को अद्धा वेद क इह प्रवोचत्कुत आजाता कुत इयं विसृष्टिः। अर्वाग्देवा अस्य विसर्जनेनाथा को वेद यत आबभूव।। 6 ।। अर्थात यह विविध सृष्टि किस निमित...
को अद्धा वेद क इह प्रवोचत्कुत आजाता कुत इयं विसृष्टिः। अर्वाग्देवा अस्य विसर्जनेनाथा को वेद यत आबभूव।।6।।
अर्थात यह विविध सृष्टि किस निमित्त कारण से और किस उपादान कारण से उत्पन्न होती है इस बात को कोई विरला विद्वान ही यथार्थ रूप में जान सकता है क्योंकि सभी विद्वान सृष्टि उत्पन्न होने के पश्चात् होते हैं–अर्थात् कोई तत्ववेत्ता योगी ही उसको समझ सकता है और कह सकता है।।6।।
सृष्टि के आदिकाल में न सत् था न असत् , न वायु थी न आकाश, न मृत्यु थी न अमरता, न रात थी न दिन । उस समय केवल वही था जो वायुरहित स्थिति में भी अपनी शक्ति से श्वास ले रहा था । उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं था ।’ (ऋग्वेद)
वैज्ञानिक व्याख्या
ब्रह्माण्ड का जन्म शायद शुद्ध ऊर्जा के विशाल विस्फोट लगभग 13.8 अरब साल पहले शुरू हुआ। इसे बिग बैंग के नाम जाना जाता है। आज अधिकांश ब्रह्मवैज्ञानिकों का मानना है कि ब्रह्मांड 13.8 अरब साल पहले बड़े धमाके के दौरान बना था, और यह एक बढ़ती हुई दर पर विस्तार कर रहा है। ब्रह्मांड समय काल के धागों से बुना हुआ है जिसमें असंख्य शानदार आकाशगंगाओं और अदृश्य अंधेरे पदार्थों के एक लौकिक तरंगों की कढ़ाई है।इस बिग बेंग सिद्धांत के हिसाब से ब्रह्मांड धीरे धीरे फैला और आज भी फैल रहा है। पर यह शुरुआत हुई कैसे, यह बड़ा सवाल है। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने पहली बार ग्रैविटेशनल वेव्स का पता लगाया गया है. इन गुरुत्व तरंगों को 'बिग बैंग' के बाद के शुरुआती कंपन' के तौर पर समझा जा सकता है. मंथन में जानिए ब्रह्मांड के फैलाव को समझने के लिए वैज्ञानिक किस तरह के प्रयोग कर रहे हैं.
ब्रह्माण्ड का आकार
आइंस्टीन के सामान्य रिलेटिविटी के सिद्धांत के अनुसार, अंतरिक्ष में द्रव्यमान से आच्छादित है। नतीजतन, ब्रह्मांड का घनत्व - इसकी मात्रा में कितना द्रव्य फैल गया है के साथ-साथ इसका इसके आकार,और इसके भविष्य निर्धारण भी करता है।
वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड के "गंभीर घनत्व"(critical density ) की गणना की है। यह गंभीर घनत्व हबल नियंतक (hubble constant ) के वर्ग के आनुपातिक है, जिसका उपयोग ब्रह्मांड की विस्तार दर को मापने में किया जाता है। वास्तविक घनत्व के लिए गंभीर घनत्व की तुलना में वैज्ञानिकों को ब्रह्मांड को समझने में मदद कर सकते हैं।
यदि ब्रह्मांड का वास्तविक घनत्व गंभीर घनत्व से कम है, तो ब्रह्मांड के विस्तार को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं है, और यह हमेशा के लिए विस्तारित होगा परिणामस्वरूप इसका आकार एक काठी की सतह (saddle )की तरह घुमावदार है। यह एक खुला ब्रह्मांड के रूप में जाना जाता है।
ब्रह्माण्ड की स्थिति का पता लगाना आज तक की वैज्ञानिक खोजों में असंभव है क्योंकि परेशानी यह है कि ब्रह्मांड का फैलाव असीमित है हम अभी तक सिर्फ करीब 46 बिलियन प्रकाश वर्ष की दूरी के ब्रह्माण्ड को ही नाप सकने में समर्थ हुए हैं।
सृष्टि की बनावट
