रैवन की लोककथाएँ - 1 - : 17 रैवन और एक आदमी जो ज्वार भाटा पर बैठता था // सुषमा गुप्ता

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यह बहुत पुरानी बात है जब समुद्र में ज्वार भाटा नहीं उठते थे। रैवन को मालूम था कि समुद्र में उसके लिये बहुत खाना है - केकड़े, घोंघे आदि आदि। ...

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यह बहुत पुरानी बात है जब समुद्र में ज्वार भाटा नहीं उठते थे। रैवन को मालूम था कि समुद्र में उसके लिये बहुत खाना है - केकड़े, घोंघे आदि आदि। पर उनको खाने के लिये उनको ऊपर कैसे लाया जाये?

वह सुस्त था और हर काम चालाकी से करना चाहता था। उसने सोचा कि अगर वह समुद्र का पानी कहीं एक तरफ को हटा सकता तो वह समुद्र में से अपना खाना निकाल सकता था। पर उसका पानी कैसे हटाया जाये।

रैवन को तो समुद्र के बारे में कुछ भी पता नहीं था पर उसे यह जरूर मालूम था कि एक कोहरा आदमी था जो उसके बारे में सब जानता था। सो उसने सोचा कि सबसे पहले उसको कोहरा आदमी को ढँूढना चाहिये और उससे बात करनी चाहिये।

उसने समुद्र के पास रहने वाली कई चिड़ियों से कोहरे आदमी के बारे में पूछा और उन्होंने उसको बताया भी कि वह उसको कहाँ मिल सकता था पर उसे पता न चल सका कि वे उसे किस तरफ भेजना चाहतीं थीं।

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उसने समुद्र के ऊपर उड़ने वाली चिड़ियों से भी पूछा पर वे तो अपने आप में ही इतनी मस्त दिखायी देती थीं कि वह उनसे कुछ पूछने की हिम्मत ही नहीं कर सका। उसने कुछ और चिड़ियों से भी पूछा पर किसी को कोहरे आदमी का पता नहीं था।

आखिर रैवन ने खुद ही उस कोहरा आदमी का पता लगाने का निश्चय किया सो वह दूर उत्तर की तरफ उड़ चला जहाँ से कोहरा आता था।

कोहरे आदमी को ढँूढते ढँूढते वह एक ऐसी जगह आ पहुँचा जहाँ एक टापू लहरों के ऊपर ऐसे इधर उधर हिल रहा था जैसे कोई नाव बिना मल्लाह के हिलती है। उस टापू पर एक झुर्री वाले शरीर वाला और लम्बी दाढ़ी वाला बूढ़ा आदमी बैठा था।

जैसे ही उसने रैवन को आते देखा तो उसने अपना टोप अपने मुँह पर नीचे को खिसका लिया और उसके टोप के किनारों से कोहरा टपक टपक कर नीचे गिरने लगा जिसने उस बूढ़े आदमी को और उसकी नाव को छिपा लिया।

रैवन ने ऊपर से नीचे की तरफ एक कूद लगायी और उस बूढ़े आदमी से उसका टोप छीन लिया और बोला - "यह क्या कर रहे हो तुम? क्या तुम अपने दोस्तों के ऊपर ही कोहरा फेंकते हो?"

वह बूढ़ा आदमी चिल्लाया - "ओ रैवन, मेरा टोप मुझे दो मुझे कोहरा बनाना है।"

रैवन ने उससे पूछा - "पर तुम कोहरा बनाते ही क्यों हो?"

वह आदमी बोला - "यही मेरा काम है। यही मैं करता हूँ। मैं कोहरा आदमी हूँ।"

रैवन बोला - "क्या तुम जानते हो कि समुद्र को उसके किनारे से दूर कैसे हटाया जा सकता है?"

वह आदमी बोला - "नहीं मुझे नहीं मालूम, पर तुम मेरा टोप मुझे दे दो। देखो सूरज की गरमी बढ़ती जा रही है।"

"क्या तुम किसी ऐसे आदमी को जानते हो जो मुझे यह बता सके कि समुद्र के पानी को कैसे हटाया जा सकता है?"

