देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–5 : 6 जूँ की खाल // सुषमा गुप्ता

SHARE:

6 जूँ की खाल [1] एक बार एक राजा अपने खाली समय में बाहर घूम रहा था कि उसको अपने ऊपर एक जूँ चलती दिखायी दे गयी। अब वह जूँ क्योंकि एक राजा के ऊ...

clip_image002

6 जूँ की खाल[1]

एक बार एक राजा अपने खाली समय में बाहर घूम रहा था कि उसको अपने ऊपर एक जूँ चलती दिखायी दे गयी।

अब वह जूँ क्योंकि एक राजा के ऊपर चल रही थी इसलिये वह एक खास जूँ थी और उसकी इज़्ज़त होनी चाहिये थी।

सो बजाय इसके कि वह राजा उसे मार कर फेंक देता वह उसको अपने महल में ले गया और उसकी ठीक से देखभाल करने लगा।

राजा की देखभाल में वह जूँ बढ़ती रही और एक मोटी बिल्ली जैसी मोटी हो गयी। वह चौबीस घंटे एक कुरसी पर बैठी रहती। कुछ दिनों बाद तो वह एक मोटे सूअर के बराबर मोटी हो गयी तो राजा को उसको एक आराम कुरसी पर बिठाना पड़ गया।

और कुछ दिनों बाद वह एक बछड़े के बराबर मोटी हो गयी तो उसको जानवरों के घर में रखना पड़ा। पर वह जूँ तो बराबर बढ़ती ही जा रही थी सो जल्दी ही वह जानवरों का घर भी उसके लिये छोटा पड़ने लगा।

अब राजा ने उसको मरवा दिया। उसकी खाल निकलवा ली और उस खाल को महल के दरवाजे पर टाँग दिया।

फिर उसने अपने राज्य भर में मुनादी पिटवा दी कि जो कोई यह बतायेगा कि वह खाल किस जानवर की है वह अपनी बेटी की शादी उसी से कर देगा। पर जिसने भी गलत बताया तो उसको वह मौत की सजा दे देगा।

जैसे ही वह मुनादी पिटी आदमियों की एक लम्बी लाइन राजा के महल के दरवाजे पर लग गयी। सभी उस जानवर का नाम बता कर राजकुमारी से शादी करना चाहते थे।

पर किसको यह अन्दाजा था कि वह जूँ की खाल होगी सो कोई भी उस खाल के जानवर का सही नाम नहीं बता सका और सब मारे गये। फाँसी देने वाले दिन रात लोगों को फाँसी चढ़ाने पर लगे हुए थे।

मजे की बात यह थी कि राजकुमारी को खुद को भी यह पता नहीं था कि वह खाल किसकी है।

राजा की बेटी का एक प्रेमी था। उसका वह प्रेमी राजा की बेटी से शादी करने के लिये बहुत बेचैन था। राजा को अपनी बेटी के उस प्रेमी के बारे में पता नहीं था।

तभी राजा की बेटी को किसी नौकर से यह पता चला कि वह खाल जूँ की थी। सो रोज की तरह जब उसका प्रेमी शाम को उससे खिड़की के नीचे मिलने आया तो उसने उसको फुसफुसा कर यह बताया — “कल तुम मेरे पिता के पास जाना और उनको कहना कि यह खाल जूँ की है।”

पर राजकुमारी की आवाज बहुत धीमी होने की वजह से उसका वह प्रेमी उसके शब्द ठीक से नहीं सुन सका।

वह बोला — “तुमने क्या कहा चूहा? एक बड़ा सा चूहा?”[2]

राजकुमारी थोड़ी ज़ोर से बोली — “नहीं, जूँ।”

“क्या? तीतर?”[3]

अब की बार वह चिल्लायी — “नहीं, जूँ, जूँ।”

