व्यंग्य // वैश्य साहित्यकार सम्मेलन का रंगारंग कार्यक्रम // मनोज कुमार झा

SHARE:

सेठ जी शहर में साहित्य सम्मेलन करवा रहे हैं। चर्चा जोरों पर है। सेठ जी समाजसेवी पहले से थे, अब साहित्यसेवी भी हो गए। इनका छोटा लड़का दिल्ली ...


image

सेठ जी शहर में साहित्य सम्मेलन करवा रहे हैं। चर्चा जोरों पर है। सेठ जी समाजसेवी पहले से थे, अब साहित्यसेवी भी हो गए। इनका छोटा लड़का दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. कर रहा है। साहित्यिक है। श्रृंगार रस की कविताओं से एक डायरी भर रखी है। सेठ जी अपने बेटे की साहित्य प्रतिभा से गद्गद् हो गए। उन्होंने उन कविताओं का एक संग्रह छपवा दिया। बेटे ने काव्य संग्रह का समर्पण अपनी कविताओं की प्रेरणा प्रेरणा अग्रवाल के नाम किया जिनसे वह दिन-रात लगातार प्यार करता था। पाठकों के विशेष ध्यानाकर्षण के लिए उसने उनकी मोहक अदा में एक तस्वीर भी संग्रह में छपवाई थी। प्रेरणा अग्रवाल के पिता जैसा कि स्वाभाविक है, एक बड़े व्यवसायी थे। तीन बंगलों, चार कारों और आधा दर्जन देशी-विदेशी कुत्तों के मालिक थे। प्रेरणा अग्रवाल छह बहनें थीं। इस तरह से सबके हिस्से एक-एक कुत्ता हुआ।

सेठ जी इस बात से काफी प्रसन्न थे कि उनके प्रतिभाशाली पुत्र ने प्रेम करने के मामले में भी जाति-बिरादरी का ख्याल रखा और बिना भाइयों की बहन से प्यार किया जो अभी लिव-इन से होता हुआ कहीं शादी में बदल गया तो ससुर के माल के छठवें हिस्से का हकदार हो जाएगा। ससुराल की जायदाद बिरलों को ही नसीब होती है।

बहरहाल, सेठ जी ने अपने कवि-पुत्र से कहा, “बेटा, मैं तुम्हारे काव्य संग्रह का विमोचन किसी श्रेष्ठ वैश्य साहित्यकार से कराना चाहता हूं। इस अवसर पर एक वैश्य साहित्यकार सम्मेलन हो जाए तो अच्छा रहे। इस देश में तरह-तरह के साहित्यिक संगठन हैं, पर वैश्य साहित्यकारों का एक भी संगठन नहीं है। मेरी इच्छा है कि वैश्य साहित्यकारों का भी एक राष्ट्रव्यापी संगठन हो और तुम इसके संस्थापक अध्यक्ष बनो। इससे तेरे यश और कीर्ति में चार चांद लग जाएंगे। मैंने साहित्य तो कभी नहीं पढ़ा, पर सुना है कि हिंदी साहित्य में वैश्य साहित्यकारों का बड़ा योगदान रहा है। एम.ए. करने के बाद तुम इसी विषय पर पीएच.डी. भी कर लेना। अब तुम किसी ऐसे साहित्यकार का पता लगाओ जो वैश्य हों, उन्हें बुलाने की जिम्मेदारी मेरी। और सुन, तू तो विद्वान है। ‘हिंदी साहित्य में वैश्य साहित्यकारों का योगदान’ शीर्षक से एक लेख लिख डाल। सम्मेलन में वह पढ़ना।”

