एक बार एक दूर के शहर में एक बहुत ही मशहूर पागल रहता था जिसको अब तक कोई भी पकड़ने में कामयाब नहीं हो सका था। और इसी शहर में एक चालाक भी रहता ...
एक बार एक दूर के शहर में एक बहुत ही मशहूर पागल रहता था जिसको अब तक कोई भी पकड़ने में कामयाब नहीं हो सका था। और इसी शहर में एक चालाक भी रहता था।
इस पागल की सबसे बड़ी इच्छा यह थी कि वह चालाक से मिले और उससे दोस्ती करे। यह चालाक एक बहुत बड़ा बदमाश चोर था। सो वह पागल उस चालाक से मिला और उसने उससे दोस्ती कर ली। कैसे?
एक दिन जब वह पागल एक ढाबे पर दोपहर को खाना खा रहा था तो उसकी मेज पर उसके सामने एक अजनबी आ कर बैठ गया। पागल ने समय देखने के लिये अपनी घड़ी देखी तो उसे पता चला कि उसकी घड़ी तो उसके हाथ में थी ही नहीं।
उसने सोचा कि उसकी जानकारी में तो केवल वह चालाक चोर ही उसके हाथ से इस तरह से उसकी घड़ी गायब कर सकता था सो उस पागल ने अपना सिर घुमाया और उस चालाक का बटुआ चुरा लिया।
जब वह अजनबी अपने पैसे देने के लिये अपना बटुआ ढूँढने लगा तो उसने देखा कि उसका बटुआ तो गायब है। उसने अपनी मेज पर बैठे साथी से कहा — “लगता है कि तुम पागल हो।”
“तुमने ठीक पहचाना।”
“बहुत अच्छे। मेरे साथ काम करोगे? हम लोग एक साथ काम करेंगे तो अच्छा कमायेंगे।” और दोनों राजी हो गये।
वे दोनों शहर मंे गये और राजा के खजाने की तरफ चल दिये। अब वह तो राजा का खजाना था सो उसके तो चारों तरफ तो बहुत सारे चौकीदार पहरा दे रहे थे। दोनों सोचने लगे कि राजा का खजाना कैसे चुराया जाये।
सोच कर उन लोगों ने राजा के खजाने तक एक सुरंग खोदी और राजा का सब कुछ चुरा लिया। जब राजा ने अपने खजाने की हालत देखी तो उसकी समझ में ही नहीं आया कि उसका इतना बड़ा खजाना गया कैसे? और चला गया तो चला गया पर अब वह उन चोरों को पकड़े कैसे।
उसने एक आदमी को पकड़ा जिसका नाम “जाल” था। उसको चोरी के इलजाम में जेल में रखा गया था। राजा ने जाल को बुलाया और कहा — “जाल, देखो किसी ने मेरा खजाना चोरी कर लिया है। अगर तुम यह बता दोगे कि मेर यह खजाना किसने चोरी किया है तो मैं तुमको जेल से आजाद कर दूँगा और तुमको मारकिस बना दूँगा।”
जाल बोला — “सरकार या तो यह पागल का काम है या फिर चालाक का और या फिर दोनों ने मिल कर यह चोरी की है। क्योंकि इस समय वे ही ज़िन्दा चोरों में सबसे ज़्यादा बदमाश और चोर हैं। पर मैं आपको बताऊँगा कि उन चोरों को कैसे पकड़ना है।
आप माँस की कीमत बढ़ा कर 100 डालर पौंड कर दीजिये। जो भी माँस की इतनी कीमत दे सकेगा वही आपका चोर होगा।”
राजा ने वैसा ही किया। उसने माँस की कीमत बढ़ा कर 100 डालर पौंड कर दी। सबने माँस खरीदना बन्द कर दिया।
फिर एक दिन राजा को बताया गया कि एक फ्रायर एक कसाई की दुकान पर गया और उसने माँस खरीदा।
यह सुन कर वह जाल बोला — “यह आदमी जरूर ही पागल या चालाक होगा और वेश बदल कर वहाँ आया होगा। मैं अब ऐसा करता हूँ कि मैं भी अपना वेश बदलता हूँ और घर-घर भीख माँगने जाता हूँ।
अगर भीख में मुझे कोई माँस देता है तो मैं उसके घर के सामने वाले दरवाजे पर एक लाल निशान लगा कर आता हूँ। फिर आपके आदमी वहाँ जा सकते हैं और चोर को पकड़ सकते हैं।”
सो वह पागल के घर गया। वहाँ उसको भीख में थोड़ा सा माँस मिल गया। सो उसने उसके मकान पर लाल निशान लगा दिया।
पर जब उसने वह लाल निशान पागल के घर के दरवाजे पर लगाया तो पागल ने देख लिया। जाल के जाते ही वह अपने घर से बाहर निकला और आसपास में जा कर बहुत सारे घरों पर वैसा ही लाल निशान लगा आया। इससे फिर यह पता लगाना मुश्किल हो गया कि पागल और चालाक कहाँ रहते थे।
जाल बोला — “मैंने आपसे कहा था न कि ये लोग बड़े चालाक हैं। पर कोई और भी है जो उनसे भी ज़्यादा चालाक है। अब आप ऐसा कीजिये कि आप अपने खजाने की सीढ़ियों की सबसे नीचे वाली सीढ़ी पर उबलते हुए पानी का एक टब रख दें।