“अच्छा, अच्छा, अब मैं समझ गया। ठीक है मैं कल देखूँगा।” कह कर वह वहाँ से चला गया।

अब राजा की बेटी की खिड़की के नीचे एक कुबड़ा जूता ठीक करने वाला बैठता था। वह ये सब बातें सुन रहा था। यह सुन कर उसने अपने मन में कहा — “अब देखता हूँ कि तुझसे कौन शादी करता है, मैं या वह तेरा प्रेमी।”

उसने अपना सामान तो वहीं छोड़ा और तुरन्त ही वहाँ से राजा के पास भागा गया और वहाँ जा कर बोला — “राजा साहब, राजा साहब, मैं यहाँ इसलिये आया हूँ कि आपकी उस खाल के जानवर के नाम का अन्दाजा लगा सकूँ।”

राजा बोला — “खयाल रखना। बहुत सारे आदमी पहले ही मारे जा चुके हैं।”

कुबड़ा बोला — “यह तो हम अभी देखेंगे कि मैं भी मरता हूँ कि नहीं।”

राजा ने उस कुबड़े को वह खाल दिखायी तो उस कुबड़े ने पहले तो उसको अच्छी तरह से देखने का नाटक किया, फिर उसको सूँघा, फिर सिर खुजलाया और फिर कुछ सोच कर बोला — “राजा साहब, इसके जानवर को पहचानने में तो बहुत देर नहीं लगेगी। यह तो जूँ की खाल है।”

राजा तो उस कुबड़े की होशियारी देख कर दंग रह गया। हालाँकि उसकी समझ में इसका राज़ तो नहीं आ सका पर वायदा तो वायदा होता है इसलिये बिना एक शब्द कहे उसने अपनी बेटी को बुला भेजा और तुरन्त ही उसको उस कुबड़े की पत्नी घोषित कर दी।

बेचारी राजकुमारी जिसको इस बारे में पूरा विश्वास था कि वह अगले दिन अपने प्रेमी से ही शादी कर पायेगी अब बहुत ही दुखी थी।

वह छोटा कुबड़ा अब राजा बन गया और वह राजकुमारी उसकी रानी बन गयी। पर उसके साथ रहने से राजकुमारी की ज़िन्दगी की सारी खुशियाँ चली गयीं।

उसकी दासियों में से एक बूढ़ी दासी थी जो अपनी रानी को हँसते हुए देखने के लिये कुछ भी कर सकती थी।

सो एक दिन सुबह उसने रानी से कहा — “रानी जी, मैंने कल तीन कुबड़े शहर में नाचते गाते खेलते घूमते हुए देखे और उनको देख कर सब हँस रहे थे।

आप क्या सोचती हैं कि मैं उनको यहाँ शाही महल में ले आऊँ ताकि वे आपका थोड़ा दिल बहला दें?”

रानी बोली — “तुम पागल हुई हो क्या? अगर वह कुबड़ा राजा यहाँ आ गया और उसने उनको देख लिया तो वह क्या कहेगा। वह सोचेगा कि हमने उन कुबड़ों को यहाँ उसकी हँसी उड़ाने के लिये बुलाया है।”

दासी ने जवाब दिया — “आप चिन्ता न करें अगर राजा साहब यहाँ आ गये तो हम उन कुबड़ों को एक बक्से में बन्द कर देंगे।”

सो वे तीन कुबड़े गवैये महल में रानी के पास आये और रानी को शाही तरीके से हँसाने की कोशिश करने लगे। रानी भी उनकी बातों पर बहुत हँसी, बहुत हँसी।

पर जब वे राजकुमारी को हँसा रहे थे तभी बीच में राजा आ गये और दरवाजे पर आहट हुई।

दासी ने तीनों कुबड़ों को गरदन से पकड़ा और एक बड़ी सी आलमारी में बन्द करके उसका दरवाजा बन्द कर दिया।

और रानी राजा के लिये यह कहती हुई दरवाजा खोलने के लिये चली गयी “ठीक है, ठीक है मैं आ रही हूँ।” राजा अन्दर आ गये। उन्होंने दोनों ने मिल कर रात का खाना खाया और फिर घूमने के लिये चले गये।

अगला दिन वह दिन था जब राजा और रानी आने वालों से मिला करते थे। उस दिन रानी और उसकी दासी दोनों ही उन कुबड़ों को भूल गये।

तीसरे दिन रानी ने अपनी दासी से कहा — “अरे उन कुबड़ों का क्या हुआ?”

