01 सच कहने पर कहाँ भलाई होती है, और झूठों के हाथ मलाई होती है। अच्छा माल कमीशन में पिट जाता है, घटिया की जमकर सप्लाई हो...
01
सच कहने पर कहाँ भलाई होती है,
और झूठों के हाथ मलाई होती है।
अच्छा माल कमीशन में पिट जाता है,
घटिया की जमकर सप्लाई होती है।
सारे नियम शिथिल होकर रह जाते हैं,
जब दबंग की जेल मिलाई होती है।
बारूदों से उनकी यारी ठीक नहीं,
हाथ में जिनके दियासलाई होती है।
खोटे सिक्के वहीँ चलन में आते हैं,
सरकारों की जहाँ ढिलाई होती है।
सीवन गर उघड़े तो फिर सिल जाती है,
उखड़े मन की कहाँ सिलाई होती है।
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02
हम भी हैं आपके जरा खबर तो लीजिये,
रहते हैं साथ में जरा नज़र तो कीजिये।
बेशक़ उड़ान भर रहे हैं आसमां में आप,
चलना ज़मीं पे है ज़रा उतर तो लीजिये।
मरने के डर से स्वाभिमान खो दिया तो क्या,
ज़िंदा रहेगा नाम ज़रा मर तो लीजिये।
जो आगे बढ़ा उसको रास्ते भी मिल गए,
मंज़िल भी मिलेगी ज़रा सफ़र तो कीजिये।
चुपचाप बैठने से तबज़्ज़ो नहीं मिलती,
सुनने लगेंगे सब ज़रा उज़र तो कीजिये।।
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03
बात अगर आये तो कहनी पड़ती है ,
अगर ना कह पाये तो बात बिगड़ती है।
सच का जहाँ विरोध झूठ का पोषण हो,
ऐसी बस्ती तो इक रोज उजड़ती है।
तब सच कह देना बहुत जरूरी होता है,
तानाशाही जब जब जोर पकड़ती है।
भले भेड़िये के हाथों मर जाना है,
अब्बू खाँ की बकरी फिर भी लड़ती है।
शायर गलती को गलती कह देता है,
बेश़क गलती उस पर खूब अकड़ती है।
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04
जिंदगी क्या है महज एक फ़साना भर है।
हम तो मेहमाँ हैं यहाँ वक़्त बिताना भर है।।
ये घर नहीं है जिसे घर समझ के बैठे है ।
घर तो वो है यहाँ तो सिर्फ ठिकाना भर है।।
क्या है मज़हब किसी भूखे से पूछकर देखो।
बदल के भेष जिसे भूख मिटाना भर है।।
रौशनी के लिए बयान खूब होते हैं।
रौशनी के लिए एक दीप जलाना भर है।।
आदमीयत को खो के जी रहे हैं लोग यहाँ।
हमें तो आँख के पानी को बचाना भर है।।
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05
हँसते चेहरों में भी गम के निशान होते हैं।
जिंदगी में तो कई इम्तहान होते हैं।।
शरीके जुर्म तो कानून से भी ऊपर हैं।
शरीफ लोगों के अब तो बयान होते हैं।।
सारी दुनियां की निगाहों में सिर्फ पैसा है।
रिश्ते भी अब तो यहाँ पर दुकान होते हैं।।
झोंपड़ी तोड़ने में देर नहीँ लगती है।
देर लगती है जहाँ पर मकान होते हैं।।
देखते सुनते हैं पर अंधे और बहरे हैं।
जुबान तो है मगर बेजुबान होते है।।
सफ़ेद पोश हैं पर काम उनके काले हैं।
यही वे लोग हैं जो अब महान होते हैं।।
शिकार करने में राकेश वही अव्वल हैं।
सबसे ऊँचे यहाँ जिनके मचान होते हैं।।
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06
हर घड़ी याद आयेंगे हम बार बार
गम में भी मुस्करायेंगे हम बार बार।
हर्फ़ जब जब पढ़ोगे किताबों के तुम
उनमें हम ही नज़र आयँगे बार बार।
दिन में बेशक़ हमें तुम भुला दो मगर