वह आदमी बोला - "जा कर उस आदमी से पूछो जो ज्वार भाटा पर बैठता है। यह बात तो वही तुमको बता सकता है।"

रैवन की समझ में कुछ नहीं आया तो उसने फिर पूछा - "यह ज्वार भाटा क्या होता है? वह आदमी उस पर बैठता ही क्यों है? और वह मुझे कहाँ मिल सकता है?"

कोहरा आदमी बोला - "मेहरबानी करके तुम मेरा टोप मुझे दे दो और वहाँ चले जाओ जहाँ सूरज सोता है। वह तुम्हें वहीं मिल जायेगा।"

रैवन हँसा और बोला - "ठीक है, मैं जा रहा हूँ पर तुम्हारा टोप साथ लिये जाता हूँ। देखो न आज कितना अच्छा धूप वाला दिन था।"

वह कोहरा आदमी उसको बुरा भला कहता रहा और रैवन उसका टोप ले कर वहाँ से उड़ कर उधर चल दिया जहाँ सूरज डूबने वाला था। वह बहुत दिनों तक सूरज के पीछे भागता रहा पर उसको वह ज्वार भाटा वाला आदमी नहीं मिला।

एक दिन जब वह अपनी खोज रोकने ही वाला था कि उसको एक चट्टान वाला केंकड़ा एक चट्टान से चिपका दिखायी दे गया।

उसके सिर के चारों तरफ समुद्री चिड़ियाँ चक्कर काट रही थीं। रैवन ने उन चिड़ियों से उस ज्वार भाटा वाले आदमी के बारे में पूछना चाहा कि उस केंकड़े ने ज़ोर की एक जँभाई ली और अपनी ऑख झपकायी।

रैवन ने देखा कि वह केंकड़ा चट्टान से नहीं बल्कि एक बड़े से आदमी के शरीर से चिपका हुआ था जो पानी में बैठा था। रैवन ने उस आदमी से तीन बार पूछा - "क्या तुमने उस आदमी को देखा है जो ज्वार भाटा पर बैठता है?" पर उस आदमी ने कोई जवाब ही नहीं दिया।

जब चौथी बार रैवन ने उस आदमी से पूछा तो वह चिल्ला कर बोला - "हाँ हाँ मैं ही हूँ वह आदमी जो ज्वार भाटा पर बैठता है।" उस आदमी की साँस इतनी तेज़ थी कि रैवन मीलों दूर जा पड़ा।

जब वह वापस आया तो वह अपने आपको उसके मुँह से बचाते हुए उसके कान में चिल्लाया - "क्या तुम जानते हो कि समुद्र को उसके किनारे से दूर कैसे हटाया जा सकता है?"

वह आदमी बोला - "मुझे बहुत कुछ मालूम है पर मुझे सब कुछ याद नहीं है।"

रैवन बोला - "हो सकता है यदि तुम मुझे कोई एक चीज़ बताओ तो तुम्हें याद आ जाये।"

वह आदमी बोला - "भागो यहाँ से मुझे कुछ भी याद नहीं है।"

रैवन बोला - "अच्छा यह तो यही बता दो कि ज्वार भाटा है क्या और तुम उस पर बैठते ही क्यों हो?"

वह आदमी बोला - "वह मेरा काम है इसी लिये मैं उस पर बैठता हूँ। मैं वही करता हूँ और मैं ही वह आदमी हूँ जो ज्वार भाटा पर बैठता है।"

रैवन को कुछ उत्सुकता हुई सो उसने देखना चाहा कि वह आदमी कहाँ बैठा था सो वह उससे बोला - "तुम थोड़ा सा खड़े हो कर देखो न।"

"नहीं, मैं हमेशा बैठा ही रहता हूँ। यही मेरा काम है।"

"थोड़ा सा खड़े तो हो, बस थोड़ा सा।"

"नहीं, मैं खड़ा नहीं होता। चले जाओ यहाँ से, तुम मुझे परेशान कर रहे हो।"

