7 नमक की तरह प्यारा [1] एक बार एक राजा था जिसके तीन बेटियाँ थीं। एक कत्थई बालों वाली, एक लाल बालों वाली और एक सफेद बालों वाली [2] । उसकी पहल...
एक बार एक राजा था जिसके तीन बेटियाँ थीं। एक कत्थई बालों वाली, एक लाल बालों वाली और एक सफेद बालों वाली[2]।
उसकी पहली बेटी बहुत घरेलू किस्म की थी, दूसरी ठीक थी और तीसरी का दिल बहुत अच्छा था और वह उन सबमें सुन्दर भी थी। सो दोनों बड़ी बेटियाँ अपनी सबसे छोटी बहिन से बहुत जलती थीं।
राजा के पास तीन राज गद्दियाँ थीं – एक सफेद, एक लाल और एक काली। जब वह खुश होता था तो वह सफेद राज गद्दी पर बैठता था। जब वह ठीक सा होता था तो वह अपनी लाल राज गद्दी पर बैठता था और जब गुस्सा होता था तो काली राज गद्दी पर बैठता था।
एक दिन वह अपनी काली राज गद्दी पर बैठा हुआ था क्योंकि वह अपनी दोनों बड़ी बेटियों से नाराज था सो वे उसके पास उसको मनाने के लिये गयीं।
बड़ी वाली बेटी ने पूछा — “पिता जी, क्या आपको रात को नींद ठीक से आयी? आज आप काली राज गद्दी पर बैठे हैं इससे यह पता चलता है कि आप मुझसे गुस्सा हैं। है न?”
“यकीनन मैं तुमसे बहुत गुस्सा हूँ।”
“पर क्यों पिता जी?”
“क्योंकि तुम मुझको बिल्कुल प्यार नहीं करतीं।”
“पर पिता जी मैं तो आपको बहुत प्यार करती हूँ। आप मुझे बहुत प्यारे हैं।
“अच्छा तो फिर बताओ मैं तुम्हें कितना प्यारा हूँ?”
“इतने प्यारे हैं जितनी कि किसी आदमी को रोटी प्यारी होती है।”
राजा ने मुस्कुरा कर बस हामी भरी पर पर कहा कुछ नहीं। वह लड़की के जवाब से बहुत खुश था।
उसके बाद उसकी बीच वाली बेटी आयी और उसने भी जब अपने पिता को काले रंग की राज गद्दी पर बैठे देखा तो उससे पूछा — “पिता जी, क्या आप कल रात ठीक से सोये? आज आप अपनी काले रंग की राज गद्दी पर क्यों बैठे हैं? आप मुझसे नाराज तो नहीं हैं न?”
“यकीनन मैं तुम्हीं से नाराज हूँ।”
“पर क्यों पिता जी? मैंने ऐसा क्या किया?”
“क्योंकि तुम मुझको बिल्कुल प्यार नहीं करतीं।”
“पर पिता जी मैं तो आपको बहुत प्यार करती हूँ। आप मुझे बहुत बहुत बहुत प्यारे हैं।”
“अच्छा बताओ तो कितना प्यारा हूँ मैं तुमको?”
“जितनी प्यारी शराब होती है पिता जी, उतने प्यारे।”
राजा फिर कुछ बुड़बुड़ाया पर वह अपनी उस बीच वाली बेटी के जवाब से भी बहुत खुश था।
कुछ ही देर में हॅंसती खेलती उसकी छोटी बेटी आ गयी। वह भी अपने पिता को काले रंग की राज गद्दी पर बैठे देख कर पिता से बोली — “पिता जी, कल रात आप ठीक से तो सोये न? आज आप इस काले रंग की राज गद्दी पर क्यों बैठे हैं? क्या आप मुझसे नाराज हैं?”
“हाँ बिल्कुल, मैं तुमसे बहुत नाराज हूँ क्योंकि तुम मुझसे बिल्कुल प्यार नहीं करतीं।”
“पर पिता जी मैं तो आपको बहुत बहुत बहुत प्यार करती हूँ।”
“अच्छा बताओ कितना बहुत प्यार करती हो मुझको?”
