देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–6 : 2 चिक // सुषमा गुप्ता

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2 चिक [1] एक बार एक पति पत्नी थे जिनके सात बच्चे थे। पिता किसान था और खेती करता था जबकि पत्नी घर में रहती थी और घर और बच्चों की देखभाल करती...

2 चिक[1]

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एक बार एक पति पत्नी थे जिनके सात बच्चे थे। पिता किसान था और खेती करता था जबकि पत्नी घर में रहती थी और घर और बच्चों की देखभाल करती थी।

एक बार बहुत ज़ोर का अकाल पड़ा तो सब लोग भूख से मरने लगे। रात को बच्चे तो सो जाते पर वे पति पत्नी बेचारे चिन्ता के मारे सो नहीं पाते। पति कहता — “प्रिये, अब तो ज़िन्दगी दूभर हो गयी है। अपने बच्चों को भूखा रहते देख कर मेरा तो दिल रोता है।”

उसकी पत्नी जवाब देती — “यह तो तुम ठीक कह रहे हो पर करें क्या?”

एक दिन पति बोला — “कल जब मैं लकड़ी काटने जंगल जाऊँगा तो मैं उनको अपने साथ ले जाऊँगा और उनको वहीं छोड़ आऊँगा। उनको तिल तिल करके मरते देखने की बजाय तो अच्छा है कि मैं उन सबको एक साथ ही खो दूँ।”

“श श श श। थोड़ा धीरे बोलो कहीं वे हमारी बात न सुन लें।”

“ओह तुम उनकी चिन्ता न करो वे तो बहुत गहरी नींद सोये हुए हैं।”

पर उनमें से उनका सबसे छोटा बेटा जो कुबड़ा था और जिसको वे सब चिक कह कर पुकारते थे वह यह सब कुछ सुन रहा था।

सुबह को जब वे सब सो कर उठे तो उनकी माँ ने उनको बुलाया और उनको तैयार करके ऑखों में ऑसू भर कर प्यार करके बोली — “अच्छा बच्चो जाओ। आज तुम लोग अपने पिता के साथ काम पर जा रहे हो।” और वे सब अपने पिता के साथ चल दिये।

रास्ते में चिक ने बहुत सारे सफेद पत्थर उठा लिये और उनको अपनी जेब में रख लिया।

जब वे सड़क छोड़ कर जंगल में घुसे तो अपने पिता की बात को ध्यान में रखते हुए चिक ने हर कदम पर एक एक पत्थर नीचे डालना शुरू कर दिया ताकि उसको घर वापस आने का रास्ता याद रह सके कि वे लोग किस रास्ते से जंगल आये थे।

जब वे बीच जंगल में पहुँच गये तो उनके पिता ने बच्चों से कहा कि वे वहीं खेलें और वह अभी आता है। पर वहाँ से जाने के बाद वह जंगल नहीं लौटा।

रात हो आयी। जब बच्चों ने अपने पिता को नहीं देखा तो वे रोने और चिल्लाने लगे।

चिक ने उनको ढाँढस बँधाया — “तुम लोग रोते क्यों हो? मैं तुम लोगों को घर ले जाऊँगा तुम बिल्कुल चिन्ता मत करो।”

“अच्छा अच्छा। पर अब हम क्या करें?”

वह बोला — “अभी तुम लोग ऐसा करो कि तुम लोग मेरे साथ चलो। मैं तुमको घर ले चलता हूँ।” ऐसा कह कर उसने अपने गिराये हुए पत्थरों को ढूँढा और उनके पीछे पीछे चलते हुए वे सब अपने घर आ गये।

उनकी माँ उनको देख कर बहुत खुश हुई पर आश्चर्य से बोली — “पर तुम लोग घर वापस आये कैसे?”

