रामायण के अल्‍पज्ञात दुर्लभ प्रसंग // सुमंत्र को दशरथजी के समय ही रघुवंश का भूत भविष्‍य ज्ञात था // '‍मानस शिरोमणि' ‍ डॉ. नरेन्‍द्र कुमार मेहता

SHARE:

श्रीराम राज्‍याभिषेक उपरान्‍त सखाओं के साथ बैठकर अनेक प्रकार की हास्‍य विनोदपूर्ण कथाएँ कहा करते थे। इन सखाओं के नाम थे- विजयो मधुमत्तश्‍व क...

image

श्रीराम राज्‍याभिषेक उपरान्‍त सखाओं के साथ बैठकर अनेक प्रकार की हास्‍य विनोदपूर्ण कथाएँ कहा करते थे। इन सखाओं के नाम थे-

विजयो मधुमत्तश्‍व काश्‍यपो मंगलः कुलः।

सूराजिः कालियो भद्रो दन्‍तवक्‍त्र सुमागधः॥

-वा.रा.,उत्तरकाण्‍ड, सर्ग 43। 2

विजय, मधुमत्त, काश्‍यप, मंगल, सुराजि, कालिय, भद्र, दन्‍तवक्‍त्र और सुमागध। भद्र से श्रीराम ने एक दिन पूछा कि सखा सही-सही बताओं कि मेरे बारे में पुरवासी कौन-कौन सी शुभ व अशुभ बाते कहते हैं। तब भद्र ने कहा कि-

हत्‍वा च रावणं संख्‍ये सीतामाहृत्‍य राघवः।

अमर्ष पृष्‍ठतः कृत्‍वा स्‍ववेश्‍म पुनरायत्‌॥

-वा.रा.,उत्तरकाण्‍ड, सर्ग 43।16

परन्‍तु एक बात खटकती है कि युद्ध में रावण को मारकर श्री रघुनाथजी सीता को अपने घर ले आये। उनके मन में सीता के चरित्र को लेकर रोष या अमर्ष नहीं हुआ। इस चर्चा के उपरान्‍त राम ने समस्‍त सुहृदयों से पूछा कि भद्र का यह कथन सत्‍य है? सभी सखाओं ने कहा कि भद्र का कथन सत्‍य है, इसमें तनिक भी संशय नहीं है।

इसके पश्‍चात्‌ मित्र मण्‍डली चली गई तथा श्रीराम ने तत्‍काल द्वारपाल को कहा कि तुम शीघ्र जाकर महाभाग भरत, लक्ष्‍मण और शत्रुघ्‍न को मेरे पास बुला लाओ। द्वारपाल ने तीनों भाइयों को हाथ जोड़कर कहा कि प्रभो महाराज श्रीराम आपसे मिलना चाहते हैं। इतना सुनकर तीनों भाई श्रीराम के पास पहुँच गये। श्रीराम बोले राजकुमारों! तुम लोग मेरे सर्वस्‍व हो। तुम्‍ही मेरे जीवन हो और तुम्‍हारे द्वारा सम्‍पादित इस राज्‍य का मैं पालन करता हूँ। तुम सभी शास्‍त्रों के ज्ञाता और बताये कर्त्तव्‍य का पालन करने वाले हो। इस समय मैं जो कार्य तुम्‍हारे सामने उपस्‍थित करने वाला हूँ उसका तुम सबको मिलकर सम्‍पादन करना होगा। श्रीराम ने कहा कि-

पौरापवादः सुमहांस्‍तथा जनपदस्‍य च।

वर्तते मयि ब्रीभत्‍सा सा मे मर्माणि कृन्‍तति॥

-वा.रा.,उत्तरकाण्‍ड, सर्ग 45।3

इस समय पुरवासियों और जनपद के लोगों में सीता के सम्‍बन्‍ध में महान अपवाद फैला हुआ है। मेरे प्रति भी उनका बड़ा घृणापूर्ण भाव है। उन सबकी वह घृणा मेरे मर्मस्‍थल को विदीर्ण किये देती है।

