समीक्षा- रिश्ते मरुथल की नदी..... // समीक्षक- डॉ. राधेश्याम शुक्ल

SHARE:

आज हमारे युग के मनुष्य का जीवन अनेक संक्रमणों के संघातों से विचलित, हलाकान, एकाकी और असहाय-सा हो गया है। इस स्थिति में उसे मानवीय संवेदना एव...

COVER PAGE- RISHTEY BANE RAHEN

आज हमारे युग के मनुष्य का जीवन अनेक संक्रमणों के संघातों से विचलित, हलाकान, एकाकी और असहाय-सा हो गया है। इस स्थिति में उसे मानवीय संवेदना एवं सहानुभूति की ऐसी अपेक्षा है जैसी भरी भीड़ में अनबोलेपन, अजनबीयत तथा उपेक्षा से उपजे अकेलेपन को अपनत्व भरे सरस संबोधन की होती है। इसीलिए समाज की संरचना हुई है जहाँ व्यक्ति का व्यक्ति से संबंध होता है, यह संबंध भारतीय परंपरा में रिश्तों से होता है। मूलतः मनुष्य स्वार्थी है लेकिन ये रिश्ते ‘स्वार्थ’ को ‘परमार्थ’ तक, ‘स्व’ को ‘पर’ तक विस्तार देकर, मनुष्य को विभिन्न संज्ञाओं से नवाज़ते हुए सर्वनाम तक प्रतिष्ठित कर देते हैं।

आज का समय ‘ग्लोबलाइज़ेशन’, पूँजीवादी विकास, उपभोक्तावाद, बाज़ारवाद आदि अनेक ज़रूरी एवं ग़ैरज़रूरी आख्याओं का समय है जहाँ सब कुछ है तो लेकिन हमारे सहज-सरल-प्राकृत मन को सुकून नहीं है। इसी जीवन-रस की शिद्दत से तलाश करते हुए चर्चित गीतकवि योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’ के सद्यःप्रकाशित समकालीन गीत-संग्रह ने एक अचूक युक्ति सुझाई है- ‘रिश्ते बने रहें’। ये रिश्ते एक बादल-मन जैसे हैं जो अपनी शीतल फुहारों से हमारे बुद्धिवादी विरस परिवेश को सरस बनाते हैं और पारिस्थितिक तपन को ठंडक पहुँचाते हैं। ‘तन के भीतर बसे हुए मन के गाँव’ को अपनेपन के रस-सूत्र से बाँधते हैं-

‘चलो करें/कुछ कोशिश ऐसी/रिश्ते बने रहें

बंद खिड़कियाँ/दरवाज़े सब/कमरों के खोलें

हो न सके जो/अपने/आओं हम उनके हो लें

ध्यान रहे/ये पुल कोशिश के/ना अधबने रहें’

कभी-कभी लगता है कि चमकीली विकास की आँधी में बाज़ारू लूटपाट के चलते सारा समाज विशृंखल हो गया है, ऐसा पहले कभी नहीं था। ऐसे में- ‘छोटा बच्चा/पूछ रहा है/कल के बारे में’ आज के सन्नाटे-भरे कृष्णपक्षीय अंधेरे में ‘कौन किसे अब राह दिखाए’ यह प्रश्न तनाव से भरे समय-धनुष की तनी हुई प्रत्यंचा की तरह हर चेहरे पर उभर रहा है।

भारतीय परंपरा में हमारी बहन-बेटियाँ, सामाजिक रिश्तों को बनाने, उन्हें नाम देने का समाजशास्त्रीय उपकरण हैं। इतना ही नहीं, रिश्तों में खुशबू और मिठास इन्हीं के बहाने आती है लेकिन आज की बाज़ारू मानसिकता ने संबंधों को ‘लेन-देन’ तथा ‘मतलब’ के चलन से जोड़ दिया है। इस त्रासद बेरुखी एवं औपचारिकता तक सीमित हुए रिश्तों के संदर्भ का यह गीत सहृदय के सहज भावनात्मक संवेदन को अँसुवा देता है-

‘ना पहले जैसा/अपनापन/ना ही प्यार दिखा

फ़र्ज़ कहीं ना दिखा/दिखा तो/बस अधिकार दिखा

चिट्ठी ने भी/माँ का हाल/बताना छोड़ दिया

मुनिया ने/पीहर में/आना-जाना छोड़ दिया’

वक़्त की मरुथली रेत ने मन और हृदय को भावनात्मक आर्द्रता से सर्वथा रहित कर दिया है। पीहर से ससुराल जाती बहन बेटियों के माथे पर रोली-अक्षत का टीका भी अधूरा एवं औपचारिक हो गया है। कवि ने इसी गीत में बड़ी संजीदगी और क्षोभ के साथ अपनी संदर्भित अनुभूति को किस तरह साधारणीकृत कर दिया है-

