जब नोआ ने भगवान के कहने के अनुसार 100 सालों में नाव बना ली तो उसने धरती के सभी जानवरों को अपनी नाव में चढ़ा लिया और फिर वह खुद भी अपने परिवा...
जब नोआ ने भगवान के कहने के अनुसार 100 सालों में नाव बना ली तो उसने धरती के सभी जानवरों को अपनी नाव में चढ़ा लिया और फिर वह खुद भी अपने परिवार के साथ उस नाव में चढ़ गया।
उसके बाद मूसलाधार बारिश शुरू हो गयी। पहले घाटियाँ भरीं, फिर मैदान भरे, फिर पानी पहाड़ियों तक पहुँच गया और फिर ऊँचे ऊँचे पहाड़ भी डूब गये।
सिवाय मछलियों के नाव के बाहर के जितने भी जानवर थे सब पानी में डूब कर मर गये। जबकि नाव के अन्दर के सभी जीव बच गये क्योंकि वे सब नाव में थे और क्योंकि वह नाव थी इसलिये वह पानी पर तैरती रही, डूबी नहीं।
काफी दिनों बाद जब बारिश बन्द हो गयी और पानी समुद्र में वापस चला गया, झीलों में चला गया, नदियों और नालों में चला गया तो नोआ ने यह देखना चाहा कि धरती फिर से रहने लायक हो गयी है या नहीं सो उसने अपनी नाव की एक खिड़की खोली और रैवन को बाहर भेजा।
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उस समय तक भगवान के बनाये हुए जीवों में रैवन ही सबसे अधिक सुन्दर पक्षी था जिसके खूब सुन्दर और चमकीले पंख थे और जिसकी आवाज के जादू से सारा वातावरण खुशी से भर जाता था।
नोआ रैवन से बोला - "रैवन जाओ, धरती के ऊपर उड़ो और यदि तुम्हें कहीं कोई हरी घास मिले तो मुझे उसकी एक डंडी ला कर दो।" रैवन यह सुन कर बाहर उड़ गया।
बाहर जा कर रैवन ने पानी के ऊपर कुछ चीजें तैरती देखीं तो वह अपने मालिक के हुकुम को तो भूल गया और अपनी भूख मिटाने में लग गया। उधर नोआ की नाव अब तक पहाड़ की एक चोटी पर ठहर चुकी थी पर रैवन का तो कहीं पता ही नहीं था।
नोआ ने उसको अपना हुकुम न मानने पर शाप दे दिया जिससे उसके पंख काले हो गये तथा उसकी मीठी आवाज फटी आवाज में बदल गयी।
दूसरी बार नोआ ने फाख्ता को हरे हरे पेड़ों को देखने के लिये भेजा। तो पहली बार तो वह भी खाली ही लौट आयी पर दूसरी बार वह अपनी चोंच में एक शाख ले कर आयी जिसमें एक फल भी लगा हुआ था।
नोआ ने उसको आशीर्वाद दिया और तब से वह बिल्कुल सफेद और सुन्दर हो गयी और तभी से वह सबको प्यारी भी हो गयी।
अब नाव को खोलने का समय आ गया था सो नोआ ने नाव के दरवाजे और खिड़कियाँ खोल दिये जिनमें से इतने दिनों से अन्दर बन्द सभी जानवर निकल निकल कर धरती पर चारों तरफ भागने लगे।
जैसे ही नोआ ने रैवन के भाई कौए को देखा तो उसने उसको भी शाप दे दिया कि "तुम और तुम्हारा भाई रैवन हमेशा ही उड़ते रहेंगे। तुम दोनों खाने के मामले में लालची हो जाओगे और माँस खाने वाले हो जाओगे।
तुम्हारी आवाजें दुखभरी और चीखने जैसी हो जायेंगी। तुम जहाँ भी जाओगे वहाँ के लोग तुमको अपने पास से भगाने की कोशिश करेंगे।"
कौआ यह सब सुन कर बहुत दुखी हुआ पर फिर और पक्षियों के साथ बाहर उड़ गया। वह एक अकेली जगह चला गया और फिर अकेला ही घूमता रहा। खाने में वह मुर्दा माँस खाता रहा।
एक दिन उसको अपना भाई रैवन मिल गया। वह भी एक मुर्दा शरीर का सड़ा हुआ माँस खा रहा था।
उन दोनों को पता चल गया था कि वे अब आदमियों के बीच में नहीं रह सकते सो दोनों आपस में दोस्त बन गये और उन्होंने आदमियों से दूर रहने की ही सोची इसलिये वे दूर उत्तर की तरफ उड़ चले।
