यह लोक कथा इटली में कुछ ऐसे कही जाती है कि एक राजा था जिसके एक बेटी थी। बेटी की माँ मर गयी थी और राजा ने दूसरी शादी कर ली थी। लड़की की सौतेल...
यह लोक कथा इटली में कुछ ऐसे कही जाती है कि एक राजा था जिसके एक बेटी थी। बेटी की माँ मर गयी थी और राजा ने दूसरी शादी कर ली थी। लड़की की सौतेली माँ लड़की से बहुत जलती थी और हमेशा राजा को उसके बारे में कुछ न कुछ बुरा भला कहती रहती थी।
उधर लड़की बेचारी हमेशा अपने बारे में सफाई देती रहती पर उसकी सौतेली माँ उसकी उसके पिता से इतनी ज़्यादा बुराई करती कि हालाँकि राजा अपनी बेटी को बहुत ज़्यादा प्यार करता था पर फिर भी उसकी सौतेली माँ की बुराइयों से तंग आ कर उसने उसको छोड़ दिया था।
एक दिन उसने रानी को कह दिया था कि वह लड़की को कहीं दूर भेज दे पर वह उसको ऐसी जगह भेजे जहाँ वह आराम से रह सके क्योंकि वह यह बिल्कुल नहीं चाहेगा कि उसकी बेटी के साथ कोई बुरा बरताव करे।
सौतेली माँ बोली — “तुम उसकी चिन्ता न करो।” सो सौतेली माँ ने उसको एक किले में रखवा दिया जो एक जंगल में था।
उसके साथ के लिये रानी ने कुछ दासियाँ वहाँ रख दीं और उनको कह दिया कि वे उसको वहाँ से कहीं बाहर न जाने दें। यहाँ तक कि खिड़की से भी बाहर न झाँकने दें। इस काम के लिये वह उनको बहुत अच्छी तनख्वाह देगी।
लड़की को भी एक बहुत सुन्दर कमरे में रखा गया था और उसको वह सब कुछ दिया गया था जो उसको चाहिये था। उसको वह सब कुछ खाने पीने को भी मिलता था जो उसको पसन्द था। बस वह केवल बाहर नहीं जा सकती थी।
पर फिर भी उसकी दासियों को उसका कोई खास काम नहीं था और उनके पास पैसा बहुत था सो वे केवल अपने ही बारे में सोचती रहती थीं और उस लड़की की तरफ ध्यान नहीं देती थीं।
राजा अक्सर अपनी रानी से अपनी बेटी के बारे में पूछता रहता — “हमारी बिटिया कैसी है? वह आजकल अपने आप अपने आप क्या करती रहती है?”
यह साबित करने के लिये कि रानी वाकई उसकी परवाह करती थी एक दिन वह उस किले पर गयी जहाँ उसने राजकुमारी को रखा हुआ था।
जैसे ही रानी अपनी गाड़ी से नीचे उतरी वहाँ की दासियाँ तुरन्त ही उसके पास दौड़ी आयीं और उसको बताया कि राजकुमारी बिल्कुल ठीक है और बहुत खुश है।
रानी एक मिनट के लिये उस लड़की के कमरे तक गयी और उससे पूछा — “तुम यहाँ आराम से तो हो न? तुम्हें कुछ चाहिये तो नहीं? मैं देख रही हूँ कि तुम ठीक ही हो। मुझे लग रहा है कि तुम को गाँव की हवा भा गयी है। खुश रहो। अच्छा बाई बाई।” कह कर वह वहाँ से चली गयी।
उसने जा कर राजा को बता दिया कि उसने पहले कभी उसकी बेटी को इतना खुश नहीं देखा था।
