देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–5 : 9 तीन अन्धी रानियाँ // सुषमा गुप्ता

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9 तीन अन्धी रानियाँ [1] एक बार तीन राजकुमार थे जिनके माता पिता मर गये थे। उनकी आया ही उनकी देखभाल करती थी। जब वे बड़े हो गये तो उन्होंने शादी...

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9 तीन अन्धी रानियाँ[1]

एक बार तीन राजकुमार थे जिनके माता पिता मर गये थे। उनकी आया ही उनकी देखभाल करती थी।

जब वे बड़े हो गये तो उन्होंने शादी करने की इच्छा प्रगट की। उनके पास तीन लड़कियों की तस्वीरें थी जिनको वे पसन्द करते थे।

उन्होंने अपने दूतों को दुनिया भर में भेजा कि जा कर देखो अगर तुम्हें इन तस्वीरों जैसी लड़कियाँ कहीं मिल जायें तो उनको हमारे लिये यहाँ ले कर आना हम उनसे शादी करेंगे।

दूत बेचारे सारी दुनिया में घूम आये पर उनको उन तस्वीरों जैसी कोई लड़की कहीं नहीं मिली। वे निराश हो कर वापस घर लौट ही रहे थे कि आखीर में उनको एक मछियारे की तीन लड़कियाँ दिखायी दीं जिनकी सूरतें बिल्कुल उन तस्वीरों से मिलती थी।

बस फिर क्या था दूतों ने उन तीनों लड़कियों को रानियों की तरह से सजाया और राजा के बेटों के पास ले आये। तीनों बेटों ने उन तीनों लड़कियों को पसन्द कर लिया और उनसे उनकी शादी हो गयी।

कुछ दिनों बाद लड़ाई छिड़ गयी तो तीनों बेटों को लड़ाई पर जाना पड़ा। उन्होंने अपनी आया के सहारे अपना घर छोड़ा और लड़ाई पर चले गये।

पर वह आया इन रानियों के वहाँ होते हुए राजा के महल में उसी तरह से तो नहीं रह सकती थी जैसे वह इनके आने से पहले रहती थी।

इसलिये उसने एक मन्त्री को पटाया और उससे उन तीनों को मारने के लिये कहा और सबूत के तौर पर उनकी आँखें लाने के लिये कहा – तीन जोड़ी आँखें।

मन्त्री ने एक दिन रानियों से कहा — “आज का मौसम बहुत अच्छा है चलिये आपको घुमा लाते हैं।” सो वे चारों एक गाड़ी में बैठ गये और वह गाड़ी चल दी।

चलते चलते वह गाड़ी एक पहाड़ की तलहटी में आ गयी। वह बहुत सुन्दर जगह थी सो तीनों रानियाँ और वह मन्त्री वहाँ गाड़ी से उतर गये।

मन्त्री ने अपनी तलवार निकाली और एक आह भर कर बोला — “अफसोस रानी जी, मुझे यह हुकुम मिला है कि मैं आप तीनों को मार कर आपकी आँखें आया के पास ले जाऊँ।”

तीनों रानियों ने जवाब दिया — “नहीं, तुम हमको मारो मत। तुम हमको यहीं पहाड़ पर ही छोड़ दो और जहाँ तक आँखों का सवाल है वे हम तुमको अपने आप ही दे देंगी।”

उन्होंने अपनी आँखें निकाली और मन्त्री को दे दीं। मन्त्री बेचारा उनको देख कर रो पड़ा। पर क्या करता। उसने उनकी आँखें ले लीं और उनको वहीं पहाड़ पर छोड़ कर महल चला आया।

जब तीनों बेटे लड़ाई से वापस आये तो उन्होंने अपनी रानियों के बारे में पूछा। आया ने कहा कि वे तीनों तो एक एक्सीडैन्ट में मर गयीं।

अपनी पत्नियों की मौत की खबर सुन कर वे तीनों बहुत दुखी हुए और उन तीनों ने कसम खायी कि वे अब कभी शादी नहीं करेंगे।

उधर वे तीनों रानियाँ एक गुफा में चली गयीं और वहीं रहने लगीं। वे पत्ते, घास और जड़ें खा कर गुजारा करती थीं। तीनों के बच्चा होने वाला था। एक रात तीनों ने एक एक लड़के को जन्म दिया।

माँएं और बच्चे पत्ते, घास और जड़ें खा कर ही गुजारा करते रहे। जब पत्ते और जडें खत्म हो गयीं तो उन्होंने यह देखना शुरू किया कि वे किसका बच्चा पहले खायें।

सबसे पहले सबसे बड़ी रानी का बेटा खा लिया गया। उसके बाद बीच वाली बहिन का नम्बर आया। उसके बाद अब सबसे छोटी बहिन का नम्बर था।

यह देख कर तीसरी बहिन ने अपने बेटे को गोद में लिया और गुफा से भाग निकली। उसे एक और गुफा मिल गयी जहाँ बहुत सारे पत्ते लगे हुए थे। वह उस गुफा में घुस गयी और वहीं रहने लगी।