“इतना प्यार पिता जी जितना कि कोई नमक को करता है।”
यह सुन कर राजा कुछ गुस्सा सा हो गया। वह बोला — “क्या कहा नमक जितना? नमक? ओ नीच हट जा मेरी आँखों के सामने से। मैं तेरी शक्ल भी नहीं देखना चाहता।” और उसने अपनी उस बेटी को जंगल ले जा कर मार डालने का हुकुम दे दिया।
जब उसकी माँ ने, यानी रानी माँ ने जो अपनी उस बेटी को बहुत प्यार करती थी, अपनी इस बेटी के लिये राजा का यह हुकुम सुना तो उसने उसको बचाने के लिये कोई तरकीब सोचनी शुरू कर दी।
राज महल में एक मोमबत्ती थी जो इतनी बड़ी थी जितनी कि उसकी वह बेटी ज़िज़ोला[3]। सो उसने ज़िज़ोला को उसके नीचे वाले हिस्से में घुस जाने के लिये कहा और इस तरह उसको उस मोमबत्ती में छिपा लिया।
फिर उसने अपने एक बहुत ही भरोसे वाले नौकर को बुलाया और उससे उस मोमबत्ती को बेचने के लिये कहा।
उसने अपने उस नौकर से यह भी कहा कि अगर कोई उसके दाम पूछे कि वह मोमबत्ती कितने की है तो अगर वह कोई गरीब हो तो उसको कहना कि उसका दाम है “खुशकिस्मती”।
और अगर वह कोई अमीर या ठीक से खाते पीते घर का हो तो उससे कहना कि वह उसे एक गीत के बदले में ले सकता है। पर ध्यान रखना कि यह मोमबत्ती उसको मिल जाये।”
रानी ने अपनी बेटी को अलग होने पर जो सलाह दी जाती हैं वे सब सलाह उसको दी, एक डिब्बा भर कर अंजीर, चौकलेट और बिस्किट दिये। फिर उसको चूमा और विदा कहा।
नौकर वह मोमबत्ती ले कर वहाँ से शहर के चौराहे पर चला गया और उसको बेचने के लिये खड़ा हो गया।
उस मोमबत्ती की कीमत पूछने बहुत लोग आये। जो लोग उसकी कीमत जानना चाहते थे पर जो लोग उसको देखने में अच्छे नहीं लगे उनको उसने उस मोमबत्ती की बहुत बड़ी कीमत बता दी और इस तरह से वे चले गये।
आखीर में हाइटौवर[4] के राजा का लड़का उधर आ निकला। उसने उस मोमबत्ती को देखा तो उस नौकर से उसकी कीमत पूछी तो नौकर ने उसको उसकी कुछ ज़्यादा ही कम कीमत बतायी।
राजकुमार ने वह मोमबत्ती खरीद ली और उसको अपने महल में ले गया। वहाँ उसने वह अपने खाने के कमरे में रख दी। अब जो भी उस कमरे में खाना खाने आता वह उस मोमबत्ती को देखता तो उसकी तारीफ करता।
शाम को राजकुमार अक्सर ही कुछ लोगों से मिलता जुलता रहता था सो घर आने में उसको देर हो जाती थी। और क्योंकि घर पर उसका इन्तजार करने वाला कोई था नहीं तो नौकर ही उसका रात का खाना मेज पर लगाया करते थे और लगा कर सोने चले जाते थे।
उस दिन भी ऐसा ही हुआ। राजकुमार लोगों से मिलने चला गया और नौकर लोग उसका रात का खाना मेज पर लगा कर अपने अपने घर चले गये।
जब ज़िज़ोला ने देखा कि उस कमरे में कोई नहीं है तो वह मोमबत्ती में से बाहर निकल कर आयी और जो कुछ भी मेज पर रखा था वह सब खा गयी और फिर उस मोमबत्ती में जा कर छिप गयी।
राजकुमार घर आया तो उसको खाने के लिये खाने की मेज पर कुछ भी नहीं मिला। उसने घर की सारी घंटियाँ बजायीं तो उसके सारे नौकर दौड़े आये।
उसने सारे नौकरों को गालियाँ दीं पर उन्होंने कसम खा कर कहा कि उन्होंने उसका रात का खाना वहाँ रखा था पर लगता है कि कोई बिल्ली या कुत्ता उसे खा गया।
राजकुमार ने गुस्से में कहा — “अगर ऐसा फिर से हुआ तो मैं तुम सबको बाहर निकाल दूँगा।” फिर उसने दूसरा खाना मॅगवाया, खाया और खा कर सोने चला गया।
अगली शाम हालॉकि सब कुछ बन्द था पर फिर भी वैसा ही हुआ।
एक बार को तो सबको ऐसा लगा जैसे राजकुमार चिल्ला चिल्ला कर सारा घर सिर पर उठा लेगा पर ऐसा नहीं हुआ। अब की बार वह बोला — “ठीक है कल शाम को फिर देखते हैं कि क्या होता है।”
जब अगली रात आयी तब बच्चों तुम क्या सोचते हो कि उसने क्या किया होगा?