वैज्ञानिकों का मानना है कि ब्रह्मांड के शुरुआती क्षणों में, इसमें कोई संरचना नहीं थी, पदार्थ और ऊर्जा के साथ लगभग एक समान रूप से वितरित थे । नासा के अनुसार, पदार्थों के घनत्व में छोटे उतार-चढ़ाव के गुरुत्वाकर्षण बंध के कारण सितारों की विशाल तरंग जैसी संरचना और आज की शून्यता को जन्म दिया। घने क्षेत्रों ने गुरुत्वाकर्षण के माध्यम से अधिक से अधिक पदार्थों को अपने में खींच लिया, जिससे सितारों, आकाशगंगाओं और बड़े संरचनाओं को क्लस्टर, सुपरक्लस्टर, फिलामेंट्स और दीवारों के रूप में जाना जाता है,का निर्माण हुआ। इन "महान दीवारों" जैसी हज़ारों आकाशगंगाओं की लंबाई एक अरब से अधिक प्रकाश वर्ष तक पहुँच गयी। कम घने क्षेत्रों में वृद्धि नहीं हुई थी, जो उचित रूप से रिक्त स्थान के क्षेत्र में विकसित होती होती गयीं जिन्हे हम ब्लैक होल के नाम से जानते हैं।
सृष्टि के तत्व
लगभग 30 साल पहले, खगोलविदों ने सोचा था कि नासा के अनुसार ब्रह्मांड लगभग पूरी तरह से साधारण परमाणुओं या "बैरोनिक पदार्थ" से बना था। हालांकि, हाल ही में कोई और सबूत मौजूद है जो बताते हैं कि ब्रह्मांड को बनाने वाले अधिकांश सामग्रियों का स्वरुप हम नहीं देख सकते हैं।
यह पता चला है कि परमाणु केवल ब्रह्मांड का 4.6 प्रतिशत बनाते हैं। शेष हिस्से में, 23 प्रतिशत अंधेरे पदार्थ से बने होते हैं, जो कि एक या अधिक प्रजातियों से बना होता है जो उपयक्तक कणों से बना होता है जो साधारण रूप से बहुत कमजोर हैं, और 72 प्रतिशत अंधेरी ऊर्जा से बना है।
नासा के अनुसार जब हम परमाणुओं की बात करते हैं, तो हाइड्रोजन करीब 75 प्रतिशत बना रहता है, जबकि हीलियम 25 प्रतिशत तक बना रहता है, नासा के अनुसार, ब्रह्मांड के परमाणुओं का केवल एक छोटा अंश बनाते हुए भारी तत्व होते हैं।
धार्मिक व्याख्या -हिन्दू धर्म
हिन्दू धर्म में पद्मपुराण के प्रथम अध्याय में सृष्टि का वर्णन आया है। हालांकि दुनिया के जितने भी बड़े धर्म हैं सबके धर्म ग्रंथों में सृष्टि के विकास को क्रमवार तरीके से वर्णित किया है। सनातन धर्म में भी कई ग्रंथों में सृष्टि का एक प्रकार से क्रमवार जिक्र है।
सृष्टि और प्रकृति के अंतरंग सम्बन्ध हैं , इसका वर्णन सांख्य दर्शन में है। इसके अनुसार प्रकृति (सत्व) शुद्ध (रजः) मध्य (तमः) जाड्य अर्थात् जडता गुणों से युक्त है। यह तीन गुण मिलकर इनका जो संघात है उस का नाम प्रकृति है अर्थात् सत्व, रज व तम गुणों का संघात प्रकृति के सूक्ष्तम कण की एक इकाई के समान है। सृष्टि के आरम्भ में ईश्वर इस प्रकृति के सूक्ष्म सत्व, रज व तम कणों में अपनी मनस शक्ति से विकार व विक्षोभ उत्पन्न कर इनसे महत्तत्व बुद्धि, उससे अर्थात् उस महतत्व बुद्धि से अहंकार, उस से पांच तन्मात्रा सूक्ष्म भूत और दश इन्द्रियां तथा ग्यारहवां मन, पांच तन्मात्राओं से पृथिव्यादि पांच भूत ये चौबीस पदार्थ बनते हैं। पच्चीसवां पुरुष अर्थात् जीव और परमेश्वर हैं। इनमें से सत्व, रज व तम गुणों वाली प्रकृति अधिकारिणी और महतत्व बुद्धि, अहंकार तथा पांच सूक्ष्म भूत प्रकृति का कार्य हैं। यही पदार्थ इंद्रियों, मन तथा स्थूल भूतों के कारण हैं। पुरुष अर्थात् जीवात्मा न किसी की प्रकृति, न किसी का उपादान कारण और न किसी का कार्य है। ब्रह्म (आत्मा) से आकाश, आकाश के पश्चात वायु,वायु के पश्चात अग्नि ,अग्नि से जल की उत्पत्ति जल से धरती की उत्पत्ति,अब यहीं से जीवन की उत्पत्ति की शुरुआत की बात कर सकते हैं कि कैसे बने पेड़, पौंधे, फिर जलचर जन्तु, फिर उभयचर, फिर नभचर तथा अन्त में थलचर जीव–जन्तु । आत्मा का नीचे गिरना जड़ हो जाना है और आत्मा का ऊपर उठना ब्रह्म हो जाना है ।