काफी समय की मुश्किल और थकान भरी उड़ान के बाद वे दोनों एक जंगल में एक पेड़ पर जा कर बैठ गये। वहाँ बड़ी शान्ति थी। ये कैनेडा के जंगल थे। उन्होंने सोचा था कि वे वहाँ आराम से रहेंगे पर उनका यह सोचना गलत था।
वे जब अगली सुबह सो कर उठे तो वह सुबह उनके लिये एक दर्द भरी सुबह थी। तेज हवाऐं चल रहीं थीं, खूब ठंडा हो रहा था और बरफ पड़नी शुरू हो गयी थी।
ठंड उनके शरीरों में घुसी जा रही थी। पेड़ों ने भी उनको रहने की जगह देने से मना कर दिया था सो वे वहाँ से फिर उड़ चले।
तब से हर साल कौए वसन्त में कैनेडा के उत्तरी भाग में उड़ कर आते हैं और वहाँ के पेड़ भी नोआ के शाप की वजह से उनको रोकने के लिये ऊपर की तरफ बढ़ने लगते हैं।
इस कहानी को सुनाने वाले आदमी ने कहा था - "आज तो मौसम साफ है परन्तु यह साफ मौसम बहुत दिनों तक नहीं रहेगा क्योंकि आज ही मैंने तीन कौए देखे हैं जो दक्षिण की तरफ उड़ कर गये हैं। वे आने वाले तूफान के डर की वजह से ही उड ़कर गये होंगे।"
इस पर उस आदमी की पत्नी बोली - "जब वे यहाँ से जा रहे थे तब थोड़ी ठंड थी। बेचारे कौए। उनको अपनी इतनी पुरानी गलती की सजा अभी तक भुगतनी पड़ रही है और शायद वे इसे आखीर तक भुगतते ही रहेंगे।"
भारत में कौए की दो कहानियाँ रामायण में आती है। पहली कहानी में जब राम और सीता वनवास में जंगल में हैं तो इन्द्र का बेटा जयन्त एक कौए का रूप रख कर सीता जी के पैरों में चोंच मारता है। सीता जी के पैरों से खून बहने लगता है। राम गुस्सा हो कर उस पर तीर चलाते हैं।
तीर से बचने के लिये वह सारे लोकों में उड़ता फिरता है पर कोई उसको अपने पास नहीं रखता। तब नारद जी उसको समझाते हैं कि राम के अपराधी को केवल राम ही बचा सकते हैं इसलिये तुम राम के पास जाओ इस तीर से वही तुम्हारी रक्षा करेंगे।
जयन्त तब राम के पास आता है और उनसे माफी माँगता है। राम उसको माफ तो कर देते हैं पर उसको सजा भी जरूर देते हैं। वह उसकी बाँयी ऑख फोड़ देते हैं। उसकी गलती की सजा सारे कौए अभी तक भुगत रहे हैं कि सारे कौए काने हैं और वे केवल एक ऑख से ही देख सकते हैं।
कौए की दूसरी कहानी रामायण में तब आती है जब राम रावण लड़ाई में रावण राम और लक्ष्मण को नाग पाश से बाँध देता है। वे नाग उनको धीरे धीरे काटने लगते हैं और उनका जहर राम और लक्ष्मण के शरीर में फैलने लगता है।
साफ था कि अगर जल्दी ही कुछ न किया गया तो राम और लक्ष्मण दोनों साँपों के जहर से मर जायेंगे सो हनुमान जी गरुड़ जी को लेने जाते हैं क्योंकि वह साँप खाते हैं। गरुड़ जी को आया देख कर साँप भाग जाते हैं और राम और लक्ष्मण बच जाते हैं।
यह देख कर गरुड़ जी को घमंड हो जाता है कि "भगवान खुद तो कुछ कर नहीं सकते उनकी जान बचाने के लिये मुझे आना पड़ा। मैंने उनकी जान बचायी।"
यही सोचते सोचते वह घर चल दिये तो रास्ते में उनको शिवजी मिल गये। उन्होंने शिवजी को सब बताया तो शिवजी ने समझ लिया कि गरुड़ जी को घमंड हो गया है उस घमंड को दूर करने के लिये उन्होंने गरुड़ जी को कागभुशुंडि जी के पास भेज दिया जो खुद एक कौआ थे।
शिवजी ने गरुड़ जी से उनसे राम की कहानी सुनने के लिये कहा और कहा कि उनका घमंड उनसे राम की कथा सुनने के बाद ही जायेगा। गरुड़ जी उस कौए के पास गये, उससे राम कथा सुनी तब जा कर कहीं उनका घमंड दूर हुआ।
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं की एक अन्य पुस्तक - रैवन की लोक कथाएँ में से एक लोक कथा यहाँ पढ़ सकते हैं. इथियोपिया की 45 लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.