वह खाने की मेज के नीचे छिप गया। मेज के ऊपर एक ऐसा मेजपोश पड़ा हुआ था जो जमीन को छू रहा था सो उसको कोई नहीं देख सकता था।
नौकर आये, उन्होंने मेज पर खाना लगाया, फिर कुत्ते और बिल्ली को बाहर निकाला और दरवाजा बन्द करके बाहर चले गये।
जैसे ही सब बाहर चले गये, मोमबत्ती खुली और उसमें से ज़िज़ोला बाहर निकली। वह मेज की तरफ गयी और उसने पेट भर कर खाना खाया।
खाा कर वह फिर से अपनी मोमबत्ती में घुसने के लिये चली कि तभी मेज के नीचे से राजकुमार निकल आया और उसने उसका हाथ पकड़ लिया। ज़िज़ोला ने उसकी पकड़ से छूटना चाहा पर उसने भी उसका हाथ कस कर पकड़ रखा था।
सो ज़िज़ोला नीचे बैठ गयी और उसको शुरू से आखीर तक अपनी सारी कहानी कह सुनायी। राजकुमार तो उसको देखते ही प्यार करने लगा था।
उसने उसको तसल्ली दी और कहा — “तुम यह समझ लो कि तुम ही मेरी दुलहिन बनोगी पर अभी तुम अपनी इस मोमबत्ती में ही वापस चली जाओ।”
कह कर राजकुमार भी सोने चला गया पर वह रात भर अपनी आँखें ही बन्द नहीं कर सका। वह ज़िज़ोला के बारे में ही सोचता रहा।
सुबह को उसने उस मोमबत्ती को अपने कमरे में मॅंगवा लिया। वह मोमबत्ती इतनी सुन्दर थी कि वह रात को भी उसको अपने पास ही रखना चाहता था।
दूसरा काम उसने यह किया कि अब उसने अपना खाना अपने कमरे में ही मॅंगवाना शुरू कर दिया – दो आदमियों का खाना, क्योंकि वह बहुत भूखा था।
अगले दिन वे उसके लिये कौफी ले कर आये, फिर गरम नाश्ता ले कर आये, फिर दोपहर का खाना और फिर शाम का खाना – मगर सब दोहरा दोहरा।
जैसे ही वे नौकर खाना रख कर चले जाते वह कमरे का दरवाजा बन्द कर लेता, ज़िज़ोला को बुलाता और फिर दोनों आपस में नाश्ता खाते, खाना खाते और खूब बातें करते।
रानी जिसको कि अपना खाना इन दिनों खाने वाले कमरे में अकेले ही खाना ही पड़ रहा था अब बहुत दुखी रहती थी — “मेरे बेटे को मेरी तरफ से ऐसी क्या नाराजगी है कि वह अब मेरे साथ खाना भी नहीं खाता? मैंने उसके साथ क्या बुरा किया है?”[5]
बार बार राजकुमार ने उसको थोड़ा धीरज रखने के लिये कहा और कहा कि उसको अपने लिये थोड़ा समय चाहिये। फिर एक दिन उसने अपनी माँ को बताया — “माँ मैं शादी कर रहा हूँ।”
रानी खुश हो कर बोली “और वह दुलहिन कौन है?”
