देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–6 : 9 साँप बादशाह[// सुषमा गुप्ता

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9 साँप बादशाह [1] एक बार एक राजा और रानी थे जिनके कोई बच्चा नहीं था। रानी एक बच्चे के लिये रोज प्रार्थना करती, बहुत सारे उपवास रखती पर उसको ...

9 साँप बादशाह[1]

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एक बार एक राजा और रानी थे जिनके कोई बच्चा नहीं था। रानी एक बच्चे के लिये रोज प्रार्थना करती, बहुत सारे उपवास रखती पर उसको कोई बच्चा नहीं हुआ।

एक दिन वह एक खेत में घूम रही थी। वहाँ उसने कई किस्म के बहुत सारे जानवर देखे – छिपकलियाँ, चिड़ियें, साँप। सब अपने अपने बच्चों के साथ घूम रहे थे।

वह सोच रही थी — “देखो ये सारे जानवर अपने अपने बच्चों के साथ घूम रहे हैं और मेरे कोई बच्चा नहीं है।”

तभी एक साँप अपने बच्चों के साथ उसके पास से गुजरा तो रानी के मुँह से निकला — “काश मेरे एक साँप का बच्चा ही हो जाये तो मैं तो एक साँप के बच्चे से ही सन्तुष्ट हो जाऊँगी।”

अब कुछ ऐसा हुआ कि उसके ऐसा बोलते ही उसको बच्चे की आशा हो गयी। सारे राज्य के लोग बहुत खुश हुए। पर जब बच्चे के पैदा होने का दिन आया तो रानी ने एक साँप को ही जन्म दिया।

यह देख कर सबकी बोलती बन्द हो गयी। पर रानी को अपनी कही बात याद आ गयी। यह सोचते हुए कि उसकी प्रार्थना का उसको जवाब मिल गया वह अपने साँप बच्चे को बहुत प्यार करने लगी और उसको पा कर इतनी खुश हुई जैसे कि वह उसका बेटा ही हो।

उसने उसको एक लोहे के पिंजरे में रख दिया और उसको वही खिलाया जो साँप खाते थे – सूप और माँस, दोपहर को और शाम को। वह साँप खाता भी खूब था – दो के बराबर और दिन ब दिन बड़ा हो रहा था।

जब वह साँप बहुत बड़ा हो गया तो एक दिन जब उसकी नौकरानी उसके लिये उसका बिस्तर ठीक करने आयी तो उसने उससे कहा — “मेरे प्यारे पिता से कहना कि अब मुझे एक ऐसी पत्नी की जरूरत है जो सुन्दर हो और अमीर हो।”

यह सुन कर वह नौकरानी तो बहुत डर गयी और अब वह उसके पिंजरे के पास भी नहीं जाना चाहती थी।

पर रानी ने जब उसको साँप राजकुमार के लिये खाना ले जाने के लिये कहा तो वह बेचारी डरती डरती उसके लिये खाना ले कर आयी तो साँप ने अपनी बात फिर दोहरायी — “मेरे प्यारे पिता से कहना कि अब मुझे एक ऐसी पत्नी की जरूरत है जो सुन्दर हो और अमीर हो।”

नौकरानी ने जा कर यह सब रानी से कहा तो रानी बोली — “अब हम क्या करें?”

उसने अपने एक किसान को बुलवाया और उससे कहा — “तुम जो कहोगे मैं तुमको वही दूँगी अगर तुम अपनी बेटी मुझे ला दो तो। मैं उसकी शादी अपने बेटे से करना चाहती हूँ।”

वह किसान रानी को मना तो नहीं कर सकता था सो वह बेचारा राजी हो गया और अपनी बेटी को रानी के पास ले आया। साँप और उस किसान की बेटी की शादी धूमधाम से हो गयी। साँप दावत की मेज पर भी बैठा। शाम को दोनों अपने कमरे में सोने चले गये।

रात को साँप ने अपनी पत्नी को जगाया और उससे पूछा — “क्या समय है?”