प्रत्‍ययार्थं ततः सीता विवेश ज्‍वलनं तदा।

त्‍य प्रत्‍यक्षं तव सौमित्रे देवानां हव्‍यवाहनः॥

अपापां मैथिलीमाह वायुश्‍चाकाशगोचरः।

चन्‍द्रादित्‍यौ च शंसते सुराणां संनिधौ पुरा॥

ऋणीणां चैव सर्वेषामपापां जनकात्‍मजाम्‌।

-वा.रा.,उत्तरकाण्‍ड, सर्ग 45।7-8

सुमित्रा कुमार लक्ष्‍मण! उस समय अपनी पवित्रता का विश्‍वास दिलाने के लिये सीता ने तुम्‍हारे समक्ष ही अग्‍नि में प्रवेश किया था और देवताओं के समक्ष स्‍वयं अग्‍निदेव ने उन्‍हें निर्दोष बताया था। आकाशचारी वायु, चन्‍द्रमा और सूर्य ने भी पहले देवताओं तथा समस्‍त ऋषियों के समीप जनकनन्‍दिनी को निष्‍पाप घोषित किया था। मेरी अन्‍तरात्‍मा भी यशस्‍विनी सीता को शुद्ध एवं निष्‍पाप समझती है, इसलिये मैं उन्‍हें लंका से अयोध्‍या लाया था।

नरश्रेष्‍ठ बन्‍धुओं! मैं लोकनिन्‍दा के भय से अपने प्राणों को और तुम सबको भी त्‍याग सकता हूँ तो फिर सीता का त्‍यागना कौन बड़ी बात है? अतः लक्ष्‍मण! कल प्रातःकाल तुम सारथि सुमन्‍त्र के द्वारा संचालित रथ पर आरुढ़ हो सीता को भी उसी पर चढ़ाकर इस राज्‍य की सीमा से बाहर छोड़ दो। गंगा के उस पार तमसा के तट पर महात्‍मा वाल्‍मीकि मुनि के दिव्‍य आश्रम के निकट निर्जन वन में छोड़कर लौट आओ। तुम सब भाइयों को मेरे चरणों और जीवन की शपथ है कि मेरे इस निर्णय के विरूद्ध कुछ न कहो। जो मेरी आज्ञा में बाधा उपस्‍थित करेगा वह सदा के लिये मेरा शत्रु होगा।

पूर्वमुक्‍तोऽहमनया गंगातीरेऽहमाश्रमान्‌।

पश्‍येयमिति तस्‍याश्‍च कामः संवर्त्‍यतामयम्‌।

-वा.रा.,उत्तरकाण्‍ड, सर्ग 45। 23)

सीता ने पहले मुझसे कहा था कि मैं गंगातट पर ऋषियों के आश्रम देखना चाहती हूँ। अतः उनकी यह इच्‍छा भी पूर्ण की जाय। रात्रि बीती और सवेरा हुआ, तब लक्ष्‍मणजी ने अत्‍यन्‍त ही दुःख के साथ सुमंत्र से कहा -‘‘सारथे, एक उत्तम रथ में शीघ्रगामी घोड़ों को जोतो और उस रथ में सीताजी के लिये सुन्‍दर आसन बिछा दो। मैं महाराज की आज्ञा से सीतादेवी को महर्षियों के आश्रम पर पहुँचा दूँगा। सुमंत्र लक्ष्‍मणजी की आज्ञानुसार उत्तम घोड़ो से जुता हुआ, सुखद शय्‍या से युक्‍त बिछावन वाला रथ ले आये। तत्‍पश्‍चात्‌ लक्ष्‍मण राजमहल में सीताजी के पास जाकर बोले, देवि! आपने महाराज से मुनियों के आश्रमों पर जाने के लिये वर मांगा था और महाराज ने आपको आश्रम पर पहुँचाने के लिये प्रतिज्ञा की थी। अतः राजा की आज्ञा से शीघ्र ही गंगातट पर ऋषियों के सुन्‍दर आश्रमों तक चलूँगा एवं आपको वन में पहुँचाउँगा।

सीता हर्ष के साथ बहुमूल्‍य वस्‍त्र और नाना प्रकार के रत्‍न लेकर वन यात्रा पर चल पड़ी। लक्ष्‍मण से कहा कि ये सब बहुमूल्‍य वस्‍त्र आभूषण और नाना प्रकार के रत्‍न धन मैं मुनि-पत्‍नियों को दूँगी। सीता ने लक्ष्‍मण से कहा कि रथ पर चढ़ते ही मुझे नाना प्रकार के अपशकुन दिखाई दे रहे हैं। मेरी दांयी आँख फड़क रही है और शरीर में कम्‍प हो रहा है। तुम्‍हारे भाई तो कुशल है। गोमती के तट पर पहुँचकर एक रात्रि आश्रम में बिताई। पुनः प्रातःकाल लक्ष्‍मण सारथी से रथ जोत कर सीताजी को बैठाकर पापनाशिनी गंगा के तट पर पहुँच गये। गंगातट पहुँच कर लक्ष्‍मण फूट-फूट कर रोने लगे, तब सीताजी अत्‍यन्‍त चिन्‍तित होकर उनसे बोली-लक्ष्‍मण यह क्‍या? तुम रोते क्‍यों हो? आज चिरकाल की मेरी अभिलाषा पूर्ण हुई और तुम इस हर्ष के अवसर पर दुःखी क्‍यों हो? मुझे गंगा के उस पार ले चलो और तपस्‍वी मुनियों के दर्शन कराओ। मैं उन्‍हें वस्‍त्र एवं आभूषण दूँगी। इसके उपरान्‍त महर्षियों का यथायोग्‍य अभिवादन कर एक रात ठहरकर हम पुनः अयोध्‍या लौट चलेंगे।

लक्ष्‍मण ने सीताजी का कथन सुनकर आँखें पोंछ ली और नाविकों को बुलाकर गंगा पार करने हेतु नाव पर बैठ गये। लक्ष्‍मणजी ने रथ सहित सुमंत्र को वहीं ठहरने के लिये कहा। तदनन्‍तर भागीरथी के तट पर पहुँचकर लक्ष्‍मण के नेत्रों में आँसू भर आये और सीताजी से हाथ जोड़कर बोले विदेहनन्‍दिनि! श्रीराम ने जो कार्य मुझे सौपा है वह मेरा बड़ा लोकनिन्‍दित कार्य होगा। सीताजी ने कहा कि मैं महाराज की शपथ दिलाकर पूछती हूँ कि जिस बात से तुम्‍हें संताप हो रहा है, वह सच-सच बताओगे। मैं तुम्‍हें आज्ञा देती हूँ। दुःखी लक्ष्‍मण ने अश्रुपूर्ण नेत्रों से मुँह नीचा कर कहा-

श्रुत्‍वा परिषदो मध्‍ये ह्यपवादं सुदारुणम्‌।

पुरे जनपदे चैव त्‍वकृते जनकात्‍मजे॥

-वा.रा.,उत्तरकाण्‍ड, सर्ग 47।11

जनकनन्‍दिनी! नगर और जनपद में आपके विषय में भयंकर अपवाद फैला हुआ है, उसे राजसभा में सुनकर श्रीराम का हृदय संतृप्‍त हो उठा और वे मुझे सब बातें बताकर महल में चले गये। आप लंका में मेरे सामने निर्दोष सिद्ध हो चुकी हो तो भी महाराज ने लोकापवाद से डरकर आपको त्‍याग दिया है। देवी! आप अन्‍यथा न समझे मैं महाराज की आज्ञा तथा आपकी इच्‍छा समझकर आश्रमों के पास ले जाकर छोड़ दूँगा। आप वाल्‍मीकिजी के चरणों की छाया में रहें। लक्ष्‍मणजी के कठोर वचन सुनकर सीताजी मूर्छित होकर पृथ्‍वी पर गिर पड़ी। दो घड़ी उपरान्‍त होश आने पर सीताजी बोली निश्‍चय ही विधाता ने मेरे शरीर को केवल दुःख भोगने के लिये रचा है। मैंने पूर्वजन्‍म में कौन-सा पाप किया था अथवा किसका स्‍त्री से बिछोह करवाया था? जो पवित्र आचरणवाली होने पर भी महाराज ने मुझे त्‍याग दिया है।

सीताजी ने लक्ष्‍मण से संदेशरूप में कहा कि तुम महाराज से कहना कि ‘‘वीर! आपने अपयश के डरकर ही मुझे त्‍यागा है। अतः लोगों में आपकी निन्‍दा हो रही है अथवा मेरे कारण जो अपवाद फैल रहा है, उसे दूर करना मेरा भी कर्त्तव्‍य है, क्‍योंकि मेरे परम्‌ आश्रय आप ही हैं। लक्ष्‍मण मैं जीवन को अभी गंगाजी के जल में विसर्जित कर देती किन्‍तु इस समय ऐसा अभी नहीं कर सकूँगी, क्‍योंकि ऐसा करने से मेरे पतिदेव का राजवंश नष्‍ट हो जायेगा।

लक्ष्‍मणजी ने सीताजी का माथा टेककर प्रणाम किया तथा जोर से रोते-रोते परिक्रमा कर नाव पर चढ़ गये। शोक से संतप्‍त लक्ष्‍मण गंगाजी के उत्तरी तट पर जाकर अचेत से तथा उसी दशा में रथ पर चढ़ गये। सीताजी रो रही थीं, वहाँ से थोड़ी दूर पर ऋषियों के कुछ बालक थे। बालकों ने यह समाचार वाल्‍मीकिजी को सुनाया। वाल्‍मीकिजी बालकों सहित गंगातटवर्ती स्‍थान पर गये तथा मधुरवाणी में कहा पतिव्रते! तुम राजा दशरथ की पुत्रवधु, महाराज श्रीराम की रानी और मिथिला के राजा जनक की पुत्री हो। तुम्‍हारा स्‍वागत है। जब तुम यहाँ आरही थी, तभी मुझे धर्मसमाधि के द्वारा इसका पता लग गया था। तुम्‍हारे परित्‍याग का जो सम्‍पूर्ण कारण है, उसे मैंने अपने मन से जान लिया है। तुम निष्‍पाप हो। यह मैंने पूर्व में ही दिव्‍य दृृष्‍टि से जान लिया है। इस प्रकार सीताजी वाल्‍मीकिजी के आश्रम में पहुँच गई।

लक्ष्‍मण सारथी सुमंत्र से बोले रघुनाथजी को सीता का जो नित्‍य वियोग प्राप्‍त हुआ है, इसमें मैं देव को ही कारण मानता हूँ, क्‍योंकि देव का विधान दुर्लङ्‌घ्‌य होता है। लक्ष्‍मणजी की कही हुई अनेक प्रकार की बातों को सुनकर बुद्धिमान सुमंत्र ने श्रद्धापूर्वक ये कहा-

न संतापस्‍त्‍वया कार्यः सौमित्रे मैथिलीं प्रति।

दृष्‍टमेतत्‌ पुरा विप्रैः पितुस्‍ते लक्ष्‍मणाग्रतः॥

-वा.रा. उत्तरकाण्‍ड सर्ग 50।10

सुमित्रानन्‍दन! मिथिलेशकुमारी सीता के विषय में आपको संतप्‍त नहीं होना चाहिये। लक्ष्‍मण, यह बात ब्राह्मणों ने आपके पिताश्री के सामने ही जान ली थीं। उन दिनों दुर्वासाजी ने कहा था कि ‘‘श्रीराम निश्‍चय ही अधिक दुःख उठायेंगे। प्रायः उनका सौख्‍य छिन जायगा। महाबाहु श्रीराम को शीघ्र ही अपने प्रियजनों से वियोग प्राप्‍त होगा। लक्ष्‍मणजी इतना ही नहीं श्रीराम दीर्घकाल बीतते-बीतते तुमको मिथिलेशकुमारी को तथा भरत और शत्रुघ्‍न को भी त्‍याग देंगे। इस प्रकार दुर्वासाजी ने जो बाते कहीं थी, उसे महाराज दशरथ ने तुमसे, शत्रुघ्‍न और भरतजी से भी कहने की मनाही कर दी थी।

दुर्वासा मुनि ने बड़े जनसमुदाय के समीप मेरे समक्ष तथा महर्षि वशिष्‍ठ के निकट यह बातें कही थीं। दुर्वासा मुनि की यह बात सुनकर दशरथजी ने मुझे यह बात नहीं करने को कहा था। यद्यपि पूर्वकाल में महाराज ने इस रहस्‍य को दूसरों के समक्ष प्रकट न करने का आदेश दिया था, तथापि आज मैं यह बात कहूँगा। देव-विधान को लांघना बहुत कठिन है, जिससे यह दुःख और शोक प्राप्‍त हुआ है। भैया, तुम भी यह बात भरत एवं शत्रुघ्‍न के सामने मत कहना। सुमंत्रजी का यह गंभीर भाषण सुनकर लक्ष्‍मण ने कहा-आप जो बात सत्‍य है, अवश्‍य कहें, तब सुमंत्रजी दुर्वासाजी की कही बातें उन्‍हें सुनाने लगे।

अत्रि के पुत्र महामुनि दुर्वासा वशिष्‍ठजी के आश्रम पर रहकर चार महीने बिता रहे थे। एक दिन आपके पिता आश्रम पर अपने पुरोहित महात्‍मा वशिष्‍ठजी का दर्शन करने के लिये स्‍वयं ही गये। वशिष्‍ठजी के वामभाग में बैठे हुए एक महामुनि को उन्‍हें वहाँ देखा। महाराज ने दोनों महर्षियों का विनयपूर्वक अभिवादन किया तथा उनके चरणों में बैठ गये। तदनन्‍तर किसी कथा के प्रसंग में महाराज ने हाथ जोड़कर के अत्रि के तपोधन पुत्र दुर्वासाजी से विनयपूर्वक पूछा-भगवन्‌ मेरा वंश कितने समय तक चलेगा। मेरे राम व अन्‍य पुत्रों की आयु कितनी होगी? श्री राम के जो पुत्र होंगे उनकी आयु कितनी होगी? मेरे वंश की स्‍थिति बताईये

राजा दशरथ के वचन सुनकर दुर्वासाजी कहने लगे-प्राचीन काल की बात है कि एक बार देवासुर संग्राम में देवताओं से पीड़ित हुए दैत्‍यों ने महर्षि भृगु की पत्‍नी की शरण ली। भृगु पत्‍नी ने उस समय दैत्‍यों को अभय दान दिया और दैत्‍यों ने उनके आश्रम पर निर्भय होकर रहने लगे-

तथा परिग्रहीतांस्‍तान्‌ दृष्‍ट्‌वा क्रुद्धः सुरेश्‍वरः।

चक्रेण शितधारेण भृगुपत्‍न्‍याः शिरोऽहरत्‌॥

-वा.रा. उत्तरकाण्‍ड सर्ग 51। 13

भृगु पत्‍नी ने दैत्‍यों को आश्रय दिया है, यह देखकर कुपित हुए देवेश्‍वर भगवान विष्‍णु ने तीखी धारवाले चक्र से उनका सिर काट लिया। भृगुजी ने क्रोधित हो भगवान विष्‍णु को शाप दिया-जनार्दन! मेरी पत्‍नी वध योग्‍य नहीं थी किन्‍तु आपने क्रोध से मूर्छित होकर उसका वध किया है इसलिये आपको मनुष्‍य लोक में जन्‍म लेना पड़ेगा और बहुत वर्षों तक आपको पत्‍नी वियोग कष्‍ट सहना पड़ेगा।

शाप देने के पश्‍चात्‌ भृगुजी को पश्‍चात्ताप हुआ था। उन्‍होंने भगवान विष्‍णु की आराधना की। भगवान विष्‍णु ने तपस्‍या से सन्‍तुष्‍ट होकर भृगुजी से कहा कि-सम्‍पूर्ण जगत का प्रिय करने के लिये मैं इस शाप को ग्रहण करता हूँ। इस तरह पूर्व जन्‍म में विष्‍णु अवतार लेकर राम नाम से विख्‍यात आपके पुत्र हुए है। भृगु के शाप से पत्‍नी वियोग हुआ। महामुनि ने दशरथजी को राजवंश की भूत और भविष्‍य की सारी बातें बतायी। दशरथजी दोनों मुनियों को प्रणाम कर घर लौटने लगे तथा मैंने सब बात सुनकर हृदय में धारण करली तथा किसी के समक्ष प्रकट नहीं की। लक्ष्‍मणजी मुनि के वचनानुसार श्रीराम के दो पुत्र होंगे तथा राम उनका अयोध्‍या से बाहर अभिषेक करेंगे।

सुमंत्र इस प्रकार दशरथजी के विश्‍वासपात्र मंत्री, सूत एवं मित्र थे। आज के युग में ऐसा मित्र कर्त्तव्‍यनिष्‍ठ, विश्‍वासपात्र मिलना दुर्लभ ही नहीं असंभव सा लगता है। सुमंत्रजी का दशरथजी के हित व परिवार में ऐसा मंत्री सौभाग्‍य की बात थी। सुमंत्रजी को श्रीराम के वंश का भूत भविष्‍य ज्ञात था।

000

clip_image002_thumb[1] 

डॉ. नरेन्‍द्र कुमार मेहता ‘मानस शिरोमणि’

Sr. MIG -.103ए व्‍यास नगर,

ऋषिनगर विस्‍तार उज्‍जैन (म.प्र.)

--

Email:drnarendrakmehta@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: रामायण के अल्‍पज्ञात दुर्लभ प्रसंग // सुमंत्र को दशरथजी के समय ही रघुवंश का भूत भविष्‍य ज्ञात था // '‍मानस शिरोमणि' ‍ डॉ. नरेन्‍द्र कुमार मेहता
रामायण के अल्‍पज्ञात दुर्लभ प्रसंग // सुमंत्र को दशरथजी के समय ही रघुवंश का भूत भविष्‍य ज्ञात था // '‍मानस शिरोमणि' ‍ डॉ. नरेन्‍द्र कुमार मेहता
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgI_0RLylUAHE8LOMvpwe0xnZj8AsZ01z_mfTo1Bt3cXn56aTChzKOpg2EtfVGIbCGKU0YlzxklRbrmCtyTmLEFUdE3oLAr4yUfY_yxmf3V9JDxQy4sK83bIfXPcjUU7uwHPyIr/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgI_0RLylUAHE8LOMvpwe0xnZj8AsZ01z_mfTo1Bt3cXn56aTChzKOpg2EtfVGIbCGKU0YlzxklRbrmCtyTmLEFUdE3oLAr4yUfY_yxmf3V9JDxQy4sK83bIfXPcjUU7uwHPyIr/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2017/08/blog-post_75.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2017/08/blog-post_75.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content