पर इसके विपरीत वह लड़की कमरे में अकेली ही रहती थी क्योंकि उसकी दासियाँ तो अपने आप में इतनी मग्न थीं कि वे उसको कहीं दिखायी ही नहीं देती थीं। सो वह बेचारी अपना सारा समय खिड़की में ही बैठ कर गुजारा करती थी।
वह वहाँ खिड़की पर झुकी हुई खड़ी रहती। कभी कभी वह इस तरह से खड़ी रहने में इतनी खो जाती कि उसको अपनी कोहनियों के नीचे तकिया रखने का भी ध्यान नहीं रहता। क्योंकि उसकी कोहनियाँ खिड़की पर ही रहती थीं, तकिये पर नहीं, इसलिये उसकी कोहनियों पर दाग पड़ गये थे।
उसकी यह खिड़की जंगल की तरफ खुलती थी सो वह लड़की सारा दिन या तो जंगल के पेड़ों की पत्तियाँ ही देखती रहती, या फिर बादल और या फिर नीचे शिकारियों के जाने के रास्ते।
एक दिन शिकारियों के उस रास्ते पर एक राजकुमार एक जंगली सूअर का पीछा कर रहा था। जब राजकुमार उस किले के पास आया तो उसने देखा कि उस किले की चिमनी से तो धुँआ निकल रहा है।
जहाँ तक उसे याद पड़ता था वह किला तोे न जाने कब से वहाँ खाली पड़ा हुआ था फिर आज इसमें से यह धुँआ कैसे निकल रहा है। उसने सोचा लगता है यहाँ कोई रहने आ गया है सो उसने मुड़ कर पीछे देखा तो उसने देखा कि उस किले की एक खिड़की पर एक लड़की बैठी है। उसको देख कर वह मुस्कुरा दिया।
लड़की ने भी उसको देखा। वह पीले रंग की शिकारियों वाली पोशाक पहने था। उसके हाथ में एक बन्दूक थी और वह उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा रहा था। सो वह भी उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा दी।
पूरे एक घंटे तक वे एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुराते रहे और एक दूसरे के लिये झुकते रहे। वे दोनों आपस मे इतनी दूर थे कि उनके पास एक दूसरे से बात करने का कोई तरीका नहीं था सो कुछ देर बाद वह राजा वहाँ से चला गया।
अगले दिन शिकार का बहाना करके वह राजकुमार फिर से उधर की तरफ आ निकला। उस दिन वे लोग एक दूसरे को दो घंटे तक देखते रहे। अब की बार मुस्कुराहटों और झुकने के अलावा उन्होंने अपने अपने दिलों पर भी हाथ रखा और फिर वे काफी देर तक अपने अपने रूमाल हिलाते रहे।
तीसरे दिन वह राजकुमार वहाँ तीन घंटे रहा। उस दिन उन्होंने एक दूसरे की तरफ हवाई चुम्बन भी फेंके।
पर चौथे दिन जब वह फिर वहाँ आया तो एक जादूगरनी उन दोनों को एक पेड़ के पीछे से छिप कर देख रही थी। उनको देख कर वह “हो हो हो हो” करके हँस पड़ी।
राजकुमार बोला — “अरे तुम हँस क्यों रही हो? इसमें हँसने की क्या बात है?”
जादूगरनी बोली — “हँसने की क्या बात है? अरे दो प्रेमी जो आपस में इतना प्यार करते हैं वे कितने बेवकूफ हैं कि वे इतने दूर हैं। क्या यह हँसी की बात नहीं है?”
राजकुमार बोला — “तो क्या तुम यह जानती हो कि मैं उसके पास तक कैसे पहुँच सकता हूँ?”
