एकांकी // जिन्‍दा मौत // डॉ0 हरिश्‍चन्‍द्र शाक्‍य

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एकांकी जिन्‍दा मौत पात्र परिचय अनिल : एक शहरी नवयुवक, उम्र लगभग 25 वर्ष। रेखा : एक शहरी नवयुवती, अनिल की प्रेमिका, सोमनाथ की पुत्री, उम्र लग...

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एकांकी

जिन्‍दा मौत

पात्र परिचय

अनिल : एक शहरी नवयुवक, उम्र लगभग 25 वर्ष।

रेखा : एक शहरी नवयुवती, अनिल की प्रेमिका, सोमनाथ की पुत्री, उम्र लगभग 18 वर्ष।

रूपा : सोमनाथ की पत्नी, उम्र लगभग 38 वर्ष।

सोमनाथ : रेखा के पिता, उम्र लगभग 42 वर्ष ।

(दृश्‍य 1)

(शहर की बस्ती के एक पक्के मकान की बैठक जिसकी दीवारों पर विभिन्न चित्र टँगे हुए हैं। सीलिंग फेन अपनी रफ्तार से चल रहा है। एक मेज पर टी0वी0 रखा है। दो कुर्सियों पर एक युवक व एक युवती बैठे हैं।)

रेखा : (प्यार भरे अंदाज में) डियर अनिल!.... सचमुच ही तुम बहुत प्यारे लगते हो।

अनिल : सच!

रेखा : सच!

अनिल : तुम भी तो मुझे बहुत प्यारी लगती हो रेखा... जब भी तुमको देखता हूँ तो ऐसा लगता है कि तुम्हें देखता ही रहूँ।

रेखा : (मुस्कुराकर) ऐसा कौन सा मोती जड़ा है।

अनिल : मोती ऽऽ... यह तो बस मैं ही जानता हूँ।

रेखा : (सिर को एक हाथ से थामकर) बस बंद करो ये बातें... मेरे सिर में दर्द हो रहा है।

(धड़ाम की आवाज के साथ रेखा गिरती है।)

अनिल : (आश्चर्य और भयमिश्रित स्वर में) क्यों क्या हुआ?

रेखा : मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनने वाली हूँ। (चेहरे पर उदासी के भाव उभरते हैं।)

अनिल : (लम्बी साँस खींचकर आश्चर्य व्यक्त करते हुए) मेरे बच्चे की माँ!

रेखा : हाँ तुम्हारे बच्चे की माँ... तुमने मेरे कौमार्य का जो मोती लूटा है उसे तुम वापस नहीं कर सकते... हाँ तुम मुझे समाज में निन्दनीय होने से बचा सकते हो।

(गिड़गिड़ाते हुए) अनिल मेरे लिए कुछ करो प्लीज... लोकलाज का शैतान लड़कियों की ज़िंदगी में ज़हर घोल देता है... मैं तुमसे अपनी इज्जत बचवाने की भीख माँगती हूँ।

अनिल : (अपने दुश्चरित्र का उद्घाटन करते हुए) अनिल न तो किसी को भीख देता है और न किसी से लेता है.... तुम्हारे जैसी न जाने कितनी छोकरियों के कौमार्य का मोती लूटा है मैंने... आज मेरी बाहों में तुम हो कल कोई और आ जाएगी।...

... तुम अपनी इज्जत किसी तरह बचा सकती हो तो बचाओ अन्यथा इस मामले में मुझे कोई मतलब नहीं।

रेखा : (तेज आवाज में डाँटते के अंदाज में) तुमने मेरी जिंदगी के साथ जो खिलवाड़  किया है उसका फल मुझे भुगतना पड़ रहा है... ठीक है... आज की दुनिया भी कैसी निराली दुनिया है... आज के लगभग सभी युवक अपनी जिस्मानी भूख शांत करने के लिए प्रेम का ढोंग रचते हैं... तुमने भी मुझे जब प्यार किया था तब वादा किया  था कि जिंदगी भर मेरा साथ निभाओगे... मैं आज समझ पाई हूँ कि वह तुम्हारा प्यार नहीं सिर्फ़ प्यार का ढोंग था... अब बताओ कहाँ गया तुम्हारा प्यार और तुम्हारा वादा।

अनिल : और कुछ कहना है?

रेखा : अभी मैंने कहना बंद नहीं किया है... मेरी कोख में जो जिंदा मौत पली हुई है वह तुम्हारी वजह से है... अगर मैं पहले जानती होती कि तुम पीछे को मुँह मोड़ लोगे तो मैं तुमसे कदापि प्यार नहीं करती।

अनिल : (झुँझलाते हुए) प्यार! प्यार! प्यार!... प्यार क्या होता है मैं नहीं जानता... मैं तो सिर्फ़ अपनी जिस्मानी भूख शांत करने के लिए लड़कियों को पटाना जानता हूँ... मुझे जो भी सुंदरी देख लेती है वह मुझ पर मुग्ध हो जाती है... न जाने मुझमें क्या जादू है जो मेरे इस कार्य में मेरी सहायता करता है।

रेखा : तुम में कोई जादू नहीं है... आधुनिक युग की लड़कियाँ भी जवानी के जोश में इश्क में अंधी हो जाती हैं... इस लड़कियों के अंधेपन का फायदा तुम्हारे जैसे जिस्म के भूखे भेड़िए उठाते हैं... लड़कियों को चाहिए कि वे कुँआरेपन में किसी लड़के से प्यार न करें।

अनिल : क्या सारा दोष लड़कों का ही है?

