व्यंग्य // कबीर का स्वर्ग से निकाला जाना // विनोद शंकर शुक्ल

SHARE:

कबीर ही थे वे। हर काम दुनिया से उल्टा करने वाले। जिएं काशी में और मरे मगहर में जाकर। मगहर नरक के भय से जहां पशु भी मरना पसंद नहीं करते। देखत...

गोकुल सुरलकर की कलाकृति

कबीर ही थे वे। हर काम दुनिया से उल्टा करने वाले। जिएं काशी में और मरे मगहर में जाकर। मगहर नरक के भय से जहां पशु भी मरना पसंद नहीं करते।

देखते ही मैं पहचान गया। कमर में लंगोटी थी, हाथ में तानपूरा और कंधे पर रामनामी चादर। मस्ती में रामधुन अलाप रहे थे-

हमन हैं इश्क मस्ताना हमन को होशियारी क्या,

हमारा यार है हममें, हमन को इंतजारी क्या?

रामाऽऽ हो!

मैंने नमन किया तो बोले-बच्चा, कैसे पहचाना?

मैंने कहा-आपका फक्कड़ आलाप और साफ-सुथरी चादर देखकर। आजकल साधुओं की चादर साफ कहां होती है? जतन से ओढ़ना सबने छोड़ दिया है।

कबीर साहब हँसे, बोले-साधु चादर धुलवा क्यों नहीं लेते। धोबियों ने क्या कोई दूसरा धंधा पकड़ लिया है?

[ads-post]

मैंने कहा-सतगुरू, धोबी और गधे वाला जमाना गया। अब मनुष्य नहीं मशीनें कपड़े धोती है। बड़ी-बड़ी लांड्रियां खुल गई है। रोज नए-नए डिटरजेन्ट याने साबुन ऐसे पैदा हो रहे हैं, जैसे वर्षाकाल में मच्छर और युद्धकाल में मंचीय कवि पैदा हो जाते हैं।

कबीर चकित हुए, बोले-फिर चादरें साफ क्यों नहीं होती?

मैंने कहा-आधुनिक साधु-संतों के चादरों के दाग-धब्बे बड़े पक्के होते हैं। उनके सामने अच्छी से अच्छी लांड्री और तेज से तेज डिटरजेन्ट की हवा निकल जाती है।

वर्तमान साधुओं में कबीर साहब की दिलचस्पी बढ़ी। उन्होंने कहा-वत्स, तुम्हारे साधु क्या नन्हें-मुन्हें बच्चे हैं जो चादरें गंदी कर देते हैं?

मैंने कहा-गुरूदेव, आज के संतों का काम भगवत-भक्ति और भजन-कीर्तन तो है नहीं कि चादरें साफ रहें। उनके कार्यकलाप दूसरे हैं, जिनसे चादरें मैली हो जाती है।

कबीर थोड़ा झल्लाए, बोले-बच्चा, उलटबाँसियों में बात मत करो। साधु भजन नहीं करेगा तो क्या भालू नचाएगा?

मैंने उत्तर दिया-महात्मन, क्षमा करें। आज के अधिकांश संत तस्कर उद्योग में धुनी रमाएं बैठे हैं। मठों में ब्राउन शुगर, अफीम, चरस, गाँजा आदि का उद्योग चला रहे हैं। कई नेताओं के गुरू बनकर बैठ गए हैं। छद्म ज्योतिष के माध्यम से उन्हें उल्लू बना सोने-चाँदी की फसल काटते रहते है। अनेकों ने प्रवचन इंडस्ट्री खोल ली है। लोगों को भोग-विलास से दूर रहने की शिक्षा देते हैं और खुद गले तक व्यभिचार में डूबे रहते हैं।

कबीर साहब अविश्वास से बोले-बहुत विरोधाभासी बातें करते हो बच्चा। संत और तस्करी? साधु और नेताओं की संगत? महात्मा और व्यभिचार? ये सब तो विपरीत ध्रुव है!