‘बीते कल को/सोच-सोचकर/नयन हुए गीले

कच्चे-धागे के/बंधन भी/पड़े आज ढ़ीले

चावल ने/रोली का साथ/निभाना छोड़ दिया

मुनिया ने/पीहर में/आना-जाना छोड़ दिया’

सहृदयों को निहाल करने में सर्वथा समर्थ कवि की अभिव्यक्ति कौशल के नूतन प्रयोग और इनकी ध्वन्यर्थ व्यंजना को उद्घाटित करता संग्रह का एक गीत- ‘अपठनीय हस्ताक्षर जैसे’ सहज ही पाठक का ध्यान आकर्षित करता है। कॉलोनी कल्चर की ऊब, खीझ, एकाकीपन, अबूझ खामोशी के सन्नाटे ओढ़े घरों की आंतरिक हलचलें, चेहरों पर जबरन चिपकाये गए स्टेटस से टपकती दंभ-भरी अपनी पहचानें अपने में ही जबरन सँभाले लोगों के एक्सपोज़-से होते हाव-भाव आदि इस गीत की ध्वन्यर्थ व्यंजनाएँ आज के गीत को समकालीनता से संपृक्त कर देती हैं। इस गीत के उपमान शिल्प की दृष्टि से जितने नव्यतर और स्पृहणीय हैं आनुभूतिक स्तर पर उतने ही अन्तर्गर्भी हैं-

‘अपठनीय हस्ताक्षर/जैसे/कॉलोनी के लोग

ओढ़े हुए/मुखों पर अपने/नकली मुस्कानें

बदलें यहाँ/आधुनिकता की/पल-पल पहचानें

नहीं मिले/संवत्सर जैसे/कॉलोनी के लोग’

वस्तुवादी सोच और ललक ने हमें आज एक ऐसी तहजीब में जीने के लिए अभिशप्त कर दिया है जो ‘क़रीने की व्यवहारिकता’ में सराबोर है किन्तु मन को छूती तक नहीं ठीक उसी तरह, जिस तरह आज सीढ़ीदार गद्य-कविता अपने तमाम तामझाम के बावजूद हृदय के पास से गुज़रती तक नहीं। ऐसा ही हो गया है आज का मनुष्य, आज का समाज। कवि इस पीड़ा को बिल्कुल नए ढंग से अभिव्यक्त करता है-

‘जीवन में हम/ग़ज़लों जैसा/होना भूल गए

जोड़-जोड़कर/रखे क़ाफ़िए/सुख-सुविधाओं के

और साथ में/कुछ रदीफ़/उजली आशाओं के

शब्दों में/लेकिन मीठापन/बोना भूल गए’

आज जीवन अपनी समग्रता में बाज़ारू परिवेश-सा बन गया है और हम लोग उपभोक्ता। हमारे संबंध ग्राहक और दुकानदार की भाँति लेन-देन पर आधारित हो गए हैं।

इसके साथ-साथ, अपने देश में विकास की एक अजूबा आँधी आई हुई है, प्रगतिशीलता इसका केन्द्र है। नयेपन की युवा मानसिकता के चलते प्रगतिशीलता की विद्रूपता पर व्यंग्य करते हुए कवि ने संग्रह के एक महत्वपूर्ण समसामयिक यथार्थ के गीत ‘जीन्स-टॉप में नई बहू ने’ में जिस ओढ़ी हुई तथाकथित कल्चर की बोझिल अनुभूति को व्यक्त किया है और जिस ‘माटी’ से विरहित हो जाने का ज़िक्र किया है, वही ‘माटी’ हमारी अस्मिता और पहचान है, जीवन-मूल्य है, आँगन की तुलसी है, मानवीय रिश्तों का अंतःसूत्र है, इसे हर हाल में बचाए रखना है-

‘धीरे-धीरे/सूख रही है/तुलसी आँगन में

नए आधुनिक/परिवर्तन ने/ऐसा भ्रमित किया

जीन्स-टॉप में/नई बहू ने/सबको चकित किया

छुटकी भी/घूमा करती/नित-नूतन फैशन में’

