इटली की लोक कथाएँ–2 : 17 - स्वर्ग में एक रात // सुषमा गुप्ता

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एक बार की बात है कि एक जगह दो बड़े अच्छे दोस्त रहा करते थे। एक बार उन्होंने आपस में अपने प्रेम की वजह से यह कसम खायी कि जिस किसी की भी शादी ...

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एक बार की बात है कि एक जगह दो बड़े अच्छे दोस्त रहा करते थे। एक बार उन्होंने आपस में अपने प्रेम की वजह से यह कसम खायी कि जिस किसी की भी शादी पहले होगी वह दूसरे को अपना बैस्टमैन बनने के लिये बुलायेगा चाहे वह धरती के किसी भी कोने में क्यों न हो।

इत्तफाक की बात कि इस कसम को खाने के कुछ दिन बाद ही उनमें से एक दोस्त चल बसा। और फिर दूसरा दोस्त जो ज़िन्दा बचा था उसकी शादी होने वाली थी।

अब उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे। वह कैसे अपने दोस्त को अपना बैस्टमैन बनने के लिये बुलाये सो वह चर्च में अपने कनफैशन कराने वाले पादरी के पास गया।

पादरी बोला — “यह तो बड़ी अजीब सी बात है। पर तुम्हें अपना वायदा तो निभाना ही चाहिये। चाहे वह मर गया है पर तुमको तो उसको बुलाना ही चाहिये।”

फिर पादरी ने उसको सलाह दी — “तुम ऐसा करो कि तुम उसकी कब्र पर जाओ और उसको वही कहो जो तुमको उससे कहना चाहिये। फिर यह उसकी जिम्मेदारी है कि वह तुम्हारी शादी में तुम्हारा बैस्टमैन बनने के लिये आता है या नहीं।”

उस पादरी की बात मान कर वह अपने दोस्त की कब्र पर गया और बोला — “दोस्त, अब समय आ गया है जब तुम्हें मेरा बैस्टमैन बनना है।”

शादी वाले दोस्त के आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उसने देखा कि उसके सामने सामने जमीन हिली और उसमें से उसका दोस्त कूद कर बाहर निकल आया और बोला — “हर हाल में मुझे अपना वायदा निभाना है नहीं तो मुझे परगेटरी में जाना पड़ेगा और पता नहीं मुझे फिर वहाँ कब तक रहना पड़े।”

वहाँ से पहले वे दोनों घर गये और फिर वहाँ से शादी के लिये चर्च गये। शाम को शादी की दावत हुई तो वहाँ उस मरे हुए दोस्त ने सबको बहुत सारी कहानियाँ सुनायीं पर सबसे ज़्यादा आश्चर्य की बात तो यह थी कि उसने उस दूसरी दुनियाँ के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा कि वहाँ उसने वहाँ क्या देखा या क्या किया।

दुलहा उससे कई सवाल पूछना चाहता था पर उससे किसी भी सवाल पूछने की उसकी हिम्मत ही नहीं पड़ रही थी

दावत खत्म हो जाने के बाद वह मरा हुआ दोस्त उठा और अपने दुलहा दोस्त से बोला — “क्योंकि मैंने तुम्हारे ऊपर यह एहसान किया है कि मैं तुम्हारी शादी में बेस्टमैन बनने के लिये धरती पर आया तो इसके बदले में क्या तुम मेरे साथ वापस कुछ दूर तक चलोगे?”