मैंने कहा-कभी हुआ करते थे। अब चोर-चोर की तरह मौसेरे भाई हैं।

कबीर के चेहरे से खिन्नता झलकने लगी। उन्होंने क्षुब्ध स्वर में कहा-नेताओं से गठबंधन कर साधुओं को मिलता क्या है? यह तो वैसा ही हुआ, जैसे गंगाजल की गटर के पानी से मित्रता हो जाए।

मैंने कहा-गुरूवर, परस्पर अदान-प्रदान का सौदा है यह। साधुओं से नेताओं को धार्मिक संरक्षण मिलता है, बदले में नेता उन्हें आर्थिक और राजनीतिक संरक्षण प्रदान करते हैं।

कबीर बोले-धार्मिक संरक्षण मतलब? क्या धर्म भी अधर्म का संरक्षक हो सकता है?

मैंने कहा-साधुओं ने संभव कर दिखाया है, नेताओं का कुर्सी मोह विख्यात है। वे कुर्सी से वैसे ही चिपके रहना चाहते हैं, जैसे सरकारी अस्पताल के रोगी से बीमारियां। साधु उनके लिए नाना प्रकार के अनुष्ठान कराते हैं। जैसे कुर्सी सलामत महायज्ञ, विरोधी विनाश महापूजा, हाईकमान आशीर्वाद महा आरती, भ्रष्टाचार उपार्जित सम्पत्ति रक्षा महाहवन, आतंकवाद प्राण रक्षा तंत्र साधना, पुत्र-पद प्रतिष्ठार्थ देवी आराधना आदि।

कबीर साहब को मेरी बातों पर विश्वास होने लगा। उन्होंने कहा-अच्छा तो यही धार्मिक संरक्षण है?

मैंने कहा-नेताओं को ज्योतिष पर अखंड विश्वास होता है। साधु उनका उस क्षेत्र में भी मार्गदर्शन करते हैं। उन्हें यहां तक बताना पड़ता है कि हँसने के लिए कौन-सी घड़ी शुभ है और रोने के लिए शुभ नक्षत्र कौन सा है। नेता छींकते और खांसते भी हैं तो मुहूर्त देखकर। ऐसे नेता भी मिल जाएंगे, जो पेशाब भी बिना मुहूर्त निकलवाए नहीं करते ।

कबीर साहब को हँसी आ गई। उन्होंने कहा-प्रसाद के रूप में नेता क्या देते है, साधुओं को?

मैंने बताया-पद, परमिट, प्रमोशन, ट्रांसफर आदि रत्नों से उनकी झोली भर देते हैं। साधु इनकी नीलामी से मालामाल हो जाते हैं। उन्हें नेताओं से कानून को अंगूठा दिखाने का लायसेंस भी मिल जाता है। कानून साधुओं के सामने वैसा ही अपंग हो जाता है, जैसे कट्टरपंथ के सामने कट्टरपंथियों की बुद्धि और विवेक।

सुनकर कबीर साहब हरे राम!--हरे राम!! बोलने लगे।

मैंने अपनी ज्ञानराशि का पूरा कोश खोलते हुए कहा-गुरूदेव, संतो की लीलाएं अखण्ड है। ऐसे पुरूषार्थी महंतों की संस्था भी काफी है, जो हत्या या डकैती का शौक रखते हैं। चेलों को बकायदा इन कलाओं का प्रशिक्षण दिया जाता है। मठों और मंदिरों की सम्पत्ति को लेकर भीषण गैंगवार होता है। सुपारियां ली और दी जाती है। अपहरण किए और कराए जाते हैं। सुन्दरियां भोगी और भगाई जाती है।

कबीर साहब बहुत विचलित हो गए। उन्होंने दोनों कानों पर हाथ रखकर कहा-शांतं पापम्--! शांतं पापम्--!!

मैंने साधुओं की एक और झांकी प्रस्तुत करते हुए कहा-गुरूवर, अनेक संत-महंतों को संसद और विधान सभा रूपी मेनकाओं ने मोहित कर रखा है। पचासों प्रकार के पाखंड करके वे चुनाव जीतते हैं और लोकतंत्र की मंदिरों में प्रतिष्ठित हो जाते हैं। यहां नित्य प्रति होने वाली सिर-फुटौव्वल और पगड़ी उछाल गतिविधियों में जमकर भाग लते हैं। उनके आचरण से संसद और अखाड़े में कोई अन्तर नहीं रह जाता।

कबीर साहब बोले-बस करो बच्चा! यह तो पतन की पराकाष्ठा है। साधु शैतान में बदल गए हैं।

