कुमार रवीन्द्र दिये जलाने की है बेला रात अमावस घना अँधेरा दिये जलाने की है बेला ड्योढ़ी पर गणपति का दीया आँगन में पुरखों की बाती क...
कुमार रवीन्द्र
दिये जलाने की है बेला
रात अमावस
घना अँधेरा
दिये जलाने की है बेला
ड्योढ़ी पर गणपति का दीया
आँगन में पुरखों की बाती
कलश-धरी जोती में बाँचें
लछमी मइया सुख की पाती
देवा काटें
दुख बरसों का
अवधपुरी ने जो है झेला
महल और कुटिया दोनों में
नेह-भरा होवे उजियारा
भीतर जो बहती है गंगा
जल उसका हो कभी न खारा
विपदा-कष्ट
न व्यापे जग को
कोई होवे नहीं अकेला
नीचे दीयों की मजलिस है
ऊपर है तारों की महफ़िल
जो उजास है बसा आँख में
वही बने यादों की मंज़िल
उधर यक्षपुर
इधर रामगिरि
दोनों ओर दियों का मेला
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मंजुल भटनागर
क्षणिकाएं १
अमावसी रात में
दीप तुम हो दिव्यार्थ
दीप है घर पाहुना
देता नूतन प्रकाश
सुन्दर किसलय संग
अंबुज पर
माँ लक्ष्मी का वास
दीप जले अनवरत
हर ओर हो
माँ लक्ष्मी का वास .
२
दीप पुरुष है
दीप है प्रकृति
मिटटी पानी की देह रची
ज्योति दीप की
प्राण गति
दीप मनु है
बात्ती इरावती
दीप वेदों की है अनुकृति।
३
दीप पर्व है
दीप है गति
दीप स्वर्ग की है स्वीकृति
अन्धकार में
बन कर्मरत
दीप जलाये रखना
हर चौखट चौराहों पर
उजड गए जो
उन दरियारों पर
एक दीप जलाये रखना
एक आस जगाए रखना
४
आँधियों से भी
बुझे नहीं
दीप अनवरत
जलता रहे
भीषण झंझावात में
पथ दिखाता रहे
टपकती बरसात में भी
बुझे नहीं कोई आस
द्वार ,छप्पर बंधे रहे
दीप तेरा आलोक फैले
मन में तन में
दीप्त हों दिशाएं
हर मन में उम्मीद का दीप जलता रहे
-----.
घुप अन्धेरा क्षितिज पर लेटा
द्वार भोर का नहीं दीखता
सघन कालिमा पसरी जाए
पग डंडी भी नज़र ना आये
राहो को दमकाता दीपक,
राहें नयी दिखाता दीपक
लालच पसरा आतंक फैला
अनाचार ने तांडव खेला,
मनुष्यता है धूमिल हाय
राह कोई भी नज़र ना आये
सही राह दिखाता दीपक,
घर अपने पहुंचता दीपक
रिश्ते जो भी रूठ गए हैं
साथी जो थे छूट गए हैं
मन के कोने लीप लाप कर
बरसो की धूल हटाता दीपक,
हर चौखट और देहेरी पर
फिर से दीप जलाता दीपक
एक हो मेरा एक तुम्हारा,
दीप पंक्ति से मिटे घनेरा
चाँद गगन का दीप सही
दीप मृतिका ने उकेरा
दीपावली का दीप जले तो
अज्ञान तिरोहित , हो नया सवेरा
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सुशील शर्मा
हाइकु -108
दीवाली
मन का दीया
जलती रहे बाती
प्रेम का तेल।
दीपमालाऐं
झिलमिल सितारे
जमीं पे सारे।
दीपक तले
छिपता है तिमिर
कहाँ भागता।
सजा रंगोली
बैठीं हूँ दरवाजे
आओ माँ लक्ष्मी।
आई दीवाली
अंधयारी मावस
बनी दुल्हन।
दीपक की लौं
अन्धकार चीरती
