बरगद की छांव तले कहानी पाठ (चौथी कड़ी) जबलपुरः परिवार/समाज और देश को एक सूत्र में बांधने वाला एक साहित्य ही है. साहित्य एक व्यवस्था प्रदान क...
बरगद की छांव तले कहानी पाठ
(चौथी कड़ी)
जबलपुरः परिवार/समाज और देश को एक सूत्र में बांधने वाला एक साहित्य ही है. साहित्य एक व्यवस्था प्रदान करता है. सत्यं-शिवं-सुन्दरम् की छवि रखता है. पीढ़ियों से सामंजस्य बैठाकर पीढ़ियों की साज संभाल करता है- वक्तव्य डॉ. कुंवर प्रेमिल ने इस बार योगेश खंडेलवाल के जन्मोत्सव पर दिया.
‘तुम जियो हजारों साल’ के सामूहिक गान ने वट वृक्ष के नीचे समां बांध दिया. साहित्यिक सत्र के शुभारम्भ में शायर रघुबीर अंबर ने अपनी पहली कहानी ‘तोहफा’ पढ़ी. कहानी के पात्रों/कथानक/कथोपकथन ने गोता लगाने पर मजबूर कर दिया. उपरान्त डॉ. प्रेमिल ने पार्क में उखड़े पड़े पेड़ पर लिखी अपनी कविता सुनाई. कवितांश हैं-
अपने दादा की हालत देखकर
रो पड़ा नन्हा सा पेड़
समझ गया- ये सब
पेड़ को रहने नहीं देंगे पेड़
नेस्तनाबूद कर देंगे हमारी नस्ल
दीर्षजीवी कैसे रह सकेगा पेड़
भाई आनन्द जैन के साथ- साथियों ने सवैया, व्यंग्य एवं क्षणिकाओं का पाठ कर स्वल्पाहार वितरण में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया. सबसे ज्यादा वजनदार था आज का स्वल्पाहार. नरेन्द्र गर्ग, प्यासी जी, मनीषजी, वकील साहब, सेंडे जी, सक्सेना जी ने समापन में पुनः हैप्पी बर्थडे टू यू गाकर कार्यक्रम का समापन किया. बरगद के नीचे छोटा-मोटा कवि सम्मेलन ही हो गया था.
प्रस्तुति : डॉ. कुंवर प्रेमिल,
सम्पादक प्रतिनिधि लघुकथायें/वार्षिकी
प्रणेता साहित्य संस्थान की काव्य गोष्ठी
8 जुलाई 2017 : दिल्ली स्थित द्वारका सहज संभव संस्था के सभागार में ‘प्रणेता साहित्य संस्थान’ की प्रथम काव्य गोष्ठी का आयोजन अनेक सुधि साहित्यकारों, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं कलाकर्मियों की उपस्थति में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ.
काव्य गोष्ठी का उद्घाटन हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार श्री लक्ष्मीशंकर वाजपेयी जी ने दीप प्रज्वलित कर किया. इसके पश्चात प्रणेता साहित्य संस्थान की अध्यक्ष श्रीमती सुषमा भंडारी ने प्रणेता परिवार की ओर से सभी अतिथियों का शब्द सुमन द्वारा स्वागत किया. तत्पश्चात प्रणेता के संस्थापक और महासचिव आदरणीय श्री एस जी एस सिसोदिया जी ने प्रणेता के गठन के विषय में बताते हुए कहा- ‘‘नवोदित प्रतिभा को मंच और पहचान प्रदान करने के लिए उनके मन में इस संस्था के गठन का विचार आया और सभी की सर्वसम्मति से संस्था अपने कार्यरूप में स्थापित हो गयी.’’
कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध कलमकार श्री अनिल मीत जी ने की. विशिष्ठ अतिथियों में डॉ. पूरन सिंह (वरिष्ठ साहित्यकार), श्रीमती रेखा झींगन (संस्थापक, सहज संभव), डॉ. भावना शुक्ला सह संपादक (प्राची मासिक पत्रिका), श्रीमती पिंकी अमरजीत कौर (समाजसेवी), पूर्व निगम पार्षद श्री प्रदीप कुमार और डॉ. ओमप्रकाश प्रजापति रहे.
सभी कवियों ने अपनी प्रतिनिधि रचना का काव्यपाठ किया. गोष्ठी में मुसाफिर देहल्वी, इरफान राही, माया अग्रवाल, सरिता भाटिया, पुष्पा जोशी, इब्राहीम अल्वी, बिमला रावर सक्सेना, अरविंद योगी, अंशु, मनोज कुमार मैथिल, राजकुमार, डॉ. सारिका, विपनेश माथुर, तथा अन्य कवि भी उपस्थित रहे.
इस भव्य समारोह में अखंड भारत मासिक पत्रिका, (संपादक अरविन्द योगी) का विमोचन गणमान्य अतिथियों के कर कमलों द्वारा हुआ.
श्री वाजपेयी जी ने आशीर्वाद और बधाई दी. श्री अनिल मीत जी ने संस्थान को आशीर्वाद देते हुए कहा- ‘‘किसी भी व्यक्ति से ऊपर संस्था होनी चाहिये.’’