एक उपनिषद वचन में कहा गया है कि हे श्वेतकेतो ! यह जगत् सृष्टि के पूर्व सत्, असत्, आत्मा और ब्रह्मरूप था। वही परमात्मा अपनी इच्छा से प्रकृति व जीवों के द्वारा बहुरूप वा जगतरूप हो गया।
पद्म पुराण के अनुसार पृथ्वी पूरी तरह से जलमग्न थी। उस समय यज्ञपुरुष भगवान विष्णु वराह रूप में प्रकट हुए और उन्होंने पृथ्वी को जल से बाहर निकालकर पानी के ऊपर नाव की तरह स्थिर कर दिया।परमपिता ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण शूरू किया सर्वप्रथम पृथ्वी के सात द्वीपों में बांट दिया। इसके बाद भूलोक, भुवलोक,स्वर्गलोक, महालोक इन चार लोकों की पूर्ववत कल्पना की। इसके बाद सर्वप्रथम महतत्व की उत्पत्ति की ब्रह्मा की प्रथम सृष्टि यही है। महतत्व के बाद तन्मात्राओं की रचना की जिसे भूतसर्ग भी कहा जाता है। तत्पश्चात वैकारिका सृष्टि अर्थात अहंकार से उत्पन्न तीसरी सृष्टि का निर्माण किया। इसीको ऐंद्रीय सर्ग भी कहा जाता है। ये तीनों सर्ग प्रकृति सर्ग भी कहे जाते हैं।
तीन प्रकृति सर्ग की उत्पत्ति के बाद चौथा सर्ग जिसे मुख्य सर्ग भी कहा जाता है जिसमें स्थावर अर्थात पर्वत वृक्ष इत्यादि की उत्पत्ति हुई। तत्पश्चात तिर्यक सृष्टि पशु पक्षी कीट पतंग इत्यादि का निर्माण किया। इसके बाद ऊर्ध्वरेता देवताओं का सर्ग है। तदंतर सातवां सर्ग मानव सर्ग जिसमें इंसान इत्यादि आते हैं। मानव सर्ग के बाद आठवां अनुग्रह सर्ग निर्मित किया जो सात्विक और तामसी दोनो से मिलकर बना है। ये बाद के पांच वैकृत सर्ग कहलाते हैं।
वैकृत सर्ग के पश्चात नौवां कौमार सर्ग है, जो प्राकृत और वैकृत दोनों से मिलकर बना है। यह नौ सर्ग हैं जो सृष्टि के मूल कारण हैं।
इस्लाम में सृष्टि की व्याख्या
इस्लाम में कुरान की आयतों में लिखा है कि पवित्र क़ुरआन में सृष्टि की संरचना के संदर्भ से अल्लाह फ़रमाता है:
‘‘आसमान को हम ने अपने ज़ोर से बनाया है और हम इसकी कुदरत: प्रभुत्व रखे है (या
इसे फैलाव दे रहे हैं) (अल-क़ुरआन: सूर: 51 आयत 47 )
अरबी शब्द वासिऊन का सही अनुवाद इसे फैला रहे हैं बनता है तो यह आयत सृष्टि के ऐसे निर्माण की ओर संकेत करती है जिसका फैलाव निरंतर जारी है ।
निम्नलिखित आयत में पवित्र क़ुरआन अंतरिक्ष के प्लाविक द्रव या अन्त: इस्पात द्रव्य:intra steels material की ओर संकेत करता है ।
‘‘वह जिस ने छह दिनों में ज़मीन और आसमानों और उन सारी वस्तुओं का निर्माण पूरा कर दिया जो आसमान और ज़मीन के बीच में हैं।( अल-क़ुरआन ,,सूर: 25 आयत 59 )
ईसाई धर्म में सृष्टि की व्याख्या