उस समय सुबह के 4 बजे थे। पत्नी ने जवाब दिया — “यह वही समय है जब मेरे पिता सुबह उठते हैं, अपना हल उठाते हैं और खेतों को जाते हैं।”

साँप बोला — “तो तुम किसान की बेटी हो।” कह कर उसने उसके गले पर काट लिया और उसको मार दिया।

अगली सुबह जब नौकरानी सुबह का नाश्ता ले कर आयी तो उसने देखा कि बहू तो मरी पड़ी है।

वह साँप फिर बोला — “मेरे प्यारे पिता से कहना कि अब मुझे एक ऐसी पत्नी की जरूरत है जो सुन्दर हो और अमीर हो। हाँ ध्यान रखना कि वह सुन्दर भी हो और अमीर भी।”

अब की बार रानी ने एक चमार को बुलाया जो वहीं सड़क के उस पार रहता था। उसकी भी एक बेटी थी। रानी ने उससे भी वही कहा जो उसने किसान से कहा था — “तुम जो कहोगे मैं तुमको वही दूँगी अगर तुम अपनी बेटी मुझे ला दो तो। मैं उसकी शादी अपने बेटे से करना चाहती हूँ।”

चमार जब राजी हो गया तो साँप राजकुमार की शादी उसकी बेटी के साथ धूमधाम से की गयी। रात को साँप ने अपनी पत्नी को जगाया और उससे पूछा कि उस समय क्या समय था।

उसकी पत्नी बोली — “यह वही समय है जब मेरे पिता सुबह उठते हैं और अपनी काम की जगह जा कर हथौड़ी मारते हैं।”

साँप बोला — “तो तुम चमार की बेटी हो।” कह कर उसने उसके गले पर भी काट लिया और वह भी मर गयी।

अगली बार रानी ने एक बादशाह की लड़की से उसकी शादी करने के लिये कहा। वह बादशाह अपनी बेटी की शादी एक साँप से नहीं करना चाहता था सो उसने इस बारे में अपनी पत्नी से भी सलाह की।

इत्तफाक से उसकी पत्नी उस लड़की की सौतेली माँ थी जो उससे छुटकारा पाना चाहती थी सो उसने बादशाह को कह सुन कर उस लड़की की शादी उस साँप राजकुमार से करने के लिये राजी कर लिया।

वह लड़की बेचारी और तो कुछ कर नहीं सकी सो वह अपनी माँ की कब्र पर गयी और रो कर उससे पूछा — “मैं क्या करूँ माँ? मेरी सौतेली माँ मेरी शादी एक साँप से कर रही है।”

उसकी माँ ने कब्र में से जवाब दिया — “तुम उस साँप राजकुमार से शादी कर लो मेरी बेटी। पर अपनी शादी के दिन तुम एक के ऊपर एक सात पोशाक पहनना।

जब तुम सोने जाओ तो कह देना कि तुमको कोई नौकरानी नहीं चाहिये अपने कपड़े तुम खुद ही उतार लोगी।

जब तुम उस साँप के साथ अकेली रह जाओ तो उस साँप राजकुमार से कहना कि एक पोशाक तुम अपनी उतारोगी और एक खाल वह अपनी उतारेगा।

फिर पहले तुम अपनी पहली पोशाक उतारना और फिर वह अपनी पहली खाल उतारेगा। तुम फिर वही कहना कि एक पोशाक मैं अपनी उतारती हूँ और एक खाल तुम अपनी उतारो। इस तरह से एक एक करके तुम दोनों अपने अपने कपड़े उतारते रहना।”

माँ के कहने पर उस लड़की ने उस साँप राजकुमार से शादी कर ली और उसने वैसा ही किया जैसा कि उसकी माँ ने उससे करने के लिये कहा था। वह हर बार जब अपनी एक पोशाक उतारती थी तब साँप भी अपनी एक खाल उतारता था।

जैसे ही उस साँप राजकुमार ने अपनी सातवीं खाल उतारी तो वहाँ तो दुनियाँ का सबसे सुन्दर राजकुमार खड़ा था। उस राजकुमारी ने भी अपनी सातवीं पोशाक उतारी और फिर वे सोने चले गये।

सुबह के 2 बजे दुलहे ने पूछा — “इस समय क्या बजा है?”

पत्नी बोली — “यह तो वह समय है जब मेरे पिता थियेटर से वापस घर लौटते हैं।”

कुछ देर बाद उसने फिर पूछा — “इस समय क्या बजा है?”

पत्नी बोली — “यह वह समय है जब मेरे पिता रात का खाना खाते हैं।”

जब दिन निकल आया तो उसने एक बार फिर पूछा — “इस समय क्या बजा है?”