धीरे धीरे उसका बच्चा बड़ा हो गया और शिकार के लिये जाने लगा। उसके पास सरकंडे[2] की बनी हुई एक बन्दूक थी जिससे वह अपने और अपनी माँ के खाने के लिये कुछ छोटे मोटे जानवर मार कर लाने लगा।

एक दिन उसको दूसरी दो अन्धी स्त्रियाँ मिल गयीं तो वह उनको अपनी गुफा में ले आया।

एक दिन तीनों राजाओं में से एक राजा जो इस लड़के का पिता था शिकार खेलने निकला तो उसको जंगल में अपना बेटा मिल गया। राजा ने लड़के से कहा — “आओ मेरे साथ आओ। तुम मेरे महल चलो।”

लड़का बोला — “पहले मैं अपनी माँ को बता आऊँ।” और वह अपनी माँ को बताने चला गया कि राजा मुझे अपने महल ले जाना चाहते हैं। तो माँ ने कहा “ठीक है जाओ।” और वह लड़का राजा के साथ चला गया। वह फिर वहीं रहने लगा।

आया ने उस लड़के को देख कर ऊपर से तो खुश होने का नाटक किया पर अन्दर ही अन्दर वह उससे बहुत कुढ़ रही थी।

जब हथियारों के चलाने की बात आयी तो वह लड़का हथियार चलाने में पूरे राज्य में सबसे अच्छा और बहादुर साबित हुआ।

आया ने उसको एक ऐसा काम देने का फैसला किया जिससे उसको हमेशा के लिये वहाँ से हटाया जा सके।

काफी समय पहले इस परिवार की एक राजकुमारी को परियों ने उठा लिया था। आया ने तीनों राजाओं से कहा कि इस नौजवान को उस राजकुमारी का पता लगाने के लिये भेजना चाहिये जिसको वह परी उठा कर ले गयी थी। क्योंकि यह बहुत बहादुर है यह उस लड़की का पता लगा सकता है।

राजाओं ने उस नौजवान से कहा कि वह जा कर उस लड़की का पता लगाये।

वह नौजवान पहले तो उन अन्धी रानियों की गुफा में उनकी सलाह लेने गया फिर वह उस लड़की की खोज में निकल पड़ा। चलते चलते वह एक रेगिस्तान में पहुँच गया जहाँ एक काला सफेद महल खड़ा था।

वह उस महल के पास पहुँचा तो किसी की बड़ी धीमी सी आवाज आयी — “क्या तुम देख सकते हो कि मैं कहाँ हूँ? देखो, घूम जाओ। तब तुम मुझे देख सकते हो।”

नौजवान बोला — “नहीं, मैं नहीं घूमूँगा क्योंकि अगर मैं घूम गया तो फिर मैं एक पेड़ बन जाऊँगा।”

सो वह बिना घूमे ही उस काले सफेद महल में घुस गया। अन्दर जा कर उसने देखा कि एक कमरे मे तीन पीली मोमबत्तियाँ जल रहीं थीं। उस नौजवान ने वे तीनों मोमबत्तियाँ एक ही फूँक में बुझा दीं।

जैसे ही वे मोमबत्तियाँ बुझीं तो वहाँ का जादू टूट गया और अचानक उस नौजवान ने अपने आपको उन तीनों राजाओं के महल में पाया। वह सुन्दर राजकुमारी, उस नौजवान की माँ और उसकी दोनों मौसियाँ भी वहीं थीं। तीनों रानियों की आँखें भी आ गयीं थीं।

सब लोग उस राजकुमारी को पा कर बहुत खुश हुए। उस नौजवान ने उस राजकुमारी से शादी कर ली।

शाम को खाना खाते समय हर एक ने अपनी अपनी कहानी सुनायी। तीनों रानियों ने भी अपनी अपनी कहानी सुनायी।

आया तो वह सब सुन कर इतना काँप गयी कि उसको गरम करने के लिये उसके ऊपर तेल लगा कर उसको भूनना पड़ा। तीनों राजकुमार अपनी अपनी पत्नियों और बेटे के साथ खुशी खुशी रहने लगे।




[1] Three Blind Queens (Story No 113) – a folktale from Italy from its Abruzzo area.

Adapted from the book: “Italian Folktales”, by Italo Calvino. Translated by George Martin in 1980.

[My Note: This folktale seems somewhat incomplete and incoherent.]

[2] Translated for the word “Reed”

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः  - रैवन की लोक कथाएँ,  इथियोपिया इटली की  ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

(क्रमशः अगले अंकों में जारी….)

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फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ 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रचनाकार: देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–5 : 9 तीन अन्धी रानियाँ // सुषमा गुप्ता
देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–5 : 9 तीन अन्धी रानियाँ // सुषमा गुप्ता
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रचनाकार
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