अकेली खड़ी
बम फटाखे
अहंकार मिटाके
धूम धड़ाके।
घना तमस
उजियारे की आस
दीये के पास।
नेह के दीये
ज्योतिर्मय ह्रदय
जीवन जिए।
नन्हा दीपक
दूर तक फैलाये
आशा की आभा
हर आँगन
अंजुरी भर कर
बिखरा प्रेम।
दिव्य दीवाली
कलश द्वार द्वार
बंदनवार।
मुक्ति किरण
प्रेम अवतरण
तम हरण।
अटल प्रण
अंतस का दर्पण
ज्वलित क्षण
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दोहे बन गए दीप
विडाल (विन्यास ---3 गुरु 42 लघु )
जलत बुझत लहरत अचल ,दीप जलत मनमीत।
थिरक थिरक गदगद सजल ,मन मन मिलत सप्रीत।
नयन भरत उमगत मगन,सुखमय मन चित चोर।
लिपटत सिमटत झपट कर सजग सहज पिय ओर।
करभ (विन्यास - 16 गुरु 16 लघु )
ज्योतिर्मय आकाश है उजियारे की भोर।
अँधकार मन का मिटा ,दीप जलें चहुँ ओर।
मन अनंग सा मचलता ,पिया मिलन की आस।
दीवाली सी झूमती ,बाँहों में आकाश।
धनतेरस में लाइए ,सोना चांदी खास।
धन्वन्तरि को पूजिये ,घर सदा लक्ष्मी वास।
माटी का दीपक जले ,देहरी छत मुंड़ेर।
सजी दिवाली प्रेम की ,पिय न लगाओ देर।
पयोधर (विंन्यास --12 गुरु 24 लघु )
माटी के इस दीप में जन जन का उत्कर्ष।
कटे तिमिर की रात सब नूतन नवल विमर्श।
माटी दिया जलाय कर ,तमस हरो सब आज।
ज्योतिर्मय मन को करो पूरण हों सब काज।
कमल अमर संग उर्मिला ,दीप त्रिवेणी साध।
उत्साहित सब को करें ,विनय सुधीर अबाध।
वानर पान (विंन्यास --10 गुरु 28 लघु )
ज्योति सदा मन में जले ,अंतर करत प्रकाश।
तिमिर हरे सुखमय करे ,जीवन भर दे आस।
स्वान ( विन्यास --2 गुरु 44 लघु )
नटखट मन हुलसत फिरत ,चहक चहक छवि रूप।
मचलत विलखत नयन तन ,धरि धरि अगम सरूप।
व्याल (विन्यास --4 गुरु 40 लघु )
जलत जलत मन बुझत है ,गिरत गिरत उठ जात।
सहत सहत तन तनत है,सजल सजल पुनि गात।
मच्छ (विन्यास --7 गुरु 34 लघु )
जल जल कर दीपक कहत ,मत कर रे अभिमान।
तिल तिल कर मिट जात है ,तन मन धूलि समान।
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आचार्य बलवन्त
चलो, दिवाली आज मनाएं
हर आँगन में उजियारा हो
तिमिर मिटे संसार का।
चलो, दिवाली आज मनाएं
दीया जलाकर प्यार का।
सपने हो मन में अनंत के
हो अनंत की अभिलाषा।
मन अनंत का ही भूखा हो
मन अनंत का हो प्यासा।
कोई भी उपयोग नहीं
सूने वीणा के तार का ।
चलो, दिवाली आज मनाएं
दीया जलाकर प्यार का।
इन दीयों से दूर न होगा
अन्तर्मन का अंधियारा।
इनसे प्रकट न हो पायेगी
मन में ज्योतिर्मय धारा।
प्रादुर्भूत न हो पायेगा
शाश्वत स्वर ओमकार का।
चलो, दिवाली आज मनाएं
दीया जलाकर प्यार का।
अपने लिए जीयें लेकिन
औरों का भी कुछ ध्यान धरें।
दीन-हीन, असहाय, उपेक्षित
लोगों की कुछ मदद करें।
यदि मन से मन मिला नहीं
फिर क्या मतलब त्योहार का ?
