देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–6 : 5 तीन अनाथ // सुषमा गुप्ता

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5 तीन अनाथ [1] एक बार एक आदमी था जिसके तीन बेटे थे। एक बार वह आदमी बहुत बीमार पड़ा और उसी बीमारी में चल बसा। उसके तीनों बेटे लावारिस हो गये। ...

5 तीन अनाथ[1]

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एक बार एक आदमी था जिसके तीन बेटे थे। एक बार वह आदमी बहुत बीमार पड़ा और उसी बीमारी में चल बसा। उसके तीनों बेटे लावारिस हो गये।

एक दिन सबसे बड़े भाई ने अपने दोनों छोटे भाइयों से कहा — “भाइयो मैं घर छोड़ कर अपनी किस्मत आजमाने बाहर जा रहा हूँ तुम लोग ठीक से रहना।” और यह कह कर वह घर छोड़ कर चला गया।

चलते चलते वह एक शहर में आया और उस शहर की सड़कों पर चिल्लाने लगा — “जो भी मुझे अपनी सहायता के लिये रख लेगा मैं उसको अपना मालिक बना लूँगा।”

उसकी यह आवाज सुन कर एक भला आदमी अपने मकान के छज्जे पर आया और उससे बोला — “अगर हम और तुम आपस में राजी हो जायें तो मैं तुमको अपनी सहायता के लिये रख सकता हूँ।”

वह लड़का बोला — “ठीक है जो चाहे दे देना।”

“पर तुमको मेरा कहना मानना पड़ेगा।”

“मैं आपकी हर बात मानूँगा।”

और उस भले आदमी ने उसको अपने पास रख लिया।

अगले दिन उस आदमी ने उस लड़के को बुलाया और कहा — “यह चिट्ठी लो और यह घोड़ा लो। इस पर सवार हो कर इस घोड़े की रास[2] को बिना छुए चले जाओ।

क्योंकि अगर तुमने इस घोड़े की रास छुई तो यह घोड़ा पलट जायेगा और वापस मेरे पास आ जायेगा।

तुमको तो बस उसे कुदाना है। यह घोड़ा जानता है कि इसको कहाँ जाना है और उस जगह का रास्ता भी जानता है। वहाँ जा कर यह चिट्ठी दे आना और वापस आ जाना।”

लड़का अपने मालिक के कहे अनुसार उस घोड़े पर चढ़ गया और चल दिया। घोड़ा कुलाँचें मारता हुआ चल दिया। चलते चलते वह एक गहरी घाटी में आ पहुँचा।

वह गहरी घाटी देख कर लड़के ने सोचा “अब मैं क्या करूँ। यह तो बहुत गहरी घाटी आ गयी। मैं यहाँ यकीनन घोड़े से उतर जाऊँगा वरना यह घोड़ा यह गहरी घाटी कैसे पार करेगा।”

यह सोच कर उसने उस घोड़े को रोकने के लिये उसकी रास खींच दी। बस फिर क्या था। जैसे ही उसने उस घोड़े की रास खींची उस आदमी के कहे अनुसार वह घोड़ा पलटा और बिजली की सी तेज़ी के साथ उस आदमी के घर लौट आया।

लड़के को वापस आया देख कर वह आदमी बोला — “सो तुम वहाँ नहीं गये जहाँ मैंने तुमको भेजा था। लगता है कि मेरे मना करने के बावजूद तुमने घोड़े की रास खींच दी। तुम जा सकते हो। वह पैसों का ढेर पड़ा है उसमें से चाहे जितना पैसा ले लो और चले जाओ।”

उस लड़के ने उसमें से जितने पैसे वह उठा सकता था उतने पैसे उठाये और उनसे अपनी जेबें भर लीं और वहाँ से चल दिया। जैसे ही वह उस घर से बाहर निकला वह सीधा नरक में गिर पड़ा।

अब जो दो भाई घर में रह गये थे उनकी कहानी सुनो।

बड़े भाई के जाने के बाद उन दो छोटे भाइयों ने कुछ दिन तो अपने बड़े भाई का इन्तजार किया पर फिर जब वह नहीं आया तो दूसरे नम्बर के भाई ने भी घर छोड़ने और अपनी किस्मत आजमाने का फैसला किया।

वह भी उसी सड़क पर चल पड़ा जिस पर उसका बड़ा भाई गया था। वह भी उसी शहर में आ गया जिसमें उसका बड़ा भाई आया था। उसने भी उस शहर की सड़कों पर चिल्लाना शुरू कर दिया — “जो भी मुझे अपनी सहायता के लिये रख लेगा मैं उसको अपना मालिक बना लूँगा।”

उसकी यह आवाज सुन कर वही भला आदमी फिर अपने मकान के छज्जे पर आया और उससे बोला — “अगर हम और तुम आपस में राजी हो जायें तो मैं तुमको अपनी सहायता के लिये रख सकता हूँ।”

वह लड़का बोला — “ठीक है जो चाहे दे देना।”

