पण्डित चन्द्रशेखर 'आजाद' 23जुलाई 1906 - 27 फ़रवरी 1931) ऐतिहासिक दृष्टि से भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानी थे। ...
पण्डित चन्द्रशेखर 'आजाद' 23जुलाई 1906 - 27 फ़रवरी 1931) ऐतिहासिक दृष्टि से भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानी थे। वे पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल व सरदार भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारियों के अनन्यतम साथियों में से थे। सन् 1922 में गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन को अचानक बन्द कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन के सक्रिय सदस्य बन गये.आइये उनके जीवन के संघर्षों को जीने की कोशिश करें।
(बालक चंद्रशेखर बाहर से खेल कर आता है पिता सीताराम तिवारी मन्त्र बुदबुदाते हुए उसे आग्नेय नेत्रों से देखते हैं। चंदू सहम कर माँ के पल्लू में सिमिट जाता है। )
पिता - कहाँ से आ रहे हो ?खेल के अलावा पढाई लिखाई में ध्यान है कि नहीं।
जगरानी - जी भी तो वो बहुत छोटा है ,पढ़ लेगा।
पिता - तुम्हारा लाड़ इसे न घर का छोड़ेगा न घाट का ,मैंने सोचा था कि संस्कृत पढ़ा कर अच्छा पंडित बनाऊंगा लेकिन इसके लक्षण नहीं दिख रहें है।
जगरानी - संस्कृत पढ़ कर क्या लाट गवर्नर बन जायेगा ,अभी खेलने खाने के दिन है आप भी उसे हमेशा डांटते ही रहते हो। चल चंदू भूख लगी होगी मक्खन रोटी खा ले।
पिता जी - सारा दिन भीलों के बच्चों के साथ निशाने बाजी करता है और पैर फैला कर सोता है और कोई दूसरा काम इसे है नहीं भगवान् जाने इस लड़के का क्या होगा।
पंडित सीताराम तिवारी मन्त्र बुदबुदाते हुए चले जाते हैं माँ जगरानी लाड़ले चंदू को प्यार से मक्खन रोटी खिलाती है।
चंदू - माँ ये अंग्रेज यहाँ क्यों है।
जगरानी - बेटा ये लुटेरे और कसाई हैं हमें लूट रहे हैं।
चंदू - माँ मैं बड़ा होकर इन अंग्रेजों को बहुत मारूंगा ,तू मुझे एक बन्दूक दिला देना।
जगरानी - बेटा वो बहुत ताकतवर हैं।
चंदू - माँ मुझ में भी बहुत ताकत है (पास में पड़ी एक लोहे की छड़ को दोनों नन्हें हाथों से मोड़ने की कोशिश करता है। माँ हंसकर नन्हे चंदू को गले लगाती है।
दृश्य 2
(1919में हुए अमृतसर के जलियांवाला बाग नरसंहार ने देश के नवयुवकों को उद्वेलित कर दिया। चन्द्रशेखर उस समय विद्यालय में पढाई कर रहे थे। जब गांधीजी ने सन् 1921 में असहयोग आन्दोलनका फरमान जारी किया तो वह आग ज्वालामुखी बनकर फट पड़ी और तमाम अन्य छात्रों की भाँति चन्द्रशेखर भी सड़कों पर उतर आये। चंद्रशेखर आपने विद्यालय के छात्रों को सम्बोधित कर रहे थे।)
चंद्रशेखर - भारत माता की जय।
सभी छात्र (एक स्वर में ) - भारत माता की जय
चंद्रशेखर - मेरे प्यारे भाइयों और बहनों। आज देश हमें पुकार रहा है क्या आप मेरे साथ देश की इस पुकार को सुन रहे हो।
सभी छात्र (एक स्वर में ) - हाँ
चंद्रशेखर - क्या आपको मालूम इन अंग्रेजों ने हमारे निहत्थे भाई बहिनों को गोलियों से भून दिया है। इस घटना के विरोध में आज हम सभी एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने शहर में जुलूस निकालेंगे क्या आप मेरा साथ दोगे।
सभी छात्र (एक स्वर में ) - हम सभी तुम्हारे साथ हैं।
(चंद्रशेखर सभी छात्रों को आगे करके" भारत माता की जय ""गांधीजी अमर रहें लगाते हुए शहर में घूमने लगे तभी पुलिस वहां पहुंची और इस जुलूस को घेर लिया चंद्रशेखर ने पुलिस इंस्पेक्टर से कहा इन सब को जाने दें ये मेरे कहने पर इस जुलूस में सम्मिलित हुए है। पुलिस चंद्रशेखर को पकड़ कर मजिस्ट्रेट मिस्टर खरेघाट कि अदालत में पेश करती है।)
मजिस्ट्रेट - तुम्हारा क्या नाम है ?