दासी चिल्लायी — “अरे उनके बारे में तो मैं बिल्कुल भूल ही गयी थी। पर वे तो अभी भी आलमारी में ही होंगे कहाँ जायेंगे।”

वह तुरन्त ही भागी भागी अन्दर गयी और जा कर वह आलमारी खोली तो देखा कि वे तीनों कुबड़े तो मरे पड़े थे। वे खाना न खाने और हवा न मिलने की वजह से मर गये थे।

रानी तो यह देख कर बहुत डर गयी वह बोली — “अब क्या करें?”

दासी बोली — “आप चिन्ता न करें, मैं इसका भी कुछ तरीका निकालती हूँ।”

उसने एक कुबड़े को उठाया और एक थैले में रख दिया फिर उसने एक सामान उठाने वाले को बुलाया और उससे कहा — “देखो इस थैले में एक चोर है। यह शाही जवाहरात चुरा कर भाग रहा था सो मैंने इसको एक झापड़ मार कर ही मार दिया।”

फिर उसने उसको वह थैला खोल कर दिखाया जिसमें से उसका कूबड़ दिखायी दे रहा था।

वह आगे बोली — “अब तुम इसको अपनी पीठ पर लाद कर ले जाओ और छिपा कर इसको नदी में फेंक देना। देखो किसी को पता न चले क्योंकि हम कोई हल्ला गुल्ला नहीं चाहते। जब तुम वापस आओगे तब मैं तुमको बहुत सारे पैसे दूँगी।”

उस बेचारे ने वह थैला अपनी पीठ पर लटकाया और नदी की तरफ चल दिया। इस बीच उस दासी ने दूसरे कुबड़े को भी एक थैले में बन्द कर दिया और दरवाजे के पास ही रख दिया।

वह सामान ले जाने वाला अपने पैसे लेने के लिये आया तो दासी ने कहा — “अभी मैं तुमको पैसे कैसे दे दूँ जबकि वह कुबड़ा तो अभी भी यहीं है क्योंकि तुम यह थैला तो ले कर ही नहीं गये।”

नौकर तो यह सुन कर आश्चर्य में पड़ गया कि अभी अभी तो वह थैला फेंक कर आ रहा है और यह दासी कह रही है कि मैं थैला तो ले कर ही नहीं गया। यह क्या मामला है।

वह बोला — “हम लोग यह कौन सा खेल खेल रहे हैं। मैं अभी तो उस थैले को नदी में फेंक कर आया हूँ।”

“देखो यह सबूत है कि तुमने अपना काम ठीक से नहीं किया नहीं तो यह थैला यहाँ नहीं होता।” कह कर उसने नौकर को वह दूसरा थैला खोल कर दिखा दिया।

अपना सिर हिलाते हुए और बुड़बुड़ाते हुए उसने वह थैला उठाया और फिर एक बार नदी की तरफ चल दिया। जब वह दोबारा शाही महल वापस लौटा तो एक और थैला उसका इन्तजार कर रहा था और वह दासी फिर से उसके ऊपर नाराज थी।

“क्या मैं गलत बोल रही हूँ? तुमको पता नहीं है कि लाश को नदी में कैसे फेंकते हैं? क्या तुम देख नहीं रहे कि यह थैला फिर से वापस आ गया है?”