“ओह क्यों नहीं, क्यों नहीं। यकीनन। पर मैं बहुत दूर तक नहीं जा सकता क्योंकि आज ही तो मेरी शादी हुई है।”

“मुझे मालूम है। तुम जब भी चाहो रास्ते में से लौट सकते हो।”

सो दुलहे ने अपनी दुलहिन से विदा ली और बोला — “मैं ज़रा बाहर जा रहा हूँ अभी वापस आता हूँ।” और वह अपने उस मरे हुए दोस्त के साथ चल दिया।

दोनों बात करते हुए चले जा रहे थे। उन्होंने पहले किसी एक बात के बारे में बात की, फिर दूसरी बात के बारे बात की और फिर बात करते करते वे उस मरे हुए दोस्त की कब्र तक आ गये।

वहाँ उन्होंने एक दूसरे को गले लगाया। उसी समय ज़िन्दा दोस्त ने सोचा कि अगर मैंने इससे अब नहीं पूछा तो शायद फिर मैं कभी नहीं पूछ पाऊँगा।

सो उसने अपना मन पक्का किया और हिम्मत करके पूछा — “दोस्त, क्योंकि तुम मर गये हो इसलिये मैं तुमसे एक बात पूछना चाहता हूँ।”

“हाँ हाँ पूछो क्या पूछना चाहते हो।”

“इस दुनियाँ के बाद क्या होता है।”

मरा हुआ दोस्त बोला — “मैं खुद तो तुमको इस बारे में ज़्यादा कुछ नहीं बता सकता पर अगर तुम जानना ही चाहते हो तो तुम खुद ही मेरे साथ स्वर्ग क्यों नहीं चलते?”

तभी वह कब्र खुल गयी और वह ज़िन्दा दोस्त अपने मरे हुए दोस्त के पीछे पीछे उस कब्र में चला गया और वे दोनों स्वर्ग में आ गये।

मरा हुआ दोस्त अपने ज़िन्दा दोस्त को एक बहुत ही सुन्दर क्रिस्टल के महल में ले गया। उस महल के दरवाजे सोने के बने थे। वहाँ देवदूत हार्प बजा रहे थे और खुशकिस्मत आत्माएँ उस संगीत पर नाच रहीं थीं। सेन्ट पीटर वहाँ पर ढोल बजा रहे थे।

वह ज़िन्दा दोस्त तो यह सब शान देख कर भौंचक्का रह गया। उसका तो मुँह खुला का खुला रह गया। उसको इस बात का पता ही नहीं चलता कि वह वहाँ उस महल को कितनी देर तक देखता रहता अगर उसको बाकी का स्वर्ग न देखना होता।

मरा हुआ दोस्त बोला — “चलो अब मैं तुमको दूसरी जगह दिखाता हूँ।”

कह कर वह अपने दोस्त को एक बागीचे की तरफ ले गया जिसके पेड़ लकड़ी और पत्तों के न हो कर बहुत सारे रंगों की गाने वाली चिड़ियें दिखा रहे थे।

मरा हुआ दोस्त फिर बोला — “जागो मेरे दोस्त जागो। चलो और आगे चलते हैं।”

कह कर वह अपने दोस्त को एक घास के मैदान की तरफ ले गया जहाँ देवदूत प्रेमियों की तरह से खुशी से नाच रहे थे।

मरा हुआ दोस्त फिर बोला — “चलो अब हम एक तारा देखेंगे।” ज़िन्दा दोस्त को तो तारे इतने अच्छे लगते थे कि वह तो तारे हमेशा के लिये देख सकता था। सो वह उसके पीछे पीछे तारा देखने चल दिया।

फिर वहाँ उसने नदियाँ देखीं जिनमें पानी की जगह शराब बह रही थी और उनकी तलियाँ चीज़ की बनी हुई थीं।

अचानक वह ज़िन्दा दोस्त चिल्ला पड़ा — “ओ मेरे भगवान, ओ मेरे दोस्त, मुझे तो बहुत देर हो गयी। मुझे तो अपनी दुलहिन के पास वापस लौटना था। वह मेरे बारे में चिन्ता कर रही होगी।”

“क्या तुमने स्वर्ग इतनी जल्दी देख लिया?”

