कविता का स्वरूप // सुशील शर्मा

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कविता एक भावनात्मक प्रतिक्रिया पैदा करने के लिए अर्थ, ध्वनि, और तालबद्ध भाषा विकल्पों के माध्यम से व्यक्त अनुभव के बारे में एक कल्पनाशील जाग...

कविता एक भावनात्मक प्रतिक्रिया पैदा करने के लिए अर्थ, ध्वनि, और तालबद्ध भाषा विकल्पों के माध्यम से व्यक्त अनुभव के बारे में एक कल्पनाशील जागरूकता है। कविता भाषा का गढ़ा संगमरमर है; यह एक रंग-बिखरे कैनवास है - लेकिन कवि पेंट के बजाय शब्दों का उपयोग करता है। साहित्य एक सृजनात्मक अभिव्य्क्ति है। ये भाव एवं कल्पना पर आधारित होती है। मन के कुछ कथ्य और विचार जब भाव और कल्पना के सूक्ष्म एवं तरल धरातल पर उगते है तो काव्य सृजित होता है। काव्य में लक्षणा और व्यंजना शक्ति महत्वपूर्ण होती है। इसी के माध्यम से कवि की अनुभूतियाँ पटाहक के मन ,ह्रदय और मस्तिष्क पर भाव पूर्ण चित्रण जागृत करने में सफल होती है। कविता बाह्य प्रकृति के साथ मनुष्य की अंतःप्रकृति का सामंजस्य घटित करती हुई उसको भावात्मक सत्ता के प्रकार का प्रसार करती है।

*कविता का बाह्य स्वरूप*

कविता के बाह्य आकार को अगर कोई सुन्दर बनाता है तो वो छन्द है। छंद – ” अक्षरों की संख्या एवं क्रम ,मात्रा गणना तथा यति -गति के सम्बद्ध विशिष्ट नियमों से नियोजित पद्य रचना ‘ छंद ‘ कहलाती है !

छन्द कविता के पदों में सक्रियता और प्रभावशीलता लाता है। वह हमारी अनुभूतियों को लय तान और राग से स्पंदित करता है। छन्द के प्रमुख तीन तत्त्व होते हैं। प्रथम - मात्राओं और वर्णों की किसी विशेषक्रम से योजना। दूसरा गति और यति के विशेष नियमों का पालन तीसरा चरणान्त की समता। कवि की आत्मा का नाद ही लय रूप में छन्दों में प्रतिष्ठित होता है। छन्द भावों की तीव्रता प्रदान करता है। कविता को रमणीय ओर सजीव बना कर रस निष्पत्ति में सहायक होता हैं ।

कविता में मापनी (Meter) का अपना अलग आधार है। हिंदी में अक्षरों की संख्या एवं उनकी मात्रा गणना और यति-गति के आधार पर छंदों का विन्यास होता है। किन्तु अंग्रेजी कविता में लघु गुरू या प्रबल बलाघात के आधार पर छन्द का निर्धारण होता है।

कविताओं के तत्वों को एक कविता बनाने के लिए इस्तेमाल किए गए उपकरणों के एक सेट के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इनमें से बहुत से हजारों साल पहले बनाये गए थे वे कविता, कहानियों, और नाटकों को कल्पना और भावना लाने में मदद करते हैं।

एक कविता दो या अधिक पंक्तियां कविता की होती हैं। एक कविता आमतौर पर एक विन्यास में बंधी होती है। स्टांज़स एक साथ वर्गीकृत लाइनों की एक श्रृंखला है वे एक निबंध में पैराग्राफ के बराबर हैं। कविता में पंक्ति समूहों का निम्न विन्यास होता है।

1.दोहर (2 लाइनें)

2.टीरसेट (3 पंक्तियाँ)

3.चौथाई (4 लाइन)

4.सिंकैन (5 लाइनें पंचम)

5.sestet (6 लाइनें) (षष्टक कहा जाता है)

6.सेप्टेट (7 लाइन सप्तक)

7.आठवें (8 लाइनें अष्टक)

कविता योजना के अनुसार मुक्त और / या छंद बद्ध हो सकती है या नहीं, लेकिन इसे अपने आकार या शैली के अनुसार वर्गीकृत किया जा सकता है। काव्य शास्त्रों के अनुसार यहां तीन सबसे आम प्रकार की कविताएं हैं:

1. गीत कविता: यह कविता छंद मुक्त होने के साथ मजबूत विचारों और भावनाओं को व्यक्त करती है। ज्यादातर कविताओं, खासकर आधुनिक कविताएं गीत कविताएं हैं।

2. कथा कविता: यह कविता एक कहानी कहती है; इसकी संरचना एक कहानी की तरह दिखती है यानी, संघर्ष और पात्रों का सम्भाषण, कथनात्मकता चरमोत्कर्ष ।

3. वर्णनात्मक कविता: यह कविता दुनिया का वर्णन करती है जो कवि के चारों ओर है। इसमें कवि विस्तृत कल्पना और विशेषणों का उपयोग करता है यह कविता की अन्य की तुलना में "बाह्य-केंद्रित" होती है जो कि अधिक व्यक्तिगत अभिव्यक्ति पर जोर देती है।