रेखा : मैं कब कहती हूँ कि सारा दोष लड़कों का ही है... लड़के तो मजा मारकर दूर हो जाते हैं... और फिर सारा परिणाम तो लड़कियों को ही भुगतना पड़ता है...

लड़कियाँ यह जानते हुए भी कि उनकी शादी अवश्य होगी, लड़कों के जाल में फँस जाती हैं... लड़कियों को शादी के बाद प्यार करना चाहिए वह भी अपने पति से... क्योंकि पत्नी के सुख-दुख में वही साथ निभा सकता है।

अनिल : कभी-कभी बात तो बड़ी आदर्श कह जाती हो रेखा...। यह सब जानते हुए भी तुमने ऐसा क्यों नहीं किया... क्या तुम यह नहीं जानती थीं कि अनिल से प्यार करके एक दिन उसके बच्चे की माँ भी बनना पड़ेगा।

रेखा : (तेज स्वर में) घाव पर नमक मत छिड़को अनिल!... अगर मैं जानती कि बाद में तुम ऐसा व्यवहार करोगे तो.. मैं या तो तुम्हारा गला घोंट देती या जहर पिला देती.. कान खोलकर सुन लो अनिल!... तुम्हारे इस दुर्व्यवहार का बदला तुमसे लेकर रहूँगी।

अनिल : (झिड़कते हुए) अरे जा जा... बड़ी आई बदला लेने वाली... बदला लेना है तो अपनी अवैध औलाद से लेना... चल निकल जा मेरे घर से... और हाँ यहाँ फिर कभी मत आना।

(दृश्‍य 2)

(रेखा के पिता का ड्राइंग रूम। दीवारों पर चित्र लगे हैं। एक कुर्सी पर अकेली रेखा बैठी है।)

रेखा : (स्वगत) हे भगवान!... अब मैं क्या करूँगी... क्या सारा दोष मेरा ही है... मैं अपने बच्चे को जन्म दूँ... पालू, पोसूँ तो क्या समाज उसे इज्जत से जीने देगा।

(दरवाजे पर आहट होती है। रेखा, बड़बड़ाना बंद कर देती है। बाहर से एक स्वर गूँजता है, ‘‘रेखा!’’)

रेखा : हाँ पिताजी! (किवाड़ खुलने की आवाज)

सोमनाथ : तू अब मुझसे पिताजी कहने की अधिकारिणी नहीं रहीं... तू जो कुछ बड़बड़ा रही थी मैंने सुन लिया है... मैं जान गया हूँ कि तू एक अवैध संतान को जन्म देने

वाली है... कौमार्यावस्था में ही तू मुझे नाना बनाकर छोड़ेगी... तूने मुझे कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ा बेटी।

(धड़ाम की आवाज के साथ रेखा जमीन पर पसर जाती है। नेपथ्य से जनानी आवाज आती है, ‘‘क्यों क्या हुआ?’’ और किसी के दौड़ने की ध्वनि सुनाई देती है।)

(रूपा का प्रवेश)

रूपा : (घबराकर) क्यों क्या हुआ मेरी बेटी को? (रूपा अपनी छाती पीटने लगती है और ठप-ठप की ध्वनि सुनाई पड़ती है।) मैं अपनी बेटी के बिना कैसे जी सकती हूँ...

तुमने मेरी बेटी को क्या कर दिया। (फूट फूट कर रोने की आवाज)

सोमनाथ : कुछ नहीं हुआ है... आज सोमनाथ की नाक कट गयी है रूपा... अब यह तुम्हारी बेटी नहीं बल्कि कुल को कलंकित करने वाली चुडै़ल है।

रूपा : (सख्त स्वर में) खबरदार!... तुमने मेरी बेटी को चुड़ैल कहा तो अच्छा नहीं होगा... मेरी भोली बेटी ने तुम्हारे कुल पर कब दाग लगा दिया।

सोमनाथ : (समझाते हुए) रूपा तुम नहीं जानती कि यह चुड़ैल एक अवैध संतान को जन्म देने वाली है।

रूपा : (उलाहना देते हुए) अब तुम्हारे भेजे में आया है कि अवैध संतान किस तरह कुल को कलांकित करती है... मैं अपनी कौमार्यावस्था में जब तुम्हारी इसी बच्ची की माँ बनने वाली थी तब तुमने मेरी कोई सहायता की थी क्या?... क्या तुम्हें मालूम नहीं कि रेखा ने भी तुम्हारी अवैध संतान के रूप में जन्म लिया था।