चंद्रशेखर - आज़ाद।
मजिस्ट्रेट - पिता का क्या नाम है ?
चंद्रशेखर - स्वाधीन
मजिस्ट्रेट - तुम्हारा पता क्या है ?
चंद्रशेखर - जेल।
मजिस्ट्रेट - जानते हो इस जुर्म कि क्या सजा मिल सकती है ?
चंद्रशेखर - मौत।
मजिस्ट्रेट - जल्लाद इसको ले जाओ और सरकारी कानून तोड़ने के जुर्म में पंद्रह बेंत लगाओ।
चंद्रशेखर - भारत माता की जय।
(जल्लाद चंद्रशेखर कि कमीज उतार कर दोनों हाथों को बांध कर उनकी नंगी पीठ पर पहला बेंत मारता है बालक चन्द्रशेखर की पीठ की खाल उधड जाती है फिर भी चंद्रशेखर मुस्कुराते हुए भारत माता की जय ,महात्मा गांधी की जय के नारे लगते हैं।)
जेलर - आज के बाद सब भूल जाओगे बच्चे।
चंद्रशेखर - भारत माता के लिए मैं प्राण भी दे सकता हूँ। भारत माता की जय।
(जल्लाद पूरे जोर से फिर बेंत मारता है चंद्रशेखर कि पीठ लहूलुहान हो जाती है लेकिन उनके चेहरे पर शिकन नहीं आती है अंतिम बेंत पड़ते ही बालक चंद्रशेखर बेहोश हो जाते है थोड़ी देर बाद उन्हें होश आता है जेलर नियमानुसार सजा पूरी होने पर उनके हाथ में तीन आने पैसे रखता है।)
जेलर - ये लो तुम्हारी बख्शीश।
चंद्रशेखर - मैं खैरात के पैसे नहीं लेता।
उन तीन आने को जेलर के ऊपर फेंक कर बालक चंद्रशेखर वहां से दौड़ लगा देता है।
दृश्य तीन
(सभी क्रांतिकारियों ने मिल कर हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सेना का निर्माण किया इस संघटन में भगत सिंह राम प्रसाद बिस्मिल राजगुरु सुखदेव आदि अनेक शहीद क्रांतिकारी थे इन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य कि नाक में दम कर लिया था। उन दिनों भारत को कुछ राजनीतिक स्वायत्तता देने के लिए जान साइमन के नेतृत्व में एक आयोग बना जिसका भारत में पुरजोर विरोध हुआ पुलिस ने प्रदर्शनकारियों अपर बेरहमी से लाठियां बरसाईं जीमे लाला लाजपत राइ घायल हो गए एवं बाद में उनकी मृत्यु हो गई। चंद्रशेखर आज़ाद और उनके साथियों ने इसका बदला लेने का निश्चय किया। )
भगतसिंह - लालाजी को मार दिया गया।
चंद्रशेखर - भगत इसका बदला लिया जायेगा इन फिरंगियों को में छोडूंगा नहीं चुन चुन कर मारूँगा।
भगतसिंह - पंडितजी आप बहुत आवेश में हो।
बिस्मिल - ये पंडित बहुत उतावला रहता है। कोई भी काम जल्दबाजी में नहीं सोच समझ कर करना चाहिए।
आजाद - गुरूजी आपके कारण चुप रहता हूँ वर्ना इन सालों को वो सजा देता कि ये जिन्दगी भर याद रखते।
बिस्मिल - सुधर जा पंडित।
भगतसिंह - गुरूजी इनकी शादी करवा दो अपने आप सुधर जायेंगे।
आजाद - भगत तुझे मालूम है मौत से यारी कर चुका हूँ अब तो उसी से शादी होगी।
भगतसिंह - मौत से यारी तो सांडर्स भी करेगा ,वो जरुर मरेगा।
(17 दिसंबर 1928 को योजना के मुताबिक आजाद ,भगतसिंह और राजगुरु लाहौर पुलिस अधीक्षक कार्यालय के बाहर छुप कर संदर्श का इन्तजार करते हैं। सांडर्स अपने अंगरक्षक के पीछे मोटर साइकिल पर बैठता है।)
आजाद - राज वो हरामी निकल न पाए।
राजगुरु - पंडितजी राजगुरु का निशाना कभी चूकता नहीं है। भारत माता की जय
भगतसिंह - राज माथे का निशाना लो।
(राजगुरु सांडर्स के माथे पर निशाना लेकर गोली चलाता है। गोली सीधे निशाने पर लगती है। सांडर्स वहीँ ढेर हो जाता है भगत सिंग दौड़ कर जाते हैं और सांडर्स के सीने में पांच गोलियां उतार देते हैं। आजाद सांडर्स के अंगरक्षक को ढेर कर देते हैं।)
