श्रीमती शारदा नरेन्द्र मेहता (एम.ए. संस्कृत विशारद) कार्तिक शुक्ल की नवमी तिथि का हमारी भारतीय संस्कृति में अत्यधिक महत्व है। इस दिन स...
श्रीमती शारदा नरेन्द्र मेहता
(एम.ए. संस्कृत विशारद)
कार्तिक शुक्ल की नवमी तिथि का हमारी भारतीय संस्कृति में अत्यधिक महत्व है। इस दिन सत्ययुग का प्रारम्भ हुआ था। इसी प्रकार अक्षय तृतीया से त्रेता युग का प्रारम्भ माना जाता है। आँवला नवमी से मथुरा वृन्दावन परिक्रमा भक्तजन श्रद्धापूर्वक करते हैं।
आँवला नवमी के दिन महिलाएँ आंवले के वृक्ष का पूजन करती है। सम्पूर्ण सौभाग्य सामग्री वृक्ष को अर्पित की जाती है। दीप प्रज्ज्वलित किया जाता है। महिलाएँ अपनी शारीरिक क्षमता अनुसार वृक्ष की एक सौ आठ या आठ परिक्रमा करती हैं। परिक्रमा करते समय लाल मौली या सफेद धागा वृक्ष को लपेटती हैं साथ ही सौभाग्य की कामना करती जाती हैं।
आँवला नवमी के दिन आँवला वृक्ष के नीचे भोजन करने की परम्परा हैं। महिलाएँ घर से भोजन बना कर ले जाती हैं। कई महिलाएँ अपने परिवार सहित बाग-बगीचे में जाती हैं और आँवले के वृक्ष के नीचे पूजन उपरांत भोजन करती हैं।
वृक्ष के नीचे एक पिकनिक सा वातावरण हो जाता है। भोजन करने के बाद बच्चे बड़े सभी कथा सुनते हैं, कथा अनेक रूपान्तरण के साथ अलग-अलग स्थानों पर सुनाई जाती है। यहां ऐसी ही संक्षिप्त कथा का वर्णन है -
एक राजा था। उसके उद्यान में आंवले के पेड़ थे। उन वृक्षों पर सोने के आंवले लगते थे। राजा और रानी अपने राज्य के ब्राह्यणों को प्रतिदिन सोने के आंवले दान स्वरूप वितरित करते थे। राज्य में सुख-शांति का वातावरण था। सभी प्रेम पूर्वक रहते थे। राजा के युवराज के यौवन अवस्था में आने पर उसका विवाह हुआ। प्रजा को प्रचुर मात्रा में दान दिया गया। युवराज ने राजा से कहा-कि पिताजी यदि हम प्रति दिन इसी प्रकार स्वर्ण आँवला दान देंगे तो हम शीघ्र ही धनहीन हो जायेंगे। यह बात राजा-रानी को चुभ गई। इस बात को सुनने के पश्चात राजा-रानी राज्य छोड़कर चल दिए। उन्हें एक वन में आश्रय मिला। राजा-रानी एक सामान्य नागरिक बन कर रहने लगे। राजा बिना दान दिए भोजन नहीं करता था वे दोनों आठ दिनों से भूखे थे आखिरकार भगवान को अपने भक्त पर दया आ गई। उन्होंने राजा को स्वप्न में आकर कहा कि तुम्हारे आँगन में जो आंवले का वृक्ष है उसके नीचे खुदाई करो। राजा-रानी सुबह उठे और उन्होंने खुदाई प्रारम्भ कर दी। आंवले के वृक्ष के नीचे भगवान विष्णु का वास रहता है। खुदाई में उन्हें सोने के आँवलों का ढेर दिखाई दिया।
प्रसन्न होकर राजा ने प्रतिदिन अपने नियम व्रत का पालन करते हुए दान देना प्रारम्भ किया। इधर युवराज और उसकी पत्नी गरीब हो गये। उनके पास कुछ न बचा। उन्होंने सुना कि कोई व्यक्ति वन में सोने का दान कर रहा है। वे भी वहॉ आये परंतु राजा-रानी उन्हें पहचान गये। वे भी वहीं काम करने लगे।