जादूगरनी बोली — “मुझे तुम दोनों अच्छे लगते हो इसलिये मैं तुम्हारी सहायता जरूर करूँगी। मैं तुम लोगों को जरूर मिलाऊँगी।”
कह कर वह किले की तरफ गयी और जा कर उसका दरवाजा खटखटाया। राजकुमारी की एक दासी ने दरवाजा खोला तो उस जादूगरनी ने उस दासी को एक बहुत पुरानी पीले से रंग के कागज की एक किताब दी और कहा — “यह किताब राजकुमारी के पढ़ने के लिये है ताकि वह इसको पढ़ कर अपना समय गुजार सके।”
दासी ने वह किताब ले ली और ले जा कर उस लड़की को दे दी। लड़की ने तुरन्त ही उस किताब को खोला और पढ़ा — “यह एक जादू की किताब है। तुम आगे का पन्ना पलटो तो तुम देखोगी कि कोई आदमी चिड़िया कैसे बन सकता है और फिर चिड़िया से आदमी कैसे बन सकता है।”
लडकी उस किताब को ले कर खिड़की पर दौड़ी गयी और जा कर उस किताब को खिड़की पर रख दिया। वह उस किताब के पन्ने पलटने लगी और राजकुमार को जो पीली पोशाक पहने खड़ा था देखती रही।
अपने हाथ हिलाते हुए राजकुमार ने अपने पंख बना लिये और देखते ही देखते वह एक कैनेरी चिड़िया बन गया – वैसे ही पीले रंग की चिड़िया जैसे पीले रंग की पोशाक वह पहने था।
चिड़िया बन कर वह आसमान में उड़ गया और जा कर राजकुमारी की खिड़की के ऊपर बैठ गया।
राजकुमारी ने उसे तुरन्त ही पकड़ लिया और यह समझ कर चूम लिया कि वह तो राजकुमार था। पर फिर वह शरमा गयी और उसका चेहरा शरम से लाल पड़ गया।
अब वह उस चिड़िया को दोबारा राजकुमार बनाने की सोचने लगी। उसने तुरन्त किताब खोली और उसके पन्नों को पीछे की तरफ पलटा। कैनेरी चिड़िया ने तुरन्त ही अपने पंख फड़फड़ाये, अपनी बाँहें हिलायीं और वह फिर से राजकुमार बन गया – अपनी उसी शिकारी वाली पोशाक में।
राजकुमार उसके सामने थोड़ा सा झुका और बोला — “मै तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ राजकुमारी।” एक दूसरे के सामने अपने अपने प्यार का इजहार करते करते उन दोनों को शाम हो चुकी थी।
राजकुमारी ने फिर किताब पढ़ी और फिर राजकुमार की आँखों में देखा तो राजकुमार फिर से कैनेरी चिड़िया में बदल गया और उड़ कर नीचे जा कर एक पेड़ की नीची डाल पर बैठ गया।
राजकुमारी ने फिर से किताब के पन्ने वापस पलटे और वह कैनेरी चिड़िया फिर से राजकुमार बन गयी। राजकुमार उस डाली पर से नीचे कूद गया।
उसने अपने कुत्तों को बुलाया, घोड़े पर सवार हुआ, राजकुमारी की तरफ एक चुम्बन फेंका और अपने रास्ते पर घोड़ा दौड़ाता हुआ राजकुमारी की आँखों से ओझल हो गया।
इस तरह उस किताब के पन्ने रोज राजकुमार को पहले चिड़िया बनाने के लिये और फिर राजकुमार बनाने के लिये पलटे जाते रहे और राजकुमार राजकुमारी के पास कैनेरी चिड़िया के रूप में आता जाता रहा। दोनों ही अपनी ज़िन्दगी में कभी इतने खुश नहीं थे।