पुत्र ने कहा, “डैड, आपका यह विचार अनोखा है। मैं इसका पता लगाता हूं कि अभी सबसे बड़ा साहित्यकार कौन है। लेख भी लिखूंगा। याद आया डैड, जिन्हें आधुनिक हिंदी साहित्य का निर्माता कहा जाता है, वे भारतेंदु हरिश्चंद्र वैश्य ही थे। इस तरह तो साहित्य पर वैश्यों का कब्जा इतिहाससम्मत माना जाएगा। उनके ग्रुप में एक बालमुकुंद गुप्त भी थे। अपने हरियाणे के ही थे। उन्होंने ‘शिवशंभु के चिट्ठे’ लिखा था। और डैड, ‘भारत-भारती’ लिखने वाले मैथिलीशरण गुप्त, उनके अनुज सियारामशरण गुप्त ये सभी वैश्य लेखक ही थे। छायावाद के दौर में जयशंकर प्रसाद वैश्य ही थे। इनका महाकाव्य ‘कामायनी’ अपने सिलेबस में है। नई कवितावादियों और प्रगतिशीलों में अनेकों नामी वैश्य साहित्याकर हुए हैं। डॉ. जगदीश गुप्त, केदारनाथ अग्रवाल, भारतभूषण अग्रवाल, नेमिचंद जैन और भी ना जाने कितने। संभवत: जैनेन्द्र भी वैश्य ही थे, पर कन्फर्म करना पड़ेगा। अनेकों वैश्य साहित्यकार हैं डैड, पर दिमाग पर जोर डालना पड़ेगा। लेख तो मैं तैयार कर लूंगा। पर ज्यादातर साहित्यकार अपने को मार्क्सवादी कहते हैं, ये जाति-बिरादरी नहीं मानते। क्या ये वैश्य साहित्य सम्मेलन में आएंगे?”

“बेटे, मैं मानता हूं तू विद्वान है। पढ़ाई में मैं तेरे आगे कुछ नहीं हूं। तूने यह जो कहा मारकसवादी, इसके बारे में मैं कुछ नहीं जानता। पर हमारे समाज में जातिवाद के आगे सब वाद फेल हैं। और वैश्य साहित्यकारों का पता कर किसी को विमोचन के लिए तैयार कर। साहित्यकार वैश्य हो या किसी अन्य जाति का, स्वभाव से ही सुरा-सुंदरी व पत्रम्-पुष्पम् का प्रेमी होता है। हमारे लिए मांस-मदिरा वर्जित है, पर साहित्यकरों के लिए नहीं। उन्हें सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी से ही यह छूट मिली हुई है। पर बेटा, तुम परिवार की परंपरा को ध्यान में रखते हुए मांस-मदिरा से दूर रहना। सुंदरियों के बारे में मैं कुछ नहीं कहूंगा। इन्हें शास्त्र में वर्जित नहीं माना गया है। और बेटा, साहित्य साधना बिना सौंदर्योपासना के नहीं हो सकती। इतना तो विद्वान अफसरों की संगति में मैं समझ चुका हूं। क्या कहूं बेटा, अक्सर इनकम टैक्स के बड़े अफसर कवि भी होते हैं। उनकी सेवा हमें अफसर के नाते अलग और कवि होने के नाते अलग से करनी पड़ती है।”

“डैड, ये सुरा को मेरे लिए वर्जित कर आपने ठीक नहीं किया। फिर मैं कैसे साहित्यकार बन पाऊंगा?” सेठपुत्र ने इसरार किया।

“बेटे, अभी तू छात्र है। जब स्थापित साहित्यकार बन जाना तो इम्पोर्टेड सुरा ग्रहण कर सकते हो। उसे शराब नहीं माना गया है। हाकिमों का साथ देने के लिए कभी-कभी तो यह मैं भी ग्रहण कर लेता हूं, पर भक्ष्य-अभक्ष्य क ख्याल रखना। और बेटे, एक विचार मन में कौंधा है। लेख लिखते हुए इस बात का भी उल्लेख कर देना कि साहित्य क्या, इस देश को अंग्रेजों से आजाद भी एक वैश्य ने ही कराया। महात्मा गांधी तो वैश्य ही थे बेटा। इसलिए समाज में वैश्यों का स्थान सर्वोपरि है।”

“हां, डैड! यह तो बड़ी दूर की सूझी आपको। मैं जरूर इसे हाइलाइट करूंगा। पर डैड, जब तक मैं स्थापित साहित्यकार नहीं हो जाता तब तक ठीक है शराब नहीं पिऊंगा, पर क्या बियर पर भी रोक रहेगी? इसकी इजाजत तो दे देते डैड। नहीं तो साहित्यकार बनने की दिशा में कदम कैसे उठेंगे?”

