रैवन की लोककथाएँ - 1 - : 9 रैवन इन्डियन्स के लिये रोशनी लाया // सुषमा गुप्ता

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यह बहुत बहुत बहुत पुरानी बात है जब दुनिया बनी ही बनी थी कि रैवन और सफेद समुद्री चिड़ा कैनेडा के बहुत ऊपर के उत्तरी हिस्से में पश्चिम की तरफ ...

यह बहुत बहुत बहुत पुरानी बात है जब दुनिया बनी ही बनी थी कि रैवन और सफेद समुद्री चिड़ा कैनेडा के बहुत ऊपर के उत्तरी हिस्से में पश्चिम की तरफ ग्रेट वाटर्स के किनारे पास पास रहते थे।

वे दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे और हर काम साथ साथ प्रेम से करते थे। उनका बहुत सारा खाना भी एक सा था और बहुत सारे नौकर भी उन दोनों के यहाँ साथ साथ ही काम करते थे।

चिड़ा बहुत सीधा था और उसको चालाकियाँ नहीं आतीं थीं। उसका दिल खुला था और वह सबसे सीधे सच्चे तरीके से बरताव करता था।

जबकि रैवन बहुत चालाक था। जब भी उसको मौका लगता वह किसी से भी धोखाधड़ी करने से बाज़ नहीं आता था।

क्योंकि चिड़ा बहुत सीधा था इसलिये उसे रैवन पर कभी कोई शक ही नहीं हुआ और इसी लिये वे दोनों आपस में बड़े प्रेम से रहते थे।

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ऐसे ही समय में उत्तर की तरफ बिल्कुल ही अँधेरा था, कोई रोशनी नहीं थी सिवाय तारों की रोशनी के। इस समुद्री चिड़े के पास दिन की रोशनी थी पर क्योंकि यह बहुत ही कंजूस था इसलिये उसने उसको एक बक्से में बन्द करके रखा हुआ था।

वह उसमें से जरा सी भी रोशनी किसी को नहीं देता था और वह खुद भी उसमें से उसको थोड़ी सी तब निकालता था जब वह खुद किसी यात्रा पर दूर जाता था।

कुछ समय बाद रैवन चिड़े के दिन की रोशनी पर इस तरीके के कब्जे से जलने लगा। उसने सोचा कि यह ठीक नहीं है कि यह समुद्री चिड़ा दिन की रोशनी को केवल अपने लिये ही बक्से में बन्द कर के रखता है।

यह रोशनी तो सारी दुनिया के लिये है उसके अकेले के लिये नहीं है। अगर वह यह रोशनी हम सबको दे देगा, चाहे थोड़ी देर के लिये ही सही, तो बहुत ही अच्छा होगा।

सो वह चिड़े के पास गया और उससे कहा - "मुझे थोड़ी सी अपनी दिन की रोशनी दो। तुमको सारी रोशनी की जरूरत नहीं है। और मैं उस रोशनी को लोगों के फायदे के लिये इस्तेमाल कर सकता हूँ।"

लेकिन समुद्री चिड़े ने जवाब दिया - "नहीं, यह सारी रोशनी मेरी है और मुझे यह केवल अपने लिये ही चाहिये। तुम दिन की रोशनी का क्या करोगे तुम्हारा तो अपना कोट ही रात की तरह काला है?" और उसने रैवन को दिन की रोशनी नहीं दी।

रैवन ने भी सोच लिया कि वह किसी भी तरीके से उससे दिन की रोशनी ले कर ही रहेगा।

जल्दी ही रैवन ने कुछ चुभने वाले काँटे और झाड़ियाँ इकठ्ठे किये और उनको चिड़े के घर और समुद्री किनारे के बीच के रास्ते पर पर जहाँ नावें पड़ी हुई थीं फैला दिया।

फिर वह चिड़े के मकान की खिड़की पर गया और ज़ोर से चिल्ला कर बोला - "देखो किनारे पर रखी नावें समुद्र में बही जा रहीं हैं। आओ और आ कर उनको बहने से रोकने में मेरी सहायता करो।"

