चारों तरफ निराशा का घना अंधकार छाया हुआ था। भ्रष्ट्रासुर के आंतक से जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी। तभी कहीं-कहीं नारों की बूँदा-बाँदी होने ल...
चारों तरफ निराशा का घना अंधकार छाया हुआ था। भ्रष्ट्रासुर के आंतक से जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी। तभी कहीं-कहीं नारों की बूँदा-बाँदी होने लगी। वादों की बिजलियाँ चमकने लगी। लोगों को लगा कि अब चुनाव ऋतु आने वाली है। वादों की बिजलियों में लोग उम्मीद की किरणें देखने लगे। फिर भाषणों की मूसलाधार वर्षा होने लगी। दावों की गर्जना से गगन गूँजने लगा। चुनाव ऋतु समाप्त होने के बाद लोग बड़ी उम्मीदों से आकाश की ओर निहारने लगे। तभी आकाशवाणी हुई। भाषणवीर भागीरथियों की भाषणों से मेरी प्रसन्नता का स्टाक एकदम फुल हो गया है। अब सब सावधान हो जाओं। मैं अच्छे दिन प्रकट हो रहा हूँ। तुम मरो या बचो, अब तो मैं विकास करके ही दम लूंगा। ऐसा विकास करूंगा कि जिंदगी भर याद रखोगे। सम्हाल सको तो मेरा तेज सम्हाल लो।
अच्छे दिनों का पहला किस्त प्रकट होते ही महंगाई जनता पर कहर बनके इस कदर टूट पड़ी कि लोग इसका नाम सुनकर ही थरथराने लगे। मेरी हालत तो और भी बुरी थी। इसका जिक्र आते ही रोंगटे खड़े हो जाते थे और बदन में झुरझुरी होने लगती थी।
घटना कुछ दिनों पहले की है। रात्रि का अंतिम पहर चल रहा था। यही कोई तीन साढ़े तीन बजे की बात होगी। कोई मेरे घर का दरवाजा खटखटाया। मेरी नींद टूट गई थी। मैंने डरते-डरते पूछा-‘‘कौन है?‘‘ बाहर से आवाज आई, अच्छे दिन आया हूँ। आवाज सुनकर मेरे होश उड़ गये। मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। मैंने सहमते हुए कहा-‘‘अंधेरी रात में अच्छे दिन? रहने दो भैया! पहले किस्त में जो अच्छे दिन आये हैं वे सब रसोई में कब्जा जमाकर बैठ गये है। चूल्हा चौका सब सहमें हुए है। कटोरी से दाल ईमानदारी की तरह गायब हो गई। थाली की रोटियां नैतिकता की तरह कम हो रही है। रसोई में अनाज नहीं मिलने के कारण चूहे हम गरीबों के पेट में घूसकर उछल-कूद मचा रहें हैं। अपने बुरे दिनों में कम से कम दाल रोटी तो मिल ही जाती थी पर आपकी कृपा से वह भी नहीं बची। अब हममें और ज्यादा अच्छे दिनों को बर्दास्त करने की क्षमता नहीं रही हैं। कहीं आपके शुभागमन से जान ही न निकल जाये। हम पर तरस खाइये। ज्यादा दया दृष्टि न डालें। कृपा कर लौट जाये। पर वह अंदर घुसने की जिद करते हुए फिर से दरवाजा खटखटाने लगा।
मैंने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा-‘‘लगता है आप रास्ता भटक कर यहाँ आ गये है। अपनी सूची फिर से चेक कर लीजिए और जिनके लिए आयें हैं। उनके यहाँ ही जाइये। अगर आपको आना ही था तो दिन दहाड़े आते इस तरह रात के अंधेरे में आने से मुझे आपके ऊपर संदेह हो रहा है, जरूर आप किसी और के लिए आये होंगे और भूल से मेरा दरवाजा खटखटा रहे होंगे।
