7 तीन चिकोरी इकट्ठा करने वाले [1] एक बार एक बहुत ही गरीब स्त्री थी जिसके तीन बेटियाँ थीं। जब चिकोरी [2] का मौसम आता था तो वे तीनों लड़कियाँ ...
7 तीन चिकोरी इकट्ठा करने वाले[1]
एक बार एक बहुत ही गरीब स्त्री थी जिसके तीन बेटियाँ थीं। जब चिकोरी[2] का मौसम आता था तो वे तीनों लड़कियाँ अपनी माँ के साथ चिकोरी इकट्ठा करने के लिये बाहर जाती थीं।
एक दिन जब वे सब चिकोरी इकट्ठा करने गयीं तो माँ और उसकी दो छोटी बेटियाँ तो आगे निकल गयीं और उसकी बड़ी बेटी थोड़ा पीछे रह गयी। वह एक बहुत बड़े चिकोरी पौधे को देखती रह गयी थी।
उसने उस पौधे को उखाड़ने की बहुत कोशिश की पर वह तो हिल कर ही नहीं दिया। फिर उसने उसको अपनी पूरी ताकत लगा कर उसे खींचा तो वह उखड़ तो आया पर उसकी जड़ के चारों ओर बहुत सारी मिट्टी लगी हुई थी।
और इसी इतनी सारी मिट्टी के बाहर निकल आने की वजह से जमीन में एक बहुत बड़ा गड्ढा बन गया। उसने देखा कि उस गड्ढे की तली में तो एक छिपा हुआ दरवाजा था।
उस लड़की ने वह दरवाजा खोल लिया तो देखा कि वहाँ तो एक कमरा था जहाँ एक राक्षस एक कुरसी पर बैठा हुआ था।
दरवाजा खुलते ही वह चिल्लाया — “ओह यह आदमी के माँस की खुशबू कहाँ से आयी।”
टैरेसा[3] ने उससे प्रार्थना की — “मेहरबानी करके मुझे मत खाओ। हम लोग बहुत गरीब हैं। मैं एक चिकोरी बेचने वाले की बेटी हूँ। और मैं तो यहाँ केवल चिकोरी इकट्ठी करने ही आती हूँ। हमारी गरीबी हमको ऐसा करने पर मजबूर करती है।”
वह राक्षस बोला — “तुम यहीं मेरे पास ठहरो और जब मैं शिकार के लिये जाऊँ तब तुम मेरे घर की देखभाल करो। तुम्हारे लिये मैंने यहाँ खाना रख दिया है। यह एक आदमी का हाथ है जब तुम्हें भूख लगे तो इसे खा लेना।
अगर तुम उसको खा लोगी तो जब मैं वापस आ जाऊँगा तब मैं तुमसे शादी कर लूँगा। पर अगर मैंने देखा कि तुमने उसे नहीं खाया तो मैं तुम्हारा सिर धड़ से अलग कर दूँगा।”
टैरेसा तो यह सुन कर बहुत डर गयी और बोली — “ठीक है जनाब। मैं उसको जरूर खा लूँगी।”
अब राक्षस तो शिकार पर चला गया और वह बेचारी टैरेसा बरतन में रखे उस हाथ को देखने लगी। वह उसको देख देख कर डर रही थी। “आदमी के इस हाथ को मैं कैसे खा सकती हूँ?”
और वह उसको देखती रही देखती रही। उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे।
समय गुजरता रहा और अब तो उस राक्षस के आने का समय भी हो गया था। उसने उस हाथ को उठाया और पाखाने में फेंक दिया और उसके ऊपर से एक बालटी पानी डाल कर उसको बहा दिया।
उसने सोचा कि अब तो वह हाथ गया और वह राक्षस यह सोचेगा कि मैंने उसको खा लिया तो मैं बच जाऊँगी। तभी राक्षस वापस आ गया और उसने उससे पूछा — “क्या तुमने वह हाथ खा लिया?”
“हाँ जनाब। मैंने खा लिया। वह इतना बुरा तो नहीं था।”
“मैं अभी देखता हूँ।” कह कर उसने आवाज लगायी — “हाथ, तुम कहाँ हो?”
“मैं पाखाने में हूँ।”
“ओ बेवकूफ, तुम तो कह रही थीं कि तुमने उसे खा लिया पर तुमने तो उसको पाखाने में फेंक दिया?”