सब बड़े बच्चों ने कहा — “चिक ने हम सबको रास्ता दिखाया माँ और हम घर आ गये।”

वे बच्चे कुछ दिनों के लिये घर में रहे पर जल्दी ही फिर उनके पिता ने उनको जंगल में छोड़ने का विचार किया क्योंकि अकाल के खत्म होने के तो अभी कुछ आसार ही नजर नहीं आ रहे थे।

उनकी माँ ने सात रोटियाँ खरीदने के लिये घर की हर चीज़ बेच दी थी। अगले दिन उनकी माँ ने उन सब बच्चों को एक एक रोटी दी और उनके पिता के साथ जंगल भेज दिया।

सब बच्चों ने तो अपनी रोटी खा ली पर चिक ने नहीं खायी। उसने उसके छोटे छोटे टुकड़े किये और अपनी जेब में रख लिये।

इस बार उनका पिता चिक के पीछे पीछे चल रहा था। वह यह देखता चल रहा था कि अब की बार तो चिक कहीं सफेद पत्थर नहीं फेंक रहा।

पर अब की बार चिक ने पत्थर तो नहीं फेंके अब की बार उसने अपनी जेब में अपनी रोटी के जो टुकड़े करके रख लिये थे जब वह जंगल में घुसे तो वह कदम कदम पर उनको फेंकता जा रहा था।

जब वे सब जंगल में पहुँचे तो फिर पिछली बार की तरह से इस बार भी उनका पिता उन सबको जंगल में अकेला छोड़ कर चला गया और फिर वापस नहीं आया।

अ‍ँधेरा होने पर भी जब पिता नहीं आया तो सारे बच्चे रोने और चिल्लाने लगे। पर चिक ने एक बार फिर उन सबको ढाँढस बँधाया और कहा कि वह उनको उस दिन की तरह से फिर घर वापस ले जायेगा।

कह कर उसने अपनी फेंकी हुई रोटी के टुकड़ों को ढूँढना शुरू किया तो वे तो उसको कहीं दिखायी ही नहीं दिये। लगता था कि उनको या तो चिड़ियाँ खा गयी थीं या फिर चींटियाँ ले गयी थीं।

और चिक घर का रास्ता न ढूँढ सका। उसके भाई फिर रो पड़े। अचानक वह बोला — “ज़रा ठहरो।” कह कर वह एक गिलहरी की तरह एक ऊँचे पेड़ की सबसे ऊँची वाली टहनी पर चढ़ गया और चारों तरफ देखने लगा।

कहीं दूर उसको एक छोटी सी रोशनी दिखायी दी। उसको देख कर वह बोला — “हमको इस दिशा में जाना चाहिये लगता है वहाँ कोई रहता है।”


सो वे सब उसी दिशा में चल दिये। काफी देर तक चलने के बाद वे एक घर के सामने आ गये। वहाँ आ कर उन्होंने उस घर का दरवाजा खटखटाया। एक जादूगरनी ने दरवाजा खोला। उसके बाल बहुत लम्बे थे। दाँत बहुत टेढ़े थे और ऑखें लालटेन की तरह जल रही थीं। इस सबसे वह अपने असली रूप से कुछ ज़रा ज़्यादा ही जादूगरनी लग रही थी।

उन बच्चों को देखते ही वह बोली — “अरे मेरे बच्चों इतनी रात में तुम कहाँ मारे मारे फिर रहे हो?”

चिक बोला — “मैम, हम लोग जंगल में रास्ता भूल गये हैं। हमने आपके घर में रोशनी जलती देखी तो इधर आ गये।”

वह जादूगरनी बोली — “यह तो तुमने बहुत ही अच्छा किया कि तुम यहाँ आ गये पर मेरे बच्चो, तुमको मुझे कहीं छिपाना पड़ेगा क्योंकि यहाँ एक पापा जादूगर रहता है जैसे ही वह पापा जादूगर यहाँ आयेगा वह तुमको एक ही कौर में खा जायेगा। पर तुम चिन्ता न करो मैंने उसके लिये एक भेड़ भून कर रखी है।

अगर तुम बिल्कुल आवाज न करो तो मैं तुमको अपने बच्चों के साथ उनके बिस्तर में लिटा दूँगी फिर तुम लोग सुरक्षित रहोगे। मेरे अपने भी सात बच्चे हैं।”