चलो, दिवाली आज मनाएं
दीया जलाकर प्यार का।
आचार्य बलवन्त हिंदी विभागाध्यक्ष,
कमला कॉलेज ऑफ मैनेजमेंट स्टडीस
450, ओ.टी.सी.रोड, कॉटनपेट, बेंगलूर-560053 (कर्नाटक)
मो. 91-9844558064 , 7337810240
Email- balwant.acharya@gmail.com
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शशांक मिश्र भारती
दीवाली आ गई
दीपकों के साथ
नूतन विश्वास
आदर्शों-परम्पराओं का सम्बल
संघर्ष कर बढ़ने को-
झेल झंझा ‘दमकने-दमकाने को
आ गई दीवाली,
सज्जन या सरिता
तरू या जलद
सर्व लोक कल्याणार्थ
सृजन से विनाश तक
मात्र-परार्थ
तपते अज्ञान, अनाचार अनैतिक तत्वों-
से जनमानस को उद्वेलित बना
डालने को क्रान्ति बीज
इस धरा भरत भूमि पर
दीपावली,
हाँ ज्योतिर्मय- मंगलकर्ता
आभामयी दीवाली।
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दीपावली
स्वागत् है
तू आ गयी
यहीं पर इस वर्ष
शुभ दीपावली।
अब जाचुकी है
बरसात
पर-
आने वाली हैं सरदी की रातें
तू आ पहुंची है धरा पर
आभा फैलाने वाली
सरद ऋतु आने का
पूर्व सन्देश देने वाली
शुभ दीपावली
आयी है तू
मौसम के होठों पर
मुस्कान बिखेरती
आंगन में किलकारियां लेती
देश में
एक नव सुखद
प्रभात देती
नूंपुरों की ध्वनि जगाती
कोमल पुष्पों का हार बनाती
स्वच्छ वसन पहने
शुभ दीपावली
आती है तू
वर्ष में एक बार
आकर प्रत्येक दिवस अनुग्रहित कर हमें
अपना प्यार।
कर दें
नन्हें, कोमल हस्तों वाले
बच्चों को
आनन्द में हर्ष-विभोर
बरसात में घूमने वाले
बच्चों के लिए
बनती है
तुम्हारे आने पर
निकेतों के ऊपर
जलने वाले असंख्य दीपों की आभा
इन्दु की चमक के समान
तुम्हारे
वसन बनते हैं
आलयों की अट्टालिकाओं पर
असंख्य दीपकों की प्रभा के समान
तू
आ खड़ी है
समय को पीछे छोड़
सामने मेरे
पवित्र
सुख का सन्देश लिए
स्वर्णिम मूर्ति से युक्त
शुभ दीपावली ।
--
दीप का संदेश
पर्व दीवाली का फिर आया है
उत्साह नया चहुँ ओर छाया है,
मिटे अंधेरा अपने अन्दर का
यही संदेश दीपक लाया है,
बाहर सभी ने जलाये दीपक
अंधेरा अन्दर छाया गहरा है,
तब बोलो कैसी दीवाली-
विकृतियों का लगा पहरा है,
दीप जलाते प्रत्येक वर्ष है
क्या अन्र्तमन जगमगाते हैं,
घर -गलियां साफ कर देते
दूसरों पे कलुष मिटाते हैं,
कल नहीं तो आज सहीं
दीप का अर्पण जान लो,
सुख,समृद्धि,विकास,स्नेह
अपनत्व बढ़ाना मान लो,
नन्हा दीपक बुझते-बुझते
फिर जल उत्साह बढ़ाता है,
सबके मन का छँटे कुहासा
हर लौ से कह जाता है।।
---------------
हिमांशु सिंह 'वैरागी'
आख़िरकार आ ही गया ना,
यम द्वितीया का त्यौहार,
कहाँ है वो रोली,
वो अक्षत,
कहाँ गया वो हमारा परस्पर प्रेम,
छीन लिया ना तुझे,
मुझसे तेरा वो आतिफ़ कहार.
आखिरकार आ ही गया ना,
भातृ द्वितीया का त्यौहार,
कहाँ है वो ओली,
वो गत,
कहाँ गया वो हमारा फ़ाज़िल प्रेम,
तोड़ दिया ना मुझे,
समझकर एक सतार.
आख़िरकार आ ही गया ना,
भाऊ बीज का त्यौहार,
कहाँ है वो जोली,
वो विक्षत,
कहाँ गया वो हमारा अपरिमित प्रेम,
भुला दिया ना मुझे,
समझकर एक चमार.