एक दिन रानी अपनी सौतेली बेटी को देखने आयी तो वह हर बार की तरह से बाहर से ही यह कहती चली आयी — “तुम ठीक तो हो न? अरे मैं देख रही हूँ कि तुम तो और दुबली हो गयी हो। पर यह कोई चिन्ता की बात नहीं है। ठीक है न? तुम इससे पहले कभी इतनी अच्छी थी ही नहीं।”
जैसे-जैसे वह यह बोलती जा रही थी वह चारों तरफ देखती जा रही थी कि सारी चीज़ें अपनी जगह पर ठीक से रखी थीं या नहीं। फिर उसने खिड़की खोली और उससे नीचे झाँका तो उसने देखा कि पीली पोशाक पहने एक राजकुमार अपने कुत्तों के साथ आ रहा था।
सौतेली माँ ने सोचा — “अगर यह लड़की यह सोचती है कि वह इस खिड़की से इस लड़के से मुहब्बत लड़ा लेगी तो उसको कुछ और सोचना पड़ेगा।”
उसके कमरे में पहुच कर रानी ने उस लड़की को एक गिलास पानी और चीनी लाने के लिये भेजा। फिर उसने अपने सिर में से 5–6 हेयर पिन निकालीं और उनको खिड़की पर रखे तकिये में इस तरह छिपा दिया कि उसके नुकीले हिस्से ऊपर की तरफ रहें।
उसने सोचा कि उसकी हेयर पिनों के ये नुकीले हिस्से उस राजकुमारी को खिड़की पर झुकने के लिये सीख दे देंगे।
लड़की पानी और चीनी ले कर वापस आ गयी थी पर रानी बोली — “ओह अब मुझे प्यास नहीं है इसे तुम ही पी लो। मुझे अब तुम्हारे पिता के पास जाना है। तुमको और कुछ तो नहीं चाहिये न? ठीक है, बाई।” कह कर वह वहाँ से चली गयी।
जैसे ही रानी की गाड़ी गयी और आँखों से ओझल हो गयी लड़की ने तुरन्त अपनी किताब के पन्ने पलटे और राजकुमार एक कैनेरी चिड़िया बन गया और तीर की तरह उड़ कर खिड़की पर आ बैठा।
पर जैसे ही वह चिड़िया तकिये पर आ कर बैठी वह दर्द से चिल्ला उठी। उसके पीले पंखों पर खून के धब्बे पड़ गये। वे पिनें जो रानी उसके तकिये में लगा कर गयी थी उसकी छाती में घुस गयी थीं।
चिड़िया ने परेशान हो कर अपने पंख फड़फड़ाये और हवा के सहारे चक्कर काटती हुई नीचे जमीन पर पंख फैला कर बैठ गयी।
राजकुमारी यह देख कर डर गयी। उसकी तो समझ में ही नहीं आया कि राजकुमार को हुआ क्या था।
उसने जल्दी से फिर अपनी किताब के पन्ने पलटे और जब राजकुमार आदमी के रूप में आ गया तब राजकुमारी ने देखा कि राजकुमार की छाती में घुसे हेयर पिन के बने घावों से तो खून बह रहा था और उस खून ने उसकी पीली पोशाक खून से रंग दी थी।
राजकुमार वहीं लेट गया और उसके कुत्ते उसके चारों तरफ खड़े हो गये। कुत्ते यह सब देख कर चिल्लाने लगे थे। उनके भौंकने की आवाज सुन कर दूसरे शिकारी भी उसकी सहायता के लिये आ गये थे।
उन्होंने पेड़ों की शाखों का एक स्ट्रैचर बनाया और राजकुमार को वहाँ से ले गये। वह बेचारा अपनी प्रेमिका को उस दिन देख भी नहीं सका जो उसके दुख से खुद भी बहुत दुखी और डरी हुई थी।
राजकुमार जब अपने महल पहुँच गया तो भी उसके वे घाव ठीक ही नहीं हो रहे थे। डाक्टरों को भी यह पता नहीं चल पा रहा था कि वे उसके घावों के लिये क्या करें।