उन्हें व्यथित और व्याकुल देखकर मैंने निवेदन किया-मुझे क्षमा करें गुरूदेव! लेकिन यही आज का सत्य है। असली साधु दिखाई ही नहीं देते। वे ऐसे गायब है जैसे न्याय के मंदिरों से न्याय और शिक्षा के मंदिरों से शिक्षा।

कबीर बोले-हां बच्चा! बड़ी देर से प्यास लगी है। तुम्हारे शहर में तो दूर-दूर तक कुओं और ताल दिखाई नहीं देते। मैं खोज-खोजकर थक गया।

मैंने कहा-कैसे दिखाई देंगे। वे शहरों से निर्वासित हो गए हैं। उनकी जगह मल्टीफ्लेक्सों ने ले ली है। मल्टीरफ्लेक्स याने बहुमंजिला बाजार!

कबीर साहब इस बात पर भी चकरा गए, बोले-शहर वालों ने क्या पानी पीना छोड़ दिया है?

मैंने बताया-अब वे कोला-पेप्सी पीते हैं। ये विदेशी पेय है। शहर वाले विदेशी वस्तुएं ही पसंद करते हैं। पानी भी मिलता है पर बोतल बंद। खरीदकर पीना पड़ता है।

कबीर साहब मुझे देखते रह गए। उन्हें विश्वास नहीं हुआ, बोले -पानी की भी बिकने की नौबत आ गई? तब तो हवा की भी खैरियत नहीं। तुम्हारी सभ्यता उसे भी बंदी बना लेगी।

मैंने कहा-आदरणीय! शुद्ध हवा तो शहरों में पारस पत्थर की तरह दुर्लभ हो ही गई है। नागरिक कारखानों की विषैली हवाओं में जी रहे हैं।

विदेशी की तरह यहां भी आक्सीजन सिलेन्डर लटका कर चलने की नौबत जल्दी ही आने वाली है।

कबीर बोले-बच्चा! बोतल का पानी ही ले आओ। कंठ वैसे ही सूख रहा है जैसे जेठ में जमीन की नमी।

मैंने दौड़कर बोतल खरीद लाया। साथ में कुछ केले भी कबीर साहब ने उलट-पुलट कर बोतल देखी और बोले-बच्चा, इसमें तो मछलियों की तरह इल्लियां तैर रही हैं। इल्लियां क्या पानी शुद्ध करने के लिए डाली गई हैं?

बोतल देखकर मैं भी हैरान हो गया । शर्मिन्दा होते हुए मैंने कहा- शायद महीनों पुरानी बोतल है। गनीमत है, इसमें कुछ पानी भी है वरना दुकानदार कोरी इल्लियां पकड़ा देता है। मैं ताजी बोतल ले आता हूँ।

मैंने केला दिया तो वे मुँह में पहला टुकड़ा रखते ही थू-थू करने लगे, बोले-ये केला है या करेला? क्या अब केले भी कड़ुवे होने लगे?

मुझे बड़ी ग्लानि हुई। मैं चाहने पर भी इतने बड़े महात्मा की कोई सेवा नहीं कर पा रहा था। मैंने कहा-माफ कीजिए। कृत्रिम रूप से पकाए गये केले लगते हैं। समय से पहले पका लिए गए हैं।

कबीर हँसे-यह समय से पहले पकाना क्या होता है?

मैंने कहा-गुरूवर! सब बाजार की माया है। बाजार को पैसा कमाने की उतनी ही जल्दी रहती है, जितने तीर्थों के पंडों को जजमानों को ठगने की। अब रासायनिक क्रिया से कच्ची अवस्था में झटपट फल, अनाज व सब्जियां पका ली जाती है। रासायनिक खाद देकर पेड़ों को समय से पहले फल देने के लिए मजबूर किया जाता है। आम, अमरूद, अंगूर, अनार आदि पर आप जो रंग देखेंगे, सब नकली है। बाजार ने प्रकृति पर बाजी मार ली है।

कबीर साहब ने माथा पीट लिया। बोले-बच्चा, मुझे फल-फूल ही नहीं, मुझे तुम्हारी पूरी सभ्यता ही आप्रकृतिक नजर आ रही है।

मैंने कहा-सच कहा आपने। अप्राकृतिकता के साथ इधर सभ्यता को आतंकवाद के रोग ने भी आ दबोचा है। गली-गली बम विस्फोट हो रहे हैं और लोग कीड़े-मकोड़ों की तरह मारे जा रहे हैं।

