स्वर्गीय मामा मथुरा प्रसाद , जिनकी देखरेख में मैंने लेखनी पकड़ना सीखा , की याद में एक रचना , जो उन्होंने मुझे प्रेरित करने के ...
स्वर्गीय मामा मथुरा प्रसाद , जिनकी देखरेख में मैंने लेखनी पकड़ना सीखा , की याद में एक रचना , जो उन्होंने मुझे प्रेरित करने के उद्देश्य से कुछ स्वयं लिखा तथा कुछ मुझसे लिखवाया। जो समाचार पत्रों में प्रकाशित भी हुई--उन्हें श्रद्धाञ्जलि-स्वरूप प्रस्तुत है
वही रचना---
पुराण - पोल - प्रकाश
(स्व०)मथुरा प्रसाद एवं .
-डॉ०कुसुमाकर शास्त्री
चण्डालिनि - सुवन पराशर रमे सत्या से ,
व्यास उत्पन्न हुये उससे बिचारिये।
तीनों भयहू सँग रमे वही व्यास एक बार
व्यास के ही पुत्र सुखदेव उरधारिये।
बृहस्पति भौजी संग कियेसंभोग जब,
पैदा हुये भरद्वाज वचन न टारिये।
एक दो ही नहीं,हैं अनेकहूँ प्रमाण बन्धु,
खोलि के पुराण निज नैनन निहारिये।१।
विश्वासमित्र अप्सरा के सुत से उत्पन्न हुये,
कौशिक मुनि वेश्या के तन से ही जायो हैं।
पुलोमा वैश्या सुता शची इन्द्राणी बनी ,
तासु पति देवराज अहिल्या पे धायो हैं।
विश्वामित्र मेनका के साथ संभोग कियो,
उससे शकुन्तला नाम कन्या उपजायो हैं।
कृष्ण चन्द्र - कुब्जा की प्रीति है प्रसिद्ध , वही,
वृषभानुजा के अंग - सँग लिपटायो हैं । २।
अत्रि मुनि भोग कियो वेश्या के संग ,
भीम पति रहे एक राक्षसी महान को ।
सूर्य देव कुन्ती से कर्ण उत्पन्न कियो,
मात कर दियो ज्ञान और विज्ञान को।
द्रौपदी के पाँच पति , फिर भी पतिव्रता वो,
जिसने बढ़ाया पतिव्रत सम्मान को।
बात पे हमारी 'गर होवे विश्वास नहीं,
खोलकर आप देख लीजिये पुराण को। ३।
गर्ग गोत्र हुआ है प्रसिद्ध जिनके कारण ,
वही गर्ग ऋषि लिखा गर्दभ से जायॊ हैं।
रामचन्द्र, भरत, लखन लाल , रिपुहन ,
चारों भाइयों का जन्म खीर से बतायो हैं ।
कालकूट और ऋषि श्रृंगी हुये हिरणी से ,
.'कुसुमाकर' ऐसा पुराण बतलायॊ हैं ।
सूरज ने घोड़ी संग किया संभोग जब ,
अश्वनी कुमार उससे ही जन्म पायो हैं। ४।
चाण्डाल लड़की से मुनि मातंग* हुये .
मेढकी से मुनि माण्डव्य जन्म पायो हैं
कुतिया से शौनक स्वनाम धन्य पैदा हुये ,
सीता औ'अगस्त ऋषि गगरी से जायो हैं ।
'मथुरा प्रसाद 'मुनि जम्बुक सियार - सुत,
गौतम को गाय का सुवन बतलायो हैं।
धन्य हैं पुराण ,धन्य -धन्य हैं पुराणपंथी ,
बिना रूई तेल आग पानी में लगायो हैं'। ५।
ब्रह्मा अजीब बाजीगर सा नजर आयें ,
जिन निज मुख बाह्मण उपजायो हैं। .
हाथों से जिनके हुये क्षत्रिय ,कमर से वैश्य ,
पैरों से पैदा सुत शूद्र कहलाये हैं।
आज तक भ्रम में पड़ा है.'कुसुमाकर' जग,
ब्रह्मा को नर या न मादा कह पायो है।
धन्य हैं पुराण धन्य -धन्य हैं पुराणपंथी .