“हाँ काफी तो देख ही लिया है। काश मेरे पास मेरी अपनी इच्छा होती।”

“अभी तो यहाँ देखने के लिये बहुत कुछ बाकी है।”

“मुझे तुम्हारे ऊपर पूरा विश्वास है कि यहाँ पर सचमुच ही देखने के लिये काफी कुछ होगा पर अब मुझे वापस जाना चाहिये। मुझे पहले ही काफी देर हो गयी है।”

“ठीक है जैसे तुम्हें अच्छा लगे।” कह कर वह मरा हुआ दोस्त अपने ज़िन्दा दोस्त को कब्र तक वापस छोड़ गया और खुद वहीं गायब हो गया।

ज़िन्दा दोस्त कब्र से बाहर तो आया पर उसको वह कब्रिस्तान पहचान में ही नहीं आया। उसमें तो बहुत सारे पत्थर और मूर्तियाँ लगी हुई थीं और ऊँचे ऊँचे पेड़ खड़े थे। यह कब्रिस्तान पहले तो ऐसा नहीं था।

वहाँ से जब वह बाहर निकला तो उसको बहुत ऊँची ऊँची इमारतें दिखायी दीं – पर वहाँ तो पहले सादे से पत्थरों के मकान हुआ करते थे जो सड़क के दोनों तरफ लाइन से लगे हुए थे। ये इतनी ऊँची ऊँची इमारतें कहाँ से आ गयीं?

सड़कें कार, ट्रक और कई तरह की और गाड़ियों से भरी हुई थीं और आसमान में हवाई जहाज़ उड़ रहे थे।

“अरे मैं धरती के किस हिस्से में आ गया? क्या मैं किसी गलत सड़क पर आ गया? और देखो तो ये लोग किस तरीके के कपड़े पहने हैं?”

उसने सड़क पर चलते हुए एक बूढ़े को रोका और उससे पूछा — “जनाब यह कौन सा शहर है?”

“तुम्हारा मतलब है कि इस शहर का नाम क्या है?”

“जी हाँ इसी शहर का। इस शहर का नाम क्या है? मैं इसे पहचान नहीं पा रहा हूँ। क्या आप मुझे उस आदमी के घर का पता बता सकते हैं जिसकी अभी कल ही शादी हुई है।”

वह बूढ़ा बोला — “कल? मैं चर्च की देखभाल करने वाला आदमी हूँ इसलिये मैं यह बात यकीन के साथ कह सकता हूँ कि कल तो यहाँ कोई शादी नहीं हुई।”

“यह तुम क्या कह रहे हो? मेरी तो खुद की शादी कल हुई थी और तुम कह रहे हो कि कल यहाँ कोई शादी ही नहीं हुई।”

फिर उसने उस बूढ़े को अपने मरे हुए दोस्त के साथ स्वर्ग जाने का पूरा हाल बताया।

बूढ़ा हँसा और बोला — “लगता है कि तुमने सपना देखा है। यह तो बहुत पुरानी कहानी है जो यहाँ के बूढ़े अपने पोते पोतियों को सुनाते हैं। कि एक दुलहा अपनी शादी के दिन अपनी नयी दुलहिन को छोड़ कर अपने मरे हुए दोस्त के साथ उसकी कब्र पर चला गया था और फिर वहाँ से कभी वापस नहीं आया। उसकी पत्नी तो बेचारी उसके दुख में रो रो कर ही मर गयी।”

“यह तो हो ही नहीं सकता क्योंकि वह दुलहा तो मैं खुद हूँ।”

“सुनो, अब तुम केवल एक काम कर सकते हो। वह यह कि हमारे बिशप से जा कर बात कर लो। वही तुमको बता सकते हैं कि कब क्या हुआ था।”

“बिशप? पर यहाँ इस शहर में तो केवल एक पारिश पादरी ही होता है। यह बिशप कहाँ से आ गया।”

“यह पारिश पादरी क्या? यहाँ बिशप को तो रहते बहुत साल हो गये।” और यह कह कर चर्च की देखभाल करने वाला वह बूढ़ा उसको अपने बिशप के पास ले गया।