पत्नी बोली — “यह वह समय है जब मेरे पिता को कौफ़ी चाहिये।”

यह सुन कर उस छोटे साँप राजा ने उसको चूम लिया और बोला — “तुम मेरी सच्ची पत्नी हो। पर तुम यह बात किसी और को मत बताना कि मैं रात को आदमी बन जाता हूँ। और अगर तुमने ऐसा किया तो तुम मुझको खो दोगी।”

और उसके बाद वह फिर साँप में बदल गया।

एक रात साँप ने अपनी पत्नी से कहा — “अगर तुम यह चाहती हो कि मैं दिन में भी आदमी के रूप में रहूँ तो तुम वही करो जो मैं कहता हूँ।”

पत्नी बोली — “यकीनन मैं वही करूँगी जो तुम कहोगे।”

साँप बोला — “दरबार में रोज रात को नाच गाना होता है। तुम वहाँ जाओ। हर एक तुमको वहाँ नाच के लिये बुलायेगा पर तुम किसी के साथ नहीं नाचोगी।


जब तुम एक नाइट[2] को देखो जो लाल कपड़े पहने हो तब तुम अपनी जगह से उठना और केवल उसी के साथ नाचना। वह नाइट मैं होऊँगा।”

समय हुआ और दरबार में सब नाचने के लिये इकठ्ठा होने लगे। राजकुमारी भी उस कमरे में आयी और आ कर एक जगह बैठ गयी।

उसको देख कर तुरन्त ही कई राजकुमार और कुलीन लोगों ने उसको नाच के लिये बुलाया तो उसने जवाब दिया कि वह वहीं ठीक थी और वहीं से केवल नाच देख कर ही खुश थी सो वह वहाँ से नहीं उठी और उनमें से किसी के साथ नहीं नाची।

राजा और रानी को उसका यह बरताव कुछ अच्छा नहीं लगा पर उन्होंने यह सोच लिया कि शायद वह अपने पति की इज़्ज़त की वजह से उनके साथ नाचना पसन्द नहीं कर रही थी।

अब क्योंकि उसका पति नाच में आ नहीं सकता था इसलिये उन्होंने उसको कुछ नहीं कहा।

अचानक एक नाइट लाल पोशाक में उस कमरे में घुसा। उसी समय वह राजकुमारी अपनी जगह से उठी और उसने उसके साथ नाचना शुरू कर दिया और वह सारी शाम उसी के साथ नाचती रही।

नाच खत्म हो गया और राजा और रानी जब अपनी बहू के साथ अकले रह गये तो उन्होंने उसके बाल पकड़े और बोले — “इसका क्या मतलब होता है कि तुमने हर एक को तो नाचने के लिये मना कर दिया और उस अजनबी के साथ सारी शाम नाचती रहीं। यह तो हमारा बहुत बड़ा अपमान था। हम लोगों का इतना बड़ा अपमान करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?”

पर वह लड़की कुछ नहीं बोली। यह सब कह सुन कर वे वहाँ से चले गये।

उनके जाने के बाद राजकुमारी ने अपने साँप पति को बताया कि किस तरह से उसके माता पिता ने उसका अपमान किया था।

साँप बोला — “तुम उनकी बातों पर ध्यान मत दो। तुमको यह सब तीन रात तक लगातार सहना पड़ेगा। और तीसरी रात के आखीर में मैं हमेशा के लिये आदमी बन जाऊँगा।

कल रात मैं काले कपड़े पहन कर आऊँगा। और तुम बस मेरे ही साथ नाचना। अगर वे तुमको इस बात के लिये मारें भी तो मेहरबानी करके उसे मेरे लिये सह लेना।”

अगली शाम राजकुमारी ने फिर से सबको नाच के लिये मना कर दिया पर जब एक नाइट काले रंग की पोशाक पहन कर आया तो वह उसके साथ सारी शाम नाचती रही।

उस दिन राजा और रानी ने उससे कहा — “क्या तुम हर रात इसी तरह से हमारा अपमान करती रहोगी? तो या तो जो हम कहते हैं वह करो वरना . . .” यह कह कर उन्होंने एक डंडी उठायी और उन्होंने उसको उस डंडी से बहुत मारा।

उस रात उसका सारा शरीर बहुत दर्द कर रहा था। उसने रोते हुए अपने पति को सब कुछ बताया तो उसका पति बोला — “प्रिये बस एक शाम और। कल मैं साधु के वेश में आऊँगा।”

अगली तीसरी और आखिरी रात भी फिर उसने सब लोगों को नाच के लिये मना कर दिया पर जब वह साधु आया तो उसके साथ वह फिर सारी शाम नाचती रही।

जैसे ही शाम का नाच खत्म हुआ तो वहीं उसी समय सबके सामने राजा और रानी ने एक डंडी उठायी और राजकुमारी और उस साधु को उससे मारना शुरू कर दिया।