जो कोई भी खजाने में चोरी करने जायेगा वह उसमें गिर पड़ेगा और फिर तो उसकी लाश ही उसमें से निकाली जायेगी।”
इस बीच में पागल और चालाक के पास उनका चुराया पैसा खत्म हो गया सो उन्होंने राजा के खजाने में फिर से जाने का विचार किया।
चालाक उसमें पहले घुसा पर वहाँ क्योंकि अँधेरा था उसको दिखायी ही नहीं दिया कि वहाँ पर गरम पानी से भरा टब रखा है। जैसे ही वह अन्दर घुसा वह टब में गिर पड़ा।
पागल भी वहाँ आ गया और उसने चालाक को बाहर निकालने की बहुत कोशिश की पर वह क्योंकि वह उस टब में फँस गया था वह उसको निकाल नहीं सका। सो उसने उसका सिर काट लिया और उस सिर को ले कर घर चला गया।
अगले दिन राजा वहाँ देखने गया कि कोई चोर फँसा कि नहीं। राजा टब में लाश पड़ी देख कर तो बहुत खुश हुआ और चिल्ला कर बोला — “हमको चोर मिल गया। हमको चोर मिल गया।”
पर उस लाश पर उसका सिर न देख कर वह बड़ा नाउम्मीद हुआ क्योंकि बिना सिर के तो यह ही पता नहीं चल पा रहा था कि वह लाश किसकी है।
जाल बोला — “अब हम एक काम और कर सकते हैं। इस लाश को दो घोड़ों से घिसटवाते हुए आप पूरे शहर में घुमाइये। जिस घर में इसको देख कर किसी के रोने की आवाज सुनायी पड़े वही इस चोर का घर है।”
बात तो उसकी ठीक थी सो ऐसा ही किया गया। जब चालाक की पत्नी ने अपने घर की खिड़की से बाहर झाँका तो देखा कि उसके पति की लाश को सड़क पर दो घोड़े घसीटते हुए लिये जा रहे हैं तो उसने रोना और चिल्लाना शुरू कर दिया।
इत्तफाक से वह पागल उस समय वहीं था। उसने सोचा कि चालाक की पत्नी के इस तरह से रोने चिल्लाने से तो हमारा किया धरा सब बेकार हो जायेगा सो उसने चालाक के प्याले प्लेटें तोड़नी शुरू कर दीं और उसकी पत्नी को मारना शुरू कर दिया।
उस चिल्लाहट को सुनते हुए चौकीदार वहाँ आ पहुँचे तो उन्होंने देखा कि एक आदमी अपनी स्त्री को प्याले प्लेटें तोड़ने पर मार रहा था सो वे चले गये।
आखिर राजा ने तब शहर के हर चौराहे पर एक घोषणा करवा दी कि वह उस चोर को जिसने भी उसका खजाना चुराया है माफ कर देगा अगर वह चोर उसके नीचे से उसके बिस्तर की चादर चुरा कर ले जाये तो। यह सुन कर वह पागल आगे आया और राजा से बोला कि वह यह काम कर सकता है।
रात को राजा ने अपने कपड़े उतारे और सोने चला गया। वह चोर को पकड़ने के लिये अपने साथ अपनी बन्दूक भी ले गया था।
इधर इस पागल ने क्या किया कि उसने कब्र खोदने वाले से एक लाश ली और उसको अपने कपड़े पहना दिये और उस लाश को वह राजा के महल की छत पर ले गया।
आधी रात को उसने वह लाश एक रस्सी के सहारे राजा के सोने के कमरे की खिड़की के सामने लटका दी। राजा तो चोर पकड़ने के लिये जाग ही रहा था सो उसने वह लाश देखी।
यह सोच कर कि वह पागल था राजा ने उसको गोली मारी और देखा कि वह पागल तो नीचे गिर गया।
तुरन्त ही वह नीचे देखने गया कि वह गिर कर मर गया या नहीं। जैसे ही राजा अपने कमरे से हटा तो पागल राजा के सोने के कमरे में घुस गया और उसके बिस्तर की चादर चुरा ली।
अपनी घोषणा के अनुसार राजा को उसे माफ कर देना पड़ा पर उसके बाद उसको फिर कभी चोरी नहीं करनी पड़ी।
पूछो क्यों? क्योंकि राजा ने अपनी बेटी की शादी उसके साथ कर दी थी।
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सुषमा गुप्ता ने देश विदेश की 1200 से अधिक लोक-कथाओं का संकलन कर उनका हिंदी में अनुवाद प्रस्तुत किया है. कुछ देशों की कथाओं के संकलन का विवरण यहाँ पर दर्ज है. सुषमा गुप्ता की लोक कथाओं की एक अन्य पुस्तक - रैवन की लोक कथाएँ में से एक लोक कथा यहाँ पढ़ सकते हैं. इथियोपिया की 45 लोककथाओंको आप यहाँ लोककथा खंड में जाकर पढ़ सकते हैं.
(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)
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