कबीर साहब बोले- अच्छा! सड़क बनाने के लिए विस्फोटों से सड़क उड़ाने की बात तो सुनी थी, अब पूरी आबादियां भी उड़ाई जाने लगी है? सभ्यता विकास की बुलंदियों पर पहुँच गई है।

मैंने कहा-मुझे अचरज हो रहा है। स्वर्ग जैसी जगह को छोड़कर आप इस नरक तुल्य जगह पर कैसे आए? यहां जल, थल, नभ सभी प्रदूषण से पीड़ित है। पर्यावरण असंतुलन से धरती भीषण बुखार में तप रही है। आतंकवाद आदमी की नस्ल मिटाने पर तुला हुआ है।

कबीर साहब जोर से हँसे, बोले-आदम की तरह मैं भी स्वर्ग से निकाल दिया गया हूँ। वैसे ही बेआबरू होकर। निर्वासन भोगने पुराने घर चला आया हूँ।

सुनकर मैं स्तब्ध रह गया। आप जैसे रामभक्त का निष्कासन? अपराध क्या था आपका? आप ठिठोली तो नहीं कर रहे हैं?

कबीर गंभीरता से बोले-नहीं बच्चा, राजद्रोह का आरोप है, मुझ पर। स्वर्ग में भी स्वभाव नहीं बदल सका। पाखण्डों पर प्रहार की आदत गई नहीं मेरी। मैंने देवराज इन्द्र के भ्रष्ट आचरण पर हमला बोल दिया। मेरे कवित्त से वे कुपित हो गए। दस वर्ष के निर्वासन का दंड दे दिया।

मुझे दुख हुआ। मैंने कहा-कैसी विडंबना है कि कबीरों को मौत के बाद भी चैन नहीं मिलता। देवराज को नाराज करने वाला ऐसा क्या लिख दिया था आपने?

कबीर साहब मुस्कराए, बोले- आयुष्मान, जन्नत की हकीकत भी धरती से भिन्न नहीं है। इन्द्र की तानाशाही वहां वैसे ही चलती है, जैसे तुम्हारे कथित लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की हाईकमानों की। इन्द्र के सभा में चापलूसी की तूती वैसे ही बोलती है, जैसे यहां मंत्रालयों के मंत्रणा कक्षों में चमचों की। विरोधियों के विरूद्ध षडयंत्र वैसे ही रचे जाते हैं, जैसे यहां परस्पर गठबंधन करने के बाद भी राजनीतिक दल एक-दूसरे के खिलाफ रचते रहते हैं।

मैंने कहा-मतलब पृथ्वी भी स्वर्ग का दूसरा संस्करण है। स्वर्ग की आबोहवा भी अच्छे व्यक्तियों के रहने लायक नहीं है। तब तो आपका विद्रोह गलत नहीं है। ऐसे कौन से कवित्त थे, जिन्हें निर्वासन का आधार बनाया गया?

कबीर बोले-कई थे, जिन्होंने इन्द्र को तिलमिला दिया। एक तो यही था-

सुरपति सम खल और न कोऊ

तपसिन मग मँह कांटा बोऊ।

मैंने कहा- सत्य वचन। विश्वामित्र और उनके जैसे कितने तपस्वियों का पतन इन्द्र के षडयंत्रों का ही परिणाम था।

कबीर बोले-वत्स, देवराज नारियों का बड़ा नारकीय उपयोग करते हैं। इस बात से मुझे पीड़ा पहुँची। इन्द्र ने अप्सराओं की एक फौज ही बना रखी है, जिसका एक मात्र धर्म तपस्वियों का तप खंडित करना है। मैंने इसका विरोध किया और लिखा-

सुरबालन संग कैसी छलना,

भ्रष्टकरण क्या जन्मी ललना?