यह देख कर राजा ने सब जगह ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो कोई उसके बेटे का इलाज करेगा वह उसको मालामाल कर देगा पर इसके बावजूद कोई कोशिश करने भी वहाँ नहीं आया।
इधर राजकुमारी के मन में राजकुमार को देखने की इच्छा बहुत बढ़ गयी। उसने अपने बिस्तर की चादर को लम्बी पट्टियों में काटा और उनको आपस में जोड़ कर एक लम्बी रस्सी बना ली।
फिर एक रात को वह अपनी ऊँची मीनार से नीचे उतरी और उस शिकारियों वाले रास्ते पर चल पड़ी पर घने अँधेरे की वजह से और भेड़ियों की चिल्लाहट से डर कर उसने तय किया कि वह सुबह होने का इन्तजार करेगी।
रात बिताने के लिये उसने एक पुराना ओक का पेड़ ढूँढा जिसका तना खोखला था। वह उसके अन्दर घुस गयी और थकी होने की वजह से जल्दी ही सो गयी।
जब उसकी आँख खुली तब भी घुप अँधेरा ही था पर उसको लगा कि उसने किसी के सीटी बजाने की आवाज सुनी थी उसी सीटी से उसकी आँख खुली थी।
उसने उसे फिर सुनने की कोशिश की तो उसे वह आवाज फिर से सुनायी दी। फिर उसने तीसरी चौथी सीटी की आवाजें भी सुनी और फिर उसने चार मोमबत्तियों की रोशनी भी आगे बढ़ती देखी।
वे चारों जादूगरनी थीं जो चारों दिशाओं से आ रही थीं और उसी पेड़ के नीचे अपनी मीटिंग करने वाली थीं। राजकुमारी छिप कर उनको देखती रही।
उन्होंने आ कर एक दूसरे से कहा — “आह आह आह।” फिर उन्होंने उस पेड़ के नीचे आग जलायी और आग की गरमी लेने के लिये उस आग के चारों तरफ बैठ गयीं।
खाने के लिये उन्होंने दो चिमगादड़ भूनी। जब उन्होंने पेट भर खाना खा लिया तो उन्होंने एक दूसरे से पूछना शुरू किया कि उन्होंने दुनियाँ में क्या क्या मजेदार चीजें देखीं।
एक जादूगरनी बोली — “मैंने तुर्की का सुलतान देखा जो अपने लिये 20 नयी पत्नियाँ ले कर आया है।”
दूसरी जादूगरनी बोली — “मैंने चीन का बादशाह देखा जिसकी तो चोटी ही तीन गज लम्बी है।”
तीसरी जादूगरनी बोली — “मैंने तो आदमियों को खाने वाला राजा देखा जिसने अपने घर की देखभाल करने वाले को ही खा लिया था।”
चौथी जादूगरनी बोली — “मैंने इसी देश के राजा को देखा जिसका बेटा बीमार है और उसे कोई ठीक नहीं कर पा रहा है क्योंकि उसका इलाज तो केवल मुझे ही पता है।”
तीनों जादूगरनियाँ एक साथ बोलीं — “और वह इलाज क्या है?”
वह जादूगरनी बोली — “उस राजकुमार के कमरे के फर्श की एक टाइल कुछ ढीली है। बस किसी को यह करना है कि उस ढीली टाइल को वहाँ से उठाना है। उसके नीचे एक शीशी रखी है जिसमें एक मरहम है। उस मरहम को उसके घावों पर लगा देने से उसका हर घाव भर जायेगा।”
यह सुन कर राजकुमारी खुशी से चिल्लाना चाहती थी पर उसने किसी तरीके से अपने आपको ऐसा करने से रोक लिया। जब चारों ने अपनी-अपनी कहानी सुना दी और भी जो कुछ कहना था कह दिया तो वे सब वहाँ से चली गयीं।