“पर इस बार तो नदी में फेंकने से पहले मैंने उस थैले में एक पत्थर भी बाँधा था।”

“अब की बार दो पत्थर बाँधना तब देखते कि यह कैसे वापस आता है। और अब की बार मैं तुमको न केवल पैसे दूँगी बल्कि तुमको और भी बहुत कुछ दूँगी।”

सो एक बार फिर वह नौकर उस थैले को ले कर नदी की तरफ गया और उसने उसमें दो पत्थर बाँधे और तीसरे कुबड़े को भी नदी में फेंक दिया।

वह वहाँ खड़े हो कर देखता रहा कि वह थैला ऊपर आता है या नहीं। जब उसने यह पक्का कर लिया कि वह थैला डूब गया तब वह वहाँ से चला आया।

जब वह महल में घुस रहा था तो रास्ते में उसको कुबड़ा राजा मिल गया। उसने उसको देखा तो सोचा “अरे यह कुबड़ा तो लगता है कि फिर वापस आ गया। और अब वह चुड़ैल दासी तो मुझे जरूर ही पीटेगी।

यह सोचते हुए उसने गुस्से में अन्धे होते हुए कुबड़े राजा को गरदन से पकड़ा और चिल्लाया — “ओ कुबड़े मुझे तुझे और कितनी बार नदी में फेंकना पड़ेगा? मैंने तुझे एक पत्थर बाँधा और तू वापस आ गया। फिर मैंने तुझे दो पत्थर बाँधे और तू फिर भी वापस आ गया।

तू मुझे इतना परेशान करने वाला कैसे हो सकता है? अब की बार मैं तेरा ठीक से काम तमाम करता हूँ।”

इतना कह कर उसने अपने हाथ उस कुबड़े राजा की गरदन पर रखे और उसको दबा दिया। फिर उसने उसको गरदन से पकड़ा और उसे नदी की तरफ घसीटता हुआ ले चला। वहाँ जा कर उसने उसके पैरों में चार पत्थर बाँधे और ज़ोर से घुमा कर पानी में फेंक दिया।

जब रानी ने सुना कि उसका कुबड़ा पति वहीं चला गया है जहाँ वे तीन कुबड़े गये थे तो उसने उस नौकर को बहुत सारा पैसा, सोना, जवाहरात, सूअर, चीज़[4] और शराब दी।

अब तो अपने प्रेमी से शादी करने में उसको कोई परेशानी ही नहीं थी सो उसने उससे शादी कर ली और आराम से राज किया।

clip_image004



[1] Louse Hide (Story No 104) – a folktale from Italy from its Rome area.

Adapted from the book : “Italian Folktales:” by Italo Calvino”. Translated by George Martin in 1980.

[2] Joon is called Louse in English language and Choohaa is called Mouse, so because of her low voice he confused the words Louse with Mouse.

[3] Translated for the word “Grouse” – thus all the three words sound similar.

[4] Cheese – processed Indian Paneer made of milk . It is eaten in a variety of ways in western world.

------------

सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः  - रैवन की लोक कथाएँ,  इथियोपिया इटली की  ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

(क्रमशः अगले अंकों में जारी….)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–5 : 6 जूँ की खाल // सुषमा गुप्ता
देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–5 : 6 जूँ की खाल // सुषमा गुप्ता
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjhanrMg5ESaHib9KkFVM2T5QNo0BBxYAkxYUX-J3OgOXaExv1fRAAEAU6GS7jimJiSCf-NmBPMIK1fWugq_znSv5tdrICbxpFThiJrkkbpzVrLLxXU73pWyFf9ygfrDLhH4ihI/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjhanrMg5ESaHib9KkFVM2T5QNo0BBxYAkxYUX-J3OgOXaExv1fRAAEAU6GS7jimJiSCf-NmBPMIK1fWugq_znSv5tdrICbxpFThiJrkkbpzVrLLxXU73pWyFf9ygfrDLhH4ihI/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/10/5-6-italy-lokkatha-5-juun-ki-khaal.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/10/5-6-italy-lokkatha-5-juun-ki-khaal.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content