(समाप्त)
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16 अकबर बीरबल की कहानिर्याँ1 - 15 कहानियाँ - 45 पृष्ठ
17 अकबर बीरबल की कहानिर्याँ1 - 15 कहानियाँ - 45 पृष्ठ
18 विक्रम बेताल की कहानिर्याँपुराण से - 9 कहानियाँ - 60 पृष्ठ
19 जानवरों की कहानियाँः अरेबियन नाइट्स से - 10 कहानियाँ - 78 पृष्ठ
20 एक प्रकार की कहानीः भिन्न भिन्न देर्श1 - 6 कहानियाँ - 56 पृष्ठ
21 लोक कथाओं में बेवकूफ - 12 कहानियाँ - 72 पृष्ठ
22 लोक कथाओं में नम्बर तीर्न1 - 12 कहानियाँ - 72 पृष्ठ
23 लोक कथाओं में फर्ल1 - 6 कहानियाँ - 60 पृष्ठ
24 लोक कथाओं में फर्ल2 - 6 कहानियाँ - 60 पृष्ठ
25 लोक कथाओं में फर्ल3 - 8 कहानियाँ - 90 पृष्ठ
26 लोक कथाओं में फर्लर्32 - 10 कहानियाँ - 122 पृष्ठ
27 लोक कथाओं में बरतन - 9 कहानियाँ - 72 पृष्ठ
28 लोक कथाओं में नम्बर तीन - 8 कहानियाँ - 62 पृष्ठ
29 लोक कथाओं में ईसाई धर्र्म1 - 7 कहानियाँ - 60 पृष्ठ
30 लोक कथाओं में ईसाई धर्र्म2 - 12 कहानियाँ - 130 पृष्ठ
31 लोक कथाओं में सिलाई कढ़ाई कताई बुनाई - 10 कहानियाँ - 134 पृष्ठ
32 वरदानों का कमाल - 9 कहानियाँ - 112 पृष्ठ
33 आओ हँसें हँसाऐं - 12 कहानियाँ - 82 पृष्ठ
34 नकल करो मगर अक्ल से - 9 कहानियाँ - 94 पृष्ठ
35 जो होना था हो के रहा ़ ़ ़ - 8 कहानियाँ - 72 पृष्ठ
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2 रैवन की लोक कथाएँ2
3 इथियोपिया की लोक कथाएँ
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2 इथियोपिया की लोक कथाएँ1 - 45 लोक कथाएँ
1 ज़ंज़ीबार की लोक कथाएँ - 10 लोक कथाएँ
Updated on May 27, 2016
लेखिका के बारे में
सुषमा गुप्ता का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में सन् 1943 में हुआ था। इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र और अर्थ शास्त्र में ऐम ए किया और फिर मेरठ विश्वविद्यालय से बी ऐड किया। 1976 में ये नाइजीरिया चली गयीं। वहाँ इन्होंने यूनिवर्सिटी औफ़ इबादान से लाइब्रेरी साइन्स में ऐम ऐल ऐस किया और एक थियोलोजीकल कौलिज में 10 वर्षों तक लाइब्रेरियन का कार्य किया।
वहाँ से फिर ये इथियोपिया चली गयीं और वहाँ एडिस अबाबा यूनिवर्सिटी के इन्स्टीट्यूट औफ़ इथियोपियन स्टडीज़ की लाइब्रेरी में 3 साल कार्य किया। तत्पश्चात इनको दक्षिणी अफ्रीका के एक देश़ लिसोठो के विश्वविद्यालय में इन्स्टीट्यूट औफ़ सदर्न अफ्रीकन स्टडीज़ में 1 साल कार्य करने का अवसर मिला। वहाँ से 1993 में ये यू ऐस ए आगयीं जहाँ इन्होंने फिर से मास्टर औफ़ लाइब्रेरी ऐंड इनफौर्मेशन साइन्स किया। फिर 4 साल ओटोमोटिव इन्डस्ट्री एक्शन ग्रुप के पुस्तकालय में कार्य किया।
1998 में इन्होंने सेवा निवृत्ति ले ली और अपनी एक वेब साइट बनायी - www.sushmajee.com <http://www.sushmajee.com>। तब से ये उसी वेब साइट पर काम कर रहीं हैं। उस वेब साइट में हिन्दू धर्म के साथ साथ बच्चों के लिये भी काफी सामग्री है।
भिन्न भिन्न देशों में रहने से इनको अपने कार्यकाल में वहाँ की बहुत सारी लोक कथाओं को जानने का अवसर मिला - कुछ पढ़ने से, कुछ लोगों से सुनने से और कुछ ऐसे साधनों से जो केवल इन्हीं को उपलब्ध थे। उन सबको देखकर इनको ऐसा लगा कि ये लोक कथाएँ हिन्दी जानने वाले बच्चों और हिन्दी में रिसर्च करने वालों को तो कभी उपलब्ध ही नहीं हो पायेंगी - हिन्दी की तो बात ही अलग है अंग्रेजी में भी नहीं मिल पायेंगीं.
इसलिये इन्होंने न्यूनतम हिन्दी पढ़ने वालों को ध्यान में रखते हुए उन लोक कथाओं को हिन्दी में लिखना पा्ररम्भ किया। इन लोक कथाओं में अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी अमेरिका के देशों की लोक कथाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों की भी कुछ लोक कथाएँ सम्मिलित कर ली गयी हैं।
अभी तक 1000 से अधिक लोक कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी है। इनको "देश विदेश की लोक कथाएँ" क्रम में प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है। आशा है कि इस प्रकाशन के माध्यम से हम इन लोक कथाओं को जन जन तक पहुँचा सकेंगे.
विंडसर, कैनेडा
मई 2016
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