राजकुमार ने बताया कि वह एक मोमबत्ती से शादी करेगा।
रानी अपनी आँखों पर हाथ रख कर बोली — “हे भगवान लगता है कि मेरे बेटे का दिमाग खराब हो गया है।” पर राजकुमार तो यही चाहता था।
राजकुमार की माँ ने उसको याद दिलाया कि वह इस बात की उसको कम से कम वजह तो बताये क्योंकि लोग सवाल पूछेंगे पर राजकुमार तो अपनी जिद से टस से मस ही नहीं हुआ। उसने शादी के सारे इन्तजाम एक हफ्ते में कर लिये।
शादी वाले दिन बहुत सारी गाड़ियाँ महल से चलीं। पहली गाड़ी में राजकुमार खुद था और उसके साथ रखी थी उसकी मोमबत्ती। वे सब चर्च पहुँच गये और लोग उस मोमबत्ती को चर्च के अन्दर ले गये।
सही समय पर मोमबत्ती खुली और उसमें से ज़िज़ोला ब्रोकेड की पोशाक पहने निकली। गले और कानों में उसने बहुत सारे रत्न पहन रखे थे जो बहुत चमक रहे थे।
शादी के बाद वे महल लौट आये और वहाँ रानी ने उसकी सारी कहानी सुनी। रानी बहुत होशियार थी वह ज़िज़ोला से बोली — “तुम सब मेरे ऊपर छोड़ दो। मैं तुम्हारे उस पिता को अच्छा सबक सिखाऊंगी।”
जब उनकी शादी की दावत हुई तो रानी ने पास के सारे राजाओं को उस दावत में बुलाया। उन राजाओं में ज़िज़ोला के पिता भी शामिल थे।
उनके लिये रानी ने खास खाना बनवाया था। उनके खाने में नमक बिल्कुल भी नहीं था। सब मेहमानों को कह दिया गया कि दुलहिन की तबियत ठीक नहीं थी इसलिये वह दावत में शामिल नहीं हो सकती थी।
सो सब लोगों ने खाना शुरू कर दिया पर दुलहिन का पिता राजा जिसको बिना नमक का बेस्वाद सूप मिला था अपने आप ही कुछ बड़बड़ाने लगा — “रसोइया लगता है सूप में नमक डालना भूल गया दिखता है।” पर वह क्या करता उसने वह सूप छोड़ दिया।
बाकी खाना जो आया वह भी सब बिना नमक का था। राजा ने अपना काँटा नीचे रख दिया।
“राजा साहब, आप खाना नहीं खा रहे, क्या बात है? खाना अच्छा नहीं लग रहा है?”
“नहीं नहीं, बहुत स्वाद है।”
“फिर आप खा क्यों नहीं रहे?”
“अचानक ही मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा है।” उसने फिर एक काँटा भर कर माँस अपने मुँह में रखा और उसे कितना भी चबा कर खाना चाहा पर वह उसके गले से नीचे ही नहीं उतरा।
तब उसको याद आयी अपनी सबसे छोटी बेटी की कि एक दिन उसने उससे कहा था कि वह उसको नमक की तरह प्यार करती थी।
उसको उसकी यही बात सोच कर रोना आ गया और वह रो पड़ा — “ओह, मैंने कितना गलत किया था।”
रानी जानना चाहती थी कि क्या मामला था जो राजा खाना नहीं खा रहा था और रो रहा था। तब राजा ने उसे अपनी सबसे छोटी बेटी ज़िज़ोला के बारे में सब कुछ बता दिया।
इस पर रानी उठी और उसने अन्दर से ज़िज़ोला को बुलवाया। ज़िज़ोला को देख कर राजा बहुत खुश हुआ। उसने उसको गले से लगा लिया और और ज़ोर ज़ोर से रो पड़ा।
उसने उससे पूछा कि वह वहाँ क्या कर रही थी जैसे कि वह मरी से जी गयी हो। तब उसने पिता को अपना सारा हाल बताया।
फिर उन लोगों ने उसकी माँ को भी वहीं बुलवा लिया और फिर वहाँ नये तरीके से खुशियाँ मनायीं जाने लगीं।
[1] Dear as Salt (Story No 54) – a folktale from Italy from its Bologna area. Adapted from the book “Italian Folktales: selected and retold by Italo Calvino. San Diego, Harcourt Brace Jovanovich, Publishers. 1980. 763 p.
[My Note: The King has three daughters, three thrones, and tastes the food only three times at the wedding feast of his daughter…]
[2] Translated for the word “Blond or blonde”. Blond means who have some off white or fair color hair.
[3] Zizola – name of the youngest daughter
[4] The son of Hightower
[5] Here there is some discrepancy. Before it is said that “there was nobody who waited for the king at home to eat dinner with him that is why the servants put his food on his dining table and went away; and here they say that his mother was there and waited for him to eat food with him.
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं के संकलन में से क्रमशः - रैवन की लोक कथाएँ, इथियोपिया व इटली की ढेरों लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.
(क्रमशः अगले अंकों में जारी….)
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