“पर तुमको मेरा कहना मानना पड़ेगा।”

“मैं आपकी हर बात मानूँगा।”

और उस भले आदमी ने उसको अपने पास रख लिया।

अगले दिन उस आदमी ने उस लड़के को बुलाया और उसको भी वही कहा जो उसके बड़े भाई से कहा था।

“यह चिट्ठी लो और यह घोड़ा लो। इस पर सवार हो कर इस घोड़ी की रास को बिना छुए चले जाओ। क्योंकि अगर तुमने इस घोड़े की रास छुई तो यह घोड़ा पलट जायेगा और फिर मेरे पास ही वापस आ जायेगा।

तुमको तो बस उसे कुदाना है। यह घोड़ा जानता है कि इसको कहाँ जाना है और उस जगह का रास्ता भी जानता है। वहाँ जा कर यह चिट्ठी दे आना और वापस आ जाना।”

पर इस लड़के ने भी उसी गहरी घाटी के पास पहुँच कर उस घाटी की गहरायी से डर कर घोड़े की रास खींच ली जिस घाटी से डर कर बड़े भाई ने उस घोड़े की रास खींची थी और घोड़ा पलट कर वापस घर आ गया।

लड़के को वापस आया देख कर वह आदमी बोला — “सो तुम वहाँ नहीं गये जहाँ मैंने तुमको भेजा था। लगता है कि मेरे मना करने के बावजूद तुमने इस घोड़े की रास खींच दी। तुम अब जा सकते हो। वह पैसों का ढेर पड़ा है उसमें से जितना चाहे उतना पैसा ले लो और चले जाओ।”

उस बीच वाले भाई ने भी उन पैसों में से कुछ पैसा उठाया और अपनी जेबें भर लीं और वहाँ से चल दिया। वह भी जैसे ही उस घर से बाहर निकला वह भी सीधा नरक में गिर पड़ा।

जब दो बड़े भाई काफी दिनों तक घर वापस नहीं आये तो उनके सबसे छोटे भाई ने भी घर छोड़ा और अपनी किस्मत आजमाने बाहर चल दिया। वह भी उसी सड़क पर चल दिया जिस पर उसके दोनों बड़े भाई गये थे।

वह भी उसी शहर में आ पहुँचा जिसमें उसके दोनों बड़े भाई आये थे।

उसने भी चिल्लाना शुरू किया — “जो भी मुझे अपनी सहायता के लिये रख लेगा मैं उसको अपना मालिक बना लूँगा।”

उसकी यह आवाज सुन कर वही भला आदमी फिर अपने मकान के छज्जे पर आया और उससे बोला — “अगर हम और तुम आपस में राजी हो जायें तो मैं तुमको अपनी सहायता के लिये रख सकता हूँ।”

वह लड़का बोला — “ठीक है जो चाहे दे देना।”

“पर तुमको मेरा कहना मानना पड़ेगा।”

“मैं आपकी हर बात मानूँगा।”

और उस भले आदमी ने उसको अपने पास रख लिया।

अगले दिन उस आदमी ने उस लड़के को बुलाया और उसको भी वही कहा जो उसके बड़े भाई से कहा था।

“यह चिट्ठी लो और यह घोड़ा लो। इस पर सवार हो कर इस घोड़ी की रास को बिना छुए चले जाओ। क्योंकि अगर तुमने इस घोड़े की रास छुई तो यह घोड़ा पलट जायेगा और फिर मेरे पास ही वापस आ जायेगा।

तुमको तो बस उसे कुदाना है। यह घोड़ा जानता है कि इसको कहाँ जाना है और यह उस जगह का रास्ता भी जानता है। वहाँ जा कर यह चिट्ठी दे आना और वापस आ जाना।”

घोड़ा कुलाँचें भरता हुआ वहाँ से चल दिया और उसी गहरी खाई की तरफ आ पहुँचा।

लड़के ने नीचे गहरी घाटी में देखा तो उसके सारे शरीर में एक ठंडी लहर दौड़ गयी। पर उसने सोचा कि अब मैं क्या करूँ अब तो भगवान ही मेरी सहायता करेगा और अपनी ऑखें बन्द कर लीं।

अगले ही पल जब उसने अपनी ऑखें खोलीं तो तब तक तो वह उस खाई के दूसरी तरफ पहुँच चुका था।

घोड़ा भागता ही जा रहा था। अब वह एक नदी के पास आ पहुँचा। वह नदी क्या थी वह तो समुद्र जितनी चौड़ी थी। उसका दूसरा किनारा तो दिखायी ही नहीं दे रहा था।

वह सोचने लगा अब तो मेरे पास इसमें डूबने के अलावा और कोई चारा ही नहीं है। सो फिर उसने अपनी ऑखें बन्द कीं और फिर भगवान की प्रार्थना की। बस वह नदी तो दो हिस्सों में बँट गयी और उस घोड़े ने उसे आसानी से पार कर लिया।