कह कर उसने उस लड़की के हाथ पकड़े और एक ऐसे कमरे में ले गया जहाँ बहुत सारे सिर कटे धड़ पड़े थे। वहाँ ले जा कर उसने उस लड़की का भी सिर काट दिया और उसका धड़ वहीं फेंक दिया।
शाम को जब माँ चिकोरी इकट्ठा करके घर लौटी और टैरेसा को घर में नहीं देखा तो उसने अपनी दूसरी बेटियों से पूछा — “यह टैरेसा कहाँ है?”
बहिनों ने कहा — “वह एक जगह तक तो हमारे साथ ही थी पर फिर पता नहीं कहाँ गायब हो गयी।”
सो सभी फिर से एक बार चिकोरी इकट्ठा करने की जगह तक उसका नाम पुकारते हुए गये पर उनको अपनी पुकार का कोई जवाब नहीं मिला। वे सभी रोते हुए घर लौटे।
हालाँकि उन सभी ने बेचने के लिये बहुत सारी चिकोरी इकट्ठी कर ली थीं और फिर खाना भी उस पैसे से बहुत सारा खरीद लिया था पर फिर भी उस खाने का हर कौर उनको टैरेसा के बिना जहर लग रहा था। क्योंकि वह खाना उन्होंने टैरेसा को खो कर पाया था।
आखिर जब टैरेसा वापस नहीं आयी तो उसकी बहिन कौनसैटा[4] ने अपनी माँ से कहा — “माँ, मैं चिकोरी इकट्ठा करने के लिये उसी जगह फिर से जाना चाहती हूँ जहाँ मुझे लगा था कि टैरेसा को हमने अपने साथ आखीर में देखा था। शायद वहाँ मुझे उसका कोई निशान मिल जाये।”
अगले दिन वह वहीं चल दी जहाँ उसने आखिरी बार टैरेसा को देखा था। उसको भी वहाँ चिकोरी का एक बड़ा सा पौधा दिखायी दे गया।
उसने भी उस पौधे को उखाड़ने की कोशिश की पर वह उससे भी नहीं उखड़ रहा था। आखिर बड़ी मुश्किल से उसने उसे उखाड़ ही लिया। उसको भी उस पौधे को उखाड़ने से बने गड्ढे में एक छिपा हुआ दरवाजा दिखायी दिया।
उसने भी उस दरवाजे को खोला और वह भी सीढ़ियों से हो कर नीचे चली गयी। उसने भी वहाँ नीचे एक कमरे में एक राक्षस एक कुरसी पर बैठे पाया।
दरवाजा खुलते ही वह चिल्लाया — “ओह यह आदमी के माँस की खुशबू कहाँ से आयी।”
कौनसैटा ने भी उससे प्रार्थना की — “मेहरबानी करके मुझे मत खाओ। हम लोग बहुत गरीब हैं। मेरी एक बहिन तो पहले ही खो गयी है।”
वह राक्षस बोला — “तुम्हारी बहिन यहाँ है। उसका सिर काट लिया गया है क्योंकि उसने आदमी का हाथ खाने से इनकार कर दिया था।
अब तुम यहाँ रहो और मेरे घर की देखभाल करो। तुम्हारे खाने के लिये यह आदमी की एक बाँह रखी है। अगर तुम इसे खा लोगी तो मैं तुमसे शादी कर लूँगा नहीं तो तुम्हारी बहिन की तरह से तुमको भी मार दूँगा।”
“जी जनाब। आप जैसा कहें।”
वह राक्षस यह कह कर शिकार पर चला गया और कौनसैटा वहीं डरी की डरी बैठी रह गयी। उसको पता ही नहीं था कि वह उस बाँह का क्या करे जो एक प्लेट में रखी थी और मूलियों से सजी हुई थी।
उसने कुछ सोचा और फिर उसको एक गड्ढा खोद कर उसमें गाड़ दिया।
जब राक्षस वापस आया तो उसने उस लड़की से पूछा — “क्या तुमने वह बाँह खा ली?”
“जी जनाब। वह तो बड़ी स्वादिष्ट थी।”
“अभी पता चल जाता है।” कह कर उसने पहले की तरह से फिर आवाज लगायी — “ओ बाँह, तुम कहाँ हो?”