नए विकास के चमकीले फ़लक पर बनते-फैलते महानगरों में हमारा अपना नगर, हमारा अपना घर कहीं खो गया है शायद, तभी तो व्योमजी अपने शहर-मुरादाबाद की पीड़ा को ‘ढूँढ रहे हम/ पीतलनगरी/महानगर के बीच’ गीत में कहने को विवश हो जाते हैं। साथ ही राजनीतिक विद्रूपताओं, दुराचारों, छल-प्रपंचों आदि को भोगते-महसूसते हुए पथरा चुके आम आदमी की भावना को व्यंग्यात्मक गीत के माध्यम से व्याख्यायित किया है कवि ने-

‘सुना आपने/राजाजी/दौरे पर आएंगे

राजाजी तो/राजाजी हैं/सब कुछ कर लेंगे

अपने मनमोहक/भाषण से/सब दुख हर लेंगे

कैसे पेट भरे/बिन रोटी/यह समझाएंगे’

आज के इस बाज़ारू युग ने हमें नई-नई सुविधाओं के सुख देकर हमारे मन के सच्चे सुकून को छीन लिया है। वर्तमान के मशीनी एवं ‘ग्राहक-दूकानदार’ वाले परिवेश से ऊब-खीझकर जब अतीत की सहजता को हम याद करते हैं तो ‘अतीतजीवी’-‘पुरातन’ की संज्ञा से अभिहित किए जाते हैं, उपेक्षित-से किए जाते हैं लेकिन करें क्या? मानुषी भावनाओं वाला अतीत ही हमारी मानसिकता और रचनाधर्मिता का ‘श्रेय’ और ‘प्रेय’ दोनों हैं। परंपरा से, जीवन के हर सुख-दुख को व्यक्त करते शब्दों में जो हार्दिकता का स्पर्श, रस, सुगन्ध आदि समाये रहते थे, वे सब आज की ‘इन्फर्मेशन टेक्नोलोजी’ के ‘टाइप्ड एटीट्यूड’ में ढलकर कितने सस्ते, अपनत्वहीन और अन्यथा हो गए हैं, उनमें घर-आँगन की माटी की बात अब कहाँ? व्हाट्सएप पर की गई ‘चैटिंग’ ने रूबरू होकर ‘मिलन-खिलन’ की मनभावन परंपरा को समाप्तप्राय कर डाला है। चिट्ठी-पत्री के शब्दों में लिखने वाले की भावनाएँ उच्छलित और व्यंजित होती थीं, वे अब मशीनी माध्यम में पड़कर मात्र ‘अमिधा’ बनकर रह गई हैं जिनमें ध्वन्यर्थ व्यंजना के बिना मरुथली नीरसता आ गई है। प्रस्तुत संग्रह का एक गीत- ‘चल रे मनवा’ इसी टीस को बयान करता है-

‘चल रे मनवा/व्हाट्सएप पर/चैटिंग करते हैं

मिलना-जुलना/बतियाना भी/सब कुछ छूट गया

कोई अपना बनकर/अपनों को ही/लूट गया

मरुथल-से होठों पर/चल/अपनापन धरते हैं

समकालीन गीतों के इस संग्रह में ‘पुरखों की यादें’ भी हैं और तन के भीतर बसे हुए मन के गाँव का भावात्मक आनंद भी जो अब केवल सुधियों में ही है और कभी-कभी अश्विन मास की बदरौंखी धूप से संतप्त राही को एक टुकड़े बादल की क्षणिक छाया-सा सुकून दे जाता है। ‘तुमको पत्र लिखूँ’ गीत के माध्यम से सूचना तकनीक के इस सुपर युग में अपनों को पत्र लिखने की अधूरी ललक भी है जो शब्दों की खुशबुओं की चाहत में खुद ही खुशबू बन गई है और ‘माँ को खोना/मतलब/दुनिया-भर को खोना है’ व ‘जब तक पिता रहे/तब तक ही/घर में रही मिठास’ जैसे गीतों के माध्यम से माता-पिता की वत्सली यादों का बोध कराती अभिव्यक्ति भी। ‘दिल्ली नहीं रही’ गीत में एक साथ गुमशुदगी और शिद्दत भरी तलाश के आलम को उकेरने वाले व्योमजी को इस बात का भी गहरा संताप है कि गाँवों-घरों में ‘गौरैया अब नहीं दीखती’ परिणामतः खुशियों की खुशबू वाले वो स्वर कहीं खो गए हैं और हम आज की तकनीकी व आडम्बर भरी दुनिया में सुखों की नई परिभाषाएँ पढ़ रहे हैं जबकि उस घर-गौरैया की पीड़ा के ढाई आखर अनपढ़े ही रह गए। इन सब बातों का सहृदय गीतकार को गहरा संताप है।

