कहानी // थपरा // धर्मेंद्र निर्मल

SHARE:

गुड़ी की नजर से बचकर बाहर की कोई बात न तो गाँव में पाँव धर सकती है न ही पाँव उठाकर गाँव से बाहर जा सकती है। गुड़ी ऐसी जगह है जहाँ टेम -कुटेम द...

image

गुड़ी की नजर से बचकर बाहर की कोई बात न तो गाँव में पाँव धर सकती है न ही पाँव उठाकर गाँव से बाहर जा सकती है।

गुड़ी ऐसी जगह है जहाँ टेम -कुटेम दो-चार मनखे गपशप लड़ाते -बैठे मिल ही जायेंगे। यह अभी की बात नहीं है। ऐसा बाप-दादों के जमाने से चला आ रहा है। इस नए जमाने में बस यही एक मौन और बूढ़ी परम्परा हांफती हुई जीवित है जो इस समाज के बदलते परिवेश की रेतीली और मरूभूमि पर गुप्त गंगा की भाँति अभी तक निर्बाध रूप से बहती चली आ रही है।

यह सिलसिला कई पीढ़ियों तक जारी रहेगा ऐसा कहना संभव और असंभव के बीच रखकर अपने आपको झूठी तसल्ली देने के सिवाय कुछ नहीं होगा। अब यह बता पाना भी संभव नहीं है कि गुड़ी पर बैठना लोगों की परिपाटी है या लोगों का बैठना गुड़ी की अपनी परिपाटी है। हाँ ! मगर इतना जरूर कहा जा सकता है कि लोगों का बैठना ही गुड़ी की पहचान है।

विजय दिन में कम से कम दो बार सायकल चलाते हुए गुड़ी से होकर जरूर गुजरता। गुजरते सब थे, पर विजय के गुजरने में खास बात थी।

आम दिनों में आम लोगों की तरह विजय का गुड़ी से गुजरना भी पहले आम बात ही थी।

पहले एकाध शक्की नजर पड़ी। दो- चार दिन बाद शक सबूत के पांव लगाकर चलने लगा । फिर बात जवान होकर आम से खास हो चली।

विजय, लाभचंद का छोटा लड़का। महज दस साल का। तीन महीने पहले ही तो सायकल चलाने में दक्ष हुआ वह।

वैसे तो उसकी सायकल सीखने की कोशिश बोचकती चड्डी संभालने और सुड़सुड़ाती बहती नाक पोछना सीखने की उम्र से जारी थी। कामयाबी अभी अभी मिली है।

पहले पहल वह सायकल पकड़े फकत घूमा फिरता। पैदल। कभी इधर घसीटता कभी उधर घसीटता। कभी इस गली -कभी उस गली। कभी सड़कों पर तो कभी मैदान में। कभी साइकल की चैन तोड़कर लाता। कभी अपनी पैंट फाड़ डालता तो कभी लहू बहाती कुहनी लिए आता। पर इन सबके बाद भी उसके मासूम चेहरे पर घुँघराले बालों के बीच छिपा उसका आत्मविश्वास मुस्कुराता रहता।

सफलता के हर ताले की एकमात्र कुंजी है -आत्मविश्वास।

आखिर उसने साइकल चलाना सीख ही लिया। पहले कैंची फाँक, फिर डण्डी में। उसके बाद सीट पर बैठकर।

कैंची फाँक साइकिल चलाना सीखा तभी से वह संगियों के साथ खम्हरिया जाने लगा। नये जोश, नयी उमंग और नया शौक के आगे धरती और आकाश की दूरी तुच्छ है। खपरी और खम्हरिया की यह दूरी क्या है ? महज 7 कि. मी. तो है। दो पाइडिल का बूता, बस।

लाभचंद ऐसा पियाग है जिसका कोटा पूरा करते -करते शराब खुद थकने लगती, पर वह नहीं छकता। आॅफिस से लौटते समय गले तक तो भट्ठी में ही टोटे तक ढोंक लेता। साथ में एकाध शीशी और रख लेता। घर आकर फिर चढ़ाता।

वह शराब से मुँह धोता और उसी से अचोंता।

लाभचंद यूँ ही पियक्कड़ नहीं हुआ। उसकी भी अपनी एक रामकहानी है।

वैसे तो हर मनखे की कोई न कोई अपनी एक रामकहानी अवश्य होती है। इस तरह हर आदमी अपनी -अपनी रामकहानी का नायक होता है।

लाभचंद जब छः साल का था, माता-पिता दोनों गुजर गये। देखरेख व पढ़ाई उनके चाचा के जरिये हुई। लाभचंद के चाचा बलराम बडे नेक, समझदार व उदारमना थे। लाभचंद की शिक्षा- दीक्षा में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने पूरी कोशिश की कि लाभचंद को कभी-भी मां -बाप की कमी का एहसास न हो ।

लेकिन माता-पिता के खाली ही सही दया और आशीष धरे हाथ का साया भी जितना विश्वसनीय और सुखदाई होता है उतना भरे हुए गैर हाथों के नहीं हो सकते। 

अपना आसमान आखिर अपना होता है चाहे वह मुट्ठी -भर ही क्यों न हो ?