मैंने समर्थन में सिर हिलाया, कहा-बिल्कुल ठीक। अप्सरा होने से दूसरा अभिशाप स्वर्ग में दूसरा नहीं है।

कबीर बोले-एक दोहे में मैंने कहा-

इन्द्रासन प्रानन तें प्यारा, जेही कारण अपराध अपारा।

मुझे हँसी आ गई। मैंने कहा-गुरूदेव, कुर्सी भवानी यहाँ भी अपराधों की महाजननी है। कुर्सी के योद्धाओं ने लोकतंत्र को अपराध तंत्र में बदल दिया है। संसद से सड़क तक उन्हीं का शासन है।

कबीर बोले-जब मैंने लिखा-

देवराज नहीं सुरपति लायक

चुनें देव उत्तम सुरनायक।

तो मुझ पर देवताओं को विद्रोह के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया। इन्द्र पहले मुझे नर्क में निर्वासित करना चाहता था परन्तु चापलूस सलाहकारों ने कहा कि अपराध नर्क की नहीं, महानर्क की कोटी का है, इसे पृथ्वी पर भेज दिया जाना चाहिए।

मैंने कहा-धन्य है आप। कोई कबीर ही सुरनायक को नालायक करार दे सकता है। आगे क्या इरादा है?

कबीर बोले-बच्चा, हमारे लिए क्या स्वर्ग ओर क्या नर्क? जैसे काशी वैसे मगहर। हम तो जहां रहेंगे पाखण्डों के पहाड़ तोड़ते रहेंगे। तुम्हारी बातों से साफ लगता है यहां पाखण्डों के हिमालय खड़े हो गए है। धर्म, राजनीति, व्यापार, शिक्षा, नौकरशाही, चिकित्सा, संस्कृति कोई ऐसा क्षेत्र नहीं, जिससे दुर्गन्ध न उठ रही हो। सबकी शल्यक्रिया जरूरी है। अन्यथा वे फोड़े समाज को शव में बदल देंगे।

मैंने कहा-सतगुरू, वक्त को कबीर की सख्त जरूरत है। श्रीगणेश कहां से करेंगे?

कबीर मुस्कराए, बोले-घर से करेंगे। धर्म हमारा घर है। सबसे ज्यादा दुर्गन्ध यहीं है। सभी धर्मों में कठमुल्लापन ऐसे बढ़ गया है जैसे हवा की शै पाकर जंगल में आग बढ़ती है। समाज को तोड़ने में धर्म सबसे आगे है। सच्चे धर्म का काम तो जोड़ना है। शुरूआत मैं जोड़ने से ही करूंगा। सबको प्रेम के ढाई अक्षर पढ़ाऊंगा। भरोसा है आज भी घर जलाकर साथ देने वाले साथी मिल ही जाएंगे। अब चलता हूँ। जय सियाराम।

---


35, संस्कृति, मेघ मार्केट के सामने

केतवाली मार्ग, बूढ़ापारा रायपुर

492001

--

लेखक परिचय

जन्म-रायपुर, 30 दिसम्बर 1943

व्यसाय- सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष, हिन्दी एवं पत्रकारिता

शासकीय स्नातकोत्तर छत्तीसगढ़ महाविद्यालय रायपुर

मूलतः-व्यंग्कार, स्तंभकार

प्रकाशित व्यंग्य संग्रह- मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएं

कबिरा खड़ा चुनाव में

अस्पताल में लोकतंत्र

51 श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएं

सम्पादित पुस्तकें- एक बटे ग्यारह, विविधा, गद्यरंग

सम्पादन-व्यंग्य त्रैमासिकी ‘व्यंग्यशती‘ का अनेक वर्षों तक संपादन, प्रकाशन

सम्मान- मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन का वागीश्वरी सम्मान, सृजन सम्मान, वसुंधरा सम्मान

--

(प्रस्तुति - बीरेन्द्र साहू )

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: व्यंग्य // कबीर का स्वर्ग से निकाला जाना // विनोद शंकर शुक्ल
व्यंग्य // कबीर का स्वर्ग से निकाला जाना // विनोद शंकर शुक्ल
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhbDHuMoX2fbLU3K0iuq_QlO80431NhigATGydjpSPbvubT3ksSMhMR4Z0SpsMhwYIqYJ4AOfpgNeruZFU9QQeY9RWiOji9VdIowcXkOCWoePYj7zbBf7ERaRRODPxco_LlUqw7/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhbDHuMoX2fbLU3K0iuq_QlO80431NhigATGydjpSPbvubT3ksSMhMR4Z0SpsMhwYIqYJ4AOfpgNeruZFU9QQeY9RWiOji9VdIowcXkOCWoePYj7zbBf7ERaRRODPxco_LlUqw7/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/09/blog-post_2.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/09/blog-post_2.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content