ईसाई धर्म के अनुसार सृष्टि के विभिन्न भाग हैं। प्रथम भाग में - खनिज जगत- जैसे पत्थर, आदि। इनका केवल अस्तित्व है, में जीवन, विकास और चेतना नहीं होती। दूसरा भाग है वनस्पति जगत- खनिज पदार्थ के समान ही इनका अस्तित्व होता है, साथ ही जीवन और विकास। तृतीय भाग में प्राणी जगत- खनिज पदार्थ के समान अस्तित्व होता है, वनस्पति के सदृश जीवन और विकास, इसके अतिरिक्त संवेदना होती है। चतुर्थ भाग में मानव जगत- खनिज पदार्थ के समान इनका भी अस्तित्व होता है। वनस्पति जगत के समान इनमें जीवन होता है, प्राणी जगत के जैसे संवेदना होती है। इनके अतिरिक्त बुद्धि और स्वतंत्र इच्छा होती है। पहले दिन ईश्वर ने प्रकाश बनाया। दूसरे दिन उसने आकाश की रचना की और उसे स्वर्ग कहा। तीसरे दिन ईश्वर ने पानी को जमीन से अलग किया और आज्ञा दी कि पृथ्वी घास, फूल, पौधे आदि उत्पन्न करें। चौथे दिन ईश्वर ने सूर्य, चंद्रमा और तारों को बनाया। पाँचवें दिन उसने पक्षियों और मछलियों की सृष्टि की। छठवें दिन उसने दूसरे जानवरों को बनाया और अंत में मनुष्य की रचना की। सातवें दिन ईश्वर ने विश्राम किया। बाइबल में जॉन सिद्धांत में सामान्यतया`आरंभ में शब्द था़`पठित है लेकिन मूल पाठ में प्रयुक्त शब्द`लोगो` था ।ईसा पूर्व लगभग 500वें वर्ष में विद्यमानग्रीक दार्शनिक हरक्लीटस ने`लोगो` का उल्लेख कुछ आधारभूतअज्ञात के रूप में किया ।सभी पुनरावृति, पद्धति और स्वरूपों का उद्भव ।हरक्लीटस के उपदेशों का अनुसरण करने वाले निर्लिप्त दार्शनिकों ने ब्रह्माण्ड में व्याप्त दिव्य जीवंत सिद्धांत के साथ इस शब्द का पता लगाया ।
बौद्ध धर्म के अनुसार सृष्टि की व्याख्या
बौद्ध धर्म संसार की उत्पत्ति तथा प्रलय नहीं मानता । संसार में वस्तुएँ उत्पन्न तथा नष्ट होती रहती है। जीवों के जन्म मरण का प्रवाद चलता रहता है किंतु समग्र संसार की न तो उत्पत्ति ही होती है, न विनाश। न्याय की तरह बौद्ध ईश्वर को जगत् का कारण नहीं मानते। अनेक तर्कों द्वारा उन्होंने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि ईश्वर को जगत् का कारण मानना युक्तिसंगत नहीं है।
बुद्ध के अनुसार आत्मा एक नित्य द्रव्य है। वह विभु अथवा व्यापक है। वह कर्ता तथा कर्म-फल-भोक्ता दोनों ही है। आत्मा शरीर, इंद्रिय, मन तथा बुद्धि से भिन्न है। वह विज्ञानों की संतान मात्र नहीं है। उनके अनुसार नित्य आत्मा के अस्त्वि की अनुभूति तथा स्मरण आदि क्रियाओं की व्याख्या नहीं की जा सकती। आत्मा परिणामी तथा नित्य है। आत्मा अंशत: जड़ तथा अंशत: चेतन है। चिदंश से आत्मा वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त करता है : अचिदंश से वह ज्ञान, सुख, दुख, इच्छा, प्रयत्न आदि के रूप में औपाधिक गुण है जो विशेष परिस्थिति, जैसे इंद्रिय का विषय से संयोग, होने पर उत्पन्न होता है। सुषुप्ति तथा मोक्ष की अवस्था में आत्मा में चेतना नहीं रहती। बौद्ध के मत से आत्मा ज्ञाता तथा ज्ञान का विषय, दोनों ही है। वेद के वाक्य कि मै आत्मा अथवा ब्रह्म हूँ, आत्मा को जानो इस मत की पुष्टि करते हैं। बौद्धधर्म में प्रत्येक को अपने `लोगो़` को सीधे महसूस करना,अर्थात् ध्यान के माध्यम से अपने भीतर परिवर्तन या नश्वरता के क्षेत्र का पतालगाना सिखाया जाता है। जब आप अपना आंतरिक संसार देखते हैं तो आप सूक्ष्म संवेदनाओं और ऊर्जा को देखते हैं औरमस्तिष्क अधिकाधिक कुशाग्र व आत्मकेन्द्रित होने लगता है ।