स्थापना होते ही उसका प्रभाव शरीर, आत्मा पर भी पड़ता है। प्रेम की अनुभूति अमृत रूप जो होती है। इसका संचार होते ही मन प्रसन्न, शरीर स्वस्थ और आत्मा उज्ज्वल हो उठती है।
मानवीय शक्तियों में प्रेम को सबसे बड़ी शक्ति माना गया है। हिंस्र जन्तुओं और अपराधी व्यक्तियों से भरे वनों में ऋषि-मुनियों के पास रक्षा के साधनों में न तो अस्त्र-शस्त्र होते थे और न सेना की शक्ति। उनके पास तो एक प्रेम की ही वह शक्ति रहती थी, जो सारी शक्तियों की सिरमौर मानी गई है। इसी शक्ति और बल के आधार पर वे शेर, चीते, भालू, भेड़िये और सर्प जैसे घातक जीवों को नम्र बना लेते थे और चोर, लुटेरों को श्रद्धा के लिये विवेक कर देते थे।
प्रेम में महानतम वशीकरण बल होता है। इससे शत्रु मित्र, घातक पालक बन जाते हैं। प्रेम द्वारा मनुष्य सारा संसार वश में कर सकता है। भक्त के वश में भगवान के रहने की जो बात कही जाती है, उसका आधार प्रेम ही तो है। प्रेम के बल पर ही उपासक पत्थर में भगवान के दर्शन कर लेता है। पीड़ित जनता प्रेम-पुकार द्वारा ही तो उसे धरती पर उतार लाती है। प्रेम की शक्ति अपार है, उसकी महिमा अकथनीय है। यह अपने आप में एक महाक्रांति है। इसमें सब कुछ खोने की खोज और दीवानगी की बात ही निराली है। यह खुद को खोकर खुद को पा लेने का अनोखा मार्ग है। प्रेम में जो डूबा, कह उठता है -
मैं रात की गोद में
सितारे नहीं,
शरारे बखेरता हूं !
सहर के दिल मे
जो अपने अश्कों से
बो रहा हूं
बगावतें हैं।
ओशो ठीक कहते है कि फकीर बगावतें बोते हैं। उनके बीज बगावतों के बीज हैं। वे क्रांतिया उगाते हैं। वे क्रांतियों की फसलें काटते हैं। इसलिए जो तैयार हो सिर कटाने को, वही सिद्धों के साथ हो सकता है, जो मरने को राजी हो, जो अपनी सूली को अपने कंधे पर ले कर आये!
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