कविता का विश्लेषण करने का एक महत्वपूर्ण तरीका उसकी संरचना है किसी कविता की शैली को देखने के बाद उसके समग्र संगठन और / या ध्वनि के पारंपरिक विन्यास से ही उसकी श्रेष्ठता समझ में आती है किन्तु आधुनिक कविताओं में कोई भी पहचान योग्य संरचना नहीं होती है (यानी वे छन्द मुक्त पद्य हैं। जैसे हाइकु क्षणिकाएं, मुक्तक नवगीत इत्यादि। छंद के बंधनों से मुक्त होने के बाद से कविता गद्य के एकदम नजदीक चली गई है। कभी-कभी कविता के बाह्य स्वरूप को देखकर कहना कठिन हो जाता है कि यह कविता है या कोई गद्यांश ।

*कविता का आंतरिक स्वरूप*

कविता के आंतरिक रूप को अगर विश्लेषित किया जाए तो उस कविता के भाव,प्रयोजन,कल्पना शक्ति और उद्देश्य पर विचार किया जाता है।

कविता के पाठक अक्सर उनके साथ कई संबंधित धारणा लाते हैं: काव्य, मनुष्य-चेतना की सबसे महत्तम सृजन है। काव्यशास्त्र में इसी का विश्लेषण किया जाता है। काव्य का लक्षण निर्धारित करना ही काव्यशास्त्र का प्रयोजन है। लक्षण का अर्थ है, असाधारण अर्थ। काव्य लक्षण का अर्थ है या काव्य का विशेष धर्म है जो अन्य प्रकारों से काव्य का भेद दर्शाता है। कविता में मुख्य होती है अंतर्वस्तु । यह अंतर्वस्तु ही है ,जो अपना रूप निश्चित करती है लेकिन रूप सर्जना में कवि की प्रतिभा ,अध्ययन ,अभ्यास आदि काम में आते हैं। अंतर्वस्तु का निर्धारण भी प्रतिभा , अध्ययन और अभ्यास के बिना संभव नहीं होता । बिंब ,प्रतीक , रूपक आदि क्या करते हैं -यह जानने की बात है । अपने आप में बिंब ,प्रतीक , रूपकों का कोई मतलब नहीं। बिंब ,प्रतीक , व्यंजना तो हमारी रीतिकालीन कविता में भी मौजूद हैं लेकिन जिंदगी की गहराई और व्यापकता के अभाव में केवल मनोरंजन तक सीमित होकर रह जाते हैं

*तददोषौ शब्दार्थौ सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि कस्य काव्यपरिभाषा वर्तते?-*

अर्थात दोष-रहित और गुणालंकार सहित शब्दार्थ का नाम काव्य है-कहीं-कहीं अलंकार के स्फुट न होने पर भी दोष रहित और गुण-सहित शब्दार्थ काव्य कहे जाते हैं। आचार्य विश्वनाथ ने इस परिभाषा की आलोचना करते हुए कहा है कि गुणाभिव्यंजक शब्दार्थ तो उत्पन्न स्वरूप के उत्कर्षमात्रा हें, उसके स्वरूप व्यापक नहीं हैं। काव्य तीन प्रकार के कहे गए हैं, ध्वनि, गुणीभूत व्यंग्य और चित्र। ध्वनि वह है जिस, में शब्दों से निकले हुए अर्थ (वाच्य) की अपेक्षा छिपा हुआ अभिप्राय (व्यंग्य) प्रधान हो। गुणीभूत ब्यंग्य वह है जिसमें गौण हो। चित्र या अलंकार वह है जिसमें बिना ब्यंग्य के चमत्कार हो।मम्मट स्वयं गुणों को रस का धर्म मानते हैं- जहां रस नहीं है, वहां अलंकारों का प्रयोग हो सकता है।कोई सौंदर्यवती यदि आभूषण धारण करें, तो उसका प्राकृतिक सौंदर्य ओर अधिक निखर उठता है। ठीक वैसे ही कविता कामिनी अलंकार रूपी आभूषणों से अपने सौंदर्य को बढाती है। अलंकार मात्र सौंदर्य वृद्धि के साधन है, साध्य नहीं। काव्य के भाव पक्ष और शैली पक्ष दोनों के लिए ही अलंकार उपकारक है। अलंकार बाह्याभ्यन्तर दोनों में स्थित होते हुए भी काव्य में उसकी मुख्य स्थिति बाह्य ही होते है। अतः इसे सर्वोपरि स्थान नहीं मिला। अलंकारों से काव्य में रमणीयता आती है ,भावोत्कर्ष में सहायता मिलती है।

रसात्मकम् वाक्यम् काव्यम्”

अर्थात् रसयुक्त वाक्य ही काव्य है।

रस अन्त:करण की वह शक्ति है, जिसके कारण इन्द्रियाँ अपना कार्य करती हैं, मन कल्पना करता है, स्वप्न की स्मृति रहती है

