रैवन ने बहुत दिनों तक बहुत बार बहुत सारे आदमियों के साथ बहुत चालाकियाँ खेलीं। उसकी चालाकियों से तंग आ कर एक दिन एक गाँव के एक सरदार ने उसको...
रैवन ने बहुत दिनों तक बहुत बार बहुत सारे आदमियों के साथ बहुत चालाकियाँ खेलीं। उसकी चालाकियों से तंग आ कर एक दिन एक गाँव के एक सरदार ने उसको मारने की सोची।
उसने रैवन को अपने घर बुलाया और जब वह कहीं और देख रहा था तो उसने उसको खाल के एक बड़े से थैले में बन्द कर दिया और उस थैले का मुँह कस कर बन्द कर दिया ताकि वह उसमें से निकल कर न भाग सके।
उसने वह थैला अपने कन्धे पर डाला और उस थैले को वह एक बहुत ऊॅची पहाड़ी पर ले गया। उस थैले के अन्दर बहुत अॅधेरा था इसलिये रैवन को कुछ दिखायी नहीं दे रहा था।
उसने सरदार से पूछा भी कि वह क्या कर रहा था पर सरदार ने उसकी किसी भी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया।
जैसे जैसे वह सरदार पहाड़ी पर ऊपर चढ़ता गया रैवन ने सरदार से कई बार फिर पूछा - "तुम मुझे कहाँ ले जा रहे हो?" पर सरदार कुछ नहीं बोला और चुपचाप पहाड़ी पर चढ़ता रहा।
रैवन बोला - "मुझे मालूम है तुम मुझे किसी पहाड़ी के ऊपर ले जा रहे हो। पर तुम मुझे वहाँ क्यों ले जा रहे हो? तुम मेरे साथ क्या करने वाले हो?"
पर सरदार ने फिर उसको अनसुना कर दिया और वह उसको ले कर पहाड़ पर चढ़ता ही रहा।
जब वह पहाड़ की चोटी पर पहुँच गया तो उसने रैवन वाला थैला पहाड़ से नीचे फेंक दिया।
सरदार ने जैसे ही वह थैला नीचे फेंका वह बजाय नीचे गिरने के पहाड़ी के बाहर निकले कोने में एक तरफ को अटक गया और फट गया। रैवन उसमें से निकल कर नीचे आ गिरा और पथरीले पहाड़ से टकरा कर उसके टुकड़े टुकड़े हो गये।
इस तरह उस सरदार ने रैवन को मार दिया।
रैवन के शरीर के कुछ टुकड़े उठा कर सरदार गाँव वापस आ गया और उसने सब लोगों को बताया कि आज उसने रैवन को मार दिया है और अब उनको उससे डरने की कोई जरूरत नहीं है। सबूत के तौर पर उसने उनको रैवन के शरीर के कुछ टुकड़े भी दिखाये।
रैवन के शरीर के टुकड़े देख कर सबको विश्वास हो गया कि सरदार ने रैवन को मार दिया। सारे लोगों ने उस चालाक रैवन को मारने के लिये सरदार की बहुत तारीफ की और गाँव वाले कई दिनों तक रैवन के मरने की खुशी मनाते रहे।
पर कुछ समय बाद लोगों ने देखा कि गाँव में तो सारा पानी ही खत्म हो गया है। वे नदी पर गये पर वह तो सूखी पड़ी थी। वे तालाबों पर गये तो वे भी खाली पड़े थे। कहीं और भी पानी नहीं था। लोगों को प्यास लगने लगी। वे पानी के बिना ज़िन्दा नहीं रह सकते थे।
लोगों ने आपस में पूछा कि यह पानी कहाँ गायब हो गया तो एक जादूगर ने बताया कि ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि सरदार ने रैवन को मार डाला।
अब गाँव वालों को रैवन के मारने का बड़ा दुख हुआ। इससे पहले कि वे मर जायें वे उसको वापस चाहते थे।
उस जादूगर ने सरदार से कहा कि जब वह रैवन के टुकड़ों को जोड़ देगा तभी गाँव में पानी आ सकता था सो सरदार उस पहाड़ी के नीचे गया, रैवन के शरीर के टुकड़ों को बटोरा और उसके शरीर के टुकड़ों को जोड़ दिया। और जैसे ही उसने रैवन के शरीर के टुकड़े जोड़े तो रैवन तो ज़िन्दा हो गया।
ज़िन्दा होते ही रैवन ने कूदना शुरू कर दिया और उड़ने ही वाला था कि उसको कुछ ध्यान आया तो उसने सरदार से पूछा कि उसने उसको ज़िन्दा क्यों किया?