माँ-बाप की कमी लाभचंद को कहीं न कहीं भीतर तक खलती थी।

वह चंचल और होशियार तो बालपन से ही था। बहुत जल्दी वह बिजली विभाग में मिस्त्री हो गया। दो हेल्पर साथ लेकर साईड जाता। साइड में अतिरिक्त आय की कोई कमी नहीं थी। सौ-पचास रोज मिल जाते। वे उसे आपस में बाँट लेते। कभी-कभी बराबर बाँटने में परेशानी होती। कभी कम मिलने से बाँटना अच्छा नहीं लगता और उसे किसी के पास छोड़ रखना भी जी को कचोटता।

वे कभू-कभार इन्हीं झटकों से एकाध पौवा मिल -बाँटकर पी लेते। बस यही कभू-कभार कब रोजाने में बदल गया किसी को भनक नहीं लगी। खुद लाभचंद को भी नहीं। इस तरह कल का सीधा -सादा होनहार लाभचंद आज का बेवड़ाराम हो गया।

विजय के साइकिल सीखने से किसी को लाभ हो न हो , लाभचंद का काम बैठे-बैठे होने लगा। जिन खोजा तिन पाइयाॅ गहरे पानी पैठ।

लाभचंद को जब भी पीने की इच्छा होती, विजय को भट्ठी भेज देता। विजय बाप का कहना जरूर मानता। इससे विजय को भी फायदे होते। एक तो उसे सायकल चलाने मिलता। थोड़ी -बहुत जेबखरचा और सबसे बड़ी बात पढ़ने के नाम पर डाँट नहीं खानी पड़ती।

इसी बहाने वह लाभचंद का दुलरवा भी हो गया। दुलरवे का दस दोष माफ। यह बात लाभचंद के और दो बेटों में नहीं थी।

समाज के विकास में जितना महत्व शिक्षा और साधन का होता है उससे कहीं ज्यादा संस्कार का होता है। संस्कार ही है जो समाज को नई दिशा और ऊँचाईयाँ देता है। इसके अभाव में समाज शिक्षित हो सकता है लेकिन सभ्य नहीं हो सकता, साधन सम्पन्न हो सकता है लेकिन विकसित नहीं हो सकता।

वास्तव में समाज की छवि संस्कार ही बनाता और संस्कार ही बिगाड़ता है। एक संस्कार ही तो है जिससे आदमी-आदमी, समाज और समाज, पीढ़ी और पीढ़ी के बीच अपनी पहचान बनाता है। संस्कार, कोई पेट से तो धरकर पैदा नहीं होता। बच्चे बड़ों को देख-सुनकर ही सब सीखते हैं। यह मानव प्रजाति की एक मौन और सतत साधना है।

विजय के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ। वह पिता के लिये दारू लाता। चुपचाप खडे़-खडे़ देखता रहता। जब लाभचंद पूरी बोतल उड़ेल लेता तब विजय खाली शीशी बेचने के लिये एक जगह सकेलकर रख लेता।

बच्चे मन के जितने सच्चे होते हैं उतने ही कच्चे भी होते है। वे किसी बात के परिणाम को नहीं सोचते। उनका जिज्ञासु मन किसी चीज को केवल जानने -करने का इच्छुक होता है।

एक दिन उनके मन में हुआ कि आखिर इस दारू में क्या खास बात है ?

उसने शीशियों में बची खुची थोड़ी-थोड़ी शराब एक शीशी में सकेल ली। आधी कप शराब उसके मन को मथने और मजा देने के लिये काफी थी। मजा आखिर मजा होता है।

फिर क्या ! यहीं से विजय का विजयक्रम शुरू हो गया। वह भट्ठी से लाते -लाते रास्ते में ही कुछ शराब गटक जाता और उसकी जगह पानी मिला देता। इस तरह विजय अपने बाप से मिले संस्कार में पलने -बढ़ने लगा।

आज विजय लगी-लगी में बहुत ज्यादा शराब उड़ेल गया। आज पहिली बार पूरी बोतल और शराब दोनों का मन पानी-पानी हो गया। आज विजय के रूप में लाभचंद की भावी छवि दिख रही थी।

विजय के लाकर रखते ही लाभचंद पूरी बोतल एक साँस में गटक गया। पर यह क्या ? एकाएक लाभचंद के माथे पर आड़ी तिरछी रेखाएॅ उभरने लगी। उसे समझने में जरा भी देर नहीं लगी। भले वह पहले से पीया हुआ था।