बिना रुई तेल आग पानी में लगायो हैं। ६ ।
तीन -तीन बाप रहे खास एक ही सुत के
जिनका कि नाम हनुमान कहलायो है।
'कुसुमाकर' मकरध्वज और योजनगंधा ,
उत्पन्न मछली के गर्भ से बतायो है।
साठ सहस्र सुत राजा सगर के हुये ,
कैसी विलक्षण यह बात दरशायो है।
धन्य हैं पुराण , धन्यधन्य हैं पुराणपंथी ,
बिना रुई तेल आग पानी में लगायो हैं। ७ ।
बिना माता के ही जनक और पृथु पैदा हुये ,
महदाश्चर्य पिता तन से निहारिये।
चाण्डालिनि पुत्र हुये आदिकवि वाल्मीकि,
धोबी सुत नारद थे बचन न टारिये ।
बिना ही विवर शिव मस्तक से भैरव और ,
वीर जालन्धर हुये , बुद्धिपचिहारिये।
'मथुरा प्रसाद कहें , बात का यकीन न हो ,
खोल के पुराण निज नैनन निहारिये। ८ I
कुश को जनम लिखा घास से , महान ,
आश्चर्य शुकदेव हुये सुगिया के तन से।
विष्णु ने पतोहू और भगिनी से भोग कियो ,
आजू 'गर होते तो निकालता वतन से ।
बेटी बहिन एक हू न छोड़ा खास ब्रह्मा ने ,
शंकर ने किया संभोग था बहन से ।
ऐसे-ऐसे ज्ञान की हैं खान ए पुरान क्यों न ,
'मथुरा प्रसाद ' इन्हें राखिये जतन से। ९ ।
चन्द्रमा ने गुरु पत्नी तारा से भोग कियो,
सर्वस्व वृत्ता' शर्मिष्टा पर लुटायो हैं।
शिवजी भीलनी को भोग निज सिर कलंक लियो ,
पावन चरित्र निज मिट्टी में मिलायो है।
बालि वीर भयहू विभीषण भौजाई राख्यो ,
पर नारी शान्ता को श्रृंगी अपनायो हैं।
धन्य हैं पुराण धन्य -धन्य है पुराणपंथी ',
बिना रूई तेल आग पानी में लगायो हैं। १०।
जग के नियन्ता हैं सुअर सुनहु लोगों ,
ऐसा पुराण डंका चोट पे बतायो हैं।
सूअर भगवान द्वारा जेते उपजाये गये ,
सूअर से मिन्न भला कहाँं बन पाये है ?
सूअर के जाये बात सूअर समान करें ,
मानवता की बात समझ न पायो हैं।
धन्य हैं पुराण धन्य-धन्य हैं पुराण पंथी,
'बिना रूई तेल आग पानी में लगायो
ब्रह्म.ब्रह्मा,विष्णु,महेश,पराशर,
व्यास,बशिष्ठ,बृहस्पति,ज्ञानी |
सूर्य, विभीषण, कौशिक , इन्द्र ,
विदेह , विदेह सुता , इन्द्राणी' ।
जम्बुक, गौतम , औ' पृथुआदि के ,
मान के ऊपर फेरत पानी।
देव तजो अस या फिर भाड़ में ,
डारो पुराण पुराण की बानी ॥ १ २ ।
X X X
गजल
' डॉ० कुसुमाकर' शास्त्री
दिल की बात रही अब दिल में ,
उसे जुबां पर लाना क्या?
कितनी उल्फत है इस दिल में ,
कह कर के बतलाना क्या?
यह दिल तो दीवाना ही है ,
किसी तरह समझा लेंगे।
दिल की तो दिलवर ही जाने ,
गैरों को समझाना क्या?
हमने देखा इस उल्फत में ,
.. . जितनी गहरी टीस मिली ।
उतना ही है प्रेम बढ़ा ,
वर्ना जलता परवाना क्या?
एक नजर में जितनी मय,
तूने मुझको दे डाली है ।
उसकी समता कर सकता है ,
अब कोई मयखाना क्या?
बिन मांगे ही सब कुछ मिलता ,
जब इस दर दीवाने को ।
फिर ऐसा दर तज 'कुसुमाकर',
दर-दर ठोकर खाना क्या?
दिल की बात रही अब दिल में ,
उसे जुबाँ पर लाना क्या ?
०००
( बादल - गीत )
डॉ० कुसुमाकर शास्त्री
अबकी साल न आये बादल ।
हम सबको तरसाये बादल ।
चारों ओर तबाही छायी
सारी जनता है घबरायी,
अबकी पड़ा भयंकर सूखा,
सावन धूल उड़ाये , बादल ।
हम सबको तरसाये बादल ।।
तार-तार धरती का आँचल ।
मिले बूँद भर नहीं कहीं जल।
मची तबाही है चारों दिशि,
कैसे फसल बुवायें बादल ?
