11 नकली नानी [1] एक बार एक माँ को आटा छानना था पर उसके पास आटा छानने के लिये चलनी नहीं थी। उसने अपनी बेटी को अपनी माँ के घर चलनी लाने के लिय...
एक बार एक माँ को आटा छानना था पर उसके पास आटा छानने के लिये चलनी नहीं थी। उसने अपनी बेटी को अपनी माँ के घर चलनी लाने के लिये भेजा।
बच्ची ने अपने लिये कुछ खाना बाँधा – एक अँगूठी की शक्ल वाली डबल रोटी और थोड़ा सा तेल, और वह अपनी नानी के घर से चलनी लाने चल दी।
उसकी नानी के घर के रास्ते में जोरडन नदी[2] पड़ती थी। जब वह जोरडन नदी के पास पहुँची तो उससे बोली — “ओ जोरडन नदी, मुझे नदी पार करने दो।”
जोरडन नदी बोली — “अगर तुम मुझे अपनी अँगूठी की शक्ल वाली डबल रोटी दो तो मैं तुमको नदी पार करने दूँगी।” जोरडन नदी को अँगूठी की शक्ल वाली डबल रोटी बहुत अच्छी लगती थी। वह उसको अपने भँवर में घुमा घुमा कर खाती थी।
सो बच्ची ने अपनी अँगूठी की शक्ल वाली डबल रोटी नदी में फेंक दी। उस डबल रोटी को नदी में फेंकते ही नदी का पानी नीचे उतर गया और वह बच्ची उस नदी को पार कर गयी।
चलते चलते वह बच्ची रेक दरवाजे के पास पहुँची तो बोली — “रेक गेट, रेक गेट, मुझे अपने अन्दर से जाने दोगे?”
रेक गेट बोला — “हाँ हाँ क्यों नहीं, पर अगर तुम मुझे तेल के साथ डबल रोटी खाने के लिये दो तो।” रेक गेट को तेल के साथ डबल रोटी बहुत अच्छी लगती थी।
क्योंकि उसके कब्जे[3] बहुत जंग लगे थे और जब वह तेल लगी डबल रोटी खाता था तो उसके कब्जे बहुत आसानी से चलने लगते थे। सो बच्ची ने उसको भी थोड़ी सी डबल रोटी और तेल दिया और रेक गेट ने उसको अपने अन्दर से जाने दिया।
अब वह अपनी नानी के घर पहुँच गयी थी। पर उसके घर का दरवाजा बहुत कस के बन्द था सो वह बाहर से ही चिल्लायी — “नानी नानी, दरवाजा खोलो। यह मैं हूँ। मुझे अन्दर आने दो।”
अन्दर से नानी की आवाज आयी — “बेटी, मैं बीमार पड़ी हूँ तुम खिड़की से अन्दर आ जाओ।”
बच्ची बोली — “नानी, मैं खिड़की से अन्दर नहीं आ सकती। खिड़की बहुत ऊँची है।”
नानी फिर बोली — “तो फिर बिल्ली के अन्दर आने के दरवाजे से अन्दर आ जाओ।”
बच्ची बोली — “बिल्ली के अन्दर आने का दरवाजा तो बहुत ही छोटा है नानी। मैं उसके अन्दर तो घुस ही नहीं सकती।”
“तब फिर ज़रा रुको।” कह कर उसकी नानी ने एक रस्सी नीचे गिरा दी और उससे उस बच्ची को खिड़की से ऊपर खींच लिया।
कमरे में अँधेरा था सो वह बच्ची यह देख नहीं पायी कि उसको किसने ऊपर खींचा। असल में उस कमरे में उसकी नानी की बजाय एक जादूगरनी[4] लेटी हुई थी।
उस जादूगरनी ने उसकी नानी को एक ही कौर में निगल लिया था। वह उसके दाँत नहीं खा पायी थी क्योंकि वे उसकी नानी ने एक बरतन में रख दिये थे। जादूगरनी ने उनको उबलने के लिये एक बरतन में रख दिया।
बच्ची अन्दर आ कर बोली — “नानी नानी, माँ ने चलनी मँगायी है।”
जादूगरनी बोली — “बेटी, अब तो बहुत देर हो चुकी है। अब मैं वह तुमको कल दूँगी। आओ अब तुम सो जाओ।”
बच्ची बोली — “पर नानी मुझको बहुत भूख लगी है। पहले मुझे खाना चाहिये।”
जादूगरनी बोली — “देखो तो एक बरतन में बीन्स उबल रही हैं तुम वह खा लो।” पर उस बरतन में तो नानी के दाँत उबल रहे थे।
बच्ची ने उस बरतन को इधर उधर हिलाया तो बोली — “नानी ये बीन्स तो बहुत सख्त हैं।”
जादूगरनी बोली — “तो फिर कड़ाही में से पकौड़े निकाल कर खा लो।”
अब कड़ाही में तो नानी के कान थे। बच्ची ने उनमें काँटा घुसा कर देखा तो बोली — “पर नानी ये तो करारे नहीं हैं बहुत ही मुलायम हैं।”
जादूगरनी बोली — “तो फिर तुम अब तुम सो जाओ कल खा लेना।”
यह सुन कर वह बच्ची अपनी नानी के पास उसके बिस्तर में घुस गयी। उसने नानी का एक हाथ छुआ तो बोली — “नानी तुम्हारा हाथ इतना सारे बालों वाला क्यों है?”