दृश्य चार
(चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में भगत सिंह ,बटुकेश्वर दत्त और राजगुरु 8अप्रेल 1929 को दिल्ली कि केन्द्रीय असेम्बली में बम फेंकते हैं। पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर लेती है तीनों को मौत कि सजा सुनाई जाती है। आजाद भगत सिंग और उनके साथियों कि सजा कम करवाने के लिए गांधीजी एवं नेहरूजी से बहुत विनय करते हैं वो पंडित नेहरु से मिलने जाते हैं।)
आजाद - आप भगतसिंह कि सजा कम करवाने में मेरी सहायता कीजिये ,आप गांधीजी से कहिये वो वायसराय से बात करें।
नेहरु - पंडित जी ये तरीका सही नहीं है आतंक के रास्ते से हम कभी स्वतंत्र नहीं हो सकते हैं।
आजाद - ये आपका दृष्टिकोण हो सकता है। मै इन फिरंगियों के चरण नहीं छू सकता।
नेहरु - हमें गांधीजी का अनुसरण करना होगा। हिंसा करके आप इस आन्दोलन को कमजोर कर रहे हैं।
आजाद - हम सर पर कफन बांध कर निकले हैं अपना सब-कुछ माँ भारती के चरणों में अर्पण कर दिया है और आप कह रहें हैं हम आन्दोलन को कमजोर कर रहे हैं।
नेहरु - हिंसा फैला कर कभी ही बड़ी सफलता प्राप्त नहीं कि जा सकती है। माफ़ कीजिये मैं आपकी कोई सहायता नहीं कर सकता।
आजाद - स्याला हम बताएँगे अंग्रेजों को कि हम क्या हैं। भारत माता की जय
(आजाद गुस्से में उठकर वहां से चले जाते हैं।)
दृश्य पांच
(अल्फ्रेड पार्क में आजाद अपने सही सुखदेव के साथ आगे कि रणनीति पर चर्चा कर रहे थे तभी किसी मुखबिर कि सूचना पर सशस्त्र पुलिस बल ने उन्हें चारों और से घेर लिया।)
नाटबाबर - तुम्हें पुलिस ने चारों और से घेर लिया है अपने हथियार डालकर आत्म समर्पण कर दो।
आजाद - सालों ने अपनी चाल चाल ही दी।
आजाद - तुम्हारे बाप में हिम्मत हो तो पकड़ कर दिखाओ।
नाटबाबर गोली चलाता है गोली आजाद के जांघ में लगती है इसके जवाब में आजाद नाटबाबर पर गोली चलाते हैं इससे नाटबाबर कि कलाई टूट जाती है।
सुखदेव - पंडितजी आप निकल जाओ में इन्हें रोकता हूँ
आजाद - - सुखदेव आजाद भने वालों में से नहीं है ,मैं इन्हें आज बताऊंगा कि माँ भारती का बेटा कैसे उसके चरणों में शीश चढ़ाता है तुम पीछे से निकलो और अपने साथियों को साथ लेकर भगत सिंह को छुड़ाने का प्रयत्न करना। जाओ ये मेरा आदेश है।
(सुखदेव भरी आँखों से आज़ाद के पैर छू कर पीछे से निकल जाते हैं उन्हें मालूम था कि आज़ाद से ये उनकी अंतिम मुलाकात है।)
इंस्पेक्टर विश्वेश्वर - ये हरामी कहाँ छुपा है।
आज़ाद - - मैं यहाँ हूँ हरामजादे। तुम जैसे गद्दारों के कारण ही ये फिरंगी हम पर शासन कर रहें है तुम को इसकी सजा मैं आज दूंगा।
आज़ाद उस इंस्पेक्टर के आवाज़ की दिशा में गोली चलते है और उस इंस्पेक्टर का जबड़ा टूट जाता है।
(करीब दो घंटे तक आज़ाद उस पूरी पुलिस टुकड़ी को रोक कर रखते हैं अंत में एक गोली बचती है।)
आज़ाद (स्वयं से ) - - बस पंडित तुम्हारी जीवन यात्रा यही तक थी। माँ भारती मुझे क्षमा करना मैं अपना उद्देश्य पूर्ण नहीं कर सका। माँ अगला जन्म अगर हो तो तेरी ही गोदी मिले अंतिम विदा।
(आज़ाद अपनी माउजर को कनपटी अपर रखते हैं और गोली दाग देते हैं।)
भारत का ये सपूत इस शान से जिया उसी शान से शहीद हुआ। जब भारत के इस बेटे की शव यात्रा निकली तो हर तरफ आंसुओं का सैलाब था।
समाप्त
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