चिड़ा अपने बिस्तर से कूद कर उठा और आधी नीद में नंगे पाँव समुद्र के किनारे की तरफ दौड़ पड़ा। वह क्योंकि वह नंगे पाँव था इसलिये उसके पैरों में काँटे चुभने लगे और वह दर्द से चीख पड़ा।

वह अपने घर की तरफ यह कहता हुआ वापस लौट पड़ा - "मेरी नाव समुद्र में बह कर जाती है तो जाये। मैं तो अपने पैरों में काँटे चुभने की वजह से चल नहीं सकता।"

रैवन को यह सुन कर बड़ा मजा आया और वह वहाँ से यह दिखाते हुए थोड़ा दूर हट गया जैसे कि वह वाकई समुद्र के किनारे से नावें हटाने जा रहा हो।

पर वह समुद्र के किनारे की तरफ नहीं गया बल्कि चिड़े के घर की तरफ चला गया। चिड़ा अभी भी दर्द से चिल्ला रहा था। वह अपने बिस्तर के सहारे बैठा रो रहा था और उससे जितनी अच्छे तरीके से हो सकता था अपने पैरों में से काँटे निकालने की कोशिश कर रहा था।

रैवन बोला - "मैं तुम्हारे पैरों में से काँटे निकालने में तुम्हारी मदद कर सकता हूँ। मैंने यह काम पहले भी किया है और मैं एक अच्छा डाक्टर भी हूँ।"

उसने व्हेल की हड्डी की एक सुई ली और यह जताते हुए चिड़े का पैर पकड़ा जैसे कि वह उसके पैर में से काँटा निकालने वाला है पर उसने उसमें से काँटा निकालने की बजाय उसको और अन्दर घुसा दिया। बेचारा चिड़ा बहुत ज़ोर से चीख पड़ा।

रैवन बोला - "चिड़े भाई, यहाँ अँधेरा बहुत है। मैं तुम्हारे पैर का काँटा ठीक से नहीं देख सकता। तुम मुझे थोड़ी सी दिन की रोशनी दो तो मैं तुम्हें जल्दी ही ठीक कर दँूगा। एक डाक्टर को काम करने के लिये कम से कम थोड़ी सी तो रोशनी चाहिये ही न।"

चिड़े ने अपना बक्सा थोड़ा सा खोला तो उसमें से रोशनी की एक पतली सी किरन निकली। रैवन बोला - "अब ठीक है।"

पर उसने फिर से काँटा निकालने का बहाना करते हुए उसको फिर से और अन्दर कर दिया। बेचारा चिड़ा फिर बहुत ज़ोर से चीख पड़ा।

रैवन अब की बार ज़ोर से बोला - "तुम अपनी रोशनी के बारे में इतने कंजूस क्यों हो? तुम क्या समझते हो कि मैं कोई उल्लू हूँ जो रात के अँधेरे में भी तुम्हारा पैर ठीक करने के लिये देख सकता है? अपना बक्सा ज़्यादा खोलो ताकि मैं तुम्हें जल्दी से ठीक कर सकँू।"

ऐसा कहते हुए वह जान बूझ कर चिड़े के ऊपर ज़ोर से झुक गया। इससे वह बक्सा नीचे फर्श पर गिर पड़ा और उसका ढक्कन टूट कर दूर जा पड़ा। दिन की रोशनी उस बक्से में से निकल कर सारी दुनिया में फैल गयी।

चिड़े ने उस रोशनी को बक्से में फिर से भरने की बहुत कोशिश की पर उसकी सब कोशिशें बेकार गयीं। वह तो उसके हाथ से हमेशा के लिये निकल गयी थी।

रैवन मन ही मन हँसते हुए चिड़े से बोला - "चिड़े भाई, मुझे इस ऐक्सीडैन्ट का बहुत दुख है।"

फिर उसने चिड़े के पैर के सारे काँटे निकाल दिये और घर चला गया। वह अपनी इस चाल की कामयाबी पर बहुत खुश था।

जल्दी ही सारी दुनिया में रोशनी फैल गयी थी पर रैवन को इस रोशनी में कुछ दिखायी नहीं दे रहा था क्योंकि यह रोशनी बहुत तेज़ थी और रैवन की ऑखें अभी इतनी तेज़ रोशनी में देखने की आदी नहीं थीं।

