देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–5 : 15 पागल, चालाक और काँटा // सुषमा गुप्ता

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15 पागल , चालाक और काँटा [1] एक बार की बात है कि तीन रोग थे – एक था पागल, एक था चालाक और एक था काँटा। एक बार उन्होंने आपस में शर्त लगायी कि ...

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15 पागल, चालाक और काँटा[1]

एक बार की बात है कि तीन रोग थे – एक था पागल, एक था चालाक और एक था काँटा। एक बार उन्होंने आपस में शर्त लगायी कि देखा जाये कि उनमें से कौन सबसे ज़्यादा होशियार और चालाक है। सो वे चल दिये।

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उनमें से पागल सबसे आगे जा रहा था। उसने एक पेड़ के ऊपर एक मैना[2] अपने घोंसले में बैठी देखी तो उसने अपने दोस्तों से पूछा — “क्या तुम देखना चाहते हो कि मैं इस मैना के अंडे इसके नीचे से बिना इसके जाने और बिना इसको उठाये कैसे निकाल सकता हूँ.?”

उसके दोनों दोस्त बोले — “हाँ हाँ देखें तुम ऐसा कैसे करते हो?”

सो वह पागल अंडे चुराने के लिये पेड़ पर चढ़ा और जब उन को वह वहाँ से ले रहा था तो चालाक ने उसके जूतों की एड़ी काटी और अपने टोप में छिपा ली। पर इससे पहले कि वह टोप अपने सिर पर रखता काँटे ने उसके जूतों की एड़ी को उसके टोप में से निकाल लिया।

पागल पेड़ पर से नीचे आया और बोला — “मैं सबसे ज़्यादा होशियार और चालाक हूँ क्योंकि मैंने मैना के अंडे उसके नीचे से बिना उसको वहाँ से उठाये चुरा लिये हैं।”

चालाक बोला — “नहीं मैं सबसे ज़्यादा होशियार और चालाक हूँ क्योंकि मैंने तुम्हारे बिना देखे ही तुम्हारे जूतों से तुम्हारी एड़ी निकाल ली है।”

काँटा बोला — “मुझे लगता है कि मैं सबसे ज़्यादा होशियार और चालाक हूँ क्योंकि मैंने तुम्हारे टोप में से तुम्हारे बिना जाने ही पागल के जूतों की एड़ी चुरा ली है।

और क्योंकि मैं सबसे ज़्यादा होशियार और तेज़ हूँ इसलिये अब मैं तुम दोनों से अलग होता हूँ। मैं तुम लोगों से ज़्यादा अच्छा करूँगा।” कह कर वह अपने रास्ते चला गया।

बाद में उसने इतना पैसा इकठ्ठा कर लिया कि वह बहुत अमीर हो गया। वह कई शहरों में गया। उसने शादी कर ली और फिर एक सूअर को मारने वाली दूकान खोल ली।

दूसरे दो लोग भी घूमते रहे, चोरी करते रहे और फिर लौट कर उसी शहर में आ गये जिसमें काँटे की दूकान थी। उन्होंने काँटे की दूकान देखी तो वह उसकी दूकान देख कर बहुत खुश हुए और आपस में बोले — “चलो अन्दर चलते हैं। यहाँ अच्छा समय गुजरेगा।”

वे दूकान के अन्दर गये तो वहाँ दूकान पर काँटे की पत्नी बैठी थी। उन्होंने उससे कहा — “मैम, क्या हमको कुछ खाने को मिलेगा?”

काँटे की पत्नी ने पूछा — “तुम्हें क्या चाहिये? क्या दूँ मैं तुम्हें?”

“चीज़[3] का एक टुकड़ा।”

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सो वह उनके लिये चीज़ काटने लगी। जब वह चीज़ काट रही थी तो दोनों ने दूकान में इधर उधर देखा कि वे वहाँ से क्या उठा सकते थे। उनको वहाँ एक कटा हुआ सूअर दिखायी दे गया। वह उस दूकान में ऊपर लटका हुआ था।

उसको देख कर दोनों ने एक दूसरे को आँखों ही आँखों में इशारा किया कि आज रात को ही वे लोग इस सूअर को यहाँ से ले जायेंगे। काँटे की पत्नी ने यह सब देख लिया पर वह बोली कुछ नहीं। जब उसका पति आया तो उसने उसको सब कुछ बता दिया।

अब काँटा तो सबसे बड़ा चोर था सो उसने उन दोनों को पहचान लिया। उसने सोचा कि वे दोनों जरूर ही पागल और चालाक रहे होंगे जो उस सूअर को चुराने का प्लान बना रहे थे।

उसने अपने मन में कहा “ठीक है, तुम इन्तजार करो। मैं देखता हूँ कि तुम मेरा सूअर कैसे चुराते हो।” यह सोच कर उसने वह सूअर ओवन[4] में रख दिया।

शाम हुई तो वह सोने चला गया। जब रात हुई तो वे पागल और चालाक उस सूअर को चुराने के लिये काँटे की दूकान पर आये। उन्होंने दूकान में चारों तरफ निगाह दौड़ायी पर वह सूअर तो उनको वहाँ कहीं दिखायी ही नहीं दिया।

सो चालाक ने सोचा कि जब सूअर कहीं दिखायी नहीं दे रहा तो इसका पलंग ही चुरा लिया जाये। उस पलंग के बराबर में काँटे की पत्नी सो रही थी।

चालाक काँटे की पत्नी से बोला — “सुनो, मुझे यहाँ सूअर कहीं दिखायी नहीं दे रहा है तुमने कहाँ रखा है?”