इस बार बाहर की आवाज कुछ कड़क हो गई थी। वह कह रहा था। अरे बकबक मत कर यार! सीधे दरवाजा खोल मुझे और भी घरों में विजिट करनी है। तू इतना डर क्यों रहा है। मैं पन्द्रह लाख वाला अच्छे दिन नहीं हूँ। मात्र दो लाख वाला हूँ और इस बार साक्षात नहीं बल्कि एस एम एस के रूप में आया हूँ। नेटवर्क नहीं होने के कारण तेरे मोबाइल तक नहीं पहुँच पा रहा हूँ। मुझसे इतना डर रहा है तो दरवाजा भले मत खोल, अपने मोबाइल को दरवाजे से बाहर खिसका ताकि नेटवर्क मिलते ही मैं उस तक पहुँच सकूँ। मुझे समझते देर नहीं लगी कि नेटवर्क न मिलना डिजिटल इंडिया की निशानी है।
मैंने चौंकते हुए कहा-भैया! आप अच्छे दिन हो कि बहुरूपिया? जो कभी भाषण के रूप में आते हो, कभी नारों के रूप में आते हो और कभी-कभी लोकलुभावन योजना बनकर टी वी के विज्ञापन या अखबारों पर आते हों। ये क्या चक्कर है मियां। आप चाहे जितना छल का प्रयोग कर लो पर अब मैं आपके झांसे में आकर दरवाजा खोलने वाला नहीं हूँ। हाँ मैं अपना मोबाइल दरवाजे से बाहर खिसका रहा हूँ। इसमें समाना है तो समा जाओ। मैं आराम से दिन के उजाले में आपका एस एम एस अवतार देख लूँगा। इतना कहते हुए मैने अपना मोबाइल दरवाजे से बाहर खिसका दिया। कुछ समय बाद आवाज आनी बंद हो गई। अब मुझे डर के मारे अपने ही हाँफने की आवाज के सिवाय और कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। नींद आँखों से कोसों दूर हो गई थी बची हुई रात करवट बदलते हुए बीती।
सुबह होते ही मैंने झट से दरवाजा खोला और सबसे पहले अपना मोबाइल उठाया फिर इत्मीनान से एस एम एस पढ़ने लगा। लिखा था कि आपकी दो लाख की लाटरी लगी है। नीचे दिये हुए नम्बर पर तुरन्त सम्पर्क करो। एस एम एस पढ़कर मैं सोच में पड़ गया, न तो मैंने चुनाव जीतकर कोई कुर्सी हथियाई है। न कोई चिटफंड कम्पनी खोली है न ही ईमानदारी का गला घोंटकर या अपनी अर्न्तात्मा की हत्या कर कोई अवैध कारोबार किया है और न ही मैंने लाभ के कोई बड़े सरकारी पद पर कार्य किया है तो फिर मेरी लाटरी लगी तो कैसी लगी? लेकिन मुफ्त का माल तो वो मेनका है जो विश्वामित्र जैसे तपस्वी के तप को भंग कर सकती है। आखिर मैं किसी और खेत की मूली तो नहीं सो झट से उस एस एम एस में लिखे नम्बर पर कॉल कर दिया। कॉल करते समय मैं समझ नहीं पाया था कि मैं कॉल नहीं बल्कि काल कर रहा हूँ।
नम्बर मिलते ही किसी महिला की सुरीली आवाज आई-‘‘हाँ जी! नमस्कार। आप बहुत भाग्यशाली है। आप के नम्बर का चयन हमने लक्की नम्बर के रूप में किया है। इसलिए आपको दो लाख रूपए का इनाम देने का निर्णय हुआ है। कहाँ तो लोग मेरा नम्बर कब आयेगा कहते हुए लाइन पर लगे है और आपका नम्बर बिना लाइन लगे ही आ गया है। फिर उसकी खिलखिलाहट गूँजी। उस सुरीली आवाज का जादू मेरे सिर पर चढकर बोलने लगा। मैंने बिना एक क्षण गंवाये कहा-‘‘ मुझे इस दो लाख के इनाम को झटकने के लिए क्या करना पड़ेगा मेम जी।‘‘ कानों में रस घोलती हुई फिर वही सुरीली आवाज गूंजने लगी। भाई! कुछ पाने के लिए कुछ लगाना भी पड़ता है। सबसे पहले तो हम आपको एक खाता नम्बर दे रहें है, उसमें आप कम-से कम बीस हजार रूपए जमा करा दीजिए। इसे आप सेवा शुल्क समझ लीजिए। दस प्रतिशत सेवा शुल्क तो आपको अदा करना ही पडेगा। मैंने मन में एक क्षण विचार किया कि सौदा बुरा तो नहीं है। आखिर चुनावी चंदा देने के बाद ही तो लूट और मिलावट का लायसंस मिलता है। धंधा चाहे कितना भी गंदा हो पर चंदा देने से पवित्र हो जाता है। चंदा ही वह गोदान है जो जमाखोरो और मिलावटखोरों की बैतरणी पार कराके अरबों का पुण्य अर्जित करा देता है।