साधु ने उस मार से बचने की बहुत कोशिश की पर जब वह नहीं बच पाया सो वह एक बहुत बड़ी चिड़िया बन गया और खिड़की के शीशे तोड़ कर बाहर उड़ गया।

राजकुमारी चिल्लायी — “अब देखो ज़रा कि आप लोगों ने क्या किया है। क्या आपको मालूम है वह आपका बेटा था।”

जब उन्होंने यह सुना कि यह सब उनके बेटे के ऊपर से जादू उतारने के लिये किया जा रहा था जिससे कि वह हमेशा के लिये आदमी के रूप में आ जाता तो वे दोनों बेचारे बहुत परेशान हुए पर अब वे कर ही क्या सकते थे।

उन्होंने अपनी बहू को गले से लगा लिया और उससे बहुत माफी माँगी। पर राजकुमारी ने जवाब दिया — “अब हमारे पास समय नहीं है। मुझे उनके पीछे पीछे जाना है।”

उसने तुरन्त ही पैसों के दो थैले उठाये और उसी दिशा में चल दी जिधर वह चिड़िया उड़ कर गयी थी। बीच में वह एक दूकान वाले से मिली जो अपनी दूकान के टूटे शीशे पर रो रहा था।

उसने उससे पूछा — “जनाब, क्या बात है आप क्यों रो रहे हैं?”

वह बोला — “एक चिड़िया अभी अभी यहाँ से उड़ कर गयी है जिसने मेरी यह सारी दूकान तोड़ दी है।”

राजकुमारी ने पूछा — “और इस शीशे की क्या कीमत होगी क्योंकि वह चिड़िया मेरी थी?”

“मेरे मालिक ने मुझे बताया कि उसकी कीमत 50 क्राउन[3] के करीब होगी।”

राजकुमारी ने पैसों का एक थैला खोला उसमें से 50 क्राउन निकाल कर उस दूकान वाले को दिये और उससे पूछा कि वह चिड़िया किधर की तरफ गयी थी।

दूकान वाले ने एक तरफ इशारा करते हुए कहा — “उस तरफ, बिल्कुल सीधी।”

राजकुमारी उधर ही चल दी। कुछ दूर चलने के बाद वह एक सुनार की दूकान पर आयी। उस दूकान का मालिक तो वहाँ था नहीं पर उसके नौकर चाकर उस दूकान पर थे और रो रहे थे।

उसने उनमें से एक नौकर से पूछा — “ओ नौजवान, क्या बात है आप लोग क्यों रो रहे हैं?”

वह बोला — “एक चिड़िया अभी अभी यहाँ से उड़ कर गयी है जिसने हमारी यह सारी दूकान तोड़ दी है। अब हमारा मालिक यहाँ आयेगा तो हमको तो वह पीट पीट कर मार ही देगा।”

“इन सब सोने की चीज़ों की क्या कीमत होगी?”

“मुझे मर जाने दो। मुझे कुछ नहीं मालूम। मैं इस समय कुछ और सोच ही नहीं सकता कि अब मेरा मालिक मेरा क्या हाल करेगा।”

“नहीं नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। मैं इसका हरजाना जरूर भरूँगी क्योंकि वह चिड़िया मेरी थी।”

उस नौजवान ने एक लम्बी लिस्ट बनायी और सबको जोड़ कर उसको बताया कि उसका वह सब सामान 6000 क्राउन का रहा होगा।

राजकुमारी ने उसको वे पैसे दिये और उससे भी पूछा कि वह चिड़िया किधर गयी थी। उसने भी एक तरफ को इशारा करके कहा कि वह चिड़िया उधर सीधी चली गयी थी।

राजकुमारी उसी दिशा में चल दी। उस नौजवान ने उन 6000 क्राउन में से 3000 अपने मालिक को दिये और 3000 अपने पास रख लिये। इस पैसे से उसने अपनी एक नयी दूकान खोल ली।

कुछ दूर चलने के बाद राजकुमारी एक पेड़ के पास आयी जिस पर बहुत सारी चिड़ियें बैठी हुई थीं और सब की सब चिड़ियें बहुत ज़ोर ज़ोर से शोर मचा रही थी। उन्हीं चिड़ियों में उसको अपना पति दिखायी दे गया।

वह बोली — “प्रिय, मेरे साथ घर चलो।”

पर वह चिड़िया तो हिली भी नहीं। राजकुमारी बेचारी पेड़ पर चढ़ गयी और रो रो कर उससे प्रार्थना करने लगी कि वह घर वापस चले।

उसका रोना और प्रार्थना तो ऐसी थी कि पत्थर भी पिघल जाये। वहाँ और चिड़ियें भी जो बैठी हुई थीं वे भी उसका रोना सुन कर बहुत परेशान हो रहीं थीं।

वे उस चिड़िया से बोलीं — “जाओ न, तुम अपनी पत्नी के साथ घर जाओ। तुम उसके साथ घर क्यों नहीं जाना चाहते?”