--
oooooooooooooooooooooooooooooo
हमने सोचा था, हम साथ रहेंगे...
हर विकट-प्रसंग में,
एक-दूसरे के आसंग में,
संग-संग में,
दुनिया की पासंग में,
संगम सा हम साथ बहेंगे...
हमने सोचा था, हम साथ रहेंगे...
मुझे पता था,
लोग मुझे भंडर कहेंगे
मुझे दुःख नहीं इस बात का
क्योंकि आस थी मुझे,
कि आप मुझे अपना कहेंगे...
हमने सोचा था, हम साथ रहेंगे...
एक मंजुल पे,
एक वंजुल के,
छाँव में,
उस छाया की तरह
परिरंभण रूप दिखेंगे...
हमने सोचा था,
हम साथ-साथ
एक आसनी पे
अपनी जीवनी लिखेंगे...
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Poet - Sardar Jaspal Soos, Faisalabad, Pakistan
Translator – Vina Bhatia, New Delhi, India
पंजाब का हाल
फूलों जैसी धरती पर
नशे का बिछा दिया जाल
कब्रों-सा हो गया
मेरे पंजाब का हाल
नशे की लत में घुलते
रिश्तों पर जुल्म हैं करते
बोलना भी हो गया कहर
फैलता नशे का जहर
कब्रों-सा हो गया
मेरे पंजाब का हाल
बाप के मोह से दूर
माँ को भी गए भूल
भगत सिंह के सच्चे वारिस
चिट्टे में हो गए धूल
जिधर देखें हर कोई फंसा
लालच का बिछा है जाल
कब्रों-सा हो गया
मेरे पंजाब का हाल
मिट्टी में जहर घुल गया
कर्जे में भी वो फंस गया
पेट जगत का भरने वाला
देखो खुद भूखा मर गया
मजबूरी के साथ लड़ता
हाल हुआ उसका बेहाल
कब्रों-सा हो गया
मेरे पंजाब का हाल
ऐसा हाल अगर रहा
सब खत्म हो जाएगा
हरा-भरा पंजाब मेरा
पतझड़-सा हो जाएगा
रूह देखो काँप जाए
आए जब भी ये ख्याल
कब्रों-सा हो गया
मेरे पंजाब का हाल़
----------------------.
सीताराम साहू
आज मेरा मन सखी री चाँद के वश हो गया ।
हर घड़ी लगता मनोरथ आज पूरा हो गया ।
तुम मेरे जीवन की सांसें तुम मेरी हो आत्मा ।
उसको न महसूस कर पाए तुम्ही परमात्मा ।
तेरे बिन जीना नहीं साजन मुझे कुछ हो गया ।
हर घड़ी लगता मनोरथ आज पूरा हो गया ।
जीवनी मेरी तुम्हीं तुम ही मेरी आतमकथा ।
साथ तेरे रह रही जब से नहीं कोई व्यथा ।
तू मिला सुन्दर सुहाना सपना पूरा हो गया ।
हर घड़ी लगता मनोरथ आज पूरा हो गया ।
लगता तेरे बिन नहीं है कुछ भी मेरी जिंदगी ।
तू ही ईश्वर प्राण प्रियतम तू है मेरी बन्दगी ।
तेरे चिंतन के बिना जीवन अधूरा हो गया ।
हर घड़ी लगता मनोरथ आज पूरा हो गया ।
----------.
कोई पूछता है मुझसे मेरी जिंदगी की कीमत,
मुझे याद आ रहा है तेरा हल्के मुस्कुराना ।
मेरी उलझी जिन्दगी में कभी हाल दिल न पूछा,
तब याद आ गया है गुजरा हुआ जमाना ।
बचपन था सबसे अच्छा दिल चाहे हंस ले ,रो ले,
अब रो भी नहीं सकते हंसने का न बहाना ।
अब डर रहा हूं डर से पत्थर ही हो न जाऊं,
बदली तेरी अदाएं बदला हुआ जमाना ।
तुझे भूल भी तो जाऊ मेरे बस में अब नहीं है,
तेरे जख्मी दिल की बातें वो गम में मुस्कुराना ।
तेरी आरजू यही है दिल मेरा अब भी तड़पे,
चाहत तो मेरी भी है दिल में तुझे बसाना ।
------------.