लाभचंद के गले में एक कड़वा घूट अटक सा गया। वह गुस्से में आग बबूला हो गया। चिल्लाते हुए उठ खड़ा हुआ।

“ अबे विजय ! कहाँ है रे तू ”

विजय बरामदे के पास खड़ा टुकुर - टुकुर सब देख था मानो वह मौके का बारीकी और मुस्तैदी से मुआयना कर रहा हो। पूरे घर में एक पल के लिए सन्नाटे ने अपनी बिसात बिछा दी। पर शायद विजय इस बात से पहले से ही वाकिफ हो।

या शायद वह यही परिणाम चाहता रहा हो। वह चुपचाप वहीं खड़ा रहा। अविचलित।

लाभचंद लड़खड़ाते कदमों से विजय के पास गया और बोला -“ अपने बाप से गद्दारी करता है। तेरी ऐसी की .......................” और लाभचंद के बस्साते मुंह से गोबर -सी भद्दी गाली का लोंदा भद्द से गिरा।

घर के सारे लोग बोकबाय देख रहे हैं। डरे हुए-से सहमें हुए-से। निश्चित तो नहीं कहा जा सकता कब से, लेकिन बीते कुछ दिनों से उस घर में एक रिवाज ने अपने पांव पसार लिया है कि जब लाभचंद बोलता है तब पूरे घर में किसी और को कुछ कहने बोलने का हक नहीं होता। न दरो -दीवार न छत, न धरती न आसमान। बोलता है तो सिर्फ और सिर्फ लाभचंद।

लेकिन विजय ने घर की उस बरसो पुरानी परिपाटी को आज तोड़ दिया । उसने रूआँसा होकर कहा - “ गाली मत दो पापा ”

लाभचंद विजय के बाल पकड़ लिए और झिंझोड़ने लगा - “ अरे ! तू मुझे सिखाता है। बता ...... बता तूने शराब पी है या नही ?” मारे गुस्से के लाभचंद की आँखें लाल हो गयी। उनके होंठ तितलियों के पंख की तरह फड़फड़ा रहे थे। लगातार, बिना किसी रूकावट के।

अचानक विजय छिटककर दूर हो गया और जोर जोर से चिल्लाते हुए रोने लगा - “ हाँ, हाँ। मैंने शराब पी है ! पी है !! पी है !! आप भी तो पीते हैं। बड़े होकर बच्चों के सामने गाली बकते हैं। मारने के पहले शर्म तो आपको  आनी चाहिये। ”

इसी बीच झम्म - सी एक जोरदार आवाज बहुतेरे कानों में गूँजी। सब के सब सवाली आँखों से एक दूसरे का मुंह देखने लगे। मानो पूछ रहे हो - क्या हुआ ?

शायद वह आवाज किसी थपरे की हो।

या हो न हो शीशा टूटने की आवाज हो।

दोनों की भी हो सकती है।

कभी-कभी दो बिन्दुओं के बीच अंतर करना असम्भव सा हो जाता है जिस तरह बहते पानी में लकीर खिंचना। आज शायद यही असम्भव उस घर के आंगन में किसी बाहुबली की तरह पैर जमाए अडिग खड़ा है।

बस, इतना सुनते ही लाभचंद का सारा नशा पानी-पानी हो गया।

शायद ! वह आवाज थपरे की ही हो। शायद !!

वह थपरा लगा तो आखिर किसके गाल पर ? विजय, लाभचंद या समाज के गाल पर ?

थपरा चाहे किसी के गाल पर लगा हो, लगा तो जरूर।

लेकिन आज सिर्फ गुड़ी ही नहीं पूरे गाँव में केवल एक ही गूंज है - थपरे की !

धर्मेन्द्र निर्मल

ग्राम पोस्ट कुरूद भिलाईनगर

जिला दुर्ग (छत्तीसगढ़)

490024

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी // थपरा // धर्मेंद्र निर्मल
कहानी // थपरा // धर्मेंद्र निर्मल
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhseIcfFH67_w5R9ReL1to9J6WFz9sj19zYUvCyieAc3zqeQaVUquuqZKsW12yQUHm50FuyJqyS4T3U0u45FLZ-T5LmOVHrzd9H4wjDLhFCiuUVq7ebGTlc8i-r9THkd7byXl5y/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhseIcfFH67_w5R9ReL1to9J6WFz9sj19zYUvCyieAc3zqeQaVUquuqZKsW12yQUHm50FuyJqyS4T3U0u45FLZ-T5LmOVHrzd9H4wjDLhFCiuUVq7ebGTlc8i-r9THkd7byXl5y/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/10/hindi-kahani-thapara-dharmendra-nirmal.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/10/hindi-kahani-thapara-dharmendra-nirmal.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content