सरदार बोला - "क्योंकि हमारे गाँव का सारा पानी गायब हो गया है और एक तुम ही हो जो उसको वापस ला सकते हो।"
यह सुन कर रैवन ऊपर उड़ गया और बोला - "देखो तो तुम्हारे चारों तरफ तो पानी ही पानी है। पानी कहाँ गायब हुआ?"
सरदार ने घूम कर देखा तो उसके चारों तरफ तो वाकई पानी ही पानी था। उसके पास की सूखी झील पानी से भर गयी थी और नदी में भी पानी बहने लगा था।
फिर उसने ऊपर देखा तो रैवन तो वहाँ से गायब हो चुका था। अब सरदार ने फैसला कर लिया था कि वह अब रैवन को मारने की कभी सोचेगा भी नहीं। इसी लिये लोग रैवन को नहीं मारते।
रैवन मर गया, रैवन अमर रहे
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं की एक अन्य पुस्तक - रैवन की लोक कथाएँ में से एक लोक कथा यहाँ पढ़ सकते हैं. इथियोपिया की 45 लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.
(समाप्त)
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Updated on May 27, 2016
लेखिका के बारे में
सुषमा गुप्ता का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में सन् 1943 में हुआ था। इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र और अर्थ शास्त्र में ऐम ए किया और फिर मेरठ विश्वविद्यालय से बी ऐड किया। 1976 में ये नाइजीरिया चली गयीं। वहाँ इन्होंने यूनिवर्सिटी औफ़ इबादान से लाइब्रेरी साइन्स में ऐम ऐल ऐस किया और एक थियोलोजीकल कौलिज में 10 वर्षों तक लाइब्रेरियन का कार्य किया।
वहाँ से फिर ये इथियोपिया चली गयीं और वहाँ एडिस अबाबा यूनिवर्सिटी के इन्स्टीट्यूट औफ़ इथियोपियन स्टडीज़ की लाइब्रेरी में 3 साल कार्य किया। तत्पश्चात इनको दक्षिणी अफ्रीका के एक देश़ लिसोठो के विश्वविद्यालय में इन्स्टीट्यूट औफ़ सदर्न अफ्रीकन स्टडीज़ में 1 साल कार्य करने का अवसर मिला। वहाँ से 1993 में ये यू ऐस ए आगयीं जहाँ इन्होंने फिर से मास्टर औफ़ लाइब्रेरी एँड इनफौर्मेशन साइन्स किया। फिर 4 साल ओटोमोटिव इन्डस्ट्री एक्शन ग्रुप के पुस्तकालय में कार्य किया।
1998 में इन्होंने सेवा निवृत्ति ले ली और अपनी एक वेब साइट बनायी - www.sushmajee.com <http://www.sushmajee.com>। तब से ये उसी वेब साइट पर काम कर रहीं हैं। उस वेब साइट में हिन्दू धर्म के साथ साथ बच्चों के लिये भी काफी सामग्री है।
भिन्न भिन्न देशों में रहने से इनको अपने कार्यकाल में वहाँ की बहुत सारी लोक कथाओं को जानने का अवसर मिला - कुछ पढ़ने से, कुछ लोगों से सुनने से और कुछ ऐसे साधनों से जो केवल इन्हीं को उपलब्ध थे। उन सबको देखकर इनको ऐसा लगा कि ये लोक कथाएँ हिन्दी जानने वाले बच्चों और हिन्दी में रिसर्च करने वालों को तो कभी उपलब्ध ही नहीं हो पायेंगी - हिन्दी की तो बात ही अलग है अंग्रेजी में भी नहीं मिल पायेंगीं.
इसलिये इन्होंने न्यूनतम हिन्दी पढ़ने वालों को ध्यान में रखते हुए उन लोक कथाओं को हिन्दी में लिखना पा्ररम्भ किया। इन लोक कथाओं में अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी अमेरिका के देशों की लोक कथाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों की भी कुछ लोक कथाएँ सम्मिलित कर ली गयी हैं।
अभी तक 1200 से अधिक लोक कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी है। इनको "देश विदेश की लोक कथाएँ" क्रम में प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है। आशा है कि इस प्रकाशन के माध्यम से हम इन लोक कथाओं को जन जन तक पहुँचा सकेंगे.
विंडसर, कैनेडा
मई 2016
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