सोमनाथ : (क्रोध में आग बबूला होते हुए) बकवास बंद करो रूपा। रूपा : (तेज स्वर में) आज मैं बिल्कुल चुप नहीं होऊँगी... जब मैं रेखा की माँ बनने वाली थी तब तुमने भी मुझसे मुँह मोड़ लिया था.... बाद में तुमने मुझे अपना लिया इसलिए मेरी ज़िंदगी तबाह होने से बच गई।

सोमनाथ : आज के अधिकतर नवयुवक व नवयुवतियाँ इस बात के शिकार हैं। (भगवान से प्रार्थना की मुद्रा में हाथ जोड़ते हुए) हे भगवान! पहले तू मुझे जो सजा दे सकता है दे दे फिर रेखा के बारे में तू ही सोचना।

रूपा : (मुँह टेढ़ा-मेढ़ा बनाते हुए) अब बड़े भगवान के भक्त हो गए हो... क्या भगवान तुम्हारी प्रार्थना सुनने को तैयार हैं।

सोमनाथ : (तेज आवाज में) मैं कहता हूँ रूपा तुम अपना मुँह बंद कर लो नहीं तो तुम्हारी जुबान खींच लूँगा... तुम समझती हो कि अवैध संतान को जन्म देने में सिर्फ पुरुष का दोष होता है... अरे। तुम्हारी बहस ही समाप्त नहीं होगी... रेखा के बारे में भी कुछ सोचना है कि नहीं।

रूपा : रेखा के बारे में क्या सोचना है... उसे तुरंत अस्पताल में भरती कर दो।

(दृश्‍य 3)

(स्थान : शहर के सरकारी अस्पताल का एक कमरा जिसमें सोमनाथ व उनकी पत्नी रूपा एक बेंच पर बैठे हैं। कमरे में डॉक्टर का प्रवेश)

डॉक्टर : सोमनाथ जी! बधाई हो... आप नाना बन गये हैं... बड़े ही सुंदर मुन्ना को रेखा ने जन्म दिया है।

सोमनाथ : (झुँझलाहट तथा घबराहट का मिश्रित भाव चेहरे पर लाकर) रेखा को तो कुछ नहीं हुआ डॉक्टर साहब।

डॉक्टर : अभी रेखा बेहोश है... बड़े ऑपरेशन से बच्चा पैदा हुआ है... खैर चिंता कोई बात नहीं सब ठीक हो जाएगा।

सोमनाथ : (गहरी साँस खींचकर) डॉक्टर साहब! रेखा के बच्चे को किसका बेटा बताऊँगा... वह बच्चा एक अवैध संतान है। (जूतों की आवाज के साथ अनिल का प्रवेश)

नर्स : रेखा को अब होश आ गया है... मेरे बहुत रोकने के बावजूद भी यह यहाँ उठकर आ गई है...।

सोमनाथ : (रेखा से) बैठ जाओ बेटी... कुर्सी पर बैठ जाओ।

रेखा : मिस्टर अनिल जी! तुम्हारी यहाँ आने की क्या आवश्यकता थी।

अनिल : क्यों... मुन्ना मेरा बेटा नहीं है क्या?

रेखा : तुमने सिर्फ मेरे कौमार्य को लूटा है बस... बच्चा सिर्फ मेरा है।

अनिल : (गिड़गिड़ाते हुए) मुझे माफ कर दो रेखा... मैं तुम्हारे हाथ जोड़ता हूँ... जो तुम मुझसे कहना चाहती हो वह सब मुझ पर बीत चुका है... मेरी बहिन भी एक अवैध संतान को जन्म दे चुकी है और वह इसी अस्पताल में भर्ती है... मेरी बहिन को कोई अपनाने को तैयार नहीं हुआ तब मुझे तुम्हारी याद आई।

डॉक्टर : (समझाते हुए) देखिए हर लड़के-लड़की को चाहिए कि वे यदि कौमार्यावस्था में प्यार करें तो हदों को पार न करें... अगर वे इतना संयम रखेंगे तो उन्हें समाज में हेयदृष्टि से नहीं देखा जाएगा... कौमार्यावस्था में हदों को पार करने का सीधा परिणाम होता है अवैध बच्चे का जन्म और यह बच्चा किसी कुमारी के लिए जिंदा मौत होता है।

रेखा : (रोते हुए) डॉक्टर साहब अब मुझे और अधिक शर्मिंदा मत कीजिए।

डॉक्टर : अच्छा सोमनाथ जी... जल्दी ही इन दोनों की शादी कर देना।

(पर्दा गिरता है)

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- डॉ0 हरिश्‍चन्‍द्र शाक्‍य, डी0लिट्0

शाक्य प्रकाशन, घण्टाघर चौक,

क्लब घर, मैनपुरी-205001 (उ0प्र0)

स्थाई पता- ग्राम कैरावली पोस्ट तालिबपुर, मैनपुरी (उ0प्र0)

ईमेल- harishchandrashakya11@gmail.com

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रचनाकार: एकांकी // जिन्‍दा मौत // डॉ0 हरिश्‍चन्‍द्र शाक्‍य
एकांकी // जिन्‍दा मौत // डॉ0 हरिश्‍चन्‍द्र शाक्‍य
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