वह बहुत देर तक बैठा बैठा पूर्व की तरफ देखता रहा पर उसको वहाँ अपने मन की कोई भी चीज़ दिखायी नहीं दी। अगले दिन वह कुछ और ज़्यादा दूर तक देख पाया क्योंकि अब वह अपने नये हालात का आदी हो रहा था।

तीसरे दिन वह और बहुत दूर की वे पहाड़ियाँ भी साफ साफ देख सका जो नीले कोहरे से ढकी आसमान तक पहुँची दिखायी दे रहीं थीं। वह उनको बहुत देर तक देखता रहा।

तभी उसको उन पहाड़ियों के पीछे से आसमान की तरफ जाता हुआ धुँआ दिखायी दिया। उसने इससे पहले धुँआ कभी देखा नहीं था। हाँ उसने उसके बारे में यात्रियों से सुना जरूर था तो उसने सोचा कि यही वह जगह होगी जहाँ की वे लोग बात किया करते थे।

उसी देश में शायद वे लोग भी रहते होंगे जिनके पास आग है। हम तो आग को बरसों से ढँूढते आ रहे हैं पर लगता है कि अब मुझे वह जगह मिल गयी है जहाँ आग है।

फिर उसके दिमाग में आया कि हमको दिन की रोशनी तो अब मिल ही गयी है और अब अगर आग भी मिल जाये तो कितना अच्छा हो। यही सोच कर उसने आग की खोज में जाने का विचार बना लिया।

अगले दिन उसने अपने नौकरों को बुलाया और अपने प्लान के बारे में बताया और कहा - "हम लोग कल सुबह जल्दी ही चल देंगे क्योंकि वह जगह यहाँ से बहुत दूर है।"

उसने अपने तीन सबसे अच्छे नौकर रोबिन चिड़ा, मोल एक बड़ा चूहा और मक्खी से कहा कि वे तीनों उसके साथ चलेंगे।

यह सुन कर मक्खी तुरन्त ही अपनी छोटी सी गाड़ी ले आयी। सबने उसमें बैठने की कोशिश की पर वह सबको बैठाने के लिये बहुत छोटी थी।

तब उन्होंने मोल की गाड़ी में बैठने की कोशिश की पर वह बहुत ही नाजुक थी। जैसे ही वह सबको ले कर चली कि वह टूट गयी और सब एक ढेर की तरह से उसमें से गिर गये।

इसके बाद उन्होंने रोबिन की गाड़ी में बैठने की कोशिश की पर वह बहुत ऊँची थी और वह तीनों के बोझ से लुढ़क गयी और सब जमीन पर आ गिरे।

इसके बाद रैवन ने चिड़ा जब सोया हुआ था तो उसकी बड़ी और मजबूत वाली गाड़ी चुरा ली। यह गाड़ी अच्छी थी और इसी गाड़ी में तीनों ने अपना सफर शुरू किया। तीनों बारी बारी से मैदानों में उस गाड़ी को एक डंडे से धक्का देते चले जा रहे थे।

अजीब अजीब जगहों और उस धुँए को देखते हुए वे उस जगह आ पहुँचे जहाँ के लोगों के पास आग थी। ये लोग धरती के रहने वाले नहीं थे। कुछ का कहना है कि वे मछली आदमी थे पर कौन जाने वे कहाँ के थे।

वे आग के चारों तरफ एक गोले में बैठे थे क्योंकि उस समय पतझड़ का मौसम था और दिन और रात दोनों ही ठंडे थे। आग भी वहाँ कई लोगों के पास थी। रैवन उनकी तरफ देखता रहा और वहाँ से आग लेने का सबसे अच्छा प्लान सोचता रहा।

सोचते सोचते वह रोबिन से बोला - "तुम हम सबमें सबसे ज़्यादा तेज़ भागते हो। तुम्हीं को यह आग चुरानी चाहिये।

तुम जल्दी से उड़ जाओ, अपनी चोंच में आग दबा लो और तुरन्त ही उड़ कर हमारे पास आ जाओ। ये लोग तुमको न तो सुन पायेंगे और न ही देख पायेंगे।"

