विजय दशमी के अवसर पर यहाँ, मुहल्ले में, रावण के पुतले का दहन करने के लिए मुहल्ले के नर-नारी और बच्चे जुटे हुए थे। रावण का पुतला भव्य, आकर्षक...
विजय दशमी के अवसर पर यहाँ, मुहल्ले में, रावण के पुतले का दहन करने के लिए मुहल्ले के नर-नारी और बच्चे जुटे हुए थे। रावण का पुतला भव्य, आकर्षक और सुंदर दिख रहा था। शहर में और भी भव्य पुतले बनाये गये थे। एक व्यक्ति, जो नगर के अन्य सुप्रसिद्ध रावणों को देख आया था, कह रहा था - ’’यार, इस साल सरकारी स्कूल मैदानवाला रावण गजब का बना है।’’
’’और म्युनिसिपल मैदानवाला?’’ साथी ने पूछा।
’’वो भी है, पर उतना अच्छा नहीं है।’’
एक अन्य ने कहा - ’’अबे चुप! अच्छे रावण-बुरे रावण के बच्चे। हमारे पुतले में क्या खराबी है? ये बता, तूने नीलकंठ देखा है। आज नीलकंठ का दिख जाना बेहद शुभ माना जाता है। ...... नहीं देखा न? तो यहाँ देख ले, मोबाइल में।’’
मुहल्ले में सफाई अभियान चलानेवालों का एक दल भी है। ये भी पधारे थे। रावण का पुतला सबको आकर्षित करता है। इस समय भी वह सबको आकर्षित कर रहा था, सबको प्रभावित करता है। बल्कि कई लोगों की प्रेरणा का स्रोत रावण का पुतला ही होता है। सफाई अभियानवाले लोग भी इस पुतले से प्रभावित दिख रहे थे। रावण के पुतले की प्रेरणा का परिणाम होगा कि सफाई के नये-नये नुस्खे उन लोगों के मन में अंदर-बाहर हो रहे थे। तभी नोट बंदी के विचार की तरह का एक नेक विचार उन लोगों के मन में आया - ’मुहल्ले की सफाई तो हो ही रही है, समाज के अंदर के अवगुणों की भी सफाई होनी चाहिए। बाहरी सफाई की तुलना में अंदर की सफाई अधिक जरूरी है। तभी अवगुण मुक्त समाज का निर्माण संभव हो पायेगा। और जाहिर है, समाज के अवगुणों की सफाई करने के लिए सबसे पहले समाज के अंदर के रावणों की सफाई होनी चाहिए।’
’वाह! वाह! कितना नेक विचार है। समाज से समाज के रावणों का निस्तारण तो होना ही चाहिए।’ उपस्थित लोगों ने भी अपने हजार-हजार नीलकंठों से इस नेक विचार को सराहा।
विचार नेक था। एकमत से मुहल्लेवालों की सराहना भी मिल रही थी। अतः इसके क्रियान्वयन के लिए मुहल्ले के तमाम विचारवान लोगों के द्वारा, समाज से रावणों के निस्तारण के लिए तत्काल ’रावण निस्तारण कमेटी’ का गठन कर लिया गया। शुभ कार्य के संपादन में विलंब नहीं करना चाहिए। रावण निस्तारण की योजना पर विचार मंथन जरूरी था। लिहाजा, कमेटी के सारे सदस्यगण रामलीला के मंच पर आकर बैठ गये। रामलीला कार्यक्रम को कुछ देर के लिए स्थगित कर दिया गया। रावण निस्तारण की योजना का ब्लूप्रिंट रावण दहन के आलोक में बने, इससे अच्छी बात और क्या हो सकती थी।
विचारणीय प्रश्न था - रावण किसे कहा जाय?