उनके जाने के बाद तुरन्त ही राजकुमारी उस पेड़ के तने में से निकली और कूद कर बाहर आ गयी। सुबह होते ही वह अपनी यात्रा पर चल दी।
सबसे पहले वह एक इस्तेमाल की हुई चीज़ों को बेचने वाले के पास गयी और वहाँ से एक डाक्टर का पुराना गाउन और एक चश्मा खरीदा और जा कर शाही महल का दरवाजा खटखटाया। उसने कहा कि वह एक डाक्टर है और राजकुमार का इलाज करने आया है।
पर एक छोटे से डाक्टर को और उसके पास न के बराबर डाक्टर का सामान देख कर महल के चौकीदार उसको महल के अन्दर घुसने ही नहीं दे रहे थे।
पर राजा ने कहा — “यह मेरे बेटे को क्या नुकसान पहुँचा सकता है इसलिये इसको अन्दर आने दो।” राजा का हुकुम मान कर चौकीदार लोग उसको अन्दर ले गये।
डाक्टर ने कहा कि उसको राजकुमार के कमरे में राजकुमार के साथ अकेला छोड़ दिया जाये ताकि वह उसका इलाज कर सके सो उसको राजकुमार के साथ अकेला छोड़ दिया गया।
अपने प्रेमी को कराहते और बेहोश सा देख कर राजकुमारी का दिल रो पड़ा। उसको लगा कि उसको उस जादूगरनी की कही बात को जल्दी से जल्दी कर देना चाहिये।
सो उसने कमरे के फर्श की वह ढीली टाइल ढूँढी और उसके नीचे रखी शीशी निकाल ली। उस शीशी के मरहम को उसने राजकुमार के सारे घावों पर मल दिया।
जैसे जैसे वह मरहम राजकुमार के घावों पर मलती गयी तुरन्त ही उसके वे घाव भरते चले गये। सब घावों पर मरहम लगाने के बाद उसके सारे घाव ऐसे भर गये जैसे कभी वहाँ कभी कुछ था ही नहीं। राजकुमारी यह देख कर बहुत खुश हुई।
जब वह उसके सारे घाव भर चुकी तो उसका राजकुमार फिर पहले जैसा हो गया जैसा वह उसको देखा करती थी। अब वह शान्ति से सो रहा था सो वह उसको कमरे में सोता छोड ़कर बाहर आ गयी।
बाहर आ कर वह बोली — “मैजेस्टी, आपका बेटा अब हर खतरे से बाहर है। वह आराम से सो रहा है।”
राजा ने उस छोटे से डाक्टर को बहुत बहुत धन्यवाद दिया और कहा — “डाक्टऱ तुम जो चाहो सो मांग लो। तुमने मेरे बेटे की जान बचायी है। मेरे राज्य में जितना भी पैसा और दौलत है वह सब तुम्हारी है.
डाक्टर बोला — “मुझे आपका पैसा और दौलत नहीं चाहिये। मुझे तो बस राजकुमार की ढाल दे दीजिये जिस पर शाही निशान बना हुआ है और उसका दंड और उसकी वह पीली जैकेट दे दीजिये जिस पर खून लगा है।”
राजा ने उसकी वे तीनों चीजें उसको दे दीं और वह डाक्टर उन तीनों चीज़ों को ले कर वहाँ से चली गया।
तीन दिन बाद राजकुमार फिर से शिकार पर गया। वह जंगल के बीच बने उस किले से गुजरा पर उसकी हिम्मत नहीं हुई कि वह राजकुमारी की खिड़की की तरफ देखे भी।
जब राजकुमारी ने यह देखा तो उसने तुरन्त ही अपनी जादू वाली किताब उठा ली और उसके पन्ने पलटने शुरू किये। राजकुमार के पास कोई चारा नहीं था कि वह उस जादू को न मानता। वह तुरन्त ही कैनेरी चिड़िया बन गया और उड़ कर उसके कमरे में चला गया।