बहुत वर्षों में जागा हूं तुम्हारा प्यार पाने में ।
मुझे लग जायेगी सदियां तुम्हें राधे भुलाने में ।
तुझे बांटा नहीं दुख-दर्द रक्खा है छुपा दिल में ,
ये जीवन बीत जायेगा दर्द तुझको बताने में ।
न कोई आरजू जीवन की नहीं कोई तमन्ना है,
तुझे न पा सका कोशिश बहुत की तुमको पाने की ।
तुम्हारे बिन ये जीवन कैसा होगा कह नहीं सकता।
जमाने भर ने कोशिश की तेरे दर को भुलाने की ।
मेरी उलझी समस्याओं को तुमने दिल से सुलझाया,
संवर जीवन गया चाहत थी शायद तुमको पाने की है।
निभाया फर्ज तुमने मेरे खातिर मिट गए खुद ही,
बहुत बेशर्म हूँ हिम्मत नहीं वादा निभाने की ।
जो न दे रोशनी किस काम का दीपक भला राधे,
जरूरत ऐसे दीपक की नहीं, मिट्टी बनाने की ।
--------------.
मुरसलीन साकी.
ऐ दूर जाने वाले तेरी याद आयेगी.
आंखें गुलाब होंगी नजर झिलमिलायेगी.
तू साथ था बहार मेरे साथ साथ थी.
तू दूर है तो अब के खिजां मुस्करायेगी.
उठेगी हसरतों से नजर बाम की तरफ.
इक आह सर्द मेरे जिगर को जलायेगी.
इक आग तन बदन मे मेरे फैल जायेगी.
जब आसमां पे काली घटा गुनगुनायेगी.
गुल हों कि खार हों कि कली हो या हो चमन.
सब रूठ जायेंगे तू अगर रूठ जायेगी.
लखीमपुर खीरी यू० पी०
--------------.
संस्कार जैन
अक्सर सोचता हूँ आखिर क्या रखा है
मुड़कर देखने में,
एक गुज़रे वक़्त के पन्नों को
फिर से पलटने में,
फिर
इस सोच का एक लम्हा
ऊँगली थाम के ले जाता है
वापिस तुम्हारी ओर,
और
दिखा जाता है एक झलक जिंदगी की,
तुम्हारी उन चमकती आँखों में.....
------.
फूलसिंह कुम्पावत
(1) आतंकवाद
देश की धरा पर खूनी मंजर छाया ,
अंधकार का जहर भरा खंजर लाया ,
हिंसा की जंजीर ये लाया ,
जब आतंकवाद अपने देश में आया ।
इंसानियत की मौत का पैगाम ये लाया ,
मानवता की चोट का आलम ये लाया ,
विकसित स्थिति को बिगाड़ने ये आया ,
जब आतंकवाद अपने देश में आया ।
समस्याओं का पिटारा ये लाया ,
दानवों का भंडारा ये लाया ,
मजबूत इरादे को मिटाने आया ,
जब आतंकवाद अपने देश में आया ।
चहुं ओर युद्ध की सूचना ये लाया ,
मौत से भरी वेदना ये लाया ,
प्रेम के मायने भुलाने आया ,
जब आतंकवाद अपने देश मै आया ।
कमर देश की तोड़ने ये आया ,
अमन-चैन मिटाने ये आया ,
अपनों का श्राद्ध कराने ये आया ,
जब आतंकवाद अपने देश मैं आया ।
देख आतंकवाद का फंदा, मिटाने इसे मैं आया ,
पैरों में ताकत दिलों में जोश दिलाने मैं आया ,
भावी पीढ़ियों की जान बचाने मैं आया ,
श्रद्धांजलि आतंकवाद को देने मैं आया ,
जब आतंकवाद मेरे देश में आया ।
(2) बाल -विवाह का आविष्कार
जबरन शादी की जंजीरों में जकड़कर ,
रीति-रिवाजों का नकाब ओढ़ाकर ,
बंधुआ मजदूर के सामान पकड़कर ,
अक्षय तृतीया के दिन खासकर ,
बाल -विवाह का आविष्कार हमने कराया ।
मानव तस्करी सामान अपराध गढ़ाकर ,
अनुच्छेद 14 व 21* के अधिकारों को जलाकर ,
कानून के विरुद्ध कार्य अपनाकर ,
अठारह साल से कम उम्र में विवाह करवाकर ,
बाल-विवाह का आविष्कार हमने कराया ,
बाल-विवाह का आविष्कार हमने कराया ।
अभिशाप बाल-विवाह का जानकर ,
आत्ममंथन से इसे सुलझाया ,
जागरूकता की ज्ञानाग्नि से इसे जलाकर ,
खिलाफ इसके कदम उठाकर ,
बाल-विवाह का आविष्कार हमने भुलाया ,
बाल-विवाह का आविष्कार हमने भुलाया ।
अनुच्छेद 14 = बराबरी का अधिकार
अनुच्छेद 21 = जीने का अधिकार
परिचय :
नाम - फूलसिंह कुम्पावत
ई-मेल :phoolsinghkumpawat@gmail.com
संपर्क : 09460400552
जन्मतिथि- 14 जुलाई, 1985 ई.