माना कि लालच बुरी बला है पर यह बला इतनी अदा से बुलाती है कि लोग तुमने बुलाया और हम चल आये रे के अंदाज में जाकर फँस जाते है। मैंने उसके दिये हुए खाता नम्बर पर बीस हजार रूपए जमा करने के लिए हामी भर दी।
मेरे खाते में तो मेरे अब तक के जीवन की गाढ़ी कमाई मात्र बीस हजार रूपए ही जमा है जिसे मैंने आड़े वक्त के लिए रखा था। मेरे पास कोई चल-अचल सम्पत्ति तो थी नहीं। बैंक हम जैसे आम आदमी का केवल मुँह देखकर कर्ज तो देती नहीं है। कागजात के नाम पर इतने चक्कर लगवाती है कि आदमी को ही चक्कर आ जाता है। वह तो ईमानदारी का मुखौटा पहने और सिफारिशों का तमगा लगाए माल्या जैसे लोगो को माला पहनाकर कर्ज देती है। अब मेरे पास कर्ज लेने का एक मात्र विकल्प मित्र-मंडली के लोग ही थे। मैने एक मित्र से निवेदन किया और उसे दोगुणा धन वापस करने का विश्वास दिलाया तो वह बीस हजार देने के लिए सहर्ष तैयार हो गया।
मैंने मित्र से पैसे लेकर उस अंजान खाता नम्बर पर उसे जमा कर दिया और अपने खाते में दो लाख रूपए जमा होने का इंतजार करने लगा। मैं निराश होता उससे पहले ही लगभग महीने भर बाद फिर एक अंजान नम्बर से फोन आया । फोन करने वाले ने अपने आप को बैंक अधिकारी बताते हुए कहा-‘‘बधाई हो महाशय! मुझे आपके खाते में दो लाख रूपए जमा करने के लिए मिले है। कृपया अपना एकाउंट नम्बर बताइए और आपको उसे निकालने में किसी भी प्रकार से असुविधा न हो इसलिए अपने ए टी एम का पासवर्ड भी बता दीजिए।
सिर पर दो लाख का नशा तारी था इसलिए मैंने सहर्ष बता दिया। सहर्ष बताने भर की ही देर थी फिर तो मेरा सारा हर्ष गायब हो गया। कुछ ही समय में मेरे मोबाइल पर संदेश आ गया कि मेरे खाते में रखे बीस हजार रूपए पर किसी ने इस तबियत से स्वच्छता अभियान चला दिया है कि मात्र पाँच सौ रूपए के सिवा उसमें कुछ भी नहीं बचा है। अब मुझे पासवर्ड का महत्व समझ में आया। यह ऐसा वर्ड है जिसे बताने पर कोई भी आदमी आपके खाते का रकम अपने पास कर लेता है इसलिए इसे पासवर्ड कहते हैं। हाथ की सफाई से सामान गायब होने का जादू तो मैं चौक-चौराहों पर कभी-कभार देख ही चुका था पर बात की सफाई से खाते से रकम गायब हो जाने की यह मेरे साथ पहली धटना थी। उस पर गरज यह कि जादूगर स्वयं अदृश्य रहकर यह कमाल दिखलाया था। दो लाख के लालच में बीस हजार गंवा चुका था और सिर पर बीस हजार का अतिरिक्त कर्ज चढ़ गया। जब दो लाख का लालच मुझे इतना महंगा पडा़ तो फिर पन्द्रह लाख का लालच कितना भारी पड़ रहा है, सबको पता है।
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वीरेन्द्र ‘सरल‘
बोड़रा (मगरलोड़)
जिला-धमतरी( छ ग)
पिन- 493662
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