प्रस्तुति : प्रणेता साहित्य संस्थान, दिल्ली
दिलीप कुमार गुप्ता द्वारा निर्देशित नाटक ‘नटुआ’ का मंचन
नई दिल्लीः 6 जुलाई 2017 को संध्या सात बजे से मण्डी हाउस स्थित ‘श्रीराम सेंटर’ में साइक्लोरामा थियेटर गुप द्वारा दिलीप कुमार गुप्ता निर्देशित कथाकार रतन वर्मा की कहानी ‘नेटुआ’ पर आधारित नेटुआ नाटक मंचन किया गया. एक तरह से यह नेटुआ नाटक का पुनर्मंचन था, जिसे 1992 में ‘एक्टवन’ नाट्य संस्था के निर्देशक एन. के. शर्मा ने श्रीराम सेंटर में ही प्रस्तुत किया था, जिसमें आज की प्रसिद्ध फिल्म कलाकार मनोज वाजपेयी ने मुख्य भूमिका निभायी थी. और जिसे ‘साहित्य कला परिषद’, दिल्ली द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर दशक के सर्वश्रेष्ठ छः नाटकों में सम्मिलित किया गया था. इसका निर्देशक दिलीप कुमार गुप्ता द्वारा पुनर्मंचन कुछ नई दृष्टियों के साथ किया गया. 25 वर्षों के इस अंतराल में रतन वर्मा ने ‘नेटुआ करम बड़ा दुःखदायी’ शीर्षक से एक उपन्यास की भी रचना की जिसमें नेटुआ की तीन पीढ़ियों को शामिल किया है. तीसरी पीढ़ी नृत्य के मूल्य को समझता-पहचानता है. इसलिए पहले की पीढ़ी के शोषण और संघर्ष की पीड़ा का भान है उसे. इसलिए वह उस शोषण की बेड़ियों को तोड़ने के संकल्प के साथ आगे बढ़ने की कोशिश में है. निर्देशक ने पुरानी पीढ़ी के संघर्ष और नई पीढ़ी की कोशिश के द्वन्द्व की छटपटाहट को बखूबी प्रस्तुत किया है. मुख्य भूमिका में ‘झमना’ जो गांव में नाचने वाला नेटुआ है, उसके किरदार को रौनक खान ने जीवंत करने में कोई कोताही नहीं बरती, वहीं नई पीढ़ी का नर्तक राम प्रताप जो झमना का पुत्र है और शहर में रहकर कॉलेज की शिक्षा तथा नृत्यकला का प्रशिक्षण प्राप्त करते हुए कई सारी प्रतियोगिताओं में चयनित होकर राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच चुका है, राज तंवर ने उस भूमिका का निर्वाह बखूबी किया है. पीढ़ियों के अंतर को अपने नृत्य और संवाद के माध्यम से कुछ इस तरह स्पष्ट किया है उसने कि दर्शन तक नाट्य प्रस्तुति की दृष्टि स्पष्टतः संप्रेषित हो जाती है. नायिका ‘सितिया’ की मासुमियत को रूबिना सैफी ने अपनी प्रतिभा से जीवंत कर दिया है, जब वह अपने पति नेटुआ झमना से कहती है, ‘‘मैंने नेटुआ का नाच कभी नहीं देखा है...मन करता है आपका नाच देखूं.’’ तब झमना में अपने पति (मर्द) होने का एहसास इस तरह मुखर होता है कि वह सितिया पर बुरी तरह बिफर पड़ता है.
जमींदार के बिगड़े हुए पुत्र विद्या बाबू की भी राजेश बक्शी ने अच्छी भूमिका निभाई है. बड़े का बाप का बेटा होने के गुरूर को तथा झमना के प्रति संवेदनशील होने का मिला-जुला अभिनय श्री बक्शी को अलग से पहचान दिलाता है, वहीं उनके चमचे बने नारायण मिसिर उर्फ नारायण चाचा, जिसकी भूमिका नरेन्द्र कुमार ने निभायी है, भी अपने अभिनय में पूरे जीवंत दिखे. उनकी क्रूरता दर्शकों के बीच उनके प्रति नफरत का भाव पैदा करने में पूरी तरह परिलक्षित है. नेटुआ ‘झमना’ के चाचा शत्रोहन तथा मास्साब की दोहरी भूमिका में छोटे से किरदार को भी नरेश कुमार ने यादगार बना दिया है.
नाटक को पूरी तरह जीवंत बनाने में समाजियों (ताड़ी पीने वाले तथा नेटुआ के नाच में सहभूमिका निभाने वाले) दीपक राणा, दीपक कुमार, सुमन कुमार, ललित सिंह, मनीष शिरोड एवं संदीप कुमार के योगदान की जितनी तारीफ की जाए कम है. अगर नेटुआ नृत्य में इनके अभिनय की सहभागिता नहीं होती तो पूरा नाटक पूर्णता में संप्रेषित नहीं हो पाता.
वेश-भूषा में मुकेश झा, वस्त्र विन्यास में दीपक, अजय तिवारी, मंच सहायक के रूप में दीपक राणा, नरेश, प्रकाश परिकल्पना में मूरली बासा, गायन मंडली में अमर जी राय, अजय तिवारी, निशांत ठाकुमार, बिक्की, जीत संयोजन में मेहंदर मिसिर, सुंधाशु, फिरदौस आदि तथा संगीत में अतीक खान, सचिन, जमील खान आदि ने नाटक को सजीव करने में अपना भरपूर सहयोग दिया.
इस नाटक की आत्मा नृत्य ही थी, जिसमें कोरियोग्राफर की सफल भूमिका का निर्वाह यशस्विनी बोस ने किया.
निर्देशक दिलीप कुमार गुप्ता ने अपने निर्देशन से नाटक को सही ढंग से दर्शकों तक संप्रेषित करने में श्रम तथा प्रतिभा का भरपूर उपयोग किया है.
सुधी दर्शकों में मैथिली-भोजपुरी अकादमी दिल्ली के सचिव तथा वरिष्ठ कथाकार-उपन्यासकार श्री हरिसुमन विष्ट एवं बड़ी संख्या में आये लोगों ने बिना अवरोध उत्पन्न किये नाटक का भरपूर लाभ उठाया.
प्रस्तुति : राकेश भ्रमर
सम्पादक ‘प्राची’
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