रैवन ने उसके चारों तरफ एक चक्कर लगाया तो उसको उसकी पीठ का कुछ हिस्सा खुला हुआ दिखायी दे गया। उसके दिमाग में एक विचार आया।

वह काफी ऊपर उड़ा और तेज़ी से नीचे आ कर उसने उसकी पीठ के उस खुले हिस्से में ज़ोर से अपनी चोंच मारी और उसको पकड़ लिया।

वह आदमी दर्द के मारे ज़ोर से चिल्लाता हुआ उठ खड़ा हुआ और अपनी पीठ पकड़ कर इधर उधर कूदता रहा पर उसके दर्द की चीखें एक ऐसी आवाज में दब गयीं जो उसकी चीखों से भी ज़्यादा तेज़ थी।

वह तेज़ आवाज इतनी तेज़ थी जैसे कहीं सैंकड़ों झरनों का पानी एक साथ नीचे गिर रहा हो क्योंकि जैसे ही वह आदमी उठा उस जगह पर एक बड़ा सा छेद हो गया था और समुद्र का पानी उस छेद से नीचे जाने लगा था।

वह आदमी तो दर्द से कराहता ही रहा और समुद्र उस छेद में से करीब करीब सारा का सारा नीचे चला गया। चारों तरफ अब रेत और तड़पती हुई मछलियाँ ही दिखायी दे रही थीं।

आखिर अपने दर्द की जगह को सहलाता हुआ वह आदमी फिर अपनी जगह पर बैठ गया। जैसे ही वह बैठा समुद्र फिर से भर गया।

अब रैवन को उस आदमी का भेद पता चल गया था - "तो यह है ज्वार भाटा। यदि हम इसको कुछ नयी आदतें डाल दें तो शायद मेरा काम बन जाये।"

सो रैवन उस आदमी के कन्धे पर बैठ गया और अपनी बहुत ही मीठी आवाज में बोला - "आज से तुम दिन में दो बार अँगड़ाई लिया करो, बहुत ही छोटी सी, ताकि लोग समुद्र से अपना खाना इकठ्ठा कर सकें।"

वह आदमी बोला - "नहीं, यहाँ बैठना ही मेरा काम है। मैं यहीं बैठँूगा। मैं ही वह आदमी हूँ जो ज्वार भाटा पर बैठता है। मैंने हमेशा से यही किया है और आगे भी यही करूंगा। यही मेरा काम है।"

रैवन ने उसको उकसाया - "हर आदमी को थोड़ा सा आराम चाहिये सो बस दिन में केवल दो बार, और वह भी बहुत थोड़ा सा।"

"देखो तुम मुझे बहुत परेशान कर रहे हो, चले जाओ यहाँ से।"

रैवन बोला - "मुझे मालूम है कि मैं तुम्हें परेशान कर रहा हूँ। क्योंकि यह मेरा काम है। मैं रैवन हूँ और दूसरी चीज़ों को इधर उधर करना मेरा काम है। मैंने अँधेरे को परेशान किया जब मैं सूरज चुरा कर लाया और उसको आसमान में ला कर बिठाया।

मैंने ठंड को परेशान किया जब मैं उल्लू से आग चुरा कर लाया और उसको ला कर आदमियों को दी। और अब मैं तुमको दिन में दो बार परेशान करूंगा ताकि लोग समुद्र से अपना खाना ले सकें।"

यह कह कर रैवन ने दोबारा चोंच मारने के लिये फिर से उस आदमी के चारों तरफ चक्कर लगाना शुरू किया।

वह आदमी चिल्लाया - "मैं तुमको मच्छर की तरह मसल कर फेंक दँूगा। आखिर तुम मेरे सामने हो क्या चीज़?"