बच्चे राजी हो गये।

कुछ देर में ही पापा जादूगर घर आया तो वह चारों तरफ सूँघ कर बोला — “हूँ, मुझे तो आज आदमी के माँस की खुशबू आ रही है।”

उसकी पत्नी बोली — “तुम जब भी घर आते हो यही कहते हो। आओ बैठो, देखो मैंने तुम्हारे लिये कितना स्वादिष्ट भेड़ का माँस भून कर रखा है।

तुम अपना काम देखो और उन बेचारों को छोड़ दो। वे सात छोटे छोटे भाई बेचारे जंगल में रास्ता भूल कर यहाँ आ गये हैं।

हमारे भी तो सात बच्चे हैं। हम भी तो अपने बच्चों को किसी तरह दुखी नहीं देख सकते इसी लिये मैंने उनको भी अन्दर बुला लिया क्योंकि वे बहुत दुखी थे।”

पापा जादूगर ने कहा — “ठीक है तुम मुझे भेड़ का माँस ही दे दो। मैं बहुत थक गया हूँ और जल्दी सोने जाना चाहता हूँ।”

जब पापा जादूगर के बच्चे सोने के लिये जाते थे तो वे अपने सिरों पर फूलों के मुकुट पहन कर जाते थे। वे एक बड़े बिस्तर पर सोते थे। उन्हीं के पैरों की तरफ जादूगरनी ने चिक और उसके भाइयों को सुला दिया था।

जैसे ही जादूगरनी कमरे से बाहर गयी चिक ने सोचा कि जादूगरनी के बच्चों ने फूलों के मुकुट क्यों पहन रखे हैं। इसके पीछे कोई राज़ तो जरूर था।

उसने पापा जादूगर के सातों बच्चों के फूलों के मुकुट उतार कर अपने और अपने भाइयों के सिर पर रख दिये।

जैसे ही उसने यह काम खत्म किया कि उसने देखा कि पापा जादूगर दबे पाँव उस कमरे में चला आ रहा था। कमरे में क्योंकि अँधेरा था इसलिये उसने आ कर बच्चों को हाथ से छू छू कर देखना शुरू किया।

पहले उसने अपने बच्चों को छुआ। कुछ महसूस किया और फिर उसने चिक और उसके भाइयों को सिर पर छुआ। तो वहाँ उसने उनके सिर पर फूलों का मुकुट पाया तो उसने उनको छोड़ दिया।

उसने फिर से अपने बच्चों को छुआ तो उनके सिर पर फूलों का मुकुट नहीं पाया सो वह उनको एक एक करके खा गया।

यह सब देख कर चिक तो पत्ते की तरह काँप गया। पापा जादूगर ने जब अपना आखिरी बेटा खा लिया तो उसको खा कर अपने होठ चाटे और बोला — “अब तो मैंने सब बच्चों को खा लिया है। अब मेरी पत्नी जो चाहे कह सकती है।” और यह कह कर वह वहाँ से चला गया।

चिक ने अपने भाइयों को तुरन्त उठाया और बोला —“हमको यहाँ से बाहर निकलना है तुरन्त।”

वे सब तुरन्त ही उठ गये। उठ कर उन्होंने खिड़की खोली और सब बच्चे उसमें से बाहर कूद गये। जंगल में भागते भागते वे एक गुफा के पास आ गये थे। वे सब भागते भागते थक गये थे सो वे वहीं उस गुफा में छिप गये।

अगली सुबह जब जादूगरनी उठी तो उसको न तो अपने बच्चे दिखायी दिये और न ही आये हुए सातों भाई दिखायी दिये। पर बिस्तर पर पड़े हुए निशानों से वह जान गयी कि क्या हुआ होगा।

वह अपने बाल खींचती हुई और रोती हुई जादूगर की तरफ भागी — “ओ कातिल, ओ राक्षस, ज़रा आ कर तो देखो तुमने क्या किया?”