एक दिन रानी ने बहू से कहा कि मुझे स्नान करा दे। बहू ने वैसा ही किया। उसे वृद्धा की पीठ पर एक आँवले का आकार दिखाई दिया, उसकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी और वृद्धा ने बहू से पूंछा कि तू रो क्यों रही है? बहू ने कहा मेरी सास जी को ऐसी ही आकृति पीठ पर बनी हुई थी। सास ने उसे बताया कि मैं ही तुम्हारी सास हूँ। आँवलों को दान देने से ही हमें सम्पत्ति, वैभव और समृद्धि प्राप्त हुई है। बहू ने कहा कि आज से मैं भी आँवला पूजन करूँगी। आँवले का प्रतिदिन सेवन करूँगी। गरीबों को दान दूँगी। इसके जल से स्नान करूँगी आँवले के सेवन से भरपूर विटामिन सी प्राप्त होता है जो उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करता है। हमारे प्राचीन ऋषि च्यवन के बारे में ऐसा कहा जाता है उन्होंने आँवले से च्यवनप्राश का निर्माण किया। जो एक रसायन है। इसमें उन्हें चिरयुवा बना दिया। इसके सेवन से उन्हें बहुत लाभ हुआ। आज भी हरड़, बेहड़ आँवला से त्रिफला बनाई जाती है।
आयुर्वेद में वर्तमान समय में भी आंवले को बहुत उपयोगी फल माना जाता है । इससे कई औषधियों का निर्माण किया जाता है । बालों के लिये भी यह उपयोगी है। आंवले युक्त कई उपयोगी व्यंजन जैसे- मुरब्बा, अचार, चटनी, सुपारी आदि का निर्माण किया जाता है। राजा के बहू-बेटे को भी अपनी गलती का भान हुआ और उन्होंने श्रद्धा भक्ति से विधिपूर्वक आँवला नवमी का पूजन किया। भगवान् विष्णु उन पर प्रसन्न हुए। वह पुत्रवती हुई ,और चिरकाल तक पुत्र ने भी शासन किया।
कथन हैं कि आँवला वृक्ष की पूजा तथा इसके नीचे भोजन करने की प्रथा की शुरूआत माँ लक्ष्मी द्वारा की गई थी। एक बार माँ लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करने निकली रास्ते में उन्हें शिव तथा विष्णु पूजन की इच्छा हुई। उन्होंने सोचा कि आंवले में तुलसी और बेलपत्र दोनों के गुण पाये जाते है अतः उन्होंने आंवले के वृक्ष का पूजन किया। तुलसी विष्णुप्रिया है और शिवजी को बिल्वपत्र प्रिय हैं। उन्होंने आँवला के नीचे भोजन वनाया और शिव तथा विष्णुजी को कराया। तभी से आंवले के नीचे भोजन करने की परंपरा है। इस दिन नौमी तिथि थी इसे अक्षय नौमी या आँवला नवमी भी कहते है वृक्ष के नीचे यदि आंवले के पत्ते थाली में गिर जाये तो उसे शुभ माना जाता है । विदित है कि इस दिन श्रीकृष्ण द्वारा कंस का वध किया गया था।
वर्तमान में भी हम भारतीय महिलाओं ने इस सौभाग्य व्रत परम्परा को जीवित रखा है। वे आज भी परिवार के साथ सामूहिक रूप से वन, उपवन, उद्यान, या वाटिका में आँवला वृक्ष का पूजन करती हैं । पूजन पश्चात भोजन करती है, कथा सुनाती है। परिवार की सुख समृद्धि की कामना करते हुए अपने पति की दीर्घायु की याचना भगवान से करती है। यदि बाग-बगीचे की सुविधा उपलब्ध न हो तो घर पर ही गमले में आंवले का पौधा लगाकर उसकी भी पूजा-अर्चना की जा सकती है। घर की पूजा में भी भगवान् को आँवला और उसकी पत्तियां चढ़ाई जाती है । आँवला का सेवन भी किया जाता है और आंवले को स्नान के पानी में डालकर स्नान किया जाता है। आँवला नवमी का यह पर्व धार्मिक महत्व का तो है ही परन्तु इससे हमारी अपनी प्राकृतिक सम्पदा को सहेजने का भरपूर अवसर हमें प्राप्त होता है। (श्रीमती शारदा नरेन्द्र मेहता)
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