रातों को ख़्वाब में आयेंगे बार बार।
रहजनी करने बैठे हैं लाखों यहाँ
मुश्किलों में बचायेंगे हम बार बार।
सच को सुनने की आदत बना लीजिये
हम तो आईना दिखलायेंगे बार बार।
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07
रिश्ते भी अब तो हमको निभाने नहीं आते
त्योहार भी तो हमको मनाने नहीं आते।
ये कैसी शोहरतो का नशा हम पे चढ़ा है
जिनकी बजह से हम है वो हमको नहीं भाते।
जो दिल में हमारे है वही तो जुबाँ पे है
हमको तो बहाने भी बनाने नहीं आते।
मैखानों में कुछ लोग शौक से ही आ गए
सब लोग यहाँ गम को भुलाने नहीं आते।
सब अपनी अपनी कीमतें हैं तय किये हुए
बस आप सही भाव लगाने नहीं आते।
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08
कोई भी मसला हो उसका हल निकलता है
रात कितनी स्याह हो सूरज निकलता है।
चंद दिन भी दुश्मनी ढंग से निभा पाए नहीं
ये सियासत है यहाँ सब कुछ बदलता है।
क़त्ल होगा आज सब छज्जों पे आ गए
क़ातिलो पर एक भी पत्थर न चलता है
बेबशी का हाल विधवा माँ से जाके पूछिये
जिसका बच्चा बाप की खातिर मचलता है।
आज भी गुड़िया न ले पाई थी जिस मजबूर ने
अपने घर जाने में वो कितना दहलता है ।
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09
दुश्मनी में बक्त जाया बेवजह किया
मुखबरी अपनों ने की शक बेवजह किया।
शाखों की साजिशों से जमींदोज था दरख़्त
हमने तो आंधियों को दोष बेवजह दिया।
सर्द रातों में सुलाया जिसने आँचल में तुम्हें
उससे कहते हो की कम्बल बेवजह लिया।
तुझसे मिलने पर हमें मालूम ये हुआ
हमने अब तक जिन्दगी को बेवजह जिया।
जिन्दगी का सच सियासतदान के जैसा रहा
हमने तो उस पर भरोसा बेवजह किया।
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10
हज़ारों ख्वाब पलते हैं हमारी बंद आँखों में,
मगर जब आँख खुलती है तो सारे टूट जाते हैं।
कई मजबूरियां होती हैं रिश्तों को निभाने में,
मगर जो नासमझ होते हैं अक्सर रूठ जाते हैं।
ये दुनिया ही हमें हालात से लड़ना सिखाती है,
जो ऊँगली थम चलते हैं वो पीछे छूट जाते हैं।
जो रिश्ते झूठ की बुनियाद में ही पलते बढ़ते हैं,
वो रिश्ते वक़्त की ठोकर से अक्सर टूट जाते हैं।
यहाँ मंजिल उन्हें मिलती जो अपनी राह चलते हैं,
जो औरों से पता पूछें वो पीछे छूट जाते हैं।
राकेश कुमार श्रीवास्तव
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परिचय==============
नाम - राकेश कुमार श्रीवास्तव
पिता-श्री मुंशीलाल श्रीवास्तव
जन्मतिथि-१५/०३/१९८२
शिक्षा-एम्.ए.(हिन्दी, इतिहास)
सम्प्रति-शासकीय शिक्षक
प्रकाशित कृतियाँ-भोर की किरणें(संयुक्त संकलन)
के अलावा राष्ट्रीय पत्रिकाओं में गीत, ग़ज़ल, कहानी, लेख,समीक्षाएं प्रकाशित।
सम्बद्धता- कोषाध्यक्ष मृगेश पुस्तकालय सेंवढ़ा,
सह संयोजक अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, सदस्य युवा साहित्यकार मंच सेंवढ़ा।
संपर्क- गोस्वामी मोहल्ला सेंवढ़ा जिला दतिया मध्यप्रदेश
475682
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