भारत विश्व का एक मात्र ऐसा देश है जहाँ प्रतिदिन संस्कारो को नापने और उसको सिखाने का दायित्व यहा की संस्कृति और परम्परा करती आ रही है। इस शैल...
भारत विश्व का एक मात्र ऐसा देश है जहाँ प्रतिदिन संस्कारो को नापने और उसको सिखाने का दायित्व यहा की संस्कृति और परम्परा करती आ रही है।
इस शैलीक परम्पराओ का सम्पूर्ण केंद्र है उत्तर भारत और उसके आस-पास का क्षेत्र ।
जिस प्रकार वैष्णव भक्ति का केंद्र दक्षिण भारत माना गया उसी प्रकार सम्पूर्ण मानवीय उत्सव् का केंद्र उत्तर भारत है।
उत्तर भारत में मानवीयता के साथ लोक सांस्कृतिक महोत्सव का आयोजन किया जाना इस बात का द्योतक है।
उसी लोक संस्कृति में एक पर्व है तीज़ ।
तीज़ भारत का एक मात्र पर्व जिसमें उस बीज के अनुकरण का बोध होता है जिससे इस समाज का निर्माण होता है,समाज के विकास और उसके साहचर्य का बोध होता है।
तीज़ का सीधे सम्बन्ध मनुष्य के उस समाजिक और अनिवार्य परम्परा से जिसके बिना वो इस योनि से अलग नही हो सकता है वो रीती और परम्परा है विवाह।
विवाह किसी भी व्यक्ति के जीवन का एक ऐसा पड़ाव जहा से उसके भीतर के आत्म ज्ञान,अनुभव् जैसे गुणों का विस्तार होना आरम्भ हो जाता है वैसे जीवन का मतलब ही है सीखना और वो भी विस्तार से। तो कहि न कहि ये सिख विवाह से आरम्भ होती है।
विवाह का अर्थ है की पुरुष का स्त्री के प्रति या स्त्री का पुरुष के प्रति सम्मान,त्याग,प्रेम,साहचर्य,तपस्या यानि हर प्रकार से उसमें विलीन रहना अर्थ है दो अलग जीवो का एक जीवन है।
सच्चे अर्थो में कहा जाये तो तीज़ किसी स्त्री का पुरुष के प्रति लम्बी उमर के उपवास का उत्सव नही बल्कि तीज़ एक मानवीय उत्सव है, सही अर्थो में तीज़ किसी भी विवाहित स्त्री पुरुष के विवाह की सालगिरह है।
यह एक ऐसा पर्व है जो इस दोनों के प्रति प्रेम और समर्पण के भाविक धरातल को तैयार करता है।
इस वर्ष इस महोत्सव का अपना विशेष महत्व है क्योंकि प्रायः इस पर्व के पूजन में माता पार्वती और महादेव शिव की उपासना की जाती है पर आज के दिन अर्थात वृहस्पतिवार को इस पर्व का आयोजन हो रहा है आज का दिन श्री हरी विष्णु का दिन है और एक मान्यता के अनुसार माता के भाई के रूप में श्री हरी जाने जाते है तो एक प्रकार से इस विशेष पर्व में बहन पार्वती,जीजा शिव और स्वयं श्री विष्णु उपस्थित है।
यानी संहारकर्ता और पालनहार।
इस पर्व के आयोजित के बारे कुछ विशेष बात भोजपुरी में लिखना ज्यादा उचित समझता हूं क्योंकि ये मुख्य रूप से इस बोली में ज्यादा रमी और रची गयी है-
"तीज़ के व्रत सुहागिन औरत अपना पति के मंगल कामना अवुरी सुख समृद्धि खातिर करेली, जबकि कुंवार लईकी अपना पसंद के वर पावे खातिर ए व्रत के करेली। तीज़ हर साल भादो महीना के शुक्ल पक्ष तृतीया के दिन कईल जाला।
तीज़ व्रत में दु तरह के विधान बा। पहिला बेर तीज़ के व्रत करेवाली लईकी-औरत अगर निर्जला नईखी रह सकत, त पहीला तीज़ फलहार रहत कईल जा सकता। अयीसन मानल जाला कि जवन लईकी-औरत पहीला तीज़ फलहार प करेली उ आगे के सभ तीज़ फलहार संगे क सकतारी।
जवन लोग आपन पहिला तीज़ निर्जला मतलब बिना कुछ खईले-पियले कईले बा त ओ लोग के पूरा जीवन तीज़ के दिन निर्जला रहे के परेला। ओइसे तीज़ व्रत अगर हो सके त निर्जला करे के चाही। "यथा शक्ति तथा भक्ति।"
तीज़ से एक दिन पहीले पकवान बनावल जाला आ उहे पकवान खा के औरत लोग व्रत करेली। घर के बाकी लोग भी ओह पकवान के खा सकेला अवुरी खाए के चाही।
चुकी मेहंदी के सुहाग के प्रतीक मानल जाला, एहसे तीज़ से एक दिन पहीले भा तीज़ के दिन हाथ में मेहंदी जरूर लगावल जाला। तीज़ वाला दिन सांझी के लईकी-औरत नाहा-धो के नाया साड़ी, चूड़ी, गहना अवुरी गोड़ में अलता (महावर) लगा के सोरह श्रिंगार क, मंदिर में तीज़ के काथा सुनल जाला।
कवनो कारण से अगर केहू मंदिर ना जा सके, त अपना घर में ही शिव-पार्वती के कथा सुन लेवे के चाही।
शिव-पार्वती के पूजा के समय सेनूर, बिंदी, चूड़ी, शीशा, कंघी, आलता, काजल एह तरे के श्रृं गारके समान अवुरी कपड़ा, पईसा आ फल चढ़ा के पंडित जी के दान कईल जाला।
कथा सुनला के बाद पति अवुरी अपना से बड़ लोग के गोड़ जरूर लागे के चाही अवुरी आशीर्वाद लेवे के चाही।
तीज़ के अगिला दिन सबेरे उठ के नहा-धो के पूजा कईला के बाद ही पारण कईल जाला। एह तरे तीज़ व्रत पूरा हो जाला। एह तरे इ व्रत के कईला प माता पार्वती अवुरी भगवान शिव वर्ती के सभ मनोकामना पूरा करेले।"
इस प्रकार तीज त्याग प्रेम तपस्या साहचर्य का एक ऐसा उत्सव है जिसमे एक के माध्यम से सम्पूर्ण समाज सुखी के साथ जीवन को जीने और जीवन के सिखने के मार्ग को सीखता है।
लेखक परिचय
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शैलेश त्रिपाठी
जन्म 6 अगस्त 1992
स्थान-वाराणसी
स्नातक(हिंदी) काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
स्नातकोत्तर(हिंदी) काशी हिंदू विश्वविद्यालय
तेलुगु(एक वर्षीय डिप्लोमा,काशी हिन्दू विश्वविद्यालय)
चीनी भाषा(दो वर्षीय एडवांस डिप्लोमा,काशी हिन्दू विश्वविद्यालय)
शोध छात्र-हिंदी एवम् विदेशी भाषा अध्ययन विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय पहली
चीनी हिंदी साहित्यिक पत्रिका-संचेतनाभारतीय प्रतिनिधि(क्वांगतोङग वैदेशिक अध्ययनविश्वविद्यालय,क्वांगचौ, चीन)संपर्क –shaileshguggu@gmail.comकई विषयों पर लेख प्रकाशित-
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