बाँह चिल्लायी — “जमीन के नीचे।”
बस उस राक्षस ने कौनसेटा का सिर भी काट दिया और उसका सिर कटा धड़ उसी कमरे में डाल दिया।
जब कौनसेटा भी वापस नहीं आयी तो दोनों माँ बेटी तो जैसे टूट ही गयीं। वे रो कर बोलीं — “अब तो दोनों चली गयीं। अब हम क्या करें।”
अब तीसरी और सबसे छोटी बेटी मरीउज़ा[5] अपनी माँ से बोली — “माँ, इस तरह से हम अपनी दो बहिनों को नहीं खो सकते। अब मैं उनको ढूँढने के लिये बाहर जाती हूँ।”
उसकी माँ अब अपनी तीसरी बेटी को खोना नहीं चाहती थी सो उसने उसको जाने से बहुत रोका पर वह नहीं मानी और अपनी दोनों बहिनों को ढूँढने चल दी।
उसको भी वही चिकोरी का बड़ा वाला पौधा मिला। उसने भी उसको उखाड़ा। उसको भी उस पौधे को उखाड़ने से बने हुए गड्ढे में छिपा हुआ दरवाजा मिला और जब उसने उस दरवाजे को खोला तो नीचे वाले कमरे में उसको भी एक राक्षस कुरसी पर बैठा मिला।
उस राक्षस ने मरीउज़ा से कहा — तुम्हारी दोनों बहिनें यहाँ हैं और वे उस कमरे में बन्द हैं। उनके सिर काटे जा चुके हैं। तुम्हारा भी वही हाल होगा अगर तुम सूप में पड़े इस आदमी के पैर को नहीं खाओगी तो।”
मरीउज़ा बोली — “जी जनाब। मैं वही करूँगी जैसा आपने कहा है।”
राक्षस इतना कह कर शिकार पर चला गया और मरीउज़ा ने सोचना शुरू कर दिया कि वह अब क्या करे। तभी उसको एक तरकीब सूझी।
उसने काँसे की एक मूसली और ओखली[6] ली और उस पैर को उसमें कूट पीस कर उसका चूरा कर लिया। उस चूरे को उसने एक मोजे में भर कर अपने कपड़ों के नीचे अपने पेट के ऊपर छिपा लिया।
जब वह राक्षस वापस आया तो उसने उस लड़की से पूछा — “क्या तुमने वह पैर खा लिया?”
लड़की ने होठों पर अपनी जीभ फिराते हुए कहा — “ओह मैं बता नहीं सकती कि वह कितना स्वादिष्ट था।”
“अभी पता चल जाता है। ओ पैर, तुम कहाँ हो?”
“मैं मरीउज़ा के पेट पर हूँ।”
“वाह। बहुत अच्छे।” राक्षस चिल्लाया। “तुम मेरी पत्नी बनोगी।” और उसने मरीउज़ा से शादी कर ली।
शादी के बाद उसने अपनी सारी चाभियाँ मरीउज़ा को दे दीं, सिवाय एक चाभी के। यह चाभी उस कमरे की थी जिसमें उसके मारे हुए लोग पड़े थे।
शादी की खुशी में जब मरीउज़ा ने राक्षस को शराब पेश की तो वह बोतल पर बोतल खाली करता गया। वह अपने घर की आधी शराब पी गया पर फिर भी और पिये जा रहा था।
जब मरीउज़ा ने देखा कि वह पी कर बिल्कुल धुत हो गया है तो उसने उससे उस कमरे की चाभी माँगी जिसकी चाभी उसने उसको नहीं दी थी।
“नहीं नहीं वह चाभी नहीं।”
“तुम उस चाभी को मुझे क्यों नहीं देते?”
“क्योंकि उसके अन्दर मरे हुओं की आत्माएं हैं।”
मरीउज़ा बोली — “अगर वे मर गयी हैं तो वे ज़िन्दा तो नहीं हो सकतीं न।”
राक्षस बोला — “मैं उनको ज़िन्दा कर सकता हूँ।”
मरीउज़ा बोली — “अगर कर सकते हो तो करो।”
राक्षस बोला — “मेरे पास मरहम है।”
मरीउज़ा बोली — “कहाँ रखते हो तुम उसे?”
राक्षस बोला — “आलमारी में।”
मरीउज़ा ने पूछा — “तब तुम तो मर ही नहीं सकते क्योंकि तुम वह मरहम लगा करके ज़िन्दा हो जाओगे?”