कमरे में पहुँचने के बाद राजकुमारी ने उस किताब के पन्ने फिर से पलटे और वह फिर से राजकुमार बन गया।
राजकुमार ने कहा — “मुझे जाने दो। क्या यह एक बार ही काफी नहीं है कि तुमने मुझे अपनी पिनों से गोद दिया जिससे मुझे कितनी तकलीफ पहुँची है।”
सच तो यह था कि राजकुमार को अब उससे नफरत सी हो गयी थी और अपनी हालत के लिये भी वह उसी को जिम्मेदार ठहरा रहा था।
यह सुन कर तो राजकुमारी तो बेहोश होने वाली थी पर वह बोली — “पर तुम्हारी जान भी तो मैंने ही बचायी है। वह मैं ही हूँ जिसने तुम्हें ठीक किया है। अगर मैं तुम्हारी ऐसी हालत करती तो मैं तुम्हारी जान क्यों बचाती।”
राजकुमार बोला — “तुमने मेरी जान नहीं बचायी है। मेरी जान तो किसी विदेशी डाक्टर ने बचायी है जिसने मेरे पिता से उनकी कोई दौलत नहीं ली सिवाय मेरी ढाल के जिसके ऊपर मेरे परिवार का निशान था, दंड के और मेरी खून के निशानों वाली जैकेट के।”
राजकुमारी ने तुरन्त ही वे तीनों चीजें निकाल कर राजकुमार के सामने रख दीं — “ये हैं वे तुम्हारी तीनों चीज़ें। वह डाक्टर कोई और नहीं मैं ही थी। और वह पिनें मेरी सौतेली माँ की एक चाल थी।”
राजकुमार ने उसकी आँखों में देखा और वह कुछ बोल ही न सका। वह उसके पैरों पर पड़ गया और उसको बहुत बहुत धन्यवाद दिया। अब उसको वह पहले से भी ज़्यादा प्यार करने लगा था।
उसी शाम को उसने अपने माता पिता को बताया कि वह जंगल में बने किले में रहने वाली एक लड़की से शादी कर रहा है। उसके पिता ने कहा — “तुम केवल एक राजा की लड़की से ही शादी करोगे।”
राजकुमार बोला — “मैं केवल उस लड़की से शादी करूँगा जिसने मेरी जान बचायी है।”
राजा को उसकी बात माननी पड़ी सो शादी की तैयारियाँ शुरू हो गयीं। राजकुमार के पिता ने बहुत सारे राजाओं और उनके परिवारों को बुलाया। राजकुमारी के माता पिता को भी बुलाया पर उनको कुछ बताया नहीं गया। जब दुलहिन बाहर आयी तो उसका पिता चिल्ला पड़ा “मेरी बेटी।”
राजकुमार के पिता ने पूछा — “क्या? मेरे बेटे की दुलहिन तुम्हारी बेटी है? पर उसने हमें बताया क्यों नहीं कि वह तुम्हारी बेटी है?”
राजकुमारी बोली — “क्योंकि मैं अपने आपको उस पिता की बेटी ही नहीं मानती जिसने मेरी सौतेली माँ के कहने से मुझे जेल में डाल दिया।” उसने रानी की तरफ इशारा किया।
अपनी बेटी पर किये गये जुल्म सुन कर राजा को अपनी बेटी पर दया आ गयी और अपनी दूसरी पत्नी पर वह बहुत गुस्सा हुआ। घर आते ही उसने अपनी दूसरी पत्नी को जेल में डलवा दिया।
यह शाही शादी खूब धूमधाम से हुई सिवाय सौतेली माँ के।
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं की एक अन्य पुस्तक - रैवन की लोक कथाएँ में से एक लोक कथा यहाँ पढ़ सकते हैं. इथियोपिया की 45 लोककथाओंको आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.