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घोड़ा फिर भागता गया और अब की बार वह एक खून जैसे लाल रंग के पानी की नदी के पास आ गया। वह लड़का उस खून की नदी को देख कर बहुत ही घबरा गया और सोचने लगा कि अब की बार तो वह यकीनन ही इस नदी में डूब जायेगा।

पर उसने फिर पहले की तरह से भगवान की प्रार्थना की और वह उस नदी में कूदने ही वाला था कि घोड़े के आगे वह नदी भी पहले की तरह दो हिस्सों में बँट गयी और घोड़ा उसमें कूदता हुआ उसे पार कर गया।

चलते चलते वे अब की बार एक ऐसे घने जंगल के पास आ गये जिसमें से घोड़ा तो घोड़ा कोई चिड़िया भी नहीं गुजर सकती थी।

लड़के ने सोचा “यहाँ तो बस मैं मर ही गया समझो।”

उसने फिर एक बार भगवान की प्रार्थना की और लो, वह घोड़ा तो उस जंगल में घुस गया और दौड़ता चला गया। वहाँ वह घोड़ा एक बूढ़े के पास आ कर रुक गया। वहाँ वह बूढ़ा गेंहू की एक पत्ती से एक पेड़ काट रहा था।

उस लड़के ने उस बूढ़े से पूछा — “अरे यह आप क्या कर रहे हैं? क्या आप सोचते हैं कि आप इस गेंहू की पत्ती से यह पेड़ काट पायेंगे?”

वह बूढ़ा बोला — “तुमने अगर एक शब्द और बोला तो मैं इस पत्ती से तुम्हारी भी गरदन काट दूँगा।”

वह लड़का यह सुन कर डर गया। उसका घोड़ा उस लड़के को ले कर आगे बढ़ गया। चलते चलते वे अब की बार एक ऐसी जगह आये जहाँ आग का एक दरवाजा बना हुआ था जिसके दोनों तरफ एक एक शेर बैठा था।

लड़के ने सोचा यहाँ तो मैं यकीनन जल जाऊँगा और ये शेर तो मुझे किसी हालत में नहीं छोड़ेंगे। पर फिर उसने सोचा कि अगर मैं जलूँगा तो यह घोड़ा भी तो जलेगा सो बढ़े चलो।

आश्चर्य, घोड़ा उसको भी पार कर गया। उस दरवाजे को पार करके वह घोड़ा एक स्त्री के पास आया। वह स्त्री एक पत्थर पर अपने घुटने टेके हुए प्रार्थना कर रही थी।

यहाँ आ कर वह घोड़ा अचानक ही रुक गया। लड़के को लगा कि वह चिठ्ठी शायद इसी स्त्री के लिये थी सो वह घोड़े से नीचे उतरा और उस आदमी की दी हुई चिट्ठी उसने उस स्त्री को दे दी।

उसने उस चिट्ठी को खोला और पढ़ा। फिर उसने नीचे से एक मुठ्ठी रेत उठायी और हवा में बिखेर दी। लड़का फिर से अपने घोड़े पर चढ़ा और वापस घर की तरफ चल दिया।

घर पहुँचने पर मालिक ने जो ईसा मसीह खुद थे उस लड़के से कहा — “वह खाई जो तुमने देखी वह नरक जाने का रास्ता थी। और उस नदी का पानी मेरी माँ के ऑसू थे। वह खून जैसे लाल रंग का पानी मेरे पाँच घावों से बहने वाला खून था।

वह जंगल मेरे ताज के काँटे थे और वह आदमी जो तुमने गेहूँ के पत्ते से पेड़ काटता देखा वह मौत खुद थी। वह आग का दरवाजा नरक था और वे दो शेर जो उस दरवाजे के दोनों तरफ बैठे थे वे तुम्हारे दोनों भाई थे।

वह झुकी हुई स्त्री जो प्रार्थना कर रही थी वह मेरी माँ थी।

तुमने मेरा कहना माना इसलिये तुम उस सोने के ढेर में से कितना भी सोना ले जा सकते हो।”

वह लड़का तो बेचारा कुछ भी नहीं चाहता था पर अपने मालिक के कहने पर उसने उस ढेर में से एक सोने का सिक्का उठा लिया और वहाँ से चला आया।

अगले दिन वह बाजार से खरीदारी करने गया तो वह सिक्का उसने वहाँ खर्च कर दिया पर फिर भी वैसा ही एक सिक्का हमेशा ही उसकी जेब में रहा। उसके बाद वह ज़िन्दगी भर आराम से रहा।

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[1] Three Orphans (Story No 138) – a folktale from Italy from its Calabria area.

Adapted from the book : “Italian Folktales”, by Italo Calvino”. Translated by George Martin in 1980.

[2] Translated for the word “Reins”

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः  - रैवन की लोक कथाएँ,  इथियोपिया इटली की  ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

(क्रमशः अगले अंकों में जारी….)

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रचनाकार: देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–6 : 5 तीन अनाथ // सुषमा गुप्ता
देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–6 : 5 तीन अनाथ // सुषमा गुप्ता
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