यह सोचते हुए कि वह उसका पति बोल रहा है काँटे की पत्नी बोली — “सो जाओ, तुमको तो कुछ याद ही नहीं रहता। तुम्हीं ने तो कल रात उसे ओवन में रख दिया था।” और वह सो गयी।

अब वे दोनों चोर ओवन के पास गये उसमें से सूअर निकाला और उसको ले कर चल दिये। पहले चालाक बाहर निकला, इसके बाद पागल सूअर को अपनी पीठ पर लाद कर बाहर निकला।

काँटे की दूकान के सामने ही एक छोटा सा बागीचा था। जब वे उस बागीचे को पार कर रहे थे तो पागल ने देखा कि वहाँ सूप बनाने की कुछ पत्तियाँ उग रही थीं।

सो वह आगे चालाक के पास तक पहुँचा और बोला — “काँटे के बागीचे तक जाओे। उसके बागीचे में सूप बनाने की कई पत्तियाँ उगी हुई हैं। आज कुछ पत्तियाँ तोड़ लो जिनको हम सूअर की टाँग के साथ उबाल लेंगे।”

सो चालाक आगे से लौट कर सूप के लिये पत्तियाँ तोड़ने के लिये काँटे के बागीचे तक वापस गया और पागल अपने रास्ते चलता चला गया।

इतने में काँटे की आँख खुली तो वह अपना ओवन देखने गया तो देखा कि सूअर तो वहाँ से जा चुका था। उसने अपने बागीचे की तरफ निगाह डाली तो चालाक को बागीचे में से सूप बनाने के लिये कुछ पत्ते तोड़ते देखा। उसने सोचा कि वह उसको वहीं से पत्ते तोड़ने देगा।

फिर उसने अपने घर में ही लगा हुआ सूप में डालने वाले पत्तों का एक बड़ा सा गुच्छा तोड़ लिया और अपने बागीचे की तरफ भागा ताकि वह चालाक उसको देख ले।

भागते भागते वह चालाक के आगे निकल गया और आगे जा कर उसने पागल को पकड़ लिया जो सूअर के बोझ से झुका हुआ चला जा रहा था। काँटे ने उसको इशारे से कहा कि थोड़ी दूर तक वह उस सूअर को ले जाने में उसकी सहायता करेगा।

पागल ने सोचा कि वह चालाक था और वह पत्ते ले कर लौट आया था और अब सूअर को ले जाने में उसकी सहायता करने के लिये इशारा कर रहा था। सो पागल ने उससे पत्ते का गुच्छा ले लिया और सूअर उसको दे दिया।

एक बार सूअर काँटे के पास आ गया तो बस, वह तो पलटा और अपने घर की तरफ भाग लिया। कुछ ही देर में चालाक ने भी पत्ते इकठ्ठे कर लिये थे सो उसने भी आगे आ कर पागल को पकड़ लिया।

पास आने पर चालाक ने देखा कि पागल के पास सूअर तो है नहीं और वह बस एक पत्तों का गुच्छा लिये आराम से चलता चला जा रहा है तो उसने उससे पूछा — “तुमने सूअर का क्या किया?”

पागल बोला — “क्या किया का क्या मतलब है। तुम्हीं ने तो मुझसे उसे ले लिया था।”

चालाक ने पूछा — “मैंने? लेकिन मैं तो यहाँ था ही नहीं। मैं कहाँ से लेता। मैं तो यहाँ अभी अभी आया हूँ। नहीं नहीं, मैंने नहीं लिया।”

पागल कुछ परेशान सा बोला — “पर तुमने उसको अभी कुछ देर पहले ही तो पत्तों के बदले में मुझसे उसे ले लिया था।”

चालाक बोला — “मैंने ऐसा कब किया? तुमने ही तो मुझे सूप के लिये पत्ते इकठ्ठे करने को लिये भेजा था और मैं अभी अभी पत्ते लेकर चला आ रहा हूँ।”

अन्त में दोनों को पता चल गया कि काँटे ने ही उन दोनों को बेवकूफ बनाया है। एक बार काँटा फिर उन दोनों को बेवकूफ बना गया था इसलिये उन दोनों ने मान लिया कि उन तीनों में वही सबसे ज़्यादा चालाक और होशियार था।



[1] Crack, Crook and Hook (Story No 123) – a folktale from Irpinia area, Italy, Europe.

Adapted from the book : “Italian Folktales” by Italo Calvino. Translated by George Martin in 1980.

[2] Magpie – a singing bird. See her picture sitting in her nest.

[3] Cheese is a kind of processed Indian Paneer. There are many kinds of cheese and are very popular in western world food items

[4] Oven is a box, made of iron or bricks etc which when is made hot by fire or electricity can cook food. In western world most food are cooked in this way – bread, cake, biscuits, meat dishes etc

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः  - रैवन की लोक कथाएँ,  इथियोपिया इटली की  ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

(क्रमशः अगले अंकों में जारी….)

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फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–5 : 15 पागल, चालाक और काँटा // सुषमा गुप्ता
देश विदेश की लोक कथाएँ — यूरोप–इटली–5 : 15 पागल, चालाक और काँटा // सुषमा गुप्ता
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रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/10/5-15-italy-lokkatha-5-pagal-kanta.html
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