(समाप्त)
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2 इथियोपिया की लोक कथाएँ–1
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नीचे लिखी पुस्तकें रचनाकार डाट काम पर उपलब्ध हैं जो टैक्स्ट टू स्पीच टैकनोलोजी के द्वारा दृष्टिबाधित लोगों द्वारा भी पढ़ी जा सकती हैं।
1 इथियोपिया की लोक कथाएँ–1
http://www.rachanakar.org/2017/08/1-27.html
2 इथियोपिया की लोक कथाएँ–2
http://www.rachanakar.org/2017/08/2-1.html
3 रैवन की लोक कथाएँ–1
http://www.rachanakar.org/2017/09/1-1.html
4 रैवन की लोक कथाएँ–2
http://www.rachanakar.org/2017/09/2-1.html
5 रैवन की लोक कथाएँ–3
http://www.rachanakar.org/2017/09/3-1-1.html
नीचे लिखी पुस्तकें जुगरनौट की साइट पर उपलब्ध हैं
1 सोने की लीद करने वाला घोड़ा और अन्य अफ्रीकी लोक कथाएँ
https://www.juggernaut.in/books/8f02d00bf78a4a1dac9663c2a9449940
Updated on May 27, 2016
लेखिका के बारे में
सुषमा गुप्ता का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ शहर में सन् 1943 में हुआ था। इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से समाज शास्त्र और अर्थ शास्त्र में ऐम ए किया और फिर मेरठ विश्वविद्यालय से बी ऐड किया। 1976 में ये नाइजीरिया चली गयीं। वहाँ इन्होंने यूनिवर्सिटी औफ़ इबादान से लाइबे्ररी साइन्स में ऐम ऐल ऐस किया और एक थियोलोजीकल कौलिज में 10 वषोर्ं तक लाइब्रेरियन का कार्य किया।
वहाँ से फिर ये इथियोपिया चली गयीं और वहाँ एडिस अबाबा यूनिवर्सिटी के इन्स्टीट्यूट औफ़ इथियोपियन स्टडीज़ की लाइब्रेरी में 3 साल कार्य किया। तत्पश्चात इनको दक्षिणी अफ्रीका के एक देश़ लिसोठो के विश्वविद्यालय में इन्स्टीट्यूट औफ़ सदर्न अफ्रीकन स्टडीज़ में 1 साल कार्य करने का अवसर मिला। वहाँ से 1993 में ये यू ऐस ए आगयीं जहाँ इन्होंने फिर से मास्टर औफ़ लाइब्रेरी एँड इनफौर्मेशन साइन्स किया। फिर 4 साल ओटोमोटिव इन्डस्ट्री एक्शन ग्रुप के पुस्तकालय में कार्य किया।
1998 में इन्होंने सेवा निवृत्ति ले ली और अपनी एक वेब साइट बनायी – www.sushmajee.com। तब से ये उसी वेब साइट पर काम कर रहीं हैं। उस वेब साइट में हिन्दू धर्म के साथ साथ बच्चों के लिये भी काफी सामग्री है।
भिन्न िभ्ान्न देशों में रहने से इनको अपने कार्यकाल में वहाँ की बहुत सारी लोक कथाओं को जानने का अवसर मिला – कुछ पढ़ने से, कुछ लोगों से सुनने से और कुछ ऐसे साधनों से जो केवल इन्हीं को उपलब्ध थे। उन सबको देख कर इनको ऐसा लगा कि ये लोक कथाएँ हिन्दी जानने वाले बच्चों और हिन्दी में रिसर्च करने वालों को तो कभी उपलब्ध ही नहीं हो पायेंगी – हिन्दी की तो बात ही अलग है अंग्रेजी में भी नहीं मिल पायेंगीं।
इसलिये इन्होंने न्यूनतम हिन्दी पढ़ने वालों को ध्यान में रखते हुए उन लोक कथाओं को हिन्दी में लिखना पा्ररम्भ किया। इन लोक कथाओं में अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी अमेरिका के देशों की लोक कथाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है पर उत्तरी अमेरिका और यूरोप के देशों की भी कुछ लोक कथाएँ सम्मिलित कर ली गयी हैं।
अभी तक 1200 से अधिक लोक कथाएँ हिन्दी में लिखी जा चुकी है। इनको “देश विदेश की लोक कथाएँ” क्रम में प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है। आशा है कि इस प्रकाशन के माध्यम से हम इन लोक कथाओं को जन जन तक पहुँचा सकेंगे।
विंडसर, कैनेडा
मई 2016
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