शिक्षा- बी. एस. सी. (रसायन विज्ञानं), पर्यावरण और सतत विकास में पी.जी डिप्लोमा , जलग्रहण प्रबंधन में डिप्लोमा , एल. एल. बी (M.D.S.U)
सम्प्रति- रसायनज्ञ Chemist पावर प्लांट ( श्री सीमेंट ब्यावर)
स्थायी पता- गांव / पोस्ट - इटंदरा , तहसील - रानी , जिला - पाली (राज.) 306115
वर्तमान पता- 29,राधाकृष्ण कॉलोनी , सेंदरा रोड , होटल राजमहल के पास , ब्यावर 305901
----------------------------.
मिथिलेश राय
मैं बहुत बेकरार हूँ तुमसे बात करने को!
गुजरे हुए ख्यालों से फिर मुलाकात करने को!
जब यादें तड़पाती हैं मुझको तन्हाई में,
जिन्दगी रुक जाती है तन्हा रात करने को!
| mkraihmvns@gmail.com
----------------------.
महादेव मुंडा
शिकायत
कोई खता नहीं कोई खबर नहीं
आपको शायद
हमारी दोस्ती की कदर नहीं
हम आपको याद करते हैं
हर सांस के साथ
और आपको
शायद हमारी सांसों की फिकर नहीं
सबेरा क्या हुआ
आप सितारों को भूल गये
सूरज क्या उगा
आप बहारों को भूल गये
गुजरा क्या कुछ पल
हमारे बिना
आप हमें ही भूल गये
ऐसा भी क्या कसूर कर दिया हमने
इस तरह से गैर हमें कर दिया
माफ करना हमारी गलतियों को
जिनकी वजह से हमें आपने
याद करना छोड़ दिया
--
फिर भी तुम
बैठ जाऊँ मैं थककर
बीच राहों में
तुम कदम हमेशा
हौसलों से आगे बढा़ना
मैं बुझ जाऊँ दीपक बनकर
तुम चमकना आसमान में
सूर्य बनकर
हमारे गमों से कोई
वास्ता मत रखना
गर मैं बिखर जाऊँ
जमीं पर
धूल बनकर
फिर भी तुम
हमेशा छूना ऊँचाइयों को
आसमान बनकर
---.
वो आहत है
वो बड़ी आहत है
ये मैं नहीं कहता
उसकी चेहरा बता रहा है
कभी सामने आती है
कभी छिप जाती है
कभी मुस्कुरा कर
नजर झुकाती है
दिल में उसकी चाहत है
ये मैं नहीं कहता
उसकी चेहरा बता रहा है
वो बड़ी आहत है
उसे चाहत है मुझसे
उसे मोहब्बत है मुझसे
वो मुझे जानती है
वो मुझे पहचानती है
मेरा हर बात उसे
अच्छा लगता है
हो गयी उनको प्यार है
वो बड़ी आहत है
ये मैं नहीं कहता
उसकी चेहरा बता रहा है
वो बड़ी आहत है
-----.
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