वहाँ जा कर उस ज़िन्दा दोस्त ने उस बिशप को अपनी कहानी सुनायी तो उस बिशप को एक घटना की याद आयी जो उसने बचपन में सुनी थी। वह पारिश के कई रजिस्टर ले कर आया और उनमें से एक रजिस्टर के पन्ने पीछे की तरफ पलटने लगा।

पन्ने पलटते हुए वह बोला — “30 साल पहले, नहीं नहीं 50 साल पहले, नहीं नहीं 100 साल पहले, नहीं नहीं 200 साल पहले, नहीं नहीं ....।

वह पन्ने पलटता रहा और ऐसे ही कुछ कुछ बोलता रहा। आखीर में एक पीले से मुड़े तुड़े पन्ने पर लिखे नामों पर उँगली रख कर बोला — “हाँ यह 300 साल पुरानी बात है। एक नौजवान कब्रिस्तान में गायब हो गया था और उसकी पत्नी उसके दुख में रो रो कर मर गयी थी। यह देखो यह पढ़ो अगर तुमको मेरा यकीन न हो तो।”

“पर यह दुलहा तो मैं खुद ही हूँ।”

“ओह तो वह तुम ही हो जो दूसरी दुनियाँ गये थे। मुझे भी तो कुछ बताओ न उस दूसरी दुनियाँ के बारे में।”

पर यह सुन कर वह ज़िन्दा दोस्त तो एक मरे हुए आदमी की तरह पीला पड़ गया, जमीन में धँस गया और उसके बाद वह स्वर्ग के बारे में उस बिशप से एक शब्द भी कह सकता कि उससे पहले ही वह मर गया।

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं की एक अन्य पुस्तक - रैवन की लोक कथाएँ में से एक लोक कथा यहाँ पढ़ सकते हैं. इथियोपिया इटली की बहुत सी अन्य लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

(समाप्त)

देश विदेश की लोक कथाओं की सीरीज़ में Scribd पर प्रकाशित —

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16 अकबर बीरबल की कहानियाँ–1 — 15 कहानियाँ — 45 पृष्ठ