`अणिका` के प्रत्यक्ष अनुभव या संवेदन के आधारभूत स्तर पर नश्वरता के माध्यम से व्यक्तिमोह से मुक्त हो जाता है ।बौद्ध परंपरा में, `बोधिसत्व`जागृत बुद्ध प्रकृति का व्यक्ति है ।ब्रह्माण्ड में बोधिसत्व हर प्राणी को जागृत करने में सहायता करता है, यह अनुभव करते हुए कि चेतना केवल एक ही है। किसी के वास्तविक स्वरूप को जागृत करने के लिए व्यक्ति को सभी को जागृत करना चाहिए ।“विश्व में असंख्य सचेतन प्राणी हैं, मैं उनकी जागृति में सहायता करना चाहता हूं ।मेरी अपूर्णताएं असंख्य हैं ।मैं उन पर विजय पाना चाहता हूँ।
जैन धर्म में सृष्टि की व्याख्या
जैन धर्म के अनुसार संसार को शाश्वत, नित्य, अनश्वर, और वास्तविक अस्तित्त्व वाला मानता है। पदार्थों का मूलत: विनाश नहीं होता, बल्कि उसका रूप परिवर्तित होता है।इस धर्म के अनुसार ब्रह्माण्ड की आधारभूत संरचना चतुष्फलक आकार की थी । इस मत के अनुसार पदार्थ पाँच प्रकार के हैं : द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य तथा अभाव। इनको वे दो भागों में विभाजित करते हैं : भाव और अभाव। प्रथम चार भाव पदार्थ कहलाते हैं। अभाव को वैशेषिकों की तरह उन्होंने चार प्रकार का माना है : प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव, अत्यंताभाव तथा अन्योन्याभाव।
द्रव्य वह है जिसमें गुण रहते हैं। कुमारिल के अनुसार यह ग्यारह प्रकार का है : पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, आत्मा, मन, माल, दिक्, अंधकार और शब्द। इनमें प्रथम नौ द्रव्य वैशेषिक दर्शन से ही लिए गए हैं। महावीर ने अंधकार तथा शब्द को भी द्रव्य की ही मान्यता दी है।
गुणों के विषय में भी महावीर पर वैशेषिक का पर्याप्त प्रभाव प्रतीत होता है। प्रशस्तपाद की तरह वे भी 24 गुण मानते हैं। ये हैं रूप, रस, गंध, स्पर्श, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, गुरुत्व, द्रवत्व, स्नेह, ज्ञान, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, सुख, दुख, संस्कार, ध्वनि, प्राकट्य और शक्ति। गुणों की इस सूची में उन्होंने प्रशस्तवाद के शब्द के स्थान पर ध्वनि तथा धर्म और अधर्म के स्थान पर प्राकट्य और शक्ति रखा है।
ब्रह्माण्ड का मूल क्रम अनन्त से महत,महत से अन्धकार,अन्धकार से आकाश, आकाश से वायु, वायु से अग्नि ,अग्नि से जल, और जल से पृथ्वी तथा अंत में पृथ्वी से जीवन है। अनन्त जिसे आत्मा कहते हैं । पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार ये प्रकृति के आठ तत्व हैं। आज से 13.7 अरब वर्ष पहले बिग बैंग यानी कि महाविस्फोट हुआ था। उसके बाद जब भौतिकी की रचना हुई, अर्थात्, पदार्थ में लंबाई, चौड़ाई और गोलाई आई, वहाँ से विज्ञान की शुरुआत हुई। उससे पहले क्या हुआ, इस पर विज्ञान मौन है। क्योंकि भौतिकी की यह सीमा है। क्वांटम सिद्धांत के आधार पर अवश्य आगे का जानने के कुछ प्रयास हुए, परंतु उसमें कुछ खास सफलता नहीं मिली। उससे जो कुछ निकाला गया, वह सारी बातें हमारे शास्त्रों में पहले से है। सृष्टि की रचना सात दिन या सात करोड़ वर्ष का मामला नहीं है । यह अनन्त काल के अन्धकार के बाद अरबों वर्ष के क्रमशः विकास का परिणाम है ।
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