जादूगरनी बोली — “क्योंकि मेरी उँगलियों में बहुत सारी अँगूठियाँ हैं।”
फिर उसने नानी की छाती पर हाथ रखा तो वह बोली — “नानी तुम्हारी तो छाती पर भी इतने सारे बाल है?”
जादूगरनी बोली — “हाँ बेटी, क्योंकि मैंने अपने गले में बहुत सारी मालाएं पहन रखी हैं।”
फिर उसने नानी के होठ छुए और बोली — “नानी तुम्हारे होठों पर इतने सारे बाल क्यों हैं?”
जादूगरनी फिर बोली — “क्योंकि मैंने अपने कपड़े बहुत कसे हुए पहन रखे हैं।”
इसके बाद उसके हाथ में नानी की पूँछ आ गयी तो उसको लगा कि ये बाल हों या न हों पर नानी की पूँछ तो कभी थी ही नहीं। उनकी यह पूँछ कहाँ से आ गयी। लगता है कि यह मेरी नानी नहीं बल्कि जादूगरनी है, और कोई नहीं।
सो वह बोली — “नानी मैं तब तक नहीं सो सकती जब तक मैं अपना छोटा काम[5] न कर आऊँ।”
जादूगरनी बोली — “तो जाओ नीचे जानवरों के बाड़े में चली जाओ।” यह कह कर उसने बच्ची को नीचे बाड़े में उतार दिया। जैसे ही वह बच्ची नीचे बाड़े में उतरी उसने अपनी रस्सी खोली और उसमें एक बकरी बाँध दी।
कुछ मिनट बाद नानी ने पूछा — “तुम्हारा छोटा काम हो गया?”
बच्ची ने भी जब बकरी के गले में रस्सी बाँध दी तो वह बोली — “हाँ नानी मेरा काम हो गया। बस अब तुम मुझे ऊपर खींच लो।”
जादूगरनी ने रस्सी ऊपर खींचनी शुरू की तो वह बच्ची चिल्लाने लगी — “बालों वाली जादूगरनी, बालों वाली जादूगरनी।” उसने बाड़े का दरवाजा खोला और वहाँ से भाग ली।
उधर जादूगरनी रस्सी खींचती रही तो वहाँ तो बच्ची की जगह एक बकरी आ गयी। बच्ची की जगह बकरी को देख कर वह जादूगरनी अपने बिस्तर से कूदी और बच्ची के पीछे भागी।
भागते भागते बच्ची रेक गेट के पास पहुँची तो जादूगरनी चिल्लायी — “ओ रेक दरवाजे, इस लड़की को इस दरवाजे से बाहर नहीं जाने देना।”
रेक गेट बोला — “मैं तो इसको जाने दूँगा क्योंकि इसने मुझे खाने के लिये तेल के साथ डबल रोटी दी है।” और वह बच्ची उस गेट से बाहर निकल गयी।
आगे चल कर बच्ची जोरडन नदी के पास पहुँची तो जादूगरनी फिर पीछे से चिल्लायी — “ओ जोरडन नदी, इस लड़की को पार नहीं उतरने देना।”
पर जोरडन नदी बोली — “मैं तो इसको उस पार जाने दूँगी क्योंकि इसने मुझे खाने के लिये अँगूठी की शक्ल वाली डबल रोटी दी है।” और उसने भी बच्ची को पार जाने दिया। इस तरह वह बच्ची दरवाजा और नदी दोनों पार कर गयी।
पर जब जादूगरनी जोरडन नदी पार करने लगी तो उसने अपना पानी नीचे नहीं किया और वह जादूगरनी उस नदी के पानी के बहाव में बह गयी।
बच्ची दूसरे किनारे पर खड़ी खड़ी उसको मुँह बना बना कर चिढ़ाती रही। इस तरह से बच्ची ने जोरडन नदी और रेक गेट की सहायता करके अपने आपको बचा लिया और जादूगरनी को मार दिया।
[1] False Grandmother (Story No 116) – a folktale from Abruzzo area, Italy, Europe.
Adapted from the book : “Italian Folktales”, by Italo Calvino. Translated by George Martin in 1980.
[2] Jordan River
[3] Translated for the word “Hinges”. See its picture above.
[4] Translated for the word “Ogress”
[5] To urinate
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः - रैवन की लोक कथाएँ, इथियोपिया व इटली की ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.
(क्रमशः अगले अंकों में जारी….)
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