हिन्दी में इन दिनों गीत-नवगीत की चर्चा, शौकिया और ग़ैरशौकिया दोनों स्तरों पर चालू है। ‘नव’ शब्द ने बहुत से गीतकारों को ‘सनकी’ बना दिया है। उन सनकी लोगों ने नवगीत के नाम पर नए-नए मंतव्य और फतवे उछाले हैं। यहाँ तक कि उसके शिल्प और उसकी अन्तर्वस्तु को ख़ास सांचे-खांचे में ‘फिट’ करके ही लिखने-लिखाने, कहने-सुनने का आग्रह पाल लिया है। कुछ मित्रों ने इसे नवांतर गीत की संज्ञा भी दी है किन्तु इस तरह गीत के क्षेत्र में बहुत कुछ ‘अप्रिय संदर्भ’ तथा अहम्मन्यता के भाव भी जुड़ गए हैं, जो नहीं होने चाहिए। मेरे जैसा नितान्त गँवई और सहज व्यक्ति तो यही जानता है कि भाव-जगत का अतीव संवेदनशील प्राणी ‘कवि’ अपने समय की विसंगत परिस्थितियों के दबावों एवं परिवेशगत प्रवंचनाओं से बोझिल तथा आहत होकर जब चीखता है, तब कविता बनती है। हर युग की जटिलताओं की अनुभूतियाँ, तत्युगीन अभिव्यक्ति कौशल में ही साधारणीकृत होती हैं, संप्रेषित होती हैं। मनीषी परिभू और स्वयंभू कवि जितनी ही साँसत में सब कुछ सहता है, उतनी ही गहन हार्दिकता के साथ अपनी बात कहता है इसीलिए हर युग की ‘सहन’ और ‘कहन’ अलग हो जाती है किन्तु कवि की संवेदनशीलता जो साहित्य का बीज-बिन्दु है, वह तो अपने मूल रूप में ‘एवमेव’ बना रहता है। सहृदयों तक संप्रेषित और साधारणीकृत होने के लिए रचनाकार अपनी ‘भावयित्री’ और ‘कारयित्री’ प्रतिभा का यथोचित उपयोग करता है, यही है गीत-नवगीत की आधार-भूमि। व्योमजी ने भी अपने संग्रह में इसी भाव-भूमि पर अपनी सशक्त अभिव्यक्ति दी है नवगीत के संदर्भ में-

‘नवगीतों पर/शुरू हुए हैं/फिर से नए विमर्श

संस्मरण हैं/चर्चाएँ हैं/चिन्ताएँ भी हैं

आने वाले/कल की उजली/आशाएँ भी हैं

लगता है/नवगीत बनेंगे/कविता के आदर्श’

साररूप में कहा जा सकता है कि योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’ का यह समकालीन गीत-संग्रह ‘रिश्ते बने रहें’ वर्तमान के यथार्थ को मजबूती के साथ अभिव्यक्त करते नवगीतों का ऐसा महत्वपूर्ण संग्रह है जिसकी साहित्य-जगत को, समाज को बहुत आवश्यकता है। अन्त में अपना एक दोहा-

‘रिश्ते मरुथल की नदी, हरते तपन ‘पियास’।

ये भूगोल ‘जुड़ाव’ के, नेह भरे इतिहास।।’

समीक्ष्य कृति - ‘रिश्ते बने रहें’ (समकालीन गीत-संग्रह)

कवि       - योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’,

प्रकाशक - गुंजन प्रकाशन, मुरादाबाद-244001, मो0- 9927376877

मूल्य - रु0 200/- (हार्ड बाईन्ड)

समीक्षक- डॉ. राधेश्याम शुक्ल

      392, एम.जी.ए.,

                        (डी.सी.एम.गेट),

हिसार-125001 (हरियाणा)

मोबाइल- 09466640106

---------------------------------------------------------


-

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: समीक्षा- रिश्ते मरुथल की नदी..... // समीक्षक- डॉ. राधेश्याम शुक्ल
समीक्षा- रिश्ते मरुथल की नदी..... // समीक्षक- डॉ. राधेश्याम शुक्ल
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi0ABHMUza_26H90MVPTvNzSGaNlpqpf3M_lAxv7Xzm9jd11IarAGag5w0VaFZQIHa-UoYfvoQlGvMr2hjJKLGU3auro3GC9JXYiN7c7WZZgyZXuqfFqESQ-xZpmstZ6HLt-BFp/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi0ABHMUza_26H90MVPTvNzSGaNlpqpf3M_lAxv7Xzm9jd11IarAGag5w0VaFZQIHa-UoYfvoQlGvMr2hjJKLGU3auro3GC9JXYiN7c7WZZgyZXuqfFqESQ-xZpmstZ6HLt-BFp/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/11/blog-post_96.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/11/blog-post_96.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content