“मैं? हाँ मैं नहीं मर सकता। पिंजरे में वह फाख्ता है न . . .।”
“पिंजरे की वह फाख्ता क्या करेगी इसमें?”
“अगर तुम फाख्ता का सिर काट दो तो तुमको उसके दिमाग में एक अंडा मिलेगा। और अगर वह अंडा तुम मेरे माथे के ऊपर तोड़ दो तो बस समझो कि मैं मर गया . . .।”
यह कह कर उसने अपना सिर मेज के ऊपर रख दिया। मरीउज़ा ने फाख्ता को ढूँढने के लिये सारा घर छान डाला पर वह उसको कहीं मिल ही नहीं रही थी।
आखिर वह उसको मिल ही गयी। तुरन्त ही उसने फाख्ता का सिर काट दिया और उसमें से अंडा निकाल लिया।
फिर उस अंडे को उस सोते हुए राक्षस के माथे पर फोड़ दिया। राक्षस दो चार बार काँपा और फिर मर गया।
मरीउज़ा ने वह मरहम भी ढूँढ लिया जिससे उसको मरे हुए लोगों को ज़िन्दा करना था। फिर उसने वह कमरा खोला जिसमें मरे हुए लोग पड़े थे और उन मरे हुए लोगों को मरहम लगाने लगी।
पहला आदमी एक राजा था जो जब ज़िन्दा हुआ तो उसको ऐसा लगा जैसे कि वह सोते से उठा हो। वह बोला — “अरे मैं इतना कैसे सो गया? मैं कहाँ हूँ? मुझे किसने जगाया?”
पर मरीउज़ा ने उसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया और वह दूसरे लोगों को मरहम लगाती रही। पहले उसने अपनी बहिनों को मरहम लगाया, फिर राजाओं को, राजकुमारों को, काउन्टों को और नाइट्स को[7] जिनका तो कोई अन्त ही नहीं था।
अब बहुत सारे राजा और दूसरे कुलीन लोग इन तीनों बहिनों से शादी करना चाहते थे।
मरीउज़ा बोली — “तुम सबको सबसे पहले यह करना चाहिये कि तुम सब मोरा[8] खेलो और जो भी जीत जाये उसको लड़की चुनने का अधिकार होगा।
सो सबने मोरा खेला और उसमें पहले एक राजा जीत गया। उसने सबसे बड़ी वाली लड़की को चुन लिया। उसके बाद एक राजकुमार जीत गया तो उसने दूसरी लड़की को चुन लिया। अन्त में एक राजा जीता तो उसने मरीउज़ा को ले लिया।
तभी एक आदमी चिल्लाया — “जल्दी करो, जल्दी करो। समय मत बरबाद करो। यहाँ से भाग निकलो। वह राक्षस यहाँ कभी भी वापस आ सकता है और फिर वह हम सबको मार डालेगा।”
मरीउज़ा बोली — “डरो नहीं। मैंने उस राक्षस को खुद मार डाला है। अब तुम सबको उससे डरने की कोई जरूरत नहीं है।”
सब खुशी से उछल पड़े “सो अब हमको डरने की कोई जरूरत नहीं है। यह तो बहुत अच्छा है।”
फिर सबने एक एक घोड़ा लिया, उस राक्षस का खजाना आपस में बाँटा और अपनी अपनी दुलहिनों को ले कर शहर आ गये।
उन्होंने अपनी शादी बहुत धूमधाम से मनायी और अब हर एक बहुत खुश था खास करके उन तीनों लड़कियों की माँ जिसको अब चिकोरी इकट्ठा करने के लिये कहीं नहीं जाना पड़ता था।
[1] The Three Chicory Gatherers (Story No 142) – a folktale from Italy from its Calabria area.
Adapted from the book : “Italian Folktales:”, by Italo Calvino”. Translated by George Martin in 1980.
[2] Chicory – is a cultivated salad plant with blue flowers and with a good size root which is roasted and powdered for a substitute or additive to coffee. It looks like large thick radish. See its picture above.
[3] Teresa – the name of that eldest daughter
[4] Consetta – the name of the second sister
[5] Mariuzza – name of the third and the youngest sister
[6] Bronze mortar and pestle. See its picture above.
[7] Counts and Knights – special status people in European kingdoms
[8] Morrah – a game
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः - रैवन की लोक कथाएँ, इथियोपिया व इटली की ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.
(क्रमशः अगले अंकों में जारी….)
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