पर इस सबका जवाब उस चिड़िया ने ऐसे दिया कि उसने अपनी चोंच से उस राजकुमारी की एक ऑख निकाल ली। पर उसकी पत्नी फिर भी उससे घर चलने की प्रार्थना करती रही और अपनी दूसरी ऑख से रोती रही।

अब उस चिड़िया ने उसकी दूसरी ऑख भी निकाल ली। राजकुमारी रो कर बोली — “अब तो मैं अन्धी हो गयी हूँ। मेहरबानी करके प्रिय मुझे रास्ता दिखाओ।”

इसके बाद वह चिड़िया दो बार नीचे आयी और उसके दोनों हाथ काट कर अपने माता पिता के महल की छत पर उड़ कर चली गयी। वहाँ जा कर वह एक आदमी के रूप में बदल गयी। सारे महल में खुशियाँ छा गयीं।

उसकी माँ ने उसके कान में फुसफुसाया — “तुमने अच्छा किया जो उस बुरी लड़की को मार दिया।”

इस बीच वह राजकुमारी किसी तरह से रास्ता ढूँढती ढूँढती यह कहते हुए घर चल दी — “अब मेरा क्या होगा। मेरे अब न तो ऑखें हैं और न ही हाथ हैं।”

रास्ते में एक छोटी सी बुढ़िया जा रही थी। उसने उससे पूछ लिया — “क्या बात है बेटी तुम ऐसे क्यों रो रही हो?” राजकुमारी ने उसको अपनी कहानी सुना दी।

वह बुढ़िया मडोना[4] थी। वह बोली — “बेटी अपने हाथ इस फव्वारे के पानी में डालो।” उसने ऐसा ही किया तो उसके हाथ फिर से बढ़ कर पहले की तरह हो गये।

बुढ़िया ने कहा — “अब इस पानी से अपना चेहरा धो लो।” उसने उस फव्वारे के पानी से अपना चेहरा धोया तो उसकी ऑखें भी वापस आ गयीं।

फिर उस बुढ़िया ने उसको एक जादुई छड़ी देते हुए कहा — “लो यह छड़ी ले लो। यह तुमको वह सब कुछ देगी जो भी तुम इससे माँगोगी।”

राजकुमारी ने तुरन्त ही उस छड़ी से अपने ससुर के महल के सामने एक महल चाहा तो तुरन्त ही वहाँ एक बहुत ही सुन्दर महल खड़ा हो गया। उस महल में अन्दर और बाहर सब जगह हीरे जड़े हुए थे।

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उसके कमरों में एक सुनहरी मुर्गी भी अपने बच्चों के साथ घूम रही थी। और उन कमरों की ऊँची छतों के आस पास बहुत सारी सुनहरी चिड़ियें उड़ रही थीं।

वहाँ सुनहरी पोशाक पहने कई नौकर चाकर और चौकीदार घूम रहे थे। और वह खुद एक सिंहासन पर बैठी हुई थी जिसके ऊपर एक छत्र लगा हुआ था और उसके चारों तरफ मलमल के परदे पड़े हुए थे। इस तरह वह किसी को भी दिखायी नहीं दे रही थी।

X X X X X X X

जब सुबह हुई तो राजकुमार ने अपने महल के सामने एक और महल देखा। वह उसको बहुत सुन्दर लगा तो वह राजा से बोला — “पिता जी देखिये कितना सुन्दर महल है।”

वह किसी भी तरफ देखता तो उसको उधर ही सुनहरे जानवर घूमते और उड़ते हुए दिखायी देते। उसने सोचा कि ऐसे कौन से यहाँ बड़े आदमी आ गये जिन्होंने रातों रात यह महल बनवा लिया।

उसी समय राजकुमारी खड़ी हुई और उसने परदे में से अपना सिर बाहर निकाला तो राजकुमार तो उसको देखता का देखता ही रह गया।