जब जादूगर की पत्नी ने जादूगर को यह बताया कि उसने क्या किया तो यह सुन कर तो जादूगर चौंक कर दौड़ा — “क्या? क्या हमारे बच्चे फूलों के मुकुट नहीं पहने हुए थे? ऐसा कैसे हुआ?

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तुम जल्दी से मेरे वे जादू वाले जूते दो जो 100 मील घंटे की रफ्तार से भागते हैं। मैं उन बदमाशों को जा कर अभी पकड़ता हूँ। मैं उनको कच्चा ही चबा जाऊँगा।”

कह कर उसने अपने वे तेज़ भागने वाले जूते पहने और उन बच्चों को ढूँढने के लिये चल दिया।

उसने सारी धरती छान मारी पर उसको बच्चे नहीं मिले क्योंकि वे तो गुफा में छिपे हुए थे। ढूँढते ढूँढते आखिर वह थक कर जमीन पर बैठ गया। इत्तफाक से वह उसी गुफा के पास आ बैठा था जहाँ बच्चे छिपे हुए थे।

चिक ने जो हमेशा खाना ढूँढने में लगा रहता था उसको वहीं लेटे हुए देख लिया तो अपने भाइयों को बुलाया और उनसे कहा — “देखो यह राक्षस यहाँ लेटा हुआ है जल्दी से तुम सब लोग मिल कर इसको मार दो।”

सो सबने अपनी अपनी रोटी काटने वाले चाकू निकाले और उससे उसको मारना शुरू कर दिया और तब तक मारते रहे जब तक कि उसका सारा शरीर छलनी नहीं हो गया।

जब उनको यह यकीन हो गया कि वह मर गया है तो उन्होंने उसके जूते निकाल लिये और वे सब उन जूतों में चढ़ गये। जूते जादू के थे सो सब बच्चे उनके अन्दर आ गये। वे जूते उन सबको ले कर भाग चले।

तुरन्त ही वे सातों भाई जादूगरनी के पास पहुँचे और उससे कहा — “पापा जादूगर डाकुओं के चंगुल में फँस गये हैं। उन्होंने हमसे कहलवाया है कि अगर आपने उन डाकुओं को पापा जादूगर का सारा पैसा नहीं दिया तो वे पापा जादूगर को मार देंगे।

आपको इसका विश्वास आ जाये इसी लिये उन्होंने हमको अपने ये जूते दे दिये हैं।”

जादूगरनी ने अपने बच्चे तो पहले ही खो दिये थे अब वह अपना पति को खोना नहीं चाहती थी सो यह सुन कर उसने तुरन्त ही उस जादूगर का सारा पैसा, हीरे, सोना उन बच्चों को दे दिया और बोली — “यह लो बेटा उसका सारा पैसा और जा कर उसको छुड़ा लो।”

बच्चों ने वह सारा पैसा उठाया और वे जूते पहन कर एक कदम में ही अपने घर पहुँच गये। इस पैसे को पा कर वे अब बहुत अमीर हो गये थे।

चिक उन जादू वाले जूतों को पहन कर नैपिल्स[2] गया और सामान लाने ले जाने वाला बन गया क्योंकि उन दिनों रेलगाड़ियाँ और स्टीम बोट नहीं हुआ करती थीं।

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इस तरह से उस छोटे से कुबड़े बेटे ने अपनी अक्लमन्दी और अपनी हिम्मत से अपने सारे परिवार को अमीर बना दिया।


[1] Chick (Story No 130) – a folktale from Italy from its Terra d’Otranto area.

Adapted from the book : “Italian Folktales”, by Italo Calvino”. Translated by George Martin in 1980.

[2] Naples is a seashore town and port of Italy on its South-West coast.

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः  - रैवन की लोक कथाएँ,  इथियोपिया इटली की  ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

(क्रमशः अगले अंकों में जारी….)

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रचनाकार: देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–6 : 2 चिक // सुषमा गुप्ता
देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–6 : 2 चिक // सुषमा गुप्ता
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https://www.rachanakar.org/2017/11/6-italy-ki-lokkatha-chick.html
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