सो रोबिन उड़ा और एक ऐसी जगह जा कर बैठ गया जहाँ बहुत कम लोग थे। फिर वह अपने प्लान के अनुसार बहुत तेज़ी से उड़ा, पलक झपकते आग उठायी और बिना किसी परेशानी के अपने साथियों के पास आ गया।

पर वह बहुत थोड़ी सी ही आग ला पाया था। जब वह अपने साथियों के पास आने की आधी दूरी पर ही था कि उसकी चोंच में एक अजीब तरह का दर्द हुआ और उसे उस आग को वहीं गिरा देना पड़ा।

जब वह आग जमीन पर गिरी तो वह उससे टकरा कर बिखर गयी। और वह इतनी थोड़ी सी ही थी कि वह बस बहुत जरा सी ही जल रही थी। रोबिन ने अपने साथियों से तुरन्त ही गाड़ी लाने के लिये कहा ताकि वे उस थोड़ी सी आग को ही अपने घर ले जा सकें।

जब तक गाड़ी आयी तब तक वह आग के पास खड़ा खड़ा उसको अपने पंखों से हवा करता रहा ताकि वह बुझे नहीं।

उसको बहुत गरमी लग रही थी पर फिर भी वह हिम्मत से अपना काम करता रहा जब तक कि उसकी छाती बुरी तरह से जलने नहीं लगी। पर उसके बाद वह उसकी गरमी नहीं सह सका और उसे वहाँ से हट जाना पड़ा।

इस तरह आग को बचाने की उसकी कोशिश बेकार गयी और जब तक गाड़ी वहाँ आयी तब तक वह आग बुझ चुकी थी और अब वहाँ केवल एक काला कोयला ही रह गया था।

बेचारे रोबिन की छाती जल रही थी और इसी वजह से आज भी उस के बच्चों की छाती लाली लिये हुए कत्थई रंग की होती है।

इसके बाद रैवन ने मक्खी से कहा कि वह आग ले कर आये। पर मक्खी ने कहा - "मैं तो बहुत छोटी हूँ। उसकी गरमी तो मुझे भून कर मार ही देगी। इसके अलावा शायद मैं दूरी का भी अन्दाज न लगा पाऊँ और सीधी आग की लपटों में ही जा कर गिर जाऊँ।"

इस पर रैवन ने मोल से कहा कि वह आग लाने की कोशिश करे। पर मोल बोला - "नहीं नहीं, मैं दूसरे कामों के लिये तो ठीक हूँ पर इस काम के लिये नहीं। मेरे बाल तो रोबिन की छाती की तरह से जल जायेंगे।"

रैवन अब तक यह पूरा खयाल रखे था कि आग लाने के लिये उसे खुद न जाना पड़े क्योंकि वह एक बहुत ही डरपोक आदमी था।

कुछ सोचते हुए वह बोला - "इस सबसे अच्छा और आसान एक और तरीका है। ऐसा करते हैं कि हम इनके सरदार का बच्चा चुरा लें और इनसे उसके बदले में कुछ माँग लें। हो सकता है कि ये हमको उस बच्चे के बदले में ही आग दे दें।"

रैवन का यह विचार उन सबको बहुत पसन्द आया। सो रैवन ने पूछा - "कौन चुरायेगा इनके सरदार का बच्चा?"

मक्खी बोली - " मैं जाऊँगी। मैं एक बार की कूद में ही उसके घर में पहुँच जाऊँगी और दूसरी कूद में उसके घर में से बाहर आ जाऊँगी क्योंकि मैं बहुत दूर तक कूद मार सकती हूँ।"

इस पर दूसरे लोग ज़ोर से हँस पड़े और बोले - "मक्खी, तुम बहुत छोटी हो तुम तो उसके बच्चे को उठा भी नहीं सकतीं। यहाँ तक लाओगी कैसे?"