“अरे बेटे, मेरा कहना है कि साहित्यकार बनने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। साहित्य अपने आप में एक नशा है। इसलिए जो भी करना छुपछुपा कर ही करना, बदनामी मोल लेना बुद्धिमानी नहीं है। इस बात को किसी से मत बताना कि तुम प्रेरणा जी से लिव-इन में हो। वैश्य समाज में अभी यह बात नहीं चली है। तुम तो शादी के लिए प्रपोज करो। धूम-धाम से तेरी शादी करूंगा। ऐसी ससुराल उन्हें ही नसीब होती है जिन्होंने पूर्व जन्म में बहुत पुण्य कार्य किए हों। प्रेरणा जी के पिता जी कोई न कोई बिजनेस तुम्हें संभालने के लिए दे ही देंगे। तुम मौज करोगे बेटा मौज। अभी फिलहाल पूरा ध्यान विमोचन और सम्मेलन पर रखो। मैंने सभी अखबारों में खबरें छपवाने का पूरा इंतजाम कर लिया है।” कहते हुए सेठ जी गद्दी पर गए और पुत्र महोदय सद्य प्रकाशित काव्य संग्रह के समर्पण पृष्ठ पर छपी प्रेरणा जी की तस्वीर में खो गए।

इधर सेठ जी ने कव्य संग्रह के विमोचन और वैश्य साहित्याकर सम्मेलन की तिथि तय कर दी। उनका सिद्धांत था ‘शुभस्य शीघ्रम्’। हिंदी के उन साहित्यकारों के बड़े-बड़े पोस्टर तैयार करवाए जाने लगे जो जाति से वैश्य थे। इनमें भारतेंदु हरिश्चंद्र और मैथिलीशरण गुप्त का नाम सर्वोपरि था। सेठ जी के पुत्र ने भी ‘हिंदी साहित्य में वैश्य साहित्याकारों का योगदान’ विषय पर एक धांसू लेख तैयार कर लिया था। अब वे किसी ऐसे बड़े साहित्यकार को विमोचन के लिए तैयार करने दिल्ली गए जो जाति से वैश्य हों। वैश्य तो कई थे, पर वैश्य साहित्यकार सम्मेलन के नाम पर भड़क उठते थे। आखिर बड़ी हिम्मत कर डॉ. जैन का पता हासिल किया और दरवाजे की घंटी बजा दी। उन्होंने अपना विद्यार्थी जान बैठाया, पानी पिलवाया और नौकर को चाय बनाने के लिए कहा। पर जब इन्होंने वैश्य साहित्यकार सम्मेलन और काव्य संग्रह के विमोचन की बात कही तो भड़क गईं और डांट कर भगा दिया।

कई जगह डांट खाने के बाद जब उनकी हिम्मत जवाब देने लगी और महसूस हुआ कि अब सारे किए-धरे पर पानी फिरने वाला है तो बड़े मायूस हुए। निराश कमरे में पड़े प्रेरणा जी के मैसेज का इंतजार कर रहे थे, तभी बियर की बोतलें लिए दो दोस्त आ गए। अभी गिलासों में बियर ढलनी शुरू हुई ही थी कि प्रेरणा जी भी आ गईं। लो कट जींस और टॉप में ग़ज़ब ढा रही थीं। एक गिलास और लाई गई। दो बोतल दम साध कर पी गई, फिर आगे पीने के साथ ही विचार-विमर्श का दौर शुरू हुआ। प्रेरणा जी ने कहा कि वे एक प्रोफेसर को जानती हैं जिन्होंने साहित्य के आलोचक के रूप में बड़ा नाम कमाया। कट्टर मार्क्सवादी थे। हैं वैश्य ही। जब मैं बी.ए. (हिंदी ऑनर्स) में थी तो हाथ धोकर मेरे पीछे पड़े थे। पर मैंने भी एक लिमिट से ज्यादा उन्हें नहीं बढ़ने दिया। कहते थे कि तुम्हें कवयित्रि के रूप में स्थापित करवा कर ही रहूंगा। उन दिनों कई बड़ी पत्रिकाओं में मेरी कविताएं छपवाईं। भगवान जानता है, मैंने आज तक एक भी कविता नहीं लिखी, पर उन्होंने दो साल के भीतर मेरी दो दर्जन कविताएं बड़ी साहित्यिक पत्रिकाओं में फोटो सहित छपवा दी। पर बदले में उन्हें कुछ खास नहीं मिला तो निराश हो गए और मेरी एक सहेली जो मुझसे कुछ कम सुंदर थी, उसे साहित्यकार बनाने का बीड़ा उठा लिया। सुनते हैं, अब उन्होंने मार्क्सवाद से घोषित रूप से नाता तोड़ लिया है, किसी संगठन में भी नहीं हैं। प्रतिबद्ध तो हैं, पर बस सुरा-सुंदरी से। इनसे मैं मिलूं तो काम बन सकता है। फीस तो सभी लेते हैं, ये तैयार हुए तो इन्हें कुछ ज्यादा दे देंगे। मैं मिल लेती हूं, आज ही शाम को जाऊंगी।