और उसने चक्कर खाते हुए रैवन की तरफ अपने दोनों हाथ फेंकने शुरू कर दिये।

उस आदमी के हाथ इधर उधर फेंकने से समुद्र में ऊँची ऊँची लहरें उठने लगीं। रैवन उस आदमी को अपनी चोंच मारने की कोशिश कर रहा था और वह आदमी रैवन को पकड़ने की कोशिश कर रहा था।

इस पकड़ने की कोशिश में समुद्र में एक बड़ा सा तूफान आया और उसका पानी ऊँचे ऊँचे पहाड़ों तक पहुँच गया। कहते हैं कि इसी समय पहाड़ी बकरों ने पहली बार नमक का स्वाद चखा था और इसी वजह से समुद्र की सीपियाँ पहाड़ों पर पायी जाती हैं।

लाख कोशिशों के बावजूद रैवन उस आदमी के शरीर के किसी खुले हिस्से तक नहीं पहुँच पाया जहाँ वह उसको अपनी चोंच मार सके।

तभी उसे उस कोहरे आदमी के टोप का ध्यान आया। रैवन ने तुरन्त ही वह टोप अपने सिर पर थोड़ा सा झुका लिया और उस टोप के किनारों से कोहरा टपक टपक कर गिरने लगा और धीरे धीरे वह घना होता गया।

उस कोहरे ने उस ज्वार भाटा वाले आदमी को चारों तरफ से घेर लिया। अब वह रैवन को देखना चाहता था पर उसको तो कोहरे के अलावा और कुछ दिखायी ही नहीं दे रहा था।

पर इस बीच रैवन उसकी पीठ में एक बार फिर से अपनी चोंच मारने में सफल हो गया। जैसे ही रैवन ने उस आदमी को चोंच मारी वह तुरन्त ही दर्द के मारे चिल्ला कर फिर से खड़ा हो गया पर फिर जल्दी ही अपनी जगह पर बैठ भी गया।

इतनी ही देर में जो थोड़ा सा समुद्र का पानी कम हुआ तो रैवन ने उसमें से अपने लिये खाना इकठ्ठा कर लिया। उसको वहाँ बहुत सारे घोंघे, केंकड़े और मछलियाँ आदि मिल गये थे। समुद्री चिड़ियों को भी कुछ खाना मिल गया था।

अब रैवन उस आदमी को दिन में दो बार चोंच मारने आ जाता और उसके उठने से समुद्र का पानी जहाँ भी कम होता वहाँ से वह अपना खाना इकठ्ठा कर लेता।

इस काम के लिये कभी उसको उस कोहरे आदमी के टोप का भी इस्तेमाल करना पड़ जाता या फिर वह उस अँधेरी रात में आता जब चाँद आसमान में नहीं होता था।

एक दिन जब रैवन उस कोहरे आदमी का टोप अपने सिर पर नीचे की तरफ खींचने ही वाला था कि उसने क्या देखा कि वह ज्वार भाटा वाला आदमी अपनी जगह से अपने आप उठा, एक छोटी सी अँगड़ाई ली और अपनी जगह पर बैठ गया।

रैवन तो यह देख कर हैरान रह गया। उसने एक समुद्री चिड़िया का रूप रखा और उस आदमी के कन्धे पर जा बैठा और बोला - "तुम अभी क्यों तो खड़े हुए थे और क्यों बैठ गये?"

उस आदमी ने जवाब दिया - "यही मेरा काम है। मैं यही करता आया हूँ। जब से मुझे याद पड़ता है तब से मैंने यही किया है। मैं ही वह आदमी हूँ जो ज्वार भाटा पैदा करता है।"

और रैवन यह सोचता हुआ उड़ गया कि अब उसको इस आदमी को दिन में दो बार चोंच मारने के लिये नहीं आना पड़ेगा। फिर मुस्कुराते हुए बोला - "मैं रैवन हूँ। मैं चीज़ों को इधर उधर करता हूँ, यही मेरा काम है और यही मैं करता आया हूँ।"

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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का  विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं की एक अन्य पुस्तक - रैवन की लोक कथाएँ में से एक लोक कथा यहाँ पढ़ सकते हैं. इथियोपिया की 45 लोककथाओं को आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.

(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)

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रचनाकार: रैवन की लोककथाएँ - 1 - : 17 रैवन और एक आदमी जो ज्वार भाटा पर बैठता था // सुषमा गुप्ता
रैवन की लोककथाएँ - 1 - : 17 रैवन और एक आदमी जो ज्वार भाटा पर बैठता था // सुषमा गुप्ता
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