विचारमंथन का दौर शुरू हुआ। सभी सदस्य अपने-अपने विचार प्रस्तुत करने लगे। किसी ने कहा - जिस व्यक्ति के अंदर रावण का एक भी अवगुण होगा, उसे रावण मान लिया जाना चाहिए।
कमेटी के अध्यक्ष ने कहा - ’’इससे काम नहीं चलेगा। इसके लिए तय करना पड़ेगा कि रावण में कौन-कौन सी बुराइयाँ थी, कौन-कौन से अवगुण थे। कुछ न कुछ अवगुण तो सबके अंदर होता है, वरना बाबाजी को कहना नहीं पड़ता - ’प्रभु मोरे अवगुण चित न धरो।’’
किसी ने कहा - ’’रावण अहंकारी था।’’
’’अहंकार किसके अंदर नहीं होता? फिर तो सारे लोग रावण मान लिये जायेंगे। यह नहीं चलेगा।’’
’’रावण ने देवताओं को बंदी बनाकर रखा था। अग्निदेव, पवनदेव और जल के देवता - वरुणदेव को उन्होंने कैद करके रखा था।’’
’’ऐसा उन्होंने अपने राज्य की जनता की भलाई के लिए कर रख था। इसका मतलब तो यही हुआ न कि उसके राज्य में जल संकट नहीं था। वायु प्रदूषण नहीं था। आजकल क्या हम लोग पानी को बोतलों में बंद करके नहीं रखते हैं? आग को माचिस की डिबियों में कैद करके नहीं रखते हैं? यह तो कोई बुराई नहीं हुई।’’
’’वह ऋषियों के यज्ञ-तप का विध्वंश करता था।’’
’’अपने धर्म और अपनी संस्कृति की रक्षा करना हर राजा का कर्तव्य होता है। जो ऋषि अपने धर्म के प्रचार के लिए उनके राज्य की सीमा में जाकर यज्ञ करता था, उन्हीं के साथ वह ऐसा करता था। आज की सरकारें ऐसा नहीं करती हैं क्या? उनके इस कृत्य को भी अवगुण नहीं माना जा सकता।’’
’’जितने भी भ्रष्ट, मुनाफाखोर, ठगी, कालाबाजारी करनेवाले लोग हैं, उन सबको रावण मान लिया जाना चाहिए।’’
’’देखिए! ऐसा कोई भी अवगुण रावण में नहीं था। इसलिए ऐसा करनेवालों को रावण नहीं माना जा सकता। ऐसा करनेवालों को रावण मान लेने से रावण का अपमान होगा। रावण जैसे विद्वान का अपमान नहीं किया जा सकता। यह तर्क नहीं चलेगा।’’
’’उसने सीता का अपहरण किया था।’’
’’हाँ! यह विचारणीय प्रश्न है। ध्यान दिया जाय। रावण ने ऐसा जरूर किया था। परंतु उसने सीता की पवित्रता और पतिव्रता धर्म का ध्यान भी रखा था। सीता का अपहरण उनकी युद्धनीति का अंग रहा होगा। स्त्रियों का अपहरण सभी कालों में होता रहा है। सवाल स्त्रियों के अपहरण का नहीं, उनके शोषण का है। स्त्रियों का शोषण करनेवाला, स्त्रियों को अपमानित करनेवाला, चाहे कोई भी हो, उसे रावण ही माना जाना चाहिए।’’
इस तर्क को सुनकर सबको सांप सूँघ गया।
’’उसने अपनी भाभी, कुबेर की पत्नी के साथ अनाचार किया था।’’
’’पराई स्त्रियों के साथ अनाचार तो इन्द्र ने भी किया था। फिर भी वह अब तक देवताओं का राजा है। उसे मृत्युदण्ड तो नहीं दिया गया था। शाप जरूर दिया गया था। शाप उस समय का दण्डविधान रहा होगा। इसके लिए रावण को भी शाप दिया गया होगा। पर स्त्री के साथ अनाचार करनेवाला देवता और राक्षस, कोई भी हो सकता है। ऐसा कृत्य समाज में सदैव से होता आया है। अब भी हो रहे हैं। ऐसे लोगों को दण्डित करने के लिए इन्द्रवाला तरीका अपनाया जाना चाहिए ........।’’
इन तर्कों से ’रावण निस्तारण कमेटी’ के सदस्यों का जो धैर्य पहले ही टूटने लगा था, अब तो टूट-टूटकर बिखरने लगा। सदस्यगण आपस में ही तू-तू मैं-मैं पर उतर आये।
तब तक दर्शकों का धैर्य भी टूट चुका था। भीड़ से ’जय श्रीराम’ के जयकारे के साथ आवाजें आने लगी - ’’रावणों, मंच खाली करो। रामलीला चालू करो।’’
भीड़ की उग्रता देखकर ’रावण निस्तारण कमेटी’ के सदस्य तुरंत मंच खालीकर इधर-उधर हो गये। समाज के रावणों का निर्धारण होते-होते रह गया।
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