“मैं भी चलूंगा।” सेठपुत्र बोले।

प्रेरणा जी ने कहा, “तुम्हारे जाने से बनता काम बिगड़ जाएगा। तुम घबराओ नहीं, मैं उन्हें लिमिट से आगे जाने नहीं दूंगी।” इस पर सहमति बन गई। बियर भी खत्म ही हो चली थी।

देर रात जब प्रेरणा जी प्रोफेसर साहब से मिल कर आईं तो सेठपुत्र जिन की चुस्कियां ले रहे थे। आते ही प्रेरणा जी ने कहा कि काम बन गया। पच्चीस मांग रहा था, पर मैंने कह-सुन कर बीस पर राजी कर लिया। इम्पोर्टेड व्हिस्की का इंतजाम रखने को कहा है।

“और कुछ?” सेठपुत्र ने उतावलेपन से पूछा।

“और क्या? देखते ही गले से लगा लिया और कमर पर हाथ फेरने लगा। पी रहा था। बाल खिचड़ी हो गए हैं। बूढ़ा लग रहा था। शादी तो उसने की ही नहीं।”

“और कुछ?” सेठपुत्र ने फिर पूछा।

“और क्या यार, कमर के नीचे थपकी दे दी तो क्या हुआ? डोंट बी स्टुपिड। चलो, डिनर कर के आते हैं।”

निश्चित तिथि पर धूमधाम से काव्य संग्रह का विमोचन हुआ। कई साहित्यकार आए, पर उनमें जिला स्तरीय साहित्याकरों की संख्या ही ज्यादा थी। राज्य स्तरीय भी नामालूम से एक-दो वैश्य साहित्यकार आ गए। हां, जिले के तमाम अफसर कार्यक्रम में लगातार मौजूद रहे। प्रेरणा जी ने मंच संचालन किया। रेशमी साड़ी में उनकी खूबसूरती देखते ही बनती थी। सेठ जी उनसे बेटा-बेटा कह के बातें कर रहे थे। मंच की सजावट देखने लायक थी। भारतेंदु हरिश्चंद्र, मैथिलीशरण गुप्त और जयशंकर प्रसाद वैश्य साहित्यकार के रूप में स्थापित कर दिए गए थे। पूरे कार्यक्रम की वीडियो रिकॉर्डिंग हो रही थी। दर्शकों-श्रोताओं को जूस, कोल्ड ड्रिंक, आइसक्रीम, फ्रूट सलाद आदि पेश किए जा रहे थे। काव्य संग्रह के विमोचन की औपचारिकता के बाद जब सेठपुत्र ने अपना ‘शोधलेख’ पढ़ा तो अफसरों और स्थानीय कॉलेजों के प्राध्यापकों-प्रोफेसरों ने वाह-वाह किया। इस कार्यक्रम की समाप्ति के बाद चुने हुए लोगों के लिए एक विशेष कक्ष में सुरापान का प्रबंध था।