उसको देखते ही वह बोला — “पिता जी देखिये वह कितनी सुन्दर लड़की है। मुझे उससे शादी करनी है।”

राजा बोला — “हाँ हाँ जाओ। कहने की जरूरत नहीं है कि वह कौन है। तुम क्या सोचते हो कि वह तुम्हारी तरफ देखेगी भी? तुम तो उसकी तरफ देख कर ही अपना समय बरबाद कर रहे हो।”

लेकिन राजकुमार ने तो अपना मन बना रखा था सो उसने अपनी एक नौकरानी के हाथों सुनहरी कढ़ाई किया हुआ एक कपड़ा उसको भेज दिया। उस राजकुमारी ने उस कपड़े को लिया और उसको अपनी मुर्गी और उसके बच्चों की तरफ उछाल दिया।

नौकरानी घर वापस गयी और राजकुमार को सब बताया। तो राजा और रानी ने उससे कहा — “देखा न हमने तुमसे क्या कहा था। वह तो तुमको बिल्कुल भी पसन्द नहीं करती।”

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राजकुमार बोला — “पर मैं तो उसको पसन्द करता हूँ।” और अब की बार उसने उसके लिये एक अ‍ँगूठी भेजी। वह अ‍ँगूठी उस राजकुमारी ने अपनी चिड़ियों की तरफ फेंक दी।

जो नौकरानी इन चीज़ों को ले कर उस महल में गयी थी इन चीज़ों की यह हालत देख कर दोबारा वहाँ जाने में हिचकिचा रही थी।

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पर राजकुमार ने भी उम्मीद नहीं छोड़ी थी। बहुत सोचने के बाद उसने एक ताबूत[5] बनवाया। वह उसमें अन्दर लेट गया और अपने नौकरों से कहा कि वह उस ताबूत को उसके पड़ोसी के महल में ले जायें।

वे उस ताबूत को वहाँ ले कर गये। वहाँ जा कर राजकुमारी ने उस ताबूत को खोला तो उसमें राजकुमार को देखा। वह उसके पास आयी और उसको और पास से देखने के लिये उसके ऊपर झुकी।

राजकुमार भी उठा और राजकुमारी की तरफ देखा तो उसने राजकुमारी को पहचान लिया और खुशी से बोला — “अरे तुम तो मेरी पत्नी हो। तुमको यहाँ देख कर मुझे कितनी खुशी हो रही है। चलो घर वापस चलो।”

राजकुमारी ने उसको बड़ी कड़ी निगाहों से देखा और बोली — “क्या तुम भूल गये कि तुमने मेरे साथ क्या क्या किया?”

“प्रिये उस समय मैं जादू के असर में था।”

“पर तुमको उस जादू के असर से निकालने के लिये ही तो मैं तुम्हारे साथ तीन शाम नाची और तुम्हारे माता पिता ने मुझे मारा।”

“अगर तुमने ऐसा न किया होता तो मैं तो फिर एक साँप ही रह जाता।”

“और जब तुम चिड़िया बन गये तब भी क्या तुम साँप ही थे? तब तुमने अपनी चोंच से मेरी दोनों ऑखें निकाल लीं और मेरे हाथ घायल कर दिये।”

“अगर मैं यह सब न करता तो फिर मैं एक चिड़िया ही रह जाता।”

अब राजकुमारी ने कुछ सोचा और बोली — “इस तरह तो तुम ठीक थे। चलो हम अब पति पत्नी की तरह से रहते हैं।”

जब राजा और रानी ने पूरी कहानी सुनी तो उन्होंने राजकुमारी से माफी माँगी। उन्होंने उस राजकुमारी के पिता को भी बुला लिया और फिर एक महीने तक नाच गाना चलता रहा।

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[1] Serpent King (Story No 144) – a folktale from Italy from its Calabria area.

Adapted from the book : “Italian Folktales”, by Italo Calvino”. Translated by George Martin in 1980.

[2] Knight – a certain status in the European kingdoms

[3] Crown was the currency there.

[4] Madonna is another name of Mother Mary. Both Christians and Muslims regard her.

[5] Coffin in which Christians and Muslims keep their dead bodies to bury after death. See its picture above

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः  - रैवन की लोक कथाएँ,  इथियोपिया इटली की  ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

(क्रमशः अगले अंकों में जारी….)

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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–6 : 9 साँप बादशाह[// सुषमा गुप्ता
देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–6 : 9 साँप बादशाह[// सुषमा गुप्ता
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रचनाकार
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