इस तरह संस्कृत काव्यशास्त्र में जहाँ शब्द (अभिव्यंजना ) को महत्वपूर्ण मानते हुए चमत्कार को उसका असाधारण धर्म स्वीकार किया वहां शब्दार्थ-साहित्यवादियों ने शब्दार्थ के महत्व को स्वीकार करते हुए रस या रस-ध्वनि को काव्य के विशेष रूप में ग्रहण किया जिससे काव्य की काव्यात्मकता सिद्ध होती हो। कविता को मर्मस्पर्शी बनाने में सार्थक ध्वनि समूह का बड़ा महत्व है। विषय को स्पष्ट और प्रभावशाली बनाने में शब्दार्थ योजना का बड़ा महत्व है। शब्दों का चयन कविता के बाहरी रूप को पूर्ण और आकर्षक बनाता है। कवि की कल्पना शब्दों के सार्थक और उचित प्रयोग द्वारा ही साकार होती है। अपनी हृदयगत भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए कवि भाषा की अनेक प्रकार से योजना करता है ओर इस प्रकार प्रभावशाली कविता रचता है। शब्द शक्ति, शब्द गुण, अलंकार लय तुक छंद, रस, चित्रात्मक भाषा इन सबके सहारे कविता का सौंदर्य संसार आकार ग्रहण करता है। लय और तुक कविता को सहज गति और प्रवाह प्रदान करते हैं। काव्य वही केवल शब्द नहीं कहा जा सकता, वह निश्चित रूप से शब्दार्थ है, किंतु शब्दार्थ के सभी रूप काव्य नहीं हैं-काव्य वह है जहाँ शब्दार्थ का 'सहित अर्थात कलात्मक प्रयोग है अर्थात कवि कुशलता की सहायता से जहाँ शब्दार्थ की निर्मित हुई हो। इस तरह शब्द अर्थ के सहभाव काव्य सृजन की पहली शर्त है।

1. कि एक कविता इसके "संदेश" के लिए पढ़ी जा सकती है

2. यह संदेश कविता में "छिपा हुआ" है,

3. संदेश को उन शब्दों के रूप में माना जाता है जो स्वाभाविक रूप से इसका मतलब यह नहीं है कि वे क्या कहते हैं लेकिन कुछ और के लिए खड़े हैं,

4. कविता की सराहना करने और आनंद लेने के लिए आपको प्रत्येक एक शब्द को पढ़ना होगा।

कविता में प्रत्यक्ष-परोक्ष सारे उपादान बिम्ब , प्रतीक, मिथक, अलंकार , छंद इत्यादि भाषा की शक्ति है जो भाव और चरित्रों को आधार प्रदान करने वाली होती है ।काव्य में बिम्ब , प्रतीक अथवा मिथक सजावट का कार्य तो करते ही हैं अपितु काव्य भाषा को विशिष्ट अर्थ प्रदान करते हैं । प्रतीक एवं शब्द चित्र की सार्थकता रचना में जब परिणित होती है  , जब वे भाव , चरित्रों अथवा बिम्बों को उकेर कर काव्य पंक्तियों में परिलक्षित करने लगते हैं। ये भाव व् चरित्रों की उपादेयता काव्यात्मक अभिव्यक्ति का एक महत्वपूर्ण अंग है। आज की कविता में जितनी कवायद अर्थग्रहण की हो रही है उतनी बिंब ग्रहण की नहीं ।

दण्डी ने कहा कि जब कविता समझने की बात उठती है, तब शब्द ही पहले आते हैं न कि अर्थ। अग्निपुराणकार ने कहा कि शब्दों की ध्वन्यात्मकता का भी महत्व है, भले ही अर्थ का अनुमापन न हुआ हो। जगन्नाथ भी शब्द की रमणीयता में काव्य के असाधारण धर्म को ढूंढते हैं। जयदेव ने वाक एवं विश्वनाथ ने वाक्य को प्रधानता दी है। वस्तुत: इस वर्ग के विद्वान भृतहरि के शब्द ब्रह्रा की अवधारणा से प्रभावित रहे हैं जिसके अनुसार शब्द से ही वस्तु का ज्ञान होता है।

साहित्य दर्पण में आचार्य विश्वनाथ का कहना है, 'वाक्यम् रसात्मकं काव्यम्' यानि रस की अनुभूति करा देने वाली वाणी काव्य है। ... आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने "कविता क्या है" शीर्षक निबंध में कविता को "जीवन की अनुभूति" कहा है। कविता कल्पना में सत्य और सत्य की कल्पना में निहित होती है जो प्रभावी ढंग से कवि हृदय से निकलती है और जनसाधारण को अंदर तक झकझोर देती है। यही कारण है कि कवि निर्जीव वस्तुओं में भी जीवन ढूंढकर अपनी भावनाओं में एक प्रभाव उत्पन्न करके जनसाधारण को एक नया सन्देश दे जाता है जो लोगों की नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक रूप में परिवर्तित कर एक नए उत्साह का प्रादुर्भाव करता है।

अतः कविता मानव जीवन का सार है जो मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक सम्बंध जोड़ने में सहायक होती है।

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रचनाकार: कविता का स्वरूप // सुशील शर्मा
कविता का स्वरूप // सुशील शर्मा
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