दूसरे दिन वैश्य सम्मेलन के साथ ही कवि सम्मेलन का कार्यक्रम भी था। दिन में वैश्य साहित्य सम्मेलन संपन्न हुआ। लगभग सभी वक्ताओं ने एक सुर से कहा कि जब हिंदी साहित्य के निर्माता भारतेंदु ही वैश्य थे तो साहित्य का भविष्य वैश्यों के हाथों ही सुरक्षित रह सकता है। वक्ताओं ने यह भी कहा कि आज साहित्य पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है, पर जब हमारे बीच सेठ जी के पुत्र के समान कवि और प्रेरणा जी जैसी कवयित्रि मौजूद हैं, साथ ही वैश्यों की नई पीढ़ी बिजनेस के साथ ही साहित्य में भी योगदान करने को तैयार है तो हम हर खतरे पर काबू पा लेंगे।

रात में कवि सम्मेलन में समां बंध गया। यह देखकर कि सिर्फ कविताओं से श्रोताओं का भरपूर मनोरंजन संभव नहीं है, सेठ जी ने आईपीएल की तर्ज पर चीयर गर्ल्स का इंतजाम भी कर रखा था। ये मुंबई से पलायन कर आई बार बालाएं थीं। ये मंच पर चारों ओर कमर मटका रही थीं और पीकर मस्त हुए कवियों को बदमस्त बना रही थीं। हर कविता-गीत के बंद और ग़ज़ल के हर मिसरे के बाद ये डांस करतीं। एक कवि के काव्य पाठ के बाद पांच मिनट का चीयर गर्ल डांस होता, फिर दूसरे कवि को मौका मिलता।

कुल मिला कर काव्य संग्रह का विमोचन, वैश्य साहित्य सम्मेलन और काव्य पाठ के साथ चीयर गर्ल्स का रंगारंग कार्यक्रम बेमिसाल रहा। कार्यक्रम के अंत में अफसरों, स्थानीय नेताओं और पत्रकारों की बधाइयां स्वीकार करने क बाद धन्यवाद ज्ञापन करते हुए सेठ जी ने कहा कि वे हर साल इस तरह का कार्यक्रम आयोजित करेंगे और उन्हें पूरी उम्मीद है कि वैश्य समुदाय जैसे बिजनेस में अपनी सर्वोपरि भूमिका निभा रहा है, वैसे ही साहित्य के प्रचार-प्रसार में भी अपनी भूमिका निभाएगा। इसे इतिहास ने साबित किया है कि हमारी जाति में साहित्यकारों की कमी नहीं रही है। इसे हमारे बेटे और प्रेरणा जी ने भी साबित किया है। साहित्य सेवा देश की सबसे बड़ी सेवा है। मैं चाहता हूं कि हर वैश्य परिवार से एक न एक युवा साहित्य के क्षेत्र में जरूर आवे। तब हमारा देश फिर से विश्वगुरु कहलाने लगेगा।

अंतत: तालियों की जोरदार गड़गड़ाहट के साथ सम्मेलन समाप्त हुआ।

।।।।।।।।।।।।।।।

e-mail- manojkumarjhamk@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: व्यंग्य // वैश्य साहित्यकार सम्मेलन का रंगारंग कार्यक्रम // मनोज कुमार झा
व्यंग्य // वैश्य साहित्यकार सम्मेलन का रंगारंग कार्यक्रम // मनोज कुमार झा
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEio2uE1HSz3scqtBA-is2na6yYmoTXrcCOIiWeyre4kX0UQwrwF-PHVvkr0yyyP_jKfBQ62XZNAZvL_LpanZ8GaNN8BHYeAU3YUnkQqJggPVDLqZKh8cVO3KNJQVhapidoblblV/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEio2uE1HSz3scqtBA-is2na6yYmoTXrcCOIiWeyre4kX0UQwrwF-PHVvkr0yyyP_jKfBQ62XZNAZvL_LpanZ8GaNN8BHYeAU3YUnkQqJggPVDLqZKh8cVO3KNJQVhapidoblblV/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/10/blog-post_14.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/10/blog-post_14.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content