17 अकबर बीरबल की कहानियाँ–1 — 15 कहानियाँ — 45 पृष्ठ

18 विक्रम बेताल की कहानियाँ–पुराण से — 9 कहानियाँ — 60 पृष्ठ

19 जानवरों की कहानियाँः अरेबियन नाइट्स से — 10 कहानियाँ — 78 पृष्ठ

20 एक प्रकार की कहानीः भिन्न भिन्न देश–1 — 6 कहानियाँ — 56 पृष्ठ

21 लोक कथाओं में बेवकूफ — 12 कहानियाँ — 72 पृष्ठ

22 लोक कथाओं में नम्बर तीन–1 — 12 कहानियाँ — 72 पृष्ठ

23 लोक कथाओं में फल–1 — 6 कहानियाँ — 60 पृष्ठ

24 लोक कथाओं में फल–2 — 6 कहानियाँ — 60 पृष्ठ

25 लोक कथाओं में फल–3 — 8 कहानियाँ — 90 पृष्ठ

26 लोक कथाओं में फल–3–2 — 10 कहानियाँ — 122 पृष्ठ

27 लोक कथाओं में बरतन — 9 कहानियाँ — 72 पृष्ठ

28 लोक कथाओं में नम्बर तीन — 8 कहानियाँ — 62 पृष्ठ

29 लोक कथाओं में ईसाई धर्म–1 — 7 कहानियाँ — 60 पृष्ठ

30 लोक कथाओं में ईसाई धर्म–2 — 12 कहानियाँ — 130 पृष्ठ

31 लोक कथाओं में सिलाई कढ़ाई कताई बुनाई — 10 कहानियाँ — 134 पृष्ठ

32 वरदानों का कमाल — 9 कहानियाँ — 112 पृष्ठ

33 आओ हँसें हँसाएँ — 12 कहानियाँ — 82 पृष्ठ

34 नकल करो मगर अक्ल से — 9 कहानियाँ — 94 पृष्ठ

35 जो होना था हो के रहा .... — 8 कहानियाँ — 72 पृष्ठ

36 चालाक कोयोटे–1 — 10 कहानियाँ — 80 पृष्ठ


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Updated on May 27, 2016


लेखिका के बारे में

सुषमा गुप्ता का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में सन् 1943 में हुआ था। इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र और अर्थ शास्त्र में ऐम ए किया और फिर मेरठ विश्वविद्यालय से बी ऐड किया। 1976 में ये नाइजीरिया चली गयीं। वहाँ इन्होंने यूनिवर्सिटी औफ़ इबादान से लाइब्रेरी साइन्स में ऐम ऐल ऐस किया और एक थियोलोजीकल कौलिज में 10 वर्षो तक लाइब्रेरियन का कार्य किया।

वहाँ से फिर ये इथियोपिया चली गयीं और वहाँ एडिस अबाबा यूनिवर्सिटी के इन्स्टीट्यूट औफ़ इथियोपियन स्टडीज़ की लाइब्रेरी में 3 साल कार्य किया। तत्पश्चात इनको दक्षिणी अफ्रीका के एक देश़ लिसोठो के विश्वविद्यालय में इन्स्टीट्यूट औफ़ सदर्न अफ्रीकन स्टडीज़ में 1 साल कार्य करने का अवसर मिला। वहाँ से 1993 में ये यू ऐस ए आगयीं जहाँ इन्होंने फिर से मास्टर औफ़ लाइब्रेरी एँड इनफौर्मेशन साइन्स किया। फिर 4 साल ओटोमोटिव इन्डस्ट्री एक्शन ग्रुप के पुस्तकालय में कार्य किया।

1998 में इन्होंने सेवा निवृत्ति ले ली और अपनी एक वेब साइट बनायी – www.sushmajee.com। तब से ये उसी वेब साइट पर काम कर रहीं हैं। उस वेब साइट में हिन्दू धर्म के साथ साथ बच्चों के लिये भी काफी सामग्री है।

भिन्न भिन्न देशों में रहने से इनको अपने कार्यकाल में वहाँ की बहुत सारी लोक कथाओं को जानने का अवसर मिला – कुछ पढ़ने से, कुछ लोगों से सुनने से और कुछ ऐसे साधनों से जो केवल इन्हीं को उपलब्ध थे। उन सबको देख कर इनको ऐसा लगा कि ये लोक कथाएँ हिन्दी जानने वाले बच्चों और हिन्दी में रिसर्च करने वालों को तो कभी उपलब्ध ही नहीं हो पायेंगी – हिन्दी की तो बात ही अलग है अंग्रेजी में भी नहीं मिल पायेंगीं।

इसलिये इन्होंने न्यूनतम हिन्दी पढ़ने वालों को ध्यान में रखते हुए उन लोक कथाओं को हिन्दी में लिखना प्रारम्भ किया। इन लोक कथाओं में अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी अमेरिका के देशों की लोक कथाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों की भी कुछ लोक कथाएँ सम्मिलित कर ली गयी हैं।

अभी तक 1200 से अधिक लोक कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी है। इनको “देश विदेश की लोक कथाएँ” क्रम में प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है। आशा है कि इस प्रकाशन के माध्यम से हम इन लोक कथाओं को जन जन तक पहुँचा सकेंगे।

विंडसर, कैनेडा

मई 2016

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: इटली की लोक कथाएँ–2 : 17 - स्वर्ग में एक रात // सुषमा गुप्ता
इटली की लोक कथाएँ–2 : 17 - स्वर्ग में एक रात // सुषमा गुप्ता
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रचनाकार
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