मोल बोला - "तो ठीक है, मैं जाऊँगा। मैं बहुत ही चुपचाप रह कर उसके घर की जमीन के नीचे एक रास्ता बनाऊँगा और बच्चे के पालने तक पहुँच जाऊँगा।

फिर मैं बच्चे को चुरा कर उसी रास्ते से वापस आ जाऊँगा। न ही कोई मुझे देख पायेगा और न ही कोई मुझे सुन पायेगा।"

सो यही निश्चय हुआ कि मोल सरदार के बच्चे को चुराने के लिये जायेगा। मोल ने कुछ ही मिनटों में सुरंग बना ली और कुछ ही देर में वह सरदार के बच्चे को ले कर वहाँ आ गया। तुरन्त ही वे सब अपनी गाड़ी में सवार हुए और बच्चे को ले कर अपने घर वापस आ गये।

जब आग वाले आदमियों के सरदार को यह पता चला कि उसका बच्चा गायब हो गया है तो वह बहुत गुस्सा हुआ। सारे लोग बहुत दुखी हो गये क्योंकि सरदार का वारिस और उनके कबीले की उम्मीद चली गयी थी।

बच्चे की माँ और उसके साथ की स्त्रियाँ तो इतने जोर से रोयीं कि सारी जगह में बारिश सी हो गयी।

सरदार ने कहा कि वह अपने बच्चे के लिये जो कुछ भी उसके पास है उसमें से कुछ भी देने को तैयार है पर उसका बच्चा उसे वापस चाहिये।

उसके आदमियों ने पास ढँूढा दूर ढँूढा, इधर ढँूढा उधर ढँूढा पर सरदार का बच्चा नहीं मिला।

कई दिनों के बाद एक राहगीर जो बहुत दूर पश्चिम से ग्रेट वाटर्स से आया था, उसने उनको बताया कि उसने एक अजीब सा बच्चा पश्चिमी समुद्र के पास के एक गाँव में देखा था।

उसने यह भी बताया कि वह उसे उन लोगों के समूह का नहीं लग रहा था बल्कि वह उन्हीं आग वाले लोगों के गाँव का लग रहा था और उनको उस बच्चे को खुद जा कर जरूर देखना चाहिये।

सो सरदार ने अपने कुछ आदमियों को उस राहगीर के बताये गाँव में भेजा। जब वे लोग रैवन के गाँव में पहुँचे तो उनको बताया गया कि वहाँ एक अजीब सा बच्चा सचमुच में रहता तो था।

बच्चे की शक्ल भी बतायी गयी पर उसको दिखाया नहीं गया। रैवन ने उन लोगों को यह भी नहीं बताया कि वह बच्चा वहाँ आया कैसे।

रैवन बोला - "मैं कैसे जानँू कि वह तुम्हारे सरदार का ही बच्चा है। आजकल लोग अजीब अजीब से झूठ बोलते हैं। पर अगर तुम्हें वह बच्चा चाहिये तो उसके लिये कुछ दो क्योंकि उसने हमको बहुत परेशान किया है और हमारा खर्चा भी बहुत कराया है।"

सरदार के आदमी वापस अपने सरदार के पास गये और जा कर उसे वह सब बताया जो उन्होंने रैवन के गाँव में सुना था। सरदार ने उस बच्चे की शक्ल सूरत सुन कर कहा कि लगता है कि वह उसी का बच्चा है।

उसने अपने आदमियों को बहुत सारी कीमती मोतियों और पोशाकों की भेंटें दीं और कहा कि वे ये भेंटें उन गाँव वालों को देकर उसका बच्चा वापस ले आयें।

पर रैवन ने जब वे भेंटें देखीं तो बोला - "मुझे ये भेंटें नहीं चाहिये। वे मुझे मेरी तकलीफों के लिये मुआवज़ा ठीक से नहीं दे रहे हैं।" और उसने बच्चा देने से मना कर दिया।

सरदार के आदमी फिर लौट कर सरदार के पास आये और उसको बताया जो रैवन ने उनसे कहा था। सरदार ने उनको जो उसके राज्य में सबसे अच्छी और ज़्यादा कीमती चीज़ें भेंट में दे कर भेजा।

लेकिन रैवन ने कहा - "जाओ और जा कर अपने सरदार से कह दो कि उसकी इन सब भेंटों की कीमत जो हमने इस बच्चे की देखभाल में खर्च की है उसकी कीमत से कहीं कम है।"

जब सरदार ने यह सुना तो वह सोच में पड़ गया कि अब वह क्या करे क्योंकि उसने तो अपने तरीके से अपने राज्य की सबसे अच्छी और सबसे कीमती भेंटें उसको भेजी थीं और अब इससे आगे वह कुछ नहीं सोच सकता था।

उसने फिर से अपने आदमियों को भेजा कि वे रैवन से यह पूछ कर आयें कि रैवन उसका बच्चा देने का क्या लेगा। अगर वह दिया जा सकता है तो वह उसको वही देगा।

सो सरदार के आदमी फिर गये और रैवन से पूछा कि वह सरदार के बच्चे को लौटाने का क्या लेगा। रैवन बोला कि वह बच्चे के बदले में केवल एक ही चीज़ चाहता था और वह थी आग। मुझे आग दे दो और बच्चा ले जाओ।

यह सुन कर सरदार का आदमी बहुत ज़ोर से हँसा और बोला - "तुमने हमें पहले क्यों नहीं बताया कि तुमको आग चाहिये। हम बेकार ही इतने परेशान हुए और फिक्र कर रहे थे। आग तो हमारे राज्य में बहुत सारी है और हम लोग तो उसको बहुत कीमती भी नहीं समझते।"

वे सब सरदार के पास लौटे और सरदार ने बहुत सारी आग रैवन को भेज दी और उस आग के बदले में अपना बच्चा सही सलामत वापस ले आये।

उस आग के साथ सरदार ने दो पत्थर भी भेजे और कहलवाया कि कि अगर लकड़ी की कमी से या फिर किसी और वजह से तुम्हारी यह आग बुझ जाये तो उन दोनों पत्थरों को आपस में एक दूसरे से टकरा कर आग फिर से यह आग जलायी जा सकती थी।

यह कैसे करना था यह उसके आदमियों ने रैवन को समझा दिया था। उसको इन पत्थरों से आग जलाने के लिये सूखी घास या बिर्च पेड़ की छाल और सूखे पाइन की भी जरूरत पड़ेगी जिसके ऊपर उन पत्थरों से पैदा हुई चिनगारी गिर सके। और रैवन ने सोचा कि यह सब तो बहुत आसान था।

रैवन को अपने ऊपर बहुत घमंड हो रहा था कि धरती पर वही दिन की रोशनी ले कर आया और वही अब आग भी ले कर आया।

रैवन ने वह आग बहुत दिनों तक अपने ही पास रखी और हालाँकि लोगों ने बहुत शोर मचाया कि थोड़ी सी आग वह उनको भी दे दे पर फिर भी उसने उसमें से किसी को कुछ नहीं दिया।

कुछ दिनों बाद उसने सोचा कि कई पत्नियाँ रखने का यह अच्छा मौका है सो उसने उसमें थोड़ी सी आग बेचने का निश्चय किया क्योंकि अब तो उसके पास आग बनाने की मशीन थी।

उसने यह घोषणा कर दी कि वह पत्नी के बदले में आग बेच रहा है। बहुत सारे परिवारों ने उससे आग खरीदी और उस आग के बदले में उसको कई पत्नियाँ मिलीं। और आज तक उसके पास कई पत्नियाँ हैं। वह अभी भी अपनी उन पत्नियों को ले कर इधर उधर घूमता रहता है।

जब इन्डियन्स आये तो उन्होंने उससे आग ले ली। इस तरह यह आग काफी पुराने समय से इन्डियन्स के पास आ गयी।

और जब यह आग बुझ गयी, जैसे कि यह अक्सर बुझ जाया करती है तो वे अभी भी उसको शुरू करने के लिये रैवन के उन चकमक पत्थरों का ही इस्तेमाल करते हैं जो उन आदमियों ने उसको आग बुझ जाने पर इस्तेमाल करने के लिये दिये थे।


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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं की एक अन्य पुस्तक - रैवन की लोक कथाएँ में से एक लोक कथा यहाँ पढ़ सकते हैं. इथियोपिया की 45 लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)

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तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड 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पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi 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रचनाकार: रैवन की लोककथाएँ - 1 - : 9 रैवन इन्डियन्स के लिये रोशनी लाया // सुषमा गुप्ता
रैवन की लोककथाएँ - 1 - : 9 रैवन इन्डियन्स के लिये रोशनी लाया // सुषमा गुप्ता
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