हम सबको तरसाये बादल I
क्यों रूठे हो हमें बताओ ।
हम सबको अब नहीं सताओI
जल बिन सारी धरती प्यासी ,
तुमको दया न आये बादल' ।
हम सबको तरसाये बादल ।
तुम तो हो पर्जन्य कहाते।
लेकिन क्यूँ निज नाम हँसाते।
नहीं फिक्र धरती की तुमको I
नाहक नाम धराये बादल I
हम सब को तरसाये बादल ।
बाल बृद्ध सारे नर -नारी।
देख रहे हैं बाट तिहारी।
तुझ पर है विश्वास आश जो,
कहीं टूट ना जाये बादल ।
हम सबको तरसाये बादल' ।
० X०x०
- गुजरात भू-कम्प-
_____________
-डॉ०कुसुमाकर शास्त्री
करुणा वह दृश्य रहा,करुण वह दृश्य रहा।
क्षण भर में छाया मातम ,निकली भीषण चीत्कार,
करुण वह दृश्य रहा,करुण वह दृश्य रहा।
दिल्ली में गणतन्त्र रहा,पर भुज में था भूचाल,
गया भचाऊ, रापड़ देखोे,क्षण भर में पाताल।
करुण वह दृश्य रहा, करुण वह दृश्य रहा।
क्षण भर में जो घटा, नहीं जाता है अब तो कहा।
करुण. वह दृश्य रहा,करुण वह दृश्य रहा।
सुबह आठ पैंतालिस से ही कम्पन मारे जोर,
चीख पुकार मची चारों दिशि,दु:ख का ओर न छोर।
करुण वह दृश्य रहा,करुण वह दृश्य रहा।
गिरने लगे मकान, सभी का रक्त बहा।
करुण वह दृश्य रहा,करुण वह दृश्य रहा।
ध्वस्त हो गये हाय हजारों लाखों के घर बार।
करुण वह दृश्य रहा, करुण वह दृश्य रहा।।
X० X ० X
* + गारी+*
-डॉ०'कुसुमाकर'शास्त्री
कहैं सखियन मुस्की मारी हो बोला रामजी लला।
चुन-चुनि नेग लिये मँड़ये में,
पुरये न. बात हमारी,हो बोला रामजी लला।
अपनी बुआ का नाम बतावा,
सखियन घेरी दुवारी हो बोला रामजी लला।
बहिनी तुम्हारी रहलीं जो शान्ता,
ऋषि श्रृंगी संँग सिधारीं, हो बोला रामजी लला I
हुक्म होय लक्ष्मी निधि को
भेजौं, जाय करैं रखवारी हो बोलारामजी लला!
एक बात हम और सुनी सच,
अवधपुरी कै नारी हो बोला रामजी लला।
खीर खाय सुत पैदा करैं ,सब,
ई अचरज अतिभारी हो बोलारामजी लला ।
तुम्हरे रूप को देखि रामजी,
मोही जनकपुर की नारी, हो बोला रामजी लला।
साँंच बतावा भला तोहसें कइसे ,
बची होइ हैं अवधपुर कै नारी हो बोलारामजी लला।
X०x० X।
मुक्तक
डॉ० कुसुमाकर. शास्त्री
जिसमें कोई कमी न होवे , है ऐसा इन्सान कहाँ ?
जो उगकर फिर ढला न होवे , है ऐसा दिनमान कहाँ?
यूँतो सुख-दुःख,रात-दिवस जीवन में आते-जाते हैं
जिसमें कसक छिपी ना हो,
वह अधरों की मुस्कान कहाँ?
XX XX XX
एक बस उम्मीद पर मरते रहे ,जीते रहे।
बारिसों में भी हमारे घट सदा रीते रहे।
यूँ तो सब कुछ था मयस्सर , खुशनसीबी के सिवा ,
प्यास बढ़ती ही गई , जितना भी हम पीते रहे।
X x X
तू न हो तो क्या तेरा आभास तो है ही।
दूर होकर भी तू दिल के पास तो है ही।
गैर तू है तुझपे अपना हक नहीं कुछ भी -
फिर भी रिश्ता तुमसे कोई खास तो है ही I'
X X X
इस जहाँ में कौन होता है भला किसके लिए।
सोचकर तो देख रोता है भला किसके लिए I
वह पुराना पेड़ था सो छाँव सबको मिल गयी -
कौन अब ये बीज बोता है भला किसके लिये।'
x X X
तुम मिलो गे एक दिन , ए आश तो है ही।
अब तलक हाथों में दिल की रास तो है ही।
देर से आये, पर आये , यह भी तो कुछ कम नहीं -
वक्त जाने का है , फिर भी साँस